सोमवार, अगस्त 08, 2011

मेरा किसी भी धर्म का विरोध करने का कोई उद्देश्य नही है।

हर एक सच्चे भारतीय को इस नोट को पठनी चाहिए

Faulal Prajapati Mulaira द्वारा 17 जुलाई 2011 को 22:28 बजे पर
हर एक सच्चे भारतीय को इस नोट को पठनी चाहिए ।


इस लेख को लिखने से मेरा किसी भी धर्म का विरोध करने का कोई उद्देश्य नही है। कुरान मुसलमानों का मजहबी ग्रन्थ है.मुसलमानों के आलावा इसका ज्ञान गैर मुस्लिमों को भी होना आवश्यक है।इस्लाम पूरी दुनिया को दो हिस्सो मे बांट देता है:-
१.दारुल-इस्लाम यानी जंहा मुसलमानो का शासन हो. २.दारुल-हर्ब यानी जंहा मुसलमान हो लेकिन उनका शासन न हो
कुरान पर एतिहासिहर एक सच्चे भारतीय को इस नोट को पठनी चाहिए।
क निर्णय- माननिय श्री झेड.एस.लोहात, मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट-दिल्ही।
इस एतिहासिक निर्णय के पहले की पुर्व-भूमिका:-
बडी आश्चर्य की बात यह हैं कि क्या कभी कोई धर्म अपने धर्म पुस्तक मे एसा आदेश देता हैं कि -"दुसरे धर्म के अनुयायीयो को जहां कही भी मिले उसे घेर लो, उन्हे पकडो, कत्ल करो ।" या उसे नरक की आग मे झोक दो, जब उनकी चमडी जल जायेगी तब उसकी दुसरी चमडी बदल देंगे, जिससे वो यातनाओ का रसास्वाद ले सके ।" एसा अभिगम तो किसी की कल्पनाओ में ना आए।
फ़िर भी यह हकिकत है, और ठोस हकिकत है।
सन-१९८३ में हिन्दु-महासभा के कार्यकर्ता ईन्द्रसेन शर्मा और राजकुमार ने "कुरान मजीद" मे से यह आयात(संदर्भ) को मद्देनजर रखते हुए, उसके पोस्टर छपवाकर जनता में बाटे, और विशेषकर: होजीकाझी(दिल्ही)के विस्तार में बांटे थे। उनके मतानुसार "कुरान मजीद" की ये आयात(संदर्भ) दिक्कत पैदा करने वाली थी- (उन दो युवानो का कहना था-)-
"यह उपर्युक्त आयातो से यह स्पष्ट होता हैं कि- उसमे ईर्ष्या, द्वेष, ध्रुणा, छल, कपट, लडाई, झगडे, लूंट-फ़िरोती, मारामारी और हत्याओ करने का आदेश मिलता हैं। इसी कारण से देश और दुनिया के देशो में मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद होते रहते हैं। जब तक कुरान से उपर्युक्त आयाते निकाल नही देते तब तक मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद रोक पाना संभव नही।"
दिल्ही के न्यायमूर्ति ने इस बारे में अपना निर्णय देते हुए कहा कि-"मैंने खुद "कुरान मजीद" की ये आयातो को और उन पोस्टर कि लेखनी को जांचा हैं, और पूरे तौर पर तुलना करने पर, मुझे यह मालूम हुआ कि ये सब आयाते कुरान में उपलब्ध हैं, और आयातो को पोस्टरो में मूल स्वरुप में ली गयी हैं।
न्यायमूर्ति आगे कहते हैं कि-
"ये आयातो का बहुत सूक्ष्म तौर पर निरीक्षण करने पर मालूम होता हैं कि ये आयाते भारी-भयंकर हैं और ध्रुणास्पद हैं, और एक ओर मुसलमान और दूसरी और बिन-मुस्लिमान के बीच भेदभाव और धिक्कार पैदा कर्रे एसी हैं। इसी लिए तहोमतदार(कार्यकर्ता ईन्द्रसेन शर्मा और राजकुमार) के सामने कोई प्रथमदर्शी केस नही है, और इसी लिए उसे मुक्त करने का आदेश दिया जाता है।"
ऎतिहासिक निर्णय
मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट माननिय श्री झेड.एस.लोहात की अदालत में दिल्ही स्टेट विरुध्ध ईन्द्रसेन शर्मा
एफ़.आई.आर.नं.२३७/८३ ई.पी.कोड.दफ़ा २९५/(A) के तहत पुलिस स्टेशन होझकाझी।
हूकम(आदेश)
आयाते "कुरान मजीद" के पवित्र पुस्तक (मुस्लिम लेखक महंमद फ़ारुकखान ने किए हिन्दी तरजूमा) से अक्षरश: संपूर्ण अवतरण मिलाते हुए और कोई परिवर्तन या सुधार किए बिना और पवित्र "कुरान मजीद" पुस्तक से लेने के बाद उसकी जनता पर असर हूई हैं।(यहां पर यह कहना हैं कि उन पोश्टर में ईन्द्रसेन शर्मा ने दिक्कतजनक आयाते पवित्र "कुरान मजीद" पुस्तक से मूल स्वरुप में कोई छेडखानी किए बिना ली हैं।) इस कारण तहोमतदार(कार्यकर्ता ईन्द्रसेन शर्मा और राजकुमार) के सामने कोई केस बनता नही हैं। एसा बचाव-पक्ष के विद्वान वकील ने कबुल किया कि तहोमतदार(आरोपी) ने पोस्टर जारी किए हैं। इसी लिए सदर तहोमतदार पर किसी द्वेष से या किसी बद-इरादो से प्रस्तुत नही किए हैं, और उन्होने पवित्र "कुरान मजीद" पुस्तक के सामने गलत अभिप्राय नही दिया और (मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट-आगे कहते हैं- )
"यह उपर्युक्त आयातो से यह स्पष्ट होता हैं कि- उसमे ईर्ष्या, द्वेष, ध्रुणा, छल, कपट, लडाई, झगडे, लूंट-फ़िरोती, मारामारी और हत्याओ करने का आदेश मिलता हैं। इसी कारण से देश और दुनिया के देशो में मुसलमानो और बिन-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद होते रहते हैं। जब तक कुरान से उपर्युक्त आयाते निकाल नही देते तब तक मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद रोक पाना संभव नही।"
इन उपरे के शब्दो से किसी भी प्रकार से कुसंप(विरोध) उत्पन्न हो नही सकते, और यह उपरे के शब्द किसी वर्ग-समुदाय की श्रध्धा-आस्थाओ को कोई नुकसान पहुचा नही सकते। और इसी कारण किसी भी तहोमतदार के विरुध्ध किसी भी प्रकार का आरोप लगा नही सकते।
पोस्टरो में छपी आयाते अनुक्रम नं. के हिसाब से- २, ५, ९, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ और २२ "कुरान मजीद" में से उपलब्ध हैं। और उसे किसी भी प्रकार से विक्रुत नही किया। बचाव पक्ष के विद्ववान धाराशास्त्री ने निम्न आदेशो के निर्णय पर आधार रखा हैं-
१. १९७७ क्रिमिनल कानून, प्रुष्ठ-१६०६, १६०७, पेरा-४
२.१९७६ क्रिमिनल कानून, प्रुष्ठ-९८-११२, पेरा-४१
३.१९६४ ए.आइ.आर. मद्रास प्रुष्ठ-२५८, प्रुष्ठ-२५९, पेरा-६
सरकार(पोस्टर के विरुध्ध शिकायत कर्ता) की ओर से विद्वान धाराशास्त्री ने उसकी विरुध्ध दलील(बहस) करते हुए, बताया कि बचाव में सत्य नही हैं, उनकी द्लील के यह शब्द थे-
"यही कारण से देश और विश्व के मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद होते रहते हैं, जब तक कुरान से उपर्युक्त आयाते निकाल नही देते तब तक मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद रोक पाना संभव नही।"
ये शब्द कौमी-कुसंप(विरोध एवं विधटन) पैदा करना, मुस्लिम कौम की आस्था को ठेस पहुसाने के लिए पोस्टरो में सामिल किए हुए हैं, और इ.पी.(ईन्डीयन पीनल)कोड-दफ़ा २९५/(A)के तहत में बताये गये प्रोविजन की मर्यादा(सता के तहत) में आते हैं। तहोमतदार का इरादा मुसलमान और दुसरी कौम के बीच ध्रुणा-द्वेष पैदा करवाना हैं, इसी कारण उसे जिम्मेवारी से बहिष्क्रुत नही किया जा सकता। और केस के इस मोड पर अदालत उसे अतिसूक्षमता से ओर संपूर्णतौर पर न्यायतोल नही सकते। तहोमतदारो ने गुन्हा किया किया हैं, एसी ठोस आशंका हैं, और प्रथमदर्शीता के तौर पर तहोमतदारो पर आरोप गढने के गवाह-प्रमाण हैं, इसी कारण बचाव पक्ष के विद्वान धाराशास्त्री ने जो दलील(बहस) टीक नही सकती और वह रद्द करने के पात्र हैं।" तथा सरकार(पोस्टर के विरुध्ध शिकायत कर्ता) की ओर से विद्वान धाराशास्त्री ने उसकी विरुध्ध दलील(बहस) करते हुए आगे कहा-"पोस्टरो में छपी आयाते अनुक्रम नं. के हिसाब से- २, ५, ९, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ और २२ "कुरान मजीद" में से उपलब्ध नही हैं, और उस अंतर्गत अगर कोइ उपलब्ध हैं, भी तो उसे विक्रुत करके प्रस्तुत की गई हैं, प्रसिध्ध की गई हैं, तथा वह द्वेष-पूर्ण हैं, और मुस्लिम धर्म में आस्था रखने वालो की श्रध्धा को हरकत-कर्ता हैं, एसा स्पष्ट रुप से मालूम होता हैं।
सरकार की तरफ़ से विद्वान धाराशास्त्री ने निम्न आदेशो पर आधार रखा हैं-
१. १९७६ क्रिमिनल कानून, जर्नल, प्रुष्ठ-९८।
२. १९८५ क्रिमिनल कानून, जर्नल,प्रुष्ठ-७९६।
३. १९७७ क्रिमिनल कानून, जर्नल,प्रुष्ठ-१६०६।
४. १९६० क्रिमिनल कानून, जर्नल,प्रुष्ठ-१५२८।
सरकार(पोस्टर के विरुध्ध शिकायत कर्ता) की ओर से विद्वान धाराशास्त्री ने जो १९७६ क्रिमिनल कानून, जर्नल, प्रुष्ठ-९८ के अनुसार-
"प्रामाणिक विवेचन यह कौमो के बीच दुशमनी पैदा करवानी अथवा किसीभी वर्ग विशेष के धर्म इत्यादी का अपमान करना धार्मिक आस्था को आधात पहुंसाने से भिन्न हैं।"
अंत में मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट ने अपने न्यायादेश देते कहा-
"सरकार की ओर से विद्वान धाराशास्त्री ने प्रस्तुत किए हुए भिन्न-भिन्न आदेश इसी केस की हकिकतो और संजोग को असर्नही करते।
और उपर की चर्चा को देखते हुए मैं इस नतिजे पर आया हूं कि तहोमतदारो के सामने प्रथम द्रुष्टि में कोई केस नही बनता, क्योकि तहोमतदारो के सामने कहे जाने वाले गुन्हा प्रथम द्रुष्टि में ही द्फ़ा १५३-ए/२९५/ए की व्याख्या मे आता नही और इसीसे दोनो तोहमतदारो को मुक्त(रिहा) किया जाता हैं।
३१ जुलाई, १९८६,
(ह्स्ताक्षर)
मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट, दिल्ही।
मानव एकता और भाईचारे के विपरीत कुरान का मूल तत्व और लक्ष्य इस्लामी एकता व इस्लामी भाईचारा है. गैर मुसलमानों के साथ मित्रता रखना कुरान में मना है. कुरान मुसलमानों को दूसरे धर्मो के विरूद्ध शत्रुता रखने का निर्देश देती है । कुरान के अनुसार जब कभी जिहाद हो ,तब गैर मुस्लिमों को देखते ही मार डालना चाहिए।कुरान में मुसलमानों को केवल मुसलमानों से मित्रता करने का आदेश है। कुरान की लगभग १५० से भी अधिक आयतें मुसलमानों को गैर मुसलमानों के प्रति भड़काती है।
वह सूरा और उनकी वह आयाते क्या है?-
-> सुरा ३ की आयत ११८ में लिखा है कि, "अपने (मजहब) के लोगो के अतिरिक्त किन्ही भी लोगो से मित्रता मत करो। "
-> सुरा ३ कि आयत २७ में लिखा है कि, " "इमां वाले मुसलमानों को छोड़कर किसी भी काफिर से मित्रता न करे। "
-> सुरा ९ आयत ५ में लिखा है,......."फ़िर जब पवित्र महीने बीत जायें तो मुशरिकों (मूर्ती पूजक) को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और उन्हें गिरफ़्तार करो व घेरो और हर घाट की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तोबा करले ,नमाज कायम करे,और जकात दे तो उनका रास्ता छोड़ दो। निसंदेह अल्लाह बड़ा छमाशील और दया करने वाला है। "(इस आयत से साफ पता चलता है की अल्लाह और इश्वर एक नही हो सकते । अल्लाह सिर्फ़ मुसलमानों का है ,गैर मुसलमानों का वह तभी हो सकता है जब की वे मुस्लमान बन जाए। अन्यथा वह सिर्फ़ मुसलमानों को गैर मुसलमानों को मार डालने का आदेश देता है। )
-> सुरा ९ की आयत २३ में लिखा है कि, "हे इमां वालो अपने पिता व भाइयों को अपना मित्र न बनाओ ,यदि वे इमां कि अपेक्षा कुफ्र को पसंद करें ,और तुमसे जो मित्रता का नाता जोडेगा तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे। " (इस आयत में नव प्रवेशी मुसलमानों को साफ आदेश है कि,जब कोई व्यक्ति मुस्लमान बने तो वह अपने माता , पिता, भाई सभी से सम्बन्ध समाप्त कर ले। यही कारण है कि जो एक बार मुस्लमान बन जाता है, तब वह अपने परिवार के साथ साथ राष्ट्र से भी कट जाता है। )
-> सुरा ४ की आयत ५६ तो मानवता की क्रूरतम मिशाल पेश करती है ..........."जिन लोगो ने हमारी आयतों से इंकार किया उन्हें हम अग्नि में झोंक देगे। जब उनकी खाले पक जाएँगी ,तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसा-स्वादन कर लें। निसंदेह अल्लाह ने प्रभुत्वशाली तत्व दर्शाया है।"
-> सुरा ३२ की आयत २२ में लिखा है "और उनसे बढकर जालिम कोन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा चेताया जाए और फ़िर भी वह उनसे मुँह फेर ले।निश्चय ही ऐसे अप्राधिओं से हमे बदला लेना है। "
-> सुरा ९ ,आयत १२३ में लिखा है की," हे इमां वालों ,उन काफिरों से लड़ो जो तुम्हारे आस पास है,और चाहिए कि वो तुममे शक्ति पायें।"
-> सुरा २ कि आयत १९३ ............"उनके विरूद्ध जब तक लड़ते रहो, जब तक मूर्ती पूजा समाप्त न हो जाए और अल्लाह का मजहब(इस्लाम) सब पर हावी न हो जाए. "
-> सूरा २६ आयत ९४ ..................."तो वे गुमराह (बुत व बुतपरस्त-मूर्तिपुजक) औन्धे मुँह दोजख (नरक) की आग में डाल दिए जायंगे."
-> सूरा ९ ,आयत २८ ..................."हे इमां वालों (मुसलमानों) मुशरिक (मूर्ती पूजक) नापाक है। "
(गैर मुसलमानों को समाप्त करने के बाद उनकी संपत्ति ,उनकी औरतों ,उनके बच्चों का क्या किया जाए ? उसके बारे में कुरान ,मुसलमानों को उसे अल्लाह का उपहार समझ कर उसका भोग करना चाहिए।)
-> सूरा ४८ ,आयत २० में कहा गया है ,....."यह लूट अल्लाह ने दी है। "
-> सूरा ८, आयत ६९..........."उन अच्छी चीजो का जिन्हें तुमने युद्ध करके प्राप्त किया है,पूरा भोग करो। "
-> सूरा १४ ,आयत १३ ............"हम मूर्ती पूजकों को नष्ट कर देंगे और तुम्हे उनके मकानों और जमीनों पर रहने देंगे।"(मुसलमानों के लिए गैर मुस्लिमो के मकान व संपत्ति ही हलाल नही है, अपितु उनकी स्त्रिओं का भोग करने की भी पूरी इजाजत दी गई है।)
-> सूरा ४ ,आयत २४.............."विवाहित औरतों के साथ विवाह हराम है , परन्तु युद्ध में माले-गनीमत के रूप में प्राप्त की गई औरतें तो तुम्हारी गुलाम है ,उनके साथ विवाह करना जायज है। "
अल्बुखारी की हदीस जिल्द ४ सफा ८८ में मोहम्मद ने स्वयं कहा है, "मेरा गुजर लूट पर होता है । "
अल्बुखारी की हदीस जिल्द १ सफा १९९ में मोहम्मद कहता है ,."लूट मेरे लिए हलाल कर दी गई है ,मुझसे पहले पेगम्बरों के लिए यह हलाल नही थी। "
इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण मिशन पूरे विश्व को दारुल इस्लाम बनाना है। कुरान, हदीस, हिदाया, सीरतुन्नबी इस्लाम के बुनयादी ग्रन्थ है.इन सभी ग्रंथों में मुसलमानों को दूसरे धर्म वालो के साथ क्रूरतम बर्ताव करके उनके सामने सिर्फ़ इस्लाम स्वीकार करना अथवा म्रत्यु दो ही विचार रखने होते है। इस्लाम में लूट प्रसाद के रूप में वितरण की जाती है ।
उपसंहार-
में अपनी नोट पूरी करु उससे पहले में गुजराती लेखक गुणवंत शाह की डा.आंबेडकरजी के बारे में क्या कहा हैं वह कहूंगा :"डो.भीमराव आंबेडकर को में राष्ट्रपुरुष कहता हूं, उसके पीछे दो घटना को में मानता हूं - १. १९३२ में पूणे की यरवडा जेल में गांधीजी का अनशन का उपवास का सुखद अंत(यह एक बडी घटना हैं जो कई लोग नही जानते...इसकी कभी बात करुंगा ) २.डो.आंबेडकर भगवान बुध्ध के शरण में गये,इसका महत्व कम नही आंका जाये, उस वक्त इस्लाम और ख्रिस्ती धर्म के मुखिया चादर बिचाये करोडो रुपियो का प्रलोभन दे रहे थे लेकिन अस्विकार कर उन्होने बौध्ध धर्म अंगिकार किया, एसा कर के हिंसक संधर्ष को मौका न दिया, बौध्ध धर्म अंगिकार कर ने के पीछे का उनका दूरंदेशी का और विवेक का परिचय दिया हैं.....मुझे तो एसा कहने का मन हो रहा है कि डो.आंबेडकर के सिवा भाग्य से ही मिलेगा कोइ नेता जिन्होने हिन्दु,मुस्लिम,अंग्रेज और कोंग्रस को इतना कहने का साहस किया हो ! उनमें भी खास हिन्दु,मुस्लिम को एक साथ कडवी बाते कहने में शायद ही कोइ मिले !.....डो.आंबेडकर के जीवन अभ्यासी छात्रो को मालुम होगा कि डो.आंबेडकर को इस्लामधर्मीओ के कुछ हठीली मर्यादाओं का भी ख्याल था...उस समय कोंग्रस के कोइ नेता मुसलमानो को कडवी बाते कहने को तैयार नही थे, और आज भी अपने आप को सैक्युलर मानने वाला भी मुसलमानो को कडवी बाते कहने को तैयार नही हैं.....महत्मा गांधी भी कभी मुसलमानो को कडवी बाते कहने समय एकतरफ़ी उदरता दिखाते थे....सच्चे अर्थ में वह स्टेट्मेन थे यानी "देश हितचिंतक"....वह केवल दलित रत्न नही भारत रत्न थे." इस बात से हम काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। डा.आंबेडकरजी थोट्स ओन पकिस्तान नामक अपनी पुस्तक में लिखते हैं- शकमंद निष्ठावान मुस्लिमो को भारतमे रहकर शत्रूता करे इससे बहतर वह बाहर रहकर शत्रूता करे वह ज्यादा श्रेयकर होगा,
अंतत: डा.आंबेडकरजी थोट्स ओन पकिस्तान नामक अपनी पुस्तक में मुस्लिम मानस पर प्रकाश डालने वाले कुछ मुद्दे इस प्रकार दिए हैं-
- मुस्लिमान धर्म की ओर कट्टरता की हद तक आस्थावान हैं.
- उनकी राजनीती धर्मनिष्ठ राजनीती हैं.
- वह समाज सुधारणा के विरोधी हैं.
- उनको लोकतंत्र असर नही करता (याद करे पाकिस्तान में कितनी बार लश्कर ने तानाशाही बिठा दी?डा.आंबेडकरजी की भविष्य वाणी सच हूई.)
- वे इस्लाम को ही विश्वधर्म मानते है.
- इस्लाम का बंधुत्व सर्वव्यापक नही हैं बल्कि मुसलमान तक सीमित हैं.
- बिन मुस्लिम की ओर वह सदा दुश्मन की तरह देखते हैं.
- उनकी राजनिष्ठा केवल मुस्लिम शासको या मुस्लिम देशो की प्रति ही होती हैं.
- जहां उनका राज्य नही होता उस भूमि को वह शत्रूभूमि समझते हैं
- सच्चे मुस्लिमानो को इस्लाम "भारत उसकी मात्रूभूमि हैं,और भारतीय उसका हितकर मित्र हैं" यह विचार मात्र उसको स्पर्श होने नही देता.
- भारतीयो की कमजोरी का फ़ायदा उठाकर वह दंगेफ़साद करते रहते हैं.

इस लेख लिखने के पीछे मेरा यह उदेश्य हैं कि जिन हिन्दु-महासभा के दो कार्यक्रताओ ने पोस्टर छीपवाये थे, उसने मानवता को अगर उजागर करने की कामना थी, तो फ़िर उसने इस देशमें बौध्ध भिक्षुओ को जिन्दा जलाया गया था, उस ऎतिहासिक घटनाओ को क्यो नही उजागर किया?तो फ़िर उसने इस देशमें बौध्ध भिक्षुओ का कटा सिर लाने वाले को १० सुवर्ण-मुद्रा का पुरुस्कार दिया जाता था, इस प्रकार के पोस्टर क्यो नही छपवाये?तथाकथित भगवान मनु ने अपनी पुस्तक "मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं
यह देखिये-
१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.
२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५
३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.
४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९
५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.
६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .
७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .
८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .
९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४
१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.
११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.
१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.
१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.
१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.
(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.
जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?
(१) वर्णानुसार करने के कार्यः -
- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -
- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७
- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९
- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.
- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.
(२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-
- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.
(३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-
- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.
(४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.
(६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.
(७) अतिथि विषयक:-
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...
(८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-
- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)
(९) शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)
(१०) किस के सौगंध लेने चाहिए?:-
- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)
(११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७९)
(१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.
- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्द्गी बहोत सस्ती हैं)
- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)
इस प्रकार के भारत के ही भारतीयो पर गुजारे जाने वाले विधान को क्यो नही छपवाये? मानवता समय्क होनी चाहिए। एक तरफ़ी नही। आज डो.बी.आर.आंबेडकर को गद्दार कहने वाले स्वयं गद्दार हैं। अगर इस देश में हिन्दु और मुस्लिमो को बेबाक होकर उन्की जूठी-पाशविक-दंभी इत्यादी रीति-नीति के बारे मे किसी कहा है तो वह कबीर के बाद डो.बी.आर.आंबेडकर थे। मानवता एवं बंधुत्व की सत्यात्मक सम्यक होने चाहिए, अभिनित नही! तभी जाकर यह भारत राष्ट्रीयता पा सकेगा। जय भारत।
-आपका अभिगम।(एक भारतीय नागरिक, ओर कुछ नही)

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