रविवार, दिसंबर 31, 2017

बथुआ गुणों की खान

*सागो का सरदार है बथुवा*
*सबसे अच्छा आहार है बथुवा*
बथुवा अंग्रेजी में Lamb's Quarters, वैज्ञानिक नाम Chenopodium album.
साग और रायता बना कर बथुवा अनादि काल से खाया जाता रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि *हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे* और हमारी बुढ़ियां *सिर से ढेरे व फांस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती।* बथुवा गुणों की खान है और *भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो मेरा भारत महान है।*
बथुवै में क्या क्या है?? मतलब कौन कौन से विटामिन और मिनरल्स??
तो सुने, बथुवे में क्या नहीं है?? *बथुवा विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और विटामिन C से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43 Kcal होती है।*
जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो *यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है* और साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डळी हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।
जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं ना??? गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व लोहे की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सबकुछ है ही, कहने का मतलब है कि *बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।*
यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है। बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। *बथुवै में जिंक होता है जो कि शुक्राणुवर्धक है मतलब किसी भाई को जिस्मानी कमजोरी हो तो उसकॅ भी दूर कर दे बथुवा।*
बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर *पेट साफ रहेगा तो कोइ भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी।*
कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और *यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है।*
*पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शकर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी।*
मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें । आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।
पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें । बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक लें और पी जाएँ।
*आप ने अपने दादा दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली। उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुवा ही है।*
मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुवा काम आता है और हाँ सिर के बाल ...... क्या करेंगे शम्पू इसके आगे।
लेकिन अफसोस , *हम किसान ये बातें भूलते जा रहे हैं और इस दिव्य पौधे को नष्ट करने के लिए अपने अपने खेतों में जहर डालते हैं।*
*तथाकथित कृषि वैज्ञानिकों (अंग्रेज व काळे अंग्रेज) ने बथुवै को भी कोंधरा, चौळाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों को खरपतवार की श्रेणी में डाल दिया और हम भारतीय चूं भी ना कर पाये।*

बुधवार, दिसंबर 27, 2017

पचास के दशक में इजराइल ने घोषणा कर दी की हमारा देश कोई धर्मशाला नहीं है जो मुसलमान सीना ठोककर यहाँ रह रहे हैं ...


Umakant Misra
पचास के दशक में इजराइल ने घोषणा कर दी की हमारा देश कोई धर्मशाला नहीं है जो मुसलमान सीना ठोककर यहाँ रह रहे हैं ...
3 मई1950 की रात में बारह हज़ार से ज्यादा मुसलमानों को इजराइली सरकार ने पिछवाड़े पे लात मारकर इजराइल की सीमा से बाहर कर दिया,हालाँकि उसके इस कदम की पूरी दुनिया में आलोचना हुई .....
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इजराइल को धमकाया ..
अरब देशों ने धमकी दी की एक बूंद तेल नहीं देंगे ...
उधर सोवियत संघ ने इजराइल को इसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा .....
इजराइल के ऊपर हुवे इन चौतरफा हमलों का असर ये हुआ की इस घटना के महज 4 महीने बाद यानी सितम्बर में इजराइल ने फिर से 6 हज़ार मुसलमानों को लतियाते हुवे इजराइल से बाहर निकाल दिया....और उनकी जमीने यहूदियों को बाँट दी ....और साफ़ साफ़ शब्दों में धमकी दी जो उखाड़ना है उखाड़ लो ..हम तो अईसे ही मारेंगे ...........
सत्तर के दशक तक इजराइल में मुसलमानों की हालत भीगी बिल्ली वाली हो के रह गयी थी ...
इजराइली सरकार ने मुसलमानों को साफ़ शब्दों में समझा दिया था की रहना है तो कायदे से रहो नहीं तो इजराइल की सीमा तुम्हारे लिए खुली है .......
इस घटना को आज 66 साल बीतने जा रहे हैं ....और आज तक इजराइल में किसी मुसलमान की हिम्मत नहीं हुई की वो बगावत का झंडा बुलंद कर सके ........
इजराइल ने मुस्लिम तुष्टिकरण का स्थाई समाधान निकाल लिया और समस्या हमेशा के लिए खत्म हो गयी
लेकिन भारत में क्या समस्या है ??
क्यों तुले हैं हम मुसलमानों का पिछवाडा चाटने पे ??.
कुछ समय पहले बंगाल में हिन्दुवों के घर जला दिए गये ..
उन्हें सडक पर घसीट घसीट के मारा गया .....
उनकी औरतों के साथ बुरा सुलूक किया गया ....
कुल 9 घंटे तक हिंसा लूटपाट का नंगा नाच हुवा ..
और सरकार मीडिया और देश का बुद्धिजीवी वर्ग कान में तेल डाल कर सो गया .......
किसी चैनल ने इस घटना की चर्चा करना भी जरुरी नहीं समझा .
क्यों की इससे देश की धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ जाती .
लेकिन एक सेक्युलर हिन्दू सोचता है की मुझे क्या दिक्कत है ?
मै तो मजे में हूँ ...
मुझे क्या समस्या है . अबे दंगा तो बंगाल में हुवा है ..मै यहाँ बनारस में हूँ . बंगाल तो यहाँ से साढ़े छ सौ किलो मीटर दूर है ... मेरे बनारस के मुस्लमान तो साक्षात देव दूत हैं ...वो तो सावन के मेले में कावरियों को पानी पिलाते हैं दिवाली में पटाके भी जलाते हैं .. और नवरात्रों में तो मेरे यहाँ डांडिया भी खेलते हैं ......तो मुझे परेशान होने की क्या जरुरत ???..मै तो हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का झंडा बुलंद करूँगा ..मै तो दंगल देखूंगा ....रईस देखूंगा ......मैं टाइगर भी देखूंगा..... मै तुम जैसे दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक हिंदुत्व का हिस्सा नहीं हूँ .....मेरा हिंदुत्व मुझे भाईचारे मानवता का सन्देश देता हैं ..सारे मुस्लमान एक जैसे नहीं होते ..जरुर बंगाल में हिन्दुवों ने ही कोई गलती की होगी ......वरना मुसलमान भाई तो शांतिदूत माने जाते हैं ......मै पूछता हूँ की अगर वाकई हिन्दू बंगाल में मारा गया होता तो क्या सभी चैनल ये खबर नहीं दिखा रहे होते ??केवल जी न्यूज़ ही क्यों ये मुद्दा उठा रहा था??? जबसे बीजेपी सरकार आई है तबसे दंगे हो रहे हैं “..............
.....ये हर उस सेक्युलर सोच रखने वाले हिन्दू समाज की सोच है जिसे अकारण ही मुसलमानों से हमदर्दी है .......
लेकिन मै और मेरे जैसे राष्ट्रवादी सोच रखने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत के मुसलमानों से कोई हमदर्दी नहीं है ..हमे कोई दुःख नहीं होता जब देश के किसी भी हिस्से में एक भी मुस्लमान किसी हिंसा में मारा जाता है ........जिन्हें भारत माता की जय बोलने में आपत्ति हो ..जिन्हें बन्दे मातरम गाने तकलीफ होती हो ...सूर्य नमस्कार करने में जिनकी अम्मी मरने लगती हों ..ऐसे लोगों से एक हिन्दू राष्ट्रवादी युवा कोई सहानभूति नहीं रखता ........
बंगाल की घटना का प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए ..बिलकुल उसी तरह जैसे इजराइल ने एक ही दिन में 12 हज़ार मुसलमानों को लात मारकर देश से निकाल दिया था.......वो दिन दूर नहीं जब देश का हिन्दू समाज मुसलमानों के साथ वही सुलूक करेगा जो आज अमेरिका ..इजराइल और बाकी यूरोपीय देश मुसलमानों के साथ कर रहे हैं ......
हिंदुवो को असहिष्णु कहने वालों को समझना पड़ेगा की ये देश धर्मनिरपेक्ष तब तक ही है जब तक हिन्दू समाज इसे धर्मनिरपेक्ष बनाए रखता है .....जिस दिन हिन्दू समाज वाकई असहिष्णु हो गया भारत में मुसलमानों को रहने के लिए किसी दुसरे मुल्क की तलाश करनी पड़ जायेगी ........

मंगलवार, दिसंबर 19, 2017

आखिर संभूलाल रैगर इतना हिंसक क्यों हुआ, उसकी क्या मजबूरी रही होगी क्योंकि हिंदू तो इतना हिंसक नहीं होता

हाल ही में हुए राजस्थान के राजसमंद में हुए घटना के बारे में मैं सोच रहा था कि आखिर संभूलाल रैगर इतना हिंसक क्यों हुआ, उसकी क्या मजबूरी रही होगी क्योंकि हिंदू तो इतना हिंसक नहीं होता यह मुसलमानों का काम है लेकिन शंभूलाल के बारे में सोचते हुए मैंने उन घटनाओं को याद किया जो बचपन से मेरे जहन में हैं। क्योंकि मेरा घर मुस्लिम बहुल इलाके में है। मेरा जन्म पढ़ाई लिखाई सब मुसलमानों के बीच हुई, हिंसा मैंने बचपन से देखी हैं। यही कारण है मेरे मां बाप मुझे मुसलमानों से दोस्ती ना रखने की सलाह देते थे क्योंकि हमने शुरू से मुसलमानों को एक हिंसक समुदाय के तौर पर देखा है। मैं उन घटनाओं का जिक्र करूंगा जब मेरी उम्र 15 से 16 साल की रही होगी और तब बिहार में लालू का जंगलराज था। मेरे शहर आरा भोजपुर में उस समय नौशाद आलम, चांद मियां जैसे दर्ज़नो गैंगस्टरों का बोलबाला था।
वह तीन घटना जो मेरे मोहल्ले की है। मेरे मोहल्ले में एक पुलिसवाला रहता था ईमानदार और देशभक्त लेकिन उसकी देशभक्ति एक ही रात में मुसलमानों की भिड़ ने निकाल दी। गलती इतनी थी कि 15 अगस्त को मोहल्ले के कसाई टोला में पाकिस्तानी झंडे को उतरवाने के लिए उसकी कुछ मुसलमानों से कहासुनी हो गयी थी। जेहादियों की अनगिनत भीड़ ने उसके घर पर धावा बोल उसे उसके पत्नी व बच्चों सहित पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी थी। उसके परिवार में बूढ़ा बाप बचा था क्योंकि वो उस दिन घर से बाहर था। तब लोकल विधायक के दबाव में इस केस पर लीपापोती कर दी गई थी, जिस कारण उस पुलिसवाले का बूढ़ा बाप भी कलप कलप कर मरा था।
दूसरी घटना- पाकिस्तान की जीत पर आतिशबाजी कर रहे हैं मुसलमान लड़कों को रोकने पर एक दलित लड़के की बल्ले से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। जेहादीयों की भीड़ ने एक गरीब मां बाप से उसके इकलौता बेटे को छीन लिया। तब गैंगस्टर नौशाद के दबाव में केस को रफा दफा कर दिया गया।
तीसरी घटना- मेरे बिरादरी की ही हैं। मेरा एक क्लासमेट था, जिसका नाम दुर्गेश था, जो मेरी जाति का भी था। उसकी चौदह वर्षीय बहन को एक कठमुल्ले ने प्यार के जाल में फंसाकर हैदराबाद ले गया, हफ्तों तक अपने मित्रों व रिश्तेदारों से उसका गैंग रेप करवाने के बाद उसे सऊदी अरब बेच दिया और तब उस लड़के को मोहल्ले के मुसलमानों ने पूरी तरह प्रोटेक्ट किया। लड़की के मां बाप भाई में सिर्फ उसका भाई बचा। मां वियोग में मर गई बाप ने सिस्टम व मुसलमानों के प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। दुर्गेश ने उस मुल्ले से बदला लेने की भी कोशिश की थी, पर वो सफल न हो सका था।
इन घटनाओं से मैं सीधे जुड़ा था चूँकि तीनों घटनाओं मेरे मोहल्ले की थी और अब मैं यह सोचता हूं कि अगर उस पुलिस वाले के बूढ़े बाप, उस नाबालिग दलित लड़के के पिता और सऊदी में बिकने वाली उस नाबालिग लड़की का भाई अगर मैं होता तो तब मैं क्या करता?? और तब जब हिंदुओं के नपुंसक समाज, भ्रष्ट और बिकी हुई पुलिस और मुसलमानों को अपना दामाद समझने वाली सरकार जब साथ ना दे।
अब आइए शंभूनाथ रैगर की कहानी जो अब तक सामने आई है उसकी बात करते हैं-
शंभू के पड़ोसियों के अनुसार वो काफी सरल व शांत स्वभाव का था, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वो किसी की हत्या भी कर सकता है।
पड़ोसियों के बयान के अनुसार उसके पड़ोस की एक मुँहबोली बहन थी जिसकी उम्र महज 13 साल की थी जो उसे राखी भी बाँधती थी। इसी गांव का मोहम्मद बबलू शेख जिसने बहला फुसलाकर झांसा देकर उसकी बहन को लेकर बंगाल के सैयदपुर गाँव भाग गया था। जिसमें पूरा हाथ सीधे सीधे मो० अफ़राजुल का था। नाबालिग लड़की की मां की गुहार पर शंभू मर्जी से सैयदपुर गया। जहां 15 दिनों तक लड़की के शारीरिक शोषण के बाद शंभू उसे छुड़ाकर गांव लाया। लड़की की माँ ने संभू को 10 हज़ार का इनाम भी दिया था। लड़की को सैयदपुर से लाने से नाराज़ बंगाली मुसलमान मज़दूरों ने शंभू को खूब पीटा भी था और उसे उसके परिवार के साथ हत्या करने की धमकी भी दी थी। जिससे वह कुछ सनकी भी हो गया था।
जिस प्रकार पांचों उंगलियां समान नहीं होती, जिस प्रकार पांच भाइयों का विचार व मिजाज समान नहीं होता ठीक उसी प्रकार कोई अपनी बहन बेटी की इज्जत तार-तार होने पर आत्महत्या कर लेता है और कोई इज्जत का बदला लेने के लिए तालिबानी रास्ता चुनता है!
अब यहां सवाल यह है कि 13 साल की बच्ची पर इन वहशियों की नजर क्या सोचकर पड़ी! जाहिर सी बात है जिस धर्म में 9 साल की बच्ची से शादी मान्य हो उन्हें 13 साल की लड़की भोग की वस्तु ही दिखेगी।
सवाल ये भी हैं अगर ऐसा आपकी बहन और बेटी के साथ होगा और समाज-प्रशासन आपका साथ नहीं देगा तो आप क्या करोगे? दुनिया का कौन वो बाप और भाई होगा जो इस तरह की घटनाओं पर चुप बैठेगा।
और एक बात माननी पड़ेगी हमारे देश के मीडिया का। क्योंकि यहाँ मारने वाला दलित जाति से है और मरने वाला मुस्लिम समुदाय से, लेकिन हमेशा की तरह हत्या में दलित व मुस्लिम ढूंढने वाली मीडिया का न्यूज़ हेडलाइंस क्या है "हिंदू ने मुस्लिम शख्स को मारा"।
रोज तिल-तिल कर मरता हुआ इंसान ही, समाज, सिस्टम व नेताओं से इंसाफ न मिलने पर थक हारकर सर पर कफ़न बाँधकर जोश ए जुनून में इस तरह के कदम उठाता है। यदि यह हत्या हिंदू के साथ हुई होती तो मीडिया इसमें जाति ढूंढती कि कहीं मरने वाला दलित और मारने वाला स्वर्ण तो नहीं और आज बड़े बड़े न्यूज़ चैनल पर डिबेट्स भी होती। खैर यहां मारने वाला दलित और मरने वाला मुस्लिम समुदाय है तो कहीं जय भीम और जय भीम का नारा खतरे में न पड़ जाए इसलिए इसे 'दलित बनाम मुस्लिम' के बजाय 'हिंदू बनाम मुस्लिम' का नाम दे रही है, कोई बात नहीं सम्भू हिन्दू ही हैं, हम उसे हिन्दू ही मानते हैं। 'दलित' शब्द तो मीडिया, नेताओं व धर्मांतरण करने वाले दलालों का प्रोपगेंडा हैं।
खैर, बुद्धिजीवियों की तरह मैं भी इस तरह की निर्मम हत्या का समर्थन नहीं करता। (जब तक मेरा परिवार सुरक्षित हैं।) ~ व्यंग
(मुझे यह पोस्ट whatsapp पर प्राप्त हुई। मूल लेखक को कोटिशः धन्यवाद जिसने बखूबी सत्य को लिखने का सराहनीय प्रयाश किया है)

रविवार, दिसंबर 17, 2017

अनटाइटल्ड

भारतीय रेल में कई जगह आपको “रेल आपकी अपनी संपत्ति है” लिखा दिख जायेगा। इसके पीछे उद्देश्य ये होता है कि जिस चीज़ को आप अपना मानेंगे उसे सहेजने सँभालने का प्रयास भी करेंगे। जो अपना है ही नहीं भला उसका ख़याल क्या रखना ? भारतीय किताबों की बात करते ही यही समस्या होती है। रामायण-महाभारत के काल से कूद कर जब हम और आप रामचरितमानस पर आ जाते हैं तो बीच के ढाई हज़ार साल के लगभग का समय गायब हो जाता है।
ऐसे में लड़कियां-स्त्रियाँ कभी भी पूछ सकती हैं कि इनमें मेरा क्या है ? ये तो किसी मर्यादा पुरुषोत्तम की कहानियां हैं, युद्धों की कथाएँ हैं, इनमें स्त्रियों की तरफ से क्या लिखा गया जो मेरा होगा ? ये स्थिति तब है जब सिर्फ महिलाओं द्वारा लिखा गया पहला ग्रन्थ “थेरीगाथा” भारत का है। इसे करीब करीब गौतम बुद्ध के समय लिखा गया था (600 BCE)। इस काव्य संकलन में एक कविता किसी गणिका की है, एक धन-दौलत छोड़कर बौद्ध भिक्षुणी बन गई महिला की भी है। एक कविता तो गौतम बुद्ध की सौतेली माता की भी है।
संस्कृत के महाकाव्यों के अलावा जिन महाकाव्यों की बात की जा सकती है, उनमें तमिल महाकाव्य भी आयेंगे। इनमें पांच सबसे महत्वपूर्ण गिने जाते हैं। शिल्पपत्तिकराकम्, मणिमेखलई, सिवका चिंतामणि और वलायापथी में से शिल्पपत्तिकराकम् और मणिमेखलई को भारत में थोड़ा बहुत इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि इनपर आधारित एक टीवी सीरियल दूरदर्शन के शुरुआत के समय में प्रसारित होता था। कन्नगी नाम की नायिका की कहानी पर शिल्पपत्तिकराकम् आधारित है, और फिर उनकी बेटी की कहानी को मणिमेखलई में आगे बढ़ाया गया है। ये कहानी कोवलन नाम के कवेरिपत्तिनम के एक धनी व्यापारी की थी।
उसकी शादी एक दूसरे व्यापारी की बेटी कन्नगी से हुई थी। दोनो खुशहाल तरीके से जीवन व्यतीत कर रहे थे लेकिन एक शाही उत्सव में कोवलन एक नर्तकी माधवी से मिला। वो माधवी की दीवानगी में अपने घर और कन्नगी को भूल गया। कोवलन माधवी पर पैसे खर्च करता बिल्कुल कंगाल हो गया। गरीब हो जाने पर जब उसे माधवी के पास से भगा दिया गया तो उसका नशा उतरा और वो वापस कन्नगी के पास आया। कंगाल हो चुके पति के पास दोबारा व्यापार शुरू करने के लिए धन भी नहीं था, लेकिन प्राचीन काल से ही हिन्दुओं में स्वर्ण में धन का कुछ हिस्सा निवेश करने की परंपरा रही है।
कन्नगी के पास पायल थे, उसने कोवलन को अपने बहुमूल्य पायल दे दिए और इन पायलों के साथ वो दोनों मदुराई गए। मदुराई में उनको आश्रय मिल गया और कोवलन बाजार निकल गया एक पायल को बेचने। उन्हीं दिनों पांड्या के राजा के महल से रानी का भी पायल चोरी हुआ था। जैसे ही कोवलन ने वो पायल एक व्यापारी को दिखाई, वो भड़क उठा और सीधे उसे राजा के पास ले गया। वहाँ के राजा के आदेश पर पहरेदार ने कोवलन को मार डाला। कन्नगी को यह बात पता लगी, तो वो राजमहल की तरफ रोती-धोती दौड़ी।
राज दरबार में पहुंची कन्नगी के हाथ में, अपने पति के निर्दोष होने के प्रमाण स्वरुप, दूसरा पायल था। विलाप सुनकर, उसके पीछे नगर के लोग भी जुट आये थे | कन्नगी ने दरबार को दूसरी पायल दिखाई और कहा राजा ने ये अन्याय किया है। पायल को तोड़ने पर उसके अंदर भरे माणिकों से पता चला कि ये तो सचमुच दूसरी पायल है ! राजा को कोवलन के निर्दोष होने का पता चला तो वो अफ़सोस करता वहीँ जमीन पर मरकर गिर गया। कन्नगी का गुस्सा इतने पर शांत नहीं हुआ था।
कन्नगी ने तीन बार मदुराई का चक्कर काटा और नगर को ही शापित कर दिया। पूरा शहर ही जलकर भस्म हो गया। इस कहानी को दो काव्यों में लिखा गया है, पहले शिल्पादिकारम् में और फिर मणिमेखलई में। मणिमेखलई के रचयिता सत्तनार हैं। इन दोनों ग्रंथों की कहानी में थोड़ा अंतर है। शिल्पादिकारम् मुख्यतः कन्नगी की कहानी सुनाती है जबकि मणिमेखलई कहानी को आगे बढ़ाते हुए उनकी बेटी मणिमेखलई की कहानी सुनाती है जो हिन्दुओं के दर्शन के छह अंगों के अध्ययन के बाद बौध “अरिहंत” हो जाती है।
इन कहानियों को ना जानने और कभी ना सुनने का सबसे पहला नुकसान तो ये होता है कि हमें मणिमेखलई का नाम नहीं पता होता। इस वजह से हमें ये भी नहीं पता चलता कि माता पिता (कन्नगी-कोवलन) की मृत्यु हो जाने पर भी एक अनाथ बच्ची, मणिमेखलई के शिक्षा की व्यवस्था समाज में रही होगी। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर वो दर्शन के छह के छह अंग पढ़ती कैसे ? इतना पढ़ने में कोई एक दो साल ही तो लगे नहीं होंगे इसलिए बाल विवाह हो गया हो कहीं बारह साल की उम्र में ये भी संभव नहीं।
शिल्पपत्तिकराकम् और मणिमेखलई जैसी स्त्री प्रधान, उनके नजरिये से लिखा साहित्य भी है | जैसा कि आम तौर पर प्रचारित किया जाता है, वैसे इतिहास के सभी नायक कोई राजा-रानी नहीं, आम व्यापारी भी हैं। पूरी पूरी कहानियाँ स्त्रियों के दृष्टिकोण से लिखी गई हों ऐसा भी है, और स्त्रियों ने लिखी हो ऐसा भी है। यहाँ लड़कियों के गुरुकुल जाने की बात हजम करने में असुविधा हो रही हो तो आठवीं शताब्दी के आस पास का “उत्तररामचरित” जिसे भवभूति लिखा था उसे देखिये।
ये आम जनता के लिए मंचित किये जाने वाले प्रसिद्ध नाटकों में से एक था। ऐत्रेयी उत्तर भारत के एक नामी गिरामी कवि की छात्रा है, लेकिन उसके गुरु को आजकल एक महाकाव्य लिखने का शौक लगा है। ऐसे में वो ऐत्रेयी को ज्यादा कुछ सिखा नहीं पाते। मजबूरन ऐत्रेयी को अकेले ही घने जंगलों को पार कर के अपने गुरु (शायद वाल्मीकि) के आश्रम से दक्षिण में कहीं स्थित ऋषि अगस्त्य के आश्रम में जाना पड़ जाता है। ऐत्रेयी सफ़र के मुश्किल रास्तों की बात सोच रही है, और उसकी सहेली वसंती उसे अगस्त्य मुनि के आश्रम की तारीफें सुना रही है।
अभी की भारतीय यूनिवर्सिटी में एक साल ग्रेजुएशन कर के शायद दुसरे किसी विश्वविद्यालय में सीधे दुसरे साल में प्रवेश लेना नामुमकिन होगा। मगर इस “उत्तररामचरित” से लगता है एक विश्विद्यालय से दुसरे में ट्रान्सफर उस दौर में संभव था। रूप-सौन्दर्य के लिए चर्चित क्लियोपेट्रा जैसी नायिकाएँ भारतीय साहित्य में जरा कम होती हैं तो शायद इन कहानियों की नायिका के नायिका होने की एक वजह उनका ज्ञान भी रहा होगा। इन्होंने भारतीय दर्शन पढ़ने-सिखने में रूचि ली थी (जिसका एक हिस्सा वेदान्त भी है)।
बाकी जबरन किसी से कुछ करवाने को मेरा कोई ख़ास समर्थन नहीं रहता | किसी ब्यूटी कांटेस्ट में हर साल बदलने वाला मुकुट चाहिए या स्थायी परिचय, वो फैसला तो आपको ही लेना है ना ?
# NaimisheyShankhnaad

शनिवार, दिसंबर 16, 2017

बीबीसी का गीता प्रेस विरोध और बीबीसी को जवाब

पंडित मधु सूदन व्यास
Sumant Bhattacharya
गीताप्रेस भी खूब लङा है अंग्रेजों से
.............
# BBC_को_जवाब
आज से लगभग छः महीना पहले मैनें BBC में गीताप्रेस परएक लेख पढा था।लेख में यह कुतर्क गढा गया था किस तरह गीताप्रेस नामक छापखाना हिंदू भारत बनाने के मिशन पर काम कर रहा है।उसके बाद मैनें एक और -गीताप्रेस का महिलाओं पर तालिबानी सोंच-शिर्षक से एक लेख पढा।दोनों लेख पढकर मेरे दिमाग की घंटी बज उठी थी।आखिर BBC गीताप्रेस जैसे विशुद्ध धार्मिक प्रेस का विरोध क्यों कर रही है अवश्य ही इसके पिछे कोई न कोईरहस्य छिपा हुआ है क्योंकी BBC भारत में उसी का विरोधकरता आया है जो अंग्रेजी सत्ता के विरोधी था।तभी मेरे दिमाग ने कहा अवश्य ही गीताप्रेस भी अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध रहा होगा।
.....तब से लेकर मैं खोज करता रहा कल मेरी खोज पुरी हुई और आज BBC के उस पुराने लेख को काउंटर कर रहा हुं।आगे बढने से पहले गीताप्रेस के विरूद्ध कम्युनिस्टों का अलग षडयंत्र चल रहा है गीताप्रेस पर एक वामपंथी पत्रकार ने भी किताब लिखी है जिसका नाम --Gita Press And The Making Of Hindu India है।.
....ऐसे तो गीताप्रेस की स्थापना 1924 में हुई है उसके पहले कलकत्ता में 1920 में "गोविंद भवन कार्यालय" की स्थापना हुई और उससे पहले 'कल्याण' पत्रिका शुरू हुई थी।बहुत कमलोगों को जानकारी होगा गीताप्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार एक क्रांतिकारी थे और उनके क्रांतिकारी संगठन का नाम था-अनुशीलन समिति।कलकत्ता में बंदुक,पिस्तौल और कारतुस की शस्त्र कंपनी थी जिसका नाम "रोडा आर.बी. एण्डकम्पनी" था।यह कंपनी जर्मनी,इंग्लैण्
ड आदी देशों से बंदरगाहों से शस्त्र पेटीयां मंगाती थी।
.....देशभक्त क्रांतिकारीओं को अंग्रेजों से लङने के लिए पिस्तौल और कारतुस की जरूरत थी लेकिन उनकें पास धन नही था कि वें खरीद सकें तब अनुशीलीन समिति के क्रांतिकारीओं नेशस्त्र पेटीओं को चुराने की योजना बनाई और इस काम को हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को सौंप दिया गया।हनुमान प्रसाद जी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।इस रोडा बी.आर.डी. कंपनी में एक शिरीष चंद्र मित्र नाम के बंगाली कलर्क था जो अध्यात्मिक प्रवृति के था और हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को बहुत आदर करता था।पोद्दार जी ने इसका फायदा उठाकर उस कलर्क को अपने पक्ष में कर लिया।
.......एकदिन कंपनी ने शिरिष चंद्र मित्र को कहा संमुद्र चुंगी जिन बिल्टीओं का माल छुङाना है वह छुङा कर ले आएं।उसने यह सुचना तत्काल हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को दे दिया।सुचना पाते ही पोद्दार जी कलकत्ता बंदरगाह पर पहुंच गये।यह बात है 26 अगस्त 1914 बुधवार के दिन का।बंदरगाह पर रोडा कम्पनी के 202 शस्त्र पेटीयां आया हुआ था।जिसमें 80 माउजर पिस्तौल और 46 हजार कारतुस था जिसे कंपनी के कलर्क शिरिष चंद्र मित्र ने समुंद्री चुंगी जमा कर छुङा लिया।
.....इधर बंदरगाह के बाहर हनुमान प्रसाद पोद्दार जी शिरिष चंद्र का इंतजार कर रहे थे।इसमें से 192 शस्त्र पेटीयां कंपनी में पहुंचा दी गई और बाकी के 10 शस्त्र पेटीयां हनुमान प्रसाद पोद्दार के घर परपहुंच गई।आनन-फानन में पोद्दार जी ने अपने संगठन के क्रांतिकारी साथीओं को बुलाया और सारे शस्त्र को सौंपदिया।उस पेटी में 300 बङे आकार की पिस्तौल थी।इनमें से 41 पिस्तौल बंगाल के क्रांतिकारीयों के बिच बांट दिया गया बाकी 39 पिस्तौल बंगाल के बाहर अन्य प्रांत में भेज दी गई काशी गई, इलाहाबाद गया,बिहार,पंजाब
,राजस्थान भी गया।
...आगे जब अगस्त 1914 के बाद क्रांतिकारीयों ने इन माउजर पिस्तौलें से सरकारी अफसरों ,अंग्रेज आदी को मारने जैसे 45 काण्ड इन्हीं पिस्तौल से सम्पन्न किये गये थे।क्रांतिकारीयों ने बंगाल के मामूराबाद में जो डाका डाला था उसमें भी पुलिस को पता चला की रोडा कम्पनी से गायब माउजर पिस्तौल से किया गया है।थोङा आगे बढ गये थे खैर पिछे लौटते हैं।
.......हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को पेटीयों के ठौर-ठिकाने पहुंचाने-छिपानेमें पंडित विष्णु पराङकर (बाद में कल्याण के संपादक ) और सफाई कर्मचारी सुखलाल ने भी मदद की थी।बाद में मामले के खुलासा होने के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार, कलर्क शिरीष चंद्र मित्र ,प्रभुदयाल ,हिम्मत सिंह ,कन्हैयालाल चितलानिया,फुलचंद चौधरी ,ज्वालाप्रसाद,ओंकारमल सर्राफ के विरूद्ध गिरफ्तारी के वारंट निकाले गये।16 जुलाई 1914 को छापा मारकर क्लाइव स्ट्रीव स्थित कोलकाता के बिरला क्राफ्ट एंड कंपनी से हनुमान प्रसाद पोद्दार जिको गिरफ्तार कर लिया गया।शेष लोग भी पकङ लिये गये।सभी को कलकता के डुरान्डा हाउस जेल में रखा गया।पुलिस ने 15 दिनों तक सभी को फांसी चढाने,काला पानी आदी की धमकीदेकर शेष साथीयों को नाम बताने और माल पहुंचाने की बातउगलवाना चाहा लेकिन किसी ने नही उगला।पोद्दार जी के गिरफ्तार होते ही माङवारी समाज में भय व्याप्त हो गया पकङे जाने के भय से इनके लिखे साहित्य को लोगों ने जला दिया था।
.....पर्याप्त सबुत नही मिलने के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार जी छुट गये।इसका दो कारण था पहला कि शस्त्र कंपनी के कलर्क शिरिष चंद्र मित्र बंगाल छोङ चुके थे इसलिए गिरफ्तार नही किये गये दुसरा कारण तमाम अत्याचार के बाद किसी ने भेद नही उगला था।
.... इस घटना से छः साल पुर्व 1908 में जो बंगाल के मानिकतला और अलीपुर बम कांड हुआ उसमें भी अप्रत्यक्ष रूप से गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार शामिल रहे।उन्होनें बम कांड के अभियुक्त क्रांतिकारीयों की पैरवी की।पोद्दार जी का भुपेन्द्रनाथ दत्त,श्याम सुंदर चक्रवर्ती ,ब्रह्मवान्धव उपाध्याय ,अनुशीलन समिति के प्रमुख पुलिन बिहारी दास,रास बिहारी बोस, विपिन चंद्र गांगुली,अमित चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारीयों से सदस्य होने के कारण निकट संबध था।अपनें धार्मिक कल्याण पत्रिका बेचकर क्रांतिकारीयों को पैरवी करते थे।बाद में कोलकता में गोविंद भवन कार्यालय की स्थापना हुई तो पुस्तक और कल्याण पत्रिका के बंडल के नीचे क्रांतिकारीयों के शस्त्र छुपाये जाते थे।.
....इतना ही नही खुदीराम बोस,कन्हाई लाल ,वारीन्द्र घोष, अरबिंद घोष,प्रफुल्ल चक्रवर्ती के मुकदमे में भी अनुशीलन समिति की ओर से हनुमान प्रसाद पोद्दार ने पैरवी की थी।उन दिनों क्रांतिकारीयों की पैरवी करना कोई साधारण बात नही था।
.....भारत विभाजन के मांग पर कांग्रेसी नेता जिन्ना के सामने चुप रहते थे तो गीताप्रेस के कल्याण पत्रिका पुरजोर आवाज में कहता था-- "जिन्ना चाहे देदे जान, नहीं मिलेगा पाकिस्तान " कहकर ललकारता था यह पंक्ति कल्याण के आवरण पृष्ठ पर छपता था।पाकिस्तान निर्माण के विरोध में कल्याण महीनों तक लिखता रहा।
......गीताप्रेस के कल्याण पत्रिका ऐसा निडर पत्रिका था कि उसने अपने एक अंक में प्रधानमंत्री नेहरू को हिंदू विरोधी तक बता दिया था।इसने महात्मा गांधी को भी एक बार खरी-खोटी सुनाते हुए कह डाला था--"महात्मा गांधी के प्रति मेरी चिरकाल से श्रद्धा है पर इधर वे जो कुछ कर रहे हैं और गीता का हवाला देकर हिंसा-अहिंसा की मनमानी ब्याख्या वें कर रहे हैं उससेहिंदूओं की निश्चित हानि हो रही है और गीता का भी दुरपयोग हो रहा है।"
......जब मालविय जी हिंदूओं पर अमानवीय अत्याचारों की दिलदहला देने वाली गाथाएं सुनकर द्रवित होकर 1946 में स्वर्ग सिधार गयें तब गीताप्रेस ने मालवीय जी की स्मृति में कल्याण का श्रद्धांजली अंक निकाला इसमें नोआखली,खुलना,तथा पंजाब सिंध में हो रहे अत्याचारों पर मालवीय जी की ह्रदय विदारक टिप्पणी प्रकाशित की गई थी जिसे उत्तरप्रदेश और बिहार के कांग्रेसी सरकार ने श्रद्धांजली अंक को आपतिजनक घोषित करते हुए जब्त कर लिया था।
...जब भारत विभाजन के समयदंगा शुरू हो गया था और पाकिस्तान से हिंदूओ पर अत्याचार की खबर आ रही थी तब भी गीताप्रेस ने कांग्रेसनेताओं पर खुब स्याही बर्बाद की थी।तब कल्याण ने अपने सितम्बर-अक्टुबर1947 के अंक में यह लिखना शुरू कर दिया था-"हिंदू क्या करें' इन अंको में हिंदूओं को आत्मरक्षा के उपाय बताया जाता था।
मित्र Sanjeet Singh की लेखनी

बुधवार, दिसंबर 13, 2017

वह दिन दूर नहीं जब ये आग तुम्हारे भी घर के ठीक पास ही होगी

दिनेश कुमार प्रजापति
उदयपुर शहर चांदपोल क्षेत्र , कुछ मुस्लिम युवक सरेआम एक शादीशुदा जोड़े को रोककर महिला से बदतमीजी करते हैं , दूसरे दिन अखबार में समाचार पढ़के सारा शहर दंग रह जाता है कि उदयपुर जैसे शांत एवं सभ्य जगह पर जहाँ होली के दिन भी आप सपत्नीक दुपहिया वाहन पर निसंकोच आ जा सकते है वहाँ ऐसी हरकत ??
जिला राजसमंद ,गाँव धोइंदा
रैगर समाज के पुश्तेनी काम चर्मकारी को तथाकथित सामाजिक उत्थान आंदोलन और चमड़ा फैक्टरियां लूट चुकी तो अब यह समाज ज्यादातर कंस्ट्रक्शन साइटों पर मजदूरी करता है जहाँ कम पैसे के चक्कर में कई आयातित बंगलादेशी मुस्लिम भी मजदूरी /कारीगरी करते हैं।
ऐसे ही कुछ मुस्लिम कारीगरों ने रैगर समाज की 3-4 मज़दूरनियों को फांस कर पहले शोषण किया और फिर अपने साथ ले जाकर कालीचक (प.बंगाल का आपराधिक केंद्र ) वैश्यावृत्ति हेतु बेच दिया ।
उनमे से एक लड़की के मुँहबोले मामा का बेटा जो मार्बल का व्यापारी था और सजग धार्मिक नागरिक था वह स्तब्ध रह गया , दूर कस्बे की आग अब उनके पड़ोस के घर तक पहुंच चुकी थी । वह पुरुषार्थी था तो हिम्मत की अपनी बहन जैसी लड़की को बचाने उस "ममतामयी " चक्रव्यूह बंगाल से उस बहन को बचाके लाने की , मौत के घर में जल्लादों से भिड़ कर युक्ति लगा कर वह उस लड़की को ले आया ।
लड़की तो आ गई लेकिन उन दल्लों और जल्लादों के आंखों में खटक गया कि ऐसे तो यह दुकानदारी ही खत्म हो जाएगी जिसमें "सभी का हिस्सा " बदस्तूर पहुंचता है ।
बंगाली जल्लादों ने संदेश भिजवाया राजसमंद (हिंदुआ सूर्य की भूमि मेवाड़) के स्थानीय जल्लाद भाइयों को की इस गुस्ताख़ को इसकी औकात दिखाई जाए जिसने हमारे शिकार को बचाने की जुर्रत की ।
स्थानीय जल्लाद जिनके हौंसले हमेशा दीनी सहायता , मक्कारी तिकडमों और बेईमान बिके हुए हिन्दुओं की गद्दारी के बूते सातवें आसमान पर ही होते हैं वे लगे उस वीर को धमकाने , बारह साल की मानसिक दिव्यांग लड़की तक के कत्ल की धमकियों के साथ !
मूर्ख नही था वह ! पता था कि जो जंग उसने छेड़ी है उसमें सामने वाला पक्ष प्रतिघात तो करेगा ही पहले से अधिक घातक वार के साथ करेगा । बहुत विचार किया उसने , बहुत कागजी शेरों को एक्शन के नाम पर संवैधानिक होते देखा , कईयों ने तो बुद्ध ,महावीर और गांधी तक कि कसमें दिला दी लेकिन जाने वह कौनसी मिट्टी का बना था उसने क्रूरता का जवाब दो कदम और घटिया क्रूरता से देने का निर्णय किया ।
पता था उसे की पुलिस ,प्रशासन और कोर्ट से ज्यादा प्रश्न उन्ही के दिलों मे उठेंगे जिनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए वह अपना जीवन बलिदान करने जा रहा है ।
आप वीडियो देखकर विचलित हो गए ??
प्राकृतिक हैं ,नही देखा जाता , अभ्यास जो नही है , इराक मे isis के धर्मगौरव लड़ाकों द्वारा मारी गई कूर्द बच्चियों के केवल मृत शरीर देखियेगा ये वीडियो भूल जाएंगे आप ।
महाभारत के युद्ध में कृष्ण कहते है कि यह युद्ध है इसमे भीम भी चाहिए जो दुःशासन की भुजाएं उखाड़ फेंके और हृदय का रक्त पी जाएं , यहाँ घटोतकच भी चाहिए जो शत्रु सैनिक को बीच मैदान जीवित निगल जाए और धृष्टद्युम्न भी चाहिए जो द्रोण को मार सके जिसे मारने की इच्छा तुम पांडवों की कभी थी ही नहीं और किसी का यह सामर्थ्य नही ।
धृष्टद्युम्न ने जो किया सही किया या नही यह प्रश्न है ही नही ,प्रश्न है कि कौरवों के सफाये के लिए यह कृत्य अपरिहार्य हैं या नही , और हाँ यदि यह टाला जा सकता था तो द्रोपदी चीर हरण के नए संस्करण के लिए स्वयं को तैयार कर लो पार्थ ।
हिन्दू समाज को भी यह समझना पड़ेगा " its bloody war ! Damn war for the existence of fittest , at any cost ! "
शम्भू ने जो किया वह उचित /अनुचित , सही /गलत से परे अपरिहार्य मात्र था । बेईमान पुलिस , जालसाज शत्रु , सत्तालोलुप नेताओं और नपुंसक न्यायव्यवस्था से निराश एक स्वाभिमानी व्यक्ति और कर भी क्या सकता था ??
कौन जिम्मेदार है आखिर इस विभत्स घटना का ??
मात्र शंभु ?
मृतक अफराजुल ?
जेहादी मानसिकता जो अब वैश्यावृति जेहाद तक पहुंच गई है ?
हिन्दू -मुस्लिम वैमनस्य ?
वोट बैंक की प्यासी सरकारें ?
न्याय व्यवस्था की लीपापोती करने वाला प्रशासन ??
रिश्वतखोर भ्रष्ट पुलिस ?
सोते हिन्दू ??
क्या सभी जिम्मेदार नहीं है इस घटना के लिए ??
हर समाज कुछ लिखित -अलिखित नियमों से चलता है , स्त्री पर आधिपत्य भी एक ऐसा ही विषय है ।
आपको देश का कानून इजाजत दे सकता है अंतर्धार्मिक विवाह की लेकिन संबंधित समाज कभी इन संबंधों को स्वीकृति नही देता जिनके रीति ,रिवाजो , खान पान , रहन-सहन , जीवन मूल्यों एवं मुख्य विचारधारा में उत्तर -दक्षिण का फर्क हो !
हम कितने भी सभ्य सुसंस्कृत क्यों ना हो जायें स्त्री पर आधिपत्य को लेकर हमारे अवचेतन में हमेशा कबीलाई संस्कृति ही जिंदा रहेगी और खासकर तब जबकि एक पक्ष बिल्कुल आदिकालीन कब्जाई रणनीति पर उतर आया हो ।
क्या कोई जाति ,धर्म अपने अस्तित्व के लिए आत्मरक्षा के लिए लड़ें भी नही जबकि जिम्मेदार व्यवस्थाएं मात्र पाखंड कर के इतिश्री कर ले ।
जो मारा गया वह उस नेक्सस का सबसे आसान शिकार था , शम्भू ने लड़ाई की शुरुआत आसान शिकार से की ताकि बाकी के अपेक्षाकृत अधिक क्रूर और संसाधनों से लैस उसके साथी जल्लादों तक उसके आक्रमण का संदेश इस तरह से जाए कि उनकी चूलें हिल जाए , इसीलिये उसने इतना क्रूर कर्म करना स्वीकार किया जिसका स्वयं वह भी अभ्यस्त नही था ।
मुस्लिम कसाईयों ! चालाकी और धूर्तता आपको एक मोर्चा जितवा सकती है विश्वयुद्ध नहीं , ये काठ की हांडी रोज नहीं काम दे सकती । भारत मे रहकर हिन्दुओ के शोषण का जो अनैतिक पाप आप लोग चंद सत्तालोलुपों के उकसाने पर कर रहे हैं वह कभी न कभी आपके लिए अस्तित्व का खतरा बनके सामने आएगा ही और उस दिन ये लोग एक क्षण में पाला बदल लेंगे और आपके साथ दूसरा बर्मा घटित हो जाएगा । अपने युवाओं को बच्चों को दूसरे समाज की स्त्रियों के प्रति उचित व्यवहार का प्रशिक्षण दीजिये अन्यथा बिलो दी बेल्ट आघात का प्रतिघात सिक्स इंच बिलो दी बेल्ट ही मिलेगा ,यह तय है ।
हिन्दुओ की धार्मिक सहिष्णुता और वैचारिक टॉलरेन्स का बहुत दुरपयोग हो चुका अब भी वक्त है सुधर जाइये । भारत जैसी भूमि और ऐसे लोग कहीं नही मिलेंगे यह सिद्ध करने की आवश्यकता नही है ।
आपके नकली रहबर आजकल शम्भू की ही तरह माथे पर चंदन लगाए मंदिर मंदिर भटक रहे हैं ,ये इशारा है समझ जाइये ।
भाजपा सरकार और प्रशासन जो स्वयं बांग्लादेशियों को बंगाली आधार कार्ड देकर भारत भर के शांत इलाकों को बर्बाद करने के षडयंत्रों को देखते हुए भी शुतुरमुर्ग की तरह मिट्टी मे मुँह दबाके के बैठी है वह भी उतनी ही दोषी है जो अब इस घटना को शंभू की निजी सनक और मानसिक स्थिति का नाम देकर लीपापोती मे लगी हुई है ।
आखिर क्या हम अपने खून पसीने से टैक्स इसलिए चुकाते हैं कि ये बांग्लादेशी /रोहिंग्या दरिंदे हमारी ही भूमि और हमारे ही संसाधनों का दोहन करके हमारी ही बहन बेटियों से वैश्यावृत्ति करवायें ??
शर्मनाक है यह स्टैंड इन सरकारों का और इस घोर अन्यायपूर्ण आत्मघाती अन्धव्यवस्थाओं का ।
आज हजारों शांतिदूतों की भीड़ के सामने आप रेगरों के साथ अन्याय करके जो इस आग को दबाने का प्रयत्न कर रहे हो यही आग एकदिन ज्वालामुखी बनकर फूटेगी बर्मा ,मुजफ्फरनगर और गुजरात की तरह शायद तभी सभी को समझ आयेगा की राजसमंद में आखिर हुआ क्या था ?
वीडियो देख़कर आंसुओं से बुद्ध बन जाने वाले हिन्दुओ कम से कम चुप रहकर ही अपनी मूर्खता साबित होने से बचालो? अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब ये आग तुम्हारे भी घर के ठीक पास ही होगी ।। https://m.facebook.com/dineshkumar.kumar.5070?fref=nf&refid=52&ref=opera_speed_dial&_ft_=qid.6498862080791759691%3Amf_story_key.719499100830027103%3Atop_level_post_id.1625560880833460&__tn__=C-R

रविवार, दिसंबर 10, 2017

एक पाकिस्तानी लेखक ने उड़ाईं, इस्लामी विचार की धज्जियाँ...

एक पाकिस्तानी लेखक ने उड़ाईं, इस्लामी विचार की धज्जियाँ...
Written by तुफैल चतुर्वेदी
शुक्रवार, 08 दिसम्बर 2017 13:11
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“तहज़ीबी नर्गीसीयत”…. पाकिस्तान के वरिष्ठ चिंतक, लेखक, शायर मुबारक हैदर (Mubarak Haider) साहब की किताब है। इसका शाब्दिक अर्थ है कल्चरल/सांस्कृतिक नार्सिसिज़्म। बात शुरू करने से पहले आवश्यक है कि जाना जाये कि आखिर नार्सिसिज़्म है क्या?
यह शब्द मनोवैज्ञानिक संदर्भ का शब्द है जो ग्रीक देवमाला के एक चरित्र से प्राप्त हुआ है। ग्रीक देवमाला की इस कहानी के अनुसार नार्सिस नाम का एक देवता प्यास बुझाने झील पर गया। वहाँ उसने ठहरे हुए स्वच्छ पानी में स्वयं को देखा। अपने प्रतिबिम्ब को देख कर वो इतना मुग्ध हो गया कि वहीँ रुक-ठहर गया। पानी पीने के लिये झील का स्पर्श करता तो प्रतिबिम्ब मिट जाने की आशंका थी। नार्सिस वहीँ खड़ा-खड़ा अपने प्रतिबिम्ब को निहारता रहा और भूख-प्यास से एक दिन उसके प्राण निकल गए। उसकी मृत्यु के बाद अन्य देवताओं ने उसे नर्गिस के फूल की शक्ल दे दी। अतः नर्गीसीयत या नार्सिसिज़्म (Islamic Narsicism) एक चारित्रिक वैशिष्ट्य का नाम है।
नार्सिसिज़्म शब्द का मनोवैज्ञानिक अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति, समाज स्वयं को आत्ममुग्धता की इस हद तक चाहने लगे जिसका परिणाम आत्मश्लाघा, आत्मप्रवंचना हो। इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि ऐसे व्यक्ति, समाज को स्वयं में कोई कमी दिखाई नहीं देती। यह स्थिति व्यक्ति तथा समाज की विकास की ओर यात्रा रोक देती है। ज़ाहिर है
बीज ने मान लिया कि वो वृक्ष है तो वृक्ष बनने की प्रक्रिया तो थम ही जाएगी। विकास के नये अनजाने क्षेत्र में कोई क़दम क्यों रखेगा? स्वयं को बदलने, तोड़ने, उथल-पुथल की प्रक्रिया से गुज़ारने की आवश्यकता ही कहाँ रह जायेगी? किन्तु नार्सिसिज़्म का एक पक्ष यह भी है कि आत्ममुग्धता की यह स्थिति कम मात्रा में आवश्यक भी है। हम सब स्वयं को विशिष्ट न मानें तो सामान्य जन से अलग विकसित होने यानी आगे बढ़ने की प्रक्रिया जन्म ही कैसे लेगी? हमें बड़ा बनना है, विराट बनना है, अनूठा बनना है, महान बनना है, इस चाहत के कारण ही तो मानव सभ्यता विकसित हुई है। मनुष्य स्वाभाविक रूप से अहंकार से भरा हुआ है मगर इसकी मात्रा संतुलित होने की जगह असंतुलित रूप से अत्यधिक बढ़ जाये तो? यही इस्लाम के साथ हुआ है, हो रहा है।
न.. न.. न.. न.. मैं यह नहीं कह रहा, बल्कि पाकिस्तान के एक चिंतक, लेखक, शायर मुबारक हैदर कह रहे हैं। मुबारक हैदर साहब की उर्दू किताबें तहज़ीबी नर्गीसीयत {सांस्कृतिक आत्मप्रवंचना}, मुग़ालते-मुग़ालते {भ्रम-भ्रम}, "Taliban: The Tip of A Holy Iceberg" लाखों की संख्या में बिक चुकी हैं। इन किताबों ने पाकिस्तान और भारत के उर्दू भाषी मुसलमानों की दुखती रग पर ऊँगली रख दी है। उनकी किताब के अनुसार नार्सिसिस्ट व्यक्तित्व स्वयं को विशिष्ट समझता है। क्षणभंगुर अहंकार से ग्रसित होता है। उसको अपने अलावा और कोई शक्ल दिखाई नहीं पड़ती। उसके अंदर घमंड, आत्ममुग्धता कूट-कूट कर भरी होती है। वो ऐसी कामयाबियों का बयान करता है जो फ़ैंटेसी होती हैं। जिनका अस्तित्व ही नहीं होता। ऐसे व्यक्तित्व स्वयं अपने लिये, अपने साथ के लोगों के लिये अपने समाज के लिये हानिकारक होते हैं. अब वो प्रश्न करते हैं कि ऐसे दुर्गुण अगर किसी समाज में उतर आएं तो उसका क्या होगा?
वो कहते हैं "आप पाकिस्तान के किसी भी क्षेत्रीय या राष्ट्रीय समाचारपत्र के किसी भी अंक को उठा लीजिये। कोई कॉलम देख लीजिये। टीवी चैनल के प्रोग्राम देख लीजिये। मुहल्लों में होने वाली मज़हबी तक़रीर सुन लीजिये। उन मदरसों के पाठ्यक्रम देख लीजिये, जिनसे हर साल 6 से 7 लाख लड़के मज़हबी शिक्षा ले कर निकलते हैं और या तो पुरानी मस्जिदों में चले जाते हैं या नई मस्जिदें बनाने के लिये शहरों में इस्लाम या सवाब याद दिलाने में लग जाते हैं। रमज़ान के 30 दिन में होने वाले पूरे कार्यक्रम देख लीजिये। बड़ी धूमधाम से होने वाले वार्षिक मज़हबी इज्तिमा {एकत्रीकरण} देख लीजिये, जिनमें 20 से 30 लाख लोग भाग लेते हैं। आपको हर बयान, भाषण, लेख में जो बात दिखाई पड़ेगी वो है इस्लाम की बड़ाई, इस्लाम की महानता का बखान, मुसलमानों की महानता का बखान, इस्लामी सभ्यता की महानता का बखान, इस्लामी इतिहास की महानता का बखान, मुसलमान चरित्रों की महानता का बखान, मुसलमान विजेताओं की महानता का बखान। मुसलमानों का ईमान महान, उनका चरित्र महान, उनकी उपासना पद्धति महान, उनकी सामाजिकता महान। यह भौतिक संसार उनका, पारलौकिक संसार भी उनका, शेष सारा संसार जाहिल, काफ़िर और जहन्नुम में जाने वाला अर्थात आपको इस्लाम और मुसलमानों की महानता के बखान का एक कभी न समाप्त होने वाला अंतहीन संसार मिलेगा।
इस्लाम अगर मज़हब को बढ़ाने के लिये निकले तो वो उचित, दूसरे सम्प्रदायों को प्रचार से रोके तो भी उचित, मुसलमानों का ग़ैरमुसलमानों की आबादियों को नष्ट करना उचित, उन्हें धिम्मी-ग़ुलाम बनाना भी उचित, उनकी स्त्रियों को लौंडी {सैक्स स्लेव} बनाना भी उचित... मगर ग़ैरमुस्लिमों का किसी छोटे से मुस्लिम ग्रुप पर गोलियाँ चलना इतना बड़ा अपराध कि मुसलमानों के लिये विश्वयुद्ध छेड़ना आवश्यक। इस्लाम का अर्थशास्त्र, राजनीति, जीवन शैली, ज्ञान बड़ा यानी हर मामले में इस्लाम महान। केवल इस्लाम स्वीकार कर लेने से संसार की हर समस्या के ठीक हो जाने का मूर्खतापूर्ण विश्वास। ग़ैरमुस्लिमों के जिस्म नापाक और गंदे, ईमान वालों {मुसलमानों} को उनसे दुर्गन्ध आती है। उनकी आत्मा-मस्तिष्क नापाक, उनकी सोच त्याज्य, उनका खाना गंदा और हराम, मुसलमानों का खाना पाक-हलाल-उम्दा, दुनिया में अच्छा-आनंददायक और पाक कुछ है तो वो हमारा यानी मुसलमानों का है। इस्लाम से पहले दुनिया में कोई सभ्यता नहीं थी, जिहालत और अंधकार था। संसार को ज्ञान और सभ्यता अरबी मुसलमानों की देन है।
अब अगर आप किसी इस आत्मविश्वास से भरे किसी मुस्लिम युवक से पूछें, कहते हैं चीन में इस्लामी पैग़ंबर मुहम्मद के आने से हज़ारों साल पहले सभ्य समाज रहता था। उन्होंने मंगोल आक्रमण से अपने राष्ट्र के बचाव के लिये वृहदाकार दीवार बनाई थी। जिसकी गणना आज भी विश्व के महान आश्चर्यों में होती है। भारत की सभ्यता, ज्ञान इस्लाम से कम से कम चार हज़ार साल पहले का है। ईरान के नौशेरवान-आदिल की सभ्यता, जिसे अरबों ने नष्ट कर दिया, इस्लाम से बहुत पुरानी थी। यूनान और रोम के ज्ञान तथा महानता की कहानियां तो स्वयं मुसलमानों ने अपनी किताबों में लिखी हैं। क्या यह सारे समाज, राष्ट्र अंधकार से भरे और जाहिल थे?
आप बिलकुल हैरान न होइयेगा अगर नसीम हिज़ाजी का यह युवक आपको आत्मविश्वास से उत्तर दे, देखो भाई ये सब काफ़िरों की लिखी हुई झूठी बातें हैं, जो मुसलमानों को भ्रमित करने और हीन-भावना से भरने के लिए लिखी गयी हैं और अगर इनमें कुछ सच्चाई है भी तो ये सब कुफ़्र की सभ्यताएँ थीं और इनकी कोई हैसियत नहीं है। सच तो केवल यह है कि इस्लाम से पहले सब कुछ अंधकार में था। आज भी हमारे अतिरिक्त सारे लोग अंधकार में हैं। सब जहन्नुम में जायेंगे। कुफ़्र की शिक्षा भ्रमित करने के अतिरिक्त किसी काम की नहीं। ज्ञान केवल वो है जो क़ुरआन में लिख दिया गया है या हदीसों में आया है। यही वह चिंतन है जिसके कारण इस्लाम अपने अतिरिक्त हर विचार, जीवन शैली से इतनी घृणा करता है कि उसे नष्ट करता आ रहा है, नष्ट करना चाहता है। चिंतक, लेखक, शायर मुबारक हैदर समस्या बता रहे हैं, कि पाकिस्तान की दुर्गति की जड़ में इस्लाम और उसका चिंतन है। वो कह रहे हैं कि हम जिहाद की फैक्ट्री बन गए हैं। यह छान-फटक किये बिना कि ऐसा क्यों हुआ, हम स्थिति में बदलाव नहीं कर सकते। संकेत में वो कह रहे हैं कि अगर अपनी स्थिति सुधारनी है तो इस चिंतन से पिंड छुड़ाना पड़ेगा। उनकी किताबों का लाखों की संख्या में बिकना बता रहा है कि पाकिस्तानी समाज समस्या को देख-समझ रहा है। यह आशा की किरण है और सभ्य विश्व संभावित बदलाव का अनुमान लगा सकता है।
आइये इस चिंतन पर कुछ और विचार करते हैं। ईसाई विश्व का एक समय सबसे प्रभावी नगर कांस्टेंटिनोपल था। 1453 में इस्लाम ने इस नगर को जीता, और इसका नाम इस्ताम्बूल कर दिया। स्वाभाविक ही मन में प्रश्न उठेगा कि कांस्टेंटिनोपल में क्या तकलीफ़ थी जो उसे इस्ताम्बूल बनाया गया? बंधुओ, यही इस्लाम है। सारे संसार को, संसार भर के हर विचार को, संसार भर की हर सभ्यता को, संसार भर की हर आस्था को.......मार कर, तोड़कर, फाड़कर, छीनकर, जीतकर, नोचकर, खसोटकर.......येन-केन-प्रकारेण इस्लामी बनाना ही इस्लाम का लक्ष्य है। रामजन्भूमि, काशी विश्वनाथ के मंदिरों पर इसी कारण मस्जिद बनाई जाती है। कृष्ण जन्मभूमि का मंदिर तोड़ कर वहां पर इसी कारण ईदगाह बनाई जाती है। पटना को अज़ीमाबाद इसी कारण किया जाता है। अलीगढ़, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, अलीपुर, पीरपुर, बुरहानपुर और ऐसे ही सैकड़ों नगरों के नाम.......वाराणसी, मथुरा, दिल्ली, अजमेर चंदौसी, उज्जैन जैसे सैकड़ों नगरों में छीन कर भ्रष्ट किये गए मंदिर इन इस्लामी करतूतों के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
आपने कभी कुत्ता पाला है? न पाला हो तो किसी पालने वाले से पूछियेगा। जब भी कुत्ते को घुमाने ले जाया जाता है तो कुत्ता सारे रास्ते इधर-उधर सूंघता हुआ और सूंघे हुए स्थानों पर पेशाब करता हुआ चलता है। स्वाभाविक है कि यह सूझे यदि कुत्ते को पेशाब आ रहा है, तो एक बार में क्यों फ़ारिग़ नहीं होता, कहीं उसे पथरी तो हो नहीं गयी है? फिर हर कुत्ते को पथरी तो नहीं हो सकती, फिर उसका पल-पल धार मारने का क्या मतलब है? मित्रो! कुत्ता वस्तुतः पेशाब करके अपना इलाक़ा चिन्हित करता है। यह उसका क्षेत्र पर अधिकार जताने का ढंग है। बताने का माध्यम है कि यह क्षेत्र मेरी सुरक्षा में है और इससे दूर रहो अन्यथा लड़ाई हो जाएगी। ऊपर के पैराग्राफ़ और इस तरह की सारी करतूतें इस्लामियों द्वारा अपने जीते हुए इलाक़े चिन्हित करना हैं।
अब बताइये कि सभ्य समाज क्या करे ? इसका इलाज ही यह है कि समय के पहिये को उल्टा घुमाया जाये। इन सारे चिन्हों को बीती बात कह कर नहीं छोड़ा जा सकता, चूँकि इस्लामी लोग अभी भी उसी दिशा में काम कर रहे हैं। बामियान के बुद्ध, आई एस आई एस द्वारा सीरिया के प्राचीन स्मारकों को तोडा जाना बिल्कुल निकट अतीत में हुआ है। इस्लामियों के लिये उनका हत्यारा चिंतन अभी भी त्यागने योग्य नहीं हुआ है, अभी भी कालबाह्य नहीं हुआ है। अतः ऐसी हर वस्तु, मंदिर, नगर हमें वापस चाहिये। राष्ट्रबन्धुओ! इसका दबाव बनाना प्रारम्भ कीजिये। सोशल मीडिया पर, निजी बातचीत में, समाचारपत्रों में जहाँ बने जैसे बने इस बात को उठाते रहिये। यह दबाव लगातार बना रहना चाहिए। पेट तो रात-दिन सड़कों पर दुरदुराया जाते हुए पशु भी भर लेते हैं। मानव जीवन गौरव के साथ, सम्मान के साथ जीने का नाम है। हमारा सम्मान छीना गया था। समय आ रहा है, सम्मान वापस लेने की तैयारी कीजिये ।
इस्लामिक मानसिकता को समझने के लिए desicnn के कुछ लेख इस प्रकार हैं... अवश्य पढ़ें...
१) भारत से बौद्धों के सफाए में प्रमुख भूमिका वामपंथ और इस्लाम की... http://www.desicnn.com/news/boudh-religion-in-indian-subcontinent-was-once-flourished-but-islamic-invaders-and-infighting-destroyed-it
२) बँटवारा, खिलाफत आंदोलन, जिन्ना और गाँधी : इस्लामिक सोच का नमूना http://www.desicnn.com/news/partition-of-india-khilafat-movement-and-role-of-jinnah-gandhi-and-ambedkar
३) विश्व में सर्वाधिक आतंकी पैदा करने वाली यूनिवर्सिटी कौन सी है? http://www.desicnn.com/news/al-azahar-university-of-cairo-most-dangerous-institute-of-terrorist-production

शुक्रवार, दिसंबर 08, 2017

Persecution of non Muslim men and Muslim women by Indian Muslims for marrying/dating Here is a list of 32 incidents of murder

Francois Gautier
Persecution of non Muslim men and Muslim women by Indian Muslims for marrying/dating
Here is a list of 32 incidents of murder/
harassment/kidnap/death threats involving 16 Murders and leading to 3 suicides over the last 9 years, perpetrated by Indian Muslims for the sole reason of a Muslim woman marrying/loving a non Muslim.All these incidents happened in India from the time-frame of July 2008 - September 2017.
1) http://m.timesofindia.com/city/meerut/
Muslim-woman-weds-Hindu-man-both-killed/articleshow/45321279.cms
Muslim woman marries Hindu man, both killed by the woman's brothers and gang in Meerut, Uttar Pradesh.
2) https://en.m.wikipedia.org/wiki/
2008_Murshidabad_beheading
Hindu man marries Muslim woman, murdered by a Muslim gang in Murshidabad, West Bengal following the orders of a Muslim tribal "court".
3) http://southbengalherald.blogspot.in/
2012/12/hindu-man-marries-muslim-woman-shot.html?m=1
Hindu man who married a Muslim woman shot dead by Islamist in West Bengal close to Bangladesh border.
4) http://www.firstpost.com/india/
karnataka-21-year-old-pregnant-muslim-woman-burnt-alive-by-parents-for-marry
ing-a-dalit-3521809.html
Muslim woman who married a dalit (lower caste Hindu) man, burned to death by her parents in Karnataka.
5) http://www.newindianexpress.com/
states/andhra-pradesh/2017/sep/06/31-year-old-succumbs-to-injury-in-kuppam-1653042--1.html
A Muslim gang hacks to death a Hindu man for loving a Muslim woman, and severely beat up his mother.
6) http://www.opindia.com/2015/03/
hindu-man-brutally-killed-for-marrying-a-muslim-girl-in-bihar/
Hindu man abducted and brutally murdered by a mob of 100 Muslims in Bihar for marrying a Muslim woman. Woman still missing.
7) https://blogs.timesofindia.indiatimes.c
om/indus-calling/a-love-story-murdered-in/
Hindu man marries Muslim woman in Kashmir and her parents bribe policemen and get him murdered.
8 ) http://www.telegraph.co.uk/news/
worldnews/asia/india/8515426/India-mothers-accused-in-honour-killing-of-two-brides.html
Two Muslim women in Uttar Pradesh murdered by their mothers for marrying Hindus. One of them admitted to the killing and justified it.
9) http://m.hindustantimes.com/india/
muslim-girl-killed-for-love-affair-with-hindu/story-UVRV0Aq9RV
PYnbw3svOAhI.html
Hindu man abducted and killed for being in love with a Muslim woman in Uttar Pradesh, done by the woman's father.
10) http://www.haindavakeralam.com/
final-tributes-to-jithu-mohan-hk637
Hindu man killed in Kerala for being in love with a Muslim woman. Killed by her relatives after he refused to convert to Islam.
11) http://indianexpress.com/article/cities/mumbai/couples-murder-in-thane-pregnant-victims-relative-arrested-from-up-3040004/
Hindu man and Muslim woman from UP who got married, found dead with throats slit in Thane near Mumbai. Woman's relative arrested for the murder.
12) http://freerepublic.com/focus/f-news/
2896687/posts
Hindu man killed for marrying Muslim woman in Tamil Nadu, by her brother and gang. Original post removed from Asian Age, but confirmed by Tamil locals and widely reported and verified authentic.
13) http://epaper.timesofindia.com/
Repository/getFiles.asp?Sty
le=OliveXLib:LowLevelEntityToP
rint_TOINEW&Type=text/
html&Locale=english-skin-custom
&Path=TOIBG/2009/11/20&ID=Ar00300
Hindu man beaten to death by a gang of 9 Muslims in Bangalore for being in love with a Muslim woman.
14) http://m.indiatimes.com/news/india/
kerala-muslim-girl-who-married-a-hindu-boy-alleges-threat-to-her-life-from-i
slamist-outfit-269697.html
Kerala Muslim girl marries Hindu man, fanatic Muslims try to kill and threaten them.
15) http://m.ndtv.com/south/death-threats-for-this-hindu-muslim-couple-in-
kerala-698713
Hindu man and Muslim woman from Kerala get married, and both are being hunted by Muslim gangs, they cant even step out of house and struggle for a living since they are not being able to work.
16) http://archive.news18.com/amp/news/
bihar/bijnor-court-allows-married-hindu-man-muslim-woman-to-live-to
gether-634789.html
Muslim woman marries Hindu man in Bihar, the woman's relatives threaten and try to kidnap her, but fails.
17) http://m.indiatoday.in/story/muslim-jat-marriage-hindu-muslim-wedding-allah
abad-court-police-baghpat-lucknow-iqrana-bano-amar-deep/1/446609.html
Muslim girl marries Hindu man in UP... Elopes amid threats... Muslim father persists to nullify their marriage.
18) http://www.thehindu.com/news/national/muzaffarnagar-tense-over-conver
sion-of-muslim-woman/article6682917.e
ce
Muslim girl converts to Hinduism and marries a Hindu man. Local Muslims threaten her, her relatives clash with police to take her away by force.
19) http://www.dailymail.co.uk/indiahome/
article-3550599/Hindu-husband-Dadri-married-Muslim-bride-claims-officials-won-t-register-marriage-case-sparks-religious-riots.html
Officials from Dadri in Uttar Pradesh refuse to let Muslim woman marry Hindu man fearing riots and girl seeks police protection from her relatives.
20) http://www.dailymail.co.uk/indiahome/
indianews/article-3067822/Communal-hatred-drives-lovers-suicide-Hindu-ma
n-21-Muslim-girl-18-lives-Muza
ffarnagar-fears-society-never-accept-marriage.html
Muslim woman who was in love with Hindu man in UP gets locked up and beaten up by her parents who forcibly prevent them from marrying. Finally both commit suicide (allegedly). Possible murder, bodies found hanging from a tree in a compound owned by the woman's relatives.
21) http://www.hindupost.in/news/hindu-boy-assaulted-and-critically-injured-in-
west-bengal-for-marrying-a-muslim-girl/
Hindu man attacked and critically injured by Muslims in West Bengal after he married a Muslim woman. The woman is being held captive by her parents.
22) http://www.hindupost.in/news/hindu-man-married-muslim-woman-forcibly-circumcised-maulana-threatened-convert/
Hindu man who married a Muslim woman in UP badly beaten and is constantly harassed and threatened with forced conversion or to leave his wife.
23) http://zeenews.india.com/home/sc-protection-to-jandk-couple-restrains-cops-from-arresting_523834.html
Hindu man and Muslim woman from Kashmir get physically abused and constantly hunted by the woman's relatives and police for inter-faith marriage.
24) https://www.nationalheraldindia.com/
news/couples-from-different-religions-in-jammu-and-kashmir-lament-the-absence-of-the-special-marriage-act
Kashmiri Muslim woman commits suicide after her parents forcibly obstruct her from marrying a Hindu.
25) https://mdaily.bhaskar.com/news/
CHD-now-i-am-a-hindu-haryanas-m
uslim-girl-speaks-with-vermillion-on-her-forehead-4387105-NOR.html
Muslim woman who got married to a Hindu and converted to hinduism, alleges threat from parents and seeks police protection.
26) http://m.timesofindia.com/city/delhi/
Delhi-HC-helps-Muslim-woman-live-with-Hindu-husband/articleshow/
46772070.cms
Muslim woman who married Hindu man in Delhi initially chooses to live with her parents who then beat her up and prevent her from going with her husband.
27) http://www.newskarnataka.com/
mangalore/relatives-attack-bride-over-int
er-faith-marriage
Muslim woman who married a Hindu man, gets attacked by her relatives at a temple, rescued by police.
28) http://m.deccanherald.com/
articles.php?name=http%3A%2F%2F
www.deccanherald.com%2Fcontent
%2F523156%2Fhigh-court-reunites-hindu-muslim.html
Muslim woman who married Hindu man in Karnataka gets death threats from Muslims. They get attacked when they were riding on a motorbike where she was kidnapped and he was injured. Finally reunited by highcourt.
29) http://m.timesofindia.com/india/High-court-helps-Muslim-girl-to-live-with-her-
Hindu-husband/articleshow/
15281848.cms
Muslim woman in Madurai, Tamil Nadu gets death threats from relatives and an Islamic organisation after her marriage to a Hindu man.
30) http://m.hindustantimes.com/india/
inter-religious-marriage-sc-asks-j-k-police-to-protect-couple/story-spDIG03RdfKEgwz28JAbHK.html
Muslim woman in Jammu converts to Sikhism upon marrying a Sikh man, upon threats flee to Haryana, where her parents try to kill the couple, finally provided with police protection.
31) http://m.timesofindia.com/city/mumbai/Bombay-high-court-reunites-Hindu-Muslim-couple-from-Rajasthan/articleshow/49898779.cms
Hindu man and Muslim woman from Rajasthan gets married, escapes to Madhya Pradesh from where the woman was kidnapped by her family and forced to marry a Muslim. Later, Mumbai High Court reunites her with her Hindu husband.
32) http://m.timesofindia.com/city/
kolkata/Couple-harassed-for-inter-relig
ion-marriage/articleshow/16456542.cms
Hindu man and Muslim woman marry in West Bengal, the woman's parents, brother and sister tortures her mentally and physically, some of them threaten the man and he luckily escapes murder. They get constant death threats from Muslims.

शंभूनाथ रैगर क्या एक प्रहरी है ??

Pawan Saxena
शंभूनाथ रैगर क्या एक प्रहरी है ??
क्या दशहरे पर सिर्फ शस्त्र पूजन से धर्म और प्राण बचाए जा सकते हैं ? क्या बहन के हाथ से रक्षाबंधन पर सिर्फ रक्षासूत्र बंधवा कर बहन के सतीत्व की रक्षा हो सकती है ? घर मे दोनाली बंदूक हो और गोली चलाने की हिम्मत और जज़्बा गायब हो तो आतताई से प्राण-संपत्ति रक्षा हो सकती है ? सबका जवाब एक ही है 'नहीं' !
दारा सिंह और शंभु नाथ रैगर ने सदियों से चले आ रहे यौन जिहाद और धर्म-परिवर्तन के शाप को मानने से इनकार कर दिया है ! क्या सनातन बेटियों पर सदियों से डाला जा रहा डाका हमारे अंदर अकुलाहट, अपमानबोध और ठगे जाने का भाव पैदा नहीं करता ? हां अब अपमानबोध हद से बाहर हो चुका है और शम्भूनाथ रैगर पैदा होने लगे हैं !
मारा गया बांग्लादेशी,एक पैसे वाला 45 वर्षीय मजदूर ठेकेदार था, बांग्लादेशी और बांग्लादेशी लेबर राजसमंद में सप्लाई करता था ! वह शख्स, अखबार बताते हैं, शंभु के मोहल्ले की दो लड़कियों को खुर्द-बुर्द कर चुका था ,तीसरा केस खुद शंभु के साथ हो गया जब कि बांग्लादेशी, शंभु की मोहल्ले की मुंहबोली बहन को ही ले उड़ा ! खुद बांग्लादेशी ने मोहल्ले वालों को धमकाना जारी रखा और शंभु रैगर के परिवार को जान से मारने की धमकी दी ! इसी पॉइन्ट पर शंभूनाथ रैगर ने आम सनातन वाला कायराना व्यवहार करना स्वीकार नहीं किया ! अखबार बताते हैं कि यदि शंभु बांग्लादेशी की हत्या न करता तो शंभूनाथ की हत्या हो जाती !
बड़ी बात यह है कि शंभूनाथ ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु वह अपराध किया,जिसका अंजाम उसे मालूम था ,अपराध के बाद वह भागा नहीं, खुद ही शंभु ने वीडियो वायरल किया और पुलिस के आगे समर्पण भी ! वीडियों में सनातन -हिंदुओं की दशा ,उपेक्षा और उन पर जेहादी शिकंजे पर उसकी पीड़ा दिखती है , लव जिहाद,पद्मावती-अपमान और घुसपैठ पर इसकी पीड़ा-तकलीफ और चिंता साफ दृष्टिगोचर होती है ! बेशक कुछ आंखों को शंभूनाथ रैगर एक खलनायक दिख रहा हो ,परन्तु बहावी आक्रमण ऐसे ही जारी रहा तो और शंभूनाथ रैगरों की उत्पत्ति की कल्पना अनोखी नहीं होगी !

गुरुवार, दिसंबर 07, 2017

इतिहास सबके साथ न्याय करेगा?

Dr-Abhishek Pratap Singh Rathore
इतिहास को जितना पढियेगा, आँखे उतना भीगेंगी। मन का रोष उतना ही विद्रूप होगा। पूर्वजों ने जो झेला है, उसे देख अंतरात्मा उद्विग्न होगी। तब लगेगा हमे कोई हक नही है , खुद को लिबरल कहने का। कोई हक नही है ये कहने का की जन्मभूमि की मिट्टी दूसरों के साथ बांटी दी जाए या वहां निर्माण हो जाए किसी सार्वजनिक स्थल का।
ये अपमान होगा उन तमाम माताओं को जिन्होंने सहस्त्रों बेटों की बलि चढ़ाने के बाद भी माथे परशिकन महसूस न किया और फिर से हजारों बेटों को जनकर भेज दिया मातृभूमि की बेदीपर शीश लुटाने को । माँ समान धरा के लिए वे बेटे इस मंत्र के साथ बलिदान होते रहे कि सत्य एक दिन परास्त कर देगा तमाम असत्यों को और पुनश्च उज्ज्वल होकर स्थापित हो जाएगा विश्व के मुकुट पर।
बर्बर कौमों ने पददलित करने से पहले हमें जार जार किया हैं। पुरुषों के प्राण हरने के बाद , स्त्रियों की इज्जत लूटी। दहशत कायम करने के लिए नगर के नगर जला दिए, यहाँ तक कि जानवरो को भी नही छोड़ा। । सिर्फ इस बिला पे की हमारी उपासना पद्धति उनसे अलग थी। हमारा दर्शन उनसे सदियों आगे था। हम उनसे ज्यादा सभ्य थे।
उन्हें हमसे ईर्ष्या था , पर उनका रक्त गन्दा था, वे म्लेच्छ थे , उनकी असभ्य बुद्धि हमारी बराबरी करने की सोच भी नही सकते। इसलिए वे हमारी सभ्यता को मिटाने पर आ गये , मंदिरे तोड़ीं , पुस्तकें जलाई, ज्ञान केंद्रों से अग्निक्रीड़ा किया। जननाओं की अस्मतें लूटी। विज्ञान केंद्रों को ध्वस्त किया।
पर शायद उन्हें पता नही था ये शिव का देश था, शव के आराधकों का , हम शांति के पूजक जरूर थे , मगर मौत के उपासक भी थे । हम ऐसे कौमों में से थे जिन्होंने मृत्यु से पहले खुद का श्राद्ध किया, फिर माथे पे तिलक लगाई और कूद गए युद्धों की बेदीयों पर , मिटा दिया खुद को , ताकि ये सभ्यता मिटने न पाये।
बेटियों ने आक्रांताओं के हरम में जानें के बजाय अग्नि से सहर्ष विवाह किया। बेटों ने आवश्यकता पड़ने पर घास की रोटियाँ खाई , सर पे साफ़ा बांधा , महाकाल का आह्वान किया और हर हर महादेव के उदघोष के साथ कूद गए रक्तरंजित इतिहास के पन्नो में दफन होने को। और बता दिया शेष विश्व को की तुम मिट सकते हो हम नही।क्योंकि हम सत्य है, शिव हैं, सुंदर हैं।
आज कोई इतिहासकार ये दावा नही कर सकता कि किसी भी विदेशी आक्रांता को इस पुण्यभूमि में भारत में कभी भी निष्कंटक राज्य करने का अवसर मिला हो।।
सैनिक कम पड़ गए तो साधुओं ने हथियार उठा लिया। मर्द कम पड़ हो गए तो स्त्रियों ने दोनों हाथों में तलवारों को थाम लिया।
बालकों ने खुद को दीवार में चुनवा लिया । मगर
बर्बर म्लेच्छ सल्तनत को बताते रहे ये देश तुम्हारा नही हैं , ये मिट्टी तुम्हारी नही हैं। इसका कण कण हमारा और हम सदैव को गुलाम हो जाने वाली कौमों में से नही हैं। हम सूरज हैं , तुम बदली हो , शीत होकर धूल में मिल जाना तुम्हारा नियति है और पुनः प्रकाशित हो जाना हमारा स्वभाव।
आज समय की बेला बता रही है , बादलों का शीत होकर बूंदों में बदल जाने का वक्त आगया है। मिट्टी को पुनः उसके दुर्गावती, खारवेल , सुहलदेव राजभर, अहिल्याबाई होलकर , फतेह, जोरावर दिखने लगने हैं। यहाँ से शायद प्रकाशित हो जाने का समय आगया है , बावजूद की धुंधलापन छँटा नही हैं।
इस इतिहास का कोई निष्कर्ष नही है , ये शौर्य का गाथा है और रक़्तों का खेल है।
फिर भी मैं पुनश्च यहीँ कहूँगा, हमारे पास कोई हक नही है लिबरल कहलाने का।
पददलित लोग तब तक दानी नही कहलाये जा सकते जब तक वे कुछ अर्जित न कर पाये। हमने पुराना कुछ भी अर्जित नही किया है, जो हम दानी बने।
जन्मभूमि पे भव्य मंदिर हमारे घावों का मरहम नही हैं, ये तो शुरुआत हैं , इलाज को ढूंढ लेने का। हमें अपना सबकुछ वापस लेना हैं, ज्ञान , गौरव, वैभव और विशाल हिमालय से लेकर अनन्त महासागर तक फैला पग पग भूमि भारत। अखण्ड भारत। भले आज ये कुछ लोगों को मज़ाक लगे , पर ऐसा ही एक मज़ाक ढाई हजार साल पहले मगध के दरबारीयों ने महसूस किया था, जब एक भिक्षुक आचार्य ने निज शिखा संस्कार भंग करते हुए कहा था," घनानंद तुम विश्व की सबसे विशाल सेना लिए इस परकोटे के अंदर ही रह जाओगे और मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दुंगा। इतिहास गवाह है उस भिक्षुक ने क्या किया था। इतिहास सबके साथ न्याय करेगा।
जय मातृभूमि भारत। राजा रामचन्द्र की जय।

बुधवार, दिसंबर 06, 2017

हलाल फ़ूड इंडस्ट्री

Rubina Khanum > Hindutva Global
Halal food industry!! Why you should avoid Halal and boycott it !!
Many of you may be eating in places like KFC, Pizza Corner, Pizza Hut, Dominos, burger king, Subway etc..... You might enjoy eating there and some of you might even be eating there once a week too !! How Many of you are aware that you are indirectly contributing to your own destruction by funding a new mosque, madrassa and islamic terrorism groups !! Do you want to contribute towards it ? Don't believe me , I will post proof now !!
Halal certification are issued by Islamic boards and whichever industry wants to be halal certified need to pay a certain percentage to these halal boards and this is what happens to your money next !!!
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Islamic law requires a 2.5% tax called zakat which is imposed on income and accumulated wealth of all devout Muslims.
ie. the muslims that are involved in the halal industry- the imams, slaughtermen, workers, business & shop owners etc.
Halal certification is done on a fee for service basis, with the fees varying with the scope and scale of the services.
Certification is provided by Islamic organizations, and would not be halal if the required zakat was not paid on the fees.
What you may not know is that there are eight classes of zakat recipients, each of which gets a 1/8 share of the gross.
One of those classifications is fighters in Allah’s cause aka Mudihideen, aka terrorists.
When you purchase a product which is certified Halal, you are indirectly contributing to terrorism.
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Quote from Reliance of the Traveller, the Shari’ah handbook of the majority Sunni sect of Islam.
h8.7: The Eight Categories of Recipients
It is obligatory to distribute one’s zakat among eight categories of recipients (O: meaning that zakat goes to none besides them), one-eighth of the zakat to each category. (n: In the Hanafi school, it is valid for the giver to distribute his zakat to all of the categories, some of them, or to confine himself to just one of them (al-Lubab fi sharh al-Kitab(y88), 1.155). )
h8.17: Those Fighting for Allah
The seventh category is those fighting for Allah, meaning people engaged in Islamic military operations for whom no salary has been allotted in the army roster, but who are volunteers for jihad without remuneration.
They are given enough to suffice them for the operation, even if affluent; of weapons, mounts, clothing, and expenses for the duration of the journey, round trip, and the time they spend there, even if prolonged.
Though nothing has been mentioned here of the expense involved in supporting such people’s families during this period, it seems clear that they should also be given it.
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By non Muslims buying Halal certificated products you are supporting the spread of Islam and Sharia law, meaning you are allowing your Country to be come 100% Islamic.
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Here is how you can help stop this !!
1. Boycott the places which sell halal food !! Muslims who eat out in non muslim places are very few, they usually eat only in Muslim restaurants, and the majority are you non Muslims who eat there, so why are they getting halal certified ? Sign on the complaint / suggestion book there that you wont visit their joints again as they serve halal !!
2. It's not only food joints, you are now having halal certified chocolates, clothes, perfumes, and many other things. Look for the halal seal, if it is there, stop,dont buy it !!
3. Talk to all your friends/ family / colleagues / specially children who love eating in such elite food joints that why you should not eat there !!
4. Many of them might laugh and say " ah, we eat once a month or once a week, no harm in doing so", remember that one time in a month contributes to a bullet for the jihadis and the next bullet might be fired at your dear one !!
Thanks for your patience in reading my long post !!
Here is how you can help stop it !!!
https://m.facebook.com/profile.php?id=100009760332229&fref=nf&refid=18&ref=opera_speed_dial&__tn__=C-R

शनिवार, दिसंबर 02, 2017

# बोधकथा : # मेहमान ने # मकान # हड़पा

# बोधकथा : # मेहमान ने # मकान # हड़पा
एक सद्गृहस्थ का बंगला था और बच्चे सीधे सादे भोलेभाले याने बेवक़ूफ ।
एक परदेसी आया जिसे मेहमान की तरह रख लिया ।
परदेसी शातिर मक्कार था ।
उसने आते ही मकान कब बना था, मकान की जमीन की पैमाइश, कितनी ईंटें लगीं, कितनी खपरैल लगीं, दीवालों की लंबाई चौड़ाई ऊंचाई मोटाई कितनी है, रंग कौन से शेड का कौन से ब्राण्ड का लगा है, फ़र्श पर किस साइज़ की कौन से ब्राण्ड की कितनी टाइल्स लगी हैं, कौन से ब्राण्ड की कितनी नल लगी हैं, कितने मीटर पाइप लगे हैं, मकान की मलकियत के फ़र्जी कागजात भी बनवा लिये ।
कुछ दिनों में बुड्ढा मकान मालिक ज्यों ही मरा - मेहमान ने अदालत में फ़रियाद कर दी कि उसने अपने मकान में एक बुड्ढे और उसके बच्चों को पनाह दी थी लेकिन चूंकि अब बुड्ढा मर गया है - उसके बच्चे उसके मकान में हमेशा के लिये टिक न जायें उसके पहले अदालत के हुक्म से मकान से बेदखल कर दिये जायें ।
अदालत ने मकान की मालकियत के दस्तावेज मांगे सो उस मक्कार मेहमान ने तुरंत पेश कर दिये लेकिन चूँकि असली मालिक ने कभी इन अहम चीजों पर कभी खुद सोचा और न ही कागजात हिफ़ाजत से रखे इसलिये उसके मरने के बाद असली वारिस कोई भी सबूत पेश नहीं कर सके और पहली ही पेशी में मुकदमा हार गये और इस तरह शातिर मक्कार मेहमान ने मकान हड़प लिया ।
इस बोधकथा में अनेक कटु सत्य एवं शिक्षायें निहित हैं जो सिर्फ़ ध्यान से पढ़ कर मनन एवं विश्लेषण करने वाले ही समझ सकते है ।
यह बोधकथा भारत की हक़ीक़त है ।

भय का व्यापार


जीवों की 4 मौलिक प्रवृत्तियों - # आहार
, # निद्रा , # मैथुन और # भय में से धूर्त धूर्त मनुष्य ने मूर्ख मनुष्यों को भय के द्वारा ही उनकी अन्य 3 प्रवृत्तियों से जुड़े जीवन को नियंत्रित करने की व्यूह रचना की एवं भयदोहन से लाभान्वित होने का व्यापार आरम्भ किया । अब तो आहार निद्रा मैथुन - सबके पहले भय जुड़ गया है - सबमें भय व्याप्त कर दिया गया है ताकि येन केन प्रकारेण अमर्यादित अर्थलाभ संभव हो । इस भयदोहन के व्यापार के सुसंगठित गिरोह हैं जो सुनियोजित षड़यंत्रों के माध्यम से सतत एवं निर्बाध शोषण करते रहते हैं और जो प्रतिकार करता है उसे नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते । इस भयदोहन के व्यापार में अंतिम उपभोक्ता अर्थात शोषित के अतिरिक्त सभी की भागीदारी है । सभी तो नहीं - केवल 99% विज्ञापन
# धूर्त_विज्ञापन होते हैं जिन्हें मैं गत 26 वर्षों से (1991 से) # Madvertizement कहते चला आ रहा हूँ एवं अपने कई लेखों में लोगों को सतर्क करने का असफल प्रयास किया है ।


डा.मधुसूदन उपाध्याय
# आप कितने एड्स पेशेंट्स को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं??
ये उस समय की बात है जब खाना घर में और पाखाना खेत में हुआ करता था, शीला की जवानी और मुन्नी की बदनामी तो दूर की बात दोनों अभी पैदा भी नहीं हुई थीं। ऐसे समय में ही एक दिन दो भाई बब्बन और दद्दन सायकिल पर हरड़ की बोरी लेकर बेचने निकले। पूरा दिन बीत गया एक पसेरी हरड़ भी नहीं बिका।
रात होने आई दोनों भाई सतुआ सान के पेट भरे, अचानक बब्बन के दिमाग में मेंटास बत्ती जली। पेड़ पर चढ़ गया और लगा चिल्लाने ।
# बही बयार सभै मर जाइ।
हरड़ खाई अमर होई जाइ।
अगले दिन सारा हरड़ हाथों हाथ बिक गया।
यह माभयम् वाले आर्यावर्त में # डर के अर्थशास्त्र का पहला प्रयोग था।
इसी प्रयोग पर बरसों से विदेशी कंपनियां हमें लूटती रहीं हैं।
(यहाँ हम हरड़ की शान में गुस्ताखी नहीं कर रहे हैं बल्कि अर्थशास्त्र का एक प्रयोग बता रहे हैं। बाकी हरड़ तो # यस्य गृहे माता नास्ति तस्य माता हरीतकी।हरड़ माता की जय हो)
#डर का अर्थशास्त्र' केवल आयोडीनयुक्त नमक तक ही सीमित नहीं रहा। लोगों में भय का आतंक फैलाने में "एड्स' भी एक सफल विदेशी योजना है। अवैध यौन सम्बंधों से रोग फैलता है, इसका प्रचार बड़े जोर-शोर से हो रहा है। वि·श्व बैंक और विदेशी वित्तीय संस्थाएं खुल कर पैसा उपलब्ध करा रही हैं, जिसका बड़ा हिस्सा इन कंडोम निर्मात्री कम्पनियों-जिनमें विदेशी ही अधिक हैं-की झोली में जा रहा है?
# भारत सरकार ने एड्स-नियंत्रण-संगठन बनाया जिसने 1992 से काम शुरू किया और पहला सर्वेक्षण 1999 में समाप्त हुआ। दूसरा दौर अब शुरू होने जा रहा है-जिसके लिए वि·श्व बैंक ने 900 करोड़ रुपयों का ऋण दिया है-पूरे सर्वेक्षण का खर्च 1200 करोड़ होगा। नमूने के बतौर हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार (अवधि 1986 से 1999 तक) तेरह साल की गणना में 35 लाख लोग एच.आई.वी. ग्रस्त पाए गए तथा इनमें से 9507 एड्स के रोगी पाए गए। 20 जुलाई, 2000 के "न्यूयार्क टाइम्स' की एक खबर में स्पष्ट कहा गया है, उत्तरी अफ्रीका के देशों के लिए अमरीका की एक्सिम बैंक हर साल सौ करोड़ डालर देने को तैयार है बशर्ते वे देश अमरीका की कम्पनियों द्वारा तैयार की गई एड्स निरोधी दवाइयां ही खरीदें।
# पिछले दिनों एड्स को लेकर देश में एक अति महत्वपूर्ण खबर को नजरंदाज कर दिया गया जबकि इस खबर ने एड्स के पूरे प्रचार अभियान पर अनेक सवाल खडे कर दिए हैं जिनका जवाब न तो नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाइजेशन (नाको) के पास है और ना ही भारत सरकार के पास। नाको ने यह घोषणा की है कि भारत में एचआईवी पाॅजिटिव लोगों की संख्या तेजी से घटी है। इस घोषणा का समर्थन यूएन एड्स और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी किया है।
# उल्लेखनीय है कि जून 2006 में नाको ने रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि 2005 में भारत मंे एड्स पीडि़त लोगों की संख्या 52 लाख से अधिक है जो कि विश्व में सबसे अधिक है। इस तरह भारत दुनिया की खबरों में एक ऐसे देश के रूप में सुर्खियों में आया जिसमें एड्स महामारी की तरह फैल रही है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यूएन एड्स ने भी इस आकडे का समर्थन किया। जबकि उसके पास इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ व विश्व बैंक ने भी इस पर अपनी सहमति की मोहर लगाई और दावा किया कि यह आकडा वैज्ञानिक दृष्टि से सही है। यह सब हंगामा उस समय हुआ जब यूएन एड्स के अंतर्राष्ट्रीय निदेशक पीटर पियोट भारत का दौरा कर रहे थे। 3 दिन बाद वे असम गए और वहा गुवहाटी में एक सम्वाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि, ‘हमें विश्वास ही नहीं हो रहा कि भारत में पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष केवल 35 हजार एड्स के मामले ही बढे हैं जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश पूरी तरह एड्स की जकड में हैं।’ इसके दो हफ्ते बाद ही यूएन एड्स ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की और कहा कि भारत में 52 लाख नहीं बल्कि 57 लाख लोग एड्स से ग्रस्त है यानी भारत एड्स के मामले में दक्षिणी अफ्रीका से भी आगे निकल गया। यूएन एड्स ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा कि चूंकि नाको ने अपनी रिपोर्ट में बच्चों और बूढों को शामिल नहीं किया था इसलिए यह संख्या कम आंकी गई है।
# केरल के कुन्नूर जिले की एक स्वयं सेवी संस्था जैक के अध्यक्ष श्री पुरूषोत्तम मुल्लोली व उनकी सहयोगी अंजू सिंह ने उसी समय नाको को खुली चुनौती दी और उनके आकडे को गलत बताया। उन्होंने यूएन एड्स के इस दावे को भी चुनौती दी जिसमें यूएन एड्स ने कहा था कि भारत में एड्स से 4 लाख लोग मर चुके हैं। श्री मुल्लोली गत अनेक वर्षों से एड्स को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार के विरूद्ध वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर एक लम्बी लड़ाई लड रहे हैं। मणिपुर, आसाम, हरियाणा व राजस्थान के मामले में उन्होंने नाको को नाको चने चबवा दिए थे और अपनी रिपोर्ट बदलने पर मजबूर कर दिया था। उस वक्त अमिताभ बच्चन और नफीजा अली जैसे सितारे व हजारों स्वयंसेवी संगठन एड्स के आतंक का झंडा ऊंचा करके चल रहे थे और ये लोग सच्चाई सुनने को तैयार नहीं थे। उस वक्त भी मैंने अपने काॅलम में इस मुद्दे को बहुत जोरदार तरीके से उठाया था और ये बात कही थी कि एड्स या एचआईवी पाॅजिटिव को लेकर जो भूत खड़ा किया जा रहा है वह हवा का गुब्बारा है।
#10 वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में दुनिया भर के 1000 डाक्टर वैज्ञानिक व अनेक नोबल पुरस्कार विजेता एकत्र हुए थे जहां से उन्होंने एड्स को लेकर दुनिया भर में किए जा रहे झूठे प्रचार को चुनौती दी थी। इन्हें पर्थ गु्रप के नाम से जाना जाता है।इनकी चुनौती का जवाब देने की हिम्मत आज तक यूएन एड्स ने नहीं की। इस वर्ष नाको ने जो रिपोर्ट प्रकाशित की है उसमें यह दावा किया है कि भारत में एड्स पीडि़तों की संख्या में 60 फीसदी की कमी आ गई है। अपनी सफाई में नाको ने कहा है कि पिछले वर्ष उसने 700 निगरानी केन्द्रों के आधार पर आकलन किया था जबकि इस वर्ष उसने 1200 निगरानी केन्द्रों की मार्फत जांच की है। इससे बड़ा धोखा और जनता के साथ मजाक दूसरा नहीं हो सकता। नाको कह रही है कि पिछले एक वर्ष में 30 लाख लोग एड्स मुक्त हो गए। यह कैसे संभव है? क्या ये लोग मर गए या उसका इलाज करके उनको ठीक कर दिया गया ? मरे नहीं है, क्योंकि ऐसा कोई आकडा उपलब्ध नहीं हैं और इलाज भी नहीं हुआ क्योंकि अस्पतालों में ऐसे इलाज का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। तो क्या ‘जानलेवा’ मानी जाने वाली एड्स अपने आप देश से भाग गई ?
# दरअसल , हुआ यह कि एड्स को लेकर नाको और यूएन एड्स ने 2006 में जो भारत में 57 लाख एड्स पीडि़तों का आकडा प्रकाशित किया था वह एक बहुत बड़ा फरेब था। क्योंकि अगर इतने लोगों को एड्स हुई होती तो अब तब लाखों लोग एड्स से मर चुके होते। लोग मरे नहीं क्योंकि उन्हें एड्स हुई ही नहीं थी और अपनी इसी साजिश को छिपाने के लिए अब नाको ने यह नया आकडा पेश किया है।
# जिस देश में 80 फीसदी बीमारियां पीने का स्वच्छ पानी न मिलने के कारण होती हों, उस देश में पानी की समस्या पर ध्यान न देकर एड्स जैसी भ्रामक, आयातित, विदेशी व वैज्ञानिक रूप से आधारहीन बीमारी का ढोंग रचकर जनता के साथ धोखाधडी की जा रही है। जिसके खिलाफ हर समझदार नागरिक को आवाज उठानी चाहिए।
# कंडोम छोड़कर प्राकृतिक नियोजन अपनाओ।
कंडोम बेशक भोगवादियों,आपके लिए फायदेमंद होता है। ये आपको यौन संचारित रोग और अनचाहे गर्भधारण के खतरों से बचाने में मदद करता है। लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है।
1) लेटेक्स एलर्जी (Latex allergy)- अधिकांश कंडोम लेटेक्स के बने होते हैं। ये एक तरल पदार्थ है, जो रबर के पेड़ से प्राप्त होता है। दी अमेरिकन अकैडमी ऑफ़ एलर्जी अस्थमा एंड म्यूनोलॉजी के अनुसार, कुछ लोगों में रबर में प्रोटीन होने की वजह से एलर्जी के लक्षण देखे गए हैं। लेटेक्स एलर्जी के लक्षणों में छींक आना, नाक का बहना, पित्ती, खुजली, घरघराहट, सूजन और चक्कर आना शामिल हैं। कई मामलों में लेटेक्स एलर्जी से ऐनफलैक्सिस (anaphylaxis) का खतरा हो सकता है। इसलिए ऐसे लोग सिंथेटिक कंडोम का इस्तेमाल करें।
2) यौन संचारित रोगों का खतरा- बेशक कंडोम से एचआईवी और क्लैमाइडिया, सूजाक और एचपीवी जैसे अन्य रोगों के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। लेकिन इससे यौन संचारित रोगों का खतरा रहता है। क्योंकि ये बाहरी स्किन को सुरक्षित नहीं रख पाता है, जिससे खुजली और इन्फेक्शन का खतरा रहता है। दी अमेरिकन सोशल हेल्थ एसोसिएशन के अनुसार, कंडोम जननांग दाद के खतरे को कम कर सकता है लेकिन ये स्किन के हर हिस्से की सुरक्षा नहीं कर सकता, जिससे यौन संचारित रोगों का खतरा रहता है।
3) गर्भावस्था जोखिम- कंडोम के सही इस्तेमाल से 98 फ़ीसदी सुरक्षा तो मिलती है लेकिन इसके अनुचित उपयोग से 100 में से 15 महिलाओं को गर्भावस्था जोखिम रहता है। इसलिए इसका इस्तेमाल सही तरह से करना बहुत ज़रूरी है। एक्सपायरी कंडोम का इस्तेमाल भूलकर भी न करें।
4) पार्टनर की हेल्थ को खतरा हो सकता है-डलास, टेक्सास दो डॉक्टरों का दावा है कि मेल कंडोम से महिला में कैंसर पैदा हो सकता है। इनके अनुसार, कंडोम पर पाउडर और लुब्रिकेंट का इस्तेमाल किया जाता है। कई अध्ययन के अनुसार पाउडर से ओवेरियन कैंसर का खतरा होता है और फैलोपियन ट्यूब पर फाइब्रोसिस महिला को बांझ बन सकता है। जर्नल ऑफ़ दी अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार, अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने सर्जिकल ग्लव्स पर पाउडर के खतरे को देखते हुए इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, लेकिन कंडोम के मामले में ये जारी है।
डा.मधुसूदन उपाध्याय
लखनऊ
एड्स दिवस 2017

गुरुवार, नवंबर 30, 2017

ये बड़े षड्यंत्र के तहत भरा गया है ताकि हिन्दू समाज रहे ही न, जातियों में बंटकर हमेशा कमजोर बना रहे

Upendra Vishwanath
भीष्म क्षत्रिये थे, तो उनके भाई वेद व्यास ब्राह्मण कैसे, इसे समझना है बहुत जरुरी !
इस्लामिक हमलावरों, फिर अंग्रेजो और फिर अब सेकुलरों और वामपंथियों ने मिलकर हिन्दू समाज और भारत को बर्बाद किया है, इन लोगों ने हिन्दुओ में जातिवाद भरा है, और ये बड़े षड्यंत्र के तहत भरा गया है ताकि हिन्दू समाज रहे ही न, जातियों में बंटकर हमेशा कमजोर बना रहे
अब हिन्दू एकजुट रहेगा तो हिन्दू ही जीतेगा, पर हिन्दुओ को जातियों में तोडा जायेगा तभी तो दुश्मनो के लिए रास्ता खुलेगा, स्कोप बनेगा, उदाहरण के तौर पर गुजरात, हिन्दू एकजुट रहे तो कांग्रेस का कोई स्कोप नहीं, जहाँ हिन्दू टुटा वहीँ कांग्रेस का स्कोप शुरू
अब हम आपको इतिहास के कुछ उदाहरण देते है जिसपर आप गौर कीजिये, दशरथ और विश्वामित्र भाई लगते थे, जी हां, विश्वामित्र भी एक राजा ही थे, आधी उम्र वो क्षत्रिय ही थे, पर आज हम विश्वामित्र को ब्राह्मण कहते है, वो ऋषि हो गए, कैसे ? भला कोई क्षत्रिये बाद में ब्राह्मण कैसे हो सकता है
अब दूसरा उदाहरण देखिये, वेद व्यास जिन्होंने महाभारत श्री गणेश के हाथों से लिखवाई, वो ब्राह्मण है, पर उनके भाई भीष्म क्षत्रिय, जी हां वेद व्यास और भीष्म जिनका असली नाम देवव्रत था, वो दोनों ही भाई थे, पर एक भाई ब्राह्मण और दूसरा क्षत्रिये, ऐसा कैसे ?
और उदारहण लीजिये, एकलव्य आदिवासी बालक था, पर आगे चलकर सेनापति बना, और क्षत्रिये कहलाया, कर्ण शूद्र के घर में बड़े हुए, पर आगे चलकर राजा बने और वो भी क्षत्रिये कहलाये, भैया ये सब इसलिए क्यूंकि जाति व्यवस्था कर्म के आधार पर बनाई गयी थी, हमारे पूर्वजो ने कर्म के आधार पर ये व्यवस्था बनाई थी , पर समाज द्रोहियों ने जाति को धर्म के आधार पर घोषित कर दिया
हनुमान और भीम दोनों पवन पुत्र होने के नाते भाई थे बेशक काल अलग रहा हो l
विश्वामित्र क्षत्रिये तबतक थे जबतक वो क्षत्रिये कर्म करते थे, जब उन्होंने पूजा पाठ शुरू कर दिया, लोगों को शिक्षा देना शुरू कर दिया तो वो ब्राह्मण हो गए, और आज हम विश्वामित्र को ब्राह्मण ही कहते है, उन्होने अपना काम, अपना कर्म बदला और उनकी जाति भी बदल गयी, जाति कर्म के आधार पर होती है जन्म के आधार पर नहीं, इसलिए समाज को जाति का भेद छोड़ कर एकजुट रहना चाहिए, ताकि समाज ताकतवर बना रहे

रविवार, नवंबर 26, 2017

भन्साली पॅटर्न

पधारो म्हारे देश
भन्साली पॅटर्न
ये सारा कहाँ से शुरू हुआ है, पता है? भन्साली का पैटर्न समझ लें आप!
रामलीला
पहले उसने फिल्म का नाम रखा था 'रामलीला'! बाद में बवाल मचने पर बदल कर 'गोलियों की रासलीला रामलीला' रख दिया। मूल नाम और बदल कर रखे नाम दोनों में ही मक्कारी साफ झलकती है।
फिल्म का नाम कुछ और भी तो रखा जा सकता था। यह जिस कदर ठेठ मसाला (या गोबर) फिल्म थी, अस्सी या नब्बे के दशक की किसी भी फिल्म का नाम इसके लिए चल जाता, जैसे कि आज का गुंडाराज, खून भरी मांग, खून और प्यार... कुछ भी चल जाता! लेकिन नामकरण हुआ 'राम लीला'। भारत का सामूहिक आराध्य दैवत कौन है? राजाधिराज रामचंद्र महाराज। तो उसपर ही हमला किया जाए, जिस पर आपको गर्व हो! आप जिसे पूजते हो, आप जिनका का आदर्श के तौर पर अनुसरण करने की कोशिश कर रहे हो, उसी श्रद्धा स्थान पर हमला किया जाए!
राम भक्ति करते हो? राम मंदिर बनाना चाहते हो? रुको! एक दो कौड़ी का भांड़ और उससे भी टुच्ची एक नचनिया लेकर मैं एक निहायत बकवास फिल्म बनाऊँगा, और नाम रखूँगा 'रामलीला'! आप कौन होते हो आक्षेप लेनेवाले? अपमान? इसमें कहाँ किसी का अपमान है? यह फिल्म के नायक का नाम है। लीला नामक नायिका के साथ रचाई गई उसकी लीलाएँ दिखाई जाएगी, तो 'रामलीला' नाम गलत कैसे हुआ भाई?
वैसे नाम बदलते हुए भी क्या शातिर खेल खेला गया है, जानते हैं? 'गोलीयों की रासलीला रामलीला' यह बदला हुआ नाम है। रासलीला यह शब्द किससे संबंधित है? भगवान श्रीकृष्णसे। देखा? रामलीला नाम रख एक गालपर तमाचा जड़ा गया। और उसका नपुंसक, क्षीण विरोध देख भन्साली ने भाँप लिया कि यहाँ और भी गुंजाइश है, और बदले हुए नाम से उसने आप के दूसरे गाल पर और पाँच उंगलियों के निशान जड़ दिए!
एक बेकार-से फिल्म के नाम के साथ खिलवाड़ कर उसने आप को यह बताया है कि आप कितने डरपोक हैं। आप के विरोध का संज्ञान लेते हुए फिल्म का नाम बदलते हुए भी वह आप का अपमान करने से नहीं चूका। और आप ने उसी फिल्म को हिट बनाया! निरे बुद्धू हो आप!
बाजीराव-मस्तानी
हिंदूंओंपर हमले को एक फिल्म में अंजाम देने के बाद अगला पड़ाव था मराठी माणूस. मराठी समाज को तोड़ने की कोशिशें एक लंबे समय से जारी है। अस्सी के दशक से ही यह काम चल रहा है। और जो तरकीबें हिंदुओं का अपमान करने के लिए प्रयुक्त होती है, उनमें एक महत्त्वपूर्ण बदलाव ला कर मराठी समाज में भेदभाव के बीज बोने के काम में लाया जाता है। मराठा, दलित और ब्राह्मण इनको यदि आपस में भिडाए रखो, तो मराठी इन्सान की क्या बिसात कि वह उभर कर सामने आए!
सनद रहे, इन तीन वर्गों में बड़ा भारी अंतर है। दलितों का, उनके नेताओं का या फिर उनके प्रतीकों का अपमान होने का शक ही काफी है किसी को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए! महाराष्ट्र में दलित उत्पीड़न प्रतिबंधन कानून के तहत पुलिस कंप्लेंट हो तो पुलिस तत्काल धर लेती है। बेल नहीं होती, बंदा लंबे समय तक जेल की हवा खाता है। प्रदर्शन और हिंसा की संभावना अलग से होती है। मराठा समाज स्थानिक दबंग क्षत्रिय जाति है। उसके प्रतीकों को ठेस पहुंचाओ तो संभाजी ब्रिगेड जैसे उत्पाती संगठनों के आतंक का सामना करना पड़ता है।
तो फिर जिनके प्रतीकों और आदरणीय व्यक्तित्वों पर आसानी से हमला किया जा सकता है, घटिया से घटियातर फिल्म उनके श्रद्धास्थान के बारे में बनाने पर भी जो पलटवार तो क्या, निषेध का एक अक्षर तक नहीं कहेंगे, ऐसा कौन है? सबसे बढ़िया सॉफ्ट टार्गेट कौन? ब्राह्मण।
आपके सबसे पराक्रमी पुरुष कौन? इस पर दो राय हो सकती है। उन पर्यायों में आप को जिसके बारे में जानकारी कम है, लेकिन जिसका साहस और पराक्रम अतुलनीय आहे ऐसे किरदार का चुनाव मैं करूँगा। श्रीमंत बाजीराव पेशवा और उनका पराक्रम मैं इस तरह बचकाना दिखाऊँगा कि रजनीकांत की मारधाड़ की स्टाइल भी मात खा जाए! एक आदमी तीरों की बौछार को काटता हुआ निकल जाए, ऐसा सुपरमैन! दिखाऊँगा कि मस्तानीके प्यार में पागल बाजीराव अकेले ही शत्रु सेना से भिड़ जाता है।
बाजीराव इश्क में पागल हो सारा राजपाट छोडनेवाला, और सनकी योद्धा था, ऐसे मैं दिखाऊँगा, ताकि पालखेड़ के संघर्ष में बगैर किसी के उंगली भी उठाए, बगैर किसी युद्ध के निजाम शाह को शरण आने पर मजबूर करने वाली उसकी राजनीतिक सूझबूझ दिखाने की जरूरत न पडे! लगातार 40 युद्धों में अजेय कैसे रहे, कितनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया, मस्तानी का साथ कितने वर्षों का रहा... दिखाना जरूरी नहीं होगा। निजाम शेर के सिर पर हाथ फेरते हुए दिखाया जाएगा, और बाजीराव उससे बात करने के लिए किसी याचक की तरह पानी में से चलते हुए सामने खडा दिखाया जाएगा! बाजीराव की माँ पागलपन का दौरा पडी विधवा दिखाई जाएगी। वस्तुतः लगभग अपाहिज पत्नी को हल्की औरत की तरह नचाया जाएगा।
बाजीराव खुद मानसिक रूप से असंतुलित और उनके पुत्र नानासाहब दुष्ट और दुर्व्यवहारी दिखाए जाएँगे....
आप क्या कर लोगे? बस, केवल कुछ प्रदर्शन? खूब कीजिए! मैं घर पर बैठे हुए टीवी पर उनका मजा लूँगा। एक सिनेमा हॉल में प्रदर्शन रोकने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हाँ, आप के दोनों गालों पर तमाचे जड़ने और पिछवाड़े में एक लात लगाने के पैसे मुझे कबके मिल चुके हैं। देखो, सोशल मीडिया पर एक जाति दूसरीसे कैसे भिडी हुई है!
मैंने आप की कुलीन स्त्रियों को पर्दे पर नहलाया। उनको मनमर्जी नचाया। दालचावल खानेवाले डरपोक लोग हो आप! ब्राह्मणवाद का ठप्पा लगाकर मुझे हिंदुओं को अपमानित करना था, सो कर लिया! ठीक वैसे ही, जैसे और लोग करते हैं। हा हा हा.
पद्मिनी
अब अगला पडाव दूसरी पराक्रमी जाति, राजपूत! आपके आराध्य को चिढ़ाना हो चुका, और जातियों को आपस में लड़ाना हो चुका। अब अगला पायदान चढते हैं। आप की आदरणीय स्त्रियों पर हमला! शत्रु की स्त्रियों का शीलभंग, उनकी इज़्ज़त लूटकर उन्हें भ्रष्ट करना किसी भी युद्ध का अविभाज्य अंग होता है। तो फिल्मों के माध्यम से एक मानसशास्त्रीय युद्ध के दौरान इसे क्यों वर्जित माना जाए?
अनगिनत औरतों की अस्मत लूटनेवाले अल्लाउद्दीन खिलजी ने जब चित्तौड़गढ़ पर हमला किया और चित्तौड़गढ़ के पराजय के आसार दिखाई देने लगे तब शत्रुस्पर्श तो दूर, अपना एक नाखून तक उनके नजर न आएँ, इस सोच के साथ हजारों... हाँ, हजारों राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर की आग में कूद कर जान देनेवाली महारानी पद्मिनी से बढकर अपमान करने लायक और कौन स्त्री हो सकती है?
अरे, आपने दो थप्पड़ जड़ दिए, कैमरा तोड़ दिया, मेरे क्रू से मारपीट की। बस्स! इससे अधिक क्या कर लोगे? मुझे इसके पूरे पैसे मिले हैं, मिलेंगे। मेरी जेब पप्पू जैसी फटी नहीं है। आप राजस्थान में लोकेशन पर मना करोगे तो जैसे बाजीराव मस्तानी में किया वैसे कम्प्यूटर से आभासी राजस्थानी महल बनाऊँगा, और हर हाल में यह फिल्म बनाऊँगा, आपकी छाती पर साँप लोटते हुए देखूँगा। और देख लेना, आप ही मेरी इस फिल्म को हिट बनाएंगे!
क्यों, पता है? आप डरपोक हो। खुदगर्ज हो। प्रत्यक्ष भगवान राम के लिए कोई उठ खड़ा नहीं हुआ। बाजीराव के समय लोग ब्राह्मण और मराठी समाज के पक्ष में खड़े नहीं हुए। अबकी देखूँगा, राजपूतों के साथ कौन, और कैसे खड़े होते हो!
क्या उखाड़ लोगे?
?
# पद्मिनी

ब्राह्मणवाद, मनुवाद तो बहाना है; असली मकसद हिन्दू धर्म को मिटाना है ।

नफरत सिर्फ ब्राह्मणों के खिलाफ क्यों फैलाई जाती है ? नफरत यादव, सुनार, धोबी, कुम्हार, कुशवाहा या बाकी जातियों के खिलाफ क्यों नहीं फैली ? ये एक वाजिब प्रश्न है । सुनिए जरा...
अगर आप यादव से नफरत करेंगे तो उससे दूध लेना बंद कर देंगे; पर फिर भी हिन्दू रहेंगे, अगर आप सुनार से नफरत करेंगे तो उससे आभूषण बनवाना बंद कर देंगे; पर फिर भी आप हिन्दू रहेंगे, अगर आप धोबी, कुशवाहा ,कुम्हार से नफरत करेंगे तो कपड़े धुलवाना ,सब्जी लेना,और बर्तन खरीदना बंद कर देंगे; पर फिर भी आप हिन्दू रहेंगे ।
पर अगर आप ब्राह्मण से नफरत करेंगे तो आप सभी धार्मिक रस्मों जैसे कि जन्म, शादी, मृत्यु , गृह पूजन ,इत्यादि के लिए उसके पास जाना बंद कर देंगे और जब आपको इन सभी रस्मों को करवाने की जरुरत पड़ेगी तब आप क्या करेंगे ? तब ये सब रस्में आकर चर्च का पादरी करेगा, आगे समझिये
ब्राह्मणों से नफरत करना यानी Anti-Brahminism, 2000 साल पुराने "जोशुआ" प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसका एजेंडा पूरे हिंदुस्तान को ईसाई व मुस्लिम मुल्क बनाना है । हिंदुओं का धर्मान्तरण तब तक नहीं हो सकता जब तक वे ब्राह्मणों के संपर्क में है
अभी सभी हिन्दुओ के खिलाफ इन्होने जिहाद छेड़ दिया, सभी हिन्दू को गाली देने लगे तो सभी हिन्दू एक हो जायेगा और इनको तबाह कर देगा, तो इन्होने जेशुआ प्रोजेक्ट बनाया जिसके तहत हिन्दू जातियों में ब्राह्मणों के लिए इतनी नफरत बढ़ाओ की अन्य हिन्दू ब्राह्मणों के पास किसी भी काम के लिए जाना बंद कर दें और धर्मान्तरण के दरवाजे खुल जाएं ।
सबसे पहले ईसाई मिशनरी Robert Caldwell ने आर्यन-द्रविड़ियन थ्योरी बनाई ताकि दक्षिण भारतीयों को अलग पहचान देकर धर्मान्तरण किया जाए, जिसमे उत्तर भारतीयों को ब्राह्मण आर्यन दिखाया गया, इनकी एजेंडा यहां खत्म नहीं हुआ । इसके बाद दूसरे मिशनरी और संस्कृत विद्वान John Muir ने मनुस्मृति को एडिट किया, इसमें वामपंथियों ने मदद की
ब्राह्मण विरोध, सनातन विरोध का ही छद्म नाम है। क्योंकि ब्राह्मणवाद, मनुवाद तो बहाना है; असली मकसद हिन्दू धर्म को मिटाना है ।

कान्वेंट आधुनिकता , अन्धविश्वास

"यू नो हमारा सोफिया कान्वेंट पुराने कब्रिस्तान के पास था , वहां पर घोस्ट आते थे. बट सिस्टर्स होली वाटर छिड़कती थीं इसलिए वो घोस्ट्स किसी को परेशान नहीं कर पाते थे."
मेरे साथ पार्टी में बैठी एक लड़की सबको बता रही थी.
सेंट एंजेला सोफ़िया.. शहर का सबसे हाईफाई और क्लासिक माना जाने वाला स्कूल.
मुझे अफ़सोस हुआ. अपन तो पिछड़े ही रह गए! ना कभी घोस्ट दिखा, ना होली वाटर छिड़का गया
डेविल, घोस्ट और ब्लैक स्पिरिट्स सिखाकर वह कान्वेंट आधुनिक शिक्षा दे रहा था जबकि हम विद्यामंदिर में योग, ध्यान और वैदिक गणित सीखकर अंधविश्वासी बन गए
यह अफ़सोस तब और टीस मारने लगा जब पता चला कि वेटिकन ने २ भारतीय मिशनरियों को 'सेंट' की उपाधि दी है. सेंट बनना है तो 'चमत्कार' करके दिखाने होते हैं. तो दिख गए 'चमत्कार' और गदगद हो गया मीडिया ! अहा... क्या घनघोर वैज्ञानिकता !!!!
उधर हमारी 'अंधविश्वासी' शिक्षा मंत्री जी ज्योतिष से भेंट कर बवाल मचा आईं. अरे भई ज्योतिष के पास क्यों गईं? टैरो रीडर के पास जातीं तो मॉडर्निटी में 4 चांद और जड़ा आती !
अब क्या है ना... अपन भारतीयों के पूर्वज तो ठहरे किसान ! उनको कार्ड खींचने जैसे 'वैज्ञानिक' तरीके अपनाकर रिलेशनशिप स्टेटस जैसे 'इम्पोर्टेन्ट' पॉइंट्स थोड़ी ना जानने थे ?
उन्हें चिंता थी... मानसून कब आएगा? धूप कब खिलेगी? फसल कब बोएं, कब काटें?
पिछड़े लोग, पिछड़ी समस्याएँ... यू नो !
तो इसीलिए कुछ लोग... जिन्हें ज्योतिषी कहा गया, वे ज्योतिपुंजों : तारे, नक्षत्र और ग्रहों के स्थिति देखकर आने वाली खगोलीय घटनाओं और मौसम का सटीक अनुमान लगाते थे. और इस तरह वो 'अंधविश्वासी' पूर्वज ज्योतिषी 5000 पंचांग बना गए. प्रत्येक अक्षांश-देशांतर के हिसाब से अलग-अलग ! बावले थे ! एक-एक पल का हिसाब रख दिन बदलते थे ताकि पंचांग पृथ्वी के घूर्णन-परिक्रमण के साथ बराबर चलता रहे.
हमारे 'आधुनिक' बुद्धिजीवी इसकी व्याख्या करें तो वो आपको बताएँगे-
"प्राचीन भारत के लोग इतने अंधविश्वासी थे कि वे डरते थे कि कहीं नक्षत्रों की चाल के हिसाब में गड़बड़ी से नक्षत्र नाराज़ ना हो जाएँ. इसी अन्धविश्वास के चलते वे घंटे-मिनट की बजाय एक-एक क्षण का हिसाब रखते थे."
खैर, देर आयद , दुरुस्त आयद!
तो हमने भी 'वैज्ञानिक' ग्रेगोरियन कैलेंडर के लिए अपने 'अंधविश्वासी' पंचांग ताक पर धर दिए हैं.
अब हमें क्या फर्क पड़ता है अगर ग्रेगोरियन कैलेंडर पृथ्वी के परिक्रमण काल से मेल नहीं खाता? क्या हुआ जो बेचारा मानसून भी 'श्रावण-भाद्रपद' वाला पंचाग देखकर ही बरसने को आता है और हमारे आधुनिक कृषि विज्ञानी 'जून से सितम्बर' के चक्कर में फसलें बर्बाद कर बैठते हैं?
पल-पल की गिनती करने के लिए हम कोई अंधविश्वासी थोड़ी ना हैं !
भई, भाटा बुद्धि को कितनी आसानी होती है ग्रेगोरियन तारीखें गिनने में... रात को 12 बजे तारीखें बदलो और दोस्त को 'हैप्पी बड्डे टू यू' करके सो जाओ.
होय हजारों टन फसल बर्बाद,हमारी बला से!
वैज्ञानिक सोच मुबारक हो !
साभार
तनया प्रफुल्ल गड़करी

*हिन्दू हितो की बात करने वाला पत्रकार रोहित सरदाना मुसीबत में...*

*हिन्दू हितो की बात करने वाला पत्रकार रोहित सरदाना मुसीबत में...* सरदाना के विरूध भी कमलेश तिवारी की। तरह प्रदर्शनो व पुलिस रिपोर्ट की शुरूवात हो चुकी है... और हिन्दू शांत बैठे है...ऐसे मे क्या होगा... अगर हिन्दू साथ नही देंगे तो रोहित सरदाना सा मन टूट जायेगा...
हरियाणा के कुरुक्षेत्र का रहने वाला ये छोटे कद का राष्ट्रवादी पत्रकार (बिरादरी से शायद जाट) जिहादियों से घिरा पड़ा है...
आप में से बहुत से लोग इन्हें देखते और सराहते आए हैं, रोहित के कट्टर राष्ट्रवादी रवैये की वजह से उन्हें रवीश कुमार जैसे वामपंथी एजेंडाबाज़ पत्रकार संघ और भाजपा का प्रवक्ता भी कह देते हैं...
खैर वो तो चलन हो गया है आजकल कि भारत देश की बात करने वाला, मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करने वाला, भारत स्वाभिमान का समर्थन करने वाला, विदेशी चीज़ों की जगह स्वदेशी की वकालत करने वाला, देश विरोधी ताकतों की चाटुकारिता ना करने वाला हर व्यक्ति संघ और भाजपा से जोड़ दिया जाता है...
चलो अच्छा है, चरण चाटुकार होने से भाजपाई/संघी होना लाख गुणा बेहतर है...
छोड़िए
मुद्दे की बात ये है कि गोवा में चल रहे फ़िल्म फैस्टिवल में दक्षिण भारत से आई एक फ़िल्म " सै#$ दुर्गा" को भारत सरकार ने बैन कर दिया...
इस फ़िल्म का पूरा नाम आप सभी जानते होंगे पर मैं अपनी आराध्य देवी शक्ति के लिए इस प्रकार का शब्द प्रयोग नहीं कर सकता...
तो बात ये है कि रोहित सरदाना ने सरकार के इस फैसले का समर्थन करते हुए कह दिया कि इस देश में सैक्सी दुर्गा जैसा ही नाम क्यों दिया जाता है? कोई सैक्सी आयशा या सैक्सी फातिमा नाम क्यो नही रखा जाता.?
बस यहीं से आग लग गई...
आठ दस मुकद्दमे हो चुके हैं अगले के विरुद्ध, और इससे भी मन ना भरा तो रोहित और उनके परिवार को देश विदेश से फ़ोन करके धमकियाँ दी जा रही हैं गाली गलौज की जा रही है...
जिन नंबरों से कॉल आ रही हैं वो नंबर रोहित सरदाना सार्वजनिक भी कर चुके हैं फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से, आगे की कहानी मैंने सुनी है कि रोहित के विरुद्ध ईशनिंदा (पता नहीं कौनसा ईश है) के तहत और प्रदर्शन होने वाले हैं...
अब ये हमें देखना है कि जाट, राजपूत, बनिया, यादव, गुर्जर, ब्राहमण बनकर एक दूसरे को सीना फुला कर दिखाने वाले हम जातिवादी एक सच्चे राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ खड़े होते हैं या नहीं...
आह्वान करता हूँ अपने युवा मित्रों का मैं कि इस रोहित सरदाना का साथ आप आज दो वरना याद रखना ये इक्के दुक्के लोग ही बचे हैं जो आपकी और मेरी आवाज़ उठाते हैं...
इनकी आवाज़ नहीं दबने देंगे हम, ये हमारी आवाज़ है...
मैं हर तरह से रोहित सरदाना के साथ हूँ
*भारत माता की जय*
*सनातन धर्म की जय*

बुधवार, नवंबर 22, 2017

छिल्लर ने कह दिया कि मां को मातृत्व और उसकी ममता का मूल्य सैलरी में मिलना चाहिए

दिनेश कुमार प्रजापति
# नोटबंदी , # चिल्लर और # छिल्लर
तो मानुषी छिल्लर को मिल गया ताज और आप लहालोट हो उछलने लगे। छिल्लर ने कह दिया कि मां को मातृत्व और उसकी ममता का मूल्य सैलरी में मिलना चाहिए और आपको यह बड़ी अच्छी बात लगी। कसम से आपकी क्यूटनेस को नमन रहेगा।
# अब जरा पिछले पंद्रह दिनों के घटनाओं पर नजर डालिए। मूडीस(टाम मूडी नहीं)भारत की रेटिंग को Baa2 से Baa3 करता है। ईज आफ बिजनेस डूइंग की रैंक में भारत सौ देशों की श्रेणी में आ जाता है और तभी छिल्लर विश्व सुन्दरी बन जाती हैं।
कई वर्ष पहले भारत सुन्दरी इन्द्राणी रहमान ने विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता के दौरान स्वीमिंग सूट पहनने से इनकार कर दिया था। परिणामतः इन्द्राणी रहमान विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता के दौर से बाहर कर दी गयीं।
# हमारी संस्कृति में सौदर्य बोध के साथ गहरे पवित्रता का भाव जुड़ा है। दीदारगंज की यक्षी का मूर्ति शिल्प हो या मोनालिसा की मुस्कान का चित्र, दोनों ही स्त्री-सौन्दर्य के उच्चतम प्रतिमान हैं। सौन्दर्य के प्रतिमानों के साथ पवित्रता का रिश्ता जुड़ा है प्रतियोगिता का नहीं।
# मानव का आदिम चित्त भेद नहीं करता है। कुरूपता एवं सौन्दर्य में कोई विभाजक रेखा नहीं खींचता है परन्तु आज का मानव चित्त जिसे कुरूप कहता है, आदिम चित्त उसे भी प्रेम करता था। आज हमने विभाजक रेखा खींच कर एक ऐसी बड़ी गलती की है जिसके चलते हम कुरूप को प्रेम नहीं कर पाते क्योंकि वह सुन्दर नहीं, दूसरी ओर हम जिसे सुन्दर समझते हैं, वह दो दिन बाद सुन्दर नहीं रह जाता है। परिचय से, परिचित होते ही सौन्दर्य का जो अपरिचित रस था, वह खो जाता है। सौन्दर्य का जो अपरिचित आकर्षण या आमंत्रण है, वह विलीन हो जाता है। इसी सौन्दर्य को विलीन होने से बचाने के लिए हमने मेकअप की शुरूआत की। मेकअप ओर मेकअप की पूरी धारणा बुनियादी रूप से पाखंड है क्योंकि स्वाभाविक सुन्दरता को किसी बनावट की जरूरत नहीं होती। फिर भी मेकअप का सामान बनाने वाली विश्व की दो बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां ‘यूनीलिवर’ एवं ‘रेवलाॅन/
प्राक्टर एं गैम्बिल’, ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस वल्र्ड’ नामक सौन्दर्य के विश्वव्यापी उत्सव करती है। इन प्रतियोगिताओं की राजनीति समझने की जरूरत है।
# कुछ घटनाओं पर सिलसिलेवार नजर डालें
१)सोवियत संघ के विघटन के तुरन्त बाद रूस की एक लड़की को विश्व सुन्दरी के खिताब से नवाजा गया।
२)1992-93 में जमैका ने जब उदारीकरण की घोषणा की तो उसी वर्ष जमैका की लिमहाना को विश्व सुन्दरी घोषित कर दिया गया।
३)बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को व्यापार की छूट देने के साथ ही वेनेजुएला को 1970 से आज तक ‘मिस वल्र्ड’, ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस फोटोजेनिक’ के तीस से अधिक खिलाब मिल चुके हैं।
४)दक्षिण अफ्रीका की स्वाधीनता के बाद राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमंत्रण देने के पुरस्कार स्वरूप वास्तसाने जूलिया को ‘रनर विश्व सुन्दरी’ बनाया गया।
५(विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्र्रीय मुद्राकोष के निर्देशों के तहत ढांचागत समायोजन का कार्यक्रम संचालित कर रहे क्रोएशिया और जिम्बाव्वे की लड़कियों को भी चौथा और पांचवा स्थान इन विश्वव्यापी सौन्दर्य उत्सवों में मिला।
६)1966 में जब इन्दिरा गांधी के रुपये का 33 फीसदी अवमूल्यन किया तो उसी वर्ष भारत की रीता फारिया विश्व सुन्दरी बन बैठी।
७)मनमोहन सिंह द्वारा उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में चलाये जा रहे ढांचागत समायोजन के कार्यक्रमों का परिणाम हुआ कि 27 वर्ष बाद भारत के खाते में ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस वल्र्ड’ दोनों खिताब दर्ज हो गये। फिर भी 97 मंे मुरादाबाद की डायना हेन ‘मिस वलर््ड’ के ताज की हकदार हो गयीं।
८)सौन्दर्य प्रसाधन बनाने वाली ‘रेवलाॅन’ 'लैक्मे' और ‘यूनीलीवर’ कम्पनियां विजेताओं को वर्ष भर खास किस्म के कब्जे में रखती हैं। वे कहां जायेंगी ? क्या बोलेंगीं ? क्या पहनेंगी ? सभी कुछ वर्ष भर तक ये प्रायोजित कम्पनियां ही तय करती हैं।
९)1966 में विश्व सुन्दरी खिताब प्राप्त भारत की रीता फारिया को अमरीका-वियतनाम युद्ध के समय प्रायोजित कम्पनी में अमरीकी सैनिकों का मनोरंजन करने के लिए वियतनाम भेजा था।
१०)ये कम्पनियां यह बेहतर ढंग से समती हैं कि विवाहित स्त्री का सौन्दर्य परोसने योग्य नहीं होता है इसलिए विजेताओं पर यह कठोर प्रतिबन्ध होता है कि ये वर्ष भर विवाह नहीं कर सकती हैं।
# उत्पाद बनने के लिये स्वतः तैयार नारी देह के सौन्दर्य अर्थशास्त्र का विस्तार इन विश्वव्यापी उत्सवों से निकलकर हमारे देश के गली, मुहे, शहरों, विद्यालय और विश्वविद्यालयों तक पांव पसार चुका है।
# भूमंलीकरण और भौतिकवाद के इस काल में स्त्री देह का उत्पाद या विज्ञापन बन जाना, उस नजरिये का विस्तार है, जिसमें स्त्री अपने लिये खुद बाजार तलाश रही है। विद्रूप बाजार में येन-के न-प्रकारेण अपना स्थान बना लेना चाहती है। उसे अपने स्थान बनाने की ‘अवसर लागत’ नहीं पता है। वह कहती है कि उसे यह तय करने का समय नहीं मिल पा रहा है कि किन-किन कीमतों पर क्या-क्या वह अर्जित कर रही है ?
#‘फायर’ का प्रदर्शन वह अपने दमित इच्छाओं का विस्तार स्वीकारती है जिसके सामने पहले प्रेम निरुद्ध फिर विवाह के बाद प्रेम की वर्जना थी और अब ‘इस्टेंट लव’ के फैशन की खास और खुली स्वीकृति।
# पश्चिम के लिए विकृतियां ही सुखद प्रतीत होती है क्योंकि उनके लिए जीवन का सौन्दर्य अपरिचित हैं। भारत की अस्मिता और गरिमा भी इसलिये रही क्योंकि हमने अभ्यान्तर सौन्दर्य एवं शुद्धता को उसके पूरे विज्ञान को विकसित किया है।
# हमारा सौन्दर्य सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् है। हमारा सत्यम् अनुभव है, शिवम् है - कृत्य, वह कृत्य जो इस अनुभव से निकलता है और सौन्दर्य है उस व्यक्ति की चेतना का खिलना जिसने सत्य का अनुभव कर लिया है। मांग और पूर्ति के अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त बाजारवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं/ उत्पादों का मूल्य तय करते हैं। स्त्री देह के प्रदर्शन, उपलब्धता की पूर्ति का विस्तार मूल्यहीनता के उस ‘वर्ज’ पर खा है जहां मांग के गौण हो जाने का गम्भीर खतरा दिखायी दे रहा है इससे स्त्री सौन्दर्य के उच्चतम प्रतिमान तो खिर ही रहे हैं सौन्दर्य के साथ पवित्रता के रिश्तों में भी दरार चौड़ी होती जा रही है।
ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, लारा दत्ता,प्रियंकि चोपड़ा,डायना हेडन कैसे बनती हैं?
# बट ग्लू का इस्तेमाल
लगभग हर बड़े ब्यूटी कॉन्टेस्ट में एक राउंड स्विमिंग सूट या बिकिनी राउंड भी होता है और इस में पहने जाने वाले कपड़े काफी छोटे होते हैं. इस राउंड में भाग लेने वाली मॉडल्स के लिए सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि अगर प्रदर्शन के दौरान उनके कपड़े हल्के से भी इधर या उधर खिसक गए तो उनके लिए बहुत अपमानजनक स्थिति हो सकती है और इसी स्थिति से बचने के लिए मॉडल्स बट ग्लू का इस्तेमाल करती है. बट ब्लू एक प्रकार की Gum होती है, जिस की पकड़ काफी मजबूत होती है और इसी की वजह से मॉडल्स बिकिनी राउंड में अपने कपड़े खिसकने से या इधर-उधर होने से बचाती है.
# यह एक खतरनाक सत्य है की ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली सभी मॉडल अपने को बढ़-चढ़कर दिखाना चाहती है और इसी ख्वाहिश के लिए यह अपना वजन तेजी से घटाती है. लेकिन अब स्लिम ब्यूटी की जगह यह बात अंडरवेट ब्यूटी तक पहुंच गई है.
अंडरवेट का मतलब होता है सेहत के लिए खतरनाक यानी कि आपका वजन आपके लंबाई के हिसाब से जितना होना चाहिए उससे कहीं ज्यादा कम जो सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक चीज है. 1930 के दौर में अमेरिका में एवरेज बीएमआई 20.8 थी, जो वैश्विक स्तर पर हेल्दी रेंज में रखी जाती है जबकि 2010 में अमेरिका में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली लड़कियों की एवरेज बीएमआई 16.9 थी। इसे अंडरवेट माना जाता है|
# विश्व सुंदरी बनने के लिए चाहिए लाखों रूपए का खर्चा
पहले माना जाता था की सुंदरता एक पैदाइशी गुण होता है लेकिन अब ब्यूटी कांटेस्ट के बढ़ते चलन ने इसे एक महंगा काम बना दिया है क्योंकि अब कम पैसों में ब्यूटी क्वीन नहीं बना जा सकता. वास्तव में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में मॉडल्स के मेकअप के ऊपर लाखों रुपया खर्च होता है जिसमें ड्रेस, मेकअप, हेयर स्टाइलिस्ट, पर्सनल ट्रेनर, कोच, ट्रांसपोर्टेशन तथा ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली फीस इत्यादि होती है, जिनका खर्चा लाखों रुपए तक बैठता है. आमतौर पर यह खर्चा ब्यूटी कॉन्टेस्ट का लेवल और देश के अनुसार अलग अलग हो सकता है.
# सौंदर्य प्रतियोगिताएं यूं तो आधुनिक जमाने की उपज है लेकिन इसके कई नियम ऐसे हैं जो कि अपने आप में एक पुरानी सोच और दकियानूसी विचार ही दर्शाते हैं जैसे ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली किसी भी मॉडल का अविवाहित होना जरूरी है. इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि उसने बच्चे को जन्म ना दिया हो. इसके अलावा सौंदर्य प्रतियोगिताओं में मिस टाइटल वाली ज्यादातर प्रतियोगिताओं में एंट्री 25-26 साल तक ही मिलती है।
तैयार रहिए बाहर तक झांकती कालर बोन हड्डियां, लाइपोसक्शन और कास्मेटिक सर्जरी की नई नई दुकानें, माडलिंग की आड़ में मुक्त देह की नुमाइशों, इनफर्टिलिटी, आत्महत्याओं और मानसिक अवसाद से घिरे नवयुवक नवयुवतियां आपका इन्तजार कर रही हैं।
# जिन चित्रों की बिना़ पर छिल्लर विश्वसुंदरी बनी हैं उन्हें यहाँ प्रदर्शित नहीं कर सकते।
छिल्लर-
# बहुत हसीन हैं तेरी आंखें
बस हया नहीं हैं इनमें।।
डा.मधुसूदन उपाध्याय
लखनऊ

मंगलवार, नवंबर 21, 2017

इतना कठोर होना ही पड़ेगा ..आप सभी को ... अन्यथा ...

Mohan Lal Bhaya
जहाँ भी चुनाव हों ....कोई भी पार्टी का प्रत्याशी हो ...
उससे ये प्रण ले ले कि जीतने के बाद पूरी कट्टरता से हिन्दू धर्म की बात करेगा ...और कार्य करेगा ....
यदि वो ऐसा प्रण करे तो उसे वोट दीजिये ...
अन्यथा पोलिंग बूथ में जाएँ अवश्य ...और कोई उम्मीदवार लायक नहीं है का बटन दबायें
...क्योंकि जो भी कट्टर भारतीय ,हिन्दू धर्म के लिए समर्पित नहीं हुआ ...वो क्या खाक जमीनी विकास कर पायेगा ...और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदासरी निभा पायेगा ..?
किसी भी नेता की लच्छेदार बैटन में न फंसे ....
आप भारत के नागरिक हैं ...हिन्दू धर्म को मानते हैं ...अपने परिवार से प्यार करते हैं ...और ये नहीं चाहते कि-
लव जिहाद में आपके परिवार की कन्यायें फंस कर अपना जीवन बर्बाद न करें ...
आपके मंदिरों के आस पास मांस मटन की दुकाने न हो ....
मंदिरों का अस्तित्व बना रहे ...
तो अब इतना कठोर होना ही पड़ेगा ..आप सभी को ...
अन्यथा ...
जैसे मलेशिया ...मुस्लिम देश बना ...
विश्व का एकमात्र देश जो खुद को " हिन्दू राष्ट्र " कहता था असज कमुनिष्ट बन गया है ...
कभी संस्कृती का केंद्र रहा पश्चिम बंगाल पूरी तरह से मुस्लिम प्रदेश बन गया है ....
आयुर्वेद , मसालों की पावन भूमि केरल ....इसाई और मुस्लिम के कब्जे में है
जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाईल नहीं काम करते ...और अन्तराष्ट्रीय काल चार्ज होता है ....
आपका शहर , प्रदेश भी ऐसा ही बना देंगे ...ये मुस्लिम और इसाई
आप अपने शहर को घुमियेगा ...
पिछले दस वर्षों में ...हिन्दू ने कितनी प्रगति की ...और मुसलमानों इसाई ने कितनी ....चाहे दूकान हो ...शो रूम हो ...या जमीने ...
खुद पता चल जायेगा ...सच ...
नमस्ते ...

जो नहीं पढ़ाया जाता

सन् 1840 में काबुल में युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी
1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये
वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड
की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000
मुगलो के मध्य हुयी थी वहा अगर राजपूत 15000
राजपूत होते तो अकबर भी आज जिन्दा नही होता
इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000
राजपूत और 40000 मुग़ल थे वही 10000 के करीब
घायल थे
और दूसरी तरफ गिररी सुमेल की लड़ाई में 15000
राजपूत 80000 तुर्को से लडे थे इस पर घबराकर में शेर
शाह सूरी ने कहा था "मुट्टी भर बाजरे(मारवाड़)
की खातिर हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता" उस
युद्ध से पहले जोधपुर महाराजा मालदेव जी नहि गए
होते तो शेर शाह ये बोलने के लिए जीवित भी नही
रहता
इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की
किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई
जाती है जिसमे हम कमजोर रहे वरना बप्पा रावल
और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर
मुगल की औरतो के गर्भ गिर जाया करते थे, रावत
रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाडा का त्याग
पढाया नही गया जिसने अपना सिर काटकर दे
दिया था, पाली के आउवा के ठाकुर खुशहाल सिंह
को नही पढाया जाता जिन्होंने एक अंग्रेज के
अफसर का सिर काटकर किले पर लडका दिया था
जिसकी याद मे आज भी वहां पर मेला लगता है।
दिलीप सिंह जूदेव का नही पढ़ाया जाता जिन्होंने
एक लाख आदिवासियों को फिर से हिन्दू बनाया
था
महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर
महाराणा प्रतापसिंह
महाराजा रामशाह सिंह तोमर
वीर राजे शिवाजी
राजा विक्रमाद्तिया
वीर पृथ्वीराजसिंह चौहान
हमीर देव चौहान
भंजिदल जडेजा
राव चंद्रसेन
वीरमदेव मेड़ता
बाप्पा रावल
नागभट प्रतिहार(पढियार)
मिहिरभोज प्रतिहार(पढियार)
राणा सांगा
राणा कुम्भा
रानी दुर्गावती
रानी पद्मनी
रानी कर्मावती
भक्तिमति मीरा मेड़तनी
वीर जयमल मेड़तिया
कुँवर शालिवाहन सिंह तोमर
वीर छत्रशाल बुंदेला
दुर्गादास राठौर
कुँवर बलभद्र सिंह तोमर
मालदेव राठौर
महाराणा राजसिंह
विरमदेव सोनिगरा
राजा भोज
राजा हर्षवर्धन बैस
बन्दा सिंह बहादुर
जैसो का नही बताया जाता
ऐसे ही हजारो योद्धा जो धर्म प्रजा और देश के
लिए कुर्बान हो गए।
वही आजादी में वीर कुंवर सिंह,आऊवा ठाकुर कुशाल
सिंह,राणा बेनीमाधव सिंह,चैनसिंह
परमार,रामप्रसादतोमर ,ठाकुर रोशन
सिंह,महावीर सिंह राठौर जैसे महान क्रांतिकारी
अंग्रेजो से लड़ते हुए शहीद हुये।।
जय हो क्षात्र धर्म की।।
जय भवानी

जाग जाओ हिंदुओं। लाल हरे सफ़ेद राक्षस सब लील रहे है

मो ने कहा पड़ोसी को लूटो, उसकी स्त्री को भोगदासी बनाओ, लूट व भोगदासियो में से बीस प्रतिशत हिस्सा मेरा। बदले में ये लो अल लाह का sanction।
और मज़हब का चोला पहने एक माफ़िया गैंग का जन्म हुआ।
१४०० साल हो गए, ना किसी शांतिदूत ने पूछा कि भगवान हारे हुए राज्य की प्रजा को लूटने की इजाज़त कैसे दे सकता है, व महिलाओं से बलात्कार की इजाज़त कैसे दे सकता है (आसमानी किताब में एक पूरी सुरा है लूट के माल व उसके बँटवारे को लेकर, व आधा दर्जन आयत है हारे हुए लोगों की महिलाओं के बलात्कार को लेकर।)
ना किसी काफ़िर ने कहा कि ऐसी घृणित किताब को भगवान की किताब मानने वाला मेरा पड़ोसी कैसे हो सकता है।
लूट और औरतो का लालच ऐसा कि मो का गैंग टिड्डी की तरह बढ़ता गया।
एक दिन भारत भी आए।
संख्या बल से जीते भी तो इतने मरें कि कभी सोचा न था।
और नगर में घुसे तो महिलाये मर चुकी होती थी, शव भी न मिलते। (मो ने शव का बलात्कार भी जायज़ बताया है।)
और धन, धन तो काफ़िर लेकर जंगलो में भाग जाते, पहाड़ों में छुप जाते।
मो का मॉडल चरमरा गया।
मो के चेलों ने tactic बदली। बोले ना लूटेंगे न बलात्कार करेंगे। जैसे हिंदू राजाओं ने राज किया राज करेंगे। टैक्स दो, नज़राना दो, व पहले जैसे ही कारोबार करो। और सूदख़ोर व मियाँ भाई की पार्ट्नरशिप का जन्म हुआ।
हिंदू elite ने ख़ुद को सुरक्षित पाया व शांतिदूतो को राज करने दिया लेकिन ग़रीब हिंदू के विरुद्ध जारी low level, random, but unceasing violence को नहीं देख पाए।
अंग्रेज़ आए। अपने साथ पादरी भी लाए। बोले धर्म बदलो। हिंदू भड़क गए व 1857 में ऐसा ठोका कि अंग्रेजो ने चुप चाप पादरियों को वापिस भेजा व शांतिदूतो की तरह ही हिंदुओं को सत्ता में भागीदार बनाया।
आया 1947. दो राक्षस महात्मा व पंडित अपने नाम के आगे लिख कर आए व हिंदू सो गए।
जाग जाओ हिंदुओं। लाल हरे सफ़ेद राक्षस सब लील रहे है
सनातन धर्म का इतना नुक़सान 700 साल में नहीं हुआ जितना पिछले 70 साल में हुआ है।
जाग जाओ हिंदुओं अब तो।