मंगलवार, अक्तूबर 19, 2021

बंग्लादेश में हिन्दू उत्पीडन

 बंग्लादेश में हिन्दू उत्पीडन

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नार्वे में एक शख्स ने तीर-कमान से कहीं हमला बोल दिया। कुल पांच लोग तत्काल मौत के शिकार हो गए। इनमें चार महिलाएं और एक पुरुष हैं। इस खबर में यह जानकारी भी आई कि एस्पन एंडरसन ब्राथेन नाम के 37 साल के इस शख्स ने कुछ ही समय पहले इस्लाम कुबूल कर लिया था।

बांग्लादेश में दुर्गा पूजा उत्सव को कई जगहों पर तहसनहस किया गया। मूर्तियां तोड़ दी गईं। मुसलमानों की अराजक भीड़ के हमलों में चार श्रद्धालु मारे गए। 22 जिलों में अर्द्धसैनिक बल तैनात करने पड़े। शेख हसीना ने कहा कि हिंदू खुद को अल्पसंख्यक न समझें। आपको इस देश का नागरिक माना जाता है।

इन घटनाओं के कुछ ही घंटों के अंदर अफगानिस्तान में एक शिया मस्जिद में धमाके में 18 लोग मारे गए। खून से लथपथ कई लोग इबादत भूलकर यहां-वहां जान बचाते नजर आए। इन घटनाओं से कुछ ही दिन पहले मस्जिद में एक ऐसे ही धमाके में 50 से ज्यादा शिया मारे जा चुके हैं।

कुछ दिन पहले कश्मीर में बाकायदा नाम और पहचान पूछकर कुछ सिख और हिंदुओं को मार डाला गया। मारने वाले बौद्ध, जैन, पारसी या सिख नहीं थे और न ही कोई हिंदू किसी रंजिश में हिसाब बराबर करने आया था। वे हत्यारे मुसलमान ही थे।

इससे पहले उत्तरप्रदेश में इफ्तखारुद्दीन नाम के एक आईएएस अफसर ने अपनी प्रशासनिक बिरादरी और इस बिरादरी में काम कर रहे दीन के पक्के अफसरों की जमकर जगहंसाई कराई। वह कमिश्नर कोठी को मजहब का कोठा बनाकर बैठ गया था और उसकी आगबबूला तकरीरें ऐसी हैं कि अभी बस चले तो पूरे मुल्क का कलमा पढ़वा दे।

ये बीते दो हफ्तों की कुछ ताजा मिसालें हैं, जिनमें समानता एकमात्र ही है। नार्वे की घटना में एक ताजा धर्मांतरित शख्स नया मजहब कुबूल करने के बाद कहीं शांति से योग या ध्यान साधना में नहीं बैठा है। वह हमला करने निकल पड़ा है और पहले ही धावे में पांच लोगों को मार डाला है। बांग्लादेश की भीड़ कुछ दशकों पुराने धर्मांतरित हैं और वे भी वैसा ही कर रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान हों या आईएस या वे बेकसूर शिया, जो दो हमलों में लगातार मारे गए हैं, सारे के सारे मुसलमान हैं। मारने वाले भी। मारे जाने वाले भी।

कश्मीर में आतंक का पर्याय बने लोग धर्मांतरण के लिहाज से दो-चार सदियों पुराने होंगे, जो ऐसे ही बाहरी हमलावरों के झपट्टे में अपने पूर्वजों का मूल धर्म छोड़ने पर मजबूर हुए होंगे।

इस्लाम की कुल यात्रा 14 सौ साल पुरानी है और यह विचारधारा संभवत: सर्वाधिक तीव्र गति से फैलने वाली है, जिसके 50 से ज्यादा मुल्कों में अनुयायी हैं। किसी धर्म के मूल तत्व क्या हैं? कोई भी विचार कब एक सुसंगठित धर्म की संज्ञा प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है और उसकी आधारभूत संरचना कैसी होनी चाहिए? धर्म के लक्षण क्या हैं?

स्पष्ट है कि मनुष्य ही वह कसौटी है, जो किसी विचार की महानता को स्थापित करते हैं। एक बौद्ध अपने आचरण से गौतम बुद्ध की देशना का जीता-जागता प्रमाण होता है और एक जैन या सिख पर भी यही बात लागू होती है। सच्चे धर्म की साख उसके अनुयायियों के अाचरण पर निर्भर करती है। एक सच्चे सिख का आचरण महान दस गुरुओं के सम्मान में वृद्धि करने वाला होता है और इस अर्थ में धर्म एक ऐसा विचार नहीं है, जिसे अंधों की तरह ढोया जाता है।

गहरे अर्थ में धर्म हरेक मनुष्य पर एक महान उत्तरदायित्व है, जो उसे अपने मानवीय व्यवहार से जीवनपर्यंत निरंतर निभाना होता है। एक जैन को सदैव अपने महान तीर्थंकरों के आदर्श अपने भीतर उतारने का अंतसंघर्ष करना ही होता है। यही बात करोड़ों हिंदुओं पर लागू है कि वे अपनी दस हजार साल की सनातन यात्रा में आए अवतारों की लाज रखें। अंतत: धर्म एक ऐसी व्यवस्था के रूप में सामने आता है, जो अपने अनुयायियों को आदर्श स्वरूप में ढालने का एक लगातार परिवर्तनशील मैकेनिज्म अपने भीतर विकसित करे और किसी जड़ व्यवस्था की तरह ठोस न हो। फिर भी अच्छे और बुरे अपवाद कहीं भी हो सकते हैं।

अवतारों, तीर्थंकरों, बुद्ध पुरुषों और गुरुओं के बाद हर धर्म में ऋषियों, विचारकांे, दार्शनिकों, विद्वानों, आचार्याें की एक समकालीन श्रृंखला हर कालखंड में रहती है, जो स्थापित आदर्शों का निरंतर स्मरण कराती है। वह ट्रैफिक कंट्रोल जैसी व्यवस्था में जुटे अनुयायी होते हैं। भारतीय मूल के प्रचलित और लोकप्रिय धर्मों में मनुष्य के जन्म के महान उद्देश्य और हर मनुष्य में ईश्वर बनने की संभावनाओं के द्वार खुले हुए हैं। वे प्रकृति के हर अंश में ईश्वर की ध्वनि सुन सकते हैं। पांचों तत्वों में उन्हें परमात्मा के दर्शन होते हैं। उनका ईश्वर कहीं आठ आसमानों के पार से धमका नहीं रहा, न ही खौफ में रहने के हुक्म भेज रहा है और न ही मनुष्य को जन्मजात पाप का पुतला घोषित कर रहा है।

शिव के रूप में वह आदि योगी है। कृष्ण के रूप में बांसुरी बजा रहा है। राम के रूप में राजपाट छोड़कर जनसमाज में जा रहा है। गुरुओं के रूप में वह शास्त्रों के साथ आतंक के विरुद्ध सशस्त्र बिगुल बजा रहा है। बुद्ध और महावीर के रूप में वह मनुष्य के जीवन की गरिमा और महान उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है। मूर्तियों और तस्वीरों के प्रतीक रूप में ये सब सदियों से हमारे ह्दय के निकट हैं और हम इनसे मंदिरों, विहारों और गुरुद्वारों में संवाद करते हैं। उनका मूर्ति स्वरूप करोड़ों आम लोगों के लिए एक आश्वासन है। प्रमाण है। अनुभूति है। आस्था है।

इस्लाम में वे आलिम हैं। वे मौलवी हैं, हाफिज हैं, मुफ्ती हैं, इमाम हैं, जिनका महान दायित्व अपने अनुयायियों को अपने आदर्शरूप में गढ़ने और दिशा देने का है। वे यह काम बखूबी कर रहे हैं। आबादी के फैलाव के अनुपात में मस्जिदों और मदरसों का लगातार फैलता संजाल इनके प्रयासों को एक सुसंगठित ढांचा दे रहा है। नार्वे, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, कश्मीर और उत्तरप्रदेश की इन चंद घटनाओं में शेष समाज के लिए क्या सबक हैं?

भौतिकी के नियमों से गति और शक्ति को देखें तो किसी भी विचार को गति करने के लिए शक्ति चाहिए। शक्ति ईंधन से प्राप्त होती है। वह ईंधन साधना और तप-त्याग से अर्जित करने का अनुभव केवल भारत के पास है और वो सबसे पुराना है।

इस्लाम का ईंधन क्या है? वह किनसे अपनी गति के लिए शक्ति हासिल करता है? यह एक टेढ़ा सवाल है। घटनाएं सिर्फ एक खबर नहीं हैं। उनमें जवाब छिपे होते हैं। इस टेढ़े सवाल का सीधा जवाब है कि इस्लाम का ईंधन हैं वे लोग जो उसके अनुयायी नहीं हैं और वे भी जो उसके अनुयायी हैं। इस ईंधन में जलकर धुआं कोई भी हो गति इस्लाम की है। काफिर मरें या मोमिन, परचम दीन का ही बुलंद है। तकबीर का एक ही नारा हवाओं का सीना चीरेगा।

तकनीक ने यह सुविधा दे दी है कि आप दुनिया के दूसरे सिरे की घटनाओं का विश्लेषण तत्काल कर सकते हैं। इंटरनेट ने सदियों के फासले भी मिटा दिए हैं। अब 14 सौ साल पहले के अरब के घटनाक्रम और उनके ढाई-तीन सौ साल बाद संकलित किए गए दस्तावेजों के हर अल्फाज को घर बैठे अपनी भाषा में जान सकते हैं। इस सुविधा ने पिछले दो सालों में एक लहर ऐसे लोगों की पैदा कर दी है, जो अपने वर्तमान और अपने भविष्य के फैसले स्वयं ले रहे हैं। यह एक्स-मुस्लिमों की एक ऐसी लहर है, जो हर दिन तेज हो रही है। वे नार्वे से लेकर बांग्लादेश और कश्मीर से लेकर उत्तरप्रदेश की हरकतों को देख रहे हैं।

यकीन न हो तो यूट्यूब पर डॉ. फौजिया रऊफ, अमीना सरदार, हारिस सुल्तान, गालिब कमाल, महलीज सरकारी, सना खान, यास्मीन, जफर हेरेटिक, अलमोसाे फ्री, सचवाला, कोहराम, सलीम अहमद नास्तिक अनगिनत नाम हैं। ये सब अरब और यूरोप से लेकर पाकिस्तान और भारत तक फैले हुए हैं। आप इनमें से किसी का नाम भी डालिए, ऐसे कई और नामचीन लोगों तक आप खुद पहुंच जाएंगे। इस्लाम के विभिन्न आयाम और असर पर इनके बीच जमकर शास्त्रार्थ चल रहे हैं। लाखों की फॉलोइंग वाले ये सब इस्लाम के नए अवतार हैं, जो कुरान और हदीसों पर खुली चर्चा कर रहे हैं।

धरती पर ये ऐसे हिम्मतवर लोग हैं, जो अब किसी बंजर विचार का ईंधन बनकर राख होने के लिए तैयार नहीं हैं।
लेखक- विजय मनोहर तिवारी
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