मंगलवार, अगस्त 09, 2011

भावी परिणाम अत्यंत घातक हैं भारत के लिए

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हिन्दुओं के सबसे बड़ी कमजोरी है जाति व्यवस्था, जिसका लाभ  सभी राजनैतिक  दल उठा रहें हैं इसका विश्लेषण निम्न प्रकार से किया जा सकता है


हिन्दू - दलित + सवर्ण

दलित वोट जो अभी तक किसी भी देश हित के लिए सोचने वाला नेता नहीं मिला जो मिलते हैं वो सवर्णों को गाली देतें हैं, दलित महापुरषों की मूर्तियाँ लगाते हैं और आरक्षण व्यवस्था को समर्थन देते हैं दलित इससे ही आनंदित हो जाता है ! जहाँ तक रही दलित समाज के उत्थान की बात, आजादी के ६३ वर्षों के बाद भी केवल बाबू और सरकारी अधिकारी स्तर का ही उत्थान हुआ है बहुत कम वैज्ञानिक, इन्जिनिएर, डाक्टर, वकील, CA , इत्यादि विशेषज्ञ प्राप्त हुए हैं देश को जो विश्व स्तर का ज्ञान रखते हैं, कारण केवल एक उनका बचा हुआ समय केवल ये सवर्णों को गरियाने में बिताने को मजबूर कर दिया गया है ! उसमे भी किसी एक परिवार के कई लोग सरकारी नौकरी में होते हैं और किसी परिवार का एक भी व्यक्ति नहीं होता, ए

सवर्ण - इस वर्ग के लोगों का आधारहीन अहंकार ही इनका पतन का कारण बन गया है क्योंकि सवर्ण होने के बाद ये अपने आपको विभिन्न ऊँची और नीची जातियों में बाँट लिए हैं तत्पश्चात इनके अन्दर भी देश के लिए सोच का अभाव हो गया है, स्वार्थ और अहंकार में ज्यादा समय बीतता है , दूसरा कारण इनका ज्यादा सयानापन है क्योंकि अधिकतर ज्ञानी व्यक्ति एक दुसरे को नीचा दिखने में व्यस्त हो गएँ हैं और ये परम सत्य हैं कि जो ज्यादा सयाना होता है उसके अन्दर समाज और देश के प्रति लगाव नहीं पैदा हो सकता क्योंकि जहाँ भी स्वार्थ रुपी कोई अप्सरा सामने आएगी ये उसके साथ नाचने गाने लगेंगे, वर्तमान में सबसे ज्यादा क्षति सवर्ण ही पंहुचा रहें हैं  हिन्दू समाज को, आप किसी भी व्यक्ति को उठा कर देख लें जो सर्व धर्म समभाव, सेकुलर इत्यादी का नारा लगता है और पिछले ३० सालों में तो कोई लालबहादुर शाष्त्री, पटेल इत्यादी सरीखा कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया और जो एक दो लोग आये भी, ये सवर्ण उनकी ही टाँगे खीचने में लगें हैं चाहें इसके लिए इनको मुस्लिम अथवा इसाई समाज का समर्थन ही क्यों न करना पड़े - नरेन्द्र मोदी, बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, अबुल कलाम, टी एन शेषण इत्यादी की सामाजिक हत्या ऐसे ही लोग कर रहें हैं और दिग्विजय सिंह की लीला तो इस समय विश्व व्यापी है !

उपरोक्त कारणों से हिन्दू समाज बिखर चूका है और उसके अन्दर कोई सामूहिक सोच नहीं बची है परिणाम स्वरुप मुट्ठी भर इसाई, मुस्लिम एवं स्वार्थी नेता इस समाज को एक मजबूर वेश्या की तरह अपने इशारों पर नचा रहें हैं ! ये एक मजबूत वोट बैंक की तरह सामने नहीं आते जिससे सारे नेता अब दलित + मुस्लिम , दलित + इसाई, मुस्लिम , मुस्लिम +इसाई, इसाई, और किसानो के वोट बैंक पर ही केन्द्रित करते हैं अपनी सोच को चाहें इसके लिए इनको हिन्दू समाज का सीना ही क्यों न रौंदना पड़े, यहाँ पर ये बताना आवश्यक है कि केवल किसान ही एक ऐसा वर्ग है जिसमे जाति व्यवस्था का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, आज कई नेता दो भागों में बंट गए हैं उनका एक साथी हिन्दुओ को निशाना बनता है - मुस्लिम और इसाई वोट बैंक पक्का करने के लिए और दूसरा साथी किसानो के घर घर में जा कर उनके दुःख को बांटने का स्यापा करता है , स्यापा शब्द इसलिए उपयोग किया क्योंकि इसके बाद भी किसानो को आत्महत्या करनी पड़ रही है किसानो के इतने हितैषी नेता हुए हैं परन्तु गाँवों का विकास अभी तक नहीं हो पाया,

सार - भावी परिणाम अत्यंत घातक हैं भारत के लिए


किसान
दलित
दलित
गाँव का विकास
गाँव का विकास
भारत को अन्धकार की गर्त में धकेलने वालों में से एक

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