गुरुवार, नवंबर 30, 2017

ये बड़े षड्यंत्र के तहत भरा गया है ताकि हिन्दू समाज रहे ही न, जातियों में बंटकर हमेशा कमजोर बना रहे

Upendra Vishwanath
भीष्म क्षत्रिये थे, तो उनके भाई वेद व्यास ब्राह्मण कैसे, इसे समझना है बहुत जरुरी !
इस्लामिक हमलावरों, फिर अंग्रेजो और फिर अब सेकुलरों और वामपंथियों ने मिलकर हिन्दू समाज और भारत को बर्बाद किया है, इन लोगों ने हिन्दुओ में जातिवाद भरा है, और ये बड़े षड्यंत्र के तहत भरा गया है ताकि हिन्दू समाज रहे ही न, जातियों में बंटकर हमेशा कमजोर बना रहे
अब हिन्दू एकजुट रहेगा तो हिन्दू ही जीतेगा, पर हिन्दुओ को जातियों में तोडा जायेगा तभी तो दुश्मनो के लिए रास्ता खुलेगा, स्कोप बनेगा, उदाहरण के तौर पर गुजरात, हिन्दू एकजुट रहे तो कांग्रेस का कोई स्कोप नहीं, जहाँ हिन्दू टुटा वहीँ कांग्रेस का स्कोप शुरू
अब हम आपको इतिहास के कुछ उदाहरण देते है जिसपर आप गौर कीजिये, दशरथ और विश्वामित्र भाई लगते थे, जी हां, विश्वामित्र भी एक राजा ही थे, आधी उम्र वो क्षत्रिय ही थे, पर आज हम विश्वामित्र को ब्राह्मण कहते है, वो ऋषि हो गए, कैसे ? भला कोई क्षत्रिये बाद में ब्राह्मण कैसे हो सकता है
अब दूसरा उदाहरण देखिये, वेद व्यास जिन्होंने महाभारत श्री गणेश के हाथों से लिखवाई, वो ब्राह्मण है, पर उनके भाई भीष्म क्षत्रिय, जी हां वेद व्यास और भीष्म जिनका असली नाम देवव्रत था, वो दोनों ही भाई थे, पर एक भाई ब्राह्मण और दूसरा क्षत्रिये, ऐसा कैसे ?
और उदारहण लीजिये, एकलव्य आदिवासी बालक था, पर आगे चलकर सेनापति बना, और क्षत्रिये कहलाया, कर्ण शूद्र के घर में बड़े हुए, पर आगे चलकर राजा बने और वो भी क्षत्रिये कहलाये, भैया ये सब इसलिए क्यूंकि जाति व्यवस्था कर्म के आधार पर बनाई गयी थी, हमारे पूर्वजो ने कर्म के आधार पर ये व्यवस्था बनाई थी , पर समाज द्रोहियों ने जाति को धर्म के आधार पर घोषित कर दिया
हनुमान और भीम दोनों पवन पुत्र होने के नाते भाई थे बेशक काल अलग रहा हो l
विश्वामित्र क्षत्रिये तबतक थे जबतक वो क्षत्रिये कर्म करते थे, जब उन्होंने पूजा पाठ शुरू कर दिया, लोगों को शिक्षा देना शुरू कर दिया तो वो ब्राह्मण हो गए, और आज हम विश्वामित्र को ब्राह्मण ही कहते है, उन्होने अपना काम, अपना कर्म बदला और उनकी जाति भी बदल गयी, जाति कर्म के आधार पर होती है जन्म के आधार पर नहीं, इसलिए समाज को जाति का भेद छोड़ कर एकजुट रहना चाहिए, ताकि समाज ताकतवर बना रहे

रविवार, नवंबर 26, 2017

भन्साली पॅटर्न

पधारो म्हारे देश
भन्साली पॅटर्न
ये सारा कहाँ से शुरू हुआ है, पता है? भन्साली का पैटर्न समझ लें आप!
रामलीला
पहले उसने फिल्म का नाम रखा था 'रामलीला'! बाद में बवाल मचने पर बदल कर 'गोलियों की रासलीला रामलीला' रख दिया। मूल नाम और बदल कर रखे नाम दोनों में ही मक्कारी साफ झलकती है।
फिल्म का नाम कुछ और भी तो रखा जा सकता था। यह जिस कदर ठेठ मसाला (या गोबर) फिल्म थी, अस्सी या नब्बे के दशक की किसी भी फिल्म का नाम इसके लिए चल जाता, जैसे कि आज का गुंडाराज, खून भरी मांग, खून और प्यार... कुछ भी चल जाता! लेकिन नामकरण हुआ 'राम लीला'। भारत का सामूहिक आराध्य दैवत कौन है? राजाधिराज रामचंद्र महाराज। तो उसपर ही हमला किया जाए, जिस पर आपको गर्व हो! आप जिसे पूजते हो, आप जिनका का आदर्श के तौर पर अनुसरण करने की कोशिश कर रहे हो, उसी श्रद्धा स्थान पर हमला किया जाए!
राम भक्ति करते हो? राम मंदिर बनाना चाहते हो? रुको! एक दो कौड़ी का भांड़ और उससे भी टुच्ची एक नचनिया लेकर मैं एक निहायत बकवास फिल्म बनाऊँगा, और नाम रखूँगा 'रामलीला'! आप कौन होते हो आक्षेप लेनेवाले? अपमान? इसमें कहाँ किसी का अपमान है? यह फिल्म के नायक का नाम है। लीला नामक नायिका के साथ रचाई गई उसकी लीलाएँ दिखाई जाएगी, तो 'रामलीला' नाम गलत कैसे हुआ भाई?
वैसे नाम बदलते हुए भी क्या शातिर खेल खेला गया है, जानते हैं? 'गोलीयों की रासलीला रामलीला' यह बदला हुआ नाम है। रासलीला यह शब्द किससे संबंधित है? भगवान श्रीकृष्णसे। देखा? रामलीला नाम रख एक गालपर तमाचा जड़ा गया। और उसका नपुंसक, क्षीण विरोध देख भन्साली ने भाँप लिया कि यहाँ और भी गुंजाइश है, और बदले हुए नाम से उसने आप के दूसरे गाल पर और पाँच उंगलियों के निशान जड़ दिए!
एक बेकार-से फिल्म के नाम के साथ खिलवाड़ कर उसने आप को यह बताया है कि आप कितने डरपोक हैं। आप के विरोध का संज्ञान लेते हुए फिल्म का नाम बदलते हुए भी वह आप का अपमान करने से नहीं चूका। और आप ने उसी फिल्म को हिट बनाया! निरे बुद्धू हो आप!
बाजीराव-मस्तानी
हिंदूंओंपर हमले को एक फिल्म में अंजाम देने के बाद अगला पड़ाव था मराठी माणूस. मराठी समाज को तोड़ने की कोशिशें एक लंबे समय से जारी है। अस्सी के दशक से ही यह काम चल रहा है। और जो तरकीबें हिंदुओं का अपमान करने के लिए प्रयुक्त होती है, उनमें एक महत्त्वपूर्ण बदलाव ला कर मराठी समाज में भेदभाव के बीज बोने के काम में लाया जाता है। मराठा, दलित और ब्राह्मण इनको यदि आपस में भिडाए रखो, तो मराठी इन्सान की क्या बिसात कि वह उभर कर सामने आए!
सनद रहे, इन तीन वर्गों में बड़ा भारी अंतर है। दलितों का, उनके नेताओं का या फिर उनके प्रतीकों का अपमान होने का शक ही काफी है किसी को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए! महाराष्ट्र में दलित उत्पीड़न प्रतिबंधन कानून के तहत पुलिस कंप्लेंट हो तो पुलिस तत्काल धर लेती है। बेल नहीं होती, बंदा लंबे समय तक जेल की हवा खाता है। प्रदर्शन और हिंसा की संभावना अलग से होती है। मराठा समाज स्थानिक दबंग क्षत्रिय जाति है। उसके प्रतीकों को ठेस पहुंचाओ तो संभाजी ब्रिगेड जैसे उत्पाती संगठनों के आतंक का सामना करना पड़ता है।
तो फिर जिनके प्रतीकों और आदरणीय व्यक्तित्वों पर आसानी से हमला किया जा सकता है, घटिया से घटियातर फिल्म उनके श्रद्धास्थान के बारे में बनाने पर भी जो पलटवार तो क्या, निषेध का एक अक्षर तक नहीं कहेंगे, ऐसा कौन है? सबसे बढ़िया सॉफ्ट टार्गेट कौन? ब्राह्मण।
आपके सबसे पराक्रमी पुरुष कौन? इस पर दो राय हो सकती है। उन पर्यायों में आप को जिसके बारे में जानकारी कम है, लेकिन जिसका साहस और पराक्रम अतुलनीय आहे ऐसे किरदार का चुनाव मैं करूँगा। श्रीमंत बाजीराव पेशवा और उनका पराक्रम मैं इस तरह बचकाना दिखाऊँगा कि रजनीकांत की मारधाड़ की स्टाइल भी मात खा जाए! एक आदमी तीरों की बौछार को काटता हुआ निकल जाए, ऐसा सुपरमैन! दिखाऊँगा कि मस्तानीके प्यार में पागल बाजीराव अकेले ही शत्रु सेना से भिड़ जाता है।
बाजीराव इश्क में पागल हो सारा राजपाट छोडनेवाला, और सनकी योद्धा था, ऐसे मैं दिखाऊँगा, ताकि पालखेड़ के संघर्ष में बगैर किसी के उंगली भी उठाए, बगैर किसी युद्ध के निजाम शाह को शरण आने पर मजबूर करने वाली उसकी राजनीतिक सूझबूझ दिखाने की जरूरत न पडे! लगातार 40 युद्धों में अजेय कैसे रहे, कितनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया, मस्तानी का साथ कितने वर्षों का रहा... दिखाना जरूरी नहीं होगा। निजाम शेर के सिर पर हाथ फेरते हुए दिखाया जाएगा, और बाजीराव उससे बात करने के लिए किसी याचक की तरह पानी में से चलते हुए सामने खडा दिखाया जाएगा! बाजीराव की माँ पागलपन का दौरा पडी विधवा दिखाई जाएगी। वस्तुतः लगभग अपाहिज पत्नी को हल्की औरत की तरह नचाया जाएगा।
बाजीराव खुद मानसिक रूप से असंतुलित और उनके पुत्र नानासाहब दुष्ट और दुर्व्यवहारी दिखाए जाएँगे....
आप क्या कर लोगे? बस, केवल कुछ प्रदर्शन? खूब कीजिए! मैं घर पर बैठे हुए टीवी पर उनका मजा लूँगा। एक सिनेमा हॉल में प्रदर्शन रोकने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हाँ, आप के दोनों गालों पर तमाचे जड़ने और पिछवाड़े में एक लात लगाने के पैसे मुझे कबके मिल चुके हैं। देखो, सोशल मीडिया पर एक जाति दूसरीसे कैसे भिडी हुई है!
मैंने आप की कुलीन स्त्रियों को पर्दे पर नहलाया। उनको मनमर्जी नचाया। दालचावल खानेवाले डरपोक लोग हो आप! ब्राह्मणवाद का ठप्पा लगाकर मुझे हिंदुओं को अपमानित करना था, सो कर लिया! ठीक वैसे ही, जैसे और लोग करते हैं। हा हा हा.
पद्मिनी
अब अगला पडाव दूसरी पराक्रमी जाति, राजपूत! आपके आराध्य को चिढ़ाना हो चुका, और जातियों को आपस में लड़ाना हो चुका। अब अगला पायदान चढते हैं। आप की आदरणीय स्त्रियों पर हमला! शत्रु की स्त्रियों का शीलभंग, उनकी इज़्ज़त लूटकर उन्हें भ्रष्ट करना किसी भी युद्ध का अविभाज्य अंग होता है। तो फिल्मों के माध्यम से एक मानसशास्त्रीय युद्ध के दौरान इसे क्यों वर्जित माना जाए?
अनगिनत औरतों की अस्मत लूटनेवाले अल्लाउद्दीन खिलजी ने जब चित्तौड़गढ़ पर हमला किया और चित्तौड़गढ़ के पराजय के आसार दिखाई देने लगे तब शत्रुस्पर्श तो दूर, अपना एक नाखून तक उनके नजर न आएँ, इस सोच के साथ हजारों... हाँ, हजारों राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर की आग में कूद कर जान देनेवाली महारानी पद्मिनी से बढकर अपमान करने लायक और कौन स्त्री हो सकती है?
अरे, आपने दो थप्पड़ जड़ दिए, कैमरा तोड़ दिया, मेरे क्रू से मारपीट की। बस्स! इससे अधिक क्या कर लोगे? मुझे इसके पूरे पैसे मिले हैं, मिलेंगे। मेरी जेब पप्पू जैसी फटी नहीं है। आप राजस्थान में लोकेशन पर मना करोगे तो जैसे बाजीराव मस्तानी में किया वैसे कम्प्यूटर से आभासी राजस्थानी महल बनाऊँगा, और हर हाल में यह फिल्म बनाऊँगा, आपकी छाती पर साँप लोटते हुए देखूँगा। और देख लेना, आप ही मेरी इस फिल्म को हिट बनाएंगे!
क्यों, पता है? आप डरपोक हो। खुदगर्ज हो। प्रत्यक्ष भगवान राम के लिए कोई उठ खड़ा नहीं हुआ। बाजीराव के समय लोग ब्राह्मण और मराठी समाज के पक्ष में खड़े नहीं हुए। अबकी देखूँगा, राजपूतों के साथ कौन, और कैसे खड़े होते हो!
क्या उखाड़ लोगे?
?
# पद्मिनी

ब्राह्मणवाद, मनुवाद तो बहाना है; असली मकसद हिन्दू धर्म को मिटाना है ।

नफरत सिर्फ ब्राह्मणों के खिलाफ क्यों फैलाई जाती है ? नफरत यादव, सुनार, धोबी, कुम्हार, कुशवाहा या बाकी जातियों के खिलाफ क्यों नहीं फैली ? ये एक वाजिब प्रश्न है । सुनिए जरा...
अगर आप यादव से नफरत करेंगे तो उससे दूध लेना बंद कर देंगे; पर फिर भी हिन्दू रहेंगे, अगर आप सुनार से नफरत करेंगे तो उससे आभूषण बनवाना बंद कर देंगे; पर फिर भी आप हिन्दू रहेंगे, अगर आप धोबी, कुशवाहा ,कुम्हार से नफरत करेंगे तो कपड़े धुलवाना ,सब्जी लेना,और बर्तन खरीदना बंद कर देंगे; पर फिर भी आप हिन्दू रहेंगे ।
पर अगर आप ब्राह्मण से नफरत करेंगे तो आप सभी धार्मिक रस्मों जैसे कि जन्म, शादी, मृत्यु , गृह पूजन ,इत्यादि के लिए उसके पास जाना बंद कर देंगे और जब आपको इन सभी रस्मों को करवाने की जरुरत पड़ेगी तब आप क्या करेंगे ? तब ये सब रस्में आकर चर्च का पादरी करेगा, आगे समझिये
ब्राह्मणों से नफरत करना यानी Anti-Brahminism, 2000 साल पुराने "जोशुआ" प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसका एजेंडा पूरे हिंदुस्तान को ईसाई व मुस्लिम मुल्क बनाना है । हिंदुओं का धर्मान्तरण तब तक नहीं हो सकता जब तक वे ब्राह्मणों के संपर्क में है
अभी सभी हिन्दुओ के खिलाफ इन्होने जिहाद छेड़ दिया, सभी हिन्दू को गाली देने लगे तो सभी हिन्दू एक हो जायेगा और इनको तबाह कर देगा, तो इन्होने जेशुआ प्रोजेक्ट बनाया जिसके तहत हिन्दू जातियों में ब्राह्मणों के लिए इतनी नफरत बढ़ाओ की अन्य हिन्दू ब्राह्मणों के पास किसी भी काम के लिए जाना बंद कर दें और धर्मान्तरण के दरवाजे खुल जाएं ।
सबसे पहले ईसाई मिशनरी Robert Caldwell ने आर्यन-द्रविड़ियन थ्योरी बनाई ताकि दक्षिण भारतीयों को अलग पहचान देकर धर्मान्तरण किया जाए, जिसमे उत्तर भारतीयों को ब्राह्मण आर्यन दिखाया गया, इनकी एजेंडा यहां खत्म नहीं हुआ । इसके बाद दूसरे मिशनरी और संस्कृत विद्वान John Muir ने मनुस्मृति को एडिट किया, इसमें वामपंथियों ने मदद की
ब्राह्मण विरोध, सनातन विरोध का ही छद्म नाम है। क्योंकि ब्राह्मणवाद, मनुवाद तो बहाना है; असली मकसद हिन्दू धर्म को मिटाना है ।

कान्वेंट आधुनिकता , अन्धविश्वास

"यू नो हमारा सोफिया कान्वेंट पुराने कब्रिस्तान के पास था , वहां पर घोस्ट आते थे. बट सिस्टर्स होली वाटर छिड़कती थीं इसलिए वो घोस्ट्स किसी को परेशान नहीं कर पाते थे."
मेरे साथ पार्टी में बैठी एक लड़की सबको बता रही थी.
सेंट एंजेला सोफ़िया.. शहर का सबसे हाईफाई और क्लासिक माना जाने वाला स्कूल.
मुझे अफ़सोस हुआ. अपन तो पिछड़े ही रह गए! ना कभी घोस्ट दिखा, ना होली वाटर छिड़का गया
डेविल, घोस्ट और ब्लैक स्पिरिट्स सिखाकर वह कान्वेंट आधुनिक शिक्षा दे रहा था जबकि हम विद्यामंदिर में योग, ध्यान और वैदिक गणित सीखकर अंधविश्वासी बन गए
यह अफ़सोस तब और टीस मारने लगा जब पता चला कि वेटिकन ने २ भारतीय मिशनरियों को 'सेंट' की उपाधि दी है. सेंट बनना है तो 'चमत्कार' करके दिखाने होते हैं. तो दिख गए 'चमत्कार' और गदगद हो गया मीडिया ! अहा... क्या घनघोर वैज्ञानिकता !!!!
उधर हमारी 'अंधविश्वासी' शिक्षा मंत्री जी ज्योतिष से भेंट कर बवाल मचा आईं. अरे भई ज्योतिष के पास क्यों गईं? टैरो रीडर के पास जातीं तो मॉडर्निटी में 4 चांद और जड़ा आती !
अब क्या है ना... अपन भारतीयों के पूर्वज तो ठहरे किसान ! उनको कार्ड खींचने जैसे 'वैज्ञानिक' तरीके अपनाकर रिलेशनशिप स्टेटस जैसे 'इम्पोर्टेन्ट' पॉइंट्स थोड़ी ना जानने थे ?
उन्हें चिंता थी... मानसून कब आएगा? धूप कब खिलेगी? फसल कब बोएं, कब काटें?
पिछड़े लोग, पिछड़ी समस्याएँ... यू नो !
तो इसीलिए कुछ लोग... जिन्हें ज्योतिषी कहा गया, वे ज्योतिपुंजों : तारे, नक्षत्र और ग्रहों के स्थिति देखकर आने वाली खगोलीय घटनाओं और मौसम का सटीक अनुमान लगाते थे. और इस तरह वो 'अंधविश्वासी' पूर्वज ज्योतिषी 5000 पंचांग बना गए. प्रत्येक अक्षांश-देशांतर के हिसाब से अलग-अलग ! बावले थे ! एक-एक पल का हिसाब रख दिन बदलते थे ताकि पंचांग पृथ्वी के घूर्णन-परिक्रमण के साथ बराबर चलता रहे.
हमारे 'आधुनिक' बुद्धिजीवी इसकी व्याख्या करें तो वो आपको बताएँगे-
"प्राचीन भारत के लोग इतने अंधविश्वासी थे कि वे डरते थे कि कहीं नक्षत्रों की चाल के हिसाब में गड़बड़ी से नक्षत्र नाराज़ ना हो जाएँ. इसी अन्धविश्वास के चलते वे घंटे-मिनट की बजाय एक-एक क्षण का हिसाब रखते थे."
खैर, देर आयद , दुरुस्त आयद!
तो हमने भी 'वैज्ञानिक' ग्रेगोरियन कैलेंडर के लिए अपने 'अंधविश्वासी' पंचांग ताक पर धर दिए हैं.
अब हमें क्या फर्क पड़ता है अगर ग्रेगोरियन कैलेंडर पृथ्वी के परिक्रमण काल से मेल नहीं खाता? क्या हुआ जो बेचारा मानसून भी 'श्रावण-भाद्रपद' वाला पंचाग देखकर ही बरसने को आता है और हमारे आधुनिक कृषि विज्ञानी 'जून से सितम्बर' के चक्कर में फसलें बर्बाद कर बैठते हैं?
पल-पल की गिनती करने के लिए हम कोई अंधविश्वासी थोड़ी ना हैं !
भई, भाटा बुद्धि को कितनी आसानी होती है ग्रेगोरियन तारीखें गिनने में... रात को 12 बजे तारीखें बदलो और दोस्त को 'हैप्पी बड्डे टू यू' करके सो जाओ.
होय हजारों टन फसल बर्बाद,हमारी बला से!
वैज्ञानिक सोच मुबारक हो !
साभार
तनया प्रफुल्ल गड़करी

*हिन्दू हितो की बात करने वाला पत्रकार रोहित सरदाना मुसीबत में...*

*हिन्दू हितो की बात करने वाला पत्रकार रोहित सरदाना मुसीबत में...* सरदाना के विरूध भी कमलेश तिवारी की। तरह प्रदर्शनो व पुलिस रिपोर्ट की शुरूवात हो चुकी है... और हिन्दू शांत बैठे है...ऐसे मे क्या होगा... अगर हिन्दू साथ नही देंगे तो रोहित सरदाना सा मन टूट जायेगा...
हरियाणा के कुरुक्षेत्र का रहने वाला ये छोटे कद का राष्ट्रवादी पत्रकार (बिरादरी से शायद जाट) जिहादियों से घिरा पड़ा है...
आप में से बहुत से लोग इन्हें देखते और सराहते आए हैं, रोहित के कट्टर राष्ट्रवादी रवैये की वजह से उन्हें रवीश कुमार जैसे वामपंथी एजेंडाबाज़ पत्रकार संघ और भाजपा का प्रवक्ता भी कह देते हैं...
खैर वो तो चलन हो गया है आजकल कि भारत देश की बात करने वाला, मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करने वाला, भारत स्वाभिमान का समर्थन करने वाला, विदेशी चीज़ों की जगह स्वदेशी की वकालत करने वाला, देश विरोधी ताकतों की चाटुकारिता ना करने वाला हर व्यक्ति संघ और भाजपा से जोड़ दिया जाता है...
चलो अच्छा है, चरण चाटुकार होने से भाजपाई/संघी होना लाख गुणा बेहतर है...
छोड़िए
मुद्दे की बात ये है कि गोवा में चल रहे फ़िल्म फैस्टिवल में दक्षिण भारत से आई एक फ़िल्म " सै#$ दुर्गा" को भारत सरकार ने बैन कर दिया...
इस फ़िल्म का पूरा नाम आप सभी जानते होंगे पर मैं अपनी आराध्य देवी शक्ति के लिए इस प्रकार का शब्द प्रयोग नहीं कर सकता...
तो बात ये है कि रोहित सरदाना ने सरकार के इस फैसले का समर्थन करते हुए कह दिया कि इस देश में सैक्सी दुर्गा जैसा ही नाम क्यों दिया जाता है? कोई सैक्सी आयशा या सैक्सी फातिमा नाम क्यो नही रखा जाता.?
बस यहीं से आग लग गई...
आठ दस मुकद्दमे हो चुके हैं अगले के विरुद्ध, और इससे भी मन ना भरा तो रोहित और उनके परिवार को देश विदेश से फ़ोन करके धमकियाँ दी जा रही हैं गाली गलौज की जा रही है...
जिन नंबरों से कॉल आ रही हैं वो नंबर रोहित सरदाना सार्वजनिक भी कर चुके हैं फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से, आगे की कहानी मैंने सुनी है कि रोहित के विरुद्ध ईशनिंदा (पता नहीं कौनसा ईश है) के तहत और प्रदर्शन होने वाले हैं...
अब ये हमें देखना है कि जाट, राजपूत, बनिया, यादव, गुर्जर, ब्राहमण बनकर एक दूसरे को सीना फुला कर दिखाने वाले हम जातिवादी एक सच्चे राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ खड़े होते हैं या नहीं...
आह्वान करता हूँ अपने युवा मित्रों का मैं कि इस रोहित सरदाना का साथ आप आज दो वरना याद रखना ये इक्के दुक्के लोग ही बचे हैं जो आपकी और मेरी आवाज़ उठाते हैं...
इनकी आवाज़ नहीं दबने देंगे हम, ये हमारी आवाज़ है...
मैं हर तरह से रोहित सरदाना के साथ हूँ
*भारत माता की जय*
*सनातन धर्म की जय*

बुधवार, नवंबर 22, 2017

छिल्लर ने कह दिया कि मां को मातृत्व और उसकी ममता का मूल्य सैलरी में मिलना चाहिए

दिनेश कुमार प्रजापति
# नोटबंदी , # चिल्लर और # छिल्लर
तो मानुषी छिल्लर को मिल गया ताज और आप लहालोट हो उछलने लगे। छिल्लर ने कह दिया कि मां को मातृत्व और उसकी ममता का मूल्य सैलरी में मिलना चाहिए और आपको यह बड़ी अच्छी बात लगी। कसम से आपकी क्यूटनेस को नमन रहेगा।
# अब जरा पिछले पंद्रह दिनों के घटनाओं पर नजर डालिए। मूडीस(टाम मूडी नहीं)भारत की रेटिंग को Baa2 से Baa3 करता है। ईज आफ बिजनेस डूइंग की रैंक में भारत सौ देशों की श्रेणी में आ जाता है और तभी छिल्लर विश्व सुन्दरी बन जाती हैं।
कई वर्ष पहले भारत सुन्दरी इन्द्राणी रहमान ने विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता के दौरान स्वीमिंग सूट पहनने से इनकार कर दिया था। परिणामतः इन्द्राणी रहमान विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता के दौर से बाहर कर दी गयीं।
# हमारी संस्कृति में सौदर्य बोध के साथ गहरे पवित्रता का भाव जुड़ा है। दीदारगंज की यक्षी का मूर्ति शिल्प हो या मोनालिसा की मुस्कान का चित्र, दोनों ही स्त्री-सौन्दर्य के उच्चतम प्रतिमान हैं। सौन्दर्य के प्रतिमानों के साथ पवित्रता का रिश्ता जुड़ा है प्रतियोगिता का नहीं।
# मानव का आदिम चित्त भेद नहीं करता है। कुरूपता एवं सौन्दर्य में कोई विभाजक रेखा नहीं खींचता है परन्तु आज का मानव चित्त जिसे कुरूप कहता है, आदिम चित्त उसे भी प्रेम करता था। आज हमने विभाजक रेखा खींच कर एक ऐसी बड़ी गलती की है जिसके चलते हम कुरूप को प्रेम नहीं कर पाते क्योंकि वह सुन्दर नहीं, दूसरी ओर हम जिसे सुन्दर समझते हैं, वह दो दिन बाद सुन्दर नहीं रह जाता है। परिचय से, परिचित होते ही सौन्दर्य का जो अपरिचित रस था, वह खो जाता है। सौन्दर्य का जो अपरिचित आकर्षण या आमंत्रण है, वह विलीन हो जाता है। इसी सौन्दर्य को विलीन होने से बचाने के लिए हमने मेकअप की शुरूआत की। मेकअप ओर मेकअप की पूरी धारणा बुनियादी रूप से पाखंड है क्योंकि स्वाभाविक सुन्दरता को किसी बनावट की जरूरत नहीं होती। फिर भी मेकअप का सामान बनाने वाली विश्व की दो बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां ‘यूनीलिवर’ एवं ‘रेवलाॅन/
प्राक्टर एं गैम्बिल’, ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस वल्र्ड’ नामक सौन्दर्य के विश्वव्यापी उत्सव करती है। इन प्रतियोगिताओं की राजनीति समझने की जरूरत है।
# कुछ घटनाओं पर सिलसिलेवार नजर डालें
१)सोवियत संघ के विघटन के तुरन्त बाद रूस की एक लड़की को विश्व सुन्दरी के खिताब से नवाजा गया।
२)1992-93 में जमैका ने जब उदारीकरण की घोषणा की तो उसी वर्ष जमैका की लिमहाना को विश्व सुन्दरी घोषित कर दिया गया।
३)बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को व्यापार की छूट देने के साथ ही वेनेजुएला को 1970 से आज तक ‘मिस वल्र्ड’, ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस फोटोजेनिक’ के तीस से अधिक खिलाब मिल चुके हैं।
४)दक्षिण अफ्रीका की स्वाधीनता के बाद राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमंत्रण देने के पुरस्कार स्वरूप वास्तसाने जूलिया को ‘रनर विश्व सुन्दरी’ बनाया गया।
५(विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्र्रीय मुद्राकोष के निर्देशों के तहत ढांचागत समायोजन का कार्यक्रम संचालित कर रहे क्रोएशिया और जिम्बाव्वे की लड़कियों को भी चौथा और पांचवा स्थान इन विश्वव्यापी सौन्दर्य उत्सवों में मिला।
६)1966 में जब इन्दिरा गांधी के रुपये का 33 फीसदी अवमूल्यन किया तो उसी वर्ष भारत की रीता फारिया विश्व सुन्दरी बन बैठी।
७)मनमोहन सिंह द्वारा उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में चलाये जा रहे ढांचागत समायोजन के कार्यक्रमों का परिणाम हुआ कि 27 वर्ष बाद भारत के खाते में ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस वल्र्ड’ दोनों खिताब दर्ज हो गये। फिर भी 97 मंे मुरादाबाद की डायना हेन ‘मिस वलर््ड’ के ताज की हकदार हो गयीं।
८)सौन्दर्य प्रसाधन बनाने वाली ‘रेवलाॅन’ 'लैक्मे' और ‘यूनीलीवर’ कम्पनियां विजेताओं को वर्ष भर खास किस्म के कब्जे में रखती हैं। वे कहां जायेंगी ? क्या बोलेंगीं ? क्या पहनेंगी ? सभी कुछ वर्ष भर तक ये प्रायोजित कम्पनियां ही तय करती हैं।
९)1966 में विश्व सुन्दरी खिताब प्राप्त भारत की रीता फारिया को अमरीका-वियतनाम युद्ध के समय प्रायोजित कम्पनी में अमरीकी सैनिकों का मनोरंजन करने के लिए वियतनाम भेजा था।
१०)ये कम्पनियां यह बेहतर ढंग से समती हैं कि विवाहित स्त्री का सौन्दर्य परोसने योग्य नहीं होता है इसलिए विजेताओं पर यह कठोर प्रतिबन्ध होता है कि ये वर्ष भर विवाह नहीं कर सकती हैं।
# उत्पाद बनने के लिये स्वतः तैयार नारी देह के सौन्दर्य अर्थशास्त्र का विस्तार इन विश्वव्यापी उत्सवों से निकलकर हमारे देश के गली, मुहे, शहरों, विद्यालय और विश्वविद्यालयों तक पांव पसार चुका है।
# भूमंलीकरण और भौतिकवाद के इस काल में स्त्री देह का उत्पाद या विज्ञापन बन जाना, उस नजरिये का विस्तार है, जिसमें स्त्री अपने लिये खुद बाजार तलाश रही है। विद्रूप बाजार में येन-के न-प्रकारेण अपना स्थान बना लेना चाहती है। उसे अपने स्थान बनाने की ‘अवसर लागत’ नहीं पता है। वह कहती है कि उसे यह तय करने का समय नहीं मिल पा रहा है कि किन-किन कीमतों पर क्या-क्या वह अर्जित कर रही है ?
#‘फायर’ का प्रदर्शन वह अपने दमित इच्छाओं का विस्तार स्वीकारती है जिसके सामने पहले प्रेम निरुद्ध फिर विवाह के बाद प्रेम की वर्जना थी और अब ‘इस्टेंट लव’ के फैशन की खास और खुली स्वीकृति।
# पश्चिम के लिए विकृतियां ही सुखद प्रतीत होती है क्योंकि उनके लिए जीवन का सौन्दर्य अपरिचित हैं। भारत की अस्मिता और गरिमा भी इसलिये रही क्योंकि हमने अभ्यान्तर सौन्दर्य एवं शुद्धता को उसके पूरे विज्ञान को विकसित किया है।
# हमारा सौन्दर्य सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् है। हमारा सत्यम् अनुभव है, शिवम् है - कृत्य, वह कृत्य जो इस अनुभव से निकलता है और सौन्दर्य है उस व्यक्ति की चेतना का खिलना जिसने सत्य का अनुभव कर लिया है। मांग और पूर्ति के अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त बाजारवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं/ उत्पादों का मूल्य तय करते हैं। स्त्री देह के प्रदर्शन, उपलब्धता की पूर्ति का विस्तार मूल्यहीनता के उस ‘वर्ज’ पर खा है जहां मांग के गौण हो जाने का गम्भीर खतरा दिखायी दे रहा है इससे स्त्री सौन्दर्य के उच्चतम प्रतिमान तो खिर ही रहे हैं सौन्दर्य के साथ पवित्रता के रिश्तों में भी दरार चौड़ी होती जा रही है।
ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, लारा दत्ता,प्रियंकि चोपड़ा,डायना हेडन कैसे बनती हैं?
# बट ग्लू का इस्तेमाल
लगभग हर बड़े ब्यूटी कॉन्टेस्ट में एक राउंड स्विमिंग सूट या बिकिनी राउंड भी होता है और इस में पहने जाने वाले कपड़े काफी छोटे होते हैं. इस राउंड में भाग लेने वाली मॉडल्स के लिए सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि अगर प्रदर्शन के दौरान उनके कपड़े हल्के से भी इधर या उधर खिसक गए तो उनके लिए बहुत अपमानजनक स्थिति हो सकती है और इसी स्थिति से बचने के लिए मॉडल्स बट ग्लू का इस्तेमाल करती है. बट ब्लू एक प्रकार की Gum होती है, जिस की पकड़ काफी मजबूत होती है और इसी की वजह से मॉडल्स बिकिनी राउंड में अपने कपड़े खिसकने से या इधर-उधर होने से बचाती है.
# यह एक खतरनाक सत्य है की ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली सभी मॉडल अपने को बढ़-चढ़कर दिखाना चाहती है और इसी ख्वाहिश के लिए यह अपना वजन तेजी से घटाती है. लेकिन अब स्लिम ब्यूटी की जगह यह बात अंडरवेट ब्यूटी तक पहुंच गई है.
अंडरवेट का मतलब होता है सेहत के लिए खतरनाक यानी कि आपका वजन आपके लंबाई के हिसाब से जितना होना चाहिए उससे कहीं ज्यादा कम जो सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक चीज है. 1930 के दौर में अमेरिका में एवरेज बीएमआई 20.8 थी, जो वैश्विक स्तर पर हेल्दी रेंज में रखी जाती है जबकि 2010 में अमेरिका में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली लड़कियों की एवरेज बीएमआई 16.9 थी। इसे अंडरवेट माना जाता है|
# विश्व सुंदरी बनने के लिए चाहिए लाखों रूपए का खर्चा
पहले माना जाता था की सुंदरता एक पैदाइशी गुण होता है लेकिन अब ब्यूटी कांटेस्ट के बढ़ते चलन ने इसे एक महंगा काम बना दिया है क्योंकि अब कम पैसों में ब्यूटी क्वीन नहीं बना जा सकता. वास्तव में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में मॉडल्स के मेकअप के ऊपर लाखों रुपया खर्च होता है जिसमें ड्रेस, मेकअप, हेयर स्टाइलिस्ट, पर्सनल ट्रेनर, कोच, ट्रांसपोर्टेशन तथा ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली फीस इत्यादि होती है, जिनका खर्चा लाखों रुपए तक बैठता है. आमतौर पर यह खर्चा ब्यूटी कॉन्टेस्ट का लेवल और देश के अनुसार अलग अलग हो सकता है.
# सौंदर्य प्रतियोगिताएं यूं तो आधुनिक जमाने की उपज है लेकिन इसके कई नियम ऐसे हैं जो कि अपने आप में एक पुरानी सोच और दकियानूसी विचार ही दर्शाते हैं जैसे ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने वाली किसी भी मॉडल का अविवाहित होना जरूरी है. इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि उसने बच्चे को जन्म ना दिया हो. इसके अलावा सौंदर्य प्रतियोगिताओं में मिस टाइटल वाली ज्यादातर प्रतियोगिताओं में एंट्री 25-26 साल तक ही मिलती है।
तैयार रहिए बाहर तक झांकती कालर बोन हड्डियां, लाइपोसक्शन और कास्मेटिक सर्जरी की नई नई दुकानें, माडलिंग की आड़ में मुक्त देह की नुमाइशों, इनफर्टिलिटी, आत्महत्याओं और मानसिक अवसाद से घिरे नवयुवक नवयुवतियां आपका इन्तजार कर रही हैं।
# जिन चित्रों की बिना़ पर छिल्लर विश्वसुंदरी बनी हैं उन्हें यहाँ प्रदर्शित नहीं कर सकते।
छिल्लर-
# बहुत हसीन हैं तेरी आंखें
बस हया नहीं हैं इनमें।।
डा.मधुसूदन उपाध्याय
लखनऊ

मंगलवार, नवंबर 21, 2017

इतना कठोर होना ही पड़ेगा ..आप सभी को ... अन्यथा ...

Mohan Lal Bhaya
जहाँ भी चुनाव हों ....कोई भी पार्टी का प्रत्याशी हो ...
उससे ये प्रण ले ले कि जीतने के बाद पूरी कट्टरता से हिन्दू धर्म की बात करेगा ...और कार्य करेगा ....
यदि वो ऐसा प्रण करे तो उसे वोट दीजिये ...
अन्यथा पोलिंग बूथ में जाएँ अवश्य ...और कोई उम्मीदवार लायक नहीं है का बटन दबायें
...क्योंकि जो भी कट्टर भारतीय ,हिन्दू धर्म के लिए समर्पित नहीं हुआ ...वो क्या खाक जमीनी विकास कर पायेगा ...और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदासरी निभा पायेगा ..?
किसी भी नेता की लच्छेदार बैटन में न फंसे ....
आप भारत के नागरिक हैं ...हिन्दू धर्म को मानते हैं ...अपने परिवार से प्यार करते हैं ...और ये नहीं चाहते कि-
लव जिहाद में आपके परिवार की कन्यायें फंस कर अपना जीवन बर्बाद न करें ...
आपके मंदिरों के आस पास मांस मटन की दुकाने न हो ....
मंदिरों का अस्तित्व बना रहे ...
तो अब इतना कठोर होना ही पड़ेगा ..आप सभी को ...
अन्यथा ...
जैसे मलेशिया ...मुस्लिम देश बना ...
विश्व का एकमात्र देश जो खुद को " हिन्दू राष्ट्र " कहता था असज कमुनिष्ट बन गया है ...
कभी संस्कृती का केंद्र रहा पश्चिम बंगाल पूरी तरह से मुस्लिम प्रदेश बन गया है ....
आयुर्वेद , मसालों की पावन भूमि केरल ....इसाई और मुस्लिम के कब्जे में है
जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाईल नहीं काम करते ...और अन्तराष्ट्रीय काल चार्ज होता है ....
आपका शहर , प्रदेश भी ऐसा ही बना देंगे ...ये मुस्लिम और इसाई
आप अपने शहर को घुमियेगा ...
पिछले दस वर्षों में ...हिन्दू ने कितनी प्रगति की ...और मुसलमानों इसाई ने कितनी ....चाहे दूकान हो ...शो रूम हो ...या जमीने ...
खुद पता चल जायेगा ...सच ...
नमस्ते ...

जो नहीं पढ़ाया जाता

सन् 1840 में काबुल में युद्ध में 8000 पठान मिलकर भी
1200 राजपूतो का मुकाबला 1 घंटे भी नही कर पाये
वही इतिहासकारो का कहना था की चित्तोड
की तीसरी लड़ाई जो 8000 राजपूतो और 60000
मुगलो के मध्य हुयी थी वहा अगर राजपूत 15000
राजपूत होते तो अकबर भी आज जिन्दा नही होता
इस युद्ध में 48000 सैनिक मारे गए थे जिसमे 8000
राजपूत और 40000 मुग़ल थे वही 10000 के करीब
घायल थे
और दूसरी तरफ गिररी सुमेल की लड़ाई में 15000
राजपूत 80000 तुर्को से लडे थे इस पर घबराकर में शेर
शाह सूरी ने कहा था "मुट्टी भर बाजरे(मारवाड़)
की खातिर हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता" उस
युद्ध से पहले जोधपुर महाराजा मालदेव जी नहि गए
होते तो शेर शाह ये बोलने के लिए जीवित भी नही
रहता
इस देश के इतिहासकारो ने और स्कूल कॉलेजो की
किताबो मे आजतक सिर्फ वो ही लडाई पढाई
जाती है जिसमे हम कमजोर रहे वरना बप्पा रावल
और राणा सांगा जैसे योद्धाओ का नाम तक सुनकर
मुगल की औरतो के गर्भ गिर जाया करते थे, रावत
रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाडा का त्याग
पढाया नही गया जिसने अपना सिर काटकर दे
दिया था, पाली के आउवा के ठाकुर खुशहाल सिंह
को नही पढाया जाता जिन्होंने एक अंग्रेज के
अफसर का सिर काटकर किले पर लडका दिया था
जिसकी याद मे आज भी वहां पर मेला लगता है।
दिलीप सिंह जूदेव का नही पढ़ाया जाता जिन्होंने
एक लाख आदिवासियों को फिर से हिन्दू बनाया
था
महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर
महाराणा प्रतापसिंह
महाराजा रामशाह सिंह तोमर
वीर राजे शिवाजी
राजा विक्रमाद्तिया
वीर पृथ्वीराजसिंह चौहान
हमीर देव चौहान
भंजिदल जडेजा
राव चंद्रसेन
वीरमदेव मेड़ता
बाप्पा रावल
नागभट प्रतिहार(पढियार)
मिहिरभोज प्रतिहार(पढियार)
राणा सांगा
राणा कुम्भा
रानी दुर्गावती
रानी पद्मनी
रानी कर्मावती
भक्तिमति मीरा मेड़तनी
वीर जयमल मेड़तिया
कुँवर शालिवाहन सिंह तोमर
वीर छत्रशाल बुंदेला
दुर्गादास राठौर
कुँवर बलभद्र सिंह तोमर
मालदेव राठौर
महाराणा राजसिंह
विरमदेव सोनिगरा
राजा भोज
राजा हर्षवर्धन बैस
बन्दा सिंह बहादुर
जैसो का नही बताया जाता
ऐसे ही हजारो योद्धा जो धर्म प्रजा और देश के
लिए कुर्बान हो गए।
वही आजादी में वीर कुंवर सिंह,आऊवा ठाकुर कुशाल
सिंह,राणा बेनीमाधव सिंह,चैनसिंह
परमार,रामप्रसादतोमर ,ठाकुर रोशन
सिंह,महावीर सिंह राठौर जैसे महान क्रांतिकारी
अंग्रेजो से लड़ते हुए शहीद हुये।।
जय हो क्षात्र धर्म की।।
जय भवानी

जाग जाओ हिंदुओं। लाल हरे सफ़ेद राक्षस सब लील रहे है

मो ने कहा पड़ोसी को लूटो, उसकी स्त्री को भोगदासी बनाओ, लूट व भोगदासियो में से बीस प्रतिशत हिस्सा मेरा। बदले में ये लो अल लाह का sanction।
और मज़हब का चोला पहने एक माफ़िया गैंग का जन्म हुआ।
१४०० साल हो गए, ना किसी शांतिदूत ने पूछा कि भगवान हारे हुए राज्य की प्रजा को लूटने की इजाज़त कैसे दे सकता है, व महिलाओं से बलात्कार की इजाज़त कैसे दे सकता है (आसमानी किताब में एक पूरी सुरा है लूट के माल व उसके बँटवारे को लेकर, व आधा दर्जन आयत है हारे हुए लोगों की महिलाओं के बलात्कार को लेकर।)
ना किसी काफ़िर ने कहा कि ऐसी घृणित किताब को भगवान की किताब मानने वाला मेरा पड़ोसी कैसे हो सकता है।
लूट और औरतो का लालच ऐसा कि मो का गैंग टिड्डी की तरह बढ़ता गया।
एक दिन भारत भी आए।
संख्या बल से जीते भी तो इतने मरें कि कभी सोचा न था।
और नगर में घुसे तो महिलाये मर चुकी होती थी, शव भी न मिलते। (मो ने शव का बलात्कार भी जायज़ बताया है।)
और धन, धन तो काफ़िर लेकर जंगलो में भाग जाते, पहाड़ों में छुप जाते।
मो का मॉडल चरमरा गया।
मो के चेलों ने tactic बदली। बोले ना लूटेंगे न बलात्कार करेंगे। जैसे हिंदू राजाओं ने राज किया राज करेंगे। टैक्स दो, नज़राना दो, व पहले जैसे ही कारोबार करो। और सूदख़ोर व मियाँ भाई की पार्ट्नरशिप का जन्म हुआ।
हिंदू elite ने ख़ुद को सुरक्षित पाया व शांतिदूतो को राज करने दिया लेकिन ग़रीब हिंदू के विरुद्ध जारी low level, random, but unceasing violence को नहीं देख पाए।
अंग्रेज़ आए। अपने साथ पादरी भी लाए। बोले धर्म बदलो। हिंदू भड़क गए व 1857 में ऐसा ठोका कि अंग्रेजो ने चुप चाप पादरियों को वापिस भेजा व शांतिदूतो की तरह ही हिंदुओं को सत्ता में भागीदार बनाया।
आया 1947. दो राक्षस महात्मा व पंडित अपने नाम के आगे लिख कर आए व हिंदू सो गए।
जाग जाओ हिंदुओं। लाल हरे सफ़ेद राक्षस सब लील रहे है
सनातन धर्म का इतना नुक़सान 700 साल में नहीं हुआ जितना पिछले 70 साल में हुआ है।
जाग जाओ हिंदुओं अब तो।

शुक्रवार, नवंबर 17, 2017

हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है। ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो।

Manish Pandey
हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है। ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो। क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है? जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है। ईस्ट तिमोर जो इंडोनेशिया का एक भाग था में पहले ईसाइयों की आबादी बहुत कम थी, मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले लोगों की आबादी 80% से अधिक थी केवल 50 वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्न से ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या 80% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरुप संयुक्त राष्ट्र के दखल से जनमत संग्रह करा कर ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया। कोई युद्ध नहीं हुआ। सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी, मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया। धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी क्षेत्र में ईसाइयों से भर दिया गया। फिर गृह युद्ध करा दिया गया। शांति प्रयास संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में हुए और परिणिति दक्षिणी सूडान को काटकर ईसाई देश के रूप में नए देश की मान्यता दे दी गई। कोसोवो सर्बिया के भीतर एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें खदानें बहुत अधिक थीं। इन खदानों में काम करने के लिए अल्बानियाई मूल के मुसलमानों को मजदूर के रूप में लाया गया था।कालांतर में इनकी संख्या बढ़ गई। यूगोस्लाविया के विघटन के बाद सर्बिया स्वतंत्र देश बना। लेकिन मुसलमानों ने सर्बों के अधीन रहना स्वीकार नहीं किया और कोसोवो को अलग देश बनाने की मांग किया। गृहयुद्ध जैसी स्थिति कई वर्षों तक रही। फिर नया देश बन गया।
भारत के कई क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से जनसांख्यकीय परिवर्तन किए जा रहे हैं। बहुसंख्यक आबादी इससे अनजान है। विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों मे ऐसा होने से गैरकानूनी एवं आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं। यदि हम भारत की अखंडता बनाए रखना चाहते हैं तो स्थानीय प्रशासन से मिलकर हमें समस्या का समाधान खोजना चाहिए। आखिर हम भी तो भारत माता के बिना वर्दी वाले सैनिक हैं।

गुरुवार, नवंबर 02, 2017

बंगाल इस्लामिक है, वहीँ ओड़िया बोलने वाले लोग 96% हिन्दू है , जानिये क्यों?

आज अधिकतर बंगाली मुसलमान है, पर ओड़िया बोलने वाले लोग 96% हिन्दू, ऐसा क्यों ?
इतिहास जो हमें जानना चाहिए ....बंगाल (बांग्लादेश सहित) आज इस्लामी हो गया, वहीँ ओडिसा आज भी 95% हिन्दू है .... कैसे ? जबकि दोनों ही इलाकों पर इस्लामिक हमलावरों ने सन 1000 के बाद एक साथ हमला किया था, फिर ऐसा क्या हुआ की बंगाली बोलने वाले लोग आज अधिकतर इस्लामिक है, मुसिलम है, पर ओड़िया बोलने वाले लोग हिन्दू है, कभी आपने इसका कारण सोचा है ?
सन 1248 ( 13वी शताब्दी ) इस्लामिक हमलावर तुगन खान ने उडीसा पर हमला किया । उस समय वहां पर राजा नरसिम्हादेवा का राज था । राजा नरसिम्हादेव ने फ़ैसला किया कि इस्लामी हमलावर को इसका जवाब छल से दिया जाना चाहिये । उन्होने तुगन खान को ये संदेश दिया कि वो भी बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन की तरह समर्पण करना चाहते हैं, जिसने बिना युद्ध लडे तुगन खान के सामने हथियार डाल दिये थे।
तुगन खान ने बात मान ली और कहा कि वो अपना समर्पण "पूरी" शहर में करे, इस्लाम कबूल करे और जगन्नाथ मंदिर को मस्जिद में बदल दे । राजा नरसिम्हादेव राज़ी हो गए और इस्लामिक लश्कर "पूरी" शहर की तरफ़ बढने लगा, इस बात से अन्जान कि ये एक जाल।है। राजा नरसिम्हादेव के हिंदू सैनिक शहर के सारे चौराहों , गली के नुक्कड़ ओर घरों में छुप गये ।
जब तुगन खान के इस्लामिक लश्कर ने जगन्नाथ मंदिर के सामने पहुंचे, उसी समय मंदिर की घंटिया बजने लगी और 'जय जगन्नाथ' का जयघोष करते हिंदू सैनिको ने इस्लामिक लश्कर पर हमला कर दिया। दिनभर युद्ध चला, ज्यादातर इस्लामिक लश्कर को कब्जे में कर लिया गया और कुछ भाग गये । इस तरह की युद्धनीति का उपयोग पहले कभी नहीं हुआ था । किसी हिंदू राजा द्वारा जेहाद का जवाब धर्मयुद्ध के द्वारा दिया गया ।
राजा नरसिम्हादेवा ने इस विजय के उपलक्ष्य में " कोनार्क" मंदिर का निर्माण किया । गूगल पर कम से कम ज़रूर देखिये इस शानदार मंदिर को ।अगर लड़ोगे तो जीतने की गुंजाइश तो होगी ही, मुर्दे लड़ नहीं सकते इसीलिए वो धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करते हैं ।
बंगाली भाषा जहाँ थी वहां का राजा लक्ष्मणसेन ने बिना लड़े हथियार डाल दिया, नतीजा देखिये, आज अधिकतर बंगाली बोलने वाले लोग मुसलमान है, बंगाल सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि बांग्लादेश भी बंगाल ही था, आज अधिकतर बंगाली लोग मुसलमान है, बंगाल इस्लामिक है, वहीँ ओड़िया बोलने वाले लोग 96% हिन्दू है .....
बात बिल्कुल स्पष्ट है ...सामने वाले की मानसिकता जैसी है उसी प्रकार से उसका सामना कीजिए....

बुधवार, नवंबर 01, 2017

क्रूर कट्टर इस्लाम की जान कुरान रूपी तोते में है |

इस्लामी दुनिया को ले कर सभ्य समाज का दायित्व *
सभ्य सँसार और इस्लामी दुनिया के चिंतन-जीवन में इतनी दूरी है कि सभ्य सँसार इस्लामी दुनिया को समझ ही नहीं सकता। सभ्य समाज में स्त्रियों के बाज़ार जाने, रेस्टोरेंट जाने, स्टेडियम जाने को ले कर कोई सनसनी जन्मती ही नहीं। यह कोई समाचार ही नहीं है मगर इस्लामी सँसार के लिए यह बड़ा समाचार है कि सऊदी अरब अब अपने देश में होने वाली खेल प्रतियोगिताएं को देखने के लिए महिलाओं को स्टेडियम में जाने की अनुमति देगा। यह अनुमति 2018 में लागू होगी। अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि महिलाएं स्टेडियम में जा कर खुद भी खेल सकेंगी कि नहीं। यह फ़ैसला युवराज मुहम्मद बिन सलमान ने समाज को आधुनिक बनाने और अर्थ व्यवस्था को बढ़ाने के तहत किया है। प्रारम्भ में इसे तीन बड़े नगरों रियाद, जद्दा और दम्माम में बने स्टेडियमों में लागू किया जायेगा। अब उन्हें पुरुषों के खेल देखने की अनुमति भी होगी।
सऊदी अरब खेल प्राधिकरण के अनुसार नई व्यवस्था के लिये स्टेडियम परिसर में रैस्टोरेंट, कैफ़े, सी.सी.टी.वी. कैमरे, स्क्रीन और ज़रूरी व्यवस्थाएं की जायेंगी। 32 वर्षीय युवराज के विज़न 2030 के तहत जल्द ही देश में म्युज़िक कंसर्ट और सिनेमा देखने का सिलसिला प्रारंभ होने की उम्मीद है। इसमें अभी भी पेच है। किसी भी सामान्य मस्तिष्क में भी प्रश्न आयेगा कि आख़िर औरतों को स्टेडियम में खेल देखने की यह अनुमति 2018 में लागू क्यों होगी ? आज ही लागू करने में क्या परेशानी है ? इसमें पेच यह है कि सऊदी व्यवस्था को स्टेडियम परिसर में रैस्टोरेंट, कैफ़े, सी.सी.टी.वी. कैमरे, स्क्रीन और ज़रूरी व्यवस्थाएं बनानी हैं। इसका मतलब यह है कि औरतों के लिये यह सारी व्यवस्था स्टेडियम में अलग से बने हिस्से में होगी। जिसमें बैठी महिलायें न दायें-बायें देख सकेंगी, न उनके बॉक्स में कोई बाहर से देख सकेगा। यह एक बक्सा सा होगा जो तीन तरफ़ से बंद और केवल सामने से खुला होगा। आपने यदि ताँगे के घोड़े को देखा हो तो आप पायेंगे कि उसकी आँखों के दोनों ओर चमड़े का बनी खिड़की की झावट सी होती है। जिसके होने से वो केवल सीधा ही देख सकता है।
सभ्य समाज को अपने लिए ही नहीं बल्कि मुल्ला समाज के लिए जानना और जनवाना उपयुक्त होगा कि सऊदी अरब ही नहीं अपितु पूरे अरब जगत में औरतें भारी बंदिशें झेल रही हैं। उनके पहनावे के कड़े नियम हैं। सार्वजनिक गतिविधियों, ग़ैरमर्द से बात करने पर प्रतिबंध हैं। पुरुषों के साथ काम करने पर रोक है। घर से अकेले निकलने पर रोक है। इससे उस घोर-घुटन, संत्रास, पीड़ादायक जीवन का अनुमान लगाइये जो क़ुरआन और हदीसों के पालन के नियम ने मुसलमानों के आधे हिस्से को सौंपा है।
पुरुष अभिभावक के बिना स्त्री कहीं और जाना तो दूर डॉक्टर के पास भी नहीं जा सकती। कल्पना कीजिये कि सऊदी अरब में कोई लड़की या औरत घर पर अकेली हो और उसके चोट लग गयी हो। साहब जी, इस्लामी क़ानून के अनुसार उसकी विवशता है कि उसका कोई पुरुष अभिभावक आये और उसे डाक्टर के पास ले जाये अन्यथा वह घायल बाध्य है कि तड़प-तड़प कर, रो-रो कर मर जाये।
मुसलमान औरत के लिए पुरुष की अधीनता बल्कि दासता इस्लामी व्यवस्था है और इससे उसका छूटना, बाहर आना उसकी निजी आवश्यकता ही नहीं है अपितु मानवता के लिए अनिवार्य है। मानवता स्वयं प्रस्फुटित नहीं होती इसे स्थापित करना पड़ता है। प्रत्येक पुरुष के बराबरी के अधिकार, सभी स्त्री-पुरुषों के बराबर के अधिकार मानवता की शर्त है। अतः यह सभ्य समाज की मानवीय ज़िम्मेदारी { moral duty } है कि आप और हम इस्लाम के शिकंजे से मुसलमान समाज को मुक्ति दिलायें। इसके लिये अनिवार्य शर्त इस्लाम से मुसलमानों को परिचित कराना, उसकी सत्यता का मुसलमानों को अहसास कराना है। एक बार मुसलमान स्थिति को समझ गये तो इस्लाम में बदलाव ले आयेंगे।
तुफ़ैल चतुर्वेदी