गुरुवार, जनवरी 24, 2013

Hindu Ancestory of Pakistan : Exposed by a Kashmiri Muslim Late Sheikh A...

Awakening of INDIANS via Social Media, which is the ONLY counter to Main-Stream Media in India, which is spreading LIES and Propaganda from last 60 Years..

शुक्रवार, जनवरी 18, 2013

आखिर कब तक सोएगी देश की भोली भाली जनता। इन्तहा हो गई अब तो जग जाओ।

जब भी किसी के सामने कांग्रेस के बारे में बताता हु तो वो सबसे पहले यही बोलता है की कांग्रेस ने ही देश को आजाद करवाया था। गाँधी परिवार ने भारत के लिए बहुत कुर्बानियां दी है। आखिर कब तक सोएगी देश की भोली भाली जनता। इन्तहा हो गई अब तो जग जाओ।
आइयें म आपको बताता हु कांग्रेस की सच्चाई जिस पार्टी का गठन एक अंग्रेज ने किया हो और वो भी अपने ही देश के खिलाप वो भारत की क्या भलाई सोचेगा। उसने तो कांग्रेस का गठन ही इस लिए किया था ताकि देश के कुछ कमजोर नेताओं को शामिल करके भारत को जायदा दिन तक गुलाम रखे। इस काम में वो पूरी तरह सफल भी रहा। उसी का नतीजा आज पूरा देश भुगत रहा है और तब तक भुगतेगा जब तक कांग्रेस को खत्म नही किया जायेगा। कांग्रेस ने अपने गठन से ले के देश की आजादी तक एक ही काम किया है देश भक्त क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बिच की कड़ी के रूप में। जब भी कोई आन्दोलन देश के आजादी की तरफ बढ़ता था कांग्रेस गाँधी का इस्तेमाल करके उसे ख़तम करवा देती थी। देश की आजादी तक गाँधी ने यही सब किया उसके बाद नेहरु ने भारत के कभी भी कांग्रेस के चंगुल से नही निकलने दिया। 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद गाँधी ने कहा था की कांग्रेस का काम देश को आजाद करवाना था भारत अब आजाद है तो कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए। नेहरु ने अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए पहले तो भारत माँ के दो टुकड़े करवा दिए उसके बाद गाँधी की बात को ना मानकर भारत के उपर कांग्रेस को थोप दिया।

जवाहर लाल नेहरु ने या इंदिरा गाँधी ने अपने जीवन में देश के लिए या देश के विकास के लिए कुछ नही किया। अगर किया होता देश की ये हालत न होती। 1945 के अमेरिकी हमले में जापान बर्बाद हो गया था उसके दो साल बाद1947 में भारत आजाद हुआ उसके दो साल बाद 1949 में चाइना आजाद हुआ था। ऐशिया के इन तीनो देशो का जन्म जैसे एक ही साथ हुआ था। पर आज हमारा पडोसी देश चाइना (हमसे जयादा आबादी का बोझ लेकर भी) और एक छोटा सा देश जापान हमसे 50 साल आगे निकल गए। हम अभी तक वही के वही खड़े है जहा से सबने एक साथ चलना शुरु किया था। हमारे देश को आजाद हुए 65 साल हो गए। इन 65 सालो में देश की सत्ता लगभग 57 सालो तक कांग्रेस के पास रही। पर आज भी देश का नागरिक भूख से मरता है, उनके पास रहने को घर नही है पीने को पानी नही है। लोग बिना इलाज के मर जाते है किसान अपना कर्ज नही चूका पाता इस लिए उसे आत्महत्या करनी पड़ती है। गरीब परिवार का बच्चा बिना शिक्षा के मजदूरी करने को मजबूर है। इतना सब होने के बाद भी क्या कोई कहेगा की कांग्रेस ने या गाँधी/नेहरु परिवार ने देश के लिए देश के नागरिकों के लिए कुछ किया है।

अब हमारे उपर एक और प्रधानमंत्री को थोपने की कोशिश की जा रही है जिसके पास एक छोटे बच्चे तक का दिमाग नही है जिसे ये भी नही पता की तुझे कहा पे क्या बोलना है और क्या नही बोलना। मुझे तरस आता है उन बेचारों की सोच पे जो कहते है की राहुल गाँधी तो देश पीम होना चाहिए ये बहुत स्मार्ट है। बहुत दिनों तक देश के लोगो ने एक नाटक भी देखा अपने इस कथित युवराज का जिसमे वो गरीबों की झोपडी में रुकता था और उनके साथ ही खाना भी खाता था। इस नाटक को देश की मीडिया ने भी बहुत अच्छे से हमें दिखाया पर किसी ने भी इस नाटक के पीछे का सच नही दिखाया। विदर्भ की जिस महिला के घर पे राहुल ने खाना खाया था और देश की मीडिया ने तब बहुत जोर शोर से इसे दिखाया था। उसकी गरीब महिला कलावती की लड़की सविता ने जब आत्महत्या की तब न तो राहुल का पता चला वो कहाँ है और न ही मीडिया ने इसे दिखाया। गरीब के घर रोटी खाई ये तो पुरे देश ने देखा पर जब एक इंसान गरीबी से तंग आके मर गया उसे किसी ने नही देखा। ******अमित चौधरी******

सोमवार, जनवरी 14, 2013

चर्च के भीतर समानता नहीं बाहर से दलितों की भलाई का रचते हैं ढोंग

चर्च के भीतर समानता नहीं बाहर से दलितों की भलाई का रचते हैं ढोंग

श्री राजीव दिक्षित को सुने जरुर 
https://www.youtube.com/watch?v=txfHt7O3ou8
कैथोलिक और प्रटोस्टेंट चर्चो ने देश के दलितों ईसाइयों की मुक्ति के लिए 9 दिसम्बर को ‘दलित मुक्ति संडे’ मनाने का एलान किया है। कैथोलिक बिशप कांफ्रेस आॅफ इंडिया और नेशनल कौंसल फार चर्चेज इन इंडिया नामक इन संगठनों को दलितों की दशा पर चिन्ता सताने लगी है। यह दोनों ही चर्च संगठन ‘वेटिकन’ और जनेवा स्थित ‘वल्र्ड चर्च कौंसिल’ के दिशा-निर्देशों के तहत अपने कार्यो को विस्तार देते है।

इसी वर्ष अक्टूबर महीने में पूरे विश्व के कैथोलिक चर्च की एक महासभा वेटिकन टू के नाम से पोप बेडिक्ट सोहलवें के नेतृत्व में हुई है जिसमें बदलते विश्व की परस्थितियों को ध्यान में रखते हुए धर्म-प्रचार को आगे बढ़ाने का आह्रवान किया गया है। इसी आह्रवान को अमली जामा पहनाते हुए चर्च ने ‘मानवाधिकार दिवस’ के मद्दे-नजर भारतीय दलितों के लिए नारा लगाया है कि ‘रुकवटे तोड़ों, विश्व में समानता का निर्माण करो’’!

‘दलित मुक्ति संडे’ के बहाने चर्च नेतृत्व ने अपना वही पुराना राग ‘धर्मांतरित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों’ की श्रेणी में शामिल करने की मांग उठाई है। चर्च ने डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार पर वायदा तोड़ने का आरोप लगाते हुए दलित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने पर जोर दिया है।

चर्च के अंदर धर्मांतरित ईसाइयों की दशा चर्च के इस लिबरेशन संडे की पोल खोल देती है। ‘रुकवटे तोड़ों, विश्व में समानता का निर्माण करो’ का नारा ऊपर से भले ही सुहवना दिखाई देता हो पर स्वाल खड़ा होता है कि जो चर्च नेतृत्व ढाई-तीन करोड़ दलित ईसाइयों के लिए अपने ढांचे (चर्च) के अंदर रुकावटे तोड़ कर समानता का महौल नही बना पाया वह गैर ईसाई दलितों का भला कैसे कर सकता है?

स्वाल खड़ा होता है कि सैकड़ों साल पहले हिन्दू समाज से टूटकर ईसाई बन गए धर्मांतरितों के वंशज आज भी ईसाइयत के अंदर ऐसी स्थिति में क्यों है कि उन्हें पुनः हिन्दू दलितों की श्रेणी में रखा जाये। चर्च का हिस्सा बन जाने के बाद भी यदि उन्हें सामाजिक, आर्थिक विषमताओं से छुटकारा नही मिल पाया तो उनके जीवन में चर्च का योगदान ही क्या है। हालांकि चर्च यह मानता है कि भारत की 70 प्रतिशत ईसाई आबादी दलितों की श्रेणी से आती है। परन्तु इसके बावजूद चर्च ढाचें में उनका कोई खास स्थान नही है। चर्चो के अंदर उनके साथ लगातार भेदभाव बढ़ रहा है। भारतीय चर्च अपनी नकामियों का ठीकरा हिन्दू व्यवस्था के सिर फोड़ते हुए अपने अनुयायियों के लिए वही दर्जा पाने की लालसा रखता है जो हिन्दू व्यवस्था में दलितो को मिला हुआ है।

ईसाइयत जाविाद में विश्वास नही करती इसी कारण जातिवाद से छुटकारे के लिए करोड़ों दलितों ने चर्च का दामन थामा था। खुद कैथोलिक बिशप कांफ्रेस आॅफ इंडिया ने अपने वर्ष 1981 में पारित एक प्रस्ताव में कहा है कि ‘ईसाइयत में जातिप्रथा का कोई स्थान नही है…यह प्रथा मनुष्यों को विभाजित करने वाली भेदभाव कारक है। यह प्रथा ईश्वर द्वारा प्रदत्त समानता और महत्ता जो मनुष्य को मिली है, उसका विनाश करने वाली कुप्रथा है।

फादर एन्टोनी राज का अध्ययन भी यह सिद्व करता है कि तमाम बाइबलीय प्रतिबंधों, वेटिकन के आदेशों और संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत चर्च में जातिवाद और छूआछूत को एक अपराध माना गया है। इसके बावजूद पग-पग पर धर्मांतरित ईसाइयों को चर्च के अंदर अपमान सहना पड़ रहा है। चर्च संसाधनों पर मुठ्ठीभर उच्च जातिय कर्लजी वर्ग का एकाधिकार बना हुआ है। विशाल संसाधनों से लैस और साम्राज्यवाद से ग्रस्त चर्च अपना संख्याबल बढ़ाने के चक्र में अपने ढांचें में जातिवाद और छूआछूत को समाप्त करने की अपेक्षा अपने अनुयायियों पर जातिवाद का संवैधानिक टैग लगना चाहता है। कई दलित इसाई विचारकों का मत है कि इससे चर्च को दोहरा लाभ प्राप्त होता है। एक-उसने चर्च के प्रति दलित ईसाइयों में पनपते आक्रोश को बड़ी ही होशयारी से सरकार की तरफ मोड़ दिया है। दूसरा-उसे जनजातियों की तरह दलितों में अपनी गहरी पैठ बनाने का सुअवसर मिलेगा।

दलित ईसाइयों का विकास भारतीय चर्च का कभी लक्ष्य नही रहा उन्होंने चर्च के कारोबार को बढ़ाने में ही उनका इस्तेमाल किया है। इसे एक छोटे से उदाहरण से ही समझा जा सकता है मौजूदा समय में कैथोलिक चर्च के 168 बिशप है (ईसाई समाज में सर्वाधिक ताकतवर पद) इनमें केवल 4 दलित बिशप है। तेरह हजार डैयसेशन प्रीस्ट, चैदह हजार रिलिजयस प्रीस्ट, पँाच हजार बर्दज और एक लाख के करीब नन है जिनमें से केवल कुछ सौ ही दलित पादरी है और वह भी चर्च ढांचे में हाशिए पर पड़े हुए है। हालही में दिल्ली कैथोलिक आर्चडायसिस के एक मात्र दलित ईसाई पादरी फादर विल्यम प्रेमदास चैधरी ने अपनी आत्मकथा ‘ऐन अन्वाटेंड प्रीस्ट’ में दलित पादरियों की व्यथा पेश की है।

आम धारणा है कि भारत सरकार के बाद चर्च के पास भूमि है वह भी शहरी क्षेत्रों के पाश इलाकों में। भारत में चर्च को कुछ संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। भाषा और संस्कृति को संरक्षण देने वाली संवैधानिक धराओं का दुरुपयोग करते हुए चर्च ने भारत में कितनी संपति इकट्ठी की है इसकी निगरानी करने का कोई नियम नही है। चर्चो और उनके संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया जाना चाहिए। अकेले कैथोलिक चर्च के पास 480 काॅलेज, 63 मैडीकल और नर्सिग काॅलेज, 9,500 सकेंडरी स्कूल, 4,000 हाई स्कूल, 14,000 प्रईमरी स्कूल, 7,500 नर्सरी स्कूल, 5,00 टेªनिग स्कूल, 9,00 टेकिनिकल स्कूल, 2,60 प्रोफेशनल इंसीट्यूट, 6 इंजिनरिंग काॅलेज और 3,000 होस्टल है। कैथोलिक चर्च 1,000 के करीब अस्पताल भी चला रहा है। अगर प्रोटेस्टेंट चर्चो के संस्थानों को भी मिला लिया जाये तो यह संख्या 50,,000 के करीब करीब है।

भारतीय चर्च के इस विशाल साम्राज्यवाद में दलित ईसाइयों की कितनी हिस्सेदारी है। कितने स्कूलों में ईसाई प्रंसीपल और अध्यापक है, कितने काॅलजों में वह प्रोफसर या डीन है। कितने अस्पतालों में वह डाक्टर है। शिक्षा का डंका बजाने वाले चर्च की कृपा से पढ़-लिखकर कितने उच्च पदों पर है और हजारों करोड़ के विदेशी अनुदान से गरीबों का उद्वार करने वाले चर्च के सामाजिक संगठनों में कितनो के निर्देशक दलित ईसाई है। दलित लिबरेशन संडे मनाने से पहले चर्च को यह सब बताना चाहिए। उसे यह भी बताना चाहिए कि चर्च द्वारा चलाये जाते हजारों कान्वेेट स्कूलों में दलित ईसाई बच्चों का कितना प्रतिशत है। क्योंकि दलित ईसाई लगातार आरोप लगाते रहे है कि चर्च के यह स्कूल अल्पसंख्यक अधिकारों की आड़ में मोटा मुनाफा कमाने के अड्डे बन गए है। देश की राजधानी दिल्ली में ऐसे स्कूलों में दलित ईसाइयों की भागीधारी आधा प्रतिशत भी नही है। चाहे तो चर्च इस पर श्वेत पत्र जारी कर सकता है।

यह सच है कि जिन दलितों ने ईसाइयत को अपनाया वह हिन्दू दलितों के मुकाबले जीवन की दौड़ में पीछे छूट गए है। जहां हिन्दू समाज ने विकास की दौड़ में पीछे छूट गए अपने इन अभाव-ग्रस्त भाई-बहनों को आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध करवाये, वही भारतीय चर्च ने अपना साम्राज्य बढ़ाने को प्रथमिकता दी। आगे बढ़ गए हिन्दू दलितों ने हालही में ‘दलित इंडियन चेम्बर आफ काॅमर्स एण्ड इण्डस्ट्री’ की शुरुआत करके पीछे छूट गए दलित बंधुवों को सस्ते कर्ज देकर अपने रोजगार शुरु करने की पहल की है। लेकिन चर्च नेतृत्व ने दलित ईसाइयों के लिए आज तक विकास का कोई माडल ही नही बनाया। ऐसे लिबरेशन संडे मना कर दलित ईसाइयों का उपहास उड़ाने तथा दूसरो को दोष देने की अपेक्षा ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि दलित ईसाइयों का चर्च संसाधनों पर पहला अधिकार हो, तांकि उनके विकास का मार्ग खुल सके।

सिर्फ स्नान नहीं, विज्ञान है मकर सक्रान्ति:: जाने इसका महत्व ::

सिर्फ स्नान नहीं, विज्ञान है मकर सक्रान्ति:: जाने इसका महत्व ::

मकर सक्रान्ति का पर्व आया और चला गया। नदी में एक डुबकी लगाई; खिचड़ी खाई और आगे बढ़ गये। क्या हमारे त्यौहारों का इतना ही मायने है अथवा इनका भी कोई विज्ञान है? मकर सक्रान्ति सूर्य पर्व है या नदी पर्व? हर सूर्य पर्व में नदी स्नान की बाध्यता है और हर नदी पर्व में सूर्य को अर्घ्य की। क्यों? कुल मिलाकर माघ का महीना, सूर्य, मकर राशि, संगम का तट, नदी का स्नान और खिचड़ी खाना-ये पांच मुख्य बातें मकर सक्रान्ति की तिथि से जुड़ी हैं। इनके विज्ञान उल्लेख हमारे उन पुरातन ग्रंथों में दर्ज है, जिन्हें हमने अंधकार के पोथे कहकर खोलने से ही परहेज मान लिया है। क्या है इनका विज्ञान? मकर सक्रान्ति माघ के महीने में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व है। आइये! जानते हैं कि क्या है सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का मतलब? सभी जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में दो तरह के पिण्ड हैं। ऑक्सीजन प्रधान और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान। ऑक्सीजन प्रधान पिण्ड ‘जीवनवर्धक’ होते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान ‘जीवनसंहारक’। बृहस्पति ग्रह जीवनवर्धक तत्वों का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है। शुक्र सौम्य होने के बावजूद आसुरी है। रवि यानी सूर्य का द्वादशांश यानी बारहवां हिस्सा छोड़ दें, तो शेष भाग जीवनवर्धक है। सूर्य पर दिखता काला धब्बे वाला भाग मात्र ही जीवन सहांरक प्रभाव डालता है। वह भी उस क्षेत्र में, जहां उस क्षेत्र से निकले विकिरण पहुंचते हैं।

अलग-अलग समय में पृथ्वी के अलग-अलग भाग इस नकारात्मक प्रभाव में आते हैं। अमावस्या के निकट काल में जब चंद्रमा क्षीण हो जाता है, तब संहारक प्रभाव डालता है। शेष दिनों में, खासकर पूर्णिमा के दिनों में चंद्रमा जीवनवर्धक होता है। इसीलिए चंद्रमा और सूर्य के हिसाब से गणना के दो अलग-अलग विधान हैं। मंगल रक्त और बुद्धि... दोनों पर प्रभाव डालता है। बुध उभयपिण्ड है। जिस ग्रह का प्रभाव अधिक होता है, बुध उसके अनुकूल प्रभाव डालता है। इसीलिए इसे व्यापारी ग्रह कहा गया है। व्यापारी स्वाभाव वाला। छाया ग्रह राहु-केतु तो सदैव ही जीवनसंहारक यानी कार्बन डाइऑक्साइड से भरे पिण्ड हैं। इनसे जीवन की अपेक्षा करना बेकार है। जब-जब जीवनवर्धक ग्रह संहारक ग्रहों के मार्ग में अवरोध पैदा करते हैं। संहारक ग्रहों की राशि में प्रवेश कर उनके जीवनसंहारक तत्वों को हम तक आने से रोकने का प्रयास करते हैं; ऐसे संयोगों को हमारे शास्त्रों ने शुभ तिथियां माना। ऐसा ही एक संयोग मकर सक्रान्ति है।

शनि जीवनसंहारक शक्तियों का पुरोधा है। अलग-अलग ग्रह अलग-अलग राशि के स्वामी होते है। शनि मकर राशि का स्वामी ग्रह है। जिस क्षण से जीवनवर्धक सूर्य, जीवनसहांरक शनि की राशि में प्रवेश कर उसके नकरात्मक प्रभाव को रोकता है। वह पल ही मकर संक्रान्ति का शुभ संदेश लेकर आता है। तीसरा वैज्ञानिक संदर्भ संगम का तट, नदी का स्नान और सूर्य अर्घ्य के रिश्ते को लेकर है। हम जानते हैं कि नदियां सिर्फ पानी नहीं होती। हर नदी की अपनी एक अलग जैविकी होती है।...एक अलग पारिस्थितिकी। जहां दो अलग-अलग मार्ग से आने वाले जीवंत प्रवाह स्वाभाविक तौर पर मिलते हैं, उस स्थान का हम संगम व प्रयाग के नाम से पुकारते हैं। प्रयाग पर प्रवाहों के एक-दूसरे में समा जाने की क्रिया से नूतन उर्जा उत्पन्न होती है। लहरें उछाल मारती हैं। जिसका नतीजा ऑक्सीकरण की रासायनिक क्रिया के रूप में होता है। ऑक्सीकरण की क्रिया में पानी ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाती है। यह प्रक्रिया बी.ओ.डी. यानी बायो ऑक्सीजन डिमांड को कम करती है। जाहिर है कि प्रयाग स्थल पर पानी की गुणवत्ता व मात्रा दोनों ही बेहतर होती है। अतः हमारे पुरातन ग्रंथ प्रयाग में स्नान को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।

मकर सक्रान्ति के दिन लाखों लोगों द्वारा एक साथ स्नान से नदियों में होने वाले वाष्पन का वैज्ञानिक महत्व है। इस दिन से भारत में सूर्य के प्रभाव में अधिकता आनी शुरू होती है। सूर्य के प्रभाव में अधिकता का प्रारंभ और ठीक उसी समय नदियों में एक साथ वाष्पन की क्रिया एक-दूसरे के सहयोगी हैं। दोनों मौसम के तापमान को प्रभावित करते हैं। इससे ठीक एक दिन पहले एक साथ-समय पूरे पंजाब में लोहड़ी मनाते हैं। इन क्रियाओं के आपसी तालमेल का प्रभाव यह होता है कि उत्तर भारत के मैदानों में मकर सक्रान्ति से ठंड उतरनी शुरू हो जाती है। ध्यान देने की बात है कि इस ठंड की विदाई भी हम होली पर पूरे उत्तर भारत में एक खास मुहुर्त पर व्यापक अग्नि प्रज्वलन से करते हैं।

मकर सक्रान्ति को खिचड़ी भी कहते हैं। इस दिन खिचड़ी आराध्य को चढ़ाने, खिलाने व खाने का प्रावधान है। मकर सक्रान्ति से मौसम बदलता है। जब भी मौसम बदले, मन व स्वास्थ्य की दृष्टि से खानपान में संयम जरूरी होता है। वर्षा से सर्दी आने पर पहले श्राद्ध का संयम और फिर नवरात्र के उपवास। इधर पौष की शांति और फिर मकर सक्रान्ति को खानपान की सादगी। सर्दी से गर्मी ऋतु परिवर्तन का महीना चैत्र का खरवास फिर रामनवमी। इनके बहाने ये संयम कायम रखने का प्रावधान है। न सिर्फ शारीरिक संयम बल्कि मानसिक संयम भी। ऐसे ही संयम सुनिश्चित करने के लिए कमोबेश इन्ही दिनों इस्लाम में रोजा और ईसाई धर्म में गुड फ्राइडे के दिन बनाये गये हैं है। विज्ञान धार्मिक आस्था में विभेद नहीं करता है। अलग-अलग धर्मिक आस्थायें अलग-अलग भूगोल में स्वरूप लेने के कारण थोड़ी भिन्न जरूर होती हैं, लेकिन इनका विज्ञान एक ही है।... सर्वकल्याणकारी।

लेखक: अरुण तिवारी

सोमवार, जनवरी 07, 2013

पुनर्जन्म का सिद्धांत :-

पुनर्जन्म का सिद्धांत :-

यह विचारणीय बात है कि निसर्गतः अज्ञानी कृमिकीटों (कीड़े मकौड़ों) को भी अपने मृत्यु के पता कैसे लगा, और उस स्थान से दूसरे स्थान तक भाग जाने का उत्साह उसे किसने सिखाया ? इसका विचार करते करते विचारी मनुष्य पुनर्जन्म पर विशवास करने लगता है, और समझता है, कि प्रत्येक प्राणिमात्र के अन्दर जो यह मृत्यु का भय लगा हुआ है , वह मृत्यु के अनुभव के कारण ही है । पहले कई बार इसने स्वयं मृत्यु का अनुभव किया और देखा कि मृत्यु के समय क्या आपत्ति होती है । मृत्यु के अनिष्ट अनुभव का गुप्तज्ञान उसकी सूक्ष्मबुद्धि में छिपा हुआ है और यही उसे प्रेरणा करता है कि तुम मृत्यु से बचने का यत्न करो । अर्थात् पुनर्जन्म सत्य है , इसीलिए प्रत्येक प्राणी मृत्यु से भयभीत होता है ; यदि पूर्व मृत्यु का अनुभव न होता तो इस देह में आने के पश्चात मृत्यु कि कलप्ना भी किसी प्राणी को न होती और जिसकी कलप्ना भी नहीं होती उसके विषय में भय का होना सर्वथा असम्भव है ।


जीव अल्पज्ञ है त्रिकालदर्शी नहीं इसीलिए स्मरण नहीं रहता और जिस मन से ज्ञान करता है , वह भी एक समय में दो ज्ञान नहीं रख सकता । भला पूर्वजन्म की बात तो दूर रहने दीजिये , इसी देह में जब गर्भ में जीव था, शरीर बना, पश्चात जन्मा , पांचवें वर्ष से पूर्व तक जो भी बातें हुई हैं, उनका स्मरण क्यों नहीं कर सकता ? और जाग्रत वा स्वप्न में बहुत सा व्यवहार प्रत्यक्ष में करके जब सुषुप्ति अथवा गाढ़ निद्रा होती है ,तब जाग्रत आदि का व्यवहार क्यों नहीं कर सकता ? और तुनसे कोई पूछे कि बारह वर्ष से पूर्व तेहरवें वर्ष के पांचवें दिन दस बजे पर पहली मिनट में तुमने क्या किया था ? तुम्हारा मुख , कान, हाथ , नेत्र , शरीर , किस ओर किस प्रकार का था ? और मन में क्या विचार था ? जब इसी शरीर में ऐसा है तो पूर्वजन्म की बातों में स्मरण में शंका करना केवल लड़कपन की बात है और जो स्मरण नहीं होता इसी से जीव सुखी है , नहीं तो सब जन्मों के दुखों को देख देख दुखित होकर मर जाता ।


जब पाप बढ़ जाता और पुन्य कम हो जाता है तब मनुष्य का आत्मा पश्वादि नीच शरीर और जब धर्म अधिक तथा आधर्म कम होता है तब देव अर्थात् विद्वानों का शरीर मिलता है और जब पुन्य पाप बराबर होता है तब साधारण मानव जन्म होता है ।इसमें भी पुण्य पाप के उत्तम, मध्यम,निकृष्ट शरीर आदि सामग्री वाले होते हैं और जब अधिक पाप का फल पश्वादि शरीर में भोग लिया है पुनः पाप पुुण्य के तुल्य रहने से मनुष्य शरीर में आता और पुण्य के फल भोग कर फिर भी मध्यस्त पुरुष के शरीर में आता है जब शरीर से निकलता है उसी का नाम मृत्यु और शरीर के साथ संयोग होने का नाम ही जन्म है । तो यह जीवन मृत्यु का चक्र इसी प्रकार से चलता रहता है । यदी कोई कहे कि मृत्यु के बाद क्या ? तो यही उत्तर होगा कि "जीवन" । फिर जीवन के पश्चात मृत्यु का वही क्रम होता है । ईश्वर ने यही नियम अपनी हर रचना में भी दे रखा है,जैसे कि पृथ्वी सूर्य की एक निश्चित रूप में परिक्रमा करती है , और पूरा सौरमण्डल आकाश गंगा की निश्चित मार्ग और निश्चित समय में परिक्रमा करता है ।

ठीक वैसे ही जन्म मृत्यु का यह चक्र इसी तरह से चलता है, परन्तु जीवात्मा किस शरीर में जायेगा यह निरधारण केवल उसके कर्मों के आधार पर किया जाता है, क्योंकि जैसा बीजोगे वैसा पाओगे । अगर हम यह मानें भी कि यही जन्म केवल आधुनिक है तो इससे प्रकृति नियम चक्र का ही उलंघन होगा । क्योंकि अगर जिवात्माओं को उनके कर्मों का यथायोग्य फल देना ही ईश्वर का न्याय है । यह पुनर्जन्म की बात तो हमारे अनुभव की भी है, कभी हमने TV , समाचार पत्रों में अनेकों बार यह सुना है कि अमुक गाँव के एक बालक को अपने पूर्व जन्म की बातोंं का स्मरण है , उसे अपने पूर्व जन्म के माता पिता, भाई , पत्नि आदि भी याद हैं और वह स्थान भी जहाँ वह पिछले जन्म में रहता था जहाँ कि वह इस जन्म में कभी गया तक नहीं था । तो इस तरह के समाचार अकसर ही सुनने को मिलता है और यही बात जान पड़ती है कि पुनर्जन्म सत्य है और शाशवत है ।

अब जो सिद्धांत इस विषय को गम्भीरता से समझाते हैं उनका विज्ञान महर्षि कपिल के सांख्यशास्त्र के अनुसार इस प्रकार है :-

जीव शरीर का निर्माण इस रीति से हुआ कि :-
त्रिगुणात्मक प्रकृति से बुद्धि, अहंकार,मन,
सात्विक अहंकार से पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा),
ताम्सिक अहंकार से पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु),
पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश )
पाँच विषय (रूप,रस,गंध,स्पर्श,दृष्य)
और इस चौबिस प्रकार के अचेतन जगत के अतिरिक्त पच्चीसवाँ चेतन पुरुष (आत्मा) ।

शरीर के दो भेद हैं :-

सूक्ष्म शरीर जिसमें :- [बुद्धि ,अहंकार, मन ]
स्थूल शरीर जिसमें :-[ पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) ]

जब मृत्यु होती है तब केवल स्थूल शरीर ही छूटता है, पर सूक्ष्म शरीर पूरे एक सृष्टि काल (4320000000 वर्ष) तक आत्मा के साथ सदा युक्त रहता है और प्रलय के समय में यह सूक्ष्म शरीर भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है । बार बार जन्म और मृत्यु का यह क्रम चलता रहता है शरीर पर शरीर बदलता रहता है पर आत्मा से युक्त वह शूक्ष्म शरीर सदा वही रहता है जो कि सृष्टि रचना के समय आत्मा को मिला था , पर हर नये जन्म पर नया स्थूल शरीर जीवात्मा को मिलता रहता है ।

जिस कारण हर जन्म के कुछ न कुछ विषय हमारी शूक्ष्म बुद्धि में बसे रहते हैं और कोई न कोई किसी न किसी जन्म में कभी न कभी वह विषय पुनः जागृत हो जाते हैं जिस कारण वह लोग जिनको कि शरीर परिवर्तन का वह विज्ञान नहीं पता वह लोग इसको भूत बाधा या कोई शैतान आदि का साया समझ कर भयभीत होते रहते हैं । कभी किसी मानव की मृत्यु के बाद जब उसे दूसरा शरीर मिलता है तब कई बार किसी विषय कि पुनावृत्ति होने से पुरानी यादें जाग उठती हैं , और उसका रूप एकदम बदल जाता है और आवाज़ भारी हो जाने के कारन लोग यह सोचने लगते हैं कि इसको किसी दूसरी आत्मा ने वश में कर लिया है , या कोई भयानक प्रेत इसके शरीर में प्रवेश कर गया है ।

परन्तु यह सब सत्य ना जानने का ही परिणाम है कि लोग भूत प्रेत, डायन, चुड़ैल,परी आदि का साया समझ भय खाते रहते हैं । पृथ्वी के सभी जीवों में यह बात देखी जाती है कि जिस विषय का अनुभव उनको होता है उस विषय कि जब पुनावृत्ति का आभास जब उन्हें होता है तब उनकी बुद्धि उस विषय में सतर्क रहती है । और देखा गया है कि पृथ्वी का हर जीव मृत्यु नामक दुख से भयभीत होता है और बचने के लिये यत्न करता है , वह उस स्थान से दूर चला जाना चाहता है जहाँ पर मृत्यु की आशंका है , उसे लगता है कि कहीं और चले जाने से उसका इस मृत्यु दुख से छुटकारा हो जायेगा ।

अब यहाँ समझने वाली बात यह है कि किसने उस जीव को यह प्रेरणा दी यह सब करने कि? तो यही तथ्य सामने आता है कि यह सब उसके पूर्व मृत्यु के अनुभव के कारनण ही है, क्योंकि मृत्यु का अनुभव उसे पूर्व जन्म में हो चुका है जिस कारण वह अनुभव का ज्ञान जो उसकी सूक्ष्म बुद्धि में छुपा था वह उस विषय कि पुनावृत्ति के होने से दुबारा जाग्रत हो गया है । जैसा कि पहले भी कहा गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की हुआ करती है , तो सूक्ष्म शरीर तो वही है जो पहले था और अब भी वही है । जिस कारण यह सिद्ध होता है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध है ।

बुधवार, जनवरी 02, 2013

जब भारत में हिन्दू-शाशन था *** दामिनी, बलात्कार पर मेरे दो शब्द ***

*** दामिनी, बलात्कार पर मेरे दो शब्द ***
जब भारत में हिन्दू-शाशन था तो गुरुकुल में शास्त्र के साथ शस्त्र-विद्या (तीर-कमान, घोड़-सवारी इत्यादि) लेना भी अनिवार्य था ! जबसे मुग़ल आये, हमारी नारियो को बंद कर दिया घरो में, और उनके शरीरो पर बुरका-रुपी पंजाबी-सूट दाल दिया! जब ब्रिटिश आये, तो उन्होंने गुरुकुल ही बंद करवा दिया, अंग्रेजी लगवा दी. जब नेहरु-भांड आया, तो उसने गांधीवाद, उर्दू जैसी गन्दगी लगवा दी स्कुलो में! अब आप समझ लीजिये की वेद, गीता और सनातन संस्कृति से दूर होने के कारण ही हिन्दू हिजड़ा बन गया! प्राचीन समय में ना तो नग्नता को देखकर कोई पुरुष अपनी मर्यादा भुलता था और ना ही कोई युवती "शर्मीली" होती थी! उस समय ज्ञान बहुत था, युवतिया भी तेज-तर्रार योद्धा होती थी! आजकी युवतियों को देखो, अंग्रेजी शिक्षा और मुग़ल संस्कृति के दमन के कारण कितनी दुर्बल हो चुकी है! शर्माती भी है, और रोती भी है, वह तेज-तर्रार व्यक्तिमत्व पूरी तरह खो चुकी है! शर्माना कोई "अच्छी" बात नहीं होती, यह कमजोरी होती है व्यक्ति की! यह आजकल के भांड हिन्दुओ को युवतियों का शर्माना संस्कृति दिखाई देती है! परन्तु यह एक फूहड़-व्यक्तिमत्व का लक्षण है, आप शर्माते तब है जब आप बारह साल से होते है, क्या बीस साल की पढ़ी-लिखी युवतियों को शर्माना शोभा देता है ?.. नहीं देता! इसपर निरिक्षण करिए, हम जो खो चुके है, वह शिक्षा और व्यक्तिमत्व के मूल्य वापिस लाना होगा.

मुघलो से आने से पहले - पंजाबी सूट नहीं था भारत में, और युवतीया गले में दुपट्टा नहीं डालती थी. दुपट्टा केवल सर पर होता था, वह भी केवल धूंप से बचने के लिए, ना की चेहरा छुपाने के लिए. यह है सनातन संस्कृति !... इतनी उदारता के बाद भी लडकिया सुरक्षित थी!

और आज देखिये. जबसे इस्लामी मानसिकता भारत में हावी हो गई, बलात्कार होने लगे है. क्युकी बोलीवुड में अब यह शिक्षा दी जा रही है की अगर किसी लड़की में कुछ अच्छा है तो वह उसके बूब्स, उसकी नंगी गोरी टाँगे है! उस लड़की का चरित्र कोई महत्व नहीं रखता, अगर कुछ महत्त्व रखता है तो उसका रूप, उसकी नंगी-टाँगे, उसकी बाहरी सुन्दरता. और वह सुन्दरता भी उसे छुपानी होगी. सोचिये क्यू ?...क्युकी इस सुन्दरता को छोड़कर एक लड़की के पास कुछ और होता ही नहीं !!!!.. यानी की उसमे बुद्धि नहीं होती. यही कारण है की बोलीवुड में दिखाई जाने वाली लडकियों का व्यक्तिमत्व बहुत ही संकुचित होता है. उसका बस एक ही काम है - शरमाओ(एक मानसिक कमजोरी का लक्षण), और अपनी सुन्दर शरीर को छूपाओ(क्युकी वही एक चीज होती है लड़की के पास काम की). यही तो इस्लामी विचारधारा है. जबकि सनातन विचारधारा में इसका उल्टा है !!.. आप भले ही कितने भी उदार या खुले परिधान पहने, अगर आपका व्यवहार सदाचारी और बुद्धि में ज्ञान नहीं तो फिर आपके व्यक्तिमत्व, और चरित्र में दम नहीं !

-- via Anna Roger

मंगलवार, जनवरी 01, 2013

दुनिया का पहला काफ़िर ( जो कुरान को ना माने ) कौन है....?????

क्या आप जानते हैं कि..... दुनिया का पहला काफ़िर ( जो कुरान को ना माने ) कौन है....?????

दरअसल बात ऐसी है कि..... आज मुस्लिम लगभग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं.... और... पूरी दुनिया को ही इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए ..... काफिरों ( जो कुरान पर इमान ना लाये.. या कुरान को ना माने ) ... के खिलाफ जिहाद चला कर पूरी दुनिया कि शांति भंग किए हुए हैं...!

परन्तु .... आप यह जानकार दंग रह जाएंगे कि..... दुनिया का सबसे बड़ा ... और सबसे पहला काफिर ..... और कोई नहीं बल्कि...... इस्लाम का प्रतिपादक और तथाकथित रूप से अल्लाह का रसूल ..... मुहम्मद ही था....!

मुहम्मद ने .... अपने जीवनकाल में.... अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए ..... ना सिर्फ "खुदाई किताब कुरान" की खिल्लियाँ उड़ाई..... बल्कि.... कुरान के आदेशों की जम कर अवहेलना की...... और ..... मुहम्मद ने....... खुदा का रसूल होते हुए भी....... अपने जीवन काल में ..... अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए.... खुदा के आदेशों की धज्जियाँ उड़ा दी...!

ये कोई काल्पनिक बातें नहीं है..... बल्कि.... खुद कुरान और ... विभिन्न इस्लामिक धर्म ग्रंथों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि...... मुहम्मद ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से वशीभूत होकर ... किस प्रकार कुरान के खुदाई आदेशों की धज्जियाँ उड़ा दी...!

ज़रा आप भी ..... कुरान के उन सन्दर्भों का अध्धयन करें...... तथा.... इस्लाम, कुरान और मुहम्मद से सम्बंधित अपने सामान्य ज्ञान में वृद्धि करें.......


@@@ 1 -रोजे की हालत में सेक्स किया

कुरान कहता है.... -"तुम्हारे लिए रोजे की रातों में अपनी स्त्रियों के पास जाना हराम है .......... "सूरा -बकरा 2 :187

#### मुहम्मद द्वारा उल्लंघन - रसूल ने रोजे की हालत में अपनी पत्नी उम्मे सलाम को चूमा और उस से शारीरिक सम्बन्ध बनाया .... . बुखारी -जिल्द 1 किताब 6 हदीस 319

उम्मे सलाम ने कहा कि ,.... रसूल रोजे से थे और मेरा महीना चल रहा था .... रसूल ने मुझे उसे एक ऊनी लिहाफ में लिटा लिया और फिर मेरे कपडे उतारवा दिए और अपने कपडे उतार दिए ....फिर, हमने मिल कर एक मिट्टी के बड़े से बर्तन Jambaa में नहाया .........बुखारी -जिल्द 3 किताब 31 हदीस 149

आयशा ने कहा कि..... रसूल रोजे की हालत में भी अपनी औरतों आलिंगन में लेकर उनको चुमते थे .और वे रोजे हालत में भी मेरी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसते थ...... सुन्नन अबू दौउद -किताब 13 हदीस 2380

@@@ 2 -शादी में मेहर नहीं दिया

कुरान का आदेश -"और तुम अपनी औरतों को शादी के समय उनका मेहर हैसियत के मुताबिक़ दो............... "सूरा -अन निसा 4 :4

#### मुहम्मद द्वारा उल्लंघन -"रसूल ने साफिया बिन्त हुयेय्य नाम की औरत से शादी की.......जिसे खैबर के युद्ध में पकड़ा गया था.. और, रसूल पहले उसके साथ तीन दिनों तक सम्भोग किया था.....बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 523

"अनस बिन मालिक ने कहा कि.......... खैबर से लौटते समय रसूल ने रास्ते में ही साफिया को अपनी पत्नी घोषित कर दिया था .....और, उसपर एक चादर डाल दी थी ....बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 524

अनस ने बिन मालिक ने कहा कि..... ,जब रसूल साफिया के साथ सम्भोग की तैयारी कर रहे थे तो ..... उस्मान ने कहा कि साफिया कुंवारी नहीं है ... और , उसकी शादी हो चुकी है .... इसीलिए कुरान के अनुसार उसकी इद्दत पूरी नहीं हुई है .... लेकिन रसूल ने उसे नहीं माना................... .मुस्लिम -किताब 8 हदीस ३३२६

@@@ 3 -अनुमति से अधिक औरतें रखीं
कुरान का आदेश -"और, इतनी औरतों के बाद अतिरिक्त औरतें रखना तुम्हारे लिए हराम है और यह जायज नहीं है कि.... तुम अपनी पत्नियों को बदल कर दूसरी औरतें ले आओ ...चाहे उनकी सुन्दरता तुम्हें कितनी भी भाये ..........सूरा -अहजाब 33 :52

### मुहम्मद द्वारा उल्लंघन - कुरान के इस आदेश कि खुलम खुल्ला उल्लंघन करते हुए मुहम्मद ने ....अपनी ग्यारह पत्निया और कई रखेलों के अलावा........ कई दासियों भी रख रखी थी.

@@@ 4 -अपने दोस्त की सजा माफ़ कर दी
कुरान का आदेश - व्यभिचार करने वाले पुरुष और स्त्री दोनों में से हरेक को सौ कोड़े मारो .और, अल्लाह के कानून के मामले में किसी को उन पर तरस नहीं आना चाहिए .....सूरा -अन नूर 24 :2

### मुहम्मद द्वारा उल्लंघन - अनस बिन मालिक ने कहा कि... मैं रसूल के पास बैठा था ......तभी लोग एक आदमी को रसूल के सामने लाये ......जिस पर व्यभिचार का आरोप था... और, रसूल उसको जानते थे ,
वह रसूल के साथ नमाज पढ़ता था ..... फिर, उसने रसूल से पूछा कीकि... आप मुझे क्या सजा डोज .... .?
इस पर रसूल ने उस से कहा .........जाओ, मैंने तेरा अपराध माफ़ कर दिया ..............बुखारी -जिल्द 8 किताब 82 हदीस 812

@@@ 5 -हज्ज के कपड़ो (इहराम ) को पहन कर शादी की
कुरान का आदेश -जिन लोगों ने हज का इरादा कर लिया है (इहराम पहमपहन लिया ) उनको हज के दिनों में विषयभोग की बातें करना जायज नहीं हैं..... सूरा -बकरा 2 :197

### मुहम्मद द्वारा उल्लंघन -इब्ने अबास ने कहा कि ..... रसूल उमरा (हज ) के लिए मक्का जा रहे थे ..... तभी, उनको मैमूना बिन्त से शादी का प्रस्ताव मिला ... जिसे रसूल ने तुरत कबूल कर लिया ....और, इहराम पहने हुए ही मैमूना से निकाह कर लिया ........ तबरी -जिल्द 8 हदीस 136 .
मुस्लिम -किताब 1 हदीस 1671 ,1674 और 1675 और अबू दाऊद -जिल्द 2 किताब 10 हदीस 1840
"मैमूना का पति मर गया था .इस शादी के समय रसूल कि आयु 53 साल और मैमूना की आयु 30 साल थी .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3284

बुखारी - जिल्द 5 किताब 59 हदीस 559 .और सुन्नन नसाई -जिल्द 1 हदीस 43 पेज 130

@@@ 6 -अपनी पत्नियों को तलाक दी
कुरान का आदेश -हे रसूल.... तुम्हारे लिए यह जायज नहीं है कि.... तुम अपनी पत्नियों को तलाक देकर दूसरी औरतें ले आओ ...चाहे उनकी सुन्दरता तम्हें कितनी भी भाये .... "सूरा -अहजाब 33 :52

(इसी आयत की तफ़सीर (व्याख्या ) में लिखा है ........ रसूल को अपनी पत्नियों को तलाक देना हराम था पेज 473 )

### मुहम्मद द्वारा उल्लंघन -इसके बावजूद मुहमद ने इन औरतों को तलाक दी थी -

I-उम्मे शरीक -इसका नाम गाज़िया बिन जाबिर था .... .जिसका एक लड़का भी था .... और, विधवा थी...... तबरी -जिल्द 9 हदीस 139

II -मुलायाका बिन दाऊद -इसने मुहम्मद से कहा था..... तुम मेरे पिता के हत्यारे हो..... इसीलिए मुहम्मद ने उसे तलाक दे दी .....तबरी जिल्द 9 हदीस 165

III -अल शनबा बिन्त अम्र -जब्मुहम्मद का पुत्र इब्राहीम मरा तो इसने कहा था कि .....अगर तुम सचमुच रसूल होते तो ,/////तुम्हारा बच्चा नहीं मरता ..... जिस पर मुहम्मद ने शनबा को मारा और उसे तलाक दे दिया .......तबरी -जिल्द 9 हदीस 136

IV -अल आलिया बिन्त जबियान- यह हमेशा बीमार रहती थी ..... इसलिए तलाक दिया ............तबरी -जिल्द 9 हदीस 138

V -अमरा बिन्त यजीद - इसे कोढ़ हो गया था ,.... इसीलिए तलाक दी .......इब्ने माजा -जिल्द 3 हदीस 2054 और तबरी -जिल्द 9 हदीस 188

VI - कुतैला बिन्त कैस- इसके भाई ने इस्लाम छोड़ दिया .....इसलिए तलाक दे दी .तबरी -........जिल्द 9 हदीस 138 और 138

VII -असमा बिन्त नौमान - इसको भी कोढ़ हो गया था ........इसलिए तलाक दिया था .........तबरी -जिल्द 39 हदीस 187

बुखारी -जिल्द 7 किताब 63 हदीस 181 .और बुखारी -जिल्द 7 किताब 63 हदीस 180

^^^^^^^ उपरोक्त विवरणों से बिल्कुल स्पष्ट है कि.... मुहम्मद कुरान.... अर्थात .... खुदा के आदेशों को जरा भी तरजीह नहीं देता था.... और... हमेशा ही उसकी अवहेलना किया करता था...!

इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि.... मुहम्मद को ये बात भली भांति मालूम थी कि.... कुरान कोई आसमानी किताब नहीं है.... ना ही उसमे अल्लाह के आदेश हैं....!

या फिर..... दुनिया का पहला और सबदे बड़ा काफिर और कोई नहीं.... बल्कि .... इस्लाम का प्रतिपादक और अल्लाह का तथाकथित रसूल मुहम्मद ही था....!

इसीलिए मुस्लिम.... गैर मुस्लिमों को काफिर बोलने के बजाए..... सबसे पहले ... अपने रसूल मुहम्मद को ही ..... सबसे पहला और बड़ा काफिर घोषित करें....... उसके बाद गैर मुस्लिमों पर उंगली उठाएं....!

जय महाकाल...!!!

नोट: 1 . इस लेख का उद्देश्य किसी कि धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना या किसी को अपमानित करना कतई नहीं है...!

2. यह लेख कुरान के प्रमाणिक हदीसों के पूर्ण विश्लेषण के बाद ही लिखी गयी है.... और, कोई भी व्यक्ति ... लेख में प्रयुक्त की गयी हदीसों का मिलान कुरान की ओरिजिनल प्रति से कर सकता है...!

शव सम्भोग (Necrophilia )क्या है ? हिंदी ,अंगरेजी और अरबी प्रमाण दिए जा रहे हैं -

मुहम्मद ने अपनी जवान चाची फातिमा की मौत के बाद लाश के सारे कपडे उतार कर नगा किया,और खुद कब्र मे चाची की नगी लाश के साथ लेट गया.
..मुहमद का बाप अब्दुल्ला बचपन में मर गया था .और बाद में माँ अमीना भी मर गयी .मुहम्मद को उसके चाचा अबूतालिब ने पाला था .जब वह मर गया तो तो मुहम्मद को उसकी चाची "फातिमा बिन्त असदفاطمه بنت اسد "ने अपने पास रख लिया .मुहमद के चारे भाई का नाम अलीعلي था .
सन 626 को मुहम्मद की चाची फातिमा की अचानक मौत हो गयी .जब लोग उसकी लाश को दफना चुके तो मुहम्मद ने अपनी जवान चाची को बरज़ख के बोझ से बचने के लिए जो महान कार्य किया था वह कोई सोच भी नहीं सकता .
इसे हिंदी में "शव सम्भोग 'अंगरेजी में "Necrophilia " और अरबी में "वती उल मौती وطيءالموتي"कहा जाता है .मुहमद ने अपनी चाची की लाश के साथ सम्भोग किया था ,ताकि वह जन्नत में जाये .इसके सबूत में हिंदी ,अंगरेजी और अरबी प्रमाण दिए जा रहे हैं -
2 -शव सम्भोग (Necrophilia )क्या है ?
शव सम्भोग या Necrophilia एक प्रकार की मानसिक विकृति है ,इसे आम तौर से Sex with dead body भी कहा जाता है. इसका किसी नस्ल और संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं हैं .ऐसे विकृत लोग सब जगह हो सकते हैं.लेकिन मुझे विश्वास है की मुसलमान कुछ अलग प्रकार के विकृत मानसिकता के रोगी है.धन्य है ऐसे इस्लाम को ,जिसने इस विकृति को पागलपन की सीमा से भी पर कर दिया है .क्या कोई यह दावा कर सकता है की मुस्लिम देशों में ऐसा नहीं होता है .
इसी विषय पर शोध करने पर एक रोचक हदीस मिली है ,जिसे सबको बताया जा रहा है यह हदीस "कन्जुल उम्माल "नामकी किताब से ली गयी है जिसका अर्थ श्रमिकों का खजाना है .इसके एक अध्याय "The issue of womenقضية امراة "में अली इब्न हुस्साम अल दीन ,जिसे लोग अल मुत्तकी अल हिंदी भी कहते है ,अपने हदीसों के संकलन "अल जामी अल सगीरالجامع الصغير "में जिसे जलालुद्दीन शुयूती ने जमा किया यह हदीस दर्ज की है -

Necrophilia: This is a mental disease and it has nothing to do with race or culture. There are sick people everywhere and I am sure Muslims who are sick in many other ways thanks to their sick religion are no better when it comes to this insanity. Do you have any proof that necrophilia does not happen in Islamic countries?

Talking about Necrophilia there is a curious hadith that I would like to share.

This is from a book called "Kanz Al Umal" (The Treasure of the Workers), in the chapter of "The issues of women", authored by Ali Ibn Husam Aldin, commonly known as Al-Mutaki Al-Hindi. He based his book on the hadiths and sayings listed in "Al-Jami Al-Saghir," written by Jalal ul-Din Al-Suyuti.
3 -शव सम्भोग का हदीस से प्रमाण
इब्ने अब्बास ने कहा कि रसूल ने कहा "मैंने (यानी रसूल ने ) उसके (फातिमा बिन्त असद )के सारे कपडे उतार दिए ताकि वह जन्नत के कपडे पहिन सके .और फिर मैं उसके कफ़न (कब्र )में उसके साथ लेट गया ,जिस से उसे कब्र के संताप का बोझ हल्का हो सके .मेरी नजर में वह अबूतालिब के बाद अल्लाह कि सर्वोत्तम स्रष्टि थी ".यह बात रसूल अली कि माँ फातिमा को इंगित करके कह रहे थे .
-जामीअल सगीर -वाक्य संख्या -3442

Narrated by Ibn Abbas:

‘I (Muhammad) put on her my shirt that she may wear the clothes of heaven, and I SLEPT with her in her coffin (grave) that I may lessen the pressure of the grave. She was the best of Allah’s creatures to me after Abu Talib’… The prophet was referring to Fatima , the mother of Ali. (Sentence number 34424
( नोट -अरबी में मूल हदीस को देखने के लिए नीचे दी गयी लिंक देखिये )
http://www.al-eman.com/Islamlib/viewchp.asp?BID=137&CID=426#s2
4 -मुहम्मद ने लाश के साथ सम्भोग किया !
अरबी में नीचे दी गयी हदीस में सोने (Slept )शब्द के लिए अरबी में (Idtajat इदतजात )शब्द का प्रयोग किया गया है.दिमित्रिअस ने इसे स्पष्ट करके बताया कि अरबी में यह शब्द औरत के साथ लेटना ,और सम्भोग के लिए लेटने के लिए प्रयुक्त होता है .जिस समय मुहमद ने यह हदीस कही थी ,वह जानता था कि फातिमा से साथ सोने से फातिमा को उसकी पत्नी ,यानि मुसलमानों कि माँ का दर्जा मिल जाएगा .और मुहम्मद फातिमाको कब्र के दुखों को हल्का करना चाहता था.मुसलमानों कि मान्यता है कि .क़यामत के दिन तक उनको कब्र में कष्ट उठाने होंगे .इसीलिए मुहम्मद ने फातिमा की लाश से सम्भोग किया क्योंकि मुसलमानों की माँ को कब्र में कष्ट नहीं हो सकता .

Demetrius Explains : "The Arabic word used here for slept is "Id'tajat," and literally means "lay down" with her. It is often used to mean, "Lay down to have sex." Muhammad is understood as saying that because he slept with her she has become like a wife to him so she will be considered like a "mother of the believers." This will supposedly prevent her from being tormented in the grave, since Muslims believe that as people wait for the Judgment Day they will be tormented in the grave. "Reduce the pressure" here means that the torment won't be as much because she is now a "mother of the believers" after Muhammad slept with her and "consummated" the union. "
(नोट-अरबी में पूरी हदीस देखिये )

بسم الله الرحمن الرحيم
الحمد لله الكبير المتعال والصلاة والسلام على سيدنا محمد المتبع في الأقوال والأفعال والأحوال وعلى سائر الأنبياء وآله وصحبه التابعين له في كل حال.
(أما بعد) فيقول أحقر عباد الله علي بن حسام الدين الشهير عند الناس بالمتقي: لما رأيت كتابي الجامع الصغير وزوائده تأليفي شيخ الإسلام جلال الدين السيوطي عامله الله بلطفه ملخصا من قسم الأقوال من جامعه الكبير وهو مرتب على الحروف جمعت بينهما مبوبا ذلك على الأبواب الفقهية مسميا الجمع المذكور (منهج العمال في سنن الأقوال) ثم عن لي أن أبوب مابقي من قسم الأقوال فنجز بحمد الله وسميته (الإكمال لمنهج العمال). ثم مزجت بين هذين التأليفين كتابا بعد كتاب وبابا بعد باب وفصلا بعد فصل مميزا أحاديث الإكمال من منهج العمال. ومقصودي من هذا التمييز أن المؤلف رحمه الله ذكر أن الأحاديث التي في الجامع الصغير وزوائده أصح وأخصر وأبعد من التكرار كما يعلم من ديباجة الجامع الصغير. فصارا كتابا سميته (غاية العمال) في سنن الأقوال. ثم عن لي أن أبوب قسم الأفعال أيضا فبوبته على المنهاج المذكور وجمعت بين أحاديث الأقوال والأفعال. وأذكر أولا أحاديث منهج العمال ثم أذكر أحاديث الإكمال ثم أحاديث قسم الأفعال كتابا بعد كتاب فصار ذلك كتابا واحدا مميزا فيه ماسبق بحيث أن من أراد تحصيل قسم الأقوال أو الأفعال منفردا أو تحصيلهما مجتمعين أمكنه ذلك وسميته (كنز العمال في سنن الأقوال والأفعال). فمن ظفر بهذا التأليف فقد ظفر بجمع الجوامع مبوبا مع أحاديث كثيرة ليست في جمع الجوامع لأن المؤلف رحمه الله زاد في الجامع الصغير وذيله أحاديث لم تكن في جمع الجوامع.
وها أنا أذكر ديباجة المؤلف رحمه الله من الجامع الصغير وذيله (ن - زوائده) ومن الجامع الكبير حتى لا أكون تاركا ولا مغيرا ألفاظه إن شاء الله تعالى. (ن - الا بعض رموز وألفاظ يسيرة تركها الشيخ رحمه الله تعالى فيهما اقتصارا فتركت ذلك للضرورة فليعلم.)
خطبة الجامع الصغير

ब्रिज शर्मा

भारतीय काल गणना की बात

Sudershan Kumar ग्रेगेरियन कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3580 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष यहूदी 5768 वर्ष, मिस्त्र की 28671 वर्ष, पारसी 198875 वर्ष तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु 1 अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 112 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है।

किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।

इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। और तो और, देश के बडे से बडे़ राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है। भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं।