शुक्रवार, जुलाई 17, 2015

Vasim Afdab इस्लाम को दुनिया का सबसे अच्छा और सच्चा मजहब समझता था लेकिन

Vasim Afdab
मै एक मुसलमान था और इस्लाम को दुनिया का सबसे अच्छा और सच्चा मजहब समझता था लेकिन
1- मुझे इस धर्म की सच्चाई पर संदेह हुआ जब मैंने सूरत निसा की आयत नम्बर 24 में अल्लाह का का यह हुक्म पढ़ा, "और वे औरतें तुम पर हराम हैं जो किसी दूसरे के निकाह में हों लेकिन वे महिलाएं (आदेश) से मततसनी हैं जो युद्ध में अपने कब्जे में आईं। यह खुदा का हुक्म है। "
2- मुझे इस धर्म की सच्चाई पर संदेह हुआ जब मुझे मालूम हुआ कि इस मज़हब के पैगम्बर के आदेश पर हथियार डाल देने वाले बनो कुरेज़ा के 600 पुरुषों, यहूदी कैदियों को उनके बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं के रोने और चीख़ने की आवाज़ों के बीच उनकी आँखों के सामने एक दिन में कत्ल कर दिया गया ।
3 - मुझे इस मज़हब के पैगम्बर के सच होने पर संदेह हुआ जब वह मिस्र के राज्यपाल को इस्लाम की दावत / धमकी देता है और जवाब में मिस्र का गवर्नर, पैगम्बर को एक बहुत हसीन औरत (मारिया) ' उपहार 'में पेश करके "शांत" कर देता है। और यह "पाक " पैगंबर मारिया के हुस्न में ऐसा खो जाता है अपनी दूसरी पत्नियों के अधिकारों को भूल जाता है और उनकी "पत्नियों" की पूरी टीम को हड़ताल करनी पड़ जाती है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कुरान अल्लाह "पत्नियों" की पूरी टीम को सरेआम चेतावनी देता है , क्या कुरान मुसलमानों के लिए हिदायत की किताब है या मुहम्मद के घरेलू झगड़े निपटाने की ?
4 - मुझे इस धर्म के पैगम्बर के "मोहसिन इंसानियत " होने पर शक हुआ जब यह पाया कि एक युद्ध में हज़रत सफिया के भाई, पति और पिता को उनकी आंखों के सामने हत्या कर उसी रात हज़रत सफिया के साथ पैगम्बर ने जबरन "निकाह किया।
5- मुझे इस समय इस मजहब के पैगम्बर के सच होने पर संदेह हुआ जब पाया कि आप ने अपनी 9 वर्षीय मदनी जीवन में 76 युद्ध कीं (औसत हर डेढ़ महीने के बाद एक युद्ध) और हर युद्ध लूट में इस पैगम्बर का 20 प्रतिशत हिस्सा निर्धारित होता था।
-6 मैं चौंक गया यह जानकर कि इस मजहब के पैगम्बर ने अपने मुह बोले बेटे की पत्नी से शादी कर ली और कुरानअल्लाह ने प्रमाणपत्र प्रदान करके इसे हलाल (वैध) करार दिया।
7- मुझे इस धर्म के पैगम्बर के सच होने पर संदेह हुआ जब उसने 51 साल की उम्र में अपने दोस्त की 6 वर्षीय बच्ची का हाथ अपने मित्र को खलीफा बनाने का लालच देकर अपने लिए मांग लिया।
- आश्चर्य हुई यह जानकर कि पैगम्बर ने काबलियत पर नहीं बल्कि दोस्तों की बेटियों लेकर या देकर उन्हें ख़लीफ़ा बनाया।
8 - आश्चर्य हुई यह जानकर कि "पाक नबी " एक रात में ग्यारह ग्यारह पत्नियों से 'निपटा करता
Rawalpindi, Pakistan से एक मुस्लिम की कलम से

सोमवार, जुलाई 13, 2015

प्रश्नोत्तरी ( लव जिहाद विषय )

प्रश्नोत्तरी ( लव जिहाद विषय ) :-
(1) प्रश्न :- लव जिहाद किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब कोई मुसलमान पुरुष किसी गैर
मुसलमान युवती को बहला फुसला कर उसके
शील को भंग करके उससे शादी करके
उसको ईस्लाम में दीक्षित कर लेता है ।
इसी को लव जिहाद कहा जाता है ।
(2) प्रश्न :- लव जिहाद
क्यों किया जाता है ?
उत्तर :- ताकि गैर
मुसलमानों का शीघ्रता से ईस्लामीकरण
हो । क्योंकिं जैसे
किसी भी जाती को समाप्त
करना हो तो उनकी स्त्रीयों को दूषित
किया जाता है । जिससे कि वो अपने समाज
में आत्म सम्मान खो दें और दूसरे समाज में
जाने को बाध्य हो सकें । जिससे
कि मुसलमान उस
लड़की की सम्पत्ति का मालिक बने और उस
लड़की के घर वाले सिर उठा कर नहीं जी सकें।
लव जिहाद का मुख्य उद्देश्य है अल
तकियाह, ( गज़्वा ए हिन्द ) यानी कि भारत
का ईस्लामीकरण ।
(3) प्रश्न :- लव जिहाद से ईस्लामीकरण
कैसे
होता है ?
उत्तर :- क्योंकि लव जिहाद की शिकार
युवती को उसका हिन्दू समाज अपनाने
को तैय्यार नहीं होता है । और जिसके कारण
उसके पास और कोई मार्ग शेष
नहीं रहता तो वह मुसलमानी नर्क में जीने
को विवष हो जाती है । तो इसी प्रकार जो उस
लड़की के बच्चे होते हैं वो भी मुसलमान
ही होते हैं । तो ऐसे
मुसलमानों की संख्या वृद्धि होने से
राष्ट्र शीघ्रता से ईस्लामीकरण की ओर
बढ़ता है ।
(4) प्रश्न :- लव जिहाद की शिकार
युवतियों की स्थिती कैसी होती है ?
उत्तर :- लव जिहाद की शिकार
युवतियों की स्थिती नर्क से बदतर होती है ।
जैसा कि कई लड़कियों के मुसलमानों के
साथ विवाह के बाद वो तलाक दे दी जाती हैं
। और बाद में उनकों वैश्यावृत्ति के धंधे
में धकेल दिया जाता है । या फिर उनको भारत
की यात्रा पर आये अरब के शेखों को बेच
दिया जाता है । जो उनको अपने साथ अरब
देशों में ले जाते हैं । वहाँ उनको 'नमकीन
बेगम' के नाम से सम्बोधित किया जाता है,
उन्हें गुलाम बनाकर इनके साथ शोषण
किया जाता है । कई बार उनको नेपाल के
माध्यम से पाकिस्तान भेजा जाता है ,
या फिर असम, त्रिपुरा या बंगाल से
उनको बांग्लादेश भेजा जाता है ( बंगाल
की कांग्रेस सांसद रूमी नाथ
इसकी ताज़ा उदाहरण है जिसे एक जिहादी ने
फेसबुक के ज़रिये शिकार बनाया और
बंग्लादेश भेज दिया ) । ऐसी कई और उदाहरण
हैं ।
(5) प्रश्न :- राष्ट्र के ईस्लामीकरण होने से
क्या हानी होगी ?
उत्तर :- किसी भी राष्ट्र का ईस्लामीकरण
होने से वहाँ कुरान का शरिया कानून लागू
होता है, लोकतन्त्र समाप्त हो जाता है और
विचारों को रखने की स्वतन्त्रता समाप्त
हो जाती है । देश ईस्लाम की अत्यन्त
संकुचित और नीच विचारधारा में
जकड़ा जाता है । जिसमें
स्त्रीयों का शोषण होता है ।
उनको पुरुषों की खेती समझा जाता है ।
जहाँ स्त्रीयों का सम्मान नहीं वहाँ पुरुष
निर्दयी हो जाते हैं । पुरुषों के
निर्दयी होने से समाज में भारी क्षोभ और
वासनामय वातावरण होता है ।
जहाँ सत्ता ईसलाम के हाथ है वो देश एक
बूचड़खाना होता है, जिसमें
मानवों की कटती हुई लाशें, पशुओं
की कटती हुई लाशें दिखाई देती हैं ।
स्त्रीयों को उनके अधिकारों से वंचित
रखा जाता है । मुसलमान पुरुष जब चाहे उसे
तीन बार "तलाक तलाक तलाक" कह कर
उससे
पीछा छुड़ा लेता है । खून के रिश्तों में
या सगे रिश्तों में ही शादियाँ होने से
नये जन्मे बच्चों का मान्सिक विकास
नहीं होता है । और उस ईस्लामी देश में गैर
मुसलमानों को अपने अपने धार्मिक कार्य
करने की आज़ादी नहीं होती ।
उनकी स्त्रीयों को बंदूकों या तलवारों की
नोक पर उठा लिया जाता है
( जैसा कि पैगम्बर मुहम्मद
किया करता था यहूदी या ईसाई औरतों के
साथ ) । उनके धार्मिक उत्सवों पर हमले
किये
जाते हैं , ( जैसे कि मुस्लिम बाहुल्य
काशमीर में अमरनाथ यात्रियों के साथ
होता है ) । स्त्रीयों की आँखें नोच
ली जाची हैं । िकसी स्त्री के साथ कोई
पुरुष जब बलात्कार करता है तो दंड पुरुष
को नहीं स्त्री को ही दिया जाता है ।
स्त्रीयों को ज़मीन में आधा गाड़ कर उन पर
संगसार ( पत्थरों की बारिश ) किया जाता है
। चारों ओर मस्जिदों से
मौलवीयों की मनहूस आज़ानें सुनाई
देती हैं, ज़रा ज़रा सी बातों पर
मुसलमानी मौहल्लों में लड़ाईयाँ और खून
खराबा होता है, सड़कों पर लोगों के रास्ते
रोक कर नमाजें पढ़ी जाती हैं ।
तो ऐसी अनेकों हानियाँ मानव समाज
को उठानी पड़ती हैं । जो की देश के
ईसलामीकरण का परिणाम है ।
(6) प्रश्न :- भारत में लव जिहाद संचालित
कैसे होता है ?
उत्तर :- इसको संचालित करने के लिये
पाकिस्तान, या अरब देशों से इनको वहाँ के
शेखों द्वारा भारी पैसा आता है
जो कि तेल के कुओं के मालिक होते हैं । ये
पैसा उनको All India Muslim
Scholarship Fund
के रूप में दिया जाता है । प्रती माह इन
मुस्लिम गुंडों को तैयार किया जाता है
और हिन्दू लड़कियों को फंसाने के लिये
इनको ₹ 8000 से ₹10000 मासिक वेतन
दिया जाता है । तो मस्जिदों में
किसी मुहल्ले के
सभी मुसलमानों की मीटिंग रखी जाती है ।
जिसमें भाग लेने वाले अमीर से लेकर गरीब
तबके के लोग आते हैं, जिसमें रेड़ीवाला,
शॉल बेचने वाले कशमीरी पठान, घरों में काम
करने वाले, नाई, चमार आदि । इनको हिन्दू
या सिक्ख ईलाकों में घूम घूम कर ये
पता लगाने को कहा जाता है कि किस घर
की लड़की जवान हो गई है । तो शाल बेचने
वाले पठान ये नज़र रखते हैं । और फिर ये
लड़कियों की लिस्ट बनाई जाती है और
जिहादी गुंडे जो कि दिखने में हट्टे कट्टे
हों उनको तैयार किया जाता है, मोटर
साईकलें खरीद कर दी जाती हैं ।
जिनको मस्जिदों में रखा जाता है । तो ये
युवक अपनी कलाईयों पर मौलीयाँ बाँध कर
निकल अपने नाम बदल कर हिन्दू नाम रख
लेते
हैं और इन लड़कियों के पीछे पड़ जाते हैं ।
और अगर कोई लड़की दो सप्ताह के भीतर
नहीं फंसती तो फिर ये उसे छोड़ कर लिस्ट
की दूसरी लड़की पर अपने जिहाद
को आज़माने
के लिये निकल पड़ते हैं । तो ऐसे ही पूरे
मोहल्ले में से कोई न कोई लड़की लव जिहाद
का शिकार हो ही जाती है ।
दूसरा तरीका ये है कि social networking
sites
जैसे कि faceook आदि पर ये लोग नकली Id
या फिर अपनी असली Id से ही हिन्दू
लड़कियों को request भेजते हैं । और जैसे
कि इनकी training होती है वैसे ही ये लोग
इन
लड़कियों को फाँसने के लिये तरह तरह के
message भेजते हैं । और वे लड़कियाँ इनके
मोह जाल कसं फँसकर अपना सब कुछ
गंवा देती हैं ।
(7) प्रश्न :- क्या इसके सिवा और भी तरीके
हैं लव जिहाद करने के या यही हैं ?
उत्तर :- बहुत से हैं सभी के बारे में जान
पाना तो बेहद कठिन है पर कुछ और बताते हैं
। ये मुस्लिम जिहादी गुंडे
स्कूलों कालेजों के चक्कर लगाते रहते हैं
। और लड़कियों के पीछे पड़ जाते हैं ।
या फिर स्कूलों में पढ़ने वाले मुस्लिम
युवक अपनी मुस्लिम
सहेलीयों की सहायता से उनकी हिन्दू
सहेलियों से दोस्ती करते हैं और धीरे धीरे
अपनी कारवाईयाँ शुरू कर देते हैं । या फिर
कालेजों और स्कूलों के आगे मोबाईल
की दुकानें मुसलमानों के
द्वारा खोली जाती हैं । जिसमें जब हिन्दू,
बौद्ध या जैन आदि लड़कियाँ फोन रिचार्ज
करवाने जाती हैं, तो उनके नम्बरों को ये
गलत इस्तेमाल करके आगे
जिहादीयों को बाँट देते हैं । जिससे कि वे
लोग गंदे गंदे अश्लील मैसेज भेजते हैं ।
पहले तो ये लड़तियाँ उसकी उपेक्षा करती हैं
पर लगातार आने वाले मैसेजों को वे
ज्यादा समय तक टाल नहीं पातीं । जिससे
कि वो कामुक बातों में फँस कर
अपना आपा खो देती हैं और अपना सर्वस्व
जिहादीयों को सौंप देती हैं । और ये सब
यूँ ही नहीं होता है । इन जिहादियों को ये
सब करने की training दी जाती है कि किस
प्रकार से लड़की कि मानसिक्ता को समझ
कर
उसे कैसे फाँसना है । तो ऐसे ही छोटे
मोटो और भी तरीके हैं, परन्तु मुख्य
यही हैं ।
(8) प्रश्न :- ये लव जिहाद की कुछ उदाहरणें
दीजीये ।
उत्तर :- बड़ी बड़ी उदाहरणें आपके सम्मुख
हैं :- Bollywood मायानगरी में मुसलमान
अभिनेताओं की केवल हिन्दू
पत्नियाँ ही क्यों होती हैं ? शाहरुख खान,
आमीर खान, फरदीन खान, सुहैल खान,
अरबाज़
खान, सैफ अली खान, साजिद खान
आदि कितने
ही नाम हैं जिनकी शादियाँ हिन्दू
लड़कियों से ही हुई हैं । इनमें से
किसी को भी मुसलमान
लड़कियाँ क्यों नहीं पसंद आईं ? आमिर खान,
और सैफ अली खान की शादी तो एक
की बजाये
दो दो हिन्दू लड़कियों से हुई । और
इन्हीं को आदर्श मान कर हिन्दू
लड़कियाँ मुसलमानों के चंगुल में फँस कर
अपनी अस्मिता खो देती हैं । एक फिलम आई
थी जिसमें अभिषेक बच्चन का नाम आफताब
होता है और वो अजय देवगण की बहन
का किरदार निभा रही प्राची देसाई से प्रेम
करता है । तो अजय देवगण उसे रोकता है
तो वो नीच लड़की सैफ और शाहरुख
आदि का उदाहरण देती है और
उनको अपना आदर्श स्विकार करती है । तो ये
देख कर हिन्दू लड़कियों के मनों पर
क्या प्रभाव पड़ता है ज़रा सोचिये । तो ऐसे
ही इन लड़कियों को परिणाम की पर्वाह
नहीं होती और इनको हर जिहादी सलमान
या शाहरूख ही दिखता है । और अपना जीवन
बर्बाद कर देती हैं ।
(9) प्रश्न :- ये सब करके इन
मुसलमानों को मिलता क्या है ?
उत्तर :- इनको ये सब करने के लिये मासिक
वेतन और भारी ईनाम मिलता है । दूसरा कारण
है मज़हबी जुनून क्योंकि ईस्लाम
की शिक्षा ही नफरत और कत्ल की बुनियाद
पर
टिकी है और मस्जिद के मौल्वीयों के
द्वारा झूठी मुहम्मदी जन्नत का लालच
दिया जाना । वो कहते हैं कि अगर कम से कम
एक हिन्दू लड़की से शादी करो और बदले में
सातवें आस्मान की जन्नत पाओ । तो चाहे
वो जिहाद काफिरों की खेती को समाप्त
करने का ही क्यों न हो इनके अरबी अल्लाह
ने इनके लिये जन्नत तैय्यार रखी है ।
जिसमें फिर एक एक मुसलमान 72 पाक साफ
औरतों का आनंद लेता है ।
ईस्लाम में वैसे बहुत प्रकार के जिहाद हैं
पर सबसे मुख्य दो प्रकार के जिहाद हैं :-
जिहाद ए अकबर ( बड़ा जिहाद )
जिहाद ए असगर ( छोटा जिहाद )
ये लव जिहाद जो है, वो जिहाद ए अकबर
का ही एक बड़ा स्वरूप है ।
(10) प्रश्न :- ये लव जिहादीयों को हिन्दू
लड़की से शादी करने या नापाक करने
का क्या ईनाम मिलता है ?
उत्तर :- ये निम्न लिखित ईनाम गैर
मुसलमान
लड़कियों को फँसाने के लिये घोषित
किया है :-
सिक्ख लड़की = 9 लाख
पंजाबी हिन्दू लड़की = 8 लाख
हिन्दू ब्राह्मण लड़की = 7 लाख
हिन्दू क्षत्रीय लड़की = 6 लाख
हिन्दू वैश लड़की = 5 लाख
हिन्दू दलित लड़की = 2 लाख
हिन्दू जैन लड़की = 4 लाख
बौद्ध लड़की = 4.2 लाख
ईसाई कैथोलिक लड़की = 3.5 लाख
ईसाई प्रोटैस्टैंट लड़की = 3.2 लाख
शिया मुसलमान लड़की= 4 लाख
ईनाम इनसे थोड़ा कम या अधिक हो सकता है
पर
ज्यादा भेद नहीं है ।
(11) प्रश्न :- ये लव जिहाद के ईनाम
की घोषणा और संचालन कहाँ से होता है ?
उत्तर :- केरल का मालाबार ही इसका मुख्य
संचालन स्थान है । परन्तु अब उसकी शाखायें
पूरे भारत में फैल गई हैं । क्योंकि केरल में
ही लव जिहाद के 5000 से अधिक मामले
कोर्ट
के सामने आये हैं । तो पूरे भारत में कितने
ही ऐसे मामले होंगे ?
अगर आप हिन्दू हो तो इसको जरुर पढे एवं हर हिन्दू तक पहुचाने की कोशिश करो ।

शुक्रवार, जुलाई 03, 2015

जिहाद - प्रेमचंद की इस अद्भुत रचना को निरंतर छुपाया गया है।

जिहाद - प्रेमचंद की इस अद्भुत रचना को निरंतर छुपाया गया है।
प्रेमचंद की इस अद्भुत रचना को निरंतर छुपाया गया है लेकिन सुधी पाठक याद रखें कि प्रेमचंद की लेखनी में ही वह कौशल है कि खलनायक नायक में बांटने के स्थान पर वह मानवीय गरिमा से कथानक को निर्भेद निर्द्वंद्व रख पाते हैं।
कहानी बहुत पुरानी है। हिन्दुओं का एक काफिला अपने धर्म की रक्षा के लिए पश्चिमोत्तर के पर्वत-प्रदेश में भागा चला जा रहा था। मुद्दतों से उस प्रांत में हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ रहते चले आए थे। धार्मिक द्वेष का नाम न था। पठानों के जिरगे हमेशा लड़ते रहते थे। उनकी तलवारों पर कभी जंग न लगने पाता था। बात-बात पर उनके दल संगठित हो जाते थे। शासन की कोई व्यवस्था न थी।
हर एक जिरगे और कबीले की व्यवस्था अलग थी। आपस के झगड़ों को निपटाने का भी तलवार के सिवा और कोई साधन न था। जान का बदला जान था, खून का बदला खून; इस नियम में कोई अपवाद न था। यही उनका धर्म था, यही ईमान; मगर उस भीषण रक्तपात में भी हिन्दू परिवार शांति से जीवन व्यतीत करते थे, पर एक महीने से देश की हालत बदल गयी है। एक मुल्ला ने न जाने कहां से आकर अनपढ़ धर्मशून्य पठानों में धर्म का भाव जाग्रत कर दिया है। उसकी वाणी में कोई ऐसी मोहिनी है कि बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष खिंचे चले आते हैं। वह शेरों की तरह गरज कर कहता है-खुदा ने तुम्हें इसलिए पैदा किया है कि दुनिया को इस्लाम की रोशनी से रोशन कर दो। दुनिया से कुफ्र का निशान मिटा दो। एक काफिर के दिन को इस्लाम के उजाले से रोशन कर देने का सवाब सारी उम्र के रोजे, नमाज और जकात से कहीं ज्यादा है। जन्नत की हूरें तुम्हारी बलाएं लेंगी और फरिश्ते तुम्हारे कदमों की खाक माथे पर मलेंगे, खुदा तुम्हारी पेशानी पर बोसे देगा। और सारी जनता यह आवाज सुनकर मजहब के नारों से मतावाली हो जाती है। उसी धार्मिक उत्तेजना ने कुफ्र और इस्लाम का भेद उत्पन्न कर दिया है। प्रत्येक पठान जन्नत का सुख भोगने के लिए अधीर हो उठा है। उन्हीं हिन्दुओं पर जो सदियों से शांति के साथ रहते थे, हमले होने लगे हैं। कहीं उनके मन्दिर ढाये जाते हैं, कहीं उनके देवताओं को गालियां दी जाती हैं। कहीं उन्हें जबरदस्ती इस्लाम की दीक्षा दी जाती है। हिन्दू संख्या में कम हैं, असगंठित हैं, बिखरे हुए हैं, इस नयी परिस्थिति के लिए बिल्कुल तैयार नहीं। उनके हाथ-पांव फूले हुए हैं, कितने ही तो अपनी जमा-जथा छोड़कर भाग खड़े हुए हैं, कुछ इस आंधी के शांत हो जाने का अवसर देख रहे हैं। यह काफिला भी उन्हीं भागनेवालों में था। दोपहर का समय था।
आसमान से आग बरस रही थी। पहाड़ों से ज्वाला-सी निकल रही थी। वृक्ष का कहीं नाम न था। ये लोग राज-पथ से हटे हुए, पेचीदा औघट रास्तों से चले आ रहे थे। पग-पग पर पकड़ लिए जाने का खटका लगा हुआ था। यहां तक कि भूख, प्यास और ताप से विकल होकर अंत को लोग एक उभरी हुई शिला की छांह में विश्राम करने लगे। सहसा कुछ दूर पर एक कुआं नजर आया। वहीं डेरे डाल दिए।
भय लगा हुआ था कि जिहादियों का कोई दल पीछे से न आ रहा हो। दो युवकों ने बंदूक भरकर कंधे पर रखीं और चारों तरफ गश्त करने लगे। बूढ़े कम्बल बिछाकर कमर सीधी करने लगे। स्त्रियां बालकों को गोद से उतार कर माथे का पसीना पोंछने और बिखरे हुए केशों को संभालने लगीं। सभी के चेहरे मुरझाये हुए थे। सभी चिंता और भय से त्रस्त हो रहे थे, यहां तक कि बच्चे जोर से न रोते थे।
दोनों युवकों में एक लम्बा, गठीला रूपवान है। उसकी आंखों से अभिमान की रेखाएं-सी निकल रही हैं। मानो वह अपने सामने किसी की हकीकत नहीं समझता, मानो उसकी एक-एक गत पर आकाश के देवता जयघोष कर रहे हैं। दूसरा कद का दुबला-पतला, रूपहीन-सा आदमी है, जिसके चेहरे से दीनता झलक रही है, मानो उसके लिए संसार में कोई आशा नहीं, मानो वह दीपक की भांति रो-रोकर जीवन व्यतीत करने ही के लिए बनाया गया है। उसका नाम धर्मदास है; इसका खजानचंद।
धर्मदास ने बंदूक को जमीन पर टिका कर एक चट्टान पर बैठते हुए कहा- तुमने अपने लिए क्या सोचा? कोई लाख-सवा की सम्पत्ति रही होगी तुम्हारी?
खजानचंद ने उदासीन भाव से उत्तर दिया-लाख-सवा लाख की तो नहीं, हां, पचास-साठ हजार तो नकद ही थे।
"तो अब क्या करोगे?'
"जो कुछ सिर पर आएगा, झेलूंगा! रावलपिंडी में दो-चार सम्बंधी हैं, शायद कुछ मदद करें। तुमने क्या सोचा है?'
"मुझे क्या गम! अपने दोनों हाथ अपने साथ हैं। वहां इन्हीं का सहारा था, आगे भी इन्हीं का सहारा है।'
"आज और कुशल से बीत जाए तो फिर कोई भय नहीं।'
"मैं तो मना रहा हूं कि एकाध शिकार मिल जाए। एक दर्जन भी आ जाएं तो भून कर रख दूं।'
इतने में चट्टानों के नीचे से एक युवती हाथ में लोटा-डोर लिए निकली और सामने कुएं की ओर चली। प्रभात की सुनहरी, मधुर, अरुणिमा मूर्तिमान हो गयी थी।
दोनों युवक उसकी ओर बढ़े लेकिन खजानचंद तो दो-चार कदम चल कर रुक गया, धर्मदास ने युवती के हाथ से लोटा ले लिया और खजानचंद की ओर सगर्व नेत्रों से ताकता हुआ कुएं की ओर चला।
खजानचंद ने फिर बंदूक संभाली और अपनी झेंप मिटाने के लिए आकाश की ओर ताकने लगा। इसी तरह कितनी ही बार धर्मदास के हाथों पराजित हो चुका था। शायद उसे इसका अभ्यास हो गया था।
अब इसमें लेशमात्र भी संदेह न था कि श्यामा का प्रेमपात्र धर्मदास है। खजानचंद की सारी सम्पत्ति धर्मदास के रूपवैभव के आगे तुच्छ थी। परोक्ष ही नहीं, प्रत्यक्ष रूप से भी श्यामा कई बार खजानचंद को हताश कर चुकी थी; पर वह अभागा निराश होकर भी न जाने क्यों उस पर प्राण देता था। तीनों एक ही बस्ती के रहने वाले थे। श्यामा के माता-पिता पहले ही मर चुके थे। उसकी बुआ ने उसका पालन-पोषण किया था। अब भी वह बुआ ही के साथ रहती थी। उसकी अभिलाषा थी कि खजानचंद उसका दामाद हो, श्यामा सुख से रहे और उसे भी जीवन के अंतिम दिनों के लिए कुछ सहारा हो जाए, लेकिन श्यामा धर्मदास पर रीझी हुई थी। इसे क्या खबर थी कि जिस व्यक्ति को वह पैरों से ठुकरा रही है, वही उसका एकमात्र अवलम्ब है। खजानचंद ही वृद्धा का मुनीम, खजांची, कारिंदा सब कुछ था और यह जानते हुए भी कि श्यामा उसे जीवन में नहीं मिल सकती। उसके धन का यह उपयोग न होता, तो वह शायद अब तक उसे लुटाकर फकीर हो जाता।
धर्मदास पानी लेकर लौट ही रहा था कि उसे पश्चिम की ओर से कई आदमी घोड़ों पर सवार आते दिखायी दिए। जरा और समीप आने पर मालूम हुआ कि कुल पांच आदमी हैं। उनकी बंदूक की नलियां धूप में साफ चमक रही थीं। धर्मदास पानी लिए हुए दौड़ा कि कहीं रास्ते ही में सवार उसे न पकड़ लें लेकिन कंधे पर बंदूक और एक हाथ में लोटा-डोर लिए वह बहुत तेज न दौड़ सकता था।
फासला दो सौ गज न था। रास्ते में पत्थरों के ढेर टूटे-फूटे पड़े हुए थे। भय होता था कि कहीं ठोकर न लग जाए, कहीं पैर न फिसल जाए। इधर सवार प्रति क्षण समीप होते जाते थे। अरबी घोड़ों से उसका मुकाबला ही क्या, उस पर मंजिलों का धावा हुआ। मुश्किल से पचास कदम गया होगा कि सवार उसके सर पर आ पहुंचे और तुरन्त उसे घेर लिया। धर्मदास बड़ा साहसी था; पर मृत्यु को सामने खड़ी देखकर उसकी आंखों में अंधेरा छा गया, उसके हाथ से बंदूक छूट कर गिर पड़ी। पांचों उसी के गांव के महसूदी पठान थे। एक पठान ने कहा-उड़ा दो सर मरदूद का। दगाबाज काफिर।
दूसरा-नहीं-नहीं, ठहरो, अगर यह इस वक्त भी इस्लाम कबूल कर ले, तो हम इसे मुआफ कर सकते हैं। क्यों धर्मदास, तुम्हें इस दगा की क्या सजा दी जाए? हमने तुम्हें रातभर का वक्त फैसला करने के लिए दिया था। मगर तुम इसी वक्त जहन्नुम पहुंचा दिए जाओ; लेकिन हम तुम्हें फिर मौका देते हैं। यह आखिरी मौका है। अगर तुमने अब भी इस्लाम न कबूल किया, तो तुम्हें दिन की रोशनी देखनी नसीब न होगी।
धर्मदास ने हिचकिचाते हुए कहा- जिस बात को अक्ल नहीं मानती, उसे कैसे....
पहले सवार ने आवेश में आकर कहा-मजहब का अक्ल से कोई वास्ता नहीं।
तीसरा-कुफ्र है! कुफ्र है!
पहला-उड़ा दो सिर मरदूद का, धुआं इस पार।
दूसरा- ठहरो-ठहरो, मार डालना मुश्किल नहीं, जिला लेना मुश्किल है।
तुम्हारे और साथी कहां हैं धर्मदास?
धर्मदास- सब मेरे साथ ही हैं।
दूसरा-कलामे शरीफ की कसम; अगर तुम सब खुदा और उनकी रसूल पर ईमान लाओ, तो कोई तुम्हें तेज निगाहों से देख भी न सकेगा।
धर्मदास-आप लोग सोचने के लिए और कुछ मौका न देंगे।
इस पर चारों सवार चिल्ला उठे-नहीं, नहीं, हम तुम्हें न जाने देंगे, यह आखिरी मौका है।
इतना कहते ही पहले सवार ने बंदूक छतिया ली और नली धर्मदास की छाती की ओर करके बोला-बस बोलो, क्या मंजूर है?
धर्मदास सर से पैर तक कांप कर बोला-
अगर मैं इस्लाम कबूल कर लूं तो मेरे साथियों को तो कोई तकलीफ न दी जाएगी?
दूसरा-हां, अगर तुम जमानत करो कि वे भी इस्लाम कबूल कर लेंगे।
पहला-हम इस शर्त को नहीं मानते। तुम्हारे साथियों से हम खुद निपट लेंगे।
तुम अपनी कहो। क्या चाहते हो? हां या नहीं?
धर्मदास ने जहर का घूंट पीकर कहा- मैं खुदा पर ईमान लाता हूं।
पांचों ने एक स्वर से कहा- अलहमद व लिल्लाह! और बारी-बारी से धर्मदास को गले लगाया।
श्यामा हृदय को दोनों हाथों से थामे यह दृश्य देख रही थी। वह मन में पछता रही थी कि मैंने क्यों इन्हें पानी लाने भेजा? अगर मालूम होता कि विधि यों धोखा देगा, तो मैं प्यासों पर जाती, पर इन्हें न जाने देती। श्यामा से कुछ दूर खजानचंद भी खड़ा था। श्यामा ने उसकी ओर क्षुब्ध नेत्रों से देख कर कहा- अब इनकी जान बचती नहीं मालूम होती।
खजानचंद-बंदूक भी हाथ से छूट पड़ी है।
श्यामा-न जाने क्या बातें हो रही हैं। अरे गजब! दुष्ट ने उनकी ओर बंदूक तानी है!
खजान-जरा और समीप आ आ जाएं, तो मैं बंदूक चलाऊं। इतनी दूर की मार इसमें नहीं है।
श्यामा-अरे! देखो, वे सब धर्मदास को गले लगा रहे हैं। यह माजरा क्या है?
खजान-कुछ समझ में नहीं आता।
श्यामा-कहीं इसने कलमा तो नहीं पढ़ लिया?
खजान-नहीं, ऐसा क्या होगा, धर्मदास से मुझे ऐसी आशा नहीं है।
श्यामा- मैं समझ गयी। ठीक यही बात है। बंदूक चलाओ।
खजान-धर्मदास बीच में हैं। कहीं उन्हें लग जाए।
श्यामा-कोई हर्ज नहीं। मैं चाहती हूं, पहला निशाना धर्मदास ही पर पड़े। कायर! निर्लज्ज! प्राणों के लिए धर्म त्याग किया। ऐसी बेहयाई की जिंदगी से मर जाना कहीं अच्छा है। क्या सोचते हो। क्या तुम्हारे भी हाथ-पांव फूल गए। लाओ, बंदूक मुझे दे दो। मैं इस कायर को अपने हाथों से मारूंगी।
खजान- मुझे तो वि·श्वास नहीं होता कि धर्मदास....
श्यामा- तुम्हें कभी वि·श्वास न आएगा। लाओ, बंदूक मुझे दो। खड़े क्या ताकते हो? क्या जब वे सर पर आ जाएंगे, तब बंदूक चलाओगे? क्या तुम्हें भी यह मंजूर है कि मुसलमान होकर जान बचाओ? अच्छी बात है, जाओ। श्यामा अपनी रक्षा आप कर सकती है; मगर उसे अब मुंह न दिखाना।
खजानचंद ने बंदूक चलाई। एक सवार की पगड़ी को उड़ाती हुई निकल गयी। जिहादियों ने "अल्ला हो अकबर!' की हांक लगायी। दूसरी गोली चली और घोड़े की छाती पर बैठी। घोड़ा वहीं गिर पड़ा।
जिहादियों ने फिर "अल्लाहो अकबर!' की सदा लगायी और आगे बढ़े। तीसरी गोली आयी। एक पठान लोट गया; पर इससे पहले कि चौथी गोली छूटे, पठान खजानचंद के सर पर पहुंच गए और बंदूक उसके हाथ से छीन ली।
एक सवार ने खजानचंद की ओर बंदूक तान कर कहा-
उड़ा दूं सर मरदूद का, इससे खून का बदला लेना है।
दूसरे सवार ने जो इनका सरदार मालूम होता था, कहा- नहीं-नहीं, यह दिलेर आदमी है। खजानचंद, तुम्हारे ऊपर दगा, खून और कुफ्र, ये तीन इल्जाम हैं, और तुम्हें कत्ल कर देना ऐन सवाब है, लेकिन हम तुम्हें एक मौका और देते हैं। अगर तुम अब भी खुदा और रसूल पर ईमान लाओ, तो हम तुम्हें सीने से लगाने को तैयार हैं। इसके सिवा तुम्हारे गुनाहों का और कोई कफारा (प्रायश्चित) नहीं है। यह हमारा आखिरी फैसला है। बोलो, क्या मंजूर है? चारों पठानों ने कमर से तलवारें निकाल लीं, और उन्हें खजानचंद के सर पर तान दिया मानो "नहीं' का शब्द मुंह से निकलते ही चारों तलवारें उसकी गर्दन पर चल जाएगी।
खजानचंद का मुखमंडल विलक्षण तेज से आलोकित हो उठा। उसकी दोनों आंखें स्वर्गीय ज्योति से चमकने लगीं। दृढ़ता से बोला- तुम एक हिन्दू से यह प्रश्न कर रहे हो? क्या तुम समझते हो कि जान के खौफ से वह अपना ईमान बेच डालेगा? हिन्दू को अपने ई·श्वर तक पहुंचने के लिए किसी नबी, वली या पैगम्बर की जरूरत नहीं! चारों पठानों ने कहा-काफिर! काफिर!
खजान-अगर तुम मुझे काफिर समझते हो तो समझो। मैं अपने को तुमसे ज्यादा खुदापरस्त समझता हूं। मैं उस धर्म को मानता हूं, जिसकी बुनियाद अक्ल पर है। आदमी में अक्ल ही खुदा का नूर (प्रकाश) है और हमारा ईमान हमारी अक्ल...
चारों पठानों के मुंह से निकला "काफिर!' और चारों तलवारें एक साथ खजानचंद की गर्दन पर गिर पड़ीं। लाश जमीन पर फड़कने लगी। धर्मदास सर झुकाये खड़ा रहा। वह दिल में खुश था कि अब खजानचंद की सारी सम्पत्ति उसके हाथ लगेगी और वह श्यामा के साथ सुख से रहेगा; पर विधाता को कुछ और ही मंजूर था। श्यामा अब तक मर्माहत सी खड़ी यह दृश्य देख रही थी। ज्यों ही खजानचंद की लाश जमीन पर गिरी, वह झपट कर लाश के पास आयी और उसे गोद में लेकर आंचल से रक्त प्रवाह को रोकने की चेष्टा करने लगी। उसके सारे कपड़े खून से तर हो गए। उसने बड़ी सुन्दर बेल-बूटोंवाली साड़ियां पहनी होंगी, पर इस रक्त-रंजित साड़ी की शोभा अतुलनीय थी। बेल-बूटोंवाली साड़ियां रूप की शोभा बढ़ाती थीं, यह रक्त-रंजित साड़ी आत्मा की छवि दिखा रही थी।
ऐसा जान पड़ा मानो खजानचंद की बुझती आंखें एक अलौकिक ज्योति से प्रकाशमान हो गयी हैं। उन नेत्रों में कितना संतोष, कितनी तृप्ति, कितनी उत्कंठा भरी हुई थी। जीवन में जिसने प्रेम की भिक्षा भी न पायी, वह मरने पर उत्सर्ग जैसे स्वर्गीय रत्न का स्वामी बना हुआ था।
धर्मदास ने श्यामा का हाथ पकड़ कर कहा- श्यामा, होश में आओ, तुम्हारे सारे कपड़े खून से तर हो गए हैं। अब रोने से क्या हासिल होगा? ये लोग हमारे मित्र हैं, हमें कोई कष्ट न देंगे। हम फिर अपने घर चलेंगे और जीवन के सुख भोगेंगे।
श्यामा ने तिरस्कारपूर्ण नेत्रों से देखकर कहा- तुम्हें अपना घर बहुत प्यारा है, तो जाओ। मेरी चिंता मत करो, मैं अब न जाऊंगी। हां, अगर अब भी मुझसे कुछ प्रेम हो तो इन लोगों से इन्हीं तलवारों से मेरी भी अंत करा दो।
धर्मदास करुणा-कातर स्वर से बोला-श्यामा, यह तुम क्या कहती हो, तुम भूल गयीं कि हमसे-तुमसे क्या बातें हुई थीं? मुझे खुद खजानचंद के मारे जाने का शोक है; पर भावी को कौन टाल सकता है?
श्यामा-अगर यह भावी थी, तो यह भी भावी है कि मैं अपना अधर्म जीवन उस पवित्र आत्मा के शोक में काटूं, जिसका मैंने सदैव निरादर किया। यह कहते-कहते श्यामा का शोकोद्गार, जो अब तक क्रोध और घृणा के नीचे दबा हुआ था, उबल पड़ा और वह खजानचंद के निस्पंद हाथों को अपने गले में डालकर रोने लगी। चारों पठान यह अलौकिक अनुराग और आत्म-समर्पण देखकर करुणाद्र्र हो गए।
सरदार ने धर्मदास से कहा- तुम इस पाकीजा खातून से कहो, हमारे साथ चले। हमारी जाति से इसे कोई तकलीफ न होगी। हम इसकी दिल से इज्जत करेंगे।
धर्मदास के हृदय में ईष्या की आग धधक रही थी। वह रमणी, जिसे वह अपनी समझे बैठा था, इस वक्त उसका मुंह भी नहीं देखना चाहती थी। बोला-श्यामा, तुम चाहो इस लाश पर आंसुओं की नदी बहा दो, पर यह जिंदा न होगी। यहां से चलने की तैयारी करो। मैं साथ के और लोगों को भी जा कर समझाता हूं। खान लोग हमारी रक्षा का जिम्मा ले रहे हैं। हमारी जायदाद, जमीन, दौलत सब हमको मिल जाएगी। खजानचंद की दौलत के भी हमीं मालिक होंगे। अब देर न करो। रोने-धोने से अब कुछ हासिल नहीं। श्यामा ने धर्मदास को आग्नेय नेत्रों से देखकर कहा- और इस वापसी की कीमत क्या देनी चाहिए? वही जो तुमने दी है?
धर्मदास यह व्यंग्य न समझ सका। बोला-मैंने तो कोई कीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या?
श्यामा- ऐसा न कहो। तुम्हारे पास वह खजाना था, जो तुम्हें आज कई लाख वर्ष हुए ऋषियों ने प्रदान किया था। जिसकी रक्षा रघु और मनु, राम और कृष्ण, बुद्ध और शंकर, शिवाजी और गोविन्द सिंह ने की थी। उस अमूल्य भंडार को आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया। इन पांवों पर लोटना तुम्हें मुबारक हो! तुम शौक से जाओ। जिन तलवारों ने वीर खजानचंद के जीवन का अंत किया, उन्होंने मेरे प्रेम का भी फैसला कर दिया। जीवन में इस वीरात्मा का मैंने जो निरादर और अपमान किया, इसके साथ जो उदासीनता दिखाई उसका अब मरने के बाद प्रायश्चित करूंगी। यह धर्म पर मरने वाला वीर था, धर्म को बेचनेवाला कायर नहीं! अगर तुममें अब भी कुछ शर्म और हया है, तो इसका क्रिया-कर्म करने में मेरी मदद करो और यदि तुम्हारे स्वामियों को यह भी पसंद न हो, तो रहने दो, मैं सब कुछ कर लूंगी।
पठानों के हृदय दर्द से तड़प उठे। धर्मान्धता का प्रकोप शांत हो गया। देखते-देखते वहां लकड़ियों का ढेर लग गया। धर्मदास ग्लानि से सिर झुकाये बैठा था और चारों पठान लकड़ियां काट रहे थे। चिता तैयार हुई और जिन निर्दय हाथों ने खजानचंद की जान ली थी उन्होंने उसके शव को चिता पर रखा। ज्वाला प्रचंड हुई। अग्निदेव अपने अग्निमुख से उस धर्मवीर का यश गा रहे थे।
पठानों ने खजानचंद की सारी जंगम सम्पत्ति लाकर श्यामा को दे दी। श्यामा ने वहीं पर एक छोटा सा मकान बनवाया और वीर खजानचंद की उपासना में जीवन के दिन काटने लगी। उसकी वृद्धा बुआ तो उसके साथ रह गयी, और सब लोग पठानों के साथ लौट गए, क्योंकि अब मुसलमान होने की शर्त न थी। खजानचंद के बलिदान ने धर्म के भूत को परास्त कर दिया। मगर धर्मदास को पठानों ने इस्लाम की दीक्षा लेने पर मजबूर किया। एक दिन नियत किया गया। मस्जिद में मुल्लाओं का मेला लगा और लोग धर्मदास को उसके घर से बुलाने आए; पर उसका वहां पता न था। चारों तरफ तलाश हुई। कहीं निशान न मिला।
साल-भर गुजर गया। संध्या का समय था। श्यामा अपने झोंपड़े के सामने बैठी भविष्य की मधुर कल्पनाओं में मग्न थी। अतीत उसके लिए दु:ख से भरा हुआ था। वर्तमान केवल एक निराशामय स्वप्न था। सारी अभिलाषाएं भविष्य पर अवलम्बित थीं। और भविष्य भी वह, जिसका इस जीवन से कोई सम्बंध न था! आकाश पर ललिमा छायी हुई थी। सामने की पर्वतमाला स्वर्णमयी शांति के आवरण से ढकी हुई थी। वृक्षों की कांपती हुई पत्तियों से सरसराहट की आवाज निकल रही थी, मानो कोई वियोगी आत्मा पत्तियों पर बैठी हुई सिसकियां भर रही है। उसी वक्त एक भिखारी फटे हुए कपड़े पहने झोंपड़ी के सामने खड़ा हो गया। कुत्ता जोर से भूंक उठा। श्यामा ने चौंक कर देखा और चिल्ला उठी-धर्मदास!
धर्मदास ने वहीं जमीन पर बैठते हुए कहा- हां श्यामा, मैं अभागा धर्मदास ही हूं। साल-भर से मारा-मारा फिर रहा हूं। मुझे खोज निकालने के लिए इनाम रख दिया गया है। सारा प्रांत मेरे पीछे पड़ा हुआ है। इस जीवन से अब ऊब उठा हूं; पर मौत भी नहीं आती।
धर्मदास एक क्षण के लिए चुप हो गया। फिर बोला-क्यों श्यामा, क्या अभी तुम्हारा हृदय मेरी तरफ से साफ नहीं हुआ। तुमने मेरा अपराध क्षमा नहीं किया!
श्यामा ने उदासीन भाव से कहा- मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी। "मैं अब भी हिन्दू हूं। मैंने इस्लाम नहीं कबूल किया है।'
"जानती हूं!' "यह जानकर भी तुम्हें मुझ पर दया नहीं आती!'
श्यामा ने कठोर नेत्रों से देखा और उत्तेजित होकर बोली-तुम्हें अपने मुंह से ऐसी बातें निकालते शर्म नहीं आती! मैं उस धर्मवीर की ब्याहता हूं, जिसने हिन्दू जाति का मुख उज्ज्वल किया है। तुम समझते हो कि वह मर गया! यह तुम्हारा भ्रम है। वह अमर है। मैं इस समय भी उसे स्वर्ग में बैठा देख रही हूं। तुमने हिन्दू-जाति को कलंकित किया है। मेरे सामने से दूर हो जाओ।धर्मदास ने कुछ जवाब न दिया ! चुपके से उठा, एक लम्बी साँस ली और एक तरफ चल दिया।
प्रातःकाल श्यामा पानी भरने जा रही थी, तब उसने रास्ते में एक लाश पड़ी हुई देखी। दो-चार गिद्ध उस पर मँडरा रहे थे। उसका हृदय धड़कने लगा। समीप जा कर देखा और पहचान गयी। यह धर्मदास की लाश थी।