गुरुवार, अक्तूबर 29, 2020

हर हिन्दू नारी अस्मिता का जवाब सिर्फ और सिर्फ कठोरतम मृत्युदण्ड ही होना चाहिए।

 निकिता तोमर ही नहीं बल्कि हर हिन्दू नारी अस्मिता का जवाब सिर्फ और सिर्फ कठोरतम मृत्युदण्ड ही होना चाहिए।

जानते हैं क्यों ?

राजस्थान के जैसलमेर जिले के मुस्लिम गाँव सनावाडा में १९६६ में हुई एक घटना बतला रहा हूँ।

मुस्लिम बाहुल्य गाँव था सनावाड़ा ,जहाँ का सरपंच मुस्लिम था। सरपंच का पुत्र जोधपुर में पढाई कर रहा था। गर्मी के अवकाश में लड़का अपने गाँव आया हुआ था।

पास के गाँव के एकमात्र श्रीमाली ब्राह्मण परिवार की कन्या सरपंच के पुत्र को भा गई। पहले तो पिता ने पुत्र को समझाया। धर्म और मजहब में अंतर बताया किन्तु जब पुत्र जिद्द पर अड़ गया तो सरपंच 10 मुसलमानों को साथ लेकर ब्राह्मण के घर गया और कन्या का हाथ (बलपूर्वक) अपने पुत्र के लिए माँगा।

ब्राह्मण परिवार पर तो मानो ब्रजपात हो गया हो।
किन्तु कुछ सोचकर ब्राह्मणदेव ने दो माह का समय माँगा।

दुसरे दिन हताश ब्राह्मणदेव पास के राजपूत गाँव में वहां के ठाकुर के निवास पर गये , और निवास के मुख्य द्वार के सामने फावड़े से मिटटी खोदने लगे।

बड़े ठाकुर साहब उस समय घर पर नहीं थे मगर 17 वर्षीय कुंवर और उनकी पिता जी घर में थे। जब ब्राह्मण द्वारा मिटटी खोदने की सुचना उन्हें मिली तो कुंवर ब्राम्हणदेव के पास गए और आदरपूर्वक मिट्टी खोदने का कारण पूछा।

ब्राह्मणदेव ने उत्तर दिया:- कुंवर जी, मैने सुना है धरती माता कभी बीज नहीं गंवाती। खोद कर देख रहा हूँ कि हमारे रक्षक क्षत्रिय समाज का बीज आज भी है या नष्ट हो चुका है ?

कुंवर पूरे 17 वर्ष के थे.. बात को समझ गए , उन्होंने ब्राह्मणदेव को वचन दिया कि आप निश्चिन्त रहें विप्रवर।

मैं कुँअर तरुण प्रताप सिंह आपको वचन देता हूँ कि आपके सम्मान हेतु प्राण दे दूँगा किन्तु पीछे नहीं हटूँगा। आप अतिथि घर में पधारें.. स्नान आदि करके भोजन करिए... तब तक पिताश्री भी आ जायेंगे। आपको निराश नहीं करेंगे।

जब ठाकुर साहब वापिस आये तो कुंवर ने पूरी बात बताई और वचन देने वाली बात भी बताई।

ठाकुर साहब ने ब्राह्मणदेव से कहा कि:- गुरूदेव , मैं आपको धन देता हूँ। आप कोई योग्य ब्राह्मण लड़का देख कर अपनी कन्या का रिश्ता तय कर लें। साथ ही मुसलमान सरपंच को उसी तिथी पर दो माह बाद बारात लेकर आपके घर आमंत्रित करें। बाकी का कार्य हम पूरा करेंगे।

दो माह बीते और बताये समय पर मुसलमान सरपंच भारी दलबल के साथ ब्राह्मण के घर बारात लेकर पहुँच गया।

तिलक के समय ठाकुर के तरुण कुंवर ने अपने दो चाचा के साथ मिल कर पहले वर का सर काटा और कटे सिर को लहराते हुए उसी विवाह मंडप में भयंकर रक्तपात मचाया।

वो मंजर कुछ ऐसा था जैसे शेर पूरी ताकत से शिकार कर रहा हो...

उसके बाद कार्बाइन से गोली चला कर सभी बारातियों सहित सरपंच तमाम मुल्ला मुसल्लम को जहन्नुम पहुंचा दिया।

उस दिन का दिन और आज का दिन जैसलमेर में आज तक कोई लव जिहाद जेसी घटना नहीं हुई। कुंवर आज भी जीवित हैं। और पिगपुत्र उनको देख कर आज भी भय से कापते है।

#Beinghindu
साभार

राजस्थान के 33 जिले है,एक भी जिले का नाम मुगलो पर नही है!!

 राजस्थान के 33 जिले है* जिनके नाम हैं

गंगानगर,बीकानेर,जैसलमेर,बाडमेर,जालोर,सिरोही,उदयपुर,डूंगरपुर,बांसवाड़ा,प्रतापगढ़,चित्तौड़गढ़,झालावाड़,कोटा,बारां,सवाईमाधोपुर,करौली,धौलपुर,भरतपुर,अलवर,जयपुर,सीकर,झुंझुनू,चूरु,भीलवाड़ा,हनुमानगढ़,नागौर,जोधपुर,पाली,अजमेर,बूंदी, राजसमंद, टोंक, दौसा!!

इन नामों में एक भी मुगलों के नाम नहीं है अर्थात एक भी जिले का नाम मुगलो पर नही है!!

इन जिलों के नाम से ही पता चलता होगा ! राजपूतो ने क्या किया!! अब एक एक जिलों का परिचय करवाती हु!

#अजमेर:- अजमेर 27 मार्च1112 में चौहान राजपूत वंश के तेइसवें शासक अजयराज चौहान ने बसाया!!

#बीकानेर:- बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश, राव बीका जी राठौड़ के नाम से बीकानेर पड़ा!

#गंगानगर:- महाराजा गंगा सिंह जी से गंगानगर पड़ा!

#जैसलमेर:- जैसलमेर ,महारावल जैसलजी भाटी ने बसाया

#उदयपुर: - महाराणा उदय सिंह सिसोदिया जी ने बसाया उनके नाम से उदयपुर पड़ा!!

#बाड़मेर:- बाड़मेर को राव बहाड़ जी ने बसाया!!

#जालौर:- जालौर की नींव 10वी शताब्दी में परमार राजपूतों के द्वारा रखी गई! बाद में चौहान, राठौड़, सोलंकी आदि राजवंशो ने शासन किया!!

#सिरोही:-राव सोभा जी के पुत्र, शेशथमल ने सिरानवा हिल्स की पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी। उन्होंने वर्ष 1425 ईसवी में वैशाख के दूसरे दिन (द्वितिया) पर सिरोही किले की नींव रखी।

#डूंगरपुर:- वागड़ के राजा डूंगरसिंह ने ई. 1358 में डूंगरपुर नगर की स्थापना की। बाबर के समय में उदयसिंह वागड़ का राजा था जिसने मेवाड़ के महाराणा के संग्रामसिंह के साथ मिलकर खानुआ के मैदान में बाबर का मार्ग रोका था।

#प्रतापगढ़:- प्रताप सिंह महारावत ने बसाया!

#चित्तौड़:- स्वाभिमान, शौर्य ,त्याग, वीरता ,राजपुताना की शान चित्तौड़, सिसोदिया (गहलोत)वंश ने बहुत शासन किया बप्पा रावल, महाराणा प्रताप सिंह जी यहाँ षासन किया!!

#हनुमानगढ़ :-भटनेर दुर्ग 285 ईसा में भाटी वंश के राजा भूपत सिंह भाटी ने बनवाया इस लिए इसे भटनेर कहाँ जाता है। मंगलवार को दुर्ग की स्थापना होने कारण हनुमान जी के नाम पर हनुमानगढ़ कहा जाता है।

#जोधपुर:-राव जोधा ने 12 मई, 1459 ई. में आधुनिक जोधपुर शहर की स्थापना की।

#राजसमंद:- शहर और जिले का नाम मेवाड़ के राणा राज सिंह द्वारा 17 वीं सदी में निर्मित एक कृत्रिम झील, राजसमन्द झील के नाम से लिया गया है।

#बूंदी:-इतिहास के जानकारों के अनुसार 24 जून 1242 में हाड़ा वंश के राव देवा ने इसे मीणा सरदारों से जीता और बूंदी राज्य की स्थापना की।
पुरा राजपुताना क्षत्रियों का है कहीं ना कहीं वह अपना अस्तित्व रखते थे और आज भी रखते भले ही अभी राजपूताने से राजस्थान हो गया है
. # यह संभव हुआ है राजपूतों के कारण ही हुआ है जो लोग कहते हैं राजपूतों ने क्या किया है यह उनके लिए उदाहरण है. #श्रीराष्ट्रीय राजपूत करणी सेना भारत.#आस्ट्रेलियाठाकु सुखदेव सिंह गोगामेडी करणी सेना सुप्रीमो. #राजपूत यूनिटी.#राजपूताना

बुधवार, अक्तूबर 28, 2020

कोई मुस्लिम लड़का एक मशहूर सेलिब्रिटी बनता है तो उसकी पहली ख्वाहिश यही होती है कि वो एक हिन्दू लड़की से ही शादी करे

 अगर कोई मुस्लिम लड़का एक मशहूर सेलिब्रिटी बनता है तो उसकी पहली ख्वाहिश यही होती है कि वो एक हिन्दू लड़की से ही शादी करे

#गौर_करिये
क्रिकेटर ज़हीर खान, मोहम्मद कैफ, मोहम्मद अजहरुद्दीन, युसूफ पठान, मंसूर अली खान पटौदी, फिल्म अभिनेता शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान
राजनीतिज्ञ शाहनवाज़ खां और मुख्तार अब्बास नकवी और दुनिया भर के न जाने कितने मुस्लिम लोग जो मशहूर सेलिब्रिटी रहे और हिन्दू लड़कियों के पति बने
#काफी_प्रचलित_सीरियल
अभी विगत 2 वर्ष पूर्व टीवी सीरियल में काम करने वाले एक मुस्लिम अभिनेता ने #ससुराल_सिमर_का सीरियल में काम करने वाली टीवी अभिनेत्री
#दीपिका_कक्कड़ से शादी की उन तमाम लोगों को यहां लिखा भी नहीं जा सकता लिस्ट इतनी लम्बी है लिखना असम्भव हैं

#ध्यान_दीजिये_दोषी_कौन_इसका
इन मशहूर सेलिब्रिटी की शादी को लव जिहाद की संज्ञा नहीं दी जा सकती क्योंकि इन्होंने अपने मुस्लिम होने की पहचान को छुपाया नहीं
लड़की और उसके घर वालों को मालूम था कि वो एक मुस्लिम दामाद ला रहे हैं।

ये सच है कि जब ये पैसा, शोहरत और दौलत से लबरेज़ हुए तभी इन्हें हिन्दू लड़की बगैर अपनी पहचान छुपाए आसानी से हासिल हो गयी पर ये भी सच है कि अगर मुस्लिम लड़के सेलिब्रिटी न बन पाते तो लव जिहाद का रास्ता अखितयार करते
अपनी पहचान छुपाकर हिन्दू नाम के साथ, कलावा बांधे हुए, चंदन लगाकर लड़की से मिलते,उसे अपवित्र कर शादी के लिए मजबूर करते।

#हमारी_मूर्खता
लव जिहाद को तो हम तुरन्त इस्लामीकरण से जोड़ लेते हैं
पर रज़ामन्दी से की गयी शादी में हमे #इस्लामीकरण नहीं दिखता ?

#प्रश्न_उठता_है
आखिर मुस्लिमों को हिन्दू लड़की ही क्यों पसंद है ?
जबकि मुस्लिम और ईसाई लड़कियां भी बेहद खूबसूरत होती हैं अकबर से लेकर अनेकों मुस्लिम शासकों की बेगमें हिन्दू थी
अकबर ने जोधाबाई को पटरानी बनाया तो अनेकों हिन्दू औरतों को हरम की दासी बनाया, यानी उसे हर रूप में हिन्दू औरते ही पसंद थी
#उससे_भी_बड़ा_प्रश्न_उठता_है_मन_मे
चलो वो तो अपना काम कर रहे है इन तमाम हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम लड़के ही क्यों पसन्द आते है बॉलीवुड खेल जगत राजनीति से लगाये हर विभाग में देख लीजिए मुस्लिम लड़किया कुछ गिनती की दो चार होंगी जो हिन्दू लड़को से विवाह की होगी इसके विपरीत हिन्दू लड़कियों का अंबार लगा हुआ है
#कहने_का_अर्थ_है
रज़ामन्दी से की गयी शादी भी इस्लामीकरण है और लव जिहाद से की गयी शादी भी इस्लाम की सेवा है
पर रज़ामन्दी से की गयी शादी में हिन्दू संगठनों को बाद में बखेड़ा खड़ा करने का कोई अवसर नहीं मिलता।

#मानसिक_विचारधार
वास्तव में मुस्लिम नौजवान एक ऐसी मानसिकता के शिकार हैं कि अगर उन्हें किसी तरह एक हिन्दू लड़की हासिल हो जाये तो उनके जन्नत का रास्ता साफ है
ये सोच एक मानसिक विकृति में बदल चुकी है
जैसा कि मैंने ऊपर लिखा कि मुस्लिम और ईसाई औरते भी बहुत खूबसूरत होती हैं पर उस खूबसूरती को वो तरजीह न देकर हिन्दू लड़की को ज्यादा तरजीह देते हैं इससे उन्हें एक आत्मिक ख़ुशी भी मिलती है कि वो हिन्दू धर्म को नष्ट कर रहे हैं और अल्लाह के बताये रास्ते में अपना योगदान दे रहे हैं
#दूसरी_बात खुद मुस्लिम युवकों को इस बात का यकीन नहीं रहता कि खालाजान की लड़की कहीं मामू जान के लड़के से अपवित्र तो नहीं है, ये अविश्वास ही उन्हें हिन्दू लड़की लाने के लिए प्रेरित करता है।

#चिंतन_करियेगा_अ
चाहे एक आम मुस्लिम हो या कोई सेलिब्रिटी या राजनेता दोष उनमे एक पैसे का नही है सारा का सारा दोष हिन्दू समाज की लड़कियों एव उनके परिवार का है बस हम सही बात को पकड़ते नही है

गुरुवार, अक्तूबर 22, 2020

उपभोक्तावाद और प्लास्टिक मनी

 1920 में अमेरिका में उपभोक्तावाद आने से पहले राष्ट्रीय बचत खाते में 80% बचत निजी थी और 20% बचत कारपोरेट सेक्टर की थी,,,,

उपभोक्तावाद और प्लास्टिक मनी यानी क्रेडिट कार्ड ने आर्थिक बचत का पासा पलट दिया,,,

कंपनियों ने लोगों को चार्वाक दर्शन सिखा दिया यानी

यावत जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।

भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।।

यानी जब तक जियो सुख से जियो कर्जा लेकर घी पियो ..यह शरीर नश्वर है आग में जल जाना है फिर क्या पता दोबारा इस धरती पर आगमन हो कि ना हो

अब कारपोरेट बचत 107% है, और उपभोक्ता अपनी 80% बचत गवां कर 27% का कर्जदार बन कर्ज चुकाने को मजबूर है,,,,

ठीक यही हाल भारत का भी हो रहा है भारत में भी राष्ट्रीय बचत बहुत तेजी से घट रही है लोग ईएमआई पर खरीदारी के जाल में फंसते जा रहे हैं

एक कर्ज को चुकाने के लिए दूसरा कर्ज फिर दूसरे कर्ज को चुकाने के लिए तीसरा कर्ज और इस तरह उपभोक्तावाद ने हमें कर्ज के जंजाल में जकड़ लिया है रही सही कसर क्रेडिट कार्ड ने पूरी कर दी

कृपया अनावश्यक ऑनलाइन खरीदारी करके कोरपोरेट के जाल में मत फंसिए

||भारतीय नौका||

 

||भारतीय नौका||

भारत पर मुस्लिम आक्रमण ७वीं सदी में प्रारंभ हुआ। उस काल में भी भारत में बड़े-बड़े जहाज बनते थे। मार्कपोलो तेरहवीं सदी में भारत में आया। वह लिखता है ‘जहाजों में दोहरे तख्तों की जुड़ाई होती थी, लोहे की कीलों से उनको मजबूत बनाया जाता था और उनके सुराखों को एक प्रकार की गोंद में भरा जाता था। इतने बड़े जहाज होते थे कि उनमें तीन-तीन सौ मल्लाह लगते थे। एक-एक जहाज पर ३ से ४ हजार तक बोरे माल लादा जा सकता था। इनमें रहने के लिए ऊपर कई कोठरियां बनी रहती थीं, जिनमें सब तरह के आराम का प्रबंध रहता था। जब पेंदा खराब होने लगता तब उस पर लकड़ी की एक नयी तह को जड़ लिया जाता था। इस तरह कभी-कभी एक के ऊपर एक ६ तह तक लगायी जाती थी।‘

१५वीं सदी में निकोली कांटी नामक यात्री भारत आया। उसने लिखा कि ‘भारतीय जहाज हमारे जहाजों से बहुत बड़े होते हैं। इनका पेंदा तिहरे तख्तों का इस प्रकार बना होता है कि वह भयानक तूफानों का सामना कर सकता है। कुछ जहाज ऐसे बने होते हैं कि उनका एक भाग बेकार हो जाने पर बाकी से काम चल जाता है।‘

बर्थमा नामक यात्री लिखता है ‘लकड़ी के तख्तों की जुड़ाई ऐसी होती है कि उनमें जरा सा भी पानी नहीं आता। जहाजों में कभी दो पाल सूती कपड़े के लगाए जाते हैं, जिनमें हवा खूब भर सके। लंगर कभी-कभी पत्थर के होते थे। ईरान से कन्याकुमारी तक आने में आठ दिन का समय लग जाता था।‘ समुद्र के तटवर्ती राजाओं के पास जहाजों के बड़े-बड़े बेड़े रहते थे।

डा. राधा कुमुद मुकर्जी ने अपनी ‘इंडियन शिपिंग‘ नामक पुस्तक में भारतीय जहाजो के संबंध में बहुत अच्छी जानकारी दी है।

अब एक हटकर उदाहरण देना चाहता हूँ आपको - अंग्रेजों ने एक भ्रम और व्याप्त किया कि वास्कोडिगामा ने समुद्र मार्ग से भारत आने का मार्ग खोजा। यह सत्य है कि वास्कोडिगामा भारत आया था, पर वह कैसे आया इसके यथार्थ को हम जानेंगे तो स्पष्ट होगा कि वास्तविकता क्या है? प्रसिद्ध पुरातत्ववेता पद्मश्री डा. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने बताया कि मैं अभ्यास के लिए इंग्लैण्ड गया था।

वहां एक संग्रहालय में मुझे वास्कोडिगामा की डायरी के संदर्भ में बताया गया। इस डायरी में वास्कोडिगामा ने वह भारत कैसे आया, इसका वर्णन किया है। वह लिखता है, जब उसका जहाज अफ्रीका में जंजीबार के निकट आया तो मेरे से तीन गुना बड़ा जहाज मैंने देखा। तब एक अफ्रीकन दुभाषिया लेकर वह उस जहाज के मालिक से मिलने गया। जहाज का मालिक चंदन नाम का एक गुजराती व्यापारी था, जो भारतवर्ष से चीड़ व सागवान की लकड़ी तथा मसाले लेकर वहां गया था और उसके बदले में हीरे लेकर वह कोचीन के बंदरगाह आकार व्यापार करता था। वास्कोडिगामा जब उससे मिलने पहुंचा तब वह चंदन नाम का व्यापारी सामान्य वेष में एक खटिया पर बैठा था।

उस व्यापारी ने वास्कोडिगामा से पूछा, कहां जा रहे हो? वास्कोडिगामा ने कहा- हिन्दुस्थान घूमने जा रहा हूं। तो व्यापारी ने कहा मैं कल जा रहा हूं, मेरे पीछे-पीछे आ जाओ।‘ इस प्रकार उस व्यापारी के जहाज का अनुगमन करते हुए वास्कोडिगामा भारत पहुंचा। स्वतंत्र देश में यह यथार्थ नयी पीढ़ी को बताया जाना चाहिए था परन्तु दुर्भाग्य से यह नहीं हुआ।

अब मैकाले की संतानों के मन में उपर्युक्त वर्णन पढ़कर विचार आ सकता है, कि नौका निर्माण में भारत इतना प्रगत देश था तो फिर आगे चलकर यह विद्या लुप्त क्यों हुई?

इस दृष्टि से अंग्रेजों के भारत में आने और उनके राज्य काल में योजनापूर्वक भारतीय नौका उद्योग को नष्ट करने के इतिहास के बारे में जानना जरूरी है। उस इतिहास का वर्णन करते हुए श्री गंगा शंकर मिश्र कल्याण के हिन्दू संस्कृति अंक (१९५०) में लिखते हैं-

‘पाश्चात्यों का जब भारत से सम्पर्क हुआ तब वे यहां के जहाजों को देखकर चकित रह गए। सत्रहवीं शताब्दी तक यूरोपीय जहाज अधिक से अधिक ६ सौ टन के थे, परन्तु भारत में उन्होंने ‘गोघा‘ नामक ऐसे बड़े-बड़े जहाज देखे जो १५ सौ टन से भी अधिक के होते थे।

यूरोपीय कम्पनियां इन जहाजों को काम में लाने लगीं और हिन्दुस्थानी कारीगरों द्वारा जहाज बनवाने के लिए उन्होंने कई कारखाने खोल लिए। सन्‌ १८११ में लेफ्टिनेंट वाकर लिखता है कि ‘व्रिटिश जहाजी बेड़े के जहाजों की हर बारहवें वर्ष मरम्मत करानी पड़ती थी। परन्तु सागौन के बने हुए भारतीय जहाज पचास वर्षों से अधिक समय तक बिना किसी मरम्मत के काम देते थे।‘ ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी‘ के पास एक ऐसा बड़ा जहाज था, जो ८७ वर्षों तक बिना किसी मरम्मत के काम देता रहा। जहाजों को बनाने में शीशम, साल और सागौन-तीनों लकड़ियां काम में लायी जाती थीं।

सन्‌ १८११ में एक फ्रेंच यात्री वाल्टजर सालविन्स अपनी पुस्तक में लिखता है क
सन्‌ १८११ में एक फ्रेंच यात्री वाल्टजर सालविन्स अपनी पुस्तक में लिखता है कि ‘प्राचीन समय में नौ-निर्माण कला में हिन्दू सबसे आगे थे और आज भी वे इसमें यूरोप को पाठ पढ़ा सकते हैं।

अंग्रेजों ने, जो कलाओं के सीखने में बड़े चतुर होते हैं, हिन्दुओं से जहाज बनाने की कई बातें सीखीं। भारतीय जहाजों में सुन्दरता तथा उपयोगिता का बड़ा अच्छा योग है और वे हिन्दुस्थानियों की कारीगरी और उनके धैर्य के नमूने हैं।‘

बम्बई के कारखाने में १७३६ से १८६३ तक ३०० जहाज तैयार हुए, जिनमें बहुत से इंग्लैण्ड के ‘शाही बेड़े‘ में शामिल कर लिए गए। इनमें ‘एशिया‘ नामक जहाज २२८९ टन का था और उसमें ८४ तोपें लगी थीं। बंगाल में हुगली, सिल्हट, चटगांव और ढाका आदि स्थानों पर जहाज बनाने के कारखाने थे। सन्‌ १७८१ से १८२१ तक १,२२,६९३ टन के २७२ जहाज केवल हुगली में तैयार हुए थे।

अंग्रेजों की कुटिलता-व्रिटेन के जहाजी व्यापारी भारतीय नौ-निर्माण कला का यह उत्कर्ष सहन न कर सके और वे ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी‘ पर भारतीय जहाजों का उपयोग न करने के लिए दबाने बनाने लगे। सन्‌ १८११ में कर्नल वाकर ने आंकड़े देकर यह सिद्ध किया कि ‘भारतीय जहाजों‘ में बहुत कम खर्च पड़ता है और वे बड़े मजबूत होते हैं।

यदि व्रिटिश बेड़े में केवल भारतीय जहाज ही रखे जाएं तो बहुत बचत हो सकती है।‘ जहाज बनाने वाले अंग्रेज कारीगरों तथा व्यापारियों को यह बात बहुत खटकी। डाक्टर टेलर लिखता है कि ‘जब हिन्दुस्थानी माल से लदा हुआ हिन्दुस्थानी जहाज लंदन के बंदरगाह पर पहुंचा, तब जहाजों के अंग्रेज व्यापारियों में ऐसी घबराहट मची जैसा कि आक्रमण करने के लिए टेम्स नदी में शत्रुपक्ष के जहाजी बेड़े को देखकर भी न मचती।‘

लंदन बंदरगाह के कारीगरों ने सबसे पहले हो-हल्ला मचाया और कहा कि ‘हमारा सब काम चौपट हो जाएगा और हमारे कुटुम्ब भूखों मर जाएंगे।‘ ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी‘ के ‘बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स‘ (निदेशक-मण्डल) ने लिखा कि हिन्दुस्थानी खलासियों ने यहां आने पर जो हमारा सामाजिक जीवन देखा, उससे भारत में यूरोपीय आचरण के प्रति जो आदर और भय था, नष्ट हो गया।

अपने देश लौटने पर हमारे सम्बंध में वे जो बुरी बातें फैलाएंगे, उसमें एशिया निवासियों में हमारे आचरण के प्रति जो आदर है तथा जिसके बल पर ही हम अपना प्रभुत्व जमाए बैठे हैं, नष्ट हो जाएगा और उसका प्रभाव बड़ा हानिकर होगा।‘ इस पर व्रिटिश संसद ने सर राबर्ट पील की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की।

काला कानून- समिति के सदस्यों में परस्पर मतभेद होने पर भी इस रपट के आधार पर सन्‌ १८१४ में एक कानून पास किया, जिसके अनुसार भारतीय खलासियों को व्रिटिश नाविक बनने का अधिकार नहीं रहा।

व्रिटिश जहाजों पर भी कम-से कम तीन चौथाई अंग्रेज खलासी रखना अनिवार्य कर दिया गया। लंदन के बंदरगाह में किसी ऐसे जहाज को घुसने का अधिकार नहीं रहा, जिसका स्वामी कोई व्रिटिश न हो और यह नियम बना दिया गया कि इंग्लैण्ड में अंग्रेजों द्वारा बनाए हुए जहाजों में ही बाहर से माल इंग्लैण्ड आ सकेगा।‘

कई कारणों से इस कानून को कार्यान्वित करने में ढिलाई हुई, पर सन्‌ १८६३ से इसकी पूरी पाबंदी होने लगी। भारत में भी ऐसे कायदे-कानून बनाए गए जिससे यहां की प्राचीन नौ-निर्माण कला का अन्त हो जाए। भारतीय जहाजों पर लदे हुए माल की चुंगी बढ़ा दी गई और इस तरह उनको व्यापार से अलग करने का प्रयत्न किया गया।

सर विलियम डिग्वी ने लिखा है कि ‘पाश्चात्य संसार की रानी ने इस तरह प्राच्य सागर की रानी का वध कर डाला।‘ संक्षेप में भारतीय नौ-निर्माण कला को नष्ट करने की यही कहानी है।

इसी तरह से कई और भारतीय विधाओं पर अतिक्रमण कर विधर्मियों ने उन्हें नष्ट करने या अपना बताने का कुत्सित प्रयास किया है... सनातनियों का परम कर्त्तव्य है की अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाने हेतु तन मन धन से प्रयत्न करना प्रारंभ कर दें।

नोट :: गुजरात के सौराष्ट्र व कच्छ का जहाज उद्योग बहुत प्रसिद्ध था कच्ची कोटिया जहाज तो सच मे हिन्द महासागर व अरब सागर में राज करते थे सब से ज्यादा मालढुलाई इसी से होती थी।
लेखक का नाम-अज्ञात

शनिवार, अक्तूबर 03, 2020

विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौन सी है.....

 ये पोस्ट  अद्भुत एवं अतुलनीय है....


क्या आप जानते है विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौन सी है.....


अंग्रेजी में 'THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG' एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए, मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया जिसमे चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है। 

अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।-


*क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।*

*तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।* 


अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।


श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के *सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाये दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार*। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है! 


पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है, किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में *केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है* और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-


*न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।*

*नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥*


अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्! 


एक और उदहारण है।-


*दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः*

*दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः*


अर्थात: दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खण्डन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।


है ना खूबसूरत? इतना ही नहीं, क्या किसी भाषा में *केवल 2 अक्षर* से पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में ये करना असम्भव है। माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र ” दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है। देखिये –


*भूरिभिर्भारिभिर्भीराभूभारैरभिरेभिरे*

*भेरीरे भिभिरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिभा:।*


अर्थात- निर्भय हाथी जो की भूमि पर भार स्वरूप लगता है, अपने वजन के चलते, जिसकी आवाज नगाड़े की तरह है और जो काले बादलों सा है, वह दूसरे दुश्मन हाथी पर आक्रमण कर रहा है।


एक और उदाहरण-


*क्रोरारिकारी कोरेककारक कारिकाकर।*

*कोरकाकारकरक: करीर कर्करोऽकर्रुक॥*


अर्थात- क्रूर शत्रुओं को नष्ट करने वाला, भूमि का एक कर्ता, दुष्टों को यातना देने वाला, कमलमुकुलवत, रमणीय हाथ वाला, हाथियों को फेंकने वाला, रण में कर्कश, सूर्य के समान तेजस्वी [था]।


पुनः क्या किसी भाषा मे केवल *तीन अक्षर* से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? यह भी संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में असंभव है!

उदहारण- 


*देवानां नन्दनो देवो नोदनो वेदनिंदिनां*

*दिवं दुदाव नादेन दाने दानवनंदिनः।।*


अर्थात- वह परमात्मा [विष्णु] जो दूसरे देवों को सुख प्रदान करता है और जो वेदों को नहीं मानते उनको कष्ट प्रदान करता है। वह स्वर्ग को उस ध्वनि नाद से भर देता है, जिस तरह के नाद से उसने दानव [हिरण्याकश्यप] को मारा था।


अब इस छंद को ध्यान से देखें इसमें पहला चरण ही चारों चरणों में चार बार आवृत्त हुआ है, लेकिन अर्थ अलग-अलग हैं, जो यमक अलंकार का लक्षण है। इसीलिए ये महायमक संज्ञा का एक विशिष्ट उदाहरण है -


विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जतीशमार्गणा:।

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा:॥


अर्थात- पृथ्वीपति अर्जुन के बाण विस्तार को प्राप्त होने लगे, जबकि शिवजी के बाण भंग होने लगे। राक्षसों के हंता प्रथम गण विस्मित होने लगे तथा शिव का ध्यान करने वाले देवता एवं ऋषिगण (इसे देखने के लिए) पक्षियों के मार्गवाले आकाश-मंडल में एकत्र होने लगे।


जब हम कहते हैं की संस्कृत इस पूरी दुनिया की सभी प्राचीन भाषाओं की जननी है तो उसके पीछे इसी तरह के खूबसूरत तर्क होते हैं। यह विश्व की अकेली ऐसी भाषा है, जिसमें "अभिधान- सार्थकता" मिलती है अर्थात् अमुक वस्तु की अमुक संज्ञा या नाम क्यों है, यह प्रायः सभी शब्दों में मिलता है। जैसे इस विश्व का नाम संसार है तो इसलिये है क्यूँकि वह चलता रहता है, परिवर्तित होता रहता है-

संसरतीति संसारः गच्छतीति जगत् आकर्षयतीति कृष्णः,  रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः इत्यादि।

जहाँ तक मुझे ज्ञान है विश्व की अन्य भाषाओं में ऐसी अभिधानसार्थकता नहीं है। 

Good का अर्थ अच्छा, भला, सुन्दर, उत्तम, प्रियदर्शन, स्वस्थ आदि है किसी अंग्रेजी विद्वान् से पूछो कि ऐसा क्यों है तो वह कहेगा है बस पहले से ही इसके ये अर्थ हैं क्यों हैं वो ये नहीं बता पायेगा।

ऐसी सरल और समृद्ध भाषा जो सभी भाषाओं की जननी है आज अपने ही देश में अपने ही लोगों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है बेहद चिंताजनक है।


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