गुरुवार, सितंबर 19, 2019

कबीर जी मुस्लमान थे , संत रामपाल भी मुस्लिम है।

कबीर जी मुस्लमान थे । इसी कारण अपने मजहब को नहीँ तोडा और टोपी नहीँ उतारी और गँगा के घाट पर लेट कर रामानँद जी से छलावा करके राम नाम लिया क्युँकि रामानँद जी ने कबीर जी को दीक्षा देने से मना किया था और जब परीक्षा मेँ पास हुआ तो रामानँद जी ने कबीर को अपना चेला स्वीकार किया । कबीर मुस्लमान थे । और ये रामपाल और कबीर सागर किताब छापने वाले कहते है कि कबीर जी ने बाद मेँ रामानँद जी को अपना चेला बनाया । इन लोगोँ का पर्दाफाश अभी करते है । अगर कबीर ने रामानँद को चेला बनाया होता तो धर्मदास की तरह एक टोपी रामानँद के सिर पर भी होती । जबकि ऐसा नहीँ हुआ । अगर नानक जी कबीर का चेला होते तो नानक जी के सिर पर भी पठाणी कुल्ला मुल्ला टोपी होती धर्मदास और कबीर की तरह । अगर कबीरपँथी रामपाल और चेलोँ से पूछतेँ है कि कबीर का मुल्ला भेस क्युँ है ? तो बताते है यही भेस है इनका । पर ये स्वीकार नहीँ करते कि कबीर मुल्ला है । इसका मतलब ये सिद्ध होता है कि कबीर नकली मुल्ला था ? जी नहीँ कबीर असली मुल्ला था । आप सबूत देखिए पुरातन लिखत खरडे अनुसार पा॰ दसवीँ मुकम्मल (सौ साखी ) विजै मुक्त मेँ जनम साखी 10 वीँ पातशाही गुरु गोबिँद सिँह जी । साखी नँबर 74 मेँ पन्ना नँबर 217 । गुरु जी गरीबी भगत पवित्र है जी रविदास जी चमार दे साथ भेद भाव नहीँ रख्या .कुब्जा अराईयाँ की लडकी थी श्री कृष्ण भगवान ने उसकी गति करी थी । कबीर जी और फरीद जी दोनोँ मुस्लमान थे उनकी गती श्री गुरु अर्जुन साहिब जी ने की थी । अर्थात कबीर जी मुस्लमान ही थे ।
आज हिन्दू सनातन समाज मे झूठा संत रामपाल कबीर को ब्रह्मा विष्णु महेश का बाप बनाता है,  देवी देवताओं का मजाक उड़ाता है क्योंकि वो छुपा हुआ मुस्लिम है।

बुधवार, सितंबर 18, 2019

वीर शिरोमणि क्रांतिकारी शहीद बाबा गंगू जी को शत् शत् नमन।

महान सेना नायक बाबा गंगादीन भंगी की पुण्य तिथि पर
महान सेना नायक बाबा गंगादीन भंगी की पुण्य तिथि पर श्रद्दांजलिपेशवा बाजीराव तृतीय के निःसंतान रह जाने के कारण धोड़पत नाना साहब को गोद लिया गया।
नाना साहब पेशवा ने अपने विश्वस्त सूबेदार बाबा गंगादीन भंगी को अपने प्रधान पलटन का कर्नल बनाया। बाबा गंगादीन ही गंगू मेहत्तर थे, जिनके नेतृत्व में नाना साहब की फौजों ने अंग्रेजों पर कहर बरपाया
अब पढ़िए आगे का पूरा इतिहास Ashutosh Sharma की वाल से
महान सेना नायक बाबा गंगादीन भंगी की पुण्य तिथि पर श्रद्दांजलि
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1857 में कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में कानपुर के रहने वाले शहीद मातादीन भंगी (अमर शहीद मंगल पाण्डे को अपवित्र कारतूसों की सूचना देने वाला) की शहादत रंग लाई और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी कानपुर झांसी एवं मेरठ की सैनिक छावनी तक फैल गयी.......................................
04 जून 1857 की आधी रात को भारतीय सैनिकों ने कानपुर में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया।कानपुर के नवाबगंज का खजाना लूट लिया गया।जेल तोड़ कर कैदियों को मुक्त कराया गया।बिठूर-कानपुर में नेतृत्व था नाना साहब एवं तात्या टोपे का।
1818 में तृतीय मराठा युद्ध में हारने के बाद अंतिम पेशवा बाजीराव तृतीय को ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूना से विस्थापित कर कानपुर के नजदीक बिठूर में जागीर देकर रहने को विवश कर दिया।
बिठूर में भंगियों की आबादी बहुत थी । पेशवा बाजीराव तृतीय के निःसंतान रह जाने के कारण धोड़पत नाना साहब को गोद लिया गया।
नाना साहब पेशवा ने अपने विश्वस्त सूबेदार बाबा गंगादीन भंगी को अपने प्रधान पलटन का कर्नल बनाया। बाबा गंगादीन ही गंगू मेहत्तर थे, जिनके नेतृत्व में नाना साहब की फौजों ने अंग्रेजों पर कहर बरपाया था............सैकड़ो अंग्रेज मारे गये ।अंग्रेजों ने गुस्से और नफरत से बाबा गंगादीन उर्फ गंगू मेहत्तर के जाति के लोगों को खोज खोज कर सूली पर लटका दिया। पकड़े जाने पर बाबा गंगादीन उर्फ गंगू मेहत्तर को अंग्रेजों ने सरेआम फाँसी पर लटका दिया।.....गंगू मेहत्तर जो नाना साहेब की सेना में कर्नल थे....पेशवा की सेना में जाने से पहले नगाड़ा बजाते थे,पहलवानी करते थे। कानपूर के सतीचौरा घाट पर उनका आखाड़ा था.....................................
गंगू भंगी जिसने आज़ादी की लड़ाई लड़ी ओर लगभग 200 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था,आज के ही दिन 18 सितम्बर 1857 को कानपुर में चौराहे पर फाँसी पर चढा दिये गये, दुर्भाग्यवश वीर शिरोमणि गंगू जी के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
एक बात और , इस अति दलित जाति के क्रांतिकारी बाबा गंगू के राष्ट्रवादी वंशजो ने कभी राष्ट्र विरोधी षड्यन्त्रों को रचने वालों का साथ देकर किसी भीमा कोरेगांव पर जश्न मनाकर राष्ट्र की आत्मा को शर्मसार नहीं किया।
वीर शिरोमणि क्रांतिकारी शहीद बाबा गंगू जी को शत् शत् नमन।
Ashutosh Sharma

सोमवार, सितंबर 16, 2019

हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हजारों साल पुराना है

पुरी दुनिया का अंतरिक्ष विज्ञान तो 300-400 साल पुराना है
जबकि हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हजारों साल पुराना है :
चांद पर लैंडर उतारने में हम नाकामयाब क्या हुएं दुनिया के कुछ अखबारों ने बहुत ही चतुराई भरे शब्दों में हम पर व्यंग्य किया है।लोगों को यह पता होना ही चाहिए कि रुस ,अमेरिका,ब्रिटेन, जर्मनी फ्रांस और चीन यह सब जितने देश हैं उनका अंतरिक्ष विज्ञाण मात्र 300-400 साल पुराना है जबकि हमारा अंतरिक्ष ज्ञाण हजारों-हजार साल पुराना है।
...अमेरिका के जब आप इतिहास पढेंगें तो मालुम होगा कि 15 वीं शताब्दी के मध्य तक चंद्रग्रहण के संबध में अमेरिकी जनता को कुछ भी मालुम नही था।वें इसे कौतुहल मानते थें।कोलम्बस ने तो 14 वीं शताब्दी में चंद्रग्रहण के लाल चांद का डर दिखाकर इनसे अमेरिकी जनता से बहुत धन ठग लिया था।
...वहीं हमारा देश चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक सिद्धांत से पुरी तरह परिचित था।ब्रह्मपुराण का एक श्लोक कहता है। --- " भूमिच्छाया गतश्चक्र चक्रगो अर्क कदाचन्।--- यानी चंद्रमा पर पृथ्वी की काली छाया पड़ने से यह खगोलीय घटना होती है।हजारों साल पहले पैदा हुए भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने तो जो वैज्ञानिक सिद्धांत लिख रखा है वहीं सिद्धांत आज पुरी दुनिया विज्ञान के पाठ्यपुस्तकों में पढ़ा रहा है।
....सूर्य के सात रंगों की खोज ऐसे तो न्यूटन को जाता है लेकिन न्यूटन से सहस्रो साल पहले वेदों और पुराणों में हमनें धार्मिक दृष्टिकोण से दुनिया को बता रखा है कि सूर्य सात घोडे़ वालें रथ पर विराजमान दिखाया है,तो ब्रह्माण्ड पुराण में सप्त रश्मि का उल्लेख है।जहां तक सूर्य की किरणें की गति का सवाल है तो 16 वीं शताब्दी में पुरी दुनिया ने आधा-अधुरा ज्ञान जाना बाद में 19 शताब्दी के शुरुआत में दुनिया ने सटीक तरीका से सूर्य के किरण की गति इतनी है जबकि हमारा महाभारत उससे हजारों साल पहले उसके किरण के गति का सिद्धांत दे रखा है।
...महाभारत के शांतिपर्व में उल्लेख है --" योजनानां सहस्रे द्वे द्वेशते द्वे च योजने।एकेन निमिषाद्वैन क्रममाण नमोsस्तुते। --अर्थ देखीए --सूर्य की किरणें एक निमिष में 2202 योजन जाती है।....जब थोड़ा निमिष को आप सेकेण्ड में बदल दिजीए तो निमिष एक सेकेंड का 16/75 वां भाग होता है।अब कैल्युकेलेट कर दिजीए योजन को मिल में बदल दिजीए और निमिष को सेकेंड में बदल दिजीए तो हुआ न लगभग 2 लाख 96 हजार किलोमीटर प्रति सेकेंड।आज का वैज्ञानिक सिद्धांत भी यही है।
...कहते हैं आकाशगंगा की खोज गैलेलियो ने की थी इसलिए पुरी दुनिया ने इसका नाम ही Galaxy दे दिया।किंतु आकाशगंगा पर एक टिपप्णी पुराणों मे देखीए।---"भ्रमानि कथमेनानी जोनिषि दिव मण्डलम्।व्हुहेन च सर्वाणि तथैवांस करेणवा।...अर्थात -- ये प्रकाशमान नक्षत्र और तारागण आकाश में किस प्रकार स्थिर है और एक-दूसरे से टकराते नही हैं।इसका कारण कुछ निश्चित गति है,जिसमें वें आकाश में संचरण करते हैं।
...दुरबीन जिसके खोज दुनिया के अनुसार हालैंड के हैंश लिपर्शे ने 1608 में किया था किंतु हमारे सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के एक मंत्र का उदाहरण देखीए।--" यत्क सूर्य स्वर्भानुतमसा। विध्यतासुरः अक्षेत्र मुग्धा भुवनान्य दीर्घयु । गूढं तमसावतेन तूरियेण ब्रह्मा विन्ददसि।...अर्थ --: हे सूर्य, तुम चंद्र के अंधकार से आवृत हो।जो लोग ज्यमिति तथा ज्योतिष नही जानते हैं वे इसे देखकर सतम्भित है किंतु जो ज्ञानवान हैं वें तुम्हे तुरीय यंत्र के सहायता से देखते हैं।....ऋग्वेद का यह मंत्र हमें दो विषय की जानकारी दे रहा है एक सूर्यग्रहण की दुसरा दुरबीन के प्रयोग की।इतना ही दुरबीन कैसे बनाया जाता था इसका उल्लेख भी हमारे ग्रंथो मे है जो कमेंट में बताएगें क्योंकी अब पोस्ट अपडेट का समय हो चुका है।