आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड,आज जंग की घडी की तुम गुहार दो,
शंखनादी सुनील दीक्षित द्वारा
आन बान शान या की जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो,
मन करे सो प्राण दे,जो मन करे सो प्राण ले,वही तो एक सर्वशक्तिमान है ,
विश्व की पुकार है यह भागवत का सार है,की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवो की भीड़ हो या, पांडवो का नीड़ हो ,जो लड़ सका है वोही तो महान है
जीत की हवास नहीं, किसी पे कोई वश नहीं,क्या जिंदिगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यूँ डरे,जा के आसमान में दहाड़ दो ,आज जंग की घडी की तुम गुहार दो ,
आन बान शान या की जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो,
वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव या की हार का वो घांव तुम यह सोच लो,
या की पुरे भाल पर जला रहे विजय का लाल, लाल यह गुलाल तुम सोच लो,
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या की केसरी हो ताल तुम यह सोच लो ,
जिस कवी की कल्पना में जिंदगी हो प्रेम गीत उस कवी को आज तुम नकार दो ,
भिगती मसो में आज, फूलती रगों में आज जो आग की लपट का तुम बखार दो,
आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो,उतार दो ,उतार दो ,आरम्भ है प्रचंड
युद्ध का रूप लिए है धरती,
हो..युद्ध का रूप लिए है धरती
अचरज में हर एक नयन,
छलनी होंगे तन कितने ही,
टूटेंगे कितने ही मन,
किसके भाग्य में क्या है,
इसका निर्णय होना बाकी है,
कौन निराशा का भागी है,
आशा किसकी साथी है,
(गले का किसके हार बनेगी)*2
समय की कैसी माला है,
इक अंजाना साया कोई जैसे डसने वाला है,
(देखने वाले देख के सब कुछ)*2
फिर भी है जैसे अंजान,
(जय जय पृथ्वीराज चौहान)* 6
दुश्मन से लोहा ले देखो,
डटे हुए है रण में वीर,
हिला न पाए पथ से उनको,
हो चाहे भले या तीर,
टूट पड़े है शत्रु पर,
लहराते यूँ बाहों के बल,
भाग रहे है दुश्मन,
चारों ओर मची है एक हलचल
कोई करतब काम न आया(2 )
दुश्मन के है होश उड़े,
करके फ़तेह महारथियों पर वो,
चाट रहे है धुल पड़े,
रह जाई उनकी अक्कड़ धरी,(2 )
और निकल गया सारा अभिमान,
जय जय पृथ्वीराज चौहान
जय जय पृथ्वीराज चौहान
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