शनिवार, नवंबर 02, 2013

मेरा नाम मोलवी महबूब अली से पंडित महेन्द्र पाल

मै महेंद्र पाल आर्य कोलकाता के असगर मिस्त्री लेन कोलकाता३९.पश्चि
म बंगाल के राजधानी में इक पढ़े लिखे परिवार में जन्मा.परिवार के रीती रिवाज़ अनुसार पला बढ़ा.परिवारके लोग हर दिशा में काम करतेरहे. शिक्षा क्षेत्रमें मेरे फूफेरे भाई-डॉ.अबू ताहिर बोलपुर शांतिनिकेतन.में.अरबी.फारसी-विभाग अध्क्ष.रहे–अब्दुर रउफ कोलकाता के मेयर रहे.कई डॉ और वकील भी इस परिवार ने दिया-धार्मिक क्षेत्र में भी ठीक.यही गति विधि होने के कारण मुझे भी बचपन से इस्लामिक शिक्षा मिलती रही-जिसमे मै अपनी पढ़ाई कोलकाता और दिल्ली में पूरी कि .

दिल्ली में रहते मै अपने मित्र से मिलने ग्राम बरवाला जिला मेरठ {अब बागपत} में गया यहाँकि बड़ी मस्जिद खाली थी. मित्र ने सब से बात की.अब्दुल लतीफ़-हाजी फिज़ू हाजी शफी-और जितने भी कमेटी के लोग थे १२० घर उस मस्जिद से जुड़े थे- लोगोंने मेंरी पढ़ने का तरीका बोलचाल व्यवहार कुशलता को पसंद किया और इमामत करने कि बात पक्की करली. मैं लगभग तीन साल तक इमामत की-आस पास के लोगोंमे मेरी चर्चा होने लगी.मै बंगाल का रहने वाला इतनी अच्छी जान कारी रखने वाला आलिम.को पा कर गांव के लोग बेहद पसंद करने लगे .बहुत ज़ल्द पुरे जिले में-और आसपास के जिलों में भी बात खूब फैली-लोगों में चर्चा थी बंगाली जादू जानता है-पर ऐसा कुछ भी नहीं था ज़ब्की मै ही इस काम का बिरोधी था-फिरभी लोग मुझसे तावीज़ आदि बनवाने आते थे-कुछ तो अपनी दवा लेने को आते थे अदि.कुल मिलाकर सब ठीक चलरहा था. उसी ग्राम का मास्टर कृष्ण पाल सिंह जो गुरुकुल इंद्र प्रस्थ में बिज्ञान के मास्टर थे-मेरी तारीफ अपने गुरुकुल में जाकर की.स्वामी शक्तिवेश जी संचालक थे-उनहोंने मुझे मिलनेको बुलावा भेजा .

मै समय निकाल कर उनसे मिलने गया-एक रात रुका भी गुरुकुल के सभी मास्टरों से आधिकारी और पढ़ने वालों से मिला=वह गुरुकुल लालकिला से कुछ कम नहीं=उन्ही लोगों के साथ खाया–वहां नमाज़ भी पढ़ी फिर ज़ब वहां से चलने लगा तो वहां के श्री मंत्री जी ने मुझे उर्दू वाली सत्यार्थ प्रकाश नामी किताब दी-उसे लेकर मै बरवाला के लिये रवाना होगया .उसे पलटने पर कुरान कि अयातें मिली खूब मोनोयोग से पढ़ा.सवालों.को देख कर माथा ठनका.अरे कुरान पर सवाल यह कैसे संभव हुवा?कारण बचपन से अबतक कि मेरी जो तालीम थी वह यही थी.कि कुरान पर सवाल करना?किसी कि बसकी बात नहीं ?मै तो हक्का बक्का रह गया. मै अपनी पुस्तक में खूब बिस्तार से लिखा हूँ–अस्तु- मैंने इसी किताब से कुछ सवाल उठा कर २५ ज़गहजिस में दारुल इफ्ताह–फतवा देनेका अधिकार-जहाँ –जहाँ-मदरसे में है भेज दिया.७ ज़गह से उत्तर मिला आप इस लायक ही नहीं–आप गुमराह.होगये–मुर्तित होगये–आदि ज़ब ज़वाब सही नहीं मिल पाया तो १९६३ को मैंने सत्य सनातन बैदिक धर्म स्वीकार किया .उसी बरवाला ग्राम के हाई स्कूल में कई मुस्लिम मास्टर भी थे-उसी ग्राम के जाने माने-मास्टर गुलाम रसूल साहब भी थे .सब के सामने हजारों कि भीड़ में मैंने सत्य सनातन बैदिक धर्म को स्वीकार किया-पुरे परिवार के साथ .

स्वामी शक्ति वेश जी ने परिवार का नाम करण किया-मेरा नाम मोलवी महबूब अली से पंडित महेन्द्र पाल-और बेटोंका–भी इसी प्रकार नाम बदला गया.अब मुझे स्वामी जीने जनता को संबोधित करने को कहा तो मै अपने पहले भाषण में कहा कि मै धर्म नहीं बदल रहा हूँ-धर्म मानव मात्र के लिये एक ही है धर्म बदलना.संभव नहीं .धर्म ईश्वर प्रदत्त होता है जो मानव मात्र केलिये है-जैसा सूरज अपना प्रकाश प्राणी मात्र को देता है-कारण यह ईश्वर आधीन है-तो धर्म भी ईश्वर आधीन होने से उससे अलग होना मुनासिब नहीं है.मै समाज.बदल.रहा हूँ. मुस्लिम समाज अंध बिश्वासिवों का समाज है ज़हा अल्लाह को पाने के लिये मोहम्मद का पाना ज़रूरी है. वा आतिउल्लाह व अतिउर्रसुल –अर्थ इतायत करो मेरी और मेरी रसूल कि-वेद में वह बात नहीं.

अगर कोई परमात्मा को पाना चाहता है?तो किसी भी बिचोलिया किज़रूरत नहीं-वह सीधा परमात्मा को पा सकता है.शर्त है कि वह परमात्मा को जान जाए-दुनिया के लोग उसे बिना जाने ही मानते हैं-कुरान का फरमान है ज़ालिकल किताबु ला राइ बफिः–अर्थ कोई शक कि गुन्जाईश नहीं इस किताब में.

ذا لك الكتاب لا ريب فيه

मैंने कहा मै इन्सान हूँ हमारे पास अक़ल है हमे अक़ल से काम लेना है.अतःहमें देख कर मानना होगा .इस अंध बिश्वास से मै मुक्ति पाने के लिये वैदिक धर्म को अपनाया है.बाकी जिंदगी मै पढ़े लिखे लोगों के साथ गुजार.ना चाहता हूँ . सभी लोगों ने पुरे परिवार को आशीर्वाद दिया.एक सौहार्द पूर्ण वाता वरण में कार्य क्रर्म संपन्न हुआ–मास्टर कृष्ण पाल जी के घर पर प्रीती भोज कर हम सभी इन्द्रप्रस्थ गुरुकुल लौटे. मै आधिकारी बनक

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपके बारे में पढ़कर ही मेरे अंदर भी सत्यार्थप्रकाश पढ़ने की इच्छा हुई औैर ईश्वर के सही स्वरूप का ज्ञान हुआ मेरे लिये तो आप प्रेरणा स्रोत हो. अँधेरे से प्रकाश की तरफ मेरा ये कदम आप के कारण शुरू हुआ

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  2. Aap jaise paramhans hi is kalyug me logo ka margdarshan kar sakte hai. jinse satya sanatan vaidic dharm jo ki kisi ek vaykti vishesh ya kisi ek sampraday vishesh ke lie nhi, Apitu pure sansar ka dharm hai usko samaj me sthapit karne or logo ko satya se parichay karane ka kam kar rahe hai Aap ka bht bht aabhar or koti koti naman.

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  3. Aap jaise paramhans hi is kalyug me logo ka margdarshan kar sakte hai. jinse satya sanatan vaidic dharm jo ki kisi ek vaykti vishesh ya kisi ek sampraday vishesh ke lie nhi, Apitu pure sansar ka dharm hai usko samaj me sthapit karne or logo ko satya se parichay karane ka kam kar rahe hai Aap ka bht bht aabhar or koti koti naman.

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  4. ईश्वर सभी लोगो को आपकी बात समझने की ताकत दे .........
    बहूत खूब .....
    आप का यह कदम हजारो लोगो के जीवन को सफल बनाएगा .....
    आप से कभी भेंट कर पाऊ ऐसी कामना करता हू

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  5. Jhut bolna in jaise logo ka danda kuran ki galat vyakhya karte hai. Ek dum chtua se bhi bde chutya hai. Jhut bolna sabse bda pap hai aur bina perman ke ulti bate khta hai muslim tha likne ke dang se hi pta chal rha hai. Sale suwar hai tu pakka. Allah ka ajab jtur aayega tere pe

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  6. Wah sahab apki prerna ka strot pure bharatvarsh me faile,aur insan sach ko pehchane aisi humari mangal kamna hai.
    Kya hindi kya urdu aur kya hindu aur kya musalman bas logo me pyar ho nafrat nahi bas aisi hi sabki soch ho.
    Kripya aise hi apne gyan aur adhyatmikta ko badhate rahiye
    Vandematran

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  7. बिलकुल अच्छा किया आपने। मैं भी सत्यार्थ प्रकाश पढ़ रहा हूं। बहुत अच्छा लिखा है इसमें।

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