सोमवार, दिसंबर 31, 2012

अकबरुद्दीन ओवैसी अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?


[साभार --विस्फोट डॉट कॉम ]

यकीन नहीं होता कोई विधायक यह बोलने के बाद अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? उस मुस्लिम नेता और विधायक के भाषण की एक लाइन सुनिये: ''ऐ हिन्दोस्तान तेरी आबादी सौ करोड़ है और हम मुसलमान सिर्फ 25 करोड़ हैं। 15 मिनिट के अपनी पुलिस हटा ले हम बता देंगे कि कौन ज्यादा ताकतवर है। तेरा 100 करोड़ का हिन्दोस्तान या हम 25 करोड़ मुसलमान।'' 24 दिसंबर को अदिलाबाद, आंध्र प्रदेश के एक जलसे अकबरूद्दीन ओवैसी।

ऐ हिन्दोस्तान तेरी तबाही और बर्बादी तेरा मुस्तकबिल बन जाएगा


अकबरुद्दीन ओवैसी वैसे तो अपने आपको फिरकापरस्त कहने में भी कोई संकोच नहीं करते और कहते हैं कि कोई कुछ भी कहे लेकिन वे खुद तहे दिल से मुस्लिम परस्त हैं। इसी मुस्लिम परस्त का एक भाषण ऐसा है जिसे सुनने के बाद सहसा यकीन नहीं होता कि हिन्दुस्तान में इस्लाम इस रूप में भी संगठित हो रहा है। अकबरूद्दीन ओवैसी सिर्फ एक इस्लामिक संस्था मजलिस-ए-एत्तहादुल मुसलमीन के वरिष्ठ नेता भर नहीं है बल्कि वे आंध्र प्रदेश विधानसभा के माननीय विधायक भी हैं। लेकिन इस भाषण को सुनकर नहीं लगता कि उनका हिन्दुस्तान से कुछ लेना देना है।

अकबरुद्दीन ओवैसी ने हाल में 24 दिसंबर को अदिलाबाद के एक निर्मल टाउन में जलसे में टीवी कैमरों और मीडिया की मौजूदगी में जो कुछ कहा वह न सिर्फ गैर कानूनी है बल्कि सीधे सीधे देशद्रोह का मामला है। ओवैसी ने अपने भाषण में न सिर्फ हिन्दोस्तान को यह कहते हुए चैलेन्ज किया कि तेरी आबादी सौ करोड़ है और हम मुसलमान सिर्फ 25 करोड़ हैं। बल्कि साथ में यह भी कहा कि 15 मिनट के अपनी पुलिस हटा ले तो हम बता देंगे कि कौन ज्यादा ताकतवर है, तेरा 100 करोड़ का हिन्दोस्तान या हम 25 करोड़ मुसलमान। उन्होंने कहा कि सिर्फ पंद्रह मिनट के लिए पुलिस को हटा लो फिर देखो क्या होता है। जब ओवैसी ने यह कहा तो वहां मौजूद करीब बीस से पच्चीस हजार की सभा में जमकर 'नारा-ए-तदबीर, अल्ला हो अकबर' के नारे गूंजे और वहां मौजूद जमात के लोगों द्वारा ओवैसी का समर्थन किया गया। पूरे हिन्दोस्तान को धमकी देते हुए अकबरूद्दीन ओवैसी ने कहा कि ''अगर उनकी बात नहीं सुनी गई तो तबाही और बर्बादी पूरे हिन्दुस्तान का मुस्तकबिल (भाग्य) बन जाएगी।''

अपने भाषण में ओवैसीन ने आतंकवादी अजमल कसाब को न सिर्फ बच्चा बताया बल्कि उसकी फांसी के बदले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के फांसी की भी मांग की। अपने भाषण में ओवैसी ने कहा कि "एक बच्चा अपने साथियों के साथ पाकिस्तान से आता है और मुंबई में 200 लोगों को कत्ल कर देता है तो उसे फांसी की सजा दे दी जाती है और गुजरात में जिस मोदी ने 2000 हिन्दुस्तानियों का कत्ल कर दिया उसके ऊपर एक केस भी दर्ज नहीं किया जाता।" ओवैसी ने कहा कि मोदी को कोई सजा नहीं दी जाती बल्कि वह आज हिन्दुस्तान का वजीर-ए-आजम बनने का ख्वाब देख रहा है। ओवैसी अपने भाषण में आगे कहते हैं कि "अरे हिन्दुस्तान ये अकबर ओवैसी तुझसे सवाल करता है कि पाकिस्तानी है तो हिन्दुस्तानी को मारने पर फांसी और हिन्दुस्तानी है तो हिन्दुस्तानियों को मारने पर उसे दिल्ली की गद्दी दी जाती है।" अपने भाषण के दौरान हालांकि ओवैसी ने कसाब और उसके साथियों द्वारा किये गये आतंकी हमलों की मजम्मत जरूर की लेकिन उन्होंने अपने भाषण में जिस तरह से कसाब को बच्चा बताकर संबोधित किया और फांसी का आधार आतंकी गतिविधि नहीं बल्कि पाकिस्तानी होता बताया, वह निश्चित ही हैरान करनेवाला है। ओवैसी ने पूरे हिन्दुस्तान के मुसलमानों का आह्वान किया है कि "ये आंध्रा का मुसलमान सारे हिन्दुस्तान के मुसलमानों को पैगाम देता है कि अगर आंध्रा के मुसलमानों की तरह हिन्दुस्तान के पच्चीस करोड़ मुसलमान मुत्तहिद हो जाएगा तो खुदा की कसम बहुत जल्द मोदी तख्ते पर लटकता हुई हमको दिखाई देगा।"

बोलते बोलेत ओवैसी ने मोदी को फांसी को फांसी की मांग तो की ही लेकिन यह भी बोल गये कि अगर इस देश का मुसलमान एक हो जाए तो खुदा कसम इस देश का मुस्तकबिल मुसलमान लिखेगा। अपने भाषण के दौरान उन्होंने न सिर्फ मुंबई बम धमाकों को यह कहते हुए जायज ठहराया कि यह बाबरी मस्जिद को शहीद करने का रियेक्शन था बल्कि बंबई बम धमाकों में सजा दिये जाने पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि टाइगर मेनन को सजा हो गई लेकिन बाबरी मस्जिद गिराने वालों को अब तक सजा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि आज हमारी मस्जिदें शहीद कर दी जाती हैं और हमारी इज्जत इनके रहमों करम पर रख दी जाती है और हिन्दुस्तान में हमकों इंसाफ नहीं मिलता है।

करीब दो घण्टे का यह पूरा भाषण दो किश्तों में यू ट्यूब पर उपलब्ध है। अपने भाषण के दौरान ओवैसी ने सिर्फ मोदी के लिए ही फांसी नहीं मांगी बल्कि पूरी दुनिया के मुसलमानों के साथ हिन्दुस्तान के मुसलमानों की हालात की तुलना करते हुए अमेरिका को इसके लिए जिम्मेदार भी बताया। उन्होने चारमीनार को मस्जिद बताते हुए वहां देवताओं का मंदिर बनाने को भी चुनौती दी और हिन्दू देवता राम को भी बुरा भला कहा। ओवैसी ने हिन्दू नेताओं को चैलेन्ज करते हुए कहा कि "आखिर राम की मां कहां कहां गई और राम ने किधर को जनम लिया।" राम के जन्म को चुनौती देते हुए ओवैसी ने कहा कि यहां सौ दो सौ साल की तारीख का पता नहीं और ये अठारह लाख साल पुरानी तारीख से राम जन्मभूमि पर दावा कर रहे हैं। ओवैसी ने अपने भाषण में बीजेपी, आरएसएस को जहरीला सांप बताते हुए कहा कि इन्हें मारने के लिए बब्बर शेर की जरूरत नहीं है। इनका सिर कुचलने के लिए एक सोटा ही काफी है।

बहरहाल, यह भड़काऊ भाषण देने के बाद अकबरूद्दीन लंदन इलाज के लिए चले गये हैं और ओवैसी के इस भड़काऊ भाषण के खिलाफ दायर एक याचिका पर एक स्थानीय अदालत में सोमवार को सुनवाई होगी।

इस जहरीले विधायक के भाषण का लिंक
http://www.youtube.com/watch?v=iSo1TKyGlTM&feature=youtu.be

http://www.youtube.com/watch?v=JDAtxnoWa7U&feature=player_embedded

रविवार, दिसंबर 30, 2012

हिन्दुधर्म में अंतिम संस्कार का क्या महत्व होता है ..: बलात्कार की शिकार दामिनी की मौत.

दोगली और नीच इटालियन डायन और उसके पालतू नकली सरदार को क्या मालूम की हिन्दुधर्म में अंतिम संस्कार का क्या महत्व होता है ...
हम बात दिल्ली में बलात्कार की शिकार दामिनी की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार की कर रहे हैं

हिन्दुधर्म में सोलह संस्कारो में अंतिम संस्कार की बहुत ही बड़ी महत्व है | शिवपुराण में इसे मुक्तिउत्सव का नाम दिया गया है | हिन्दुधर्म में कहा गया है की जहाँ तक सम्भव हो सके वहा तक अंतिम संस्कार अपने पैत्रिक गाँव में ही करना चाहिए क्योकि हिन्दू मान्यता के अनुसार हर इन्सान पर कई ऋण होते है उसमे से एक ऋण जन्म देने वाली धरती का होता है जो तभी मिटना है जब हमारा पार्थिव शरीर उसी जगह जलाया जाये |

हिन्दू धर्म में रिश्तेदारों और जानने वालो का भी श्मशान पर होना जरूरी है क्योकि हिन्दुधर्म ये कहता है की जब हम अपने प्रिय रिश्तेदारों के पार्थिव शरीर को जलता हुआ देखेंगे तब हमे इस नश्वर शरीर के अंतिम गत का एहसास होगा और हम सभी तरह के बुराइयो से दूर रहेंगे ..
स्वामी विवेकान्द जी ने भी कहा था "मृत्य एक उत्सव है"

लेकिन दिल्ली की बदनसीब लडकी की बदनसीबी देखिये .. उसके जिन्दा शरीर के साथ नरपिचासो ने जबरजस्ती की तो उसके पार्थिव शरीर के साथ सोनिया, शीला और मनमोहन जैसे नरपिचासो ने जबरजस्ती की .. उस लडकी के पिताजी अपनी बदनसीब बेटी का अंतिम संस्कार अपने गाँव यूपी के बलिया में गंगा नदी के तट पर अपने रिश्तेदारों की उपस्थिति में करना चाहते थे .. यहाँ तक की सभी तैयारी भी हो चुकी थी ..कुछ टीवी चैनेलो पर ये खबर भी चली की लडकी का अंतिम संस्कार उसके गाँव में होगा .. खुद मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह वहा जाने की तैयारी में बैठे थे ..

लेकिन दिल्ली में जैसे ही लडकी का शव पहुचा केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार ने आदेश पर उसके शव को दिल्ली पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया और गुपचुप तरीके से उसे बिना किसी हिन्दू कर्मकांड के जला दिया

शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

मुहम्मद की दर्दनाक मौत का कारण !

मुहम्मद की दर्दनाक मौत का कारण !

Brij Sharma

मुहम्मद की दर्दनाक मौत का कारण !
आज तक लोग यही बात मानते आये हैं ,कि मुहम्मद साहब अपनी आयु पूरी करके कुदरती मौत से मरे थे . लेकिन इस्लामी इतिहास की किताबों और हदीसों का गहन अध्ययन करने के बाद और कुरान को पढ़ने बाद यह बात सिद्ध होती है कि खुद अल्लाह ने मुहम्मद साहब के गले की मुख्य धमनी कटवा दी थी . जिस के कारण मुहम्मद साहब की बड़ी दर्दनाक मौत हो गयी थी .इस लेख में इसी सत्य को विस्तार से सप्रमाण प्रस्तुत किया जा रहा है ,ताकि झूठ का भंडाफोड़ हो सके
धर्म के नाम पर भोले भाले लोगों को गुमराह करके ,सम्पति और सता हथियाना यह कोई नयी बात नहीं है .भारत में भी अनेकों फर्जी अवतार , सिद्ध और चमत्कारी बाबा हो चुके हैं .चूंकि यहूदी ,ईसाई और इस्लाम धर्म में अवतार नहीं होते ,इसलिए इन धर्मों में नबी और रसूल होते हैं .और अक्सर ऐसे नबी या रसूल अपनी कामना पूर्ति के लिए शैतान के वश में हो जाते थे . और सत्य की जगह असत्य का प्रचार करने लगते थे .यह बात कुरान से पता चलती है . इसमें कहा है ,
1-सभी नबी स्वार्थी होते थे
अक्सर देखा गया है कि बड़े बड़े संत महात्मा भी , लोभ के वश में आकर सत्य का मार्ग छोड़ देते हैं . ऐसे ही अल्लाह ने जितने भी नबी और रसूल भेजे थे ,वह निजी स्वार्थ और कामना पूर्ति के लिए शैतान के प्रभाव में आकर सत्य के साथ असत्य मिला देते थे . और लोगों को गुमराह करते थे . कुरान में इस आयत यही बताया है ,
"हे नबी तुम से पहले जो नबी और रसूल भेजे गए ,उन्होंने शैतान के प्रभाव में आकर अपनी कामना पूर्ति के लिए सत्य के साथ असत्य मिला दिया था ."
सूरा -अल हज्ज 22:52
2-झूठे नबियों की सजा
बाइबिल यानी तौरेत में उन सभी झूठे नबियों को मौत की सजा बताई है , जो अपने मन से वचन बोलते थे और लोगों से कहते कि यह ईश्वर के वचन हैं .
और उस झूठे नबी ने अभिमान में आकर जो भी कहा हो तू उस से भय नहीं खाना " बाइबिल .व्यवस्था विवरण -अध्याय 18 :22
और जो नबी अभिमान करके ,ऐसे वचन कहे जिसकी आज्ञा मैंने उसे नहीं दी गयी हो ,और वह अपने नाम से कुछ भी कहे , तो वह नबी मार डाला जायेगा "
बाइबिल .व्यवस्था विवरण -अध्याय 18 :20-21
3-मुहम्मद मानसिक रोगी थे
इन प्रमाणिक हदीसों से सिद्ध होता है कि मुहम्मद साहब का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था . और उनको इलाज की जरूरत थी
"जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा ,एक बार जब काबा की फिर से मरम्मत हो रही थी , और मैं रसूल के साथ पत्थर ढो रहा था . मैंने रसूल से कहा आप अपनी तहमद (Waist Sheet ) ऊंची कर दीजिये , ताकि उलझ कर आपको चोट न लग जाये . फिर जैसे ही रसूल ने तहमद ऊँची की . वह अचानक चिल्लाने लगे ,लाओ मेरी तहमद , मेरी तहमद कहाँ है . जबकि तहमद कमर में बंधी हुई थी " बुखारी -जिल्द 5 किताब 58 हदीस 170
"आयशा ने कहा रसूल हमेशा कल्पनाएँ (Fancy ) करते रहते थे .उनको ऐसा भ्रम होता था कि वह कुछ काम कर रहे हैं ,या कह रहे हैं ,लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता था . मैंने उनका इलाज भी करवाया था . एक दिन दो लोग रसूल के पास आये और बोले आपका दिमाग भ्रमित (Bewiched ) हो गया है "
बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 490

4-मुहम्मद शैतान के दोस्त
मुहम्मद साहब ने अपनी मानवता विरोधी बातों अल्लाह के वचन साबित करने के लिए लोगों में यह बात फैला दी ,कि मैं तो अनपढ़ हूँ , यह आयतें अल्लाह का फ़रिश्ता भेजता है .लेकिन कुछ लोग जानते थे कि मुहम्मद शैतान के दोस्त थे . इस हदीस में कहा है ,
. जुन्दाब बिन अब्दुल्लाह ने कहा ,कि कुरैश की औरतें कहती थीं , मुहम्मद से जिब्राईल नहीं शैतान मिलता था . और मुहम्मद पर उसी का प्रभाव था। "
बुखारी -जिल्द 2 किताब 21 हदीस 225

5-मुहम्मद को फ़रिश्ते का भ्रम
मानसिक रोगी होने के कारण मुहम्मद साहब को फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई देते थे , यहाँ तक वह अपनी पत्नी आयशा को भी फ़रिश्ता देखने पर मजबूर करते थे 'जबकि सब जानते थे कि रसूल को भ्रम हो गया है . फिर भी वह डर के मारे हाँ में हाँ मिलाते रहते थे .
आयशा ने कहा कि रसूल जब चाहे मुझसे कहते रहते थे ,आयशा वहां देखो ,जिब्राईल तुम्हें सलाम कर रहा है .लेकिन मुझें वहां कोई दिखाई नहीं देता था ."
बुखारी -जिल्द 8 किताब 74 हदीस 266
अबू सलमा बिन अब्दुर रहमान बिन ऑफ ने अबू हुरैरा से पूछा क्या आपने कभी रसूल को जिब्राईल से बातें करते हुए देखा है , या उनकी बातें सुनी हैं .तो हुरैरा ने कहा कि शायद रसूल को ऐसा भ्रम हो गया है . कि वह किसी से बातें कर रहे हैं " बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 173
6-लड़के को फ़रिश्ता समझा
अरब के मुसलमान समलैंगी होते हैं . कई खलीफा ऐसे (Homosexual ) थे . ऐसा ही कोई सुन्दर लड़का मुहम्मद के पडौस में रहता होगा जिसे मुहम्मद ने फ़रिश्ता समझ लिया होगा . क्योंकि मानसिक रोगी को अजीब अजीब चीजें दिखती रहती हैं .इसलिए मुहम्मद ने एक लडके को फ़रिश्ता समझ लिया . जैसा इस हदीस में है .
अबू उस्मान ने कहा कि जब मुझे खबर मिली कि जिब्राइल रसूल से मिलने आया करता है .और रसूल के जाने के बाद उम्मे सलमा ने भी उस से बात की है .इसलिए जब मैंने उम्मे सलमा से पूछा कि जिब्राईल कैसा दिखता है .तो उम्मे सलमा ने कहा अल्लाह की कसम है , वह एक खुबसूरत लड़का (Dihya ) है ."
बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 827
अबू उस्मान ने कहा कि ,एक बार जिब्राईल रसूल के घर आया , उस समय उम्मे सलमा भी मौजूद थी ,अचानक रसूल बाहर चले गए . और उम्मे सलमा जिब्राईल से बातें करने लगी ,तभी रसूल आगये और बोले यह कौन है , इसे अन्दर आने की अनुमति किस ने दी , उम्मे सलाम बोली यह एक " दियत कलबी " ( सुन्दर युवक دَحْيَةَ الْكَلْبِيِّ " ( a handsome person )है " बुखारी - जिल्द 6 किताब 61 हदीस 503

7-मुहम्मद शैतान के वश में
मानसिक संतुलन खराब हो जाने से धीमे धीमे मुहम्मद साहब शैतान के वश में हो गए ,और वह अल्लाह के नाम से शैतान के वचन सुनाने लगे .क्योंकि कोई स्वस्थ व्यक्ति जिहाद की बातें नहीं कहता ,
आयशा ने कहा रसूल पर जादू का प्रभाव था .उनको ऐसा लगता था कि वह कुछ काम कर रहे हैं ,लेकिन वह कुछ नहीं करते थे . उनको लगता था कि अल्लाह उनको सन्देश भेज रहा है . एक दिन रसूल ने मुझे बताया .कि मेरे पास दो व्यक्ति आये एक मेरे पास , दूसरा मेरे कदमों के पास बैठ गए . एक ने कहा इस मुहम्मद को क्या बीमारी है , दूसरा बोला यह शैतान के प्रभाव में है " बुखारी -जिल्द 7 किताब 71 हदीस 661
8-अल्लाह की चेतावनी
और जब अल्लाह को पता चला कि उसका रसूल हमारे नाम से झूठी बातें गढ़ रहा है ,और फसाद फैला रहा है ,तो अल्लाह में मुहम्मद को यह अंतिम चेतावनी दे डाली .
"और यह नबी ( मुहम्मद ) यदि हमारे नाम से कोई बात गढ़ता है ,सूरा -हाक्का 69:44

وَلَوْ تَقَوَّلَ عَلَيْنَا بَعْضَ الْأَقَاوِيلِ

Now if he had dared to attribute some [of his own] sayings unto Us, 69:44

" तो हम हम इसकी गर्दन की धमनी ( Aorta ) काट डालेंगे " सूरा -हाक्का 69:46
ثُمَّ لَقَطَعْنَا مِنْهُ الْوَتِينَ
and would indeed have cut his life-vein, 69:46

9-मुहम्मद ने गुनाह कबूला
यद्यपि इन प्रसिद्ध इस्लामी इतिहास के अनुसार मुहम्मद ने स्वीकार किया था , कि मैंने अल्लाह के नाम पर लोगों को गुमराह किया था .शैतान के प्रभाव में आकर फर्जी आयतें सुनाता था .
"आखिर एक दिन मुहम्मद ने खुद अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा ,कि मैंने अल्लाह के बहाने लोगों को धोखा दिया है .और मैंने अल्लाह के नाम से अपनी ऐसी बातें कहीं है , जो अल्लाह ने नहीं कही थीं "

Muhammad later reversed himself, confessing, "I have fabricated things against Allah and have imputed to him words which he has not spoken.as

Allah's.

"محمد انعكس في وقت لاحق نفسه، يعترف، "لقد ملفقة ضد الله والأشياء المنسوبة اليه والكلمات التي لم يكن قد قال في والله. "

(Al Tabari, The History of Al-Tabari, vol. 6, p.111

(तबरी -तबरी का पूरा नाम "अबू जाफर मुहम्मद इब्न जरीर अल तबरी أبو جعفر محمد بن جرير بن يزيد الطبري"है .इसका जन्म सन 838 ईस्वी में ईरान के प्रान्त तबरिस्तान में हुआ था . और मृत्यु सन 923 ई 0 में हुई थी .तबरी ने कुरान की व्याख्या में आयतों की ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि ,और घटनाक्रम भी दिया है . और मुहम्मद के जीवन की ऐसी बातें भी लिखी हैं , जिसे दुसरे मुस्लिम इतिहासकारों ने नहीं लिखा है .)
"मुहम्मद ने कहा कि भूल से शैतान की वाणी सुना दी थी "

and said he had mistaken the words of "Satan"

"وقال انه مخطئ على حد قول "الشيطان "

(Ibn Ishaq, Sirat Rasul Allah, pp.165-166)
(इब्न इशाक -इसका पूरा नाम " मुहम्मद इब्न इसहाक इब्न यासिर इब्न खियार محمد بن إسحاق بن يسار بن خيار, " था लोग उसे सिर्फ " इब्न इसहाक ابن إسحاق" कहते हैं .इसका अर्थ इसहाक का पुत्र होता है .यह अरब का महान इतिहासकार था ,और अब्बासी खलीफा मंसूर के समय मौजूद था .इसहाक में मुहम्मद की जीवनी के बारे में प्रमाण इकट्ठे किये थे . जिसे हदीस की तरह प्रमाणिक माना जाता है .इसकी मृत्यु सन 761 या 767 ई 0 में हुई था इब्न इसहाक ने दो किताबें लिखी हैं .1 . सीरते रसूलल्लाह "سيرة رسول الله "(Life of the Messenger of God)और 2.अल सीरा अल नाबीबिय्या " السيرة النبوية"( Prophetic biography )इन किताबों में इस्लाम से पहले की घटनाएँ भी दर्ज है . और मुहम्मद के बारे में छोटी से छोटी बातें भी लिखी हैं .जानकारी के लिए यह विडियो देखिये -
How did Muhammad die? Allah killed him for being a false prophet and lair

http://www.youtube.com/watch?v=hlikOiMYHTI


10-मुहम्मद की दर्दनाक मौत
लगता है कि अपना गुनाह कबूल करने बाद भी मुहम्मद साहब ने अपनी आदतें नहीं छोडी , और शान्ति की जगह ,जिहाद , हत्या , लूट ,जैसी बातें लोगों को सिखाते रहे .शायद इसी बात पर नाराज होकर अल्लाह ने सजा के रूप में उनकी मौत का इंतजाम कर दिया था .और उनको ऐसी कष्टदायी मौत दी थी . कि जिसे देख कर भविष्य में किसी को फर्जी रसूल बनने की हिम्मत नहीं हो .यह इन हदीसों से साबित होता है ,
इब्न अब्बास ने कहा , कि मेरे साथ उमर बिन खत्ताब ,और अब्दुर्रहमान बिन ऑफ बैठे हए थे , उमर ने मुझ से कहा कि मैं आपका सम्मान करता हूँ , क्योंकि आपका दर्जा ऊंचा है .क्या आप सूरा -नस्र 110:1 की इस आयत का खुलासा करेंगे "जब अल्लाह की मदद आएगी ,तो विजय हो जाए " यह बात रसूल की बीमारी के बारे में हो रही थी .उमर ने कहा मुझे इसका मतलब समझ में नहीं आया .क्योंकि रसूल आयशा से कह रहे थे ,"आयशा मैंने खैबर में जो खाना खाया था . उसी के कारण यह भयानक दर्द हो रहा है . ऐसा लग रहा है कि उसी खाने के जहर से मेरी मुख्य धमनी (Aorta ) को कोई काट रहा है "
(Narrated 'Aisha: The Prophet in his ailment in which he died, used to say, "O 'Aisha! I still feel the pain caused by the food I ate at Khaibar, and at this time, I feel as if my aorta is being cut from that poison.)
बुखारी -जिल्द 4 किताब 59 हदीस 713
अबू हुरैरा ने कहा ,खैबर में एक यहूदिन ने एक भेड़ पकाकर रसूल को दावत खिलाई थी .जिसमे तेज जहर मिला हुआ था . रसूल ने उस गोश्त को खाया .जब "बिश्र अल बरा इब्न मासूर अंसारी "उस गोश्त को खाते ही मर गया , तो रसूल ने उस औरत को क़त्ल करा दिया . तब तक जहर का असर रसूल पर होने लगा था .वह दर्द से कराहने लगे और कहने लगे ,ऐसा लग रहा है कि जैसे कोई मेरी मुख्य धमनी (Aorta)को काट रहा है .
" الأَكْلَةِ الَّتِي أَكَلْتُ بِخَيْبَرَ فَهَذَا أَوَانُ قَطَعَتْ أَبْهَرِي ."

सुन्नन अबू दाऊद - किताब 41 हदीस 18(Reference Sunan Abi Dawud 4511,English translation : Book 40, Hadith 4496 )

11-मुहम्मद की मौत की तारीख
इस्लामी इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद साहब की मौत उस धीमे जहर के कारण हुई थी , जो उनको खैबर के युद्ध में ख्हने में मिलाकर दिया गया था .खैबर का युद्ध हिजरी 6 और 7 के बीच ( सन 628 और 629) में हुआ था . और तब से वह जहर मुहम्मद साहब पर अपना असर दिखा रहा था .और उसी जहर उनके गले की धमनी में भयानक दर्द होता रहता था .आखिर करीब तीन चार साल कष्ट भोग कर 10 हिजरी 8 जून सन 632 को मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गयी .
निष्कर्ष-इन सभी प्रमाणों से यह बातें सिद्ध होती हैं कि 1. धर्म के नामपर पाखंड करना , अल्लाह के नाम पर फर्जी आयतें बना कर जिहाद की शिक्षा देकर अशांति फैलाने लोगों का एक न एक दिन भंडाफोड़ हो जाता है ,2..और यदि कोई अल्लाह को माने या ईश्वर को माने यह अटल सत्य है " जो जैसा करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा ."चाहे वह मुहम्मद हो , या ओसामा बिन लादेन . हमें याद रहना चाहिए कि मुहम्मद ने ही क़ुरबानी की रीती निकाली थी . ताकि जिहादी निर्दयी बन जाएँ ,मुहम्मद के कहने पर मुसलमान हर साल जैसे लाखों मूक जानवरों के गले पर छुरी फिर देते हैं , वैसे ही मुहम्मद की मौत गर्दन की मुख्य धमनी कटने से हुई थी . जैसे जानवर तड़प तड़प कर मर जाते है . वैसे मुहम्मद एडियाँ रगड़ कर मर गए . यही कारण है कि अल्लाह ने मुहम्मद के बाद कोई रसूल नहीं बनाया ,क्योंकि अल्लाह को पता है कि कोई भी मुसलमान सदाचारी और शांतिप्रिय नहीं होता .
हमें मुहम्मद के अंजाम से सबक लेने की जरुरत है !

ईसाईयों द्वारा अपने ईश्वर के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""हमारे" हिन्दू धर्म से चोरी किया गया है.

क्या आप जानते हैं कि.... ईसाईयों द्वारा अपने ईश्वर के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""हमारे" हिन्दू धर्म से चोरी किया गया है.... और, GOD शब्द और कुछ नहीं... बल्कि, हमारे अराध्य त्रिदेव का ""अंग्रेजी एवं छोटा रूप"" है...!

दरअसल बात कुछ ऐसी है कि..... जब हमारा सनातन धर्म पूरे विश्व में विजय पताका फहरा रहा था...... और, हमारे यहाँ रेशमी वस्त्र बनाये एवं पहने जा रहे थे..... उस समय तक..... पश्चिमी और आज के आधुनिक कहे जाने वाले देशों के लोग....... जंगलों में रहा करते थे....... !

जब हमारे हिंदुस्तान के व्यापारी ... व्यापार के सिलसिले में.... देशों की सीमाओं को लांघना शुरू किया ....... तब उन पश्चिमी लोगों को समाज की स्थापना और ईश्वर के बारे में पता चला....!

भारत के उन्नत समाज .... और, सर्वांगीण विकास को देख कर उनकी आँखें फटी रह गई....!

खोजबीन करने पर उन्हें ये मालूम चला कि..... भारत (हिन्दुओं) के इस उन्नत समाज और सर्वंगीन विकास का प्रमुख आधार उनका ""भगवान पर अटूट श्रद्धा और भक्ति"" है...!

ये राज की बात पता चलते ही .... पश्चिमी देशों के लोगों ने भी...... हमारे हिंदुस्तान के भगवान को आधार बना कर........ उन्होंने अपना एक नया ही भगवान खड़ा कर लिया (जिस प्रकार मुहम्मद ने इस्लाम को खड़ा किया).

इसके लिए उन्होंने ... जीजस अर्थात ...... ईशा मसीह की प्रेरणा उन्होंने...... भगवान श्री कृष्ण से ली.......( क्योंकि भगवान राम की कॉपी करने पर उन्हें भी नया रावण और नए लंका का निर्माण करना पड़ जाता ... जो कि काफी दुश्कर कार्य होता)

शायद आपने कभी गौर नहीं किया है कि..... ईशा मसीह और भगवान कृष्ण में कितनी समानता है....!

1 . भगवान कृष्ण की ही तरह..... ईशा मसीह का भी....... जन्म रात में बताया गया है....!
2 . भगवान कृष्ण की ही तरह .... ईशा मसीह भी .......... भेड़ बकरियां चराया करते थे....!
3 . भगवान कृष्ण की ही तरह..... ईशा मसीह को भी...... दूसरी माँ ने पाला....!
4 . भगवान कृष्ण की ही तरह... ईशा मसीह के कथन को भी... बाईबल कहा गया...(भगवान कृष्ण के कथन को श्रीभगवत गीता कहा गया है)
5 . हमारे हिन्दू धर्म की ही तरह.... बाईबल में भी दुनिया में प्रलय ..... जलमग्न होकर होना.... बताया गया है...!

अब उन्होंने नया भगवान तो बना लिया ..... लेकिन उन्हें संबोधित करने का तरीका भी उन्हें नहीं आता था.....!

जिस कारण.... उन्होंने एक बार फिर.... हमारे हिन्दू धर्म की मुंह ताकना शुरू किया ..... और, यहाँ उन्हें उनका जबाब मिल गया..!

हमारे हिन्दू धर्म में तीन प्रमुख देवता हैं.....
१. रचयिता... अर्थात ....... ब्रह्मा ..!
२. पालनकर्ता .. अर्थात .. विष्णु ...! और ,
३. संहार कर्ता .. अर्थात ..... शिव...!

उन्होंने.... हमारी इस विचारधारा को ... पूरी तरह जस के तस कॉपी कर लिया....... और उन्होंने अंग्रेजी में अपने ईश्वर को GOD बुलाना शुरू किया..!

GOD अर्थात....

G : Generetor ... (सृष्टि Generate करने वाला...... अर्थात... रचयिता )
O : Operator ...... ( सृष्टि को Operate करने वाला .... अर्थात ... पालनकर्ता )
D : Destroyer...... ( सृष्टि को destroy करने वाला ..... अर्थात संहार कर्ता..)

इसीलिए..... इन प्रमाणों से बात एक दम शीशे की तरह साफ है कि..... दुनिया में हिन्दू धर्म को छोड़ कर बाकी सारे धर्म या तो चोरी कर बनाये गए है..... या फिर... उनकी सिर्फ मान्यता है....!

हमारा हिन्दू या सनातन धर्म ही ""सभी धर्मों की जननी है"" और, ....... ""अनादि.... अनंत... निरंतर""..... है...!

जय महाकाल...!!!

अंग्रेजों के पूर्वज जब जंगलों में नंग-धडंग घूमा करते थे. भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है, वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है.... और, उस से पूर्व के इतिहास को "प्रमाण-रहित" कह कर नकार दिया जाता है।

क्या आप जानते हैं कि...... आज के पाश्च्यात्य और तथाकथित रूप से आधुनिक कहे जाने वाले अंग्रेजों के पूर्वज जब जंगलों में नंग-धडंग घूमा करते थे..... और.... कंदराओं में रहा करते थे (मुहम्मद-फुहम्मद का तो उस समय जन्म भी नहीं हुआ था)....... उस समय भी हम हिन्दुस्तानी (हिन्दू) ..... परमाणु बम और हीट सीकिंग मिसाईल जैसे .... आधुनिकतम हथियार का प्रयोग किया करते थे...!

दरअसल.... बात कुछ ऐसी है कि....... आधुनिक भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है, वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है.... और, उस से पूर्व के इतिहास को "प्रमाण-रहित" कह कर नकार दिया जाता है।

स्थित तो यह है कि....हमारे "देशी अंग्रेजों" को यदि "सर जान मार्शल" प्रमाणित नहीं करते... तो, हमारे तथाकथित रूप से "बुद्धिजीवियों" को विश्वास ही नहीं होना था कि.... हडप्पा और मोहनजोदड़ो स्थल ईसा से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं.... और, वहाँ पर ही ""विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया"" था।

मोहनजोदड़ो ...सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख नगर अवशेष है , जिसकी खोज 1922 ईस्वी मे "राखाल दास बनर्जी" ने की। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे "सक्खर जिले" में स्थित है....... और, सिन्धी भाषा में इसका अर्थ है - मृतको का टीला।

विश्व की प्राचीनतम् सिन्धु घाटी एवं मोहनजोदड़ो सभ्यता के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं।

जब पुरातत्वविदों ने पिछली शताब्दी में मोहनजोदडो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था ....तो, उन्हों ने देखा कि वहाँ की "गलियों में नर-कंकाल" पडे थे.... और, कई "अस्थि पिंजर चित अवस्था" में लेटे थे .......! साथ ही..... कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड रखा था .... मानो किसी भयानक विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था।

गौर करने लायक बात यह है कि.... उन नर कंकालों पर ठीक उसी प्रकार के ""रेडियो -ऐक्टीविटी के चिन्ह"" थे.... जिस तरह के चिन्ह ... जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर "एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये" थे।

मोहनजोदड़ो स्थल के अवशेषों पर ""नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह"" पाये गये थे उस का कोई स्पष्ट कारण नहीं था क्यों कि ऐसी अवस्था """केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही""" हो सकती है।

जब आप मोहनजोदड़ो की भूगोलिक स्थिति पर गौर करेंगे .... तो आप पाएंगे कि....
मोइन जोदडो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है... और , उसके चारों ओर दो किलोमीटर की परिधि में इस प्रकार की तबाही देखी जा सकती है.... जो ""मध्य केन्द्र से आरम्भ हो कर बाहर की तरफ गोलाकार फैल गयी"" थी..(जैसा कि परमाणु बम विस्फोट के बाद ही होता है )

पुरात्तव विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि ''''चूने मिटटी के बर्तनों के अवशेष किसी भीषण ऊष्मा के कारण पिघल कर एक दूसरे के साथ जुड गये"" थे।
हजारों की संख्या में वहां पर पाये गये इस तरह के ढेरों को पुरात्तव विशेषज्ञों ने काले पत्थरों ...... अर्थात ....‘""ब्लैक -स्टोन्स"" की संज्ञा दी।

वैसी दशा किसी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की राख के सूख जाने के कारण होती है... परन्तु मोहनजोदड़ो स्थल के आस पास कहीं भी कोई ज्वालामुखी की राख जमी हुयी नहीं पाई गयी।

वहां के हालत ... चीख -चीख कर ये कह कर रहे हैं कि.... किसी कारण वहां की अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री तक पहुँची.... जिस में चीनी मिट्टी के पके हुये बर्तन भी पिघल गये ।

ध्यान देने योग्य बात है कि..... अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री की ऊष्णता ज्वालामुखी या फिर... अणु बम के विस्फोट पश्चात ही घटती है।
----------------------
इस मोहनजोदड़ो की व्याख्या करने में .....इतिहास मौन है...!

परन्तु जब हम ... महाभारत .... और उसमे वर्णित घटनाओं पर नजर डालते हैं तो हर बात शीशे की तरह एक दम साफ हो जाती है....!

महाभारत युद्ध में............ महासंहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ एक ""परमाणु युद्ध का उल्लेख भी"" मिलता है।
महाभारत में साफ साफ उल्लेखित है कि.... मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था..... और, उस में चार पहिये लगे थे।

देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है.... जैसे कि, हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं।
इस युद्ध के वृतान्त से बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं........ अपितु, इन्द्र के वज्र अपने "चक्रदार रफलेक्टर" के माध्यम से "संहारक रूप में प्रगट" होता है।

उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो एक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह "उसने अपने लक्ष्य को निगल लिया" था।

वह विनाश कितना भयावह था..... इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-

“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्ति–युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिसकी चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…!

वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र "साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत" था..... जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…!
उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि ..... पहचानने योग्य नहीं थे..... उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे…

बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे ......और, पक्षी सफेद पड़ चुके थे…!

कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया…”

उपरोक्त दृश्य के वर्णन से स्पष्ट रूप से...ये.... हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है।

एक अन्य वृतान्त में....... श्री कृष्ण अपने प्रतिद्वंदी .... शल्व का आकाश में पीछा करते हैं.....उसी समय आकाश में शल्व का विमान "शुभः" अदृश्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण ने एक ऐसा अस्त्र छोडा...... जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्षित कर सकता था।

निश्चित तौर पर....... वो एक मिसाईल था..... और, आजकल ऐसे
मिसाईल को ""हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस"" कहते हैं .... जो आधुनितम सेनाओं द्वारा प्रयोग किये जाते हैं।

और.. तो और ....... आधुनिक राजस्थान में भी…
परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं।

राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है.... जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है..... जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।

अब ... बात जरा रामायण की भी कर लेते हैं......

"लक्ष्मण-रेखा" की तरह अदृश्य "इलेक्ट्रानिक फैंस" तो .... कोठियों में आज कल पालतु जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जाती है ... और, हीरे जवाहरात ... इत्यादि की प्रदर्शनी में.... उनकी सुरक्षा के लिए ""अदृश्य लेजर बीम"" का प्रयोग किया जाता है...!

और.... अपने आप खुलने और बन्द हो जाने वाले दरवाजे तो ..... किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं।

यह सभी चीजे पहले आश्चर्यजनक और काल्पनिक प्रतीत होती थी.. परन्तु आज यह आम बात बन चुकी हैं।

यहाँ तक कि...."मन की गति से चलने वाले" रावण के पुष्पक-विमान का "प्रोटोटाईप" भी उडान भरने के लिये चीन ने बना लिया है।

यहाँ सबसे उल्लेखनीय है कि.....
रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो पृथक-पृथक ऋषि थे ......और, आजकल की सेनाओं के साथ उन का कोई सम्बन्ध नहीं था।
वे दोनो महाऋषि थे.... और, किसी साईंटिफिक – फिक्शन के थ्रिल्लर – राईटर नहीं थे।

उन के उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि ......तथ्य क्या है और साहित्यक कल्पना क्या होती है.... क्योंकि कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की ही आवश्यकता होती है।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही....... परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे...!

परन्तु ... आज ये विडम्बना है कि....... आज मूर्ख तथा हमारे धर्मग्रंथों के प्रति पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य अंग्रेजों की दी गई ... अंग्रेजी शिक्षा के कारण......

अधिकतर हिन्दू... अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं ....और, उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना....!

इसीलिए मित्रो..... खुद को पहचानो.....

हम हिन्दू..... और.... हमारा हिंदुस्तान सर्वश्रेष्ठ है...!

जय महाकाल...!!!

फियादीन बम" क्या होता है और उन्हें फियादीन कैसे बनाया जाता है...???

क्या आप जानते हैं कि..."फियादीन बम" क्या होता है और उन्हें फियादीन कैसे बनाया जाता है...???

दरअसल बात कुछ ऐसी है कि... मुसलमानों ने आज तक एक भी ऐसा अविष्कार नहीं किया , जिस से "समाज को कोई फायदा" हो सके, लेकिन मुसलमानों ने लोगों को बर्बाद करने और उनको "मारने के अनेकों अविष्कार" किये हैं...!

कुरान के तहत मुसलमानों की नीति है कि... हर उपाय से दूसरों (काफिरों) को मारा जाये , भले ही ऐसा करते समय हम खुद क्यों न मर जाएँ... इसके लिए ही मुसलमानों ने आत्मघाती मानव बम का अविष्कार किया है ... जिसे फियादीन बम कहा जाता है..!

शाब्दिक तौर पर..... फियादीन ...... फियादी शब्द से बना है जी कि एक अरबी शब्द है ... अरबी के फिदायी ( فدائي) शब्द का बहुवचन फिदायीन (فِدائيّين ) होता है .जिसका अर्थ बलिदानी या"redeemers "है जो खुद को कुर्बान कर देते है (those who sacrifice ).

जाकिर नाईक सरीखे चालाक मुस्लिम विद्वान् फिदायीन के बारे में किस तरह दोगली बातें कहते हैं .. ये सबको मालूम है..

एक तरफ तो वे कहते हैं कि... इस्लाम में आत्महत्या करना बहुत बड़ा गुनाह है, वहीँ दूसरी तरफ यह भी कहते हैं कि जो अल्लाह की राह में मरते हैं , या काफिरों को मारते हुए मर जाते हैं वह शहीद माने जाते हैं .और सीधे जन्नत में जाते हैं ..............

अपनी इन्हीं दोगली बातों से यह इस्लाम के प्रचारक फिदायी जिहादियों के गुनाहों पर पर्दा डालते रहते हैं .और फिदायीन का महिमा मंडन भी करते रहते हैं .

वैसे तो जिहादी बच्चो को बचपन से ही फिदायीन बनाए की तालीम देते हैं, और कुरान और हदीस की ऐसी बातें उनके दिमाग में भर देते हैं जिस से उनका दिमाग खाली (brain wash ) हो जाता है. मैं यहाँ पर कुरान की वह आयतें और हदीसें दे रहा हूँ .. जिसे फियादीन बनाने के लिए उपयोग किया जाता है..!

@@ "बस मैदान में उतर जाओ ,और समझो कि तुम एक दूसरे के दुश्मन हो ,और तुम्हें इस धरती पर केवल निर्धारित समय तक रहना है ,और तुम्हें उतने जीवन के लिए सामग्री दी गयी है................ "सूरा -अल आराफ 7 :24

(इस तालीम के कारण फिदायीन में अपने जीवन से कोई लगाव नहीं रह जाता है .

@@ (जब लोगों को अपने प्राणों से कोई लगाव नहीं रहता है ,तो अल्लाह उनको लालच देकर उनके प्राण खरीद लेता है ,कुरान कहती है ........
"निस्संदेह अल्लाह ने ईमान वालों से उनके प्राण और माल जन्नत के बदले इसलिए खरीद लिए हैं ,के वह मरते भी रहें और मारते भी रहें "..........सूरा -तौबा -9 :111

"और उन में से कुछ ऐसे भी लोग होते हैं , जो अल्लाह को खुश करने के लिए ,खुद अपना जीवन त्याग देते हैं....................... "सूरा -बकरा 2 :207

@@@ (जब फिदायीन का पूरी तरह से ब्रेन वाश जो जाता है ,तो उन से कहा जाता है) ............
"तुम ईमान रखो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ,और सिर्फ जिहाद करो अपने प्राणों और साधनों से ,बस तुम्हारे लिए यही उतम कार्य है "........सूरा -अस सफ्फ 61 :11 और 12

@@@ (फिर फिदायीन को मुहम्मद की तरह आतंकवादी बनने कहा जाता है, जैसा इस हदीस में कहा गया है )
"अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि अल्लाह ने मुझे आतंक के द्वारा विजय हासिल करने का हुक्म दिया है .और कहा कि मैंने तुम्हें दुनिया की दौलत के खजाने की चाभी तुम्हें सौंप दी है ,और लोगों से कहो कि वह खजाना तुम्हारे हवाले कर दें................... "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 220

@@@ (औरतों बच्चों को धोखे से मारो)
आपको ऐसे हजारों उदाहरण मिल जायेगे कि ,जब जिहादी या फिदायीन ने सैकड़ों निर्दोषों की आत्मघाती बम बन कर हत्या कर दी हो .यह सब ऐसी हदीसों की शिक्षा के कारण है ,इसका एक नमूना देखिये -

"आस बिन अशरफ ने कहा कि हम लोग रसूल के साथ ,अल अबवा यानी वद्दन नाम की पर जगह गए ,तब रात हो गयी थी ,हमने रसूल से पूछा कि रात के समय हमला करना उचित होगा, क्योंकि इस से सोते हुए बच्चे और औरतें भी मारे जायेंगे ,रसूल ने कहा यह सभी काफ़िर हैं और मुझे अल्लाह ने इन पर हमला करने का आदेश दिया है........ "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 256

"जाबिर ने कहा कि रसूल ने हम लोगोंकर से पूछा कि तुम में से कौन है जो काब बिन अशरफ नामके बूढ़े यहूदी को क़त्ल करेगा ,मुस्लिम ने कहा क्या में इतने बूढ़े बीमार को क़त्ल दूँ ...?
रसूल ने कहा हाँ ,तुम उसे मेरे सामने क़त्ल कर दो................. "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस २७०

@@@@ यामुर बिन याहया ने कहा कि रसूल ने हमें बताया जिबरईल सन्देश भेजा है ,जो भी अल्लाह के लिए घर से बाहर निकल कर जिहाद करेगा वह जन्नत में दाखिल होगा .हमने रसूल से पूछा यदि वह व्यक्ति व्यभिचारी और चोरी करने वाला हो तो ?
रसूल बोले हाँ , तब भी ऐसे लोग जन्नत में जायेगे ..... Sahih El-Boukhary chapter 4, section 883, number १३८६

************ अब आप लोग खुद ही सोचो कि... क्या ऐसे जेहादी बनाने वाले कुरान की पढाई करनी अथवा करवानी उचित है...???

उससे भी बुरा ये कि... कुरान को पढ़ाने के लिए ""मदरसों" को प्रोत्साहित करना और उसे अनुदान देना कहाँ तक उचित है...????????

नोट: यह लेख पूर्णतः कुरान की आयतों और हदीसों पर आधारित है.... इसीलिए किसी भी सज्जन अथवा दुर्जन को यदि लेख से कोई कष्ट हो तो वो मुझसे और भी सबूत मांग सकता/सकती है...!!

जय महाकाल...!!!

ि.... भारत भूमि पर आने वाला अधिकांश पाकिस्तानी राजनैतिक अजमेर शरीफ पर क्यों जाना चाहता है...???

क्या आप जानते हैं कि.... भारत भूमि पर आने वाला अधिकांश पाकिस्तानी राजनैतिक अजमेर शरीफ पर क्यों जाना चाहता है...???

जी हाँ... यह एक अजीब लेकिन बेहद कठोर सत्य है कि.. भारत भूमि पर आने वाला अधिकांश पाकिस्तानी राजनैतिक व्यक्ति अजमेर शरीफ जाने की इच्छा जरूर रखता है...!

दरअसल..... इसका कारण.... कोई राजनैतिक नहीं.... बल्कि.... विशुद्ध रूप से धार्मिक है...... और... वे अजमेर शरीफ इसीलिए जाना चाहते हैं कि..... वो ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती के इस्लाम के प्रति किये गए वफादारी.... और, हिन्दू को बरगला कर .... सेकुलर बनाने के लिए ..... वे मोइद्दीन चिश्ती का शुक्रिया अदा कर सकें....!

इस बात को ठीक से समझने के लिए हमें हिन्दुराष्ट्र भारत ... और, मोइद्दीन चिश्ती का इतिहास समझना होगा...!

हुआ कुछ इस तरह कि.... सातवीं शताब्दी के मुहम्मद बिन कासिम और उसके बाद महमूद गजनवी तथा मुहम्मद गौरी तक मध्य एशिया के किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी के लाख प्रयासों के बाद भी..... उनका भारत भू को कब्जाने और इसे मुस्लिम राष्ट्र बनाने का स्वप्न पूरा नही हुआ...!

और.... अगर हम ......ख्वाजा मुइउद्दीन चिश्ती के खंड काल पर दृष्टि डालें तथा तथ्यों को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि... चिश्ती वह संत था , जो मुहम्मद गौरी के साथ भारत आया था !

यहाँ ... यह बात निर्विवाद सत्य है कि..... भारत भूमि पर हुए अनेकों आक्रमण और अत्याचारों के बाद भी..... भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति लोप नही किये जा सके.....!

इसीलिए .... भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए ...... सांस्कृतिक आक्रमण का सहारा लिया गया ... जैसा कि आज भी लिया जा रहा है (जिसमे मीडिया, चर्च, राजनैतिक पार्टियां, लव जिहाद इत्यादि)........

चिश्ती भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए चलाये गए सांस्कृतिक आक्रमण का प्रथम उपयोगकर्ता था.... या फिर यूँ कहें कि..... चिश्ती .... भारत के लिए पहला सांस्कृतिक आक्रमणकारी था...!!

हालाँकि..... मोइद्दीन चिश्ती को एक संत के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है...... परन्तु..... मुहम्मद गौरी जैसे एक दुर्दांत व्यक्ति के साथ संत माने जाने वाले व्यक्ति का होना बहुत सी शंकाओं को जन्म देता है...!

आखिर एक संत (यदि वह संत है ) एक दुर्दांत रक्त पिपासु के साथ लंबी यात्रा कर के लाहौर से अजमेर तक पहुंचा और रास्ते मे हुए कत्ल-ए-आम से उसका संतत्व उसे जरा भी ना कटोचे.... यह कैसे संभव है....??????

यहाँ में याद दिलाना चाहूँगा कि.... हम हिन्दू .... सदा से ही संत व्यक्तियों ...... जो परोपकार हेतु जीते हैं.... को सम्मान देता आया है...और, उन्हें
आस्था और श्रद्धा की दृष्टि से देखते आये हैं...!

हमारे इसी मानसिकता का लाभ सर्वप्रथम उस चिश्ती ने उठाया, ( जैसे कि....इस मानसिकता का लाभ ईसाई मिशनरियां आज भी उठा रही हैं, और परोपकार की आड मे धर्म परिवर्तन का कार्य कर रही हैं)..!

उसी तरह ...अपने प्रसिद्ध होने और लोगो की आस्था का उपयोग चिश्ती ने भारत मे मुस्लिमों के लिये बेस बनाने के लिये किया...... चिश्ती ने अजमेर मे अपना आश्रम खोला जहां प्रत्येक व्यक्ति को भोजन की व्यवस्था की गई...!

क्योंकि.... चिश्ती जानता था कि.... जब तक भारतीय अपनी संस्कृति से जुडे रहेंगे तब तक उन्हे पराजित करना असंभव है...!

अतः, उसने सर्वप्रथम यह किया कि.... हिंदू और मुस्लिमों के बीच मे एक कडी के रूप मे जुड गया...!

और....यह तभी संभव था जब वह हिंदुओं के बीच मे मान्यता प्राप्त कर लेता...!

इसी हेतु उसने अपने को एक चमत्कारी सूफी संत के रूप मे प्रचारित करना आरंभ किया...!

यहाँ.... यह ध्यान रहे कि.... अजमेर तत्कालीन राजपूतों की राजधानी था.....और, राजपूत वह जाति थी... जो, कभी भी विधर्मियों को स्वीकार नही करती थी...!

इस प्रकार.....चिश्ती ने हिंदू समाज में अपनी लोकप्रियता का लाभ ..... मुहम्मद गौरी को उसे जीत दिलाने में दिया.

इसके लिए चिश्ती.....पृथ्वीराज चौहान से तिरस्कृत हो कर कहा कि..... मैने अजमेर की चाबी कहीं और सौंप दी है.... और, यह एक संकेत था... जिसे पा कर मुहम्मद गौरी ने पुनः भारत पर आक्रमण किया.... और, आश्चर्यजनक रूप से उस समय तक... जयचंद, गौरी के साथ मिल चुका था..!

यह भी पूरी तरह संभव है कि.... इस मिलाप के पीछे चिश्ती का ही हाथ हो.....क्योंकि, राजपूत एक ऐसी जाति थी जो किसी भी प्रकार से विधर्मियों के साथ गठबंधन नही बनाती थी..!

गठबंधन बनाने के स्थान पर वह अकेले ही लड कर वीरगति को प्राप्त हो जाना ज्यादा पसंद करते थे....!

इसीलिए ..... अपनी विजय का श्रेय भी मुहम्मद गौरी ने...... चिश्ती को ही दिया.... और, अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को निर्देश दिया कि... वहां मंदिरों को तोड कर..... ढाई दिन मे मस्जिद बनाई जाये..... जो कि आज भी मौजूद है ... और वो मस्जिद आज भी अढाई दिन का झोपडा नाम से प्रचलित है.

यहाँ.... गौर करने लायक बात है कि....यदि चिश्ती संत ही था , तो वह....यह कैसे बर्दाश्त कर सका कि... कोई किसी दूसरे के आस्था के स्थानों को तोड कर वहां अपनी मस्जिदों का निर्माण करे....??????

इस संतत्व के पीछे किसी सुनियोजित योजना की शंका होती है..... क्योंकि यदि हम आज के युग मे भी देखे.... तो, इसी प्रकार की योजना ईसाई मिशनरी सभी स्थानों पर अपने धर्म के प्रचार के लिये कर रही हैं...... जो चिश्ती की के उस प्रथम प्रयोग का ही अगला चरण प्रतीत होता है..... जिसकी नींव कई शताब्दी पहले चिश्ती ने रखी थी....!

और, यही कारण है कि...... प्रत्येक पाकिस्तानी एवं मुस्लिम वहां जाने को अत्यंत उत्सुक रहता है.... क्योंकि शायद वो ऐसा कर के वह अपने पूर्वजों को भारत मे मुस्लिम संप्रदाय की नींव रखने के लिये धन्यवाद देता है....!

और, शायद.... हिन्दू सेकुलर भी ...... खुद को वर्णसंकर (दोगला)...... प्रमाणित करने के लिए वहां जाते रहते हैं....!!

जय महाकाल...!!!

हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????

हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!

लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????

दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l

आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).

अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :

1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ

150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)

2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ

1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .

3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .

4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .

5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .

1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास

6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .

1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)

7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ

8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ

9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)

1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल

@@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,

1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को

0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती

8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .

इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है..... ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.

जय महाकाल...!!!

साभार:राजन सिंह

धर्मनिरपेक्षता नामक काल्पनिक चिड़िया को..... तथ्यों की कसौटी पर परख कर देखते हैं.

जब भी हम जैसे लोग इस्लाम के बारे में कुछ लिखते हैं तो..... मुस्लिमों और उदारवादियों द्वारा हमें..... भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाया जाता है....!

इसीलिए , आइये.... आज जरा हम भी ..... धर्मनिरपेक्षता नामक काल्पनिक चिड़िया को..... तथ्यों की कसौटी पर परख कर देखते हैं... साथ ही ये भी देखने का प्रयास करते हैं कि .... आज के परिदृश्य में ""उदारवादी हिन्दू"" रहना ज्यादा उपर्युक्त है... अथवा, अब वो समय आ गया है कि... हम हिन्दुओं को ""अपना अस्तित्व बचाने के लिए कट्टरता का दामन थामना"" ही होगा..!

15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति तक...... हम हिन्दुओं ने उस हरामी कासिम से कर ...औरंगजेब तक इस्लाम के नाम पर जघन्य अत्याचार झेले ..... किन्तु, स्वतन्त्रता के समय तक उन्हें काफी हद तक भुला दिया गया था..... और, उसे भुला दिया जाना भी चाहिए था.... क्योंकि, उस बात को बीते सदियाँ और पीढ़ियाँ बीत चुकी थी.!

परन्तु , दुर्भाग्य से औरंगी मानसिकता अभी तक जीवित थी.... जो, भारत-पाकिस्तान के विभाजन के रूप में सामने आई।

दरअसल.... ये विभाजन... मात्र भारतवर्ष का विभाजन ही नहीं था ....वरन, लाखों-करोड़ों हिन्दू सिक्खों के लिए इस्लामिक आक्रमण काल का पुनर्योदय था .....जिसने उनकी संपत्ति, परिवार, पत्नी-बहन-बेटियाँ और घर सब कुछ छीन लिया... और, वे लुटे पिटे भारत आए।

इतना होने पर भी भारतीय हिन्दुओं ने उन हिन्दू परिवारों को आश्रय तो दिया... किन्तु भारत में बसे मुसलमानों से उसके एवज में वसूली नहीं की.... और, बात वहीँ समाप्त हो गयी....!

और तो और.... धर्म आधारित देश का दो (तीन) टुकड़ा बंटवारा होने.... तथा, मजहब के आधार पर ही अपने हिन्दू भाई-बहनों को लुटते और, हिन्दू औरतों का बलात्कार होते देखने के के बावजूद भी ... हम हिंदुओं ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य भी स्वीकार लिया...!

लेकिन.... हद तो तब हो गयी ... जब... पंथनिरपेक्ष राष्ट्र का संविधान भी स्थान-स्थान पर हिन्दू मुसलमानों के सन्दर्भ में अलग अलग बातें करता दिखाई देने लगा..... फिर चाहे वह कश्मीर हो, विवाह अधिनियम हो, हज सब्सिडि हो, अल्पसंख्यकों के नाम पर करदाताओं के पैसों से दी जाने वाली भेदभावपूर्ण विशेष सुविधाएं हों..... मस्जिदों को स्पेशल छूट और मंदिरों से बसूला जाने वाला कर हो अथवा मस्जिदों के लिए सरकारी जमीन और मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण हो..... प्रत्येक स्थान पर हम हिन्दू ही पंथनिरपेक्षता का बोझ ढ़ोते जा रहे हैं...!

सतत मुस्लिम परस्त होती.... पंथनिरपेक्षता की परिभाषाओं से ... आज स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि...... अब तो हमारा संविधान भी नागरिक समानता की रक्षा करने में असमर्थ होता जा रहा है.... जितना यह चाहता भी है....!

अब तक तो बात सिर्फ कश्मीर में.... कश्मीरी पण्डितों की, अमरनाथ यात्रा की, असम में बोडो हिन्दुओं की अथवा केरल में जेहादी शोर की ही नहीं है ..... जहां कानून और सत्ता बेबस खड़ी तमाशा देखती रहती है.........बल्कि अब तो देश की राजधानी में भी शासन और प्रशासन संगठित कट्टरतावाद के चरणों में नतमस्तक दिखाई देने लगे हैं।

इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण अभी कुछ दिनों पहले ...दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में देखने को मिला ..... जहां कि प्रसिद्ध लालकिला और जामामस्जिद स्थित हैं....... मेट्रो की खुदाई के दौरान पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए थे..... जिसके बाद जमीन पुरातात्विक विभाग (एएसआई) के पास चली गयी।

किन्तु एएसआई कुछ निष्कर्ष निकाले और जमीन के विषय में कुछ निर्णय हो..... इससे पहले ही वहाँ के मुसलमानों ने उसे शाहजहाँकालीन कालीन अकबरावादी मस्जिद घोषित कर दिया.... और, रातों रात उस पर मस्जिद भी बना डाली।

गौरतलब है कि...यह निर्माण किसी गाँव अथवा कस्बे में नहीं वरन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के हृदय क्षेत्र चाँदनी चौक में किया गया किन्तु आश्चर्य कि दिल्ली पुलिस, जिसका स्लोगन है “हम तुरंत कार्यवाही करते हैं”, को खबर तक नहीं लगी..... कम से कम दिल्ली पुलिस का ऐसा ही कहना है।

न्यायालय द्वारा जमीन पर किसी भी प्रकार के धार्मिक क्रियाकलाप पर रोक लगाने का आदेश भी जारी हुआ.... किन्तु कई दिनों तक नमाज़ पढ़ने से रोकने का साहस दिल्ली सरकार अथवा दिल्ली पुलिस नहीं कर सकी।

विश्वहिंदू परिषद आदि हिन्दू संगठन इस अतिक्रमण के खुले विरोध में उतर आए और हिन्दू महासभा की याचिका पर न्यायालय ने अवैध मस्जिद को तत्काल गिरने का आदेश जारी कर दिया... और, यह आदेश मिलते ही दिल्ली पुलिस की सारी वास्तविकता सामने आ गयी।

दिल्ली पुलिस ने न्यायालय में निर्लज्जता से हाथ खड़े करते हुए कह दिया कि.... अवैध मस्जिद गिराना उसके बस की बात नहीं है.!

यह इस बात का सूचक है कि.... जिन मुसलमानों को राजेन्द्र सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र समिति जैसे सरकारी आडंबरों का प्रयोग कर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनेता दबा कुचला पिछड़ा और वंचित बताकर तुष्टीकरण का घिनौना खेल खेल रहे हैं..... उस मुसलमान समुदाय की वास्तविक स्थिति देश में क्या है....????

बात-बात पर देश की अखंडता, राष्ट्रीय हितों और संविधान को पलीता लगाकर अपने दीनी हक़ का शोर मचाने वाले समुदाय की मानसिकता एवं शासन और प्रशासन का इस मानसिकता के सामने भीगी बिल्ली बनकर मिमियाना देश की संप्रभुता और संविधान के मुंह पर तमाचा ही कहा जा सकता है.... और, यह तमाचा स्वयं में अनोखा नहीं है ...!

आपको मालूम ही होगा कि...दिल्ली उच्च-न्यायालय लम्बे समय से जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर रहा है..... किन्तु दिल्ली पुलिस की हिम्मत नहीं पड़ रही है कि वह बुखारी को गिरफ्तार करे...!

दिल्ली पुलिस न्यायालय में जाकर बताती है कि .....उसे बुखारी नाम का कोई शख्स इलाके में मिला ही नहीं.... !

यहाँ तक कि...पूर्व में शाही इमाम रहे अब्दुल्लाह बुखारी ने तो दिल्ली के रामलीला मैदान से खुली घोषणा की थी कि वो आईएसआई का एजेंट है... और, यदि भारत सरकार में हिम्मत है तो उसे गिरफ्तार कर ले.!

सरकार और पुलिस तमाशा देखने के अतिरिक्त और कर ही क्या सकते थे.?

समझने कि बात है कि... यदि देश में राष्ट्रीय हितों की राजनीति हो रही होती तो कैसे मान लिया जाए कि कोई बुखारी राष्ट्रीय भावना और कानून से ऊपर हो सकता है अथवा भारत माँ को डायन कहने वाला कोई आज़म खाँ एक प्रदेश की सरकार में मंत्री बन सकता है??

प्रश्न उठता है कि... क्या शासन और प्रशासन को इतना भय किसी बुखारी अथवा आज़म से लगता है कि देश का कानून बार बार बौना साबित होता रहे..... या ... यह भय उस मानसिकता से है.... जो देश से पहले दीन-ए-इस्लाम को अपना मानती है।

निश्चित रूप से हर मुसलमान को हम इस श्रेणी में नहीं रख सकते ....और, न ही रखना चाहते हैं .... किन्तु यह सत्य है कि बहुमत इसी मानसिकता के साथ है..... अन्यथा, शाहबानों जैसे मामले में संविधान और सर्वोच्च न्यायालय को धता बताकर कानून नहीं बदले गए होते... और, मोहनचन्द्र शर्मा के बलिदान पर सवाल नहीं खड़े किए गए होते.. अथवा अफजल की फांसी को लटकाकर नहीं रखा जाता और बुखारी पर केस वापस लेने की अर्जी लेकर दिल्ली सरकार न्यायालय के पास नहीं गिड़गिड़ाती...!

हद तो ये है कि....गिलानी जैसे गद्दार देश की राजधानी में आकर बेधड़क चीखकर चले जाते हैं कि... कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है... और, भारत सरकार उनके कार्यक्रम को सरकारी सुरक्षा मुहैया कराने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर पाती है.!

एक बेहूदा सा तर्क यह दिया जाता है कि.... बुखारी को गिरफ्तार करने अथवा अवैध मस्जिद को गिराने से दंगे भड़क उठेंगे... तो प्रश्न उठता है कि..... सैकड़ों साल पुराने हिन्दू मंदिरों को सरकारी आदेश पर जब गिरा दिया जाता है.... या उसका अधिग्रहण कर लिया जाता है अथवा हिन्दुओं के शीर्ष धर्मगुरु कांची शंकराचार्य को दीपावली के अवसर पर सस्ते आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है.... तब दंगे क्यों नहीं भड़क उठते....????

तब विरोध अधिकतम शासन और प्रशासन तक ही सीमित क्यों रहता है...????

क्या यह 1919-24 के खिलाफत आंदोलन की मानसिकता नहीं है कि.... इस्लाम का शोर उठते ही सामाजिक-राष्ट्रीय समेत प्रत्येक हित को किनारे लगा दिया जाता है... और, शुरुआत दंगों से होती है..??????

जब भारत-पाकिस्तान विश्व कप में फ़ाइनल सेमीफ़ाइनल खेल रहे हों... तो, भारत के शहरों में अघोषित कर्फ़्यू लग जाता है... और, जब पाकिस्तान में ओसामा मारा जाता है तो.... भारत में शोकसभाएं होती हैं अथवा अमेरिका में कुरान जलाने की बात होती है.... तो, भारत में हिंसा भड़क उठती है.!
इसका एक मात्र कारण यह है कि.... इतिहास की मानसिकता अभी तक जीवित है ....इसीलिए वर्तमान में भी इतिहास का प्रतिबिम्ब भी झलकता है।

यदि भारत को जीवित रखना है.... तो, भारत को मुगलिस्तान बनने से रोकना होगा ....और, इसके लिए आवश्यक है कि कट्टरपंथ के आगे घुटने टेकने की आदत को बदला जाए.... और , उन्हें उन्ही कि भाषा में कठोरतम जबाब दिया जाये...!

अन्यथा, यह प्रश्न तो उठना स्वाभाविक ही है कि.... मुस्लिमों की ये तुष्टिकरण और देश की सामाजिक-राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ कब तक चलता रहेगा....???

और, अगर.... देश का शासन तंत्र तथा राजनेता इसी प्रकार सामाजिक एवं-राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ कर..... मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे रहे.... तो दिन दूर नहीं.... जब भारत का हर एक नौजवान...... मुस्लिम जेहादियों और उसके पोषक राजनेताओं के विषधर भुजाओं को उनकी बाँहों से उखाड़ फेंकेगा...... और, हिन्दुस्थान को फिर से हिन्दुराष्ट्र का गौरव दिलवाएगा....!!

जय महाकाल...!!!

"पाकिस्तान"शब्द का जनक ....सियालकोट का रहने वाला 'मुहम्मद इकबाल' था..... जो कि... जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था . परन्तु बाद में मुसलमान बन गया था ...!

क्या आप जानते हैं कि..... "पाकिस्तान"शब्द का जनक ....सियालकोट का रहने वाला 'मुहम्मद इकबाल' था..... जो कि... जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था . परन्तु बाद में मुसलमान बन गया था ...!

ये वही मुहम्मद इकबाल है.... जिसने प्रसिद्द गीत "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा" .. लिखा है...!

इसी इकबाल ने अपने गीत में एक जगह लिखा है कि..... ""मजहब नहीं सिखाता ....आपस में बैर रखना"

परन्तु .......इसी इकबाल ने अपनी एक किताब " कुल्लियाते इकबाल " में अपने बारे में लिखा है....
"मिरा बिनिगर कि दर हिन्दोस्तां दीगर नमी बीनी ,बिरहमन जादए रम्ज आशनाए रूम औ तबरेज अस्त "
अर्थात... मुझे देखो......... मेरे जैसा हिंदुस्तान में दूसरा कोई नहीं होगा... क्योंकि, मैं एक ब्राह्मण की औलाद हूँ......लेकिन, मौलाना रूम और मौलाना तबरेज से प्रभावित होकर मुसलमान बन गया...!

कालांतर में यही इकबाल....... मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बन गया....

और, हैरत कि बात है कि...... जो इकबाल "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा" .. लिखा ...और, ""मजहब नहीं सिखाता ....आपस में बैर रखना"..... जैसे बोल बोले थे...

उसी इकबाल ने ....... मुस्लिम लीग खिलाफत मूवमेंट के समय ...... 1930 के इलाहाबाद में मुस्लिम लीग के सम्मलेन में कहा था .....
"हो जाये अगर शाहे खुरासां का इशारा ,सिजदा न करूं हिन्दोस्तां की नापाक जमीं पर "
यानि.... यदि तुर्की का खलीफा अब्दुल हमीद ( जिसको अँगरेजों ने 1920 में गद्दी से उतार दिया था ) इशारा कर दे...... तो, मैं इस "नापाक हिंदुस्तान" पर नमाज भी नहीं पढूंगा...!

बाद में...... इसी " नापाक" शब्द का विपरीत शब्द लेकर "पाक " से "पाकिस्तान " बनाया गया ...... जिसका शाब्दिक अर्थ है .....( मुस्लिमों के लिए ) पवित्र देश ...!

कहने का तात्पर्य ये है कि..... हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के कारण.... मुस्लिमों को हिंदुस्तान ""नापाक"" लगता था.... इसीलिए... मुस्लिमों ने अपने लिए तथाकथित पवित्र देश ... "पाकिस्तान"... बनवा लिया...!

अब इस सारी कहानी में.... समझने की बात यह है कि....... जब एक कश्मीरी ब्राह्मण के .... धर्मपरिवर्तन करने के बाद.... अपने देश और अपनी मातृभूमि के बारे में सोच ... इतनी जहरीली हो सकती है.... तो, आज .... हिन्दुओं की अज्ञानता और उदासीनता का लाभ उठा कर ... जकारिया नाईक जैसे..... समाज के दुश्मनों द्वारा हजारो -लाखो हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करवाया जा रहा है..... उसका परिणाम कितना भयानक हो सकता है...????

ऐसे में मुझे एक मौलाना की वो प्रसिद्द उक्ति याद आ रही है.... जिसमे उसने कहा था कि....

देखिये हमारे तो इतने इस्लामी देश हैं .... इसीलिए , अगर हमारे लिए जमीन तंग हो जाएगी तो ,,,हम किसी भी देश में जाकर कहेंगे " अस्सलामु अलैकुम " और वह कहेगा " वालेकुम अस्सलाम " ..... साथ ही....हमें भाई समझ कर अपना लेगा .

लेकिन मैं... हिन्दुओं एक मासूम सा सवाल पूछना चाहता हूँ कि....... उनके राम-राम का जवाब देने वाला कौन सा देश है...... ????

इसलिए, जो यह लेख पढ़ रहे हैं , उन सभी हिन्दू भाइयों-बहनों से निवेदन है कि...., जकारिया नायक जैसे क्षद्म जिहादी और इस्लाम का पर्दाफाश करने में हर प्रकार का सहयोग करें ...... !

याद रखें कि.... अगर धर्म नहीं रहेगा तो देश भी नहीं रहेगा !
क्योंकि.... देश और धर्म का अटूट सम्बन्ध है ....

जिस तरह.... धर्म के लिए देश की जरुरत होती है ... ठीक उसी तरह..... देश की एकता के लिए भी धर्म की जरूरत होती है ...!

इसीलिए, अगर हमारे हिन्दुस्थान को बचाना है तो...... जाति और क्षेत्रवाद का भेद भूलकर ..... कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी... और कच्छ से लेकर असम तक के सारे हिन्दुओं को एक होना ही होगा...!

जय हिंदुत्व... जय हिन्दुराष्ट्र...!

जय महाकाल...!!!

नोट: यह लेख किसी प्रकार कि दुर्भावना या विद्वेष फ़ैलाने के लिए नहीं..... बल्कि इतिहास की सच्ची जानकारी देने के उद्देश्य से लिखी गयी है....ताकि इतिहास को दुहराने से रोका जा सके...

सेक्यूलर नामक जीव कैसे तैयार किया जाता है....????

क्या आप जानते हैं कि ...... सेक्यूलर नामक जीव कैसे तैयार किया जाता है....????


दरअसल.... हम हिन्दुओं का इतिहास काफी गौरवशाली है..... और, ये ईसाई... तथा .... इस्लाम-फिस्लाम ..... हमारे गौरवशाली हिन्दू धर्म के सामने..... "धूल बराबर भी नहीं" हैं...!

इसीलिए .... हरामी सेक्युलरों और देश के गद्दारों द्वारा..... ये महसूस किया गया कि...... जब तक हिन्दू अपने गौरवशाली इतिहास से अवगत रहेंगे ..... तक तक हिन्दुओं को सेक्यूलर नामक नपुंसक बनाना नितांत असंभव है..!

इसीलिए...... ऐसे गद्दारों ने ..... हमारे स्कूलों के पाठयक्रम को अपना
सबसे मजबूत हथियार बनाया.... ताकि.... हम हिन्दुओं के मन में बचपन से ही हीन भावना भरी जा सके.... और, धीरे धीरे ..... सेक्यूलर नामक नपुंसक हिन्दू में परिवर्तित कर दिया जाए...!

इस तरह... करते-करते .... आज स्थिति इतनी दयनीय हो गयी है कि....... हिन्दू संस्कारों , और ... धर्म की बात करने पर..... विधवा प्रलाप करने वाले.... तथा, बात-बात पर छाती कूटने वाले ..... सेक्यूलर लोग एवं मीडिया ..... इस बात पर कभी भी छाती कूटते नजर नहीं आते हैं ..... जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री विदेश के कांफ्रेंस में जाकर मंच पर यह बयान देते हैं कि...... ""हम भारतीय तो पहले जंगली थे.... और, हम अंग्रेजों के बहुत आभारी हैं.., जिन्होंने हमें गुलाम बनाकर.... हमें सभ्यता सिखलाई...!""

आप खुद ही देखें कि..... हरामी सेक्युलरों और देश के गद्दारों द्वारा..... हमारे स्कूलों में .... कैसी शिक्षा दी जा रही है .... और, कैसे धीरे-धीरे उन्हें हिंदुत्व से दूर करते हुए.....उनमे हीन भावना भर कर..... उन्हें सेकुलर नामक नपुंसक जीव बनाया जा रहा है...!

क्या कोई सेक्यूलर या बुद्धिजीवी ... मुझे इन बातों का तर्कसंगत जबाब दे दे सकता है कि..... ऐसा क्यों है.....??????

1. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर... जो जीता वही सिकन्दर """कैसे"""" हो गया... ???
(जबकि ये बात सभी जानते हैं कि.... सिकंदर को चन्द्रगुप्त मौर्य ने .. बहुत ही बुरी तरह परास्त किया था.... जिस कारण , सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकश कि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी)

2. महाराणा प्रताप ""महान""" ना होकर......... अकबर """महान""" कैसे हो गया...???
(जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों हिन्दू लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था.... जबकि.. महाराणा प्रताप ने..... अकेले दम पर उस अकबर के लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था)

3. सवाई जय सिंह को """महान वास्तुप्रिय""" राजा ना कहकर .. ........शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार मिली ...... ???
जबकि... साक्ष्य बताते हैं कि.... जयपुर के हवा महल से लेकर तेजोमहालिया {ताजमहल} तक .... महाराजा जय सिंह ने ही बनवाया था)

4. जो स्थान महान मराठा क्षत्रप वीर शिवाजी को मिलना चाहिये वो.......... क्रूर और आतंकी औरंगजेब को क्यों और कैसे मिल गया ..????

5. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह... ..... गांधी को महात्मा बोलकर .... हिंदुस्तान पर क्यों थोप दिया गया...??????

6. तेजोमहालय- ताजमहल...........लालकोट- लाल किला...........फतेहपुर सीकरी का देव महल- बुलन्द दरवाजा........ एवं सुप्रसिद्घ गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली (महरौली) स्थित वेधशाला- कुतुबमीनार.............. क्यों और कैसे हो गया....?????

7. यहाँ तक कि..... राष्ट्रीय गान भी..... संस्कृत के वन्दे मातरम की जगह................. गुलामी का प्रतीक ""जन-गण-मन हो गया""..... कैसे और क्यों हो गया....??????

8. और तो और.... हमारे अराध्य ... भगवान् राम.. कृष्ण.............. तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये......... पता ही नहीं चला..........आखिर कैसे ????

9. हद तो यह कि... .... हमारे अराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या .... भी कब और कैसे विवादित बना दी गयी... हमें पता तक नहीं चला....!

कहने का मतलब ये है कि..... हमारे दुश्मन सिर्फ.... बाबर , गजनवी , लंगड़ा तैमूरलंग..... या आज के दढ़ियल मुल्ले ही नहीं हैं...... बल्कि आज के सफेदपोश सेक्यूलर भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं.... जिन्होंने हम हिन्दुओं के अन्दर हीन भावना भर ..... हिन्दुओं को सेक्यूलर नामक नपुंसक बनाने का बीड़ा उठा रखा है.....!


हमें पहचाना होगा ऐसे दुश्मनों को..... क्योंकि ये वही लोग हैं...... जो हर हिन्दू संस्कृति को भगवा आतंकवाद का नारा देते हैं.... और, नरेन्द्र भाई मोदी जैसे हिंदूवादी और देशभक्त को..... आगे बढ़ने से रोकना चाहते हैं...... ताकि ... उनके नापाक मंसूबे हमेशा पूरे होते रहें...!

लेकिन... चाहे कुछ भी हो जाए..... हमलोग.... उनके ऐसे नापाक मंसूबों पर पानी फेरते हुए .......... हिन्दुस्थान को हिन्दुराष्ट्र बना कर ही रहेंगे....!

जय हिन्दू राष्ट्र ....!

जय महाकाल...!!!

दुनिया में बलात्कार की शुरुआत कैसे हुई .... और, दुनिया का पहला बलात्कारी कौन है......?????


क्या आप जानते हैं कि...... दुनिया में बलात्कार की शुरुआत कैसे हुई .... और, दुनिया का पहला बलात्कारी कौन है......?????

जी हाँ.... आज....... जबकि दुनिया में नैतिकता का तेजी से पतन हो रहा है.... और, बलात्कार तथा महिलाओं से छेड़छाड़ जैसे घृणित अपराध अपने चरम पर हैं.... तो, ऐसे सवालों के जबाब जानना अत्यावाशक हो जाता है...!

आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि.... बलात्कार अथवा छेड़छाड़ जैसी घृणित अपराधों का जन्म हमारे हिन्दुस्थान में नहीं हुआ है..... बल्कि, ऐसी गंदी मानसिकता का जन्म आज से लगभग 1400 साल पहले अरब के रेगिस्तान में हुआ था..... और, ये मुस्लिमों की संस्कृति थी ..... जो प्राचीन मुग़ल आक्रमणकारियों के साथ हमारे हिन्दुस्थान में प्रवेश कर गयी...!

उसी तरह.... दुनिया का सबसे पहला ज्ञात बलात्कारी और व्याभिचारी.... और कोई नहीं..... बल्कि इस्लाम के प्रतिपादक और कथित रूप से अल्लाह के रसूल .... मुहम्मद साहब ही थे....!

मैं मुस्लिमों की इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि..... मुहम्मद जैसा कोई न तो हुआ है .... और न ही होगा.

अपनी ग्यारह पत्निया और कई रखेलों के अलावा........ कई दासियों से भी उसकी वासना शांत नहीं होती थी...... और, मरते दम तक बनी रही..... जिसके लिए वह अक्सर "गज़वा" ....यानि, लूट पर निकल जाता था..... और, लोगों से कहता था कि..... मुझे अभी-अभी अल्लाह का आदेश मिला है.

और उसकी ये बातें सुनकर...... लोग धन और औरतों के लालच में इस गज़वा में शामिल हो जाते थे.

इस तरह..... मुहम्मद जब भी "गजवा" यानि....लूट पर जाता था........तो, उसका लक्ष्य धन के साथ औरतें भी होती थी.... जिसके लिए वह हजारो निर्दोषों की ह्त्या तक करवा देता था...!

ये बातें में कोई अपने मन से बना कर नहीं कह रहा हूँ...... बल्कि, ये बातें इस्लामी धर्मग्रन्थ .... कुरान में लिखी है.... जिसे मुस्लिम अल्लाह की वाणी बताते नहीं थकते हैं....!

जरा आप भी कुरान के उन सम्बंधित आयातों और हदीसों का अध्धयन करें ..... बलात्कार तथा इस्लाम के प्रगाढ़ रिश्ते के बारे में अपना सामान्य ज्ञान बढाएं.......

@@@@ ,रसूल ने अबू हुरैरा से कहा कि..... औरतें चार कारणों से पकड़ी जाती हैं .......उनका धन (कीमत )....उनका खानदान (प्रतिष्ठा बढ़ने हेतू).... उनकी सुन्दरता (अय्याशी के लिए )....और, उनका धर्म ..............बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 27

@@@@ इब्ने ओन ने कहा कि ..... रसूल ने बनू कुरेजा पर बिना कारण अचानक हमला करवाया.... और, उस समय कबीले के लोग जानवरों को पानी पिला रहे थे.. तथा बच्चे खेल रहे थे.. और, औरते अपने काम में लगी हुई थी.
नबी के हुक्म से हम लोग मर्दों, बच्चों को क़त्ल करने लगे और औरतों को पकड़ने लगे. ..!
बिलाल और इब्ने उमर ने ......जुबैरिया को नबी के हवाले कर दिय..... नबी को वह पसंद आ गयी ........बुखारी -जिल्द 3 किताब 46 हदीस 417. "

@@@@ ओन ने कहा कि .... इस लूट में अधिकाँश लोग मारे गए.... जिनमे बड़े बच्चे भी थे..!
औरते जब भाग रही थीं तो....नबी ने जुबैरिया को पकड लिया......और, नबी ने अब्दुला बिन उमर को और औरतें पकड़ने का हुक्म दिया ....... मुस्लिम -किताब 19 हदीस 4292."

@@@@ जुबैरिया काफी सुन्दर थी ...... और, जब जुबैरिया ने अपना परिचय दिया तो मुहम्मद ने जुबैया से सौ लोगों की जान के बदले.... उस से उसी समय सम्भोग करने की नीचतापूर्ण शर्त रख दी ..... और, लोगों की जान बचने के लिए विवश होकर जुबैरिया उस शर्त को मान गयी .........अबू दौउद -किताब 29 हदीस 3290".

@@@@ लेकिन.... जुबैरिया ने मुहम्मद से बचने के लिए ....बहाने के लिए उपवास शुरू कर दिया....... लेकिन, नबी ने उसका उपवास जबरन तुड़वा दिया ....और, जुबैरिया को जबरदस्ती उसी समय सम्भोग के लिए विवश कर दिया ............ बुखारी -जिल्द 3 किताब 31 हदीस 207:.

#### सिर्फ इतना ही नहीं..... मुहम्मद साहब ने जुबैरिया के अलावा साफिया से भी रस्ते में ही सबके सामने बलात्कार किया था....

@@@@ उसी लूट में "साफिया बिन्त हुहीय "नामकी एक और लड़की भी मुहम्मद के हाथ आयी..... वह किनाना की Chief Mistress थी ... और, साफिया सन 610 में पैदा हुई थी.

जब मुहम्मद लूट के बाद अपने लुटेरों और पकड़ी गयी औरतों को लेकर वापस मदीने जा रहा थ..... तो वह रास्ते में "सिद्द अश्शाबा" नाम की जगह पर ठहर गया.... और, उसने अपने गुलाम "बिलाल "से कहा कि ...... बनू कुरेजा की किसी सुन्दर औरत को लाओ.... जिस पर बिलाल ने साफिया को पेश कर दिया ....... बुखारी -जिल्द 2 किताब 14 हदीस 68 और लाइफ ऑफ़ मुहम्मद ऑक्सफोर्ड .पेज 391 ,392."

@@@@ मुहम्मद ने बिलाल से एक चमड़े का गद्दा बिछाने को कहा.....जिसमे खजूर के पत्ते कूट कर भरे थे ..... रसूल ने साफिया को उसी पर गिरा कर..... सबके सामने सम्भोग किया......... .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3329."

बुखारी -जिल्द 1 किताब 8 हदीस 367. बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 437. बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 512.

***** सिर्फ इतना ही नहीं.... मुहम्मद ने खुद तो बलात्कार किया तो किया ..... मरते-मरते अपने अनुयाइयों अर्थात मुस्लिमों को भी बलात्कार की शिक्षा दे गया...!

जरा आप खुद ही देखें कि ....अल्लाह के तथाकथित रसूल ने कुरान में मुस्लिमों को क्या शिक्षा दी है.....

"तुम्हें पकड़ी गई औरतों से पूछने की जरूरत नही है कि..... वह सम्भोग के लिए राजी हैं या नहीं ..... तुम उनसे जबरदस्ती सम्भोग कर सकते हो, और, उनकी इच्छा का कोई महत्त्व नहीं है........ .मुवात्ता -जिल्द 29 किताब 32 हदीस 100".

##### हालाँकि मुस्लिम ..... मुहम्मद के नाम पर तुरत दंगा-फसाद शुरू कर देते हैं.... लेकिन.... अब सारी पढ़ कर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ....... मुहम्मद ही इस पृथ्वी और, आधुनिक काल का पहला बलात्कारी व्यक्ति था....!

जय महाकाल...!!!

नोट: 1 . इस लेख का उद्देश्य किसी कि धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना या किसी को अपमानित करना कतई नहीं है...!

2. यह लेख कुरान के प्रमाणिक हदीसों के पूर्ण विश्लेषण के बाद ही लिखी गयी है.... और, कोई भी व्यक्ति ... लेख में प्रयुक्त की गयी हदीसों का मिलान कुरान की ओरिजिनल प्रति से कर सकता है...!

गुरुवार, दिसंबर 27, 2012

गुरुकुल पद्धति नष्ट कर अंग्रेज़ो ने भारत मे कानून बना दिया INDIAN EDUCATION ACT

आज से कुछ डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तक भारत मे गुरुकुल पद्धति थी ,जिसमे शिक्षा से ज्यादा संस्कारो पर ज़ोर दिया जाता था और उन्ही संस्कार के बल पर भारत कभी विश्वगुरु था । लेकिन अंग्रेज़ जब भारत आए और उन्होने यहा पर संस्कारवान पुरुष और शीलवान कन्याओ को देखा था उनके होश उड़ गए उन्होने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था की एक पुरुष एक कन्या (पत्नी ) के साथ अपनी पूरी उम्र गुजार सकता है । उन्होने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कोई बालक अपने माता पिता को बुढ़ापे मे कंधो पे बैठाकर तीर्थ करवा सकता है । लेकिन जब ये सब उन्होने भारत मे देख लिया तो उन्होने सोचा की इतना संस्कारवान और शीलवान देश हमारा गुलाम क्यूँ बनेगा । तब उनके अधिकारी विलियम एडम के कहने पर टीबी मैकाले नाम के अंग्रेज़ ने भारत का सर्वे किया और ब्रिटिश संसद को वो रिपोर्ट पेश की ------- इस रिपोर्ट मे मैकाले कहता है की भारत संपन्नता की नीव यहा के गुरुकुल है और उनसे मिलने वाले संस्कार है यदि इन संस्कारो और गुरुकूलो को नष्ट कर दिया तो भारत को आसानी से गुलाम बनाया जा सकता है ।
बस फिर क्या था अंग्रेज़ो ने भारत मे कानून बना दिया INDIAN EDUCATION ACT
और हर भारतीय गुरुकुल को अवैध घोषित कर दिया और भारत मे नीव डाली कान्वेंट स्कूली सभ्यता की जिसने देखते ही देखते भारत का सर्वनाश कर दिया और उदाहरण आज आपकी आंखो के सामने है -----गेंगरेप ,हत्या ,समलैंगिकता ,अपहरण ,लूट ,डकैती आदि आदि ...... कई कुरुतिया जो कभी विदेशो मे थी आज भारत मे है
आज अगर आप भारत को बचना चाहते है तो आप भारत की युवा पीढ़ी को फिर से संस्कार प्रदान करे

www.purnswadeshi.org/2012/12/blog-post_6718.html

शुक्रवार, दिसंबर 21, 2012

केरल में निवासरत एक वृद्ध महिला को बेवकूफ बनाकर वहाँ के स्थानीय चर्च के पादरियों ने उसकी २५ करोड की संपत्ति हथिया ली


"शान्ति के धर्म" के मामले तो गाहे-बगाहे सामने आते ही रहते हैं... पिछले माह "प्रेम के धर्म" का भी एक और मामला सामने आया है...

केरल में निवासरत एक वृद्ध महिला को बेवकूफ बनाकर वहाँ के स्थानीय चर्च के पादरियों ने उसकी २५ करोड की संपत्ति हथिया ली. उक्त निःसंतान महिला अपने बीमार पति के साथ अपने बंगले में रहती थी. चर्च के पादरी उसके घर "प्रार्थना" करवाने आते-जाते थे. धीरे-धीरे आसपास के लोगों का जमावड़ा भी होने लगा.

प्रार्थना के दौरान एक दिन यह महिला "नीमबेहोशी" की हालत में थी... उसी समय चालाक पादरियों ने उसके मुँह से निकलने वाली बुदबुदाहट को अपनी तरफ से अनुवाद करके भीड़ के सामने घोषित कर दिया कि उस महिला ने यह मकान और सारी संपत्ति चर्च को दान करने का फैसला ले लिया है... भीड़ ने जोर का जयकारा लगाया, और महिला के "दान" का गुणगान किया.

बाद में भी इन पादरियों ने उस महिला को विश्वास दिलाया कि यदि वह अपनी जमीन चर्च को दान में देगी, तो उसके पति की आवाज़ वापस आ जाएगी... लेकिन न तो वैसा होना था और न हुआ...

महिला ने अखबार में विज्ञप्ति छपवाकर चर्च के कार्डिनलों के खिलाफ भूख हडताल की घोषणा की है और कहा है कि यदि उसका मकान वापस नहीं दिया गया तो इस धोखाधडी के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी करेगी..

बुधवार, दिसंबर 19, 2012

जब भी कोई जीवित विद्रोही हिन्दू किसी विजेता इस्लामी बादशाह के हाथ लगता था, तब उसे हाथी के पैरों तले कुचल दिया जाता था


जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल में अमीर खुसरो लिखते हैं, "...जब भी कोई जीवित विद्रोही हिन्दू किसी विजेता इस्लामी बादशाह के हाथ लगता था, तब उसे हाथी के पैरों तले कुचल दिया जाता था, यह एक आनंददायी क्षण होता था..." (सन्दर्भ - KS Lal; Legacy of Muslim Rule in India, p-120]

"...हमारे पाक लड़ाकों ने समूचे देश को तलवारों के बल पर वैसे ही साफ़ कर दिया था, जैसे जंगल से काँटों को साफ़ कर दिया जाता है. हमारी तलवारों की गर्मी से हिन्दू भाप बन कर उड़ गए. हिंदुओं के मजबूत मर्दों को घुटनों के नीचे से काट दिया गया, इस्लाम विजयी हुआ... बुतपरस्त गायब हो गए..." (संदर्भ - Tarikh-i-Alai: (Eliot & Dowson. Vol. III)

अमीर खुसरो को सूफी संत(?) माना जाता है, परन्तु वास्तव में ये तथाकथित संत इस्लामी शासकों के साथ-साथ ही भारत आए थे. सूफी परम्परा कुछ और नहीं, बल्कि एक तरह की "इस्लामी मिशनरी" है, अर्थात "ट्रोजन-हार्स वायरस". हिंदुओं को जितना नुक्सान कट्टर और धर्मान्ध मुल्लों ने नहीं पहुंचाया, उससे कहीं अधिक अपने बादशाहों और आकाओं के इशारे पर काम करने वाले "सूफी-संतों"(??) ने पहुँचाया है...

उदाहरण के लिए - "अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को ९० लाख हिंदुओं को इस्लाम में लाने का गौरव प्राप्त है. मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही मोहम्मद गोरी को भारत लूटने के लिए उकसाया और आमंत्रित किया था... (सन्दर्भ - उर्दू अखबार "पाक एक्सप्रेस, न्यूयार्क १४ मई २०१२).
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इसे कहते हैं, "इमेज बिल्डिंग"... यदि कोई लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहे, तो शिक्षा पद्धति और पाठ्यपुस्तकों पर उसका स्वाभाविक कब्ज़ा हो जाता है, और इसी के जरिये "ब्रेन-वाश" करके एक तरफ सत्य छिपाया जाता है, और दूसरी तरफ "इमेज पालिशिंग" भी की जाती है...

रविवार, दिसंबर 16, 2012

दूसरी बाबरी 'मस्जिद' के निर्माण का आन्दोलन कोई अर्थ नहीं रखता है: मौलाना वहीदुद्दीन


मौलाना वहीदुद्दीन का विचार

अप्रासंगिक है बाबरी आन्दोलन


दूसरी बाबरी 'मस्जिद' के निर्माण का आन्दोलन कोई अर्थ नहीं रखता है।' यह कहना है विख्यात इस्लामी विचारक मौलाना वहीदुद्दीन का। इसे प्रकाशित किया है दिल्ली से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक नई दुनिया ने। दस दिसम्बर के अंक में मौलाना को उद्धृत करते हुए पत्र लिखता है, 'एक व्यक्ति का कथन है कि... जीवन में कोई अवसर केवल तीन बार आता है, चौथी बार नहीं। ब
ाबरी ढांचे के मामले में उक्त कथन बिल्कुल सही है। बाबरी ढांचे के मामले में मुसलमान तीन अवसर खो चुके हैं। अब चौथा अवसर उन्हें नहीं मिलने वाला है। बाबरी को समस्या बनाने का पहला अवसर तब था जब बाबर के गर्वनर मीर बाकी ने 1528 में अयोध्या में 'ढांचे' का निर्माण करवाया। इस स्थान पर बाबरी ढांचे से पूर्व हिन्दुओं का एक पवित्र स्थान था, जिसको वे राम चबूतरा या राम मन्दिर कहते थे। मीर बाकी ने राम चबूतरे को आंगन से मिलाकर ढांचे का निर्माण करवाया। इस मामले में प्रथम अवसर को खोना था। क्योंकि द्वितीय खलीफा उमर फारुक द्वारा निश्चित किए गए एक नियम के अनुसार दो इबादत स्थलों को (रफीता हुजर) स्टोन्स थ्रो की दूरी पर होना चाहिए। लेकिन मीर बाकी ने इस सिद्धांत को क्रियान्वित न करके पहले दिन से ही बाबरी ढांचे को एक विवादित स्थान बना दिया। इस मामले में दूसरा अवसर वह था जब 1949 में कुछ हिन्दुओं ने बाबरी ढांचे के भीतर तीन बुत (प्रतिमाएं) रख दिए। उस समय मुसलमानों के लिए यह अनिवार्य था कि वे इस मामले को अदालत तक ही मर्यादित रखते। लेकिन मुस्लिम नेता इस मामले को सड़कों पर ले आए। इस प्रकार मुस्लिम नेताओं ने दूसरा अवसर भी खो दिया। क्योंकि सड़क पर आ जाने के बाद समस्या अधिक पेचीदा हो जाती है। उसका समाधान कभी नहीं होगा।
तीसरा अवसर तब आया था जब उत्तर प्रदेश की सरकार ने यह प्रस्ताव रखा कि यदि ढांचे को री लोकेट (अन्यत्र स्थानान्तरित) करने के लिए तैयार हों तो वह मस्जिद के लिए मुसलमानों की पसंद के अनुसार अन्य स्थान देने के लिए तैयार है। लेकिन मुसलमानों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा कर तीसरा अवसर भी खो दिया। उसके पश्चात् 6 दिसम्बर 1992 को ढांचा ढहा दिया गया। अब बाबरी ढांचे के पुनर्निर्माण का आन्दोलन चलाने का अर्थ है चौथा अवसर तलाश करना जो कि सिरे से मिलने वाला ही नहीं।'
दो टूक बात

उपरोक्त विश्लेषण मात्र मौलाना का ही नहीं है। उन्होंने एक बार फिर से अत्यंत सटीक भाषा में मुसलमानों से दो टूक बात कह दी है। लेकिन मुस्लिम नेता और मौलानाओं पर इसका कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। वे तथाकथित नेता और राजनीतिक दल, जो अपने वोट बैंक बनाने की खातिर इस मामले को कभी सुलझाने के पक्ष में रहने वाले नहीं हैं। सरकार और राम मन्दिर निर्माण के विरोधी यदि इस समस्या को हल करना चाहते तो राम सेतु का मामला ही नहीं उठाते। लेकिन राम के विरोधी बनकर जब उन्हें सत्ता मिल सकती है तो इस भाव में उनके लिए क्या बुरा है? किसी मामले को बीच में लटकाना हो अथवा उसे लम्बा खींचना हो तब उसे अदालत में चुनौती देने का सीधा और सरल मार्ग है। इसलिए राम मन्दिर के निर्माण का मामला खटाई में पड़ जाना कोई बड़ी बात नहीं है। अदालत अपना निर्णय देती है तब भी बाबरी के समर्थक तो इस मामले में अपने दृष्टिकोण को बदलने वाले नहीं हैं। मौलाना वहीदुद्दीन एवं स्व. मौलाना इलयासी जैसे लोग उस सम्बंध में लाख प्रयास करें तब भी इसका कोई हल सामने नजर नहीं आता। हर 6 दिसम्बर को इस प्रकार के बेतुके दृश्य देखने को मिलते हैं। अदालत की बात बाबरी समर्थक लोग केवल इसलिए करते हैं कि मामला लम्बा खिंचता चला जाए।

संसद में काले झण्डे

लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद और उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च हैं। बाबरी के पक्षधर अपना विश्वास देश की इस बड़ी अदालत में बताने की घोषणा करते नहीं थकते। लेकिन कोई उनसे पूछे कि इस बार 6 दिसम्बर को लोकसभा में काले झंडे लहराने वाले कौन थे? संसद को काले झंडे दिखाने का अर्थ है सर्वोच्च न्यायालय को काले झंडे दिखाना। बसपा सांसद शफीकुर्रहमान ने बाबरी ढांचा विध्वंश के लिए संसद में काले झंडे दिखाए। इस हरकत से अध्यक्ष मीरा कुमार बेहद नाराज हुईं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे झंडे लहरा कर सदन का अपमान कर रहे हैं। संसद का अपमान क्या उच्चतम न्यायालय का अपमान नहीं है? इन काले झण्डों से बाबरी के पक्षधरों ने यह सिद्ध कर दिया कि उनका उच्चतम न्यायालय में विश्वास नहीं है। इस घटना ने यह भी सिद्ध कर दिया कि उन्हें भारत की न्याय प्रणाली में भी विश्वास नहीं है। इसलिए सवाल यह उठता है कि जब बाबरी प्रकरण भारत की सबसे बड़ी अदालत में विचाराधीन है उस समय उस पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाया जा रहा है। तब क्या फैसला आ जाने के बाद वे इसे स्वीकार करेंगे? बाबरी के पक्षधर जब संसद और सर्वोच्च न्यायालय में ही विश्वास नहीं रखते हैं तब इस मामले का समाधान किस प्रकार होगा, यह अब सबसे अधिक चिंताजनक मुद्दा है। काले झण्डे दिखाने की जुर्रत इस बात को साबित करती है कि ऐसे लोग इस देश की संसद और न्याय प्रणाली में विश्वास नहीं करते। शायद बाबरी समर्थकों ने यह फैसला कर लिया है कि निर्णय कुछ भी आए वे राम जन्मभूमि पर कब्जा करके बाबरी का निर्माण करने के लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ेंगे। न्यायालय में लड़ने वाला एक पक्ष जब फैसला आने से पहले ही अपने पक्ष के फैसले पर प्रतिबद्ध है तो फिर न्यायालय में इस बहस का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है।
राम जन्मभूमि न्यास के लिए यह निर्णायक घड़ी है। उनकी सहनशीलता की परीक्षा सरकार और बाबरी के पक्षधर बार-बार ले रहे हैं। कानून को सम्मान देने का अर्थ यह नहीं होता है कि किसी की आस्था का अपमान करके जनता, संसद और सर्वोच्च न्यायालय को बारम्बार आतंकित करते रहें? मुस्लिम देशों में मस्जिद को स्थान से हटाए जाने की असंख्य घटनाएं घटित हुए हैं, लेकिन वहां तिनका भी नहीं गिरता है। जो कुछ होता है वह केवल भारत में ही होता है।
(Mahendra Singh)

मंगलवार, दिसंबर 11, 2012

आखिर कितनी लड़ाईयां और लड़नी पडे़ंगीं जन्मभूमि के लिए ?

आखिर कितनी लड़ाईयां और लड़नी पडे़ंगीं जन्मभूमि के लिए ?

-विनोद बंसल

हमारे ऋषियों मनीषियों ने माता व मातृभूमि को स्वर्ग के समान संज्ञा देते हुए सर्वोच्च माना है। ’’जननी जन्म भूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी‘‘ इस वाक्य के आधार पर अनगिनत लोग बिना...
किसी कष्ट या अवरोधों की परवाह किये, मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योक्षावर कर गये। मातृभूमि का अर्थ उस भू भाग से लगाया जाता है जहां हम व हमारे पूर्वज पैदा हुए। व्यक्ति का जन्म के बाद नाम बदल सकता है, काम बदल सकता है, उसकी प्रकृति बदल सकती है, उसकी प्रतिष्ठा व कद बदल सकता है किन्तु मूल पहचान-जन्मभूमि नहीं बदल सकती है। हम चाहे विश्व के किसी भी कोने में चले जायें, कितने ही प्रतिष्ठित पद पर पहंुच जायें किन्तु जन्म स्थल से पक्की पहचान हमारी और कोई हो ही नहीं सकती। घर परिवार में जब कोई शुभ कार्य होता है तो सबसे पहले पंडित जी हमें हमारा नाम, गोत्र, व हमारे पूर्वजों के नाम के साथ जन्म स्थान का स्मरण कराते हुए संकल्प कराते हैं। पूर्वजों के जन्म स्थान के दर्शन की भी परम्परा है।

अपनी और अपने पूर्वजों की जन्म भूमि की रक्षा प्रत्येक व्यक्ति का पुनीत कर्तव्य माना जाता है। इतिहास में ऐसे लोगों के असंख्य उदाहरण भरे पड़ें हैं। जिन्होनंे जन्मभूमि की रक्षा व उसकी स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। जब व्यक्ति अपनी जन्मभूमि के लिए इतना सब कुछ करने को तैयार रहता है तो कल्पना करिये कि क्या अपने आराध्य की जन्मभूमि हेतु वह हाथ पर हाथ धरे बैठा रह सकता है। कौन नहीं जानता कि करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य व अखिल ब्रम्हांड के नायक मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। अयोध्या की गली-गली व कोना कोना रामलला की क्रीड़ा स्थली के रूप मंे आज भी स्पष्ट रूप से दिखायी देता है। इतना ही नही अयोध्या का इतिहास भारतीय संस्कृति की गौरवगाथा है। अयोध्या सूर्यवंशी प्रतापी राजाआंे की राजधानी रही है। इसी वंश में महाराजा सगर, भगीरथ तथा सत्यवादी हरिश्चन्द जैसे महापुरूषों के बाद प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ। पांच जैन तीथकरों की जन्म भूमि अयोध्या है। गौतम बुद्ध की तपस्थली दन्तधावन कुण्ड भी अयोध्या की ही धरोहर है। गुरू नानक देव जी महाराज ने भी अयोध्या आकर भगवान श्रीराम का पुण्य स्मरण कर दर्शन किये। यहां ब्रहमकुण्ड गुरूद्वारा भी है। शास्त्रों में वर्णित पावन सप्तपुरियों में से एक पुरी के रूप में अयोध्या विख्यात है। विश्व प्रसिद्ध स्विट्स वर्ग एटलस में वैदिक कालीन, पुराण व महाभारत कालीन तथा आठवीं से बारहवीं, सोलवी सत्रहवीं शताब्दी के भारत के सांस्कृतिक मानचित्रों में अयोध्या को धार्मिक नगरी के रूप में दर्शाया गया है जो इसकी प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।

जग विदित है कि इस पुण्य पावन देव भूमि पर बने भव्य मंदिर को जब विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी बाबर ने अपने क्रूर प्रहारों से ध्वस्त कर दिया तभी से यहां के समाज को अनेकों लड़ाईयां लड़नी पड़ी। इस जन्मभूमि के लिए सन् 1528 से 1530 तक 4 युद्ध बाबर के साथ, 1530 से 1556 तक 10 युद्ध हुमांयू से, 1556 से 1606 के बीच 20 युद्ध अकबर से, 1658 से 1707 ई मे 30 लड़ाईयां औरंगजेब से, 1770 से 1814 तक 5 युद्ध अवध के नवाब सआदत अली से, 1814 से 1836 के बीच 3 युद्ध नसिरूद्दी हैदर के साथ, 1847 से 1857 तक दो बार वाजिदअली शाह के साथ, तथा एक-एक लड़ाई 1912 व 1934 मंे अंग्रेजों के काल मंे हिन्दू समाज ने लड़ी। इन लड़ाईयों में भाटी नरेश महताब सिंह, हंसवर के राजगुरू देवीदीन पाण्डेय, वहां के राजा रण विजय सिंह व रानी जय राजकुमारी, स्वामी महेशानन्द जी, स्वामी बलरामाचार्य जी, बाबा वैष्णव दास, गुरू गोविन्द सिंह जी, कुंवर गोपाल सिंह जी, ठाकुर जगदम्बा सिंह, ठाकुर गजराज सिंह, अमेठी के राजा गुरदत्त सिंह, पिपरा के राजकुमार सिंह, मकरही के राजा, बाबा उद्धव दास तथा श्रीराम चरण दास, गोण्डा नरेश देवी वख्स सिंह आदि के साथ बडी संख्या में साधू समाज व हिन्दू जनता ने इन लड़ाईयों में अग्रणी भूिमका निभाई।

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए उपरोक्त कुल 76 लड़ाईयांे के अलावा 1934 से लेकर आज तक अनगिनत लोगों ने संधर्ष किया व इन सभी में लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। किन्तु, न कभी राम जन्मभूमि की पूजा छोड़ी, न परिक्रमा और न ही उस पर अपना कभी दावा छोड़ा। अपने संघर्ष में चाहे समाज को भले ही पूर्ण सफलता न मिली हो किन्तु, कभी हिम्मत नहीं हारी तथा न ही आक्रमणकारियों को चैन से कभी बैठने दिया। बार-बार लड़ाईयां लड़कर जन्म भूमि पर अपना कब्जा जताते रहे। 6 दिसम्बर 1992 की घटना इस सतत् संघर्ष की एक निर्णायक परिणति थी जब गुलामी व आतंक का प्रतीक तीन गुम्बदांे वाला जर-जर ढांचा धूल-धूसरित होकर श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्णय का मार्ग तो प्रसस्त कर गया किन्तु जन्मभूमि पर विराजमान राम लला को खुले आसमान के नीचे टाट के टैण्ट में से निकाल भव्य मंदिर में देखने के लिए पता नहीं कितनी लड़ाईयां और लड़नी

http://www.pravakta.com/how-many-battles-and-fight-for-ram-janmabhoomi

comments :-

Dhanakar Thakur · Top Commenter · Chief Medical Consultant(Medicine) at Govt of india undertaking

आज मुझे कोलकता के उन दो कोठारी भाईयों यों से अधिक उनकी माता की याद आती है जिन्होंने कहा था मुझे तीसरा बेटा होता तो उसे भी शहीद होने कहती।.
जब तक भारत में ऐसी माताएं रहेंगी युद्ध भूमि के लिए अभिमन्यु जन्म लेता रहेगा , गोरा बदल जन्म लेता रहेगा.
मुझे याद आती है 6.12.92 को मैं नागपुर में था, अपने नियत प्रवास पर -लोग दूरदर्शन के पास बैठे थे ( डॉ शिलेदार के घर ) -डॉ संजीव केलकर मेरे साथ थे - मैंने उन्हें कहा जब हम वहां गए नहीं अपना काम करें और मेडिकल छात्रावास में जाकर सम्पर्क किया -( मुझे शहर का दृश्य याद है -एक विचित्र माहौल-हर घंटे में नया बुलेटिन छप कर बँट रहा था - एक गुम्बद गिरा, दूसरा.. )
रात की ट्रेन ली औरंगाबाद गया - डॉ हेडगेवार अस्पताल बंद सा - डॉ पेंधारे थे- पैथोलोजिस्ट डॉ मंजू/ मीनाक्षी / शिल्पा नाम याद नहीं आ रहा - मुझे कई दिन तक अपने हाथों मराठी खाना बना तरह -तरह का खिलती रही - सामने मेडिकल कॉलेज मैं उस यात्रा
में नही जा पाया - कर्फ्यू चलते- बस से अहमदनगर-होते हुवे पुणे गया - अगली यात्रा गोवा की करने- गोअया एक्सप्रेस में युवा कारसेवकों से पूछा क्या हुआ? "सर, जमींदोज कर दिया ".
पर उनके बलिदानों का अक्या हुवा? चुनावी गणित में सब गड़बड़ा गया?
तो प्रबल जनसमर्थन जिन्ना के माजर पर खो गया?
वह राम का जन्मस्थान हो या नहीं वह मंदिर जरूर था - मैं 1988 में पहली बार लखनऊ गया - डॉ अस्थाना ने कहा चलिए अयोध्या- उनके कार से गया- ऊपर भले गुम्बद हो परिक्रमा की जगह थी वहां दीवारों पर उन्होंने दिखाया कलश और कमल- किसी मस्जिद में वे नहीं होते.
और जो मैंने अनुभव किया की इसके आस पास सैकड़ों छोटे मंदिर हैं जो अपने ही तीर्थों में दिखेंगे.
हमारे वीरों ने अपने मंदिर को तोड़ा था किसी भव्य मंदिर बनाने - वह बनाना चाहिए- मुस्लिम समाज को खुशी खुशी हट जाना चाहिए- वे भले मुस्लिम होगये हों -उनके पुरखे हिन्दू थे- वैसे देखा जाये तो हिन्दुस्तान का हर कण कण मंदिर है यहाँ किसी मस्जिद की जगह कैसे? मुस्लिम यह समझें की यह बा तजब हिन्दू समझ जाएगा उनकी सारी जिद्द का क्या होगा?
देश में हजारों मंदिर तोड़े गए- लुटेरों ने सोना भी लूटा , महिलों की इज्ज्स्त भी, मंदिरों को भी तोड़ा.
उनको गरिमामंडित करने का अर्थ होगा विध्वंश.
इससे उन्हें बचना चाहिए - इसमें उनकी ही अधिक हानि होगी.
आज भी पाकिस्तान में मंदिर तोड़े जा रहे हैं.
केवल अयोध्या , काशी या मथुरा की बात नही है.
आज के दिन को हिन्दू शौर्य दिवस का नाम देना औचित होगा और संघ को चाहिए की वह इसे अपने एक उत्सव के रूप में जोड़ दे या हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव की जगह इसे ही मनाबे.
(वैसे वर्ष प्रतिपदा के बदले मेष संक्रांति 14 अप्रैल को नव वर्ष 'अश्वानीयाम मेषः' के ज्योतिषीय गणना के अनुसार सार्वदेशिक होने के कारण ).

मॅक्स मूलर का पत्र और संस्कृत की प्रेरणा -डॉ. मधुसूदन





मॅक्स मूलर का पत्र और संस्कृत की प्रेरणा -डॉ. मधुसूदन

मॅक्स मूलर ने, I C S ( Indian Civil Service) की परीक्षा के हेतु तैय्यार होने वाले युवाओं के सामने १८८० के आस पास, केम्ब्रिज युनीवर्सीटी में ७ भाषण दिए थे।उन भाषणों के उपलक्ष्य़ में जो पत्र व्यवहार हुआ था, उसका अंश प्रस्तुत है। सभी भारतीय संस्कृत प्रेमी और अन्य भारतियों को यह जानकारी, संस्कृत अध्ययन की प्रेरणा ही दे कर रहेगी।

जब मॅक्स मूलर अंग...
्रेज़ युवा छात्रों को संस्कृत अध्ययन के लिए प्रेरित करते हैं,, जो उन छात्रों के लिए अवश्य अधिक कठिन ही होगा, तो हमारे युवा ऐसे आह्वान से कैसे मुह चुराएंगे, जिनके लिए निश्चित रूपसे संस्कृत अध्ययन अंग्रेज़ो की अपेक्षा कमसे कम तीनगुना तो सरल ही होगा।

(१) एक हमारी सभी भाषाएँ ७० से ८० प्रतिशत (तत्सम और तद्भव) संस्कृतजन्य शब्द रखती है।

अपवाद केवल तमिल है, जिसमें ४० से ५० प्रतिशत संस्कृतजन्य शब्द होते हैं।

पर अचरज यह है, कि, तमिलनाडु में ही वेद्पाठी गुरूकुल शालाएं आज भी अबाधित रूप से चल रही है।

(२) हमारी ६०-६५ प्रतिशत भाषी जनता देवनागरी जानती है। उपरान्त ३० प्रतिशत भारतियों की भाषाएँ, देवनागरी की ही भाँति ध्वन्यानुसारी रूप से व्यवस्थित और अनुक्रमित है।

(१) प्रोफेसर कॉवेल — युनीवर्सीटी ऑफ़ केम्ब्रिज मॅक्स मूलर, प्रोफेसर कॉवेल को, जो उस समय, युनीवर्सीटी ऑफ़ केम्ब्रिज में संस्कृत पढाते थे,लिखते हैं; …..”पर आप भी जानते हैं कि अभी तो संस्कृत साहित्य के विशाल-काय महाद्वीप की एक छोटी पट्टी (strip) भर ही खोजी गयी है, और कितना अज्ञात धरातल अभी भी बचा हुआ है।” टिप्पणी:{बस एक विशाल हिम शैल की शिखामात्र खोजी गयी थी।} जिन्हों ने ’PRIDE OF INDIA’– A glimpse into India’s scientific heritage,(2006), पढी होगी, उन्हें सहमत होने में कठिनाई नहीं होगी

(२) कठिन कष्टदायक काम मॅक्स मूलर कहते हैं: निःसंदेह, यह काम कठिन है, कष्टदायक भी, और बहुत बार हताश करने वाला भी है, पर युवा छात्रों को वे वचन जो डॉ. बर्नेल ने कहे थे, ध्यान में रखने चाहिए, —”जिस काम को करने से, अन्यों को (हमारी बाद की पीढियों को) सुविधा होगी, ऐसा कोई कठिन काम त्यागना नहीं चाहिए।” टिप्पणी: क्या हमें यह कठिन काम त्यागना चाहिए? और क्या हमारे लिए उनसे भी कठिन माना जाए? आप, टिप्पणी दीजिए।

) कठिन परिश्रमी युवा चाहिए (३)आगे, मॅक्स मूलर लिखते हैं: हमें ऐसे युवा चाहिए, जो कठिन परिश्रम करेंगे, जिनके परिश्रम का कोई पुरस्कार भी उन्हें शायद ही मिले, हमें ऐसे पुरूषार्थी और निडर युवाओं की आवश्यकता है, जो आँधी, बवंडरों से डरते नहीं है, समुद्री टीलों पर नौका की टक्कर से जिनकी नाव टूटती है, पर हताश होते नहीं है। वे नाविक बुरे नहीं होते, जिनकी नौका पथरीले टिलोंपर टकरा कर टूटती है, पर वें हैं, जो छोटे छोटे डबरों में नाव तैराकर उसी किचड में लोट कर ही संतोष मान लेते हैं। टिप्पणी: हमारे युवा, और युवामानस रखने वाले इन शब्दों पर विचार कर, अपनी टिप्पणी दें।

(४)आलोचना करना बंद करो:आगे, मॅक्स मूलर अंग्रेज़ युवाओं को लक्षित कर लिखते हैं: बहुत सरल है, आज, विलियम जोन्स, थॉमस कोलब्रुक, और एच. एच. विलसन इत्यादि विद्वानों के परिश्रम की आलोचना करना, पर संस्कृत के विद्वत्ता प्रचुर अगाध ग्यान का क्या होता, यदि इस क्षेत्र में, वे विद्वान आगे बढे न होते, जहाँ पग रख कर प्रवेश करने में भी आप सारे इतने डरते हो?

(५)संस्कृत में भरी पडी, विपुल जानकारी, आगे, मॅक्स मूलर लिखते हैं: और संस्कृत में भरी पडी, विपुल जानकारी का क्या होगा, यदि इस क्षेत्र की उपलब्धि के लिए, हम सदा के लिए इस विषय में हमारी मर्यादा में ही बँधे रह जाएँ? लेखक: क्या यह वाक्य हमारे लिए भी, लागू नहीं होता? शायद अंग्रेज़ों से भी अधिक ही होता है। लेखक: फिरसे जिन्हों ने ’PRIDE OF INDIA’– A glimpse into India’s scientific heritage,(2006), पढी होगी, उन्हें सहमत होने में कठिनाई नहीं होगी

(६) विशाल ज्ञान का भंडार आगे, मॅक्स मूलर लिखते हैं: आप निश्चितरूपसे जानते हैं, कि संस्कृत साहित्य और धर्म ग्रंथों में, में नल दमयन्ती और शाकुन्तल के नाटकों से बढकर भी बहुत विशाल ज्ञान का भंडार भरा पडा है, जो कई अधिक खोजने की आवश्यकता है; और जानने योग्य भी है। और अवश्य जो युवा प्रति वर्ष भारत जाते हैं, उनकी ऐसा साहस करने की क्षमता नहीं है; ऐसा मैं नहीं मान सकता। लेखक :तो क्या भारत का युवा, अंग्रेज़ युवा से कम क्षमता रखता है?

(७)लेखक: इस सुभाषित से भी हमारे युवा सीख ले सकते हैं।

योजनानां सहस्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका।

आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति॥

संधि विच्छेद कर:

योजनानां सहस्रं तु शनैः गच्छेत्‌ पिपीलिका।

आगच्छन वैनतेयः अपि पदम्‌ एकम्‌ न गच्छति॥

अर्थ: यदि चींटी भी यदि चले, तो धीरे धीरे हज़ारों योजन (मील) काट सकती है। पर गरूड यदि अपनी जगह से ना हीला तो एक पग भी आगे नहीं बढ सकता।

पिपीलिका: यह चींटी का एक पर्यायवाची नाम है। पीपल के वृक्ष पर पायी जाती है, इससे पिपीलिका कहलाती है। और गरूड विनता की सन्तान होने से उसे वैनतेय कहते हैं। यह प्रत्ययों का जादु है। कभी आगे विशद किया जाएगा।

कविता

जब चींटी चले धीरे धीरे, हजारों योजन कटे।

गरूड हिले न, अपनी जगह , एक भी पग ना बढे॥

चींटी की भाँति ही संस्कृत के ज्ञान में आगे बढें।

संस्कृत भारती का सम्पर्क कीजिए।

http://www.pravakta.com/maxmuller-letter-and-sanskrit
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