खुशवंत सिंह की किताब "अ हिस्ट्री ऑफ़ सिख्स" का कुछ हिस्सा पढ़ा.. तो कुछ विचार, कुछ सवाल मन में आये..सोचा आज आपके साथ उसकी ही चर्चा कर लूं..

कई साल पहले, 1716 में मुग़ल अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहे बन्दा बहादुर को क़त्ल किया गया था। सिखों के इतिहास पर किताब लिखने वाले कुख्यात लेखक खुशवंत सिंह उनके बारे में अपनी किताब में बस इतना बताते हैं कि कैद किये जाने के बाद बन्दा बहादुर को तीन महीने प्रताड़ित किया गया। उसपर इस्लाम कबूल लेने का दबाव डाला जा रहा था। आख़िरकार एक रविवार, 19 जून 1716 को बन्दा बहादुर और उसके बेटे को बन्दा बहादुर के पांच अन्य साथियों के साथ दिल्ली में घुमाया गया।

उन्हें घुमाते हुए दिल्ली से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर महरौली में बहादुर शाह के मकबरे पर ले गए और फिर से कहा गया कि अगर वो इस्लाम कबूल ले तो उसे “बक्श” दिया जाएगा। सूफियों में जब “बख्शा जा” अर्थात इस्लाम में दीक्षित हो कहा जाता है, तो ज्यादातर यही मतलब होता है, जान के बदले ईमान। खैर बन्दा बहादुर को इस्लाम नहीं कबूलना था और उन्होंने कबूला भी नहीं। उनके इनकार करने पर उनके बेटे अजय सिंह को उनके सामने ही वहीँ क़त्ल कर दिया गया और बाद में बन्दा बहादुर को भी क़त्ल किया गया। ये पूरा वाकया खुशवंत सिंह की किताब में दो पैराग्राफ का है, इसमें बस इतना पता चलता है कि शासन के एक विद्रोही को मृत्युदंड दिया गया।

असल में ये वाकया बन्दा बहादुर और मुग़ल सरदार की बातचीत के एक वाक्य में पूरा नहीं होता। बन्दा बहादुर के जिस पुत्र अजय सिंह को उसके साथ पैदल पूरे शहर में बतौर अपराधी घुमाया गया था वो चार साल का था। जब आप अजय सिंह के चार साल का होने का जिक्र गायब कर रहे हैं, तो निस्संदेह कुछ कपट कर रहे हैं। सिर्फ मार दिया गया कहना भी काफी नहीं है, उसके टुकड़े टुकड़े किये गए थे। मतलब चार साल के अजय सिंह के, पैर हाथ पहले काटे गए और मरा है या नहीं इसकी फ़िक्र किये बिना अंत में सर काटा गया था। उनका दिल निकाल कर बन्दा बहादुर के मूंह में ठूंस दिया गया था। ये नहीं बताने पर आपको लग सकता है कि शायद अजय सिंह चौदह-पंद्रह साल का होगा और वो भी अपने पिता बन्दा बहादुर के साथ लड़ा होगा।

ऐसा तब है जब खुशवंत सिंह अलग सिक्ख राज्य के प्रबल समर्थक थे। ये तब है जब वो कोई स्कूल के बच्चों के लिए इतिहास नहीं लिख रहे थे। स्कूल की किताबों में तो कहीं बन्दा बहादुर का जिक्र भी नहीं आता। ये तब हो रहा है जब बन्दा बहादुर या उनके साथ के अकाली कोई अलग सिख राज्य की स्थापना की मुगलों से लड़ाई नहीं लड़ रहे थे। वो सिर्फ इस्लाम कबूलने के लिए करवाए जा रहे हमलों और औरतों की लूट से अपना बचाव कर रहे थे। हमारे इतिहास से ये सब सेकुलरिज्म के नाम पर गायब किया जाता है। (अंजना शंतिकृष्णन ऐसे इतिहास के हिस्से गायब करने को Negation कहती हैं, इसके लिए उचित हिंदी शब्द क्या होगा पता नहीं।)

बाकी सवाल तो ये भी है कि ये छद्म धर्मनिरपेक्ष लोग औपनिवेशिक मानसिकता के शिकार हज़ार साल से ज्यादा हमले, गुलामी, लूट, झेलते हम भारतवासियों को सच बोलने, सच लिखने और सच पढ़ने क्यों नहीं देना चाहते ?

..साड्डे हिस्से दी अभिव्यक्ति दी स्वतंत्रता कित्थे गई ?