मुसलमान जन गण मन का विरोध क्यों नहीं करते है जबकि वंदे मातरम गाने पर उन्हे मौत आती है !
एक बार जब किसी हिन्दू ने नायक से पूछा कि आप वन्देमातरम का विरोध क्यों करते हैं .तो उसने जो जवाब दिए हम उन पर विस्तार से आगे बताएँगे
लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि,मुसलमान जन गणमन का विरोध नहीं करते ,जबकि सब जानते हैं कि यह गाना इंगलैंड के सम्राट की स्तुति में लिखा गया था.और इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी और की स्तुति करना शिर्क है.मुसलमान जन गण मन का विरोध इसलिए नहीं करते ,क्योंकि उन्हें डरहै कि वे देशद्रोही घोषित न हो जाएँ ,और उनकी सुविधाओं में कटौती न हो जाए
वह सिर्फ वन्देमातरम का विरोध इसलिए करते हैं कि वे जानते है कि हिन्दू अपने देश का आदर करते हैं.और उस से प्रेम करते है .
जैसी कि इस्लाम की नीति है कि मुसलमान जानबूझ कर वही काम करें जिस से हिन्दुओं को तकलीफ हो .कुरआन में है कि-
तुज़क्किरू लिल्लाह कसीरा लौ करिहल काफिरून .यानी ऐसे काम करो जिस से काफिरों को संताप हो
नायक ने वन्देमातरम न पढ़ने का कारण बताते हुए कहा कि मुसलमान तौहीद यानी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं.और सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं.अल्लाह के अलावा किसी की स्तुति करना ,पूजा करना ,वन्दना करना ,या किसी को अल्लाह के बराबर मानना या किसी का नाम अल्लाह के शामिल करना शिर्क है .जो अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा .इसीलिए मुसलमान वन्देमातरम नहीं गाते हैं
मुसलमानों का यह तौहीद इनके कलमा से प्रकट होता है .कलमा मुसलमानों का मूल मन्त्र है .इसमे दो पंक्तियाँ हैं -
ला इलाह इल्लल्लाह -मुहम्मदुर रसूलुल्लाह .
इसमे पाहिले दो शब्द "ला इलाह "का अर्थ है कोई माबूद नहीं है .यानी कोई खुदा नहीं है .यह सरासर कुफ्र है .
दूसरी पंक्ति में अल्लाह के साथ मुहम्मद का नाम शामिल किया गया है .जो शिर्क है
केवल मुसलमान तौहीद को नहीं मानते .यहूदी और ईसाई भी तौहीद को मानते हैं .लेकिन उन्हों ने अपने कलमों में अपने धर्म स्थापकों के नाम नहीं जोड़े .
देखिये यहूदियों का कलमा "
शेमा इस्राएल अदोनाय एलोहेनू अदोनाय एहाद "तौरेत -इस्तासिना ६:४
इसी तरह ईसाईयों का कलमा
'क्रेडो देउस नोस्तेर दोमिनुस ऊनुस एस्त"लेटिन मिस्सल पेज २३६
मुसलमान यहाँ तक नहीं रुके शिया लोगों ने एक तीसरी लाइन भी जोड़ ली "अलीयुन वलीउल्लाह
फिर नायक हिन्दुओं को शिर्क करने वाले या मुशरिक क्यों कहता है.
अगर किसी यहूदी या ईसाई पूछा जाए तो वह सारे मुसलमानों को मुशरिक बता देगा क्योंकि यहूदी और ईसाई खुदा के साथ अपने कलमों में मूसा या ईसा का नाम नहीं जोड़ते हैं .कुरआन में भी कलमा इसी रूप में नहीं है .
मेरे भाई कलमे का पूरा अनुवाद करो ।और थोडा बहुत इस्लाम के बारे में पढलो। ला इलाहा मतलब नही हे कोई माबूद उसके आगे इल्लल्लाह भी हे जिसका मतलब सिवाए अल्लाह के तो यह कहाँ से कुफ़्र हुआ।और आगे हे मुहम्मदुर रसूलल्लाह इसका मतलब के मुहम्मद सल्ल अल्लाह के रसूल हैं।तो शिर्क ये नही हुआ शिर्क कहते हैं अल्लाह के साथ किसी और को भी खुदा मानना ।अब आगे से सही जानकारी पोस्ट करें और अपने को हँसी का पात्र न बनाये।
जवाब देंहटाएंSahi kha
हटाएंमै तुम्हारी लिखाई देखकर ही समझ गया था की तुम्हारा स्तर क्या है। तो बस यही कहूंगा की जाकर पहले लिखना पढ़ना सीख बाबू। बाद में इस्लाम के बारे में बात करना।
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