हिंदी और हिन्दुस्ता नी
राष्ट्र भाषा के प्रश्न के बारे में भी गांधी जी ने मुसलमानो का अनुचित पक्ष लिया इतना किसी और जगह नही मिलता। किसी भी तरह से देखा जाय तो हिन्दी को बहुत महत्व दिया। परन्तु जब उन्होने देखा कि मुसलमान हिन्दी को पसन्द नही करते तो उन्होने अपनी नीति ही बदल दी तथा हिन्दी की जगह हिन्दुस्ता नी का| प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि हिन्दुस्ता नी नाम की कोई भाषा ही नही है। न उस भाषा का कोई व्याकरण है और न शब्दावली यह तो केवल बोलने में आती हैं यह भाषा केवल हिन्दी और उर्दू की खिचडी है और गांधी जी पूरे प्रयत्न करके भी इस खिचडी भाषा को सर्वप्रिय न कर सके परन्तु मुसलमानो को खुश करने के लिए इस बात पर जोर दिया कि इसी हिन्दुस्ता नी भाषा का प्रचार करने लगे और कुछ कुछ कही कही इस भाषा का प्रयोग भी किया जाने लगा जैसे बादशाह राम बेंगम सीता आदि वाहियात शब्दो का प्रयोग होने लगा परन्तु इस महात्मा को इतना साहस न हुआ कि मिस्टर जिन्ना को श्रीयुत जिन्ना कह कर पुकारे और मौलाना आजाद को पंडित आजाद कहे। उन्होने जितने भी अनुभव प्राप्त किए वे केवल हिन्दुओ की बलि देकर ही किये। वे हिन्दू मुस्लिम एकता की खोज में बढ़ते जा रहे थे।
मुसलमानो को खुश करने के लिए उन्होने हिन्दी के सौन्दर्य और उसकी मधुरता को नष्ट कर दिया गया परन्तु बहुत से कांग्रेसी भी इस खिचडी को हजम न कर सके| गांधी जी अपनी हिन्दुस्ता नी की जिद पर जमे रहे परन्तु हिन्दू अपनी संस्कृति और मातृभाषा के भक्त बने रहे और वे गांधी के इस झांसे में नही आए। इसका परिणाम यह हुआ कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन में गांधी की एक न चली और संस्था से त्याग पत्र देना पड़ा किन्तु गांधी का विषैला प्रभाव अब भी बाकी हे और आज भी भारत की सरकार यह फैसला करते हुए झिझकती है कि देश की राष्ट्र भाषा हिन्दी को बनाया जाये या हिन्दुस्ता नी को ? साधारण बुद्धि वाले लोग भी स्पष्ट रुप से देख सकते है कि राष्ट्र भाषा भी ना जानती हो फिर भी गांधी जी मुसलमानो को खुश करने के लिए यह अनुचित कार्य करने में लगे हुए थे।
कितनी खु्शी की बात है कि अब लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ो आदमी ऐसे है जो कि हिन्दी और देवनागरी के पक्षपाती है। संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश ) में हिन्दी को प्रान्त की भाषा भी मान लिया गया है। भारत सरकार ने जो कमेटी बनायी है उसने विधान का शुद्ध हिन्दी में अनुवाद कर दिया है और अब बस यह देखना है कि कांग्रेस लैजिस्लेचर में हिन्दी को स्वीकार करती है या नही? वह गांधी की ओर अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए एक विदेशी भाषा को भारत जैसे विशाल देश पर थोप देगी? वास्तव में हिन्दुस्ता नी भाषा उर्दु भाषा ही है केवल नाम में भेद है। परन्तु गांधी को इतना साहस नही हुआ कि हिन्दी के मुकाबलें में उर्दु का प्रचार कर सके इसलिए उन्होनें उर्दू को हिन्दुस्ता नी के नाम से थोपने की कुटील चाल चली। उर्दू पर किसी भी देशभक्त ने प्रतिबन्ध नही लगाया परन्तु उर्दू को हिन्दुस्ता नी के नाम से थोपना एक धोखा तथा अपराध है।
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