सामाजिक व्यक्ति का पाखण्ड
शंखनादी सुनील दीक्षित द्वारा
एक दिन संध्या के समय हम अपनी कुटिया के बाहर बैठे थे तभी एक हिरन डरा हुआ भागता हुआ हमारे पास आया और उसने निवेदन किया भाई हमारी जान बचा लो, हमारा शिकार करने के लिए एक सिंह मेरे पीछे पड़ा हुआ है ! हमने गर्व से कहा कि वत्स बैठो हमारे पास, हम बात करते हैं सिंह से, तभी वो सिंह आ गया और हमारे पास उस हिरन को बैठा देखा तो वो भी सामने बैठ गया और कहा कि आपके पास हमारा भोजन है, आज्ञा दें, हम और हमारे बच्चे भूख से अत्यंत व्याकुल हैं ! हमने उसे प्रवचन देना आरम्भ कर दिया जिसका सार ये था कि मोह माया छोडो, और प्रभु की शरण में आ जाओ, वह सिंह अचरज भरी निगाहों से हमें देखता रहा फिर उसने कहा
- परम आदरणीय
आप ने मोहमाया को छोड़ने के लिए कहा, तो कृपया बताएं हमने उसे अपनाया ही कब था, हमें तो इश्वर ने जैसा बनाया हम तो वैसे ही हैं आज तक, कोई पाखण्ड नहीं रहता व्यवहार में, मानव की बात दूसरी है वो जीवन पर्यंत सामाजिक दबाव के कारण पाखण्ड में आकंठ डूबा रहता है और अंत समय में सारे सुख भोगने के पश्चात प्रभुभक्ति में आता है अपने किये हुए कर्मो के पश्चाताप के लिए,
परन्तु हम आपका आदर करते हैं इसलिय हम आपकी बात मानते हैं, हमें तो केवल अपने प्राणों से ही मोह माया है अतः हम अपने प्राण त्याग रहें हैं
उसका जवाब सुन कर हम स्तब्ध रह गए और जब तक हम रोकते तब तक उसने प्राण त्याग दिए, और हम भी इधर अपना मानसिक संतुलन खो बैठे कुंठा के कारण और पागल हो कर, वन्य जीवों का शिकार हो कर मृत्यु को प्राप्त हुए,
ये लघु कथा आपको कैसी लगी, कृपया टिप्पड़ी करें !
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शंखनादी सुनील दीक्षित (Advocate)
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