रविवार, जून 30, 2013

आखिर कब तक चुप रहेगा हिन्दू????

आखिर कब तक चुप रहेगा हिन्दू?????<
श्री राम का जन्म स्थान तम्बू में - हिन्दू चुप.

कैलाश मानसरोवर जाने के लिए चीन की अनुमति - हिन्दू चुप.

कश्मीर में अलग संविधान और अलग झंडा - हिन्दू चुप.

सभी कश्मीरी पंडितो को अपनी जन्मभूमि से खदेड़ दिया गया - हिन्दू चुप.

लाखो बोडो को आसाम में अपनि जन्मभूमि से खदेड़ दिया गया - हिन्दू चुप.

वंदे मातरम का बार बार अपमान - हिन्दू चुप.

संस्कृत की उपेक्षा और उर्दू का मान सम्मान - हिन्दू चुप.

जगह जगह कत्तल खाने - हिन्दू चुप.

आदिवासियों का ईसाईयो
द्वारा धर्मपरिवर्तन - हिन्दू चुप.

पोप का भारत आकर सम्पूर्ण भारत का ईसाईकरण करने का भाषण - हिन्दू चुप.

तेजोमहालय शिव मंदिर को ताजमहल कब्र बनाया गया- हिन्दू चुप.

ध्रुव स्तंभ का क़ुतुब मीनार के रूप में जाना गया- हिन्दू चुप.

सनातन भारत को इंडिया के नाम से जाना जाए - हिन्दू चुप.

राम सेतू तोडने कि साजीश - हिन्दू चुप.

जाकीर नालायक, ओवैसी और मुल्लो द्वारा हिन्दू देवी देवताओं पर कीचड़ उछालना - हिन्दू चुप.

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर की जेल में रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.

भाई राजीव दीक्षित जी का रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.

लाल बहादुर शास्त्री जी का रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.

सुभाष चंद्र बोस आजादी के बाद १९८५ तक चुप कर गुमनाम जिंदगी जीते रहे - हिन्दू चुप.

चंद्रगुप्त सीरियल का रहस्यमय ढंग से बंद होना - हिन्दू चुप.

शिवाजी सीरियल का रहस्यमय ढंग से बंद होना - हिन्दू चुप.

पोर्न स्टार सनी लिओन की फिल्म का खुले आम प्रदर्शन - हिन्दू चुप.
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भविष्य में :-

कश्मीर का विभाजन - ?

आसाम का विभाजन - ?

केरल का विभाजन - ?

हिन्दू चुप.
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मित्रों कुछ दिनों में एक नया घोटाला
होने वाला है .. . . . . . . . . . . . . . . . . . . ............................... . . . . उत्तराखंड आपदा घोटाला ... !!!
तब भी रहेंगे हिन्दु चुप ....

और कब तक चुप रहेंगे हम हिन्दू ?
जागो हिन्दुओ जागो!
सेक्युलर नहीं सनातनी बनो!
Brijmohan Sharma
प्रस्तुति:-नीरज कौशिक

पश्चिमी देश पिघला रहे आर्क्टिक की बर्फ

***********पश्चिमी देश पिघला रहे आर्क्टिक की बर्फ*********


मित्रो आपने सूना होगा आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है और इसका सारा दोष ग्लोबल वार्मिंग के मत्थे मढ दिया जाता है!!

असल में क्या आपको पता है आर्टिक के बीचे व अंटार्कटिक में भी बर्फ की ठोस परत/समुद्र के नीचे विशाल तेल भण्डार है ..एवं नेचुरल gas के भी बड़े बड़े भूगर्भीय स्रोत है !!

इनको पाने के लिए बर्फ हटाई जा रही है ...उसकी लिए भीमकाय मशीन गर्मी पैदा करके बर्फ पिघला रही है ..इससे आने वाले दस सालो में पृथ्वी पर बुरा असर होगा

मित्रो अगले कुछ सालो में तेल समाप्त हो जाएगा या कम हो जाएगा आपको बताया जाता है ..असल में वो कम नहीं हो रहा न ख़तम उसको जलाया जा रहा है ..पिछले दस सालो से तेल कुओ में आग लगने की घटना कैसे बढ़ गई ?? अमेरिका ने इराक पर हमला किया तो तेल कुओ में आग क्यूँ लगाईं ??

कुछ लोग कहेंगे कि आग तो ईराकियो ने खुद लगाईं थी ताकि तेल अमेरिका के हाथ न लगे ..पर अमेरिका पर तो कोई फर्क पडा नहीं ???और आग लगानी ही थी तो सब में लगा देते ?? 2-4 में क्यूँ लगाईं ...

क्यूंकि इन तेल कुओ को जो खाड़ी देशो के पास है उन्हें पश्चिमी देश समाप्त करना चाहते है...कारण यह है कि जिस देश के पास तेल होगा ..दुनिया में उसकी चलेगी ..वो देश अमीर होगा ..तेल कंपनिया अमीर होंगी ... दूसरे बडे तेल भण्डार आर्कटिक के गर्भ में छिपे पड़े है और रूस/अमेरिका समेत तमाम आर्कटिक के पास वाले देश इन्हें कब्जाना चाहते है ...

साथ ही अरब के तेल भंडारों को समाप्त कर दिया जाय ...तो सोने पर सुहागा ..दुनिया इन देशो पर तेल के लिए निर्भर हो जाएगी ..मित्रो ये उसी दिमाग से काम कर रहे है जिस दिमाग ने भारत समेत दुनिया के तमाम देशो को गुलाम बनाया!!

अब कोई पूछेगा ... कि भाई आर्कटिक में बर्फ कैसे कम हो रही है ??तो क्या बहाना मारे...मार दिया ग्लोबल वार्मिंग का बहाना

जबकि ग्लोबल वार्मिंग है तो हिमालय ही बर्फ/ग्लेशियर भी अगले दस सालो में आर्क्टिक की तरह पिघल जाने चाहिए ..पर वो तो पिघल नहीं रहे!!

अब आप समझ सकते है कि अभी हाल ही में मुजफ्फरनगर के उस मोहित नाम लड़के के compressed एयर इंजन को मीडिया ने क्यूँ नहीं दिखाया ? जो बिना तेल के सिर्फ दवाब वाली हवा से चलता है ??? क्यूँ ?? क्यूंकि ये तेल कंपनियों के लिए अच्छा नहीं होगा ...फिर दुनिया पर पश्चिमी देश राज कैसे करेंगे ?? मित्रो कुछ लिंक दे रहा हूँ...

इन्हें दोबारा पढियेगा .हो सके तो पोस्ट share करीयेगा ..क्यूंकि आपने share/copy नहीं किया तो आर्कटिक की सच्चाई उसी बर्फ के नीचे दफ़न हो जाएगी

हमारा देश सुरक्षित रहे ..यही कामना है ..जय हिन्द ..जय भारत

http://en.wikipedia.org/wiki/Petroleum_exploration_in_the_Arctic

http://www.guardian.co.uk/environment/2012/oct/10/europe-rejects-ban-arctic-oil-drilling

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=569250083106260&set=a.371232699574667.89477.355143314516939&type=1&relevant_count=1

शुक्रवार, जून 28, 2013

मीडिया की भी सच्चाई

मीडिया की भी सच्चाई ....
.. .. .. .. ... ...
सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने भारत में हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद तक इस कार्य के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया. फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य चकित रह गया की भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… फीर एक लम्बा अध्ययन किया उसमे निम्नलिखित जानकारी निकल कर आई जो आज सार्वजानिक कर रहा हु....

विभिन्न मीडिया समूह और उनका आर्थिक श्रोत……
१- दि हिन्दू … जोशुआ सोसाईटी, बर्न, स्विट्जरलैंड, इसके संपादक एन राम, इनकी पत्नी ईसाई में बदल चुकी है.
२- एन डी टी वी… गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन, यूरोप
३- सी.एन.एन, आई.बी.एन.७, सी.एन.बी.सी…१००% आर्थिक सहयोग द्वारा साउदर्न बैपिटिस्ट चर्च
४- दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नवभारत, टाइम्स नाउ… बेनेट एंड कोल्मान द्वारासंचालित, ८०% फंड वर्ल्ड क्रिस्चियन काउंसिल द्वारा, बचा हुआ२०% एक अँगरेज़ और इटैलियन द्वारा दिया जाता है. इटैलियन व्यक्ति का नाम रोबेर्ट माइन्दो है जो यु.पी.ए. अध्यक्चा सोनिया गाँधी का निकट सम्बन्धी है.
५-हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान… मालिक बिरला ग्रुप लेकिन टाइम्स ग्रुप के साथ जोड़ दिया गया है...
६- इंडियन एक्सप्रेस… इसे दो भागो में बाट दिया गया है, दि इंडियन एक्सप्रेस और न्यू इंडियनएक्सप्रेस(साउद­र ्न एडिसन) - Acts Ministries has major stake in the Indian express and later is still with the Indian कौन्तेर्पर्त
७- दैनिक जागरण ग्रुप… इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा में सांसद है… यह एक मुस्लिम्वादी पार्टी है.
८- दैनिक सहारा .. इसके प्रबंधन सहारासमूह देखती है इसके निदेशक सुब्रोतो राय भी समाजवादी पार्टी के बहुत मुरीद है
९- आंध्र ज्योति..हैदराबाद की एक मुस्लिम पार्टी एम् आई एम् (MIM ) ने इसे कांग्रेस के एक मंत्री के साथ कुछ साल पहले खरीद लिया
१०- स्टार टीवी ग्रुप…सेन्ट पीटर पोंतिफिसिअल चर्च, मेलबर्न,ऑस्ट्रेलिया
११- दि स्टेट्स मैन… कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित

इस तरह से एक लम्बा लिस्ट हमारे सामने है जिससे ये पता चलता है की भारत की मीडिया भारतीय बिलकुल भी नहीं है.. और जब इनकी फंडिंग विदेश से होती है है तो भला भारत के बारे में कैसे सोच सकते है...
अपने को पाकसाफ़ बताने वाली मीडिया के भ्रस्ताचार की चर्चा करना यहाँ पर पूर्णतया उचित ही होगा,,,,

बरखा दत्त जैसे लोग जो की भ्रस्ताचार का रिकार्ड कायम किया है उनके भ्रस्ताचरण की चर्चा दूर दूर तक है, इसके अलावा आप लोगो को सायद न मालूम हो पर आपको बता दू की ये १००% सही बात है की NDTV की एंकर बरखादत्त ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है....
प्रभु चावला जो की खुद रिलायंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला फिक्स कराते हुए पकडे गए उनके सुपुत्र आलोक चावला, अमर उजाला के बरेली संस्करण में घोटाला करते हुए पकडे गए.
दैनिक जागरण ग्रुप ने अवैध तरीके से एक ही रजिस्ट्रेसन नम्बर पर बिहार में कई जगह पर गलत ढंग से स्थानीय संस्करण प्रकाशित किया जो की कई साल बाद में पकड़ में आया और इन अवैध संस्करणों से सरकार को २०० करोड़ का घटा हुआ.
दैनिक हिन्दुस्तान ने भी जागरण के नक्शे कदम पर चलते हुए यही काम किया उसने भी २०० करोड़ रुपये का नुकशान सरकार को पहुचाया इसके लिए हिन्दुस्तान के मुख्य संपादक शशी शेखर के ऊपर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है..
शायद यही कारण है की भारत की मीडिया भी काले धन, लोकपाल जैसे मुद्दों पर सरकार के साथ ही भाग लेतीहै.....
सभी लोगो से अनुरोध है की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो के पास पहुचाये ताकि दूसरो को नंगा करने वाले मीडिया की भी सच्चाई का पता लग सके.

इंदिरा गाँधी - एक अफगानी विषकन्या, उसका पाकिस्तान प्रेम

*** इंदिरा गाँधी - एक अफगानी विषकन्या,
उसका पाकिस्तान प्रेम,
भारत के हिन्दुओ के दमन का षड्यंत्र ***



इंदिरा गाँधी उसके जर्मन टीचर के साथ यौन-सम्बन्ध करते हुए नंगी पकड़ी गई थी आनंद विहार में(उस समय नेहरु प्रधानमन्त्री था). ये रंडी भारत की प्रधानमन्त्री बनी. इससे पता चलता है की बाकि कांग्रेस नेताओ का कैसा चरित्र रहा होगा जो उसके साथ बैठते थे.

1970 में IBM भारत आई थी, परन्तु इंदिरा गाँधी ने हिन्दु व्यापारी परिवारों को होने वाले सम्भावित लाभो को भांप कर, उसको लात मार दी. क्युकी IBM आते ही देश की हिन्दू जनता समझदार बनती, पढती, लिखती और मुग़ल कांग्रेस की असलियत पहचान जाती. कांग्रेस ने सदैव NRIs (भारतीय) को भारत से दूर रखा.

1982 में INTEL भारत आई अपनी सेमिकंडक्टर फेक्टरी लगाने. उसको भी इंदिरा रंडी ने लात मार दी. वही INTEL को फिर चीन, कोरिया, ताइवानने बुला लिया और वो राजा बन गये सेमीकंडक्टर तकनीक के. आज भारत उसी इन्ही देशो से सभी इलेक्ट्रोनिक वस्तुए, मशीने, मशीन में लगने वाली चिप्स, हार्ड-डिस्क, मेमरी चिप इम्पोर्ट करता है.

1978 में इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली) के रक्षा विशेषज्ञों ने कहा की पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने की ओर बढ़ रहा है, हमे उसको रोकना होगा इससे पहले की वो बना ले. इसपर इंदिरा ने कहा - "चुप बैठो." फिर जब कांग्रेस का दबाव बढने लगा, तो इंदिरा ने सिखों के खालिस्तानियो को समर्थन देकर उनकी मूवमेंट खड़ी कर दी, ताकि कांग्रेस का ध्यान भटक जाए. इसी खालिस्तानी मूवमेंट की आड़ में पाकिस्तान परमाणु शक्ति बन गया. जो लोग वाजपेयी को दोष देते है पाकिस्तान को परमाणु शक्ति होने के लिए, उन मूर्खो को ये नही पता की पाकिस्तान 1986 में ही परमाणु हथियार प्राप्त कर चूका था. कांग्रेस में बैठे मुस्लिमो ने सदैव पाकिस्तान को हर रूप से सहायता की है और आज भी करते है खुलकर.

इंदिरा ने भारत को सदैव पाकिस्तान के स्तर पर रखा, ताकि भारत की शक्ति कभी आगे ना बढ़े. जब तक इंदिरा भारत में रही, भारत पाकिस्तान को आज कांग्रेस फिर से पाकिस्तानियों को बोलीवुड में वीजा देकर, भारत में पाकिस्तानी FDI खोलकर फिरसे गांड मार रही है भारत की, और हिन्दू सपने देख रहे है दक्षिण-एशिया एकता के जो एक मूर्खता है.

*जो लोग कहते घूमते है की हमको अफगानी मुस्लिमो को भारत बुलाना चाहिए उनसे पारिवारिक, बोलीवुड सम्बन्ध बनाने चाहिए, उनको उपर लिखी वस्तुस्तिथि पढनी चाहिए. मुस्लिम अफगानी हो या पाकिस्तानी, जब वो एक हिन्दू-प्रदेश में पैर रखता है तो उसका उद्देश्य केवल मुस्लिमो की शक्ति बढ़ाना होता है. आमिर खान भी एक अफगानी पठान है. सबको पता है वो कितना बड़ा ******. है

गुरुवार, जून 27, 2013

टिहरी बाँध के टूटने पर समूचा आर्यावर्त, उसकी सभ्यता नष्ट हो जाएगी by शंखनादी सुनील


यह भारत की एक प्रमुख नदी घाटी परियोजना हैं ।टिहरी बांध दो महत्वपूर्ण हिमालय की नदियों भागीरथी तथा भीलांगना के संगम पर बना है  टिहरी बांध करीब 260.5 मीटर ऊंचा, जो की भारत का अब तक का सबसे ऊंचा बाँध है      




   प्रो. टी. शिवाजी राव भारत के प्रख्यात भू-वैज्ञानिक हैं। भारत सरकार ने टिहरी बांध परियोजना की वैज्ञानिक-विशेषज्ञ समिति में इन्हें भी शामिल किया था। प्रो. शिवाजी राव का मानना है कि उनकी आपत्तियों के बावजूद यह परियोजना चालू रखी गयी।गंगा भारतवासियों की आस्था है। भारत की आध्यात्मिक शक्ति एवं राष्ट्रीय परम्परा का अंग है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पवित्र गंगा को कुछ लोग सिर्फ भौतिक स्रोत के रूप में देखते हैं। सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिए वे टिहरी बांध के पीछे गंगा को अवरुद्ध कर रहे हैं। मेरा मानना है कि सिंचाई और विद्युत उत्पादन वैकल्पिक तरीकों से भी हो सकता है। इसके कई विकल्प हैं, लेकिन गंगा का कोई विकल्प नहीं है।            

सन. 1977-78 में टिहरी परियोजना के विरुद्ध आन्दोलन हुआ था। तब श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सन् 1980 में इस परियोजना की समीक्षा के आदेश दिए थे। तब केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित भूम्बला समिति ने सम्यक विचारोपरांत इस परियोजना को रद्द कर दिया था।अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जहां भी चट्टान आधारित बांध बनते हैं वे अति सुरक्षित क्षेत्र में बनने चाहिए। प्रसिद्ध अमरीकी भूकम्प वेत्ता प्रो. ब्राने के अनुसार, "यदि उनके देश में यह बांध होता तो इसे कदापि अनुमति न मिलती।" क्योंकि यह बांध उच्च भूकम्प वाले क्षेत्र में बना है। ध्यान रहे कि 1991 में उत्तरकाशी में जो भूकम्प आया था, वह रिक्टर पैमाने पर 8.5 की तीव्रता का था। टिहरी बांध का डिजाइन, जिसे रूसी एवं भारतीय विशेषज्ञों ने तैयार किया है, केवल 9 एम.एम. तीव्रता के भूकम्प को सहन कर सकता है। परन्तु इससे अधिक पैमाने का भूकम्प आने पर यह धराशायी हो जाएगा। मैं मानता हूं कि यह परियोजना भयानक है, खतरनाक है, पूरी तरह असुरक्षित है। भूकम्प की स्थिति में यदि यह बांध टूटा तो जो तबाही मचेगी, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। इस बांध के टूटने पर समूचा आर्यावर्त, उसकी सभ्यता नष्ट हो जाएगी। प. बंगाल तक इसका व्यापक दुष्प्रभाव होगा। मेरठ, हापुड़, बुलन्दशहर में साढ़े आठ मीटर से लेकर 10 मीटर तक पानी ही पानी होगा। हरिद्वार, ऋषिकेश का नामोनिशां तक न बचेगा। मेरी समझ में नहीं आता कि केन्द्र व प्रदेश सरकार ने इसे कैसे स्वीकृति दी? जनता को इसके कारण होने वाले पर्यावरणीय असन्तुलन एवं हानि के बारे में अंधेरे में रखा गया है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब परियोजना की समीक्षा के आदेश दिए थे तो इसके पीछे उनकी यही सोच थी कि जनता के हितों और पर्यावरण को ध्यान में रखकर ही इस परियोजना पर अन्तिम फैसला लिया जाए। देश के अनेक वैज्ञानिकों व अभियंताओं ने भी इस परियोजना का विरोध किया है। मुझे तो लगता है कि टिहरी बांध सिर्फ एक बांध न होकर विभीषिका उत्पन्न करने वाला एक "टाइम बम" है।                

गनीमत है कि जिस नैनीताल में हम पढ़े लिखे, वह राजधानी नहीं बना, वरना विनाशकारी पौधे क्या गुल खिलाते कहना मुश्किल है। नैनी झील पर  पर हमारे मित्र प्रयाग पांडेय की रपट का लोगों ने नोटिस नहीं लिया और न ही लोग नैनीताल समाचार या पहाड़ को गंभीरता से पढ़ते। अज्ञानता से हम विकास के कार्निवाल में खुशा खुशी मरने को तैयार हैं।नैनीताल की सुंदरता पर चार चांद लगाने वाली नैनी झील का अस्तित्व खतरे में है। पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र इस झील का पानी तेजी से खत्म हो रहा है। झील से करीब एक किलोमीटर दूर पानी का एक स्रोत फूट पड़ा है, जिससे रोजाना करीब चार लाख 32 हजार लीटर पानी यूं ही बह जा रहा है। झील पर उपजे खतरे के पूरे अध्ययन व समाधान के लिए उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॅास्ट) ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआइएच) को पत्र लिखा है। पानी का यह स्रोत नैनी झील के निचले क्षेत्र में मई माह में फूटा है। इससे 300 एलपीएम (लीटर प्रति मिनट) पानी निकल रहा है। पानी की इतनी तेज रफ्तार को देखकर वैज्ञानिकों के पेशानी पर बल पड़ गए हैं। यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल का कहना है कि झील के निचले हिस्से पर कोई दरार आने की आशंका है। अन्यथा इतनी रफ्तार में झील के निचले क्षेत्र में पानी का स्रोत न फूटता। यदि झील के मुख्य स्रोत व बर्बाद हो रहे पानी के बीच का अंतर बढ़ गया तो आने वाले सालों में नैनी का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। डॉ. डोभाल के मुताबिक झील से पानी का रिसाव रोकने के लिए एनआइएच के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीसी गोयल को पत्र लिखा है। यूकॉस्ट के आग्रह पर एनआइएच ने सकारात्मक रुख दिखाया है और संस्थान के विज्ञानियों ने दो माह के भीतर अध्ययन पूरा करने की बात कही है।             

हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र काफी कच्चा हैं। इसलिए गंगा में बहने वाले जल में मिट्टी की मात्रा अधिक होती हैं देश की सभी नदियों से अधिक मिट्टी गंगा जल में रहती हैं। अत: जब गंगा के पानी को जलाशय मे रोका जाएगा तो उसमें गाद भरने की दर देश के किसी भी अन्य बांध में गाद भरने की दर से अधिक होगी। दूसरी ओर, टिहरी में जिस स्थान पर जलाशय बनेगा वहाँ के आस-पास का पहाड़ भी अत्यंत कच्चा हैं। जलाशय में पानी भर जाने पर पहाड़ की मिट्टी कटकर जलाशय में भरेगी। अर्थात गंगा द्वारा गंगोत्री से बहाकर लायी गयी मिट्टी तथा जलाशय के आजू-बाजू के पहाड़ से कटकर आयी मिट्टी दोनों मिलकर साथ-साथ जलाशय को भरेंगे। गाद भरने की दर के अनुमान के मुताबिक टिहरी बांध की अधिकतम उम्र 40 वर्ष ही आँकी गई हैं। अत: 40 वर्षो के अल्प लाभ के लिए करोड़ों लोगों के सिर पर हमेशा मौत की तलवार लटकाए रखना लाखों लोगों को घर-बार छुड़ाकर विस्थापित कर देना एवं भागीरथी और भिलंगना की सुरम्य घाटियो को नष्ट कर देना पूरी तरह आत्मघाती होगा। 

टिहरी बांध से होने वाले विनाश में एक महत्वपूर्ण पहलू गंगा का भी हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गंगा के बहते हुए जल में ही श्राद्ध और तर्पण जैसे धार्मिक कार्य हो सकते है लेकिन बांध बन जाने से गंगा का प्रवाह जलाशय में कैद हो जाएगा हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गंगा का जल जितनी तेज गति से बहता है उतना ही शुद्ध होता हैं। यही गतिमान जल गंगा में बाहर से डाली गई गंदगी को बहाकर ले जाता हैं। गंगा भारत की पवित्रतम् नदी तो हैं ही, हमारी सभ्यता-संस्कृति की जननी भी हैं। प्रत्येक भारतवासी के मन में गंगा में एक डुबकी लगाने या जीवन के अंतिम क्षणों में गंगा जल की एक बूंद को कंठ से उतारने की ललक रहती हैं। जब भी कोई भारतवासी किसी अन्य नदी में स्नान करता हैं तो सर्वप्रथम वह गंगा का स्मरण करता हैं। यदि वह गंगा से दूर रहता हैं तो मन में सदैव गंगा में स्नान करने की इच्छा रखता हैं। जब वह अपने मंतव्य में सफल हो जाता हैं तो गंगा के परम पवित्र जल में स्नान करने के पश्चात अपने साथ गंगा जल ले जाना नहीं भूलता और घर जाकर उसे सुरक्षित स्थान पर रख देता हैं। जब भी घर में कोई धार्मिक अनुष्ठान हो तो इसी गंगा जल का प्रयोग होता हैं।

राष्ट्र की एकता और अखंडता में गंगा का बहुत महत्वपूर्ण योगदान हैं। शास्त्रों के अनुसार गंगोत्री से गंगा जल ले जाकर गंगा सागर में चढ़ाया जाता हैं और फिर गंगा सागर का बालू लाकर गंगोत्री में डाला जाता हैं। इस पूरी प्रक्रिया में व्यक्ति को गंगोत्री से गंगासागर और फिर गंगासागर से गंगोत्री तक की यात्रा करनी होती हैं। देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक की यह यात्रा ही राष्ट्रीय एकता के उस ताने-बाने को बुनती हैं जिसमें देश की धरोहर बुनी हुई हैं। गंगा हमारे राष्ट्र की जीवनधारा हैं और इसे रोकना राष्ट्र के जीवन को रोकने जैसा हैं। 1914-16 में स्व. पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने अंग्रेज़ो द्वारा भीमगौड़ा में बनाए जाने वाले बांध के खिलाफ आंदोलन किया था। इस आंदोलन से पैदा हुए जन आक्रोश के कारण बाँध बनाने का फैसला रद्द कर दिया था। मालवीय जी ने अपनी मृत्यु से पूर्व श्री शिवनाथ काटजू को लिखे पत्र में कहा था कि “गंगा को बचाए रखना।


विशेषज्ञों की मानें तो नैनी झील में हर साल 67 घनमीटर रेत जमा होने से उसकी गहराई घट रही है। घरेलू कूड़े-कचरे के कारण झील में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। झील का पानी प्रदूषित होने से बीमारियां फैल रही हैं। यदि झील संरक्षण के लिए दीर्घकालिक उपाय नहीं किए गए तो अगले 300 सालों में नैनी झील का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। नैनीताल शहर के एक होटल में कुमाऊं विश्वविद्यालय, जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ पो‌र्ट्सडम व प्राइवेट संस्था हाईड्रोलॉजिकल कंसलटेंसी के नुमाइंदों की झील संरक्षण पर बैठक हुई। बैठक में डीएसबी के प्रो. पीसी तिवारी ने बताया कि जर्मन सरकार के दुनियाभर में जल संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत भूगोल विभाग ने नैनी झील समेत जिले की अन्य झीलों का अध्ययन किया। जर्मन विशेषज्ञों के सहयोग से झील संरक्षण के प्रयास शुरू किए गए हैं। इसका खर्च भी जर्मन सरकार वहन करेगी। परियोजना के अंतर्गत पब्लिक प्राइवेट पीपुल्स पार्टनरशिप से झीलों का संरक्षण किया जाएगा। इसमें जल संस्थान, जल निगम का सहयोग भी लिया जाएगा। जर्मन विशेषज्ञ प्रो. ओसव‌र्ल्ड ब्लूमिस्टिन व ओलेफ ग्रेगोरी ने झील संरक्षण के लिए तकनीकी पक्ष की जानकारी दी। बैठक में डीएसबी परिसर के निदेशक प्रो. बीआर कौशल, प्रो. सीसी पंत, एकेडमिक स्टाफ कालेज के निदेशक प्रो. बीएल साह, प्रो. आरके पांडे, प्रो. आरसी जोशी, प्रो. गंगा बिष्ट, प्रो. पीएस बिष्ट, प्रो. बीएस कोटलिया, प्रो. पीके गुप्ता, जल निगम के मुख्य अभियंता सुशील कुमार, जल संस्थान के एई एसके गुप्ता, जेई रमेश चंद्रा आदि मौजूद थे। संचालन डॉ. भगवती जोशी ने किया।

बुधवार, जून 26, 2013

हिंदुस्तान के गौरवशाली ऋषि-मुनियों का वैज्ञानिक इतिहास !

हिंदुस्तान के गौरवशाली ऋषि-मुनियों का वैज्ञानिक इतिहास !

जिनमे से कुछ का विवरण यहाँ हम दे रहें है, हिंदू वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में
विज्ञान बताया गया है । केवल सौ वर्षोंमें
पृथ्वीको नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लाने
वाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत
प्रगतिशील एवं एक भी समाजविघातक
शोध न करनेवाला प्राचीन ‘हिंदू विज्ञान’
था ।

पूर्वकालके शोधकर्ता हिंदु ऋषियों की बुद्धि
की विशालता देखकर आजके वैज्ञानिकोंको
अत्यंत आश्चर्य होता है । पाश्चात्त्य
वैज्ञानिकोंकी न्यूनता सिद्ध करनेवाला शोध
सहस्रों वर्ष पूर्व ही करनेवाले हिंदु ऋषि
मुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं ।

*गुरुत्वाकर्षणका गूढ उजागर करनेवाले भास्कराचार्य !

भास्कराचार्य जी ने अपने 'सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में गुरुत्वाकर्षण के
विषयमें लिखा है कि, ‘पृथ्वी अपने आकाश
का पदार्थ स्व-शक्तिसे अपनी ओर खींच
लेती हैं । इस कारण आकाश का पदार्थ
पृथ्वीपर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है
कि, उन्होंने गुरुत्वाकर्षणका शोध न्यूटनसे
५०० वर्ष पूर्व लगाया ।

* परमाणुशास्त्रके जनक आचार्य कणाद !

अणुशास्त्रज्ञ जॉन डाल्टनके २५०० वर्ष
पूर्व आचार्य कणादजीने बताया कि, ‘द्रव्यके
परमाणु होते हैं ।

’विख्यात इतिहासज्ञ टी.एन्. कोलेबुरक
जी ने कहा है कि, ‘अणुशास्त्रमें आचार्य
कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ
युरोपीय शास्त्रज्ञोंकी तुलनामें विश्वविख्यात थे ।’

* कर्करोग प्रतिबंधित करनेवाला पतंजली
ऋषि का योगशास्त्र !

‘पतंजलीऋषि द्वारा २१५० वर्ष पूर्व
बताया ‘योगशास्त्र’, कर्करोग जैसी दुर्धर
व्याधिपर सुपरिणाम कारक उपचार है ।
योगसाधनासे कर्करोग प्रतिबंधित होता है।’

- भारत शासनके ‘अखिल भारतीय
आयुर्विज्ञान संस्था’के (‘एम्स’के) ५ वर्षोंके
शोधका निष्कर्ष !

* औषधि-निर्मितिके पितामह : आचार्य
चरक !

इ.स. १०० से २०० वर्ष पूर्व कालके
आयुर्वेद विशेषज्ञ चरकाचार्यजी ।
‘चरकसंहिता’ प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथ के
निर्माणकर्ता चरकजीको ‘त्वचा चिकित्सक’
भी कहते हैं ।

आचार्य चरकने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र,
रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र
इत्यादिके विषयमें अगाध शोध किया था ।
मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि
दुर्धररोगोंके निदान एवं औषधोपचार
विषयक अमूल्य ज्ञानके किवाड उन्होंने
अखिल जगतके लिए खोल दिए ।

चरकाचार्यजी एवं सुश्रुताचार्यजी ने इ.स.
पूर्व ५००० में लिखे गए अर्थववेदसे ज्ञान
प्राप्त करके ३ खंडमें आयुर्वेदपर प्रबंध लिखे ।

* शल्यकर्ममें निपुण महर्षि सुश्रुत !

६०० वर्ष ईसापूर्व विश्वके पहले
शल्यचिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत
शल्यचिकित्साके पूर्व अपने उपकरण
उबाल लेते थे । आधुनिक विज्ञानने इसका
शोध केवल ४०० वर्ष पूर्व किया ! महर्षि
सुश्रुत सहित अन्य आयुर्वेदाचार्य
त्वचारोपण शल्यचिकित्साके साथ ही
मोतियाबिंद, पथरी, अस्थिभंग इत्यादिके
संदर्भ में क्लिष्ट शल्यकर्म करनेमें निपुण
थे । इस प्रकारके शल्यकर्मोंका ज्ञान
पश्चिमी देशोंने अभीके कुछ वर्षोंमें
विकसित किया है !

महर्षि सुश्रुतद्वारा लिखित ‘सुश्रुतसंहिता'
ग्रंथमें शल्य चिकित्साके विषयमें विभिन्न
पहलू विस्तृतरूपसे विशद किए हैं । उसमें
चाकू, सुईयां, चिमटे आदि १२५ से भी
अधिक शल्यचिकित्सा हेतु आवश्यक
उपकरणोंके नाम तथा ३०० प्रकार के
शल्यकर्मोंका ज्ञान बताया है ।

* नागार्जुन

नागार्जुन, ७वीं शताब्दीके आरंभके रसायन
शास्त्रके जनक हैं । इनका पारंगत वैज्ञानिक
कार्य अविस्मरणीय है ।

विशेष रूपसे सोने धातुपर शोध किया एवं
पारे पर उनका संशोधन कार्य अतुलनीय
था । उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर
सतत १२ वर्ष तक संशोधन किया ।

पश्चिमी देशोंमें नागार्जुनके पश्चात जो भी
प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन
के सिद्धांतके अनुसार ही रखा गया |

* बौद्धयन

२५०० वर्ष पूर्व (५०० इ.स.पूर्व) ‘पायथागोरस सिद्धांत’की खोज करनेवाले
भारतीय त्रिकोणमितितज्ञ । अनुमानतः
२५०० वर्षपूर्व भारतीय त्रिकोणमितिज्ञोंने
त्रिकोणमितिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण शोध
किया । विविध आकार- प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय
रचना- पद्धति बौद्धयनने खोज निकाली ।

दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों
का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने
क्षेत्रफलका ‘समकोण’ समभुज चौकोन
बनाना और उस आकृतिका उसके
क्षेत्रफलके समानके वृत्तमें परिवर्तन करना,
इस प्रकारके अनेक कठिन प्रश्नों को
बौद्धयनने सुलझाया ।

* ऋषि भारद्वाज

राइट बंधुओंसे २५०० वर्ष पूर्व वायुयान
की खोज करनेवाले भारद्वाज ऋषि !
आचार्य भारद्वाजजीने ६०० वर्ष इ.स.पूर्व
विमानशास्त्रके संदर्भमें महत्त्वपूर्ण
संशोधन किया । एक ग्रहसे दूसरे ग्रहपर
उडान भरनेवाले, एक विश्वसे दूसरे विश्व
उडान भरनेवाले वायुयानकी खोज, साथ
ही वायुयानको अदृश्य कर देना इस प्रकार
का विचार पश्चिमी शोधकर्ता भी नहीं कर
सकते । यह खोज आचार्य भारद्वाज जी ने
कर दिखाया ।

पश्चिमी वैज्ञानिकोंको महत्वहीन सिद्ध
करनेवाले खोज, हमारे ऋषि-मुनियोंने
सहस्त्रों वर्ष पूर्व ही कर दिखाया था । वे
ही सच्चे शोधकर्ता हैं ।

* गर्गमुनि

कौरव-पांडव कालमें तारों के जगत के
विशेषज्ञ गर्ग मुनिजीने नक्षत्रोंकी खोज की
। गर्गमुनिजीने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के
जीवन के संदर्भमें जो कुछ भी बताया वह
शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हुआ । कौरव-
पांडवोंका भारतीय युद्ध मानव संहारक
रहा, क्योंकि युद्धके प्रथम पक्षमें तिथि क्षय
होने के तेरहवें दिन अमावस थी । इसके
द्वितीय पक्षमें भी तिथि क्षय थी । पूर्णिमा
चौदहवें दिन पड गई एवं उसी दिन
चंद्र ग्रहण था, यही घोषणा गर्ग मुनि जीने
भी की थी ।

तो मित्रो यही है हमारे मूर्धन्य वैज्ञानिक
ऋषि-मुनि.....

वंदे वैदिक भारत
जय अखंड भारत

महात्मा गांधी और मनुबेन: एक अनकही कहानी

महात्मा गांधी और मनुबेन: एक अनकही कहानी

उदय माहूरकर | सौजन्‍य: India Today | नई दिल्‍ली, 26 जून 2013 | अपडेटेड: 05:41 IST

महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल डाला. वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में ‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है. 1946 में सिर्फ 17 वर्ष की आयु में यह महिला महात्मा की पर्सनल असिस्टेंट बनीं और उनकी हत्या होने तक लगातार उनके साथ रही. फिर भी मनुबेन के नाम से मशहूर मृदुला गांधी ने 40 वर्ष की उम्र में अविवाहित रहते हुए दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा.
1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में मनुबेन किरदार को सुप्रिया पाठक ने निभाया था. मनुबेन के निधन के चार दशक के बाद उनकी दस डायरियां इंडिया टुडे को देखने को मिलीं. गुजराती में लिखी गई और 2,000 पन्नों में फैली इन डायरियों की शुरुआत 11 अप्रैल, 1943 से होती है. गुजराती विद्वान रिजवान कादरी ने इन डायरियों का विस्तार से अध्ययन किया. इनसे पता चलता है कि अपनी सेक्सुअलिटी के साथ गांधी के प्रयोगों का मनुबेन के मन पर क्या असर पड़ा. इनसे गांधी के संपर्क में रहने वाले लोगों के मन में पनपती ईर्ष्या और क्रोध की भावना भी उजागर होती है. इनमें अधिकतर युवा महिलाएं थीं. डायरियों का लेखन उस समय शुरू हुआ जब गांधी के भाई की पोती मनुबेन पुणे में आगा खां पैलेस में नजरबंद गांधी की पत्नी कस्तूरबा की सेवा करने आई थीं. गांधी और कस्तूरबा को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस पैलेस में नजरबंद रखा गया था. बीमारी के अंतिम दिनों में मनुबेन ने कस्तूरबा की सेवा की. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने मनुबेन को एक तरफ धकेल कर अपनी 9 एमएम बरेटा पिस्तौल से गांधी पर तीन गोलियां दागी थीं. उसके 22 दिन बाद मनुबेन ने डायरी लिखना बंद कर दिया.
डायरियों में जगह-जगह हाशिये पर गांधी के हस्ताक्षर हैं. इनसे उनके प्रति समर्पित एक लड़की की छवि उभरती है. 28 दिसंबर,1946 को बिहार के श्रीरामपुर में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने लिखा है, ‘‘बापू मेरी माता हैं. वे ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के माध्यम से मुझे ऊंचे मानवीय फलक पर ले जा रहे हैं. ये प्रयोग चरित्र निर्माण के उनके महायज्ञ के अंग हैं. इनके बारे में कोई भी उलटी-सीधी बात सबसे निंदनीय है.’’ इससे नौ दिन पहले ही मनुबेन गांधी के साथ आईं थीं. उस समय 77 वर्षीय गांधी तत्कालीन पूर्वी बंगाल में नोआखली में हुई हत्याओं के बाद अशांत गांवों में घूम रहे थे. गांधी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक महात्मा गांधी: द लास्ट फेज में इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है, ‘‘उन्होंने उसके लिए वह सब कुछ किया जो एक मां अपनी बेटी के लिए करती है. उसकी पढ़ाई, उसके भोजन, पोशाक, आराम और नींद हर बात का वे ख्याल रखते थे. करीब से देख-रेख और मार्गदर्शन के लिए गांधी उसे अपने ही बिस्तर पर सुलाते थे. मन से मासूम किसी लड़की को अपनी मां के साथ सोने में कभी शर्म नहीं आती.’’ मनुबेन गांधी की प्रमुख निजी सेविका थीं. वे मालिश और नहलाने से लेकर उनका खाना पकाने तक सारे काम करती थीं.
इन डायरियों में डॉ. सुशीला नय्यर जैसी महात्मा गांधी की महिला सहयोगियों के जीवन का भी विस्तार से वर्णन है. प्यारेलाल की बहन सुशीला गांधी की निजी चिकित्सक थीं जो बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनीं. उनके अलावा पंजाबी मुस्लिम महिला बीबी अम्तुस्सलाम भी इन महिलाओं में शामिल थीं. ब्रह्मचर्य के महात्मा के प्रयोगों में शामिल रहीं महिलाओं के बीच जबरदस्त जलन की झलक भी इन डायरियों में मौजूद है. मनुबेन ने 24 फरवरी, 1947 को बिहार के हेमचर में अपनी डायरी में दर्ज किया, ‘‘आज बापू ने अम्तुस्सलाम बेन को एक कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि ब्रह्मचर्य के प्रयोग उनके साथ शुरू न होने से वे कुछ नाराज हैं.’’
2010 में दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिलीं इन डायरियों में यह भी लिखा है कि 47 वर्ष की आयु में भी प्यारेलाल मनुबेन से शादी करने को लालायित थे और सुशीला इसके लिए दबाव डाल रही थीं. 2 फरवरी, 1947 को बिहार के दशधरिया में आखिरकार मनुबेन को लिखना ही पड़ा, ‘‘मैं प्यारेलालजी को अपने बड़े भाई की तरह मानती हूं, इसके अलावा कुछ भी नहीं. जिस दिन मैं अपने गुरु, अपने बड़े भाई या अपने दादा से शादी करने का फैसला कर लूंगी, उस दिन उनसे विवाह कर लूंगी. इस बारे में मुझ पर और दबाव मत डालना.’’
मनुबेन की टिप्पणियों से ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर गांधी के अनुयायियों में बढ़ते असंतोष की झलक भी मिलती है. 31 जनवरी, 1947 को बिहार के नवग्राम में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने घनिष्ठ अनुयायी किशोरलाल मशरूवाला के गांधी को लिखे पत्र का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने मनु को ‘‘माया’’ बताते हुए महात्मा से उसके चंगुल से मुक्त होने का आग्रह किया था. इस पर गांधी का जवाब था: ‘‘तुम जो चाहे करो लेकिन इस प्रयोग के बारे में मेरी आस्था अटल है.’’ मनुबेन और गांधी जब बंगाल में नोआखली की यात्रा कर रहे थे तब उनके दो सचिव आर.पी. परशुराम और निर्मल कुमार बोस गांधी के आचरण से नाराज होकर उनका साथ छोड़ गए थे. यही निर्मल कुमार बोस बाद में भारत की ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी के डायरेक्टर बने. सरदार वल्लभभाई पटेल ने 25 जनवरी, 1947 को लिखे एक पत्र में गांधी से कहा था कि वे यह प्रयोग रोक दें. पटेल ने इसे गांधी की ‘भयंकर भूल’ बताया था जिससे उनके अनुयायियों को ‘गहरी पीड़ा’ होती थी. यह पत्र राष्ट्रीय अभिलेखागार में सरदार पटेल के दस्तावेजों में शामिल है. महात्मा ने मनुबेन के मन पर कितनी गहरी छाप छोड़ी थी, इसकी जबरदस्त झलक 19 अगस्त,1955 को जवाहर लाल नेहरू के नाम लिखे गए मोरारजी देसाई के पत्र से मिलती है. मनुबेन एक ‘‘अज्ञात रोग’’ के इलाज के लिए बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थीं. वहां अगस्त में उनसे मिलने के बाद मोरारजी देसाई ने लिखा: ‘‘मनु की समस्या शरीर से अधिक मन की है. लगता है, वे जीवन से हार गई हैं और सभी प्रकार की दवाओं से उन्हें एलर्जी हो गई है.’’
30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 बजे जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा को गोली मारी, उस समय मनुबेन के अलावा आभाबेन गांधी भी महात्मा की बगल में थीं. आभा उनके भतीजे कनु गांधी की पत्नी थीं. अगले दिन मनुबेन ने लिखा, ‘‘जब चिता की लपटें बापू की देह को निगल रही थीं, मैं अंतिम संस्कार के बाद बहुत देर तक वहां बैठी रहना चाहती थी. सरदार पटेल ने मुझे ढाढस बंधाया और अपने घर ले गए. मेरे लिए वह सब अकल्पनीय था. दो दिन पहले तक बापू हमारे साथ थे. कल तक कम-से-कम उनका शरीर तो था और आज मैं एकदम अकेली हूं. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है.’’
उसके बाद डायरी में अगली और अंतिम प्रविष्टि 21 फरवरी, 1948 की है, जब मनुबेन दिल्ली से ट्रेन में बैठकर भावनगर के निकट महुवा के लिए रवाना हुईं. इसमें उन्होंने लिखा, ‘‘आज मैंने दिल्ली छोड़ दी.’’ मनुबेन ने गांधी के निधन के बाद पांच पुस्तकें लिखीं. इनमें से एक लास्ट ग्लिम्प्सिज ऑफ बापू में उन्होंने लिखा, ‘‘काका (गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास) ने मुझे चेताया कि अपनी डायरी में लिखी गई बातें किसी को न बताऊं और महत्वपूर्ण पत्रों में लिखी गई बातों की जानकारी भी न दूं. उन्होंने कहा था, तुम अभी बहुत छोटी हो पर तुम्हारे पास बहुत कीमती साहित्य है और तुम अभी परिपक्व भी नहीं हो.’’
बापू: माय मदर नाम से अपने 68 पन्नों के संस्मरण में भी मनुबेन ने गांधी के साथ उनकी सेक्सुअलिटी के प्रयोगों में शामिल रहने के बावजूद उनके बारे में अपनी भावनाओं का कहीं उल्लेख नहीं किया. पुस्तक के 15 अध्यायों में से एक में मनुबेन ने लिखा है कि उनके पुणे जाने के 10 महीने के भीतर कस्तूरबा की मृत्यु हो गई. उसके बाद बापू ने मौन व्रत धारण कर लिया और वे सिर्फ लिखकर ही अपनी बात कहते थे. कुछ ही दिन बाद उन्हें बापू से एक बहुत ही मार्मिक नोट मिला, जिसमें उन्होंने उन्हें राजकोट जाकर अपनी पढ़ाई फिर शुरू करने की सलाह दी थी. इस अध्याय में मनुबेन ने लिखा, ‘‘उस दिन से बापू मेरी माता बन गए.’’
किशोरी मनुबेन ने कराची में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी जहां उनके पिता, गांधी के भतीजे जयसुखलाल सिंधिया स्टीम नैविगेशन कंपनी में काम करते थे. पुणे आने से कुछ दिन पहले ही मनु ने अपनी मां को खोया था इसलिए उन्हें भी मां रूपी सहारे की जरूरत थी.
मनुबेन ने अपने जीवन के अंतिम साल एकदम अकेले काटे. गांधी की हत्या के बाद करीब 21 वर्ष तक वे गुजरात में भावनगर के निकट महुवा में रहीं. वे बच्चों का एक स्कूल चलाती थीं और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने भगिनी समाज की स्थापना भी की थी. जीवन के अंतिम चरण में मनुबेन की एक सहयोगी भानुबेन लाहिड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की थीं. समाज की 22 महिला सदस्यों में से एक लाहिड़ी को याद है कि गांधी ने मनु के जीवन पर कितना गहरा असर डाला था. उनका कहना है कि एक बार जब मनुबेन ने अपने एक गरीब अनुयायी के विवाह के लिए उनसे चुनरी ली तो बोल पड़ीं, ‘‘मैं तो खुद को मीरा बाई मानती हूं जो सिर्फ अपने ‘यामलो (कृष्ण) के लिए जीती रही.’’
मनोविश्लेषक और स्कॉलर सुधीर कक्कड़ इन डायरियों के बारे में कहते हैं, ‘‘इन प्रयोगों के दौरान महात्मा गांधी अपनी भावनाओं पर इतने अधिक केंद्रित हो गए थे कि मुझे लगता है कि उन्होंने इन प्रयोगों में शामिल महिलाओं पर उनके प्रभाव को अनदेखा करने का फैसला लिया होगा.
विभिन्न महिलाओं के बीच जलन की लपटें उठने के अलावा हमें नहीं मालूम कि इन प्रयोगों ने उनमें से हर महिला के मन पर कोई प्रभाव डाला था या नहीं.’’
अब मनुबेन की डायरियां मिलने से हम कम से कम यह अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि महात्मा ने अपनी इन सहयोगियों के मन पर किस तरह की छाप छोड़ी थी या इन प्रयोगों का उन पर क्या असर हुआ था.
मधुबेन की डायरियां कैसे जगजाहिर हुईं
1. 1969 मनुबेन के निधन तक उनकी डायरियां में महुवा में उनके पास थीं. उन्होंने अपने पिता जयसुखलाल से कहा था कि डायरियां उनकी बहन संयुक्ताबेन की बेटी मीना जैन को सौंप दी जाएं.
2. मुंबई निवासी मीना जैन ने उन्हें मध्य प्रदेश में रीवा में अपने पारिवारिक बंगले में रखने का फैसला किया.
3. 2010 में मीना की बचपन की सहेली वर्षा दास जो उस समय दिल्ली में राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की निदेशक थीं, मीना के अनुरोध पर रीवा गईं और डायरियां दिल्ली लाकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जमा करवा दीं.

बड़े-बड़े खिलाड़ी मनुबेन की डायरी में दर्ज नाटकीय शख्स
प्यारेलाल
(1899-1982)
बाद के वर्षों में गांधी के निजी सचिव रहे.
सुशीला नय्यर
(1914-2000)
प्यारेलाल की छोटी बहन जो गांधी की निजी चिकित्सक थीं और बाद में दो बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहीं.
मृदुला गांधी उर्फ मनुबेन
(1929-1969)
गांधी के भाई की पोती और अंतिम दो साल में उनके साथ रहीं.
कनु गांधी
(1917-1986)
गांधी के भतीजे जो उनके निजी फोटोग्राफर रहे.
देवदास गांधी
(1900-1957)
गांधी के सबसे छोटे बेटे. 1950 के दशक के प्रख्यात पत्रकार.
आभा गांधी
(1927-1995)
मनुबेन के अलावा गांधी की दूसरी निकटतम सहयोगी और उनके भतीजे कनु की पत्नी.
बीबी अम्तुस्सलाम
(1958 में निधन)
गांधी की पंजाबी मुस्लिम अनुयायी.
किशोरलाल मशरूवाला
(1890-1952)
गांधी के निकट सहयोगी थे.
अमृतलाल ठक्कर
(1869-1951)
ठक्कर बापा के नाम से मशहूर समाजसेवी जो गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले के सहयोगी रहे.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/mahatma-gandhi-and-mnuben-the-untold-story-1-734362.html

10 नवंबर, 1943
आगा खां पैलेस, पुणे
एनिमिया के शिकार बापू आज सुशीलाबेन के साथ नहाते समय बेहोश हो गए. फिर सुशीलाबेन ने एक हाथ से बापू को पकड़ा और दूसरे हाथ से कपड़े पहने और फिर उन्हें बाहर लेकर आईं.
21 दिसंबर, 1946
श्रीरामपुर, बिहार
आज रात जब बापू, सुशीलाबेन और मैं एक ही पलंग पर सो रहे थे तो उन्होंने मुझे गले से लगाया और प्यार से थपथपाया. उन्होंने बड़े ही प्यार से मुझे सुला दिया. उन्होंने लंबे समय बाद मेरा आलिंगन किया था. फिर बापू ने अपने साथ सोने के बावजूद (यौन इच्छाओं के मामले में) मासूम बनी रहने के लिए मेरी प्रशंसा की. लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ. वीना, कंचन और लीलावती (गांधी की अन्य महिला सहयोगी) ने मुझसे कहा था कि वे उनके (गांधी के) साथ नहीं सो पाएंगी.
1 जनवरी, 1947
कथुरी, बिहार
सुशीलाबेन मुझे अपने भाई प्यारेलाल से शादी करने के लिए कह रही हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उनके भाई से शादी कर लूं तो ही वे नर्स बनने में मेरी मदद करेंगी. लेकिन मैंने उन्हें साफ मना कर दिया और सारी बात बापू को बता दी. बापू ने मुझसे कहा कि सुशीला अपने होश में नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तक वह उनके सामने निर्वस्त्र नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी. लेकिन अब उन्हें (गांधी को) मेरा सहारा लेना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मैं हर स्थिति में निष्कलंक हूं और धीरज बनाए रखूं (ब्रह्मचर्य के मामले में).
2 फरवरी, 1947
दशधरिया, बिहार
बापू ने सुबह की प्रार्थना के दौरान अपने अनुयायियों को बताया कि वे मेरे साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहे हैं. फिर उन्होंने मुझे समझाया कि सबके सामने यह बात क्यों कही. मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि अब लोगों की जुबान पर ताले लग जाएंगे. मैंने अपने आप से कहा कि अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है. दुनिया को जो कहना है वह कहती रहे.
‘‘प्यारेलालजी मेरे प्यार में दीवाने हैं’’
28 दिसंबर, 1946
श्रीरामपुर, बिहार
सुशीलाबेन ने आज मुझसे पूछा कि मैं बापू के साथ क्यों सो रही थी और कहा कि मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. उन्होंने मुझसे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा और मैंने कह दिया कि मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस बारे में वे आइंदा फिर कभी बात न करें. मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे बापूजी पर पूरा भरोसा है और मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानती हूं.
1 जनवरी, 1947
श्रीरामपुर, बिहार
प्यारेलाल जी मेरे प्रेम में दीवाने हैं और मुझ पर शादी करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन मैं कतई तैयार नहीं हूं क्योंकि उम्र, ज्ञान, शिक्षा और नैन-नक्श में भी वे मेरे लायक नहीं हैं. जब मैंने यह बात बापू को बताई तो उन्होंने कहा कि प्यारेलाल सबसे ज्यादा मेरे गुणों के प्रशंसक हैं. बापू ने कहा कि प्यारेलाल ने उनसे भी कहा था कि मैं बहुत गुणी हूं.
31 जनवरी, 1947
नवग्राम, बिहार
ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है. मुझे संदेह है कि इसके पीछे (अफवाहें फैलाने के) अम्तुस्सलामबेन, सुशीलाबेन और कनुभाई (गांधी के भतीजे) का हाथ था. मैंने जब बापू से यह बात कही तो वे मुझसे सहमत होते हुए कहने लगे कि पता नहीं, सुशीला को इतनी जलन क्यों हो रही है? असल में कल जब सुशीलाबेन मुझसे इस बारे में बात कर रही थीं तो मुझे लगा कि वे पूरा जोर लगाकर चिल्ला रही थीं. बापू ने मुझसे कहा कि अगर मैं इस प्रयोग में बेदाग निकल आई तो मेरा चरित्र आसमान चूमने लगेगा, मुझे जीवन में एक बड़ा सबक मिलेगा और मेरे सिर पर मंडराते विवादों के सारे बादल छंट जाएंगे. बापू का कहना था कि यह उनके ब्रह्मचर्य का यज्ञ है और मैं उसका पवित्र हिस्सा हूं. उन्होंने कहा कि ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें शुद्ध रखे, उन्हें सत्य का साथ देने की शक्ति दे और निर्भय बनाए. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर सब हमारा साथ छोड़ जाएं, तब भी ईश्वर के आशीर्वाद से हम यह प्रयोग सफलतापूर्वक करेंगे और फिर इस महापरीक्षा के बारे में सारी दुनिया को बताएंगे.
2 फरवरी, 1947
अमीषापाड़ा, बिहार
आज बापू ने मेरी डायरी देखी और मुझसे कहा कि मैं इसका ध्यान रखूं ताकि यह अनजान लोगों के हाथों में न पड़ जाए क्योंकि वे इसमें लिखी बातों का गलत उपयोग कर सकते हैं, हालांकि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में हमें कुछ छिपाना नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर अचानक उनकी मृत्यु हो जाए तो भी यह डायरी समाज को सच बताने में बहुत सहायक होगी. उन्होंने कहा कि यह डायरी मेरे लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी.
और फिर बापू ने मुझसे कहा कि अगर मुझे कोई आपत्ति न हो तो डायरी की कुछ ताजा प्रविष्टियां प्यारेलालजी को दिखा दूं ताकि वे उसकी भाषा सुधार दें और तथ्यों को क्रमवार ढंग से लगा दें. हालांकि मैंने साफ मना कर दिया क्योंकि मुझे लगा कि अगर प्यारेलाल ने इस डायरी को देख लिया तो इसकी सारी बातें उनकी बहन सुशीलाबेन तक जरूर पहुंच जाएंगी और उससे आपसी वैमनस्य में और इजाफा ही होगा.
7 फरवरी, 1947
प्रसादपुर, बिहार
ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर माहौल लगातार गर्माता ही जा रहा है. अमृतलाल ठक्कर (गांधी और गोपालकृष्ण गोखले के साथ जुड़े रहे समाजसेवी) आज आए और अपने साथ बहुत सारी डाक लाए जो इस मुद्दे पर बहुत ‘‘गर्म’’ थी. और इन पत्रों को पढ़कर मैं हिल गई.
24 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार
आज मैं बहुत दुखी थी. लेकिन बापू ने कहा कि वे मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ते देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जगह अगर कोई और होता तो इस मुद्दे पर किशोरलाल मशरूवाला, सरदार पटेल और देवदास गांधी के तीखे पत्र पढ़कर लगभग पागल जैसा हो जाता. लेकिन उन्हें इस सबसे बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ा. एक और बात. आज बापू ने अम्तुस्सलामबेन को एक बहुत कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि वे इस बात से नाराज हैं कि ब्रह्मचर्य के उनके प्रयोग उनके साथ शुरू नहीं हुए. उन्होंने लिखा कि इस बारे में उनके लिए खेद करना वाकई शर्म की बात है. उन्होंने अम्तुस्सलामबेन से कहा कि अगर वे समझ सकें तो वे समझना चाहते हैं कि आखिर वे कहना क्या चाहती हैं? बापू ने उन्हें लिखा कि यह शुद्धि का यज्ञ है.
26 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार
आज जब अम्तुस्सलाम बेन ने मुझसे प्यारेलाल से शादी करने को कहा तो मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने कह दिया कि अगर उन्हें उनकी इतनी चिंता है तो वे स्वयं उनसे शादी क्यों नहीं कर लेतीं? मैंने उनसे कह दिया कि ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग उनके साथ शुरू हुए थे और अब अखबारों में मेरे फोटो छपते देखकर उन्हें मुझसे जलन होती है और मेरी लोकप्रियता उन्हें अच्छी नहीं लगती.
18 मार्च, 1947
मसौढ़ी, बिहार
आज बापू ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात का खुलासा किया. मैंने उनसे पूछा कि क्या सुशीलाबेन भी उनके साथ निर्वस्त्र सो चुकी है क्योंकि मैंने जब उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे प्रयोगों का कभी भी हिस्सा नहीं बनी और उनके साथ कभी निर्वस्त्र नहीं सोई. बापू ने कहा कि सुशीला सच नहीं कह रही क्योंकि वह बारडोली (1939 में जब पहली बार वे बतौर फिजीशियन उनके साथ जुड़ी थीं) के अलावा आगा खां पैलेस (पुणे) में उनके साथ सो चुकी थी. बापू ने बताया कि वह उनकी मौजूदगी में स्नान भी कर चुकी है. फिर बापू ने कहा कि जब सारी बातें मुझे पता ही हैं तो मैं यह सब क्यों पूछ रही हूं? बापू ने कहा कि सुशीला बहुत दुखी थी और उसका दिमाग अस्थिर था और इसलिए वे नहीं चाहते थे कि वह इस सब पर कोई सफाई दे.
‘‘मैंने बापू से आग्रह किया कि मुझे अलग सोने दें’’
25 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार
बापू ने बापा (अमृतलाल ठक्कर को सभी ठक्कर बापा कहते थे) से कहा कि ब्रह्मचर्य धर्म के पांच नियमों में से एक है और वे उसकी परीक्षा को पास करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह उनकी आत्मशुद्धि का यज्ञ है और वे इसे सिर्फ इसलिए नहीं रोक सकते क्योंकि जनभावनाएं पूरी तरह इसके खिलाफ हैं. इस पर बापा ने कहा कि ब्रह्मचर्य की उनकी परिभाषा आम आदमी की परिभाषा से एकदम अलग है और पूछा कि अगर मुस्लिम लीग को इसकी भनक भी लग गई और उसने इस बारे में लांछन लगाए तो क्या होगा? बापू ने जवाब दिया कि किसी के डर से वे अपने धर्म को कतई नहीं छोड़ेंगे और उन्होंने बिरला (उद्योगपति और जाने-माने गांधीवादी जी.डी. बिरला) को भी यह बता दिया था कि अगर प्रयोग के दौरान उनका मन अशुद्ध रहा तो वे पाखंडी कहलाएंगे और वे तकलीफदेह मौत को प्राप्त होंगे. बापू ने बापा से कहा कि अगर वल्लभभाई (पटेल) या किशोर भाई (मशरूवाला) भी उनका साथ छोड़ देंगे तो भी वे अपने प्रयोग जारी रखेंगे.
2 मार्च, 1947
हेमचर, बिहार
आज बापू को बापा का एक गुप्त पत्र मिला. उन्होंने इसे मुझे पढऩे को दिया. यह पत्र दिल को इतना छू लेने वाला था कि मैंने बापू से आग्रह किया कि बापा को संतुष्ट करने के लिए आज से मुझे अलग सोने की अनुमति दें. जब मैंने बापा को अपने इस फैसले के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि बापू और मुझसे बात करने के बाद उन्हें प्रयोग के उद्देश्य के बारे में एकदम संतोष हो गया था लेकिन अलग सोने और प्रयोग समाप्त करने का मेरा फैसला पूरी तरह सही था. उसके बाद बापा ने किशोरलाल मशरूवाला और देवदास गांधी को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह अध्याय अब खत्म हो गया है.
‘‘बापू सिर्फ मेरे लिए मां समान थे’’
18 जनवरी, 1947
बिरला हाउस, दिल्ली
बापू ने कहा कि उन्होंने लंबे समय बाद मेरी डायरी को पढ़ा और बहुत ही अच्छा महसूस किया. वे बोले कि मेरी परीक्षा खत्म हुई और उनके जीवन में मेरी जैसी जहीन लड़की कभी नहीं आई और यही वजह थी कि वे खुद को सिर्फ मेरी मां कहते थे. बापू ने कहा: ‘‘आभा या सुशीला, प्यारेलाल या कनु, मैं किसी की परवाह क्यों करूं? वह लड़की (आभा) मुझे बेवकूफ बना रही है बल्कि सच यह है कि वह खुद को ठग रही है. इस महान यज्ञ में मैं तुम्हारे अभूतपूर्व योगदान का हृदय से आदर करता हूं.’’ बापू ने फिर मुझसे कहा, ‘‘तुम्हारी सिर्फ यही भूल है कि तुमने अपना शरीर नष्ट कर लिया है. शारीरिक थकान से ज्यादा तुम्हारी शंकालु प्रवृत्ति तुम्हें खा रही है. मैं खुद को तभी विजेता मानूंगा जब तुम अभी जैसी 70 वर्ष की दिखती हो, उसकी बजाए 17 बरस की दिखो.’’
2 अक्‍टूबर, 1947
बिरला हाउस, दिल्ली
आज बापू का जन्मदिन था. मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि या तो उन्हें इस दावानल (विभाजन के दंगों की आग जिसे गांधीजी बुझाना चाहते थे) में विजयी बना दे या उन्हें अपने पास बुला ले. बापू ने बहुत जोर लगाया, लेकिन मैं उनकी पीड़ा और नहीं देख सकती. हे ईश्वर! आखिर तू कब तक बापू की परीक्षा लेता रहेगा? मैं रात को सोते या जागते हुए यही प्रार्थना करती हूं कि यह अंतिम सद्कार्य (सांप्रदायिक दंगे समाप्त कराने का) बापू के हाथों संपन्न हो जाए.
14 नवंबर, 1947
बिरला हाउस, दिल्ली
मैं कई दिनों से बुरी तरह अशांत हूं. बापू ने जब यह देखा तो कहा कि अपने मन की बात कह दो. उन्होंने कहा कि मैं कइयों का पितामह और पिता हूं और सिर्फ तुम्हारी माता हूं. मैंने बापू को बताया कि इन दिनों आभा मुझसे बहुत बेरुखी से पेश आ रही है. यही वजह है. बापू ने कहा कि उन्हें खुशी हुई कि मैंने मन की बात उन्हें बता दी लेकिन अगर न बताती तो भी वे मेरे मन की अवस्था समझ सकते थे. उन्होंने कहा कि मैं अंतिम क्षण तक उनके साथ रहूंगी पर आभा संग ऐसा नहीं होगा. इसलिए वह जो चाहे उसे करने दो. उन्होंने मुझे बधाई दी कि मैंने न सिर्फ उनकी बल्कि औरों की भी पूरी निष्ठा से सेवा की है.
18 नवंबर, 1947,
बिरला हाउस, दिल्ली
आज जब मैं बापू को स्नान करवा रही थी तो वे मुझ पर बहुत नाराज हुए क्योंकि मैंने उनके साथ शाम को घूमना बंद कर दिया था. उन्होंने बहुत कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, ‘‘जब तुम जीते जी मेरी बात नहीं मानतीं तो मेरे मरने के बाद क्या करोगी? क्या तुम मेरे मरने का इंतजार कर रही हो?’’ यह शब्द सुनकर मैं सन्न रह गई और जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.
http://aajtak.intoday.in/story/bapu-was-a-mother-to-me-and-me-only-1-734364.html

गांधी का मानना था कि युवा औरतों के साथ उनकी अंतरंगता आत्मा को मजबूती प्रदान करने वाली एक अभ्यास प्रक्रिया थी.

महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ में अपनी खुराक, अपनी सेहत की देखभाल और महिलाओं के साथ संबंधों के मामले में अपने विभिन्न प्रयोगों का जिक्र किया है जिन्हें उनके निकटतम अनुयायी और प्रशंसक भी सनक मानते थे. गांधी एक बार जो ठान लेते थे, उस आदत को शायद ही कभी छोड़ते थे. वे हर ‘‘प्रयोग’’ को तब तक जारी रखते थे जब तक उनकी ‘‘अंतरात्मा’’ उसे छोडऩे को न कहे. एक ‘महान आत्मा’ और महायोगी सरीखे गांधी अपने मस्तिष्क की शक्तियों को लेजर की तरह अचूक ढंग से हर उस बात पर केंद्रित कर देते थे जिससे वे जूझ रहे होते थे. वे अपनी पूरी मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति से हर लक्ष्य को साधने की कोशिश करते थे. उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अत्याचारी ब्रिटिश शासन और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त उसके अक्खड़ एजेंटों से अहिंसक संघर्ष करना था. उन्होंने इस काम में सत्य और अहिंसा नाम के दो सिद्धांतों को हमेशा अपनाए रखा.
उन्होंने कुछ और यौगिक शक्तियों का भी प्रयोग किया जिनमें अपरिग्रह यानी गरीबी में जीवन बिताने की कसम और ब्रह्मचर्य शामिल हैं. गांधी ने 37 वर्ष की आयु में 1906 में दक्षिण अफ्रीका में अपने चौथे बेटे के जन्म के बाद ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और उसके बाद से अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ कभी नहीं सोए. उन्होंने संकल्प लिया, ‘‘अब संतानोत्पति और धन-संपत्ति की लालसा त्यागकर वानप्रस्थ जीवन जिऊंगा. मैं उस सांप से भागने की प्रतिज्ञा ले रहा हूं जिसके बारे में मुझे पता है कि वह मुझे अवश्य डसेगा.’’ शुरू में गांधी के लिए सेक्स और संतानोत्पति की लालसा से दूर रहना बहुत आसान रहा. उन्होंने लिखा, ‘‘जब इच्छा खत्म हो जाए तो त्याग की शपथ सहज...फल देती है.’’ लेकिन पंद्रह साल बाद पहला राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह छेडऩे के बाद गांधी ने स्वीकार किया कि विजय जब सबसे निकट दिखाई दे तब खतरा सबसे अधिक होता है. ईश्वर की अंतिम परीक्षा सबसे कठिन होती है. शैतान की अंतिम लालसा सबसे अधिक सम्मोहक होती है.
रोम्या रोलां उन्हें ‘‘दूसरा ईसा मसीह’’ कहते थे. मैडलिन स्लेड को गांधी के बारे में उन्होंने ही बताया उसके तुरंत बाद मैडलिन भारत में गांधी के आश्रम में रहने चली आईं और गांधी ने उनका नामकरण मीराबेन कर दिया. गांधी की एक और उत्कृष्ट अनुयायी बनने वाली वे एकमात्र समर्पित पश्चिमी महिला नहीं थीं. इससे पहले दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में गांधी के लॉ ऑफिस में 17 वर्षीया मिस ‘‘लेसिन उनकी ‘सबसे निष्ठावान और निडर’ सचिव बन गई थीं.
गांधी किसी भी बुरे विचार, बुरे काम या किसी भी प्रकार के रोग को दूर रखने के लिए सबसे पहले राम नाम का सहारा लेते थे. लेकिन साथ ही वे खान-पान के सख्त नियमों का भी सख्ती से पालन किया करते थे. उन्होंने घनश्याम दास बिरला से कहा था: ‘‘अगर तुम नमक और घी खाना छोड़ दो...तो तुम्हारे अंदर पैदा होने वाली जुनूनी भावनाएं अवश्य ही शांत होंगी. मसालों और पान तथा ऐसी अन्य वस्तुओं का त्याग भी जरूरी है. सिर्फ खान-पान पर कुछ सीमाएं लगा देने से सेक्स और उससे जुड़ी लालसाओं को शांत नहीं किया जा सकता.’’
मीराबेन गांधी पर इस कदर निर्भर हो गईं कि जब भी उन्हें आश्रम से कहीं बाहर जाना होता तो वे अवसाद में चली जाती थीं और जो भी महसूस करतीं, रोजाना उन्हें लिखकर भेजतीं. उनका जवाब आता, ‘‘अगर विछोह असहनीय हो जाए तो तुम अवश्य चली आना.’’ गांधी के पत्रों में चेतावनी भी होती थी, ‘‘टूटना मत...तुम्हें खुद को फौलादी इरादों से लैस करना होगा. यह हमारे काम के लिए जरूरी है.’’
महात्मा के प्रशंसक जब सेक्स को त्यागने के लिए उनका अनुसरण करने की कोशिश करते थे तो उन्हें पत्र लिखकर सलाह मांगा करते थे. ‘‘जब दिमाग में बुरे ख्याल हिलोरें मारने लगें...तो किसी भी इनसान को किसी और काम में खुद को व्यस्त कर लेना चाहिए. अपनी निगाहों को अपनी इच्छाओं का गुलाम मत बनने दो. अगर निगाहें किसी औरत पर पड़ें तो तुरंत उसे फेर लो. यौन सुख की कामना चाहे पत्नी के साथ हो या किसी अन्य औरत के साथ, समान रूप से अपवित्र है.’’
गांधी 69 वर्ष के थे जब कपूरथला रियासत की राजकुमारी अमृत कौर ने उनके आश्रम में मीरा की जगह ली. उन्होंने बतौर उनकी ‘‘बहन’’ आश्रम में जगह पाई. उनके सामने गांधी ने माना: ‘‘मुझे यौन सुख की कामना पर जीत हासिल करने में सबसे अधिक कठिनाई पेश आई...यह निरंतर जारी रहने वाला संघर्ष था.’’ अपने ब्रह्मचर्य को ‘‘परखने’’ तथा और अधिक ‘मजबूत’ करने के लिए गांधी आश्रम की कई युवा सदस्यों के साथ नग्न अवस्था में सोने लगे.
उन्हें यकीन था कि अपने ‘‘ब्रह्मचर्य’’ के तप के दम पर वे पूर्वी बंगाल और बिहार के जलते गांवों और अंतत: समूचे भारत वर्ष में हिंदू-मुस्लिम एकता और अहिंसा भरी शांति स्थापित कर सकेंगे. लेकिन अपनी अंतरात्मा का मंथन करने के बाद गांधी को विश्वास हो गया कि युवतियों के साथ निकटता में उन्हें जिस मातृ प्रेम की अनुभूति होती है उसने रहस्यमय ढंग से उनके भीतर अहिंसा और ब्रह्मचर्य को और अधिक मजबूती प्रदान की है. उन्होंने लिखा है, ‘‘मैं न भगवान और न ही शैतान को फुसला सकता हूं.’’ अपने सचिव प्यारेलाल की बहन डॉ. सुशीला नय्यर को भी वे अपनी पत्नी कस्तूरबा के समान ही मानते थे और उन्हें भी अपनी ‘‘बहन’’ ही कहते थे.
बीमार पत्नी के साथ अपने जीवन के अंतिम दो साल गांधी ने पुणे में आगा खां के पुराने महल में ब्रिटिश हुकूमत की कैद में एक साथ गुजारे. 22 फरवरी, 1944 को कस्तूरबा के निधन के बाद गांधी को उनकी दत्तक ‘‘पोती’’ मनु ने संभाला. वे खुद को उसकी माता मानते थे.
अपने जीवन के अंतिम साल में गांधी ने पूर्वी बंगाल में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति स्थापना की कोशिश में अंतिम पद यात्रा की. शुरू में वे गांव-गांव अकेले घूमते रहे लेकिन फिर मनु उनके साथ आ गईं और अंत तक ‘‘सहारा’’ बनकर उनके साथ रहीं. गांधी के बंगाली सचिव निर्मल बोस ने बताया था कि उन्होंने गांधी को अपने आपको ‘‘थप्पड़’’ मारते और यह कहते सुना, ‘‘मैं महात्मा नहीं हूं...मैं तुम सब की तरह सामान्य व्यक्ति हूं और मैं बड़ी मुश्किल से अहिंसा को अपनाने की कोशिश कर रहा हूं.’’ सुशीला नय्यर भी उनके और मनु के साथ आ जुड़ीं, लेकिन जल्द ही चली भी गईं. उनके टाइपिस्ट और शॉर्टहैंड सचिव भी उन्हें उस समय छोड़कर चले गए जब उन्होंने उन्हें नंगा सोते देखा. और प्यारेलाल ने गांधी को यह बुदबुदाते सुना था: ‘‘मेरे अंदर ही कहीं कोई गहरी कमी रह गई होगी, जिसे मैं ढूंढ़ नहीं सका...क्या मैं अपने रास्ते से भटक गया हूं?’’
मीरा ने जब सुना कि मनु अकेली गांधी के साथ सो रही हैं तो उन्होंने अपनी गंभीर चिंता जाहिर की. गांधी ने जवाब दिया, ‘‘इस बात की चिंता मत करो कि मैं जो कुछ कर रहा हूं उसमें कितना सफल हो रहा हूं. यदि मैं अपने अंदर के विकार दूर करने में सफल रहा तो ईश्वर मुझे अपना लेगा. मैं जानता हूं कि उसके बाद सब कुछ सच हो जाएगा.’’ फिर भी अपने भीतर की ‘बड़ी कमी’ की चिंता उन्हें सालती रही. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ‘‘सिर्फ ईश्वर की कृपा ही मुझे सहारा दे रही है, मुझे दिखाई दे रहा है कि मेरे भीतर कोई बड़ी कमी है...मेरे चारों ओर गहन अंधकार है.’’
स्टेनले वोलपर्ट, लॉस एंजिलिस की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंडियन हिस्ट्री के प्रोफेसर एमेरिटस हैं.
सभी उद्धरण वोलपर्ट की पुस्तक गांधीज़ पैशन: द लाइफ ऐंड लेगेसी ऑफ महात्मा गांधी (ऑक्सफोर्ड यूपी, 2001) से हैं.


खोपड़ी ना हिल जाये तो कहना :, गाँधी जी महात्मा जीवन के अंतिम क्षणों तक

१५ साल की उम्र में गाँधी जी वेश्या की चोखट से हिम्मत न जुटा पाने के कारण वापस लौट आये .
१६ साल की उम्र में पत्नी से सम्भोग की इच्छा से मुक्त नहीं हो पाए जब उनके पिता मृत्यु शैया पर थे .
२१ साल की उम्र में फिर उनका मन पराई स्त्री को देखकर विकारग्रस्त होता है .
२८ साल की उम्र में हब्सी स्त्री के पास जाते है लेकिन शर्मसार होकर वापिस आ जाते है .
३१ साल की उम्र में १ बच्चे के पिता बन जाते है .
४० साल की उम्र में अपने दोस्त हेनरी पोलक की पत्नी के साथ आत्मीयता महसूस करते है ,
४१ साल की उम्र में मोड नाम की लड़की से प्रभवित होते है .
४८ की उम्र में २२ साल की एस्थर फेरिंग के मोहजाल में फंस जाते है .
५१ की उम्र में ४८ साल की सरला देवी चोधरानी के प्रेम में पड़तेहै .
५६ की उम्र में ३३ साल की मेडलिन स्लेड के प्रेम में फंसते है .
६० की उम्र में १८ साल की महाराष्ट्रियन प्रेमा के माया जाल में फंस जाते है .
६४ की उम्र में २४ साल की अमेरिकाकी नीला नागिनी के संपर्क में आते है .
६५ की उम्र में ३५ साल की जर्मन महिला मार्गरेट स्पीगल को कपडे पहनना सिखाते है .
६९ की उम्र में १८ साल की डॉक्टर शुशीला नैयर से नग्न होकर मालिश करते है.
७२ की उम्र में बाल विधवा लीलावती आसर,पटियाला के बड़े जमींदार की बेटी अम्तुस्स्लाम ,कपूरथला खानदान की राजकुमारी अमृत कौर तथा मशहूर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती जैसी महिलाओ के साथ सोते है .
७६ की उम्र में १६ साल की आभा .वीणा और कंचन नाम की युवतिओं को नग्न होने को कहते है . जिस पर ये लडकिया कहती है की उन्हें ब्रह्मचर्य के बजाय सम्भोग की जरूरत है .
७७ की उम्र मे महात्मा गाँधी अपनी पोती मनु की साथ नोआखाली की सर्द रातें शरीर को गर्म रखने के लिए नग्न सोकर गुजारते है . और
७९ के गाँधी जी महात्मा जीवन के अंतिम क्षणों तक आभा और मनु के साथ एक साथ बिस्तर पर सोते है………………….
आपको इनके बारे मे क्या कहना है??

वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड पराई जाणे रे।।

हरी ॐ
#hindurashtra

शनिवार, जून 22, 2013

उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा ???


सामने आया केदारघाटी की तबाही का वैज्ञ‌ानिक सच


इसरो और उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने केदार घाटी की आपदा से पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं। इनमें यह तथ्य सामने आया है कि केदारनाथ पहले से ही तबाही की जद में था।

उपग्रह से मिले चित्रों ने दर्शाया है कि केदारघाटी का 95 फीसदी हिस्सा जलप्रलय की भेंट चढ़ गया है। इसके अलावा केदारधाम में 16 और 17 जून को मची भारी तबाही का वैज्ञानिक सच सामने आ गया है।

अध्ययन में यह बात सामने आई है कि केदारनाथ के ऊपर स्थित चौराबाड़ी और सहयोगी ग्लेशियर का पानी मलबे के साथ मिलकर भारी बारिश के चलते बेकाबू हुआ। अगर बीच में एक बड़ा स्लोप न आया होता तो तबाही का मंजर कुछ और ही होता।

स्टडी में यह बात सामने आई है कि भारी बरसात और ग्लेशियर की स्नो लेयर पिघलने के बाद पानी ने जड़ में मौजूद मोरेंस (ग्लेशियर की निचली सतह) को बढ़ा दिया। भारी दबाव के साथ पानी आगे बढ़ा तो पलभर में बोल्डर और सैंड्स ने रफ्तार पकड़ ली। सौभाग्य से बीच में एक बड़ा स्लोप आ गया।

स्लोप पर ऊपर चढ़ने में पानी वाले इस मलबे की रफ्तार कम हो गई। इसके चलते बड़े-बड़े बोल्डर केवल मंदिर और केदार वैली में ही आकर रुक गए। बाकी मलबा केदारवैली को पार करने के बाद काफी कम स्पीड पर था लेकिन इससे आगे के रूट में नीचे की ओर स्लोप होने के चलते इसने दोबारा रफ्तार पकड़ी।

जिसकी वजह से रामबाड़ा और गौरीकुंड में भारी तबाही हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि केदार वैली में यह मलबा दो ऊंचे स्लोप से न गुजरता तो हरिद्वार तक तबाही का खतरनाक मंजर होता।

ये सच आए सामने
1. सैटेलाइट इमेज में यह बात सामने आई है कि तबाही का यह मलबा ऊपर से केवल एक ही स्ट्रीम में चला था जो कि बाद में दो नई धाराओं में बंट गया। अब यहां पानी का एक नया रास्ता बन गया है।

2. आपदा से पहली तस्वीर में यह साफ है कि पानी एक बहुत पतली धारा में बह रहा है लेकिन हादसे के बाद की तस्वीर में यहां अनेक धाराएं देखी गई हैं।

3. प्री और पोस्ट इमेज से यह पता चला है कि कि केदारनाथ धाम और आसपास के क्षेत्रों में आपदा से भारी तबाही हुई है।

4. सैटेलाइट डाटा में यह बात साफ हो गई है कि दोनों ग्लेशियर में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं हुआ है। तेज बारिश की वजह से यह आपदा आई है।

5- सोनप्रयाग, रेलगांव, कुंड, विद्यापीठ, काकडागाड़, भीरी, चंद्रपुरी, सौड़ी, अगस्त्यमुनि और तिलवाड़ा में इमारतों व सड़क के साथ ही पुल भी बह गए हैं।

6. यह भी साफ हो गया है कि वासुकीताल का इस आपदा में कोई रोल नहीं है।

इन जगहों पर हुई सबसे ज्यादा तबाही
प्री और पोस्ट सैटेलाइट इमेज से यह पता चलता है कि सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, गुरियाया, लेंचुरी, घिंदुपाणी, रामबाड़ा, गौरीकुंड और नीचे के क्षेत्रों में रुद्रप्रयाग, मुंडकटा गणेश, सोनप्रयाग, रेलगांव, सीतापुर, रामपुर, खाट, ब्यूंग, जुगरानी, चुन्नी विद्यापीठ, सेमीकुंड, काकडा, भीरी, बांसवाड़ा, तिमारिया, चंद्रापुरी, भटवाड़ी, सौड़ी, बेदुबागरचट्टी, बनियाड़ी, विजयनगर, अगस्त्यमुनि, सिल्ली और गंगताल में हुई है।



News Cutting 30/06/2013




जिस दिन उत्तराखंड में तेज वर्षा हुयी उस दिन इन 39 टनल्स पर वर्षा जल की वजह से दबाब बढ़ गया , और वो क्षतिग्रस्त होने लगी , बाँध और टनल्स बना रही निजी कम्पनियों को अपना करोडो रूपया डूबता दिखने लगा , इसलिए उत्तराखंड सरकार से मिलीभगत करके निजी कम्पनियों ने एक के बाद एक उन 39 टनल्स का लाखो क्यूसेक पानी छोड़ दिया , जिस कारण लाखो क्यूसेक जल वेग के साथ पहले से ही हो रही वर्षा के जल के साथ मिल गया जिससे   यह भयानक तबाही मच गयी ||
कुछ तथ्य विचारणीय हैं ...


१. आतंकवादियों के दिवास्वप्न मुगलिस्तान की सीमा में उत्तराखंड का आना 
२. चीन और पाकिस्तान की बढती अंतरंगता 
३. चीन का भारतीय क्षेत्रों पर दावा..
४. हाल ही में चीन से तनाव... विदेश मंत्री की चीन यात्रा 
५. चीन से युद्ध के सन्दर्भ में सेना के मूवमेंट के लिए उत्तराखंड में तेजी से से बन रहा सड़कों का संजाल 
६. भारत की सत्ता में कोई भी राष्ट्र समर्पित व्यक्ति का न होना.. सभी घोटालों के आरोपी ..
७. धर्मांतरण के लिए लगभग हर मीडिया पर लगातार आ रहे विज्ञापन और उनका सफल न होना 
८. मुगलिस्तान नामक स्वप्न के लिए पहाड़ों से मैदानी लोगों को काटने की चाल होने की संभावना 

अब इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए निम्न समाचार एवं विश्लेषण का अध्धयन कर मनन करिए 

बादल फटना (क्यूलोनिवस) हमेशा प्राक्रतिक कारणो से नही होता है ,बादलो से बरसात होती है , और बरसात की एक दर होती है ,बादलो की दर थोड़ी बहुत बदलती है,....दस गुना तक नही ?

जब बादल भारी मात्रा में आद्रता (यानि पानी ) लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है...या जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है ! उदाहरण के तौर पर २६ जुलाई २००५ को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्‍तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे!

केदारनाथ में पिछले 5,000 सालो में कभी बादल नही फटे , अचानक आज कैसे ? 20 एम एम तक बरसने वाली बरसात का लेवल 300 एम एम से ज्यादा कैसे हो गया ? जब पहाड़ो के बीच में बादल टकराते है उससे बरसात होती है , पर दस गुना पानी के लिये दस गुना ज्यादा बादलो की जरूरत पड़ती है जो बस इस ''आधुनिक विज्ञान'' से संभव है ......प्राक्रतिक कारण से संभव ही नही है ?

(NEWS AMAR UJALA अंतिम अपडेट 23 जून 2013
एनआईडीएम के प्रोफेशन इन हेड डॉ. चंदन घोष )


जिस गांधी सरोवर की वजह से केदारनाथ धाम में तबाही मची, वह सरोवर अब केदारनाथ मंदिर के लिए खतरा बन गया है। अब जब भी बारिश होगी सरोवर का पानी मलबे के साथ मंदिर की तरफ ही आएगा। पानी ने अपना पुराना रास्ता बदलकर नया बना लिया है, जो मंदिर की तरफ ही जाता है। ऐसेमें जब तक वैज्ञानिक अध्ययन कराकर मंदिर की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते तब तकधाम में पूजा-अर्चना शुरू हो पाना संभव नहीं है। इस तथ्य से नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट (एनआईडीएम) के वैज्ञानिक भी इनकार नहीं कर रहे। एनआईडीएम के प्रोफेशन इन हेड डॉ. चंदन घोष ने कहा कि जिस तरह से गांधी सरोवर टूटा है, उससे भविष्य के लिए खतरा पैदा हो गया है।घोष ने कहा कि सेटेलाइट से इसकी वास्तविक स्थिति जानने की कोशिश की जा रही है। इस सवालका भी जवाब तलाशा जा रहा है कि सरोवर क्यों टूटा? पानी का प्राकृतिक रास्ता क्यों बंद हुआ? उनका कहना है कि जब तक पानी के रास्ते को बंद नहीं किया जाता, तब तक केदारनाथ में किसी प्रकारकी मानवीय गतिविधियां नहीं की जानी चाहिए।


क्या ऐसा नहीं लग रहा कि वासुकि ताल (गांधी सरोवर) के पानी के निकासी के प्राकृतिक मार्ग से कोई छेड़ छाड़ हुई है ??? कुछ न कुछ दाल में काला अवश्य है .. क्योंकि ये घटना ऐसे समय हुई जब बारिश का समय नहीं होता है और चारो धाम एवं हेमकुंड साहेब में तीर्थ यात्रियों की संख्या अधिक से अधिक होती है  और इस क्षेत्र में बादल फटने की घटना लगभग न के बराबर होती है .. मेघालय और चेरापूंजी दो ही ऐसे भारतीय क्षेत्र हैं जहां पर बादल फटने की घटना अवश्य होती है 



Jai Kumar एक और घटना इसी खबर से जुडी है .....इस क्षेत्र में वासुकी ताल में लोग जब अपनी जान बचाकर उपर जगल की तरफ जा रहे थे तो एक आनोखी घटना घटी ..वहां नेपाली लोग लोगो को काट रहे थे और वहां लोग बेहोश भी हो रहे थे ...एक स्थानीय निवासी जो जान बचाकर वहां से भागने में सफल हुआ ...आप बीती सुना रहा है .....अब सवाल उठता है उस जंगल में नेपाली लोग कहाँ से चले गए ..और अगर गए भी है तो उनकी हालत भी सभी लोगो की तरह होनी चाहिय कम से कम उस जंगल में ...और हाँ चीनी और नेपालियों में समानता होती ही है ..!

Madhvi Gupta वेसे अनुमान यही लग रहा है की सी आईए का वियतनाम मे अपनाया गया हथियार का उन्नत रुप का खेल था ... जो इस बार चीन कि धरती से खेला गया !कभी आपने सुना कि चीन ने औलँपिक मे खेल गाँव पर बारिश ना गिरे ईसलिए बादलो को पहले ही बरसा दिया था ... विमान से कैमिकल छिडक के ! क्या आपने DRDO कि ये यह तकनिक [केवल बारिश करवाने कि] के सफल परिक्षण के बारे मे नही सुना ! ईजराइल एक भी बादल बिना बरसे नही जाने देता !

उतराखणड तबाह होने से भारत को अरबो डालर का उधार लेना पडेगा जोकि हमे अमेरिका के गुलाम विशव बैँक से लेना पडेगा ।हम पर कर्जा बढ जाएगा ।जिससे अमेरिका की मंदी को रहत मिलेगी .............

सबसे ज्यादा विचारणीय बिंदु ये है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा किये जा रहे धर्म परिवर्तन का कार्य पहाड़ों पर लगभग शून्य प्रतिशत ही है क्योंकि सनातनियों के सभी तीर्थ पहाड़ों पर ही हैं जिसके कारण पहाड़ के सभी निवासी प्रत्यक्ष रूप से धर्म से जुड़े रहते हैं अतः अब एक ही विकल्प शेष रहता है इन मिशनरियों के पास उड़ीसा वाला मॉडल अर्थात पहले गरीब बनाओ उसके बाद पैसे के बल पर धर्म परिवर्तन कराओ .. अब ये मॉडल तभी सफल होगा जब पहाड़ों पर सनातन धर्मावलम्बियों का आवागमन कम से कम है .. अब जो ये सदी की सबसे बड़ी त्रासदी हुई है उसके कारण सभी रास्ते बंद हो गए तथा भय का भी वातावरण बना जिससे इन तीर्थयात्रियों का आवागमन कम हो जाएगा जिस का सीधा असर पहाड़ के निवासियों के रोजगार पर पडेगा, गरीबी फैलेगी और तब ये मिशनरियां पैसे के बल पर अपने धर्मांतरण के कुचक्र में सफल हो जायेंगी. कुछ समय पहले इन्होने जम्मू कश्मीर में भी प्रयास किया था लेकिन वहां मुस्लिम बहुलता के कारण ये सफल नहीं हो पाए और बात खुलने पर इनके पादरियों को जान बचा कर भागना पडा. 


Santanu Arya

केदारनाथ में जो हुआ वो प्रकुतिक था या मानव निर्मित ...एक बहुत गहरी साजिश चल रही है हिन्दुओ के खिलाफ...

केदारनाथ से 200 किलोमीटर उत्तर में दुनिया की एकजानीमानी कंपनी अपने मिनरल वॉटर का कारखाना लगाना चाहती है..जिनके लिए मौजूदा सरकार की और से बातचीत के बाद लाइसेंसमिलने के बाद 70 के लगभग डेम बनवाए गए.जिनसे बहाने के तौर बिजली का उत्पादन किया जा रहा हैजबकि उत्तराखंड में ज्यादातर बिजली "मध्यप्रदेश एवं गुजरात"से ही जाती है...

जानकारी ये भी मिली है की इस बहुराष्ट्रीय कंपनी ने यहीं पर अपनेकारखाने के लिए 500 एकड़ जमीन ली है.पूछने पर ये कहा गया की यहाँ के ग्लेशियर हर वर्ष बनते हैंऔर पिघलते हैं जिसे शुद्ध माना गया है...और जिसे साफ़ करने इतना खर्च नहीं आता.. वरना ये अपना प्लांटचाहें तो आइसलैंड में लगा सकते हैं...लेकिन यहाँ के ग्लेशियर सदीओं से नहीं पिघले हैं जिसे अशुद्ध माना जाता है ... दूसरा कारण ये बताया जा रहा है कि भारत में उपलब्ध बाज़ार विश्व के बड़े बाजारों में से है...

और वो कम्पनी और कोई नहीं... वो nestle है... जिसकी maggi हर कोईखाता है... बहिष्कार करो ऐसी कंपनी का


सम्बंधित तंतु

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/north/---/articleshow/10519240.cms
http://www.bhaskar.com/article/JK-the-st-2608468.html

जीत शर्मा मानव

कैसे आया लाखो क्यूसेक पानी एक साथ पहाड़ियों से ?बारिश से आया पानी तो रिस रिस कर आता ना की एक साथ वेग के साथ ?क्यों बदली कई मुख्य नदियों ने अपनी दिशा जबकि नदी के आस पास का क्षेत्र असीम है और उसमे लाखो क्यूसेक पानी समाहित हो कर एक ही दिशा में बह सकता है ?

असल में केंद्र और उत्तराखंड सरकार उत्तराखंड और हिमालय से प्रवाहित होने वाली नदियों पर हर ३० से ८० किलोमीटर के अन्तराल पर डैम बना रही है जिससे विधुत पैदा की जा सके | याद रहे की धारी देवी मंदिर को भी केवल बाँध की वजह से हटाया जा रहा है क्योकि मंदिर के ऊपर से बाँध को ले जाया जाना है | अब सरकार को इस विधुत को पैदा करने और नदियों के पानी को विधुत पैदा करने के लिए ना जाने क्यों रोक कर रखा जाना आवश्यक लगा | जिसके लिए उत्तराखंड और केंद्र सरकार ने इन बांधों के साथ साथ 267 टनल (गुफा) पहाड़ियों को काटकर बनायीं , जिसके लिए विस्फोट का सहारा लिया गया , आये दिन हर घंटे इन पहाड़ियों में एक ना एक विस्फोट किया जाने लगा जिससे पहाड़ियों का निचला और उपरी भाग काफी क्षतिग्रस्त हो गया या कमजोर पड़ गया | जिन 267 टनल्स को बनाया जा रहा है उनमे से 39 टनल्स बन कर तैयार हो चुकी थी और उनमे लाखो क्यूसेक पानी बिजली पैदा करने के लिए रोक कर रखा गया था | जिस दिन उत्तराखंड में तेज वर्षा हुयी उस दिन इन 39 टनल्स पर वर्षा जल की वजह से दबाब बढ़ गया , और वो क्षतिग्रस्त होने लगी , बाँध और टनल्स बना रही निजी कम्पनियों को अपना करोडो रूपया डूबता दिखने लगा , इसलिए उत्तराखंड सरकार से मिलीभगत करके निजी कम्पनियों ने एक के बाद एक उन 39 टनल्स का लाखो क्यूसेक पानी छोड़ दिया , जिस कारण लाखो क्यूसेक जल वेग के साथ पहले से ही हो रही वर्षा के जल के साथ मिल गया जिससे यह भयानक तबाही मच गयी || अभी तक के प्राप्त गैर सरकारी आकड़ों के हिसाब से करीब ३० हज़ार लोगो की मौत हुयी है जिसे सरकार केवल ८२२ मौते बता रही है |

वर्षा जल से हथनीकुंड बैराज से जब पानी दिल्ली के लिए छोड़ा गया तो हरियाणा और दिल्ली दोनों स्थानों पर वर्षा हो रही थी , क्योकि इससे पहले हरियाणा ने पानी को हरियाणा में रोक कर रखा था और जब वर्षा जल की अधिकता के कारण हरियाणा ने ६ लाख क्यूसेक पानी दिल्ली की ओर छोड़ा तो केवल ३ घंटे में तीव्र वेग के साथ यमुना खतरे के निशान पर बहने लगी | अब सोचिये एक टनल में अगर 2 लाख क्यूसेक पानी भी जमा था तो 39 टनल्स में 78 लाख क्यूसेक पानी जब पहाड़ से निचे गिरता हुआ आएगा तो कुछ बचेगा क्या ??

वर्ष २०१२ और जनवरी 2013 को नेशनल ज्युलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया ने उत्तराखंड में अंधाधुंध बन रहे बांधों को लेकर चिंता जताई थी और 109 गावों को अति असुरक्षित दायरे में रखा था , साथियों इन 109 गावों में से 70 गावों का वजूद समाप्त हो चुका है | और सरकार कह रही है की सिर्फ ८२२ लोग मरे है और आकड़ा 1000 पार कर सकता है , अगर एक गावं में रहने वालों की संख्या २०० भी लगा लूँ तो १४००० ग्रामवासी लापता है और हजारो श्रद्धालु अलग ||

यही सब छुपा कर रखना चाह रही थी उत्तराखंड सरकार | इसीलिए सेना को बुलाने में दो दिन लग गए , इसीलिए बचाव कार्य ३ दिन बाद धीरे धीरे शुरू किया गया , इसीलिए मोदी जी को प्रभावित क्षेत्रों में नहीं जाने दिया गया |

आकड़ों में थोडा असंतुलन हो सकता है किन्तु सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता ||

जय जय सियाराम ,, जय जय महाकाल ,, जय जय माँ भारती ,, जय जय माँ भारती के लाल ||

______________________________________ जीत शर्मा "मानव"
कुछ नहीं बहुत कुछ है जो उत्तराखंड की राज्य सरकार छुपा रही है .केदारघाटी में जहां लाशों का अम्बार लगा है .वहां जाने की किसी को इजाजत नहीं दे जा रही है .इस क्षेत्र में सरकार की कार्यवाही अत्यंत गोपनीय तरीके से चल रही है. बस कुछ ही दिन में इस घाटी का रहस्य हमेशा के लिए दफ़न हो जाएगा . यहाँ सरकार श्रधालुओं का लाशों के साथ क्या व्यवहार कर रही है इस पर पर्दा डाला जा रहा है. जाहिर है सरकार द्वारा बरती जा रही यह गोपनीयता कोई अच्छा संकेत नहीं दे रही है. ऐसी हालत में दाहसंस्कार की प्रक्रिया विधिवत संपन्न हो भी रही है या नहीं कहना मुश्किल है. आशंका है कि इसमें भारी धांदली चल रही है.
इस क्षेत्र में मिडिया पर भी प्रतिबन्ध लगा हुआ . पूरे घाटी की जबरदस्त पहरेदारी चल रही है . सरकार कोई फोटो जारी नहीं कर रही है. लगता है कि सारी प्रक्रिया केंद्र सरकार के निर्देश पर ही हो रही है . आपदा के इस असली रहस्य को दबाने के लिए ही मुख्यमंत्री निर्देश पाने के लिए दिल्ली के चक्कर काटते रहे हैं.
आखिर इस रहस्य से पर्दा उठेगा भी या नहीं कहना मुश्किल है


Another aspect...
आपको याद होगा चीन ने कुछ वर्ष पहले ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के प्रवाह को एक चट्टान से रोक कर परीक्षण किया था.. बहुत ही चर्चित समाचार था... अब उसी को ध्यान में रखते हुए वासुकि ताल में हुए विस्फोट और उससे हुई तबाही पर भी मनन करिए .... कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है क्योंकि लगभग सभी एक ही बात कह रहे हैं कि एक तेज आवाज हुई और उसके कुछ ही देर बाद जल प्रलय ... ... हजारो लोग मौत के मुंह में समा गए और और उत्तराखंड की सभी मुख्य सड़कें नष्ट हो गई ... अगर ये मान भी लें कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी और ये एक प्राकृतिक आपदा ही थी.. लेकिन क्या ये एक उदाहरण नहीं है कि युद्ध के समय चीन सबसे पहले उत्तराखंड में बने बांधों और जल निधि भंडारों को ही अपने निशाने पर लेगा.. रक्षा विशेषज्ञों को इस बिंदु पर मनन करना चाहिए .और यदि ऐसा है तो समाधान का मार्ग पहले से ही खोज कर रखना होगा..As per my calculation:
What happened..in Kedarnath ..is part of a big scheme..against Hindu Religion ..
it look like that ..it was must had been used there the world known `Cloud Seeding` mathod...

What you need for such Chemical raining ...
A River, Mountains and a small Aeoplane which carry the Silver Iodide to chemical vapore the clouds or can be injected from the ground with a small rocket Injection..
Which had been used often by British Colonial Opressor in India, Afrika etc...this method is used since 1941.

Today`s Kedarnath Episode show similar out come which had `Tanganyika Groundnut Scheme` which had same result due to River Kinyansungwe in Tanzania ..in April 1946..
British had lost 49 Millions Gold Pound that time and more then 100.000 people and many animal lost their lives.

It may be set to show the appeasement to the Muslim.. but as well ..what Chrsitian Missionary teach in the south on daily basis that the wrong Hindu Religion invite such catastrophical weather...to proof their theory that only the Christianity is the true Religion in this World..

Now ..what Muslim wanted that the prohibitation of the Pilgerimages and what Missionries wanted will happen..till the overmath is cleared some terrorists will blow up the temple or smash it totally for the revenge of the Babri Masque ...Jai Bhole Nath..

# Mohinder Paljit Kaur

पत्रकारिता उद्योग ::गुलाब कोठारी

पत्रकारिता के जिन सिद्धान्तों के कारण, तथा लोकतंत्र में प्रहरी की भूमिका को ध्यान में रखकर जो छूट संविधान में दी गई थी, वह भूमिका लक्ष्मी की गोद में समा गई। मीडिया ने अपने-आप को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ घोषित कर दिया और संविधान प्रदत्त तीनों पायों के साथ बैठने की हिमाकत कर बैठा। न प्रहरी रहा, न ही सेतु। जनता से इसका संवेदना का, विकास का, शिक्षा का रिश्ता टूट गया। जन समस्याओं की अभिव्यक्ति पीछे छूट गई। सार्वजनिक बहस किसी कानून या सरकारी नीति पर छिड़ती ही नहीं। सबसे बड़ा आघात मीडिया को, विशेषकर समाचार-पत्रों को यह लगा कि इन्होंने भारतीय संस्कृति का धरातल छोड़ दिया। शुद्ध उद्योगपति बन गए। किसी प्रकार के पत्रकारिता के सिद्धान्तों से चिपकने की जरूरत भी समाप्त हो गई।

अब तो बड़ा प्रश्न यह हो गया कि क्यों न इनको उद्योगों का दर्जा दे दिया जाए! क्या जरूरत है इनको “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की? सही पूछो तो उस स्वतंत्रता के लिए इनका संघर्ष ही समाप्त हो गया। अधिकार चाहिए तो हर एक को भारतीय लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में भूमिका निभाने का संकल्प-पत्र भरना होगा। धन के बदले पाठकों का विश्वास नहीं बेचेंगे। दोगलापन करते रहे तो एक दिन पाठक घर से निकाल भी देगा। नया युवा लिहाज नहीं करेगा। तब जाकर लोकतंत्र पुन: प्रतिष्ठित होगा। यदि अपने संकल्प पर टिके रहो तो सशक्त मीडिया के आगे भ्रष्टाचार के भूत भागते नजर आएंगे।

मीडिया के व्यापारिक दृष्टिकोण ने उसे काफी हद तक जनता के प्रति उदासीन बना दिया। समाचार-पत्र तो कभी नैतिकता के संदेश वाहक माने जाने जाते थे। आज ऎसे-ऎसे अनैतिक विज्ञापन छाप देते हैं, जिनकी भाषा सभ्य समाज की नहीं हो सकती। नीति-सिद्धान्त गौण हो गए, क्योंकि विदेशी निवेश के कारण इनमें व्यवसाय प्राथमिक हो गया। विदेशी निवेशक को मेरे राष्ट्रहित की पड़ी है। अश्लीलता और अनैतिकता उनके सभ्य समाज में मान्य है। इस व्यावसायिक दौड़ में अखबार इतने कमजोर हो गए कि उनमें पाठक, समाज या देश को सही और सच बताने का साहस ही नहीं रहा। कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे मुद्दों पर 65 साल से अनभिज्ञ बने बैठे हैं।

या फिर जो खरीद ले उसके भौंपू बनने को तैयार हो जाते हैं। उनके राज्यों के समाचार-पत्र यह स्वरूप धारण कर चुके हैं। चुनावी “पैकेज” भी इसकी पुष्टि ही हैं। यही वह कारण भी है कि मीडिया पाठकों के बजाए व्यापारियों तथा उद्योगपतियों का हित चिन्तक अधिक हो गया। नीरा राडिया प्रकरण में तो मीडिया के तेज तर्रार, राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित पत्रकार जिस प्रकार नंगे नजर आए, ऎसा दिन मीडिया जगत में ईश्वर करे वापस नहीं आए।

इतना ही नहीं आज बड़े-बड़े व्यवसायी घराने एक के बाद एक मीडिया समूहों का अधिग्रहण करते जा रहे हैं। मीडिया के माध्यम से अपनी शक्ति, व्यावसायिक हित और राजनीति में भागीदारी बढ़ाना ही उद्देश्य है। पाठक उनके सामने नहीं होता। कई व्यावसायिक समूह इसी उद्देश्य से अपने ही अखबार निकालने लगे हैं। व्यवसाय से ऊपर उठकर पत्रकारिता के मूल्यों पर विश्वास करने वाले मीडिया समूह तो इने-गिने रह गए। जनता का यह स्वार्थ होना चाहिए कि खोटे प्रत्याशी की तरह खोटे मीडिया का चयन भी नहीं करे।

गुलाब कोठारी
प्रधान सम्पादक पत्रिका समूह

शुक्रवार, जून 21, 2013

इस्लाम में महिलाओं की स्थिति -

इस्लाम में महिलाओं की स्थिति -
 
इस्लाम में महिलाओं या किसी भी विषय पर क्या सही है अथवा क्या नहीं इसके लिए नैतिकता या अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है । इस्लाम में नैतिकता से धर्म ग्रंथों का विवेचन नहीं होता है वरन् कुरान व हदीस में जो लिखा है वह स्वयं नैतिकता का सबसे बड़ा प्रमाण है । जड़वादी मुल्लाओ के अनुसार कुरान व हदीस मे लिखी हर बात सत्य है । हो सकता है कि हिन्दुओं के ग्रंथों में भी स्त्री के लिए यही सब कुछ लिखा हो पर विषय यह है कि क्या हिन्दू अपने धर्म ग्रंथों पर आंख बंद कर विश्वास करते हंत । हिन्दू अपने धर्म ग्रंथ की किसी भी बात को अपनी बुद्धि पर कस कर ही उस को मानते हैं यही कारण है भारत मंं स्त्री की दशा को उन्नत करने के लिए कई कानून संसद द्वारा बनाए जा चुके हैं । परन्तु इस्लाम में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है । मुसलमानों कहते हैं कि कुरान व हदीस में किसी भी संशोधन की कोई जरूरत नहीं है । इस्लाम का एक मात्र ध्येय सारी दुनिया को मुसलमान बनाना है । इसीलिये इस्लाम द्वारा हिन्दु महिलाओ के लिये लविग जेहाद चलाया जा रहा है। कोई भी हिन्दू लड़की मुस्लिम बनने से पहले इस लेख को अवश्य पढ़ें



सामान्य व्यक्ति भी यह अंदाजा लगा सकता है कि यदि गर्भ निरोधक को हराम बताया जाता है तो स्त्री की दशा तो बच्चे पैदा करने की मशीन की तरह ही होगी । यदि यह माना जाए कि स्त्री 15 वर्ष की आयु से बच्चे पैदा करना प्रारम्भ करती है व 50 वर्ष की आयु तक बच्चे देती है प्रति दो वर्ष में एक बच्चे की दर से वह 17 बच्चे देगी ।
स्त्रियों का यह मजहबी कर्तव्य है कि वे अधिकाधिक संख्या में बच्चे पैदा करें,( इब्न ऐ माजाह खण्ड 1 पृष्ठ 518 और 523 ) । अपने ‘‘ सुनुन ’’ में यह उल्लेख है पैगम्बर ने कहा थाः ‘‘ शादी करना मेरा मौलिक सिद्धान्त है । जो कोई मेरे आदर्ष का अनुसरण नहीं करता, वह मेरा अनुयायी नहीं है । शादियाँ करो ताकि मेरे नेतृत्व में सर्वाधिक अनुयायी हो जांए फलस्वरूप मैं दूसरे समुदायों ( यहूदी और ईसाइयों ) से ऊपर अधिमान्यता प्राप्त करूं । इसी प्रकार मिस्कट खण्ड 3 में पृष्ठ 119 पर इसी प्रकार की एक हदीस हैः कयामत के दिन मेरे अनुयायियों की संख्या अन्य किसी भी संख्या से अधिक रहे । सूरा रूमें सूरा 3 आयत 30 - शारीरिक संरचना को मत बदलो । इतरा सूरा 17 आयत 21 अनाम सूरा 6 आयत 152 आप अपने बच्चों की हत्या मत कीजिए ।
ज़ाकिर नायक का इस विषय पर सत्यापन

दारुल उलूम का फ़तवा



‘‘ यदि स्त्रियाँ आपके आदेषो का पालन करें तो उन्हें उत्पीडि़त न करो ......................................... उनकी बात ध्यान से सुनो, उनका आप पर अधिकार है कि आप उनके भोजन तथा वस्त्रों का प्रबंध करो ’’( इब्न ऐ माजाह खण्ड 1 पृष्ठ 519 ) इस प्रकार स्त्री के अधिकार उसके भरण पोषण तक ही सीमित हैं बशर्ते कि वह अपने पुरुष की आज्ञाओं का पालन करे । इस्लाम का सामान्य विश्वास है कि पुरुष स्त्री की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है । वास्तव मे कुरआन का कानून इस विचार की पूर्णतया पुष्टि करता है । स्पष्टीकरण प्रस्तुत है । ‘‘ ............................................. स्त्रियों में से जो तुम्हारे लिए जायज हो दो दो , तीन तीन , चार चार तक विवाह कर लो । ’’( 4 अननिसा 3 )



जड़वादी सोच का एक प्रमाण यह भी है कि " अल्लाह ने स्त्रियो पर पर्दे का कानून लागू किया है " अर्थात उन्हें सामाजिक जीवन में भाग नहीं लेना चाहिए ‘‘ और ईमान वाली स्त्रियों से कहा कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों ( गुप्त इंद्रियों ) की रक्षा करें और अपना श्रृंगार न दिखांए सिवाय उसके जो जाहिर रहे और अपने सीनों ( वक्ष स्थल ) पर अपनी ओढ़नियों के आंचल डाले रहें और वे अपने श्रृंगार किसी पर जाहिर न करें ................................ अनुवादक मुहम्मद फारूक खाँ, मकतबा अल हसनात ( देहली ) संस्करण ( अल अन नूर: 31 ) पुनः कुरआन में कहा है हे नबी ! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमान वाली स्त्रियों से कह दो कि वे ( बाहर निकलें तो ) अपने ऊपर चादरों के पल्लू लटका लिया करें । ( 33 अल अहजाब: 59 ) चादरों के पल्लू लटका लेने के साथ साथ , अल्लाह स्त्रियों के कार्यकलाप उनके घरों की चार दीवारों के भीतर ही सीमित कर देता है । ‘‘ अपने घरों के अंदर रहो । और भूतपूर्व अज्ञान काल की सज धज न दिखाती फिरो ’’ ( 33 अल अहजाब: 33 )
दारुल उलूम का फ़तवा

तस्लीमा नस्रीन का पर्दे पर सत्यापन




केवल पुरुष को तलाक का अधिकार

इस्लाम में केवल पुरूष को तलाक का अधिकार दिया गया है । महिला को इस विषय में कोई अधिकार नहीं है । इस्लाम में महिला को केवल भरण पोषण का अधिकार दिया गया है । यदि एक महिला के १० बच्चें हैं व पुरूष उसे किसी भी बात पर तलाक की धमकी देता है तो यह विचारणीय विषय है कि उस महिला की क्या हालत हो जाएगी । उसकी हालत उस बकरी की तरह होगी जिसके सामने कसाई सदैव छुरा लिए ‌खड़ा रहता हो ।
मजाक मे तलाक कहने से भी तलाक वैध

चैटिंग के दौरान




इसमें यदि पति किसी भी कारण से अपनी पत्नि को तलाक दे देता है व उसके बाद पुनः उससे शादी करना चाहता है तो उस स्त्री को पहले किसी अन्य मर्द से निकाह करके उसके साथ एक रात बितानी होगी उसके साथ हमबिस्तर होना होगा फिर दूसरा मर्द उसे तलाक देगा तब वह पहले मर्द के साथ दोबारा शादी कर सकती है । मुसलमान इस प्रथा को जारी रखने के लिये तर्क देते है कि यह इसीलिये बनाया गया है ताकि कोइ मर्द अपनी पत्नी को बिना बात के तलाक न दे । पर उस स्त्री के मन पर क्या बीतती होगी क्या किसी मर्द ने इस बात की भी कल्पना की है ।
दारुल उलूम का फ़तवा




जिस महिला का बलात्कार होता है वह पुलिस में जाती है तो आरोपी द्वारा उस पर यह आरोप लगाया जाता है कि उसे संभोग करने के लिए महिला द्वारा उकसाया गया है । उल्टे महिला पर इस्लाम के कानून की धार लटक जाती है । उल्लेखनीय है कि इसमें परिस्थितिजन्य साक्ष्य का कोई स्थान नहीं है । इस कानून के कारण मुस्लिम देशों में हजारो महिलाओं को हर साल जिना का आरोपी मानकर पत्थर मार मार कर हत्या कर दी जाती है ।
किसी महिला का बलात्कार होने की स्थिति में आरोपी को दण्ड तभी दिलाया जा सकता है जब
१-वह आरोपी स्वयं अपना अपराध मान ले
२- चार पुरूष गवाह मिलें ।
सामान्यतः ये दोनों ही बातें असम्भव है इसी कारण मुस्लिम देशों में महिला को ही जिना का आरोपी मानकर पत्थर मारकर मारने की सजा सुनाई गयी है । स्पष्ट है कि यह कानून मूर्खता का पराकाष्ठा है पर इस्लाम में किसी भी सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है । शरीयत के कानून को मुसलमान सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ।
स्पष्टीकरन




सऊदी अरब की सरकारी वैबसाइट http://www.islamhouse.com/p/292386 के फतवे के पृष्ठ 26 पर स्पष्ट किया है कि पति को चार बातों के होने पर पत्नि की पिटाई का अधिकार है ।
पहला श्रृंगार को परित्याग करना जबकि वह श्रृंगर का इच्छुक हो।
दूसरा जब वह बिस्तर पर बुलाये और वह पवित्र होने के बावजूद उस के पास न आये। ( अर्थात सेक्स करने मे स्त्री के मन का कोई महत्व नही है यदि किसी स्त्री का बाप मर जाता है व उसका मन नही है तब भी वह ना नही कर सकती ।) एक स्त्री अल्लाह के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं कर सकती जब तक उसने अपने पति के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है, यदि वह स्त्री ऊँट पर सवारी कर रही हो और उसका पति इच्छा प्रकट करे तो उस स्त्री को मना नहीं करना चाहिए । ( इब्न ऐ माजाह खण्ड 1 अध्याय 592 पृष्ठ 520 ) पुनः यदि एक पुरुष का मन संभोग करने के लिए उत्सुक हो तो पत्नी को तत्काल प्रस्तुत हो जाना चाहिए भले ही वह उस समय सामुदायिक चूल्हे पर रोटी सेक रही हो । ( तिरमजी खण्ड 1, पृश्ठ 428 )
तीसरा नमाज़ छोड़ देना।
चौथा उस की अनुमति के बिना घर से बाहर निकलना। -शाफेईय्या और हनाबिला का कथन है कि : उस के लिए पति की अनुमति के बिना अपने बीमार बाप की तीमारदारी के लिए निकलना जाइज़ नहीं है, और उसे उस से रोकने का अधिकार है . . .; क्योंकि पति का आज्ञा पालन करना अनिवार्य है, अत: अनिवार्य चीज़ को किसी ऐसी चीज़ के कारण छोड़ देना जो वाजिब नहीं है, जाइज़ नहीं है।
इस्लामी साक्ष्य विधि में एक पुरूष की गवाही दो मुस्लिम औरतो के बराबर बतायी गयी है ।



पैगम्बर की एक प्रसिद्ध परंपरा भी है जो कि कातिब अल वकीदी से संबंधित है और जिसको मुल्ला लोग मुस्लिम भाई चारे की घोषणा के लिए गर्व से बताते हैं:
‘‘ मेरी दो पत्नियों की ओर देखो और इनमें से तुम्हें जो सर्वाधिक अच्छी लगे उसे चुन लो । ’’
इस भाई चारे का प्रदर्शन मदीने के एक मुसलमान ( अंसार ) ने एक प्रवासी मुसलमान से उस समय किया था । जब पैगम्बर ने अपने अनुयायियों समेत मक्का से भागकर मदीने में शरण ली थी । यह प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया गया था और भेटकर्ता ने अपनी उस पत्नि को तलाक दे दिया था जिसको प्रस्ताव के स्वीकारकर्ता व्यक्ति ने चुना था ।



हांलाकि इस विषय मुस्लिम विद्वानों में एक राय नहीं है । अफ्रीका के मुस्लिम देशों में यह प्रथा है कि वहां लड़की का भी खतना किया जाता है । यह इस्लामी मूर्खता की एक और मिसाल है किसी भी बात का निर्धारण उसके वैग्यानिक रूप से उपयोगी होने अथवा न होने से नहीं किया जाता बल्कि हर बात के कुरान व हदीस के आदेशों का सहारा लेना पड़ता है । बताया जाता है कि लड़की खतना काफी कष्टकारी प्रक्रिया है । व इसके होने का कारण यह बताया जाता है कि चूकिं इस्लाम में एक पुरूष को चार पत्नियां रखने का अधिकार है इस कारण वह अपनी चारों पत्नियो को संतुष्ट नहीं कर सकता । महिला के खतना करने से उसे संभोग से मिलने वाले आंनद में कमी आ जाती है इस कारण वह अपने पति के प्रति ईमानदार बनी रहती है ।
स्पष्टीकरण

महिला खतने से होने वाले दुष्प्रभाव

महिला खतने से होने वाले दुष्प्रभाव




कोई स्त्री बिना मरहम ( एसा पुरूष जिससे इस्लाम के अनुसार विवाह नहीं किया जा सकता हो जैसे सगा भाई व पिता ) के घर से बाहर नहीं जा सकती ।
स्पष्टीकरण

सारांश यह है कि इस्लाम में स्त्री को केवल भोग की वस्तु माना गया है । उसे केवल भरण पोषण का अधिकार दिया गया है जैसा कि एक गुलाम को दिया जाता है । भारत के सभी जागरूक लोगों से अपील है कि भारत में रहने वाली इन दस करोड़ मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए महिला आयोग व सरकार पर दबाव बनाएं ।
http://www.hindusthangaurav.com/womaninislam.asp