रविवार, अगस्त 25, 2013

क्या है चौरासी कोस परिक्रमा, जानिए ?.........


क्या है चौरासी कोस परिक्रमा, जानिए ?.....................,

इटली की भक्ति करते करते अब दोगले कांग्रेसी हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति को भूल चुके है | इन दोगलो को ये नही मालूम की जब राजा दशरथ को कोई सन्तान नही थी तब उनको वशिष्ठ जी ने पुरे अयोध्या को चारो तरफ ८४ कोस का परिक्रमा करने को कहा .. फिर राजा दशरथ में सबसे पहले ८४ कोसी परिक्रमा की थी |
फिर बाद में ये परिक्रमा हिन्दुधर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया | भगवान राम हर वर्ष चौरासी कोसी परिक्रमा करते थे |
यहाँ तक की मुगलों के राज में और सबसे बदनाम मुगल शासक औरंगजेब के राज में भी कभी इस पर रोक नही लगी ..लेकिन आज इस परिक्रमा को रोक दिया गया है |

- मान्यताओं के मुताबिक अयोध्या के राजा राम का साम्राज्य 84 कोस (252‍ किलोमीटर) में फैला था। राज्य का नाम कौशलपुर था जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इसी वजह से दशकों से 84 कोसी परिक्रमा की परंपरा है।

यात्रा के मार्ग में उत्तर प्रदेश के छह जिले आते हैं- बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, अंबेडकरनगर और बस्ती जिला। उक्त जिलों में यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव होते हैं जहां रुककर यात्री आराम करते हैं।

कैसे करते हैं परिक्रमा : परिक्रमा करने वाले 84 कोस की दूरी पैदल, बस, ट्रैक्टर-ट्रॉली तथा अन्य साधनों से तय करते हैं। इनमें अधिकांश परिक्रमार्थी संपूर्ण परिक्रमा पैदल चलकर पूर्ण करते हैं।

यात्रा के अपने नियम हैं इसमें शामिल होने वालों के प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है, इनमें प्रमुख हैं- धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कथासंकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है। सत्य बोलना, दूसरों के अपराधों का क्षमा करना, तीर्थों में स्नान करना, आचमन करना, भगवत निवेदित प्रसाद का सेवन, तुलसीमालापर हरिनामर कीर्तन या वैष्णवों के साथ हरिनाम संकीर्तन करना चाहिए।

परिक्रमा के समय मार्ग में स्थित ब्राह्मण, श्रीमूर्ति, तीर्थ और भगवद्लीला स्थलियों का विधिपूर्वक सम्मान एवं पूजा करते हुए परिक्रमा करें। परिक्रमा पथ में वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदि को नहीं छेड़ना, साधु-संतों आदि का अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्य का वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसा से बचना, परनिन्दा, पर चर्चा और कलेस से सदा बचना चाहिए


क्या है चौरासी कोस परिक्रमा, जानिए ?.....................,

इटली की भक्ति करते करते अब दोगले कांग्रेसी हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति को भूल चुके है | इन दोगलो को ये नही मालूम की जब राजा दशरथ को कोई सन्तान नही थी तब उनको वशिष्ठ जी ने पुरे अयोध्या को चारो तरफ ८४ कोस का परिक्रमा करने को कहा .. फिर राजा दशरथ में सबसे पहले ८४ कोसी परिक्रमा की थी |
फिर बाद में ये परिक्रमा हिन्दुधर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया | भगवान राम हर वर्ष चौरासी कोसी परिक्रमा करते थे |
यहाँ तक की मुगलों के राज में और सबसे बदनाम मुगल शासक औरंगजेब के राज में भी कभी इस पर रोक नही लगी ..लेकिन आज इस परिक्रमा को रोक दिया गया है |

 - मान्यताओं के मुताबिक अयोध्या के राजा राम का साम्राज्य 84 कोस (252‍ किलोमीटर) में फैला था। राज्य का नाम कौशलपुर था जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इसी वजह से दशकों से 84 कोसी परिक्रमा की परंपरा है।

यात्रा के मार्ग में उत्तर प्रदेश के छह जिले आते हैं- बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, अंबेडकरनगर और बस्ती जिला। उक्त जिलों में यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव होते हैं जहां रुककर यात्री आराम करते हैं।

कैसे करते हैं परिक्रमा : परिक्रमा करने वाले 84 कोस की दूरी पैदल, बस, ट्रैक्टर-ट्रॉली तथा अन्य साधनों से तय करते हैं। इनमें अधिकांश परिक्रमार्थी संपूर्ण परिक्रमा पैदल चलकर पूर्ण करते हैं।

यात्रा के अपने नियम हैं इसमें शामिल होने वालों के प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है, इनमें प्रमुख हैं- धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कथासंकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है। सत्य बोलना, दूसरों के अपराधों का क्षमा करना, तीर्थों में स्नान करना, आचमन करना, भगवत निवेदित प्रसाद का सेवन, तुलसीमालापर हरिनामर कीर्तन या वैष्णवों के साथ हरिनाम संकीर्तन करना चाहिए।

परिक्रमा के समय मार्ग में स्थित ब्राह्मण, श्रीमूर्ति, तीर्थ और भगवद्लीला स्थलियों का विधिपूर्वक सम्मान एवं पूजा करते हुए परिक्रमा करें। परिक्रमा पथ में वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदि को नहीं छेड़ना, साधु-संतों आदि का अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्य का वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसा से बचना, परनिन्दा, पर चर्चा और कलेस से सदा बचना चाहिए

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