एल्फ्रेडो मोज़र के अविष्कार से जल्द ही दुनिया रौशन
होने वाली है. 2002 में एक ब्राज़ीलियन मैकेनिक ने ऐसा बल्ब तैयार किया है,
जो अगले साल तक दस लाख घरों में रोशनी फैलाएगा और वह भी एकदम मुफ़्त.
मोज़र का यह अविष्कार भारत तक पहुंच चुका है. मोज़र ने यह क्लिक करें
बल्ब महज़ प्लास्टिक की बोतलों में पानी भरकर और उन्हें सूरज की रोशनी में रखकर बनाया था.
सवाल यह है कि यह बल्ब कैसे काम करता है? दो लीटर की प्लास्टिक बोतल को भरते हुए मोज़र बताते हैं सूरज की किरणों के फैलने से यह क्लिक करें चमकता है.
‘बोतल के दो ढक्कन भरकर ब्लीच को इसमें डाल दें, ताकि काई की वजह से पानी हरा न हो. जितनी बोतल साफ़ होगी, उतना ही अच्छा है.’
चेहरे पर कपड़ा लपेटकर वह छत की टाइल में ड्रिल से छेद करते हैं. बोतल को ऊपर रखते हुए वह उसे इस छेद में डाल देते हैं. वह बताते हैं, ‘आप बोतल को पॉलिएस्टर रेज़िन से जमाएं. ताकि बारिश में भी छत कभी लीक न करे और एक भी बूंद पानी की न आए.’
वह बताते हैं, ‘एक इंजीनियर यहां आया और रोशनी की पड़ताल की. यह इस पर निर्भर करती है कि सूरज कितना चमकदार है. कुल मिलाकर 40 से 60 वॉट तक बिजली मिल जाती है.’
ऐसे आया ख़्याल
मोज़र को इस तरह का लैंप बनाने का विचार तब आया जब 2002 में पूरे ब्राज़ील में जमकर बिजली कटौती चल रही थी. केवल फ़ैक्ट्रियों में ही रोशनी थी और लोगों के घरों में अंधेरा था. मोज़र दक्षिण ब्राज़ील के उबेराबा इलाक़े में रहते हैं.मोज़र और उनके दोस्त इस बात से परेशान थे कि अगर कोई आपात स्थिति हो तो वो क्या करेंगे.
उनके बॉस ने उन्हें तब एक प्लास्टिक बोतल को पानी से भरकर उसे लैंस की तरह इस्तेमाल करने की सलाह दी. इसके ज़रिए वो सूखी घास जला सकते थे और इस तरह आग जलाकर बचावकर्मियों को संदेश दे सकते थे. मगर मोज़र के मन में यह ख़्याल जड़ जमा गया था और वह इसके इर्दगिर्द सोचने लगे. जल्द ही उन्होंने अपना लैंप तैयार कर लिया.
मोज़र ने अपने पड़ोस में इन बोतल बल्बों को लगाया और इसके बाद एक स्थानीय सुपरमार्केट में. इन्हें लगाने के एवज़ में उन्हें कुछ डॉलर ही मिलते हैं. उनका मामूली घर और उनकी 1974 मेड कार को देखकर लगता है कि उन्हें उनके अविष्कार ने अमीर नहीं बनाया. मगर जो इस अविष्कार के बदले उन्हें मिला, वह है- गर्व का अहसास.
कितनी बिजली बचाते हैं लैंप?
अब स्थानीय समुदाय के लोग प्लास्टिक बोतलों को बचाकर रखते हैं और इसलिए उन्हें इकट्ठा करने, बनाने या नई बोतलें खरीदने में भी खर्च नहीं होता.वह कहते हैं, ‘क्या आपको पता है कि एक शख्स ने इन लाइटों को लगाने के बाद एक महीने में अपने बच्चे के लिए ज़रूरी चीज़ें जुटाने के लिए काफ़ी पैसा इकट्ठा कर लिया, जो अभी पैदा भी नहीं हुआ था.’
मोज़र की शादी को 35 साल बीत चुके हैं. उनकी पत्नी कार्मेलिंडा का कहना है कि उनके पति अपने घर की चीज़ों की देखभाल के मामले में हमेशा काफ़ी आगे रहे हैं. मगर वह अकेली नहीं जो अपने पति के अविष्कार की इतनी इज़्ज़त करती हों. फ़िलीपींस में मायशैल्टर फ़ाउंडेशन के एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर इल्लैक एंजेलो डियाज़ भी उनके बारे में यही सोचते हैं.
मायशैल्टर घरों के निर्माण के वैकल्पिक तरीक़ों पर काम करने वाली कंपनी है. वह प्लास्टिक बोतलों में पानी भरकर उन्हें खिड़कियों की तरह इस्तेमाल करते थे. तभी उन्हें मोज़र के अविष्कार के बारे में पता चला.
मोज़र का तरीक़ा अपनाकर मायशैल्टर ने जून 2011 में लैंप बनाने शुरू किए. अब वह लोगों को इन बोतलों को बनाने और लगाने की ट्रेनिंग देती है. एक लाख 40 हज़ार फ़िलीपाइन घरों में मोज़र का अविष्कार क्लिक करें रोशनी दे रहा है.
बांग्लादेश में भी 'बोतल-बाती'
बांग्लादेश की राजधानी ढाका के घरों, कारोबारियों के दफ़्तरों और स्लम तक बिजली नहीं है. ऐसे में 80 से 90 फ़ीसदी लोग ग़ैरक़ानूनी ढंग से बिजली हासिल करते हैं. जब नियमित बिजली कट होते हैं तो उनका एकमात्र सहारा होती हैं मोमबत्तियां या फिर केरोसीन लैंप.चेंज नाम की एक संस्था ने इस साल की शुरुआत में यहां मोज़र का अविष्कार बोतल लैंप बांटना शुरू किया. इसे लोग बांग्लादेश में बोतलबाती कहते हैं. ज़ाहिर है इसका फ़ायदा साड़ी निर्माताओं और रिक्शॉ बनाने वालों को मिल रहा है, जिनकी रोज़ी रोटी ही रोशनी पर टिकी है.
‘चेंज’ इस लैंप के एवज में कुछ पैसा वसूलती है, जिसकी कीमत दो-तीन किलोग्राम चावल के बराबर है. संस्था के सदस्य इक़बाल का कहना है, ‘अगर आप मुफ़्त में लैंप बांटेंगे तो वो इसकी देखभाल नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें इसकी अहमियत नहीं पता.’
डियाज़ का अनुमान है कि अगले साल की शुरुआत तक मोज़र के लैंप का फ़ायदा क़रीब 10 लाख लोग उठा रहे होंगे.
वह कहते हैं, ‘एल्फ्रेडो मोज़र ने लाखों लोगों की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया है. चाहे उन्हें नोबल पुरस्कार मिले या नहीं, हम उन्हें बताना चाहते हैं कि दुनिया में बहुत से लोग हैं जो उनके अविष्कार की इज़्ज़त करते हैं.’
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/08/130814_moser_lamp_aj.shtml
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