रविवार, जुलाई 29, 2018

पत्थलगड़ी का सच (5):

पत्थलगड़ी का सच (5): भारत की देशी सरकार के खिलाफ राजद्रोह का षड्यंत्र।
पत्थलगड़ी के पत्थर पर भारत की स्वदेशी सरकार के विरुद्ध बगावत के षड्यंत्र की पंक्तियाँ अंकित हैं। इस शिलालेख में कहा गया है कि "भारत सरकार आदिवासी लोग हैं।" आईये समझते हैं कि इस पँक्ति और इसके आगे की पँक्तियों का अर्थ क्या है? लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा संचालित शासन प्रणाली है। जिसमें सारा स्वामित्व जनता में निहित है। देश के एक एक इंच भूमि की स्वामी जनता है। देश के हवा, वायु, प्रकाश, जल, मिट्टी, रेत, जंगल, जैव संपदा, खनिज, इत्यादि सभी प्राकृतिक संसाधनों की स्वामी जनता है। देश के अंदर के सभी प्रकार के संसाधनों की स्वामी जनता है।
किंतु भारत जैसे विशाल देश में जनता का यह स्वामित्व भारत के एक गाँव के बराबर की जनसंख्या वाले यूरोपियन सिटी स्टेटस की भाँति लागू करना संभव नही हैं। भारत समेत दुनिया के सभी बड़े देशों में जनता के स्वामित्व का हस्तांतरण स्थानीय जन प्रतिनिधियों को चुनावी मतदान के द्वारा मत देकर किया जाता है। चूँकि कोई भी ऐसा असेम्बली हॉल बनाना आज के टेक्नोलॉजीकल/
इंजीनियरिंग/वैज्ञानिक युग में भी संभव नहीं है जिसमें 132 करोड़ जनता बैठकर विधि का निर्माण कर सके और राजकाज का संचालन कर सके। इसीलिये जन प्रतिनिधि चुनना ही सबसे उपयुक्त विकल्प है।
इस प्रकार जन प्रतिनिधि जनता का नौकर न होकर एक संसदीय क्षेत्र को यदि भारत के परंपरागत परिवार भाव से एक परिवार मान लिया जाय तो उस पूरे क्षेत्र की जनता का अभिभावक है। उस क्षेत्र की विपुल जनता रूप में प्राप्त एक विस्तृत परिवार का मुखिया है। उनका हित चिंतक है। उनकी देखभाल करने वाला अधिक दायित्व समझने वाला एक जागरूक जिम्मेदार काबिल व्यक्ति है जो सबका भरोसा लेकर सबके लिए जीवन जीता है।
जन प्रतिनिधि एक क्षेत्र विशेष की जनता के अधिकारों को मत के माध्यम से ग्रहण करके संबंधित सदन में पहुँचता है। और इस क्षेत्र की जनता के स्वामित्व के अधिकारों का प्रयोग उस सदन में करता है। अर्थात उस प्रतिनिधि के माध्यम से संबंधित क्षेत्र की जनता ही अपने स्वामित्व के अधिकारों का सदन में प्रयोग करती है। अप्रत्यक्ष रुप से जनता ही जन प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि भी बनाती है और राज काज का संचालन करती है। जनता की यह आधिकारिक भावना राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के घोषणापत्र में भी प्रतिबिम्बित होता है। जनता अनेक बार यह अधिकारपूर्ण भावना अनेक प्रकार के आंदोलनों के माध्यम से भी अभिव्यक्त करती है। ज्ञापन देना, सरकारी विभाग-मंत्रियों-अधिकारियों को पत्र लिखना इसी स्वामित्व के अधिकार का प्रकटीकरण है।
इतना समझने के बाद एक बात स्पष्ट हो जाता है कि देश का स्वामी भारत की जनता ही है। फिर सभी 132 करोड़ जनता को भारत सरकार न कहकर केवल आदिवासियों को ही भारत सरकार कहने के पीछे निहितार्थ क्या है? क्या यह मूल निवासी और आक्रमणकारी के मनगढ़ंत फर्जी कांसेप्ट को स्थापित करने का प्रयास है? या फिर समाज के एक धड़े को देश का स्वामी कहकर उसे भड़काकर दूसरे धड़े के साथ लड़ाकर गृह युद्ध छेड़ने की शातिर चाल है? या फिर भारत के खिलाफ जनता को उकसाकर सत्ता पलटने का षड्यंत्र है? यह सारा षड्यंत्र एक सोची समझी रणनीति के अंतर्गत फैलाया जा रहा है।
पत्थलगड़ी करने वाला शातिर गिरोह "भारत सरकार आदिवासी लोग हैं" कहने के बाद आगे अंकित करता है पत्थर पर कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार आदिवासियों के ऑन इंडिया गवर्नमेंट सर्विस (O.I.G.S.)- भारत सरकार के सेवार्थ में काम करने वाले नौकर-कुली-जुड़ी हैं। यहाँ अनेक बातें समझ लेना बहुत आवश्यक है। यहाँ तीन प्रकार के सरकारों का वर्णन किया गया है। 1.केंद्र सरकार, 2.राज्य सरकार और 3.भारत सरकार। अब प्रश्न उठता है कि यहाँ इस पंक्ति में केंद्र सरकार और भारत सरकार में क्या अंतर है? आखिर कोन है भारत सरकार जिसका नौकर-कुली-जुड़ी केंद्र सरकार और राज्य सरकार को कहा गया है? यह भारत सरकार निश्चय ही इन देशद्रोहियों की बनाई हुई कोई अघोषित सरकार है जिसका हवाला ये लोग यहाँ दे रहे हैं।
जी हाँ यह आशंका नहीं सत्य है। इन्होंने एक अवैध सरकार बनाया हुआ है जिसका नामकरण ये लोग करते हैं ए सी भारत सरकार के रुप में। यह ए सी भारत सरकार संचालित होता है गुजरात से। जहाँ जहाँ भी पत्थलगड़ी हो रहा है वहाँ वहाँ के मिशनरीज चिन्हित गाँव में पहले माहौल बनाकर, उस गाँव की जनसँख्या, गाँव के प्रभावी लोगों की शक्ति, गाँव की कुल जनशक्ति, गाँव के लोगों की प्रकृति इत्यादि का आकलन करके, और इसके परिप्रेक्ष्य में अपनी स्थानीय शक्ति का आकलन कर लेने के उपरांत एक प्रस्ताव बनाकर गुजरात भेजते हैं। वहाँ चलाई जा रही इनकी ए सी भारत सरकार उस प्रस्ताव को स्वीकार करके इस कारनामे को अंजाम देने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति करता है और साथ ही फंड रिलीज करता है तब घटित होती है यह पत्थलगड़ी की घटना।
आपको बताता चलूँ कि उनका यह फंड भारत में आन्तरिक रूप से चलाए जा रहे हवाला के नेटवर्क के माध्यम से संबंधित स्थान तक पहुंचाया जाता है। जिस व्यक्ति को फंड पहुंचना है उस व्यक्ति को एक दस रुपये के नोट का नोट पर अंकित करेंसी क्रमांक पूछा जाता है। उस नोट का फोटो खींचकर व्हाट्सएप या मैसेंजर या मेल या किसी भी अन्य साधन से संबंधित व्यक्ति को भेजना होता है। फिर उसको बता दिया जाता है कि अमुक पते पर जाकर अमुक पहचान वाले व्यक्ति को इस नंबर का वही नोट दिखाना आपको आपके पैसे मिल जाएँगे। वही नोट दिखाना जिसका फ़ोटो आपने भेजा है। इस प्रकार के गैरकानूनी गोरखधंधों को भी संचालित करता है यह पत्थलगड़ी गिरोह वाला ए सी भारत सरकार।
इसी भारत सरकार की चर्चा पत्थलगड़ी वाले पत्थर पर किया गया है। इसी अवैध भारत सरकार के अधीन नौकर-कुली-जुड़ी कहा गया है केंद्र सरकार और राज्य सरकार को। अर्थात यह अवैध सरकार चलाने वाले लोग अपने अवैध सरकार को भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकार से ऊपर की चीज मानते हैं। अवैध भारत सरकार के कारिंदे स्वयं को आदिवासियों का ठेकेदार और मालिक घोषित करते हुए आदिवासियों को अपने इस भारत सरकार का अंग घोषित करने का प्रयत्न कर रहे हैं इस पत्थलगड़ी के माध्यम से। केंद्र सरकार के समानांतर एक सरकार चलाने का प्रयत्न सीधा सीधा देशद्रोह है। यह भारत की संप्रभुता को चुनौती देने का प्रयत्न है। यह भारत को धूल धूसरित करने की मानसिकता से छेड़ा गया भारत विरोधी अभियान है। इन देशद्रोहियों को कठोरता से कुचलने की आवश्यक्ता है। थोड़ी भी अनदेखी बड़े विप्लव का कारण बनेगा। देश में अशांति और असुरक्षा का वातावरण उपस्थित करेगा। समय रहते इनको मटियामेट कर देने की आवश्यकता है।
~मुरारी शरण शुक्ल।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें