रविवार, जुलाई 29, 2018

पत्थलगड़ी की घटना: 1

पत्थलगड़ी की घटना: देशविरोधी मनसा से गाँव पर कब्जे की नीयत: मिशनरीज और माओवाद का षड्यंत्र।
पत्थलगड़ी की घटना जहाँ जहाँ भी हुआ वहाँ वहाँ एक नौ-दस फिट ऊँचाई और लगभग चार फिट चौड़ाई का पत्थर गाँव की सीमा पर गाड़ा गया। उस पत्थर पर हरे रंग का पेंट चढ़ाया गया। और कई स्थानों पर छेनी से खोदकर लिखा गया तो कई स्थानो पर पेंट से ही लिख दिया गया। प्रायः गाँव में पत्थर पर दोनो साईड में लिखा गया। कहीं कहीं एक साईड में ही लिखकर काम चलाया गया। जहाँ जहाँ भी पत्थलगड़ी हुआ प्रायः सभी स्थानों पर 1500-2000 की संख्या में लोगों को ले जाकर गाँव को घेर लिया गया। हथियार बंद माओवादी गिरोहों का भी सहयोग लिया गया गाँव को घेरने और ग्रामीणों पर दबाब बनाने में। निहत्थे ग्रामीण, हथियार बंद लोगों के हुजूम के आगे विवश थे उनकी बात मान लेने को।
कड़िया मुंडा के गाँव घाघरा मंदरुडीह में हुई पत्थरगड़ी की घटना के कारण यह मुद्दा सर्वाधिक चर्चित हुआ। विदित हो कि कड़िया मुंडा वर्तमान में खूँटी के लोकसभा सांसद हैं, राज्यसभा के पूर्व उपसभापति रहे हैं और आदिवासी विषय और आदिवासी क्षेत्र की ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक विषयों के बहुत बड़े विद्वान बयोवृद्ध नेता हैं। ऊस गाँव में पत्थरगड़ी करने के बाद पत्थरगड़ी करने वाली भीड़ ने कड़िया मुंडा जी के घर पर आक्रमण किया, उनके तीन अंगरक्षको का अपहरण कर लिया और उनके हथियार छीन लिए थे।
जो पत्थर वहाँ गाड़ा गया उस पत्थर पर सबसे ऊपर लिखा है भारत का संविधान। भारत का संविधान गाँव में लगाने की नीयत होती तो उस पर संविधान विषयक सत्य चर्चा नीचे भी लिखी होती। संविधान के कुछ अनुच्छेद व धाराओं का वर्णन अवश्य है किंतु उनके नाम पर यहाँ झूठ ही लिखा गया है। यहाँ "भारत का संविधान" केवल भोली भाली जनता के मस्तिष्क में संविधान के सहारे संविधान विरोधी बातों को स्थापित कराने के मनोवैज्ञानिक उद्देश्य से लिखा गया है। नीचे वर्णित एक भी बात का भारत के संविधान से कोई लेना देना नहीं है। "भारत का संविधान" लिखकर उसके नीचे अशोक स्तंभ भी बनाया गया है। अशोक स्तंभ भी मनोवैज्ञानिक उद्देश्य से ही उकेरा गया है। इससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि पत्थरगड़ी करने वाले लोगों को ज्ञात था कि इस देश की आदिवासी जनता देशभक्त है, संविधान का सम्मान करती है। अशोक स्तंभ देखकर नतमस्तक हो जाती है। इसीलिये संविधान का नाम लेकर संविधान के सहारे क्षदम रूप से संविधान विरोधी बातों को स्थापित करने का प्रयत्न किया गया।
दूसरी पंक्ति में लिखा है प्राकृतिक ग्राम पंचायत- घाघरा (मंदरुडीह)। यह पंक्ति ही ऊपर लिखे हुए भारत का संविधान शब्दावली को खारिज कर देता है। इस बात का समर्थन तीसरी पंक्ति में लिखा वाक्य भी करता है- "सर्वशक्ति सम्पन्नता मुंडारी खूंटकटी वर्जित क्षेत्र।" यहाँ पत्थरगड़ी को ही खूंटकटी कहा गया है। प्राकृतिक ग्राम पंचायत का यहाँ अर्थ है कि यहाँ आदिम जनजाति के लोग रहते हैं और यहाँ बाहर का कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं करेगा। न कोई सरकारी अधिकारी-कर्मचार
ी आएगा न ही कोई अन्य जाती का व्यक्ति यहाँ आएगा। यह प्राकृतिक रुप से सर्वशक्तिसम्पन्न क्षेत्र है। अर्थात स्वशासित क्षेत्र है जिसपर भारत के संविधान के अंतर्गत बनी हुई कोई भी व्यवस्था लागू नहीं होगी। सर्वशक्तिसम्पन्नता अर्थात सम्प्रभुता संपन्नता तो केवल भारत राष्ट्र को ही प्रदान करता है भारत का संविधान। ग्राम को सर्वशक्तिसम्पन्न घोषित करते ही आप भारत की संप्रभुता को चुनौती प्रस्तुत कर देते हैं अर्थात भारत के संविधान को आप खारिज कर देते हैं। संप्रभुता सर्वोच्च इकाई अर्थात केंद्र सरकार को ही प्राप्त हो सकता है। संप्रभुता किसी राज्य, जिला, प्रखंड, पंचायत या ग्रामसभा को सौंपना ही देश से बगावत का प्रयत्न है।
चौथी पँक्ति में लिखा है- "भारत शासन अधिनियम 1935 अनुच्छेद- 91, 92 पारंपरिक रूढ़ि प्रथा ग्राम सभाओं के कानूनी अधिकार।" इसका अर्थ है कि 1947 के पश्चात बने और 1950 में लागू हुए संविधान के प्रावधानों को खारिज करते हुए 1935 के भारत शासन अधिनियम की धारा 91, 92 को सर्वोपरि घोषित करना। यह घोषणा का प्रयास आजादी के बाद बने संविधान सभा और बाद में उसका स्थान ले चुका भारतीय संसद के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। यह अतिक्रमण अपने आप में स्वयंसिद्ध देशद्रोह है। 1950 में लागू हुआ नया संविधान पुराने कानूनी व्यवस्था "भारत शासन अधिनियम 1935" को रिप्लेस करता है फिर पुराने कानून की वैधता स्वतः ही समाप्त हो जाती है। ऐसे में 1935 के अधिनियम के आधार पर कोई व्यवस्था बिना शासन-प्रशासन की स्वीकृति-अनुमति के लागू करने का प्रयास भी देशद्रोह है।
अब पांचवीं पंक्ति से पॉइंट नम्बर 1 आरम्भ होता है जिसमें अनुच्छेद 13 (3) (क) का वर्णन है। इसमें कहा गया है- "भारत का संविधान अनुच्छेद 13 (3) (क) के तहत रूढ़ि या प्रथा प्राकृतिक ग्राम सभा ही विधि का बल है।" यानी संविधान की शक्ति है। जबकि यथार्थ में अनुच्छेद 13 न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति की बात करता है। "अनुच्छेद 13 – न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति। अर्थात राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनायेगा जो भाग 3 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को छीनती या उन्हें न्यून करती है।" इससे स्पष्ट होता है कि यहाँ मनमाने और मनगढ़ंत बातों को अनुच्छेद 13 के नाम पर लिख दिया गया है जिसका उद्देश्य केवल भोली भाली ग्रामीण जनता को भारत सरकार और राज्य सरकार के विरुद्ध भड़काना ही है।
पॉइंट नम्बर 2 में लिखा है- "अनुच्छेद 19 पारा (5) और (6) के तहत मुंडारी खुटकट्टी क्षेत्रों में कोई भी बाहरी गैर रूढ़ि प्रथा व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से भ्रमण करना , बस जाना, घूमना फिरना, कारोबार-व्यवसाय तथा रोजगार-नौकरी करना पूर्णतः प्रतिबंध है।" यह वाक्य अपने आप में भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता के अधिकारो का वर्णन है। अनुच्छेद 19 (5) में लिखा है- "भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत में कहीं भी रहने या बस जाने की स्वतंत्रता है। भ्रमण और निवास के सम्बंध में यह व्यवस्था संविधान द्वारा अपनाई गई इकहरी नागरिकता के अनुरूप है। भ्रमण और निवास की इस स्वतंत्रता पर भी राज्य सामान्य जनता के हित और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हितों में उचित प्रतिबंध लगा सकती है।"
संविधान में वर्णित बातें पत्थलगड़ी में पत्थर पर वर्णित बातों को झूठ सिद्ध करती है। और जनता के हित में भ्रमण और निवास का बंधन लगाने का अधिकार किसी मिशनरीज को नहीं है। किसी माओवादी को नहीं है। किसी ग्रामं पंचायत या जिला प्रशासन को भी नहीं है। यह अधिकार केवल और केवल भारतीय गणराज्य को है। वैसे ही अनुच्छेद 13 (6) में व्यापार-रोजगार की चर्चा करते हुए सर्वाधिकार भारतीय गणराज्य को ही सुरक्षित है। भारत सरकार चाहे तो किसी व्यापार-रोजगार के बारे में कोई नियम बना सकती है या फिर स्वयं भी वह कारबार कर सकती है। अब प्रश्न है कि यह अधिकार मिशनरीज को किसने हस्तांतरित किया?
अब पॉइंट 3 में कहा गया है कि संसद या विधानसभा के द्वारा कोई भी कानून ग्राम सभा पर लागू नहीं होता है। पॉइंट 4 में जिले के उपायुक्त का कोई अधिकार ग्राम सभा तक विस्तारित नहीं है यह लिख दिया गया है। पॉइंट 5 में ग्राम सभा की जमीन के 15 हजार फिट ऊपर और 15 हजार फिट नीचे तक का पूरा मालिकाना हक ग्राम के आदिवासियों का है यह कहा गया है। यह सब बातें भारत के संविधान के विरुद्ध है। और एक एक बात भारत की संप्रभुता सम्पन्न सरकार को चुनौती देने वाली है। इस पत्थलगड़ी के पत्थर के ऊपर लिखित संदेश से ही मिशनरीज के भारत विरोधी चाल चरित्र का अनुमान लगाया जा सकता है। ये मिशनरीज वाले खूंटी को पूर्वी तिमोर बनाना चाहते हैं। और एक एक ग्राम को भारत से आजाद अलग अलग देश बनाना चाहते हैं। एक एक गाँव को एक एक वेटिकन सिटी बनाना चाहते हैं। इनकी कुत्सित संविधान विरोधी मानसिकता पर कठोरता पूर्वक अंकुश लगाना आवश्यक है।
~मुरारी शरण शुक्ल।

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