पत्थलगड़ी का सच (4): भारत के नागरिकों की पहचान मिटा देने का षड्यंत्र।
लोकतंत्र में मताधिकार जनता को दी गयी सबसे बड़ी शक्ति माना जाता है। इसके माध्यम से जनता सत्ता अधिष्ठान के बारे में चुनाव के समय अपना अभिमत व्यक्त करती है और जनता के सामूहिक मत से देश की सरकारें प्रभावित हुआ करती हैं। वस्तुतः जनता अपने मताधिकार के सहारे देश और राज्य की सरकारों का चयन करती है एक नियामित समयावधि के उपरान्त। किन्तु पत्थलगड़ी के शिलालेख में वोटर आई कार्ड और आधार कार्ड को आदिवासी विरोधी दस्तावेज कहा गया है। मताधिकार आदिवासी विरोधी कैसे हो सकता है? यह गंभीर मंथन का विषय है। आधार कार्ड को इस पत्थर पर आम आदमी का अधिकार कार्ड कहा गया है।
पत्थलगड़ी करने वाले इन देशद्रोही लोगों को आम आदमी के अधिकारो से भी समस्या है। इसीलिए वो इन कार्डों को आदिवासी विरोधी सिद्ध करके बंद करवा देना चाहते हैं जिससे आदिवासी समाज अपने मौलिक अधिकारो से रहित हो जाए, वंचित हो जाये। आदिवासी समाज को सचेत हो जाने की आवश्यक्ता है। अन्यथा ये मिशनरीज वाले माओवादियों के साथ मिलकर आदिवासियों का जीवन लकवाग्रस्त बना देने को प्रयत्नशील हैं। मिशनरीज के प्रभाव वाले सभी क्षेत्रों में देशभर में आदिवासियों की भयंकर गरीबी का एक मात्र कारण ये मिशनरीज वाले ही हैं। इन मिशनरीज वालों ने आदिवासियों का विकास होने नहीं दिया। जनकल्याणकारी योजनाओ को अनेक एनजीओ के माध्यम से प्रायः डकार जाने का इनका इतिहास रहा है।
पूरे देश में 47 लोकसभा सीटों को अदिवासियों के लिए आरक्षित रखा गया है। अनेक राज्यों के विधानसभाओं में भी आदिवासियों के लिए सीटें आरक्षित रहती हैं। नौकरी से लेकर शिक्षा व जनकल्याणकारी योजनाओं के विषय में भी आदिवासियों के लिए आरक्षण का प्रबंध किया गया है। आदिवासी समाज के लिए की गई इन सभी व्यवस्थाओं का आधार मतदाता पहचान पत्र और नागरिक पहचान के दस्तावेज ही होते हैं। नागरिक पहचान के दस्तावेज के रूप में ही आज आधार कार्ड का उपयोग हो रहा है। ये दस्तावेज यदि नहीं होंगे आदिवासियों के पास तो उनको वोट देने के अधिकार से लेकर जनकल्याण की योजनाओं तक का लाभ नहीं मिल पायेगा। और ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज और अधिक अभाव एवं गरीबी में धँसता चला जायेगा। गरीब, मजबूर, लाचार, विवश आदिवासी समाज मतान्तरण के लिए मिशनरीज का आसान शिकार होता है।
मतदाता पहचान पत्र को हटा देने से आदिवासी क्षेत्रों के मतदाताओं की पहचान कठिन हो जाएगी और फिर लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में आ जायेगा। आदिवासी समाज लोकतंत्र के महापर्व चुनाव में सहभागिता से वंचित हो जाएगा यदि उसके पास वोटर आई कार्ड नहीं होगा तो। यही चाहते हैं मिशनरीज वाले षड्यंत्रकारी लोग। आधार कार्ड या अन्य नागरिक दस्तावजों को और परिष्कृत करते हुए आज आसाम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) लाने का प्रयत्न चल रहा है। NRC की प्रथम सूची प्रकाशित भी हो चुकी है। दूसरी सूची शीघ्र ही आने वाली है। उसको देश भर में लागू करने की बात चल रही है। उसके आधार पर बाहरी लोगों की पहचान आसान हो जाएगा। घुसपैठियों की पहचान आसान हो जाएगा। अवैध रूप से भारत मे रह रहे लोगों की पहचान आसान हो जाएगी। एनआरसी भविष्य में पूरे देश में न लागू हो जाए इसके भय से आधारभूत पहचान पत्रों का भी विरोध आरम्भ कर दिया गया है।
क्या अवैध रुप से रह रहे लोगों की पहचान हो जाने के भय से मिशनरीज वाले लोग पत्थलगड़ी में पत्थर पर भारत सरकार द्वारा निर्गत दस्तावजों को आदिवासी विरोधी घोषित कर रहे हैं? दुनियाँ के सारे देशों में अपने नागरिकों की पहचान के लिए कुछ न कुछ दस्तावेज का सृजन किया जाता है। ईसाई देशों में भी ऐसे दस्तावेज बनाए जाते हैं। यूरोप, अमेरिका में तो ऐसे नागरिकता के कार्ड बड़े सटीक व्यस्था से बनते हैं। वहाँ जॉब कार्ड बनता है बाहर से आये लोगो के लिए। ग्रीन कार्ड जैसे दस्तावेजो का प्रबंध होता है। इस्लामिक देशों में भी ऐसे नागरिकता के कार्ड्स बनाये जाते हैं। फिर भारत में नागरिक पहचान या मतदाता पहचान के लिए बनाए रहे सरकारी दस्तावेज आदिवासी विरोधी कैसे हो गए?
वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा आधार कार्ड को बैंक के खाते, मोबाइल फोन और पैन कार्ड से जोड़ देने के कारण देश में कई दशको से चलाए जा रहे कई अवैध धंधे बंद हो चुके हैं। मिशनरीज के गोरखधंधे और माओवादियों के कई लेन देन भी इससे प्रभावित हुए हैं। क्या यह आर्थिक हानि आधार कार्ड के विरोध का मूल कारण है? इंडिया नन ज्यूडिशियल कहकर क्या सरकारी न्याय व्यस्था को नकारने के पीछे यही हेतु है? संकुचित निहित स्वार्थों के बशीभूत भारत का विरोध राष्ट्रद्रोह के स्तर तक पहुँच रहा है यह अत्यंत खतरनाक है। यह तो देश की व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयत्न है। इसका संज्ञान न्यायालयों को भी लेना चाहिए और सरकारों को भी। देश के विरुद्ध चलाया जा रहा यह खतरनाक खेल किसी भी दृष्टि से अनदेखी करने वाला विषय नहीं है।
अनेकों लोग अनेक देशों से टूरिस्ट वीजा पर भारत आते हैं और यहाँ धर्म प्रचार के कार्य में लग जाते हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग वर्षानुवर्ष से भारत में अवैध रुप से रह रहे हैं। अनेक तो कई फर्जी/सिंथेटिक कारण उपस्थित करवाकर शरणार्थी का दर्जा प्राप्त करके भारत में लंबे समय से निवास कर रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों के लोग भी शरणार्थी के रूप में निवास करते हैं। आज दुनियाँ के लगभग 80 देशों के लोग भारत में शरणार्थी के रूप में रहते हैं। भारत में जितने शरणार्थी हैं उतने शरणार्थी विश्व के किसी भी देश में नहीं हैं।
अमेरिका स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी खड़ा करके कहता है कि वो शरणार्थियों की राजधानी है। किंतु यह बहुत बड़ा झुठ है। असल में शरणार्थियों की राजधानी तो भारत है। यहाँ लगभग 10 करोड़ से अधिक शरणार्थी हैं। एक अकेले बांग्लादेश के ही लगभग 7-8 करोड़ लोग भारत के विभिन्न प्रान्तों में निवास करते हैं। दो लाख से अधिक तो बर्मा से रोहिंग्या मुसलमान भारत मे आ बसे हैं। उन सभी एनोनिमस लोगों में कई प्रकार के लोगों की पहचान हो जाएगी यदि यह पहचान पत्र पूर्णतः लागू हो गया तो। पहचान पत्रों के निर्माण में थोड़ी चौकसी, सख्ती और सजगता ले आने से फर्जी कार्ड्स निरस्त हो जाने का भय सता रहा है देश विरोधियों को। भारत में पहचान पत्रों की व्यापक उपयोगिता से उनका पहचान उजागर हो जाएगा। यह भय इस विरोध का मूल कारण है। अवैध रूप से भारत में रह रहे लोग भारत के नागरिकों की पहचान मिटा देना चाहते हैं जिससे उनको यहाँ छुपकर रहना आसान हो जाये। इस षड्यंत्र को शिघ्र समझकर उचित निदान करना बहुत आवश्यक है।
~मुरारी शरण शुक्ल।
लोकतंत्र में मताधिकार जनता को दी गयी सबसे बड़ी शक्ति माना जाता है। इसके माध्यम से जनता सत्ता अधिष्ठान के बारे में चुनाव के समय अपना अभिमत व्यक्त करती है और जनता के सामूहिक मत से देश की सरकारें प्रभावित हुआ करती हैं। वस्तुतः जनता अपने मताधिकार के सहारे देश और राज्य की सरकारों का चयन करती है एक नियामित समयावधि के उपरान्त। किन्तु पत्थलगड़ी के शिलालेख में वोटर आई कार्ड और आधार कार्ड को आदिवासी विरोधी दस्तावेज कहा गया है। मताधिकार आदिवासी विरोधी कैसे हो सकता है? यह गंभीर मंथन का विषय है। आधार कार्ड को इस पत्थर पर आम आदमी का अधिकार कार्ड कहा गया है।
पत्थलगड़ी करने वाले इन देशद्रोही लोगों को आम आदमी के अधिकारो से भी समस्या है। इसीलिए वो इन कार्डों को आदिवासी विरोधी सिद्ध करके बंद करवा देना चाहते हैं जिससे आदिवासी समाज अपने मौलिक अधिकारो से रहित हो जाए, वंचित हो जाये। आदिवासी समाज को सचेत हो जाने की आवश्यक्ता है। अन्यथा ये मिशनरीज वाले माओवादियों के साथ मिलकर आदिवासियों का जीवन लकवाग्रस्त बना देने को प्रयत्नशील हैं। मिशनरीज के प्रभाव वाले सभी क्षेत्रों में देशभर में आदिवासियों की भयंकर गरीबी का एक मात्र कारण ये मिशनरीज वाले ही हैं। इन मिशनरीज वालों ने आदिवासियों का विकास होने नहीं दिया। जनकल्याणकारी योजनाओ को अनेक एनजीओ के माध्यम से प्रायः डकार जाने का इनका इतिहास रहा है।
पूरे देश में 47 लोकसभा सीटों को अदिवासियों के लिए आरक्षित रखा गया है। अनेक राज्यों के विधानसभाओं में भी आदिवासियों के लिए सीटें आरक्षित रहती हैं। नौकरी से लेकर शिक्षा व जनकल्याणकारी योजनाओं के विषय में भी आदिवासियों के लिए आरक्षण का प्रबंध किया गया है। आदिवासी समाज के लिए की गई इन सभी व्यवस्थाओं का आधार मतदाता पहचान पत्र और नागरिक पहचान के दस्तावेज ही होते हैं। नागरिक पहचान के दस्तावेज के रूप में ही आज आधार कार्ड का उपयोग हो रहा है। ये दस्तावेज यदि नहीं होंगे आदिवासियों के पास तो उनको वोट देने के अधिकार से लेकर जनकल्याण की योजनाओं तक का लाभ नहीं मिल पायेगा। और ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज और अधिक अभाव एवं गरीबी में धँसता चला जायेगा। गरीब, मजबूर, लाचार, विवश आदिवासी समाज मतान्तरण के लिए मिशनरीज का आसान शिकार होता है।
मतदाता पहचान पत्र को हटा देने से आदिवासी क्षेत्रों के मतदाताओं की पहचान कठिन हो जाएगी और फिर लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में आ जायेगा। आदिवासी समाज लोकतंत्र के महापर्व चुनाव में सहभागिता से वंचित हो जाएगा यदि उसके पास वोटर आई कार्ड नहीं होगा तो। यही चाहते हैं मिशनरीज वाले षड्यंत्रकारी लोग। आधार कार्ड या अन्य नागरिक दस्तावजों को और परिष्कृत करते हुए आज आसाम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) लाने का प्रयत्न चल रहा है। NRC की प्रथम सूची प्रकाशित भी हो चुकी है। दूसरी सूची शीघ्र ही आने वाली है। उसको देश भर में लागू करने की बात चल रही है। उसके आधार पर बाहरी लोगों की पहचान आसान हो जाएगा। घुसपैठियों की पहचान आसान हो जाएगा। अवैध रूप से भारत मे रह रहे लोगों की पहचान आसान हो जाएगी। एनआरसी भविष्य में पूरे देश में न लागू हो जाए इसके भय से आधारभूत पहचान पत्रों का भी विरोध आरम्भ कर दिया गया है।
क्या अवैध रुप से रह रहे लोगों की पहचान हो जाने के भय से मिशनरीज वाले लोग पत्थलगड़ी में पत्थर पर भारत सरकार द्वारा निर्गत दस्तावजों को आदिवासी विरोधी घोषित कर रहे हैं? दुनियाँ के सारे देशों में अपने नागरिकों की पहचान के लिए कुछ न कुछ दस्तावेज का सृजन किया जाता है। ईसाई देशों में भी ऐसे दस्तावेज बनाए जाते हैं। यूरोप, अमेरिका में तो ऐसे नागरिकता के कार्ड बड़े सटीक व्यस्था से बनते हैं। वहाँ जॉब कार्ड बनता है बाहर से आये लोगो के लिए। ग्रीन कार्ड जैसे दस्तावेजो का प्रबंध होता है। इस्लामिक देशों में भी ऐसे नागरिकता के कार्ड्स बनाये जाते हैं। फिर भारत में नागरिक पहचान या मतदाता पहचान के लिए बनाए रहे सरकारी दस्तावेज आदिवासी विरोधी कैसे हो गए?
वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा आधार कार्ड को बैंक के खाते, मोबाइल फोन और पैन कार्ड से जोड़ देने के कारण देश में कई दशको से चलाए जा रहे कई अवैध धंधे बंद हो चुके हैं। मिशनरीज के गोरखधंधे और माओवादियों के कई लेन देन भी इससे प्रभावित हुए हैं। क्या यह आर्थिक हानि आधार कार्ड के विरोध का मूल कारण है? इंडिया नन ज्यूडिशियल कहकर क्या सरकारी न्याय व्यस्था को नकारने के पीछे यही हेतु है? संकुचित निहित स्वार्थों के बशीभूत भारत का विरोध राष्ट्रद्रोह के स्तर तक पहुँच रहा है यह अत्यंत खतरनाक है। यह तो देश की व्यवस्था को चुनौती देने का प्रयत्न है। इसका संज्ञान न्यायालयों को भी लेना चाहिए और सरकारों को भी। देश के विरुद्ध चलाया जा रहा यह खतरनाक खेल किसी भी दृष्टि से अनदेखी करने वाला विषय नहीं है।
अनेकों लोग अनेक देशों से टूरिस्ट वीजा पर भारत आते हैं और यहाँ धर्म प्रचार के कार्य में लग जाते हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग वर्षानुवर्ष से भारत में अवैध रुप से रह रहे हैं। अनेक तो कई फर्जी/सिंथेटिक कारण उपस्थित करवाकर शरणार्थी का दर्जा प्राप्त करके भारत में लंबे समय से निवास कर रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों के लोग भी शरणार्थी के रूप में निवास करते हैं। आज दुनियाँ के लगभग 80 देशों के लोग भारत में शरणार्थी के रूप में रहते हैं। भारत में जितने शरणार्थी हैं उतने शरणार्थी विश्व के किसी भी देश में नहीं हैं।
अमेरिका स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी खड़ा करके कहता है कि वो शरणार्थियों की राजधानी है। किंतु यह बहुत बड़ा झुठ है। असल में शरणार्थियों की राजधानी तो भारत है। यहाँ लगभग 10 करोड़ से अधिक शरणार्थी हैं। एक अकेले बांग्लादेश के ही लगभग 7-8 करोड़ लोग भारत के विभिन्न प्रान्तों में निवास करते हैं। दो लाख से अधिक तो बर्मा से रोहिंग्या मुसलमान भारत मे आ बसे हैं। उन सभी एनोनिमस लोगों में कई प्रकार के लोगों की पहचान हो जाएगी यदि यह पहचान पत्र पूर्णतः लागू हो गया तो। पहचान पत्रों के निर्माण में थोड़ी चौकसी, सख्ती और सजगता ले आने से फर्जी कार्ड्स निरस्त हो जाने का भय सता रहा है देश विरोधियों को। भारत में पहचान पत्रों की व्यापक उपयोगिता से उनका पहचान उजागर हो जाएगा। यह भय इस विरोध का मूल कारण है। अवैध रूप से भारत में रह रहे लोग भारत के नागरिकों की पहचान मिटा देना चाहते हैं जिससे उनको यहाँ छुपकर रहना आसान हो जाये। इस षड्यंत्र को शिघ्र समझकर उचित निदान करना बहुत आवश्यक है।
~मुरारी शरण शुक्ल।
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