पत्थलगड़ी की घटना: गाँव पर कब्जे की नीयत से मिशनरीज और माओवाद का षड्यंत्र: भाग 2
गाँव में गाड़े गए पत्थर पर संविधान के पाँचवें अनुच्छेद की धारा 244 (1) (3) (5) (1) का हवाला देते हुए कहा गया है कि "संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून ग्राम सभा पर लागू नहीं है।" यह भारत के संसद और संबंधित राज्य की विधानसभा के द्वारा बनाये गए सभी कानूनों को नकारने की स्पष्ट घोषणा है। संविधान को अमान्य कर देने की घोषणा है। संसद की विधायिका शक्ति को ही खारिज कर देने की घोषणा है। किन्तु जैसा पत्थर पर लिखा है इस धारा में ऐसा वर्णन नहीं है। वर्णन यह है कि किसी भी समय शांति और सुशासन की दृष्टि से आवश्यक होने पर राज्यपाल द्वारा संसद या विधानमंडल द्वारा पारित किसी कानून को शिथिल या अप्रभावी किया जा सकता हैं। विनियमित किया जा सकता है। अधिसूचना द्वारा नई व्यवस्था बनाया जा सकता हैं। उपरोक्त धारा में यथार्थ में वह वर्णन नहीं है जो पत्थर पर अंकित किया गया है।
244 (1) (3) 5. अनुसूचित क्षेत्रों को लागू विधि-
(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'यथास्थिति, राज्यपाल या राजप्रमुख' शब्दों के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया।) लोक अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि संसद का या उस राज्य के विधान मंडल का कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को लागू नहीं होगा अथवा उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और इस उपपैरा के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो।
अर्थात यहाँ वर्णित समस्त शक्ति राज्य के राज्यपाल में निहित है। और संसद व विधानमंडल द्वारा बनाये गए सभी कानून यहाँ लागू होंगे। विशेष स्थिति में भी व्यवस्था बनाने का अधिकार राज्यपाल का ही है किसी मिशनरीज को यह अधिकार नहीं है।
244 (1) भाग (क) पैरा 2 का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि "अनुसूचित क्षेत्रों के जिलों के उपायुक्तों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तारीकरण पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र के उपबंधों के अधीन नहीं किया गया है। अतः अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन पूर्णत: असंवैधानिक है।" यह झुठ लिखकर ग्रामीणों को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि उपायुक्त का पत्थलगड़ी वाले गाँव में कोई अधिकार नहीं है। प्रशासन का यहाँ कोई अधिकार नहीं है। ग्राम सभा के पास ही सारा अधिकार है। यह भारत की स्थापित विधि के विरुद्ध बगावत का ही षड्यंत्र है। जबकि यथार्थ में उस धारा में निम्नलिखित वर्णन उपलब्ध है-
2. अनुसूचित क्षेत्रों में किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति-
इस अनुसूची के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उसके अनुसूचित क्षेत्रों पर है।
यहाँ कहा जा रहा है कि कार्यपालिका का अधिकार अनुसूचित क्षेत्रों पर है। जबकि मिशनरीज कार्यपालिका की शक्ति को नकार रहे हैं पत्थलगड़ी के माध्यम से। यह सीधा सीधा भारत के संसद, राज्य की विधानसभा और जिले के उपायुक्त समेत पूरे प्रशासन को नकारकर गाँव को आजाद करने की मानसिकता का उद्घोष है। पूरा पूरा देशद्रोह है यह।
आगे CNT एक्ट के हवाले से कहा गया है जमीन के ऊपर 15 हजार किलोमीटर और जमीन नीचे 15 हजार किलोमीटर तक मालिकाना हक आदिवासियों का है। यह आश्चर्यजनक घोषणा है कि जमीन के ऊपर 15 हजार किलोमीटर तक कोई भी आदिवासी या कोई भी व्यक्ति कैसे हक जतायेगा? किस विमान या सेटेलाईट से उतनी ऊँचाई तक कौन सा हक जताने जाएगा? जमीन से 85 से 90 किलोमीटर की ऊँचाई पर आयनोस्फीयर होता है। उस ऊँचाई तक हक होने का अर्थ क्या है? क्या विमान सेवा और अंतरिक्ष सेवाओं को बाधित करने की मानसिकता भी अंतर्निहित है इस षड्यंत्र में?
जमीन के नीचे तो 15 हजार किलोमीटर व्यवहारिक बात है ही नहीं। क्योंकि पृथ्वी की त्रिज्या ही 6371 किलोमीटर है। और इसको दोगुना कर दें तो पृथ्वी का व्यास 12742 किलोमीटर है। अर्थात इतना ही पृथ्वी की कुल गहराई है। फिर 15 हजार किलोमीटर जमीन के नीचे तक कि बात बिल्कुल बेतुका और मूर्खतापूर्ण है। यह सारा झूठ और मूर्खतापूर्ण बातें ग्रामीणों को पागल बनाने की नीयत से लिखा गया है।
जबकि कोई भी अधिसूचना करने का अधिकार या तो राष्ट्रपति को है या फिर राज्यपाल को है न कि पत्थर गाड़ने वाले किसी मिशनरीज को अधिसूचना करने का अधिकार है। और वर्तमान कानूनों के आधार पर आप अपनी जमीन और अपने घर के ऊपर के एयरोस्पेस के स्वामी नहीं हो सकते। तथा अपनी भी जमीन में आप खनन करके खनिज नहीं निकाल सकते भले ही वहाँ खनिज उपलब्ध हो तब भी। आपको सरकार को इसकी सूचना देनी ही होगी। सरकार ही यह खनन का निर्णय ले सकती है।
किंतु ये मिशनरीज वाले ऐसा प्रयत्न करके भारत के एयरोस्पेस, अंतरिक्ष स्पेस और खनिजों के खनन पर भी अवैध स्वामित्व जताने का देशद्रोही प्रयत्न कर रहे हैं। यह भारत का संविधान और अशोक स्तंभ की आड़ में संविधान से बगावत/विद्रोह का एक कुत्सित प्रयत्न है। इस राष्ट्रद्रोही कृत्य को कठोरतापूर्वक डील करने की आवश्यकता है जिससे इनकी जनता के प्रतिष्ठापूर्ण जीवन से जुड़े प्राकृतिक न्याय सिद्धांत और सरकारी कामकाज में दखल देने की आदत हमेशा के लिए छूट जाए।
~मुरारी शरण शुक्ल।
गाँव में गाड़े गए पत्थर पर संविधान के पाँचवें अनुच्छेद की धारा 244 (1) (3) (5) (1) का हवाला देते हुए कहा गया है कि "संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून ग्राम सभा पर लागू नहीं है।" यह भारत के संसद और संबंधित राज्य की विधानसभा के द्वारा बनाये गए सभी कानूनों को नकारने की स्पष्ट घोषणा है। संविधान को अमान्य कर देने की घोषणा है। संसद की विधायिका शक्ति को ही खारिज कर देने की घोषणा है। किन्तु जैसा पत्थर पर लिखा है इस धारा में ऐसा वर्णन नहीं है। वर्णन यह है कि किसी भी समय शांति और सुशासन की दृष्टि से आवश्यक होने पर राज्यपाल द्वारा संसद या विधानमंडल द्वारा पारित किसी कानून को शिथिल या अप्रभावी किया जा सकता हैं। विनियमित किया जा सकता है। अधिसूचना द्वारा नई व्यवस्था बनाया जा सकता हैं। उपरोक्त धारा में यथार्थ में वह वर्णन नहीं है जो पत्थर पर अंकित किया गया है।
244 (1) (3) 5. अनुसूचित क्षेत्रों को लागू विधि-
(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'यथास्थिति, राज्यपाल या राजप्रमुख' शब्दों के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया।) लोक अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि संसद का या उस राज्य के विधान मंडल का कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को लागू नहीं होगा अथवा उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और इस उपपैरा के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो।
अर्थात यहाँ वर्णित समस्त शक्ति राज्य के राज्यपाल में निहित है। और संसद व विधानमंडल द्वारा बनाये गए सभी कानून यहाँ लागू होंगे। विशेष स्थिति में भी व्यवस्था बनाने का अधिकार राज्यपाल का ही है किसी मिशनरीज को यह अधिकार नहीं है।
244 (1) भाग (क) पैरा 2 का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि "अनुसूचित क्षेत्रों के जिलों के उपायुक्तों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तारीकरण पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र के उपबंधों के अधीन नहीं किया गया है। अतः अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन पूर्णत: असंवैधानिक है।" यह झुठ लिखकर ग्रामीणों को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि उपायुक्त का पत्थलगड़ी वाले गाँव में कोई अधिकार नहीं है। प्रशासन का यहाँ कोई अधिकार नहीं है। ग्राम सभा के पास ही सारा अधिकार है। यह भारत की स्थापित विधि के विरुद्ध बगावत का ही षड्यंत्र है। जबकि यथार्थ में उस धारा में निम्नलिखित वर्णन उपलब्ध है-
2. अनुसूचित क्षेत्रों में किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति-
इस अनुसूची के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उसके अनुसूचित क्षेत्रों पर है।
यहाँ कहा जा रहा है कि कार्यपालिका का अधिकार अनुसूचित क्षेत्रों पर है। जबकि मिशनरीज कार्यपालिका की शक्ति को नकार रहे हैं पत्थलगड़ी के माध्यम से। यह सीधा सीधा भारत के संसद, राज्य की विधानसभा और जिले के उपायुक्त समेत पूरे प्रशासन को नकारकर गाँव को आजाद करने की मानसिकता का उद्घोष है। पूरा पूरा देशद्रोह है यह।
आगे CNT एक्ट के हवाले से कहा गया है जमीन के ऊपर 15 हजार किलोमीटर और जमीन नीचे 15 हजार किलोमीटर तक मालिकाना हक आदिवासियों का है। यह आश्चर्यजनक घोषणा है कि जमीन के ऊपर 15 हजार किलोमीटर तक कोई भी आदिवासी या कोई भी व्यक्ति कैसे हक जतायेगा? किस विमान या सेटेलाईट से उतनी ऊँचाई तक कौन सा हक जताने जाएगा? जमीन से 85 से 90 किलोमीटर की ऊँचाई पर आयनोस्फीयर होता है। उस ऊँचाई तक हक होने का अर्थ क्या है? क्या विमान सेवा और अंतरिक्ष सेवाओं को बाधित करने की मानसिकता भी अंतर्निहित है इस षड्यंत्र में?
जमीन के नीचे तो 15 हजार किलोमीटर व्यवहारिक बात है ही नहीं। क्योंकि पृथ्वी की त्रिज्या ही 6371 किलोमीटर है। और इसको दोगुना कर दें तो पृथ्वी का व्यास 12742 किलोमीटर है। अर्थात इतना ही पृथ्वी की कुल गहराई है। फिर 15 हजार किलोमीटर जमीन के नीचे तक कि बात बिल्कुल बेतुका और मूर्खतापूर्ण है। यह सारा झूठ और मूर्खतापूर्ण बातें ग्रामीणों को पागल बनाने की नीयत से लिखा गया है।
जबकि कोई भी अधिसूचना करने का अधिकार या तो राष्ट्रपति को है या फिर राज्यपाल को है न कि पत्थर गाड़ने वाले किसी मिशनरीज को अधिसूचना करने का अधिकार है। और वर्तमान कानूनों के आधार पर आप अपनी जमीन और अपने घर के ऊपर के एयरोस्पेस के स्वामी नहीं हो सकते। तथा अपनी भी जमीन में आप खनन करके खनिज नहीं निकाल सकते भले ही वहाँ खनिज उपलब्ध हो तब भी। आपको सरकार को इसकी सूचना देनी ही होगी। सरकार ही यह खनन का निर्णय ले सकती है।
किंतु ये मिशनरीज वाले ऐसा प्रयत्न करके भारत के एयरोस्पेस, अंतरिक्ष स्पेस और खनिजों के खनन पर भी अवैध स्वामित्व जताने का देशद्रोही प्रयत्न कर रहे हैं। यह भारत का संविधान और अशोक स्तंभ की आड़ में संविधान से बगावत/विद्रोह का एक कुत्सित प्रयत्न है। इस राष्ट्रद्रोही कृत्य को कठोरतापूर्वक डील करने की आवश्यकता है जिससे इनकी जनता के प्रतिष्ठापूर्ण जीवन से जुड़े प्राकृतिक न्याय सिद्धांत और सरकारी कामकाज में दखल देने की आदत हमेशा के लिए छूट जाए।
~मुरारी शरण शुक्ल।
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