रविवार, जुलाई 29, 2018

पत्थलगड़ी का सच भाग 3:

पत्थलगड़ी का सच भाग 3: गाँव को आजाद देश (वेटिकन) बनाने ने की साजिश।
पत्थलगड़ी के पत्थर को गाँव की छाती पर गाड़कर युगों युगों से सनातनी जीवंत जीवनधारा में जीवमान आदिवासी समाज को मुर्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। भारत का आदिवासी समाज वह समाज है जिसने औरों के जागने से पहले ही अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत का बिगुल बजा दिया था। यह वही आदिवासी समाज है जिसने अंग्रेजों के थ्री नॉट थ्री रायफल का मुकाबला तीर धनुष, हँसिया, दराँती, गुलेल, कुल्हाड़ी, टाँगी इत्यादि परंपरागत हथियारों से सफलता पूर्वक किया करता था। लगातार 20-25 वर्षो तक अंग्रेजों की आधुनिक हथियारों से सुसज्जित सेना का मुकाबला परम्परागत हथियारों से करना बहुत बड़ी बात थी। और ऐसा एक विद्रोह नहीं अनेकों विद्रोह हुए संथाल में भी, कोल्हान में भी, नागपुरिया क्षेत्र में। अदिवासी समाज ने ही भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की अग्नि को सर्वप्रथम प्रज्वलित किया था। अंग्रेजों ने आदिवासी समाज की वीरतापूर्ण देशभक्ति को देखा था और फिर इस देशभक्ति को कुंद करने के लिए उनलोगों ने ही अपने साथ साथ मिशनरीज वालों को पाला जो आजतक आदिवासी समाज से उस बहादुरीपूर्ण विद्रोह का बदला ले रहे हैं।
जिस आदिवासी समाज ने कभी भारत की माटी का तिरस्कार नहीं किया। वृक्ष, वन, पर्यावरण, जल, जंगल और माटी के लिए ही जीवन जिया। सदा ही भारत की परम्परा और रीति नीति का पालन किया। आजादी के बाद बने संविधान का भी सदा सम्मान किया। उसी अदिवासी समाज को इंडिया नॉन ज्यूडिशियल कहकर कलंकित करने का प्रयास किया जा रहा है।जी हाँ आप सही सुन रहे हैं। पत्थलगड़ी के पत्थर पर दूसरे साईड में लिखा है इंडिया नॉन ज्यूडिशियल। इसका अर्थ क्या है? इसके पीछे का भाव क्या है? अंतर्निहित चाल क्या है? इंडिया नॉन ज्यूडिशियल कहने का अर्थ है कि यह गाँव वह गाँव है जहाँ भारत के न्यायालयों के निर्णयों का प्रभाव नहीं होगा। विभिन्न स्तर के न्यायालयों का निर्णय यहाँ लागू नहीं होगा। जिला सत्र न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक को खारिज करने की उद्घोषणा है यह पत्थलगड़ी। लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभों में से एक स्तंभ है न्यायपालिका। न्यायपालिका के बिना लोकतंत्र की कल्पना कठिन है। न्यायपालिका को खारिज करना भारत के खिलाफ राष्ट्रद्रोह है। यह राष्ट्रद्रोही हरकत ही है अदिवासी गाँव को इंडिया नॉन ज्यूडिशियल कहना।
इंडिया नॉन ज्यूडिशियल के ठीक नीचे दो कुल्हाड़ी का चित्र है एक दूसरे को क्रॉस करते हुए। यह आदिवासी समाज का परंपरागत हथियार है। यह कुल्हाड़ी का चित्र बनाने का कारण भी उनका मानसिक मनोवैज्ञानिक शोषण करना ही है। इस प्रकार उनको प्रभावित करके आगे की अनर्गल बातें वहाँ के समाज में स्थापित करने का प्रयत्न है यह। नीची लिखी हुई पंक्तियाँ समाज में विद्वेष फैलाने की नीयत से लिखा गया है। पत्थर पर दूसरे साईड में पहला पॉइंट लिखा गया है-
"भारत में गैर आदिवासी दिकू, ब्राह्मण, हिन्दू विदेशी केंद्र सरकार को शासन चलाने और रहने का लीज अग्रीमेंट 1969 में समाप्त हो गया है। लैंड रेवेन्यू 1921, गुजरात 1972, गाँधी इरविन पैक्ट 1931, भारत शासन अधिनियम 1935.
पत्थर पर लिखा उपरोक्त बिंदु समाज को तोड़ने वाले राष्ट्रघातक विषय है। जब भारत का संविधान सभी नागरिकों के लिए समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है। (अनुच्छेद 14-18)। जब भारत का संविधान सबके लिए स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है। (अनुच्छेद 19-22)। जब भारत का संविधान जीवन जीने का अधिकार सुनिश्चित करता है। (अनुच्छेद 21)। जब भारत का संविधान सबको देश में कहीं भी जाने, घूमने, रोजगार करने और बस जाने का अधिकार सुनिश्चित करता है। (अनुच्छेद 19)। फिर मिशनरीज वाले होते कौन हैं भारत में हिंदुओं और हिंदुओं की किसी भी जाति को भारत में रहने का अधिकार समाप्त करने की बात सरेआम शिलालेख पर लिखकर घोषणा करने वाले? फिर हिंदुओं को भारत में उनके अपने ही देश में रहने के लिए किसी से लीज करने की कौन सी जरूरत आन पड़ी है जिसके समाप्त हो जाने की बात मिशनरीज वाले इस प्रस्तर अभिलेख पर कह रहे हैं?
यहाँ दिकू शब्द का वर्णन है। दिकू किसको कहना चाहिए? दिकू वो अँग्रेज थे जिन्होंने जंगल का कानून बनाकर जंगल को सरकारी संपत्ति घोषित किया, आदिवासियों से उनका जंगल में प्रकृति के साथ जीवन जीने का अधिकार छीन लिया और जंगल विभाग बनाया। दिकू वो अंग्रेजी शासन था जिसने जमीन की बंदोबस्ती करके आदिवासियों के स्वतंत्र प्रकृति विचरनशील जीवन को ठहरा दिया। दिकू वो अँग्रेजी सरकार थी जिसने सीएनटी सीपीटी जैसे अनेक कानून 1857 के बाद लागू करके अपनी ही जमीन का उपयोग संकट के क्षण में भी नहीं कर सकने की स्थिति उत्पन्न कर दिया।
1857 के बाद सीएनटी एक्ट झारखंड के उस आदिवासी समाज के लिए सजा के रूप में लाया गया था जिस आदिवासी समाज ने लंबे समय तक अंग्रेजों से लोहा लिया था। उस विद्रोह का बदला लेने के लिए यह एक्ट लागू किया गया था। किंतु दुर्भाग्यबस वर्तमान में झारखंड के सभी आदिवासी नेता अंग्रेजों द्वारा तब लाये गए इस कानून की वकालत आज तक करते आ रहे हैं जिसकी चर्चा इस पत्थलगड़ी में भी किया गया है। आदिवासियों को जमीन छीने जाने का भय दिखाकर उनको भड़काने का काम आज भी यथावत चल रहा है। झारखंड के आदिवासियों को यह जानने का अधिकार है कि सीएनटी एक्ट पहली बार कब और किस उद्देश्य से लागू किया था?
दिक्कू वो मिशनरीज वाले हैं जिनके प्रभाव के कारण आज भी आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं हो पा रहा है। देश में गरीबी उसी क्षेत्र में हैं जो पठारी क्षेत्र हैं। खनिज क्षेत्र हैं। आदिवासी क्षेत्र हैं। जिन क्षेत्रों में मिशनरीज और चर्च का सघन प्रभाव है। मिशनरीज और चर्च विकास में बाधक बनकर खड़े हैं। अतः असली दिक्कू तो ये मिशनरीज वाले हैं। जिनको गहराई से समझने की आवश्यकता है। दिकू जिसको कहना चाहिए वही भारत की अन्य जातियों को दिकू बताकर स्वयं आदिवासी समाज का धर्म में बदलने में लगा हुआ है दिनरात। इनके इस कुत्सित षड्यंत्र को समझे जाने की आवश्यक्ता है और पत्थलगड़ी के माध्यम से देश विरोधी बातें करने वालों के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने की आवश्यकता है। तभी सामान्य आदिवासी समाज को प्राकृतिक न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा।
~मुरारी शरण शुक्ल।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें