हम जिन सूचनाओं को पुस्तकों में पढ़ते हैं उसी को सच मानने लगते हैं यह साधारण मानव मन का स्वरूप है। आज सोशल मीडिया के अस्तित्व में आने के इस बात को समझना मुश्किल नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया एक झूंठ गढ़ती हैं और उसको प्रसारित करती है, और सोशल मीडिया उसे 24 घण्टे के अंदर दूध का दूध पानी का पानी कर देते हैं।
लेकिन मैकाले ने जो शिक्षा पद्धति का ढांचा रचा उसमे सूचनाओं के गढ़ने और उनको प्रचारित प्रसारित करने के समस्त माध्यम उन्ही के पास थे। एकाधिकार था सूचनाओं के गढ़ने और उनको प्रचारित करने का। तभी उसकी हिम्मत हुई कि वह कह सके कि इस शिक्षा से एलियंस और मूर्ख पिछलग्गू पैदा किये जायेंगे"। और वही हुवा। बड़े बड़े विद्वान उनके रचे गए कुसूचनाओं के जाल में फंसकर मतिभ्रम के शिकार हुए।
डॉ आंबेडकर ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ थे। फिर उनको हिन्दू धर्म के बारे में क्या पता था? कैसे पता था? दरअसल डॉ अम्बेडकर ने मक्कार और फरेबी ईसाई इंडोलॉजिस्ट्स के फेक न्यूज़ को पढ़कर ही हिन्दू धर्म के बारे में अपनी राय कायम किया था।
वे आज दुनिया के प्रसिद्ध इकोनॉमिस्ट में गिने जाते हैं, लेकिन क्या उन्होंने भारत की इकोनॉमिक हिस्ट्री पढ़ी थी?
रोमेश दत्त की इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया 1902 में ब्रिटेन से छपी थी। एक इकोनॉमिस्ट होने के नाते उनका सहज झुकाव होना चाहिए था इस ग्रंथ की ओर। लेकिन उन्होंने इसको नही पढ़ा था। पढ़ा होता तो अवश्य समझ पाते कि ब्रिटिश दस्यु भारत मे क्यों आये थे? और उन्होंने क्या क्या किया। यदि उन्हें पता था कि भारत का आर्थिक इतिहास क्या है तो वे अंग्रेजों के साथ नही खड़े होते गांधी के साथ खड़े होते।
उन्होंने कौटिल्य का अर्थशास्त्रं भी नही पढ़ा था।
पढ़ा होता तो अपनी पुस्तक में जब वे वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हण को प्रीस्ट, क्षत्रिय को वारियर, वैश्य को ट्रेडर लिख रहे थे तो शूद्र को मेनियाल या नीच न लिखते।
मूलतः अम्बेडकर जी ने भारत और हिंदूइस्म के बारे में जिस #फेक_और_हेट लिटरेचर की रचना की है उसका आधार ब्रिटिश दस्युवों द्वारा रचा और प्रसारित किया गया कुसूचना का भंडार था।
इन फेक और हेट न्यूज़ की रचना एशियाटिक सोसाइटी के संथापक विलियम जोंस ने 1785 शरू किया। उसको कलकत्ते से छपवाकर यूरोप भेजता था, जहाँ अनेकों ईसाई विद्वान अपने हिसाब से नमक मिर्च लगाकर उसे नया कलेवर देते थे। फिर उसको वहां के विश्विद्यालयों में इसे फिलोलोजी और इंडोलॉजी नामक दो अफवाह विज्ञान के माध्यम से एकेडेमिया में परोसा जाता था। जिससे नई अफवाहों की रचना की जाती थी। दूसरा सबसे बड़ा अफवाह बाज मैक्समुलर था जिसने आर्यन अफवाह की रचना किया था। इस तरह सैकड़ो इंडोलॉजिस्ट यूरोप में पैदा हुए। वही फेक न्यूज़ भारत के स्कॉलर्स भी पढ़ते थे। जिनको नग्रेजी आती थी वे ओरिजिनल फेक न्यूज़ पढ़कर भारत के बारे में अपनी राय बनाते थे। जिनको नग्रेजी नही आती थी उनके लिए उन फेक न्यूज़ को देशी भाषाओं में अनुवादित करके पढ़ाया जाता रहा। यह कार्य आज भी जारी है। प्राइमरी की कक्षा से लेकर पीएचडी तक।
अम्बेडकर वाद उसी फेक आधारित हेट लिटरेचर का विस्तार मात्र है।
चुनौती देता हूँ कि कोई भी वामपंथी या दलित पंथी आकर मुझसे शास्त्रार्थ करे और मुझे गलत सिद्ध करे।
अग्निवीर ने इन कुंठित देशद्रोहियों के विरुद्ध FIR करवाकर बहुत ही पुनीत कार्य किया है। हम सब उनके साथ हैं।
जय श्री राम।
ॐ
© डॉ त्रिभुवन सिंह
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