सती सावित्री को इसलिए सती नहीं कहा जाता है क्योंकि वो अपने पति के मृत्यु के बाद चिता पर बैठ कर सती हो गईं।
सती इसलिए कहा जाता है क्योंकि वो इतनी पति भक्त थीं कि यमराज से लड़ कर वापिस अपने पति के प्राण ले आईं।🤔🤔👇👇
माता अनुसुइया को भी सती अनुसुइया इसलिए नहीं कहा जाता है क्योंकि वो अपने पति की मृत्यु के बाद उनकी चिता पर बैठ कर सती हो गई थीं, बल्कि इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने पति भक्ति की परीक्षा पास की जो ख़ुद भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ली थी।
सीता माता को भी इसलिए सती कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सोने की लंका और रावण को ठुकरा दिया उस समय जब अयोध्या भरत के पास थी और राम वन वन भटक रहे थे।
द्रौपदी को भी महाभारत में इसलिए सती कहा गया है क्योंकि उन्होंने बिना किसी मज़बूरी के महल त्याग दिया और पांडवों के साथ वन चली गईं।
सती का ज़िक्र पतिव्रता के लिए किया गया है, पति की मृत्यु के बाद चिता पर जल जाने के लिए नहीं। सती प्रथा ज़बरदस्ती या जरूरी कभी नहीं रही हिंदू धर्म में, जब घोर इस्लामिक क़ाल आया तब अक़बर, बाबर, ख़िलजी, मंगोल, गोरी, गजनवी जैसे दरिंदों से बचने के लिए हिन्दू महिलाओं को मजबूरी में आपातकाल के लिए बनाए गए कुछ नियमों का पालन करना पड़ा, जैसे जौहर प्रथा, घूंघट प्रथा, सती प्रथा इत्यादि, जानवरों का दौर जब चला गया तब ख़ुद ही ये सारी प्रथाएं बंद हो गईं।
इरफ़ान हबीब और गुहा जैसे फर्जी लंपट इतिहासकार इतना डिटेल में कभी नहीं लिखेंगे, ऐसे घुमा फिरा के लिखेंगे कि हिन्दुओं का ब्रेनवाश हो जाएगा, और उन्हें लगेगा कि सती प्रथा एक कुरीति थी हिन्दू धर्म की,, और फिर वे दिखाएंगे कि हिन्दू धर्म कुरीतियों का अड्डा है। अब समय आ गया है कि सही व्याख्या के साथ मुँहतोड़ उत्तर दिया जाये।
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