मैंने #इस्लाम_क्यों_छो ड़ा डॉ आनंदसुमन सिंह पूर्व डॉ कुंवर #रफत_अख़लाक़ !
इस्लामी साम्प्रदाय में मेरी आस्था दृड़ थी । मै बाल्यकाल से ही इस्लामी नियमो का पालन किया करता था । विज्ञानं का विद्यार्थी बनने के पश्चात् अनेक प्रश्नों ने मुझे इस्लामी नियमो पर चिन्तन करने हेतु बाध्य किया । इस्लामी नियमो में #कुरआन या #अल्लाहताला या हजरत मुहम्मद पर प्रश्न करना या शंका करना उतना ही अपराध है जितना किसी व्यक्ति के क़त्ल करने पर अपराधी माना जाता है । युवा अवस्था में आने के पश्चात् मेरे मस्तिष्क में सबसे पहला प्रश्न आया की अल्लाहताला रहमान व् रहीम है , न्याय करने वाला है ऐसा #मुल्लाजी खुत्बा ( उपदेश ) करते है । फिर क्या कारण है की इस दुनिया में एक गरीब , एक मालदार , एक इन्सान , एक जानवर होते है । यदि अल्लाह का न्याय सबके लिए समान है जैसा कुरआन में वर्णन किया गया है , तब तो सबको एक जैसा होना चाहिए । कोई व्यक्ति जन्म से ही कष्ट भोग रहा है तो कोई आनन्द उठा रहा है । यदि संसार में यही सब है तो फिर अल्लाह न्यायकारी कैसे हुआ ?
यह प्रश्न मैंने अनेक वर्षो तक अपने मित्रो , परिजनों एवं मुल्ला मौलवियों से पूछता रहा किन्तु सभी का समवेत स्वर में एक ही उत्तर था , तुम अल्लाहताला के मामले में अक्ल क्यों लगाते हो ? मौज करो , अभी तो नैजवान हो । यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था । निरंतर यह विषय मुझे बाध्य करता था और मै निरंतर यह प्रश्न अनेक जानकार लोगो से करता रहता था किन्तु इसका उत्तर मुझे कभी नहीं मिला । उत्तर मिला तो महर्षि दयानंद सरस्वती के पवित्र वैज्ञानिक ग्रन्थ #सत्यार्थ प्रकाश में जिसमे महर्षि ने व्यक्ति के अनेक एवं इस इस जन्म में किये गये सुकर्म या दुष्कर्मो को अगले जन्म में भोग का वर्णन किया । यह तर्क संगत था क्योंकि हम बैंक में जब खता खोलते है तो हमे बचत खाते पर नियमित छह माह में ब्याज मिलता है , मूलधन सुरक्षित रहता है , तथा स्थिर निधि पर एक साथ ब्याज मिलता है , उसी प्रकार जीवात्मा सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात् अनेक शरीरो, योनियों में परवेश करता है तथा अपने सुकर्मो और दुष्कर्मो का फल भोगता है #पुनर्जन्म के बिना यह सम्भव नही हो सकता । अतः पुनर्जन्म का मानना आवश्यक है किन्तु मुस्लिम समाज पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता उनकी मान्यता तो यह है की चौहदवी शताब्दी में संसार मिट जाएगा । कयामत आएगी और फिर मैदानेहश्र में सभी का इंसाफ होगा । किन्तु उस मैदानेहश्र में जो भी हजरत मुहम्मद के ध्वज निचे आ जायेगा , #मुहम्मद को अपना रसूल मान लेगा वही इन्सान बख्सा जाएगा । अर्थात उसे अपने कर्मो के फल भुक्त्ने का झंझट नहीं करना पड़ेगा और वह सीधा जन्नत में जावेगा , जो बुद्धिपरक नहीं लगता । क्योंकि एक व्यक्ति के कहने मात्र से यदि सारा खेल चलने लगे तो संसार में अन्य मत मतान्तरो को मानने की आवश्यकता क्यों पड़े ?और सृष्टि का अंत चौहदवी सदी में माना जाता है जबकि चौहदवी शताब्दी तो कब की समाप्त हो गयी । फिर यह संसार समाप्त क्यों नहीं हुआ ?
कयामत क्यों नहीं आई ? क्या मुहम्मद साहब और इस्लाम से पूर्व यह संसार नहीं था ? क्योंकि इस्लाम के उदय को लगभग १५०० वर्ष हुए है संसार तो इससे पूर्व भी था और रहेगा । मेरा दूसरा प्रश्न था की जब एक मुस्लिम पीटीआई एक समय में चार पत्निया रख सकता है तो एक मुस्लिम औरत एक समय में चार पति क्यों नही राख सकती ? इस्लाम में औरत को अधिक अधिकार ही नही है । एक पुरुष के मुकाबले दो स्त्रियों की गवाही ही पूर्ण मानी जाती है । ऐसा क्यों ? आखिर औरत भी तो इंसानी जाती का अंग है । फिर उसे आधा मानना उस पर अत्याचार करना कहाँ की बुद्धिमानी है और कहाँ तक इसे अल्लाह ताला का न्याय माना जा सकता है ?८० साल का बुड्ढा १८ साल की लड़की से विवाह रचाकर इसे इस्लामी नियम मानकर संसार को मजहब के नाम पर मुर्ख बनाये यह कहाँ का न्याय है ?इस प्रश्न का उत्तर भी मुझे सत्यार्थ परकाश से मिला । महर्षि दयानंद ने महर्षि मनु और वेद वाक्यों के आधार पर सिद्ध किया की स्त्री और पुरुष दोनों का समान अधिकार है । एक पत्नी से अधिक तब ही हो सकती है जब कोई विशेष कारण हो (पत्नी बाँझ हो , संतान उत्पन्न न कर सकती हो ) अन्यथा एक पत्नीव्रत होना सव्भाविक गुण होना चाहिए । मनु ने कहा है –
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात जहाँ नारियो का सम्मान होता है वहां देवता वास करते है । तीसरा प्रश्न मेरे मन में था स्वर्ग व् नरक का । इस्लामी बन्धु मानते है की कयामत के बाद फैसला होगा । उसमे अच्छे कर्मो वालों को जन्नत और बुरे कर्मो वालो को दोजख मिलेगा । जन्नत का जो वर्णन है वह इस प्रकार है की वहां सेब , संतरे , शराब , एक व्यक्ति को सत्तर हुरे तथा चिकने चुपड़े लौंडे मिलेंगे । मै मुल्ला मौलवियों व् मित्रो से पूछता था की बताये , जब एक पुरुष को जन्नत में लडकिय मिलेंगी तो मुस्लिम महिलाओं को क्या मिलेगा ? मेरे इस प्रश्न ने वे चिड़ते थे । चौहदवी सदी तो बीत गयी पर कयामत क्यों नही आई ? क्या अब नहीं आएगी ?अल्लाह के वायदे का क्या हुआ ?इससे क्या यह स्पष्ट नहीं की कुरआन किसी आदमी की लिखी है ?इन सब प्रश्नों से मेरा तात्पर्य किसी का दिल दुखाना नही अपितु केवल अपने मन में उठ रही शंकाओं का समाधान करना था । किन्तु कभी किसी ने मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया अपितु इन सब से दूर रहकर महज अल्लाह की इबादत में वक्त गुजारने और मौज उड़ाने का रास्ता दिखाया।
चौथा प्रश्न मेरे दिल में था सभ्यता का । मैंने मुस्लिम इतिहास गम्भीरता से अध्ययन किया है इतिहास साक्षी है की इस्लाम कभी भी वैचारिकता या सवविवेक के कारण नहीं फैला अपितु इस्लाम आरम्भिक काल से अब तक तलवार का बल , भय , बहुपत्नी प्रथा , स्वर्ग का लोभ या धन का मोह आदि ही इस्लाम के विस्तार के कारण बने । इस्लाम की शैशव अवस्था में हजरत मुहम्मद साहब को अनेक युद्ध करने पड़े । स्वंय उनके चाचा अबुलहब ने अंतिम समय तक इस्लाम को नहीं स्वीकार किया क्योंकि वह उसे वैज्ञानिक व् तर्क सम्मत नहीं मानते थे । हजरत मुहम्मद को मक्का से निष्कासित भी होना पड़ा क्योंकि वह अरब की सभ्यता में आमूल परिवर्तन की कल्पना करते थे और अरब वासी अनेक कबीलों में बनते हुए थे । अबराह का लश्कर तो एक बार मक्का में स्थापित भगवान शंकर के विशाल शिवलिंग ( संगे अस्वाद ) को मक्का से ले जाने के लिए आया था किन्तु भीषण युद्ध में अनेको ने अपने प्राण गंवा दिए । यह मक्का शब्द भी संस्कृत के मख अर्थात यज्ञ शब्द का ही बिगड़ा रूप है । इस समय इस विषय पर चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है । मुस्लिम इतिहास में एक भी प्रमाण त्याग , समर्पण या सेवा का नही मिलता वैदिक इतिहास के झरोखे से देखे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वन को प्रस्थान करते है किन्तु दूसरी और औरंगजेब अपने पिता को जेल में कैद कर बूंद बूंद पानी के लिए तरसाता है । यह त्याग , समर्पण एवं सेवा का ही प्रतिफल है की विगत दो अरब वर्षो में वैदिक संस्कृति महँ बनी रह स्की मेरे परिवार के इतिहास के साथ भी एक काला पृष्ठ जुदा है की उन्हें प्रलोभनवश अपना मूल धर्म त्याग कर इस्लाम में जाना पड़ा।
मै स्पष्ट शब्दों में कहता हूँ की आपकी पूजा पद्धति कुछ भी हो सकती है , आप किसी भी समुदाय के हो सकते है किन्तु जिस देश में प्ले बड़े है उस देश को तो अपनी माँ ही मानना चाहिए । राष्ट्रभक्ति किसी व्यक्ति का पहला कर्तव्य होना चाहिए , वैदिक धर्म की महानता के अनेक प्रमाण दिए जा सकते है किन्तु यहाँ मेरा उद्देश्य मात्र कुछ विचारों पर लिखना है । क्योंकि विगत छः वर्षो में मेरे सम्मुख यह प्रश्न रहा है की मै हिन्दू क्यों बना ?
मै प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से हिन्दू ही मानता हूँ क्योंकि कोई मनुष्य बिना माँ के गर्भ के पैदा नहीं हो सकता यहाँ तक की विज्ञानं की पहुँच टेस्ट ट्यूब चाइल्ड को भी माँ के गर्भ में आश्रय लेना पड़ा , तभी उसका पूर्ण विकास सम्भव हो पाया है । अतः माँ के गर्भ में तो प्रत्येक हिन्दू ही होता है जन्म के पश्चात् मुस्लमानिया कराए बिना मुसलमान और बपतिस्मा कराए बिना इसाई नहीं बना जा सकता । अतः इन क्रियाओं के पूर्व बच्चा काफिर अर्थात हिन्दू होता है अतः संसार का प्रत्येक शिशु हिन्दू है । मूल हम सबका वेद है अर्थात सत्य सनातन वैदिक धर्म । आशा है मेरे मित्र मेरी भावना को समझेंगे ।
इस्लामी साम्प्रदाय में मेरी आस्था दृड़ थी । मै बाल्यकाल से ही इस्लामी नियमो का पालन किया करता था । विज्ञानं का विद्यार्थी बनने के पश्चात् अनेक प्रश्नों ने मुझे इस्लामी नियमो पर चिन्तन करने हेतु बाध्य किया । इस्लामी नियमो में #कुरआन या #अल्लाहताला या हजरत मुहम्मद पर प्रश्न करना या शंका करना उतना ही अपराध है जितना किसी व्यक्ति के क़त्ल करने पर अपराधी माना जाता है । युवा अवस्था में आने के पश्चात् मेरे मस्तिष्क में सबसे पहला प्रश्न आया की अल्लाहताला रहमान व् रहीम है , न्याय करने वाला है ऐसा #मुल्लाजी खुत्बा ( उपदेश ) करते है । फिर क्या कारण है की इस दुनिया में एक गरीब , एक मालदार , एक इन्सान , एक जानवर होते है । यदि अल्लाह का न्याय सबके लिए समान है जैसा कुरआन में वर्णन किया गया है , तब तो सबको एक जैसा होना चाहिए । कोई व्यक्ति जन्म से ही कष्ट भोग रहा है तो कोई आनन्द उठा रहा है । यदि संसार में यही सब है तो फिर अल्लाह न्यायकारी कैसे हुआ ?
यह प्रश्न मैंने अनेक वर्षो तक अपने मित्रो , परिजनों एवं मुल्ला मौलवियों से पूछता रहा किन्तु सभी का समवेत स्वर में एक ही उत्तर था , तुम अल्लाहताला के मामले में अक्ल क्यों लगाते हो ? मौज करो , अभी तो नैजवान हो । यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था । निरंतर यह विषय मुझे बाध्य करता था और मै निरंतर यह प्रश्न अनेक जानकार लोगो से करता रहता था किन्तु इसका उत्तर मुझे कभी नहीं मिला । उत्तर मिला तो महर्षि दयानंद सरस्वती के पवित्र वैज्ञानिक ग्रन्थ #सत्यार्थ प्रकाश में जिसमे महर्षि ने व्यक्ति के अनेक एवं इस इस जन्म में किये गये सुकर्म या दुष्कर्मो को अगले जन्म में भोग का वर्णन किया । यह तर्क संगत था क्योंकि हम बैंक में जब खता खोलते है तो हमे बचत खाते पर नियमित छह माह में ब्याज मिलता है , मूलधन सुरक्षित रहता है , तथा स्थिर निधि पर एक साथ ब्याज मिलता है , उसी प्रकार जीवात्मा सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात् अनेक शरीरो, योनियों में परवेश करता है तथा अपने सुकर्मो और दुष्कर्मो का फल भोगता है #पुनर्जन्म के बिना यह सम्भव नही हो सकता । अतः पुनर्जन्म का मानना आवश्यक है किन्तु मुस्लिम समाज पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता उनकी मान्यता तो यह है की चौहदवी शताब्दी में संसार मिट जाएगा । कयामत आएगी और फिर मैदानेहश्र में सभी का इंसाफ होगा । किन्तु उस मैदानेहश्र में जो भी हजरत मुहम्मद के ध्वज निचे आ जायेगा , #मुहम्मद को अपना रसूल मान लेगा वही इन्सान बख्सा जाएगा । अर्थात उसे अपने कर्मो के फल भुक्त्ने का झंझट नहीं करना पड़ेगा और वह सीधा जन्नत में जावेगा , जो बुद्धिपरक नहीं लगता । क्योंकि एक व्यक्ति के कहने मात्र से यदि सारा खेल चलने लगे तो संसार में अन्य मत मतान्तरो को मानने की आवश्यकता क्यों पड़े ?और सृष्टि का अंत चौहदवी सदी में माना जाता है जबकि चौहदवी शताब्दी तो कब की समाप्त हो गयी । फिर यह संसार समाप्त क्यों नहीं हुआ ?
कयामत क्यों नहीं आई ? क्या मुहम्मद साहब और इस्लाम से पूर्व यह संसार नहीं था ? क्योंकि इस्लाम के उदय को लगभग १५०० वर्ष हुए है संसार तो इससे पूर्व भी था और रहेगा । मेरा दूसरा प्रश्न था की जब एक मुस्लिम पीटीआई एक समय में चार पत्निया रख सकता है तो एक मुस्लिम औरत एक समय में चार पति क्यों नही राख सकती ? इस्लाम में औरत को अधिक अधिकार ही नही है । एक पुरुष के मुकाबले दो स्त्रियों की गवाही ही पूर्ण मानी जाती है । ऐसा क्यों ? आखिर औरत भी तो इंसानी जाती का अंग है । फिर उसे आधा मानना उस पर अत्याचार करना कहाँ की बुद्धिमानी है और कहाँ तक इसे अल्लाह ताला का न्याय माना जा सकता है ?८० साल का बुड्ढा १८ साल की लड़की से विवाह रचाकर इसे इस्लामी नियम मानकर संसार को मजहब के नाम पर मुर्ख बनाये यह कहाँ का न्याय है ?इस प्रश्न का उत्तर भी मुझे सत्यार्थ परकाश से मिला । महर्षि दयानंद ने महर्षि मनु और वेद वाक्यों के आधार पर सिद्ध किया की स्त्री और पुरुष दोनों का समान अधिकार है । एक पत्नी से अधिक तब ही हो सकती है जब कोई विशेष कारण हो (पत्नी बाँझ हो , संतान उत्पन्न न कर सकती हो ) अन्यथा एक पत्नीव्रत होना सव्भाविक गुण होना चाहिए । मनु ने कहा है –
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात जहाँ नारियो का सम्मान होता है वहां देवता वास करते है । तीसरा प्रश्न मेरे मन में था स्वर्ग व् नरक का । इस्लामी बन्धु मानते है की कयामत के बाद फैसला होगा । उसमे अच्छे कर्मो वालों को जन्नत और बुरे कर्मो वालो को दोजख मिलेगा । जन्नत का जो वर्णन है वह इस प्रकार है की वहां सेब , संतरे , शराब , एक व्यक्ति को सत्तर हुरे तथा चिकने चुपड़े लौंडे मिलेंगे । मै मुल्ला मौलवियों व् मित्रो से पूछता था की बताये , जब एक पुरुष को जन्नत में लडकिय मिलेंगी तो मुस्लिम महिलाओं को क्या मिलेगा ? मेरे इस प्रश्न ने वे चिड़ते थे । चौहदवी सदी तो बीत गयी पर कयामत क्यों नही आई ? क्या अब नहीं आएगी ?अल्लाह के वायदे का क्या हुआ ?इससे क्या यह स्पष्ट नहीं की कुरआन किसी आदमी की लिखी है ?इन सब प्रश्नों से मेरा तात्पर्य किसी का दिल दुखाना नही अपितु केवल अपने मन में उठ रही शंकाओं का समाधान करना था । किन्तु कभी किसी ने मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया अपितु इन सब से दूर रहकर महज अल्लाह की इबादत में वक्त गुजारने और मौज उड़ाने का रास्ता दिखाया।
चौथा प्रश्न मेरे दिल में था सभ्यता का । मैंने मुस्लिम इतिहास गम्भीरता से अध्ययन किया है इतिहास साक्षी है की इस्लाम कभी भी वैचारिकता या सवविवेक के कारण नहीं फैला अपितु इस्लाम आरम्भिक काल से अब तक तलवार का बल , भय , बहुपत्नी प्रथा , स्वर्ग का लोभ या धन का मोह आदि ही इस्लाम के विस्तार के कारण बने । इस्लाम की शैशव अवस्था में हजरत मुहम्मद साहब को अनेक युद्ध करने पड़े । स्वंय उनके चाचा अबुलहब ने अंतिम समय तक इस्लाम को नहीं स्वीकार किया क्योंकि वह उसे वैज्ञानिक व् तर्क सम्मत नहीं मानते थे । हजरत मुहम्मद को मक्का से निष्कासित भी होना पड़ा क्योंकि वह अरब की सभ्यता में आमूल परिवर्तन की कल्पना करते थे और अरब वासी अनेक कबीलों में बनते हुए थे । अबराह का लश्कर तो एक बार मक्का में स्थापित भगवान शंकर के विशाल शिवलिंग ( संगे अस्वाद ) को मक्का से ले जाने के लिए आया था किन्तु भीषण युद्ध में अनेको ने अपने प्राण गंवा दिए । यह मक्का शब्द भी संस्कृत के मख अर्थात यज्ञ शब्द का ही बिगड़ा रूप है । इस समय इस विषय पर चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है । मुस्लिम इतिहास में एक भी प्रमाण त्याग , समर्पण या सेवा का नही मिलता वैदिक इतिहास के झरोखे से देखे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वन को प्रस्थान करते है किन्तु दूसरी और औरंगजेब अपने पिता को जेल में कैद कर बूंद बूंद पानी के लिए तरसाता है । यह त्याग , समर्पण एवं सेवा का ही प्रतिफल है की विगत दो अरब वर्षो में वैदिक संस्कृति महँ बनी रह स्की मेरे परिवार के इतिहास के साथ भी एक काला पृष्ठ जुदा है की उन्हें प्रलोभनवश अपना मूल धर्म त्याग कर इस्लाम में जाना पड़ा।
मै स्पष्ट शब्दों में कहता हूँ की आपकी पूजा पद्धति कुछ भी हो सकती है , आप किसी भी समुदाय के हो सकते है किन्तु जिस देश में प्ले बड़े है उस देश को तो अपनी माँ ही मानना चाहिए । राष्ट्रभक्ति किसी व्यक्ति का पहला कर्तव्य होना चाहिए , वैदिक धर्म की महानता के अनेक प्रमाण दिए जा सकते है किन्तु यहाँ मेरा उद्देश्य मात्र कुछ विचारों पर लिखना है । क्योंकि विगत छः वर्षो में मेरे सम्मुख यह प्रश्न रहा है की मै हिन्दू क्यों बना ?
मै प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से हिन्दू ही मानता हूँ क्योंकि कोई मनुष्य बिना माँ के गर्भ के पैदा नहीं हो सकता यहाँ तक की विज्ञानं की पहुँच टेस्ट ट्यूब चाइल्ड को भी माँ के गर्भ में आश्रय लेना पड़ा , तभी उसका पूर्ण विकास सम्भव हो पाया है । अतः माँ के गर्भ में तो प्रत्येक हिन्दू ही होता है जन्म के पश्चात् मुस्लमानिया कराए बिना मुसलमान और बपतिस्मा कराए बिना इसाई नहीं बना जा सकता । अतः इन क्रियाओं के पूर्व बच्चा काफिर अर्थात हिन्दू होता है अतः संसार का प्रत्येक शिशु हिन्दू है । मूल हम सबका वेद है अर्थात सत्य सनातन वैदिक धर्म । आशा है मेरे मित्र मेरी भावना को समझेंगे ।
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