Sarvesh Kumar Tiwari जी की पोस्ट:
कुतुबमीनार देखे हैं?
कुतुब मीनार किसी कुतुबुद्दीन का बनवाया हुआ नहीं है, यह स्वयं कुतुबमीनार बताता है।
एक दो नहीं, दसो प्रमाण हैं।
एक तो यही कि अब भी उसके पहले तल्ले पर अष्टदल कमल की आकृति बनी हुई है, जो विशुद्ध हिन्दू प्रतीक है।
हालाँकि इसे पठान शैली, शल्जुक शैली और जाने क्या कह कर छिपाने का प्रयास किया गया है, पर छिपाना सम्भव नहीं। सनातनी प्रतीकों से चिढ़ कर ही मन्दिर तोड़ने वाले आक्रांता अपने निर्माण में सनातन प्रतीक क्यों दर्शाएंगे भला?
इसके अतिरिक्त और भी असँख्य साक्ष्य है, जो आप जाएंगे तो देख लेंगे। खैर...
कुतुब मीनार के पास ही एक और स्तम्भनुमा खंडहर है, जिसे अलाई मीनार कहा जाता है। कहते हैं कि इस मीनार को अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाना शुरू किया था, तब मर गया। अब मर गया तो क्या उसके बाद के लम्बे सल्तनत काल में और कोई ऐसा नहीं हुआ जो उसे पूरा करा दे?
जिस शाहजहां को तमाम इमारतों का निर्माता बताया जाता है, उसने भी इसे पूरा करवाना उचित नहीं समझा?
कहते हैं कि चौदहवीं शताब्दी में जब बिजली गिरने से कुतुबमीनार का ऊपरी तल्ला क्षतिग्रस्त हो गया तो फिरोजशाह तुगलक ने अपने समय में पुनर्निर्माण कराया।
फिर उसी कैम्पस में खड़े अलाई मीनार को क्यों छोड़ दिया?
ऐसा क्यों?
यह किसी इतिहासकार को पता नहीं है।
असल में अलाई मीनार को खिलजी ने नहीं बनवाया, बल्कि वह पहले से ही बना हुआ था। खिलजी से इसे तोड़ कर इसका स्वरूप बदलने का असफल प्रयास किया हो यह जरूर हो सकता है।
ज्यादा नहीं, आप सीढ़ियों की संख्या ही गिन लीजिये, जान जाएंगे कि यह खिलजी का बनवाया नहीं हो सकता।
कुतुबमीनार भी कुतुबुद्दीन के मालिक गोरी के जन्म से पहले का बना हुआ है।
सल्तनत काल में कुल पाँच लोगों ने समय समय पर उसमें छेड़छाड़ की और उसपर अपने चिन्ह जोड़े।
कुतुबुद्दीन, इल्तुतमिश, अलाउद्दीन, फिरोजशाह और सिकन्दर लोदी... फिर भी वे इसको पूरी तरह से अपना नहीं दिखा सके।
इस खंडहर को निकट से देखने पर लगता है कि यह सचमुच एक बड़े मीनार की नींव रहा होगा। पर अलाउद्दीन खिलजी जैसा आतंकी, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन ही लूट और रक्तपात में बिता दिया था, उसका ऐसे निर्माण की सोच सकना भी असम्भव लगता है।
सृजन और विनाश दोनों गुण किसी एक व्यक्ति में हो ही नहीं सकते...
आज जिस स्थान पर क़ुतुबमीनार है न, वह इस दुनिया का एकमात्र स्थान था जो सचमुच में सर्व धर्म सद्भाव का प्रतीक था।
वहाँ एक ही कैम्पस में सत्ताईस मन्दिर थे।
कुछ जैन मंदिर, कुछ बौद्ध मंदिर और कुछ सनातन... तीनों धर्मों को मानने वाले लोग पूजा के लिए आते थे वहाँ!
क्या दुनिया में दूसरा ऐसा कोई स्थान है जहाँ ऐसा होता हो? नहीं...
फिर वहाँ कुतुबुद्दीन आया, और सब तोड़ दिया।
सब तहस नहस कर दिया।
लाल इतिहासकार बताते हैं कि उसने मन्दिरों को तोड़ कर उन्हीं पत्थरों से 'कुव्वत उल...." बनाई, पर यह भी गलत है।
सच यह है कि उसने केवल तोड़ा...
जो छूट गया उसे अपना नाम दे दिया।
आप जा कर देखिये, वहाँ उसकी कोई कुव्वत नहीं दिखती।
केवल मन्दिरों के अवशेष ही दिखते हैं।
दीवारों, स्तम्भों में बौद्ध मूर्तियाँ, स्वस्तिक चिन्ह, अन्य अनेक सनातन प्रतीक, घण्टे और जाने क्या क्या।
साफ... स्पष्ट...
महरौली के खंडहरों को देख कर आप तुर्कों की क्रूरता और मूर्खता का अंदाजा लगा सकते हैं।
उस गुलाम की छाया पड़ने के पहले वह स्थान विश्व का सबसे सुन्दर स्थान रहा होगा।
उतने भव्य और कलात्मक भवन तब शायद पूरी दुनिया में और कहीं न रहे हों।
उन्होंने केवल मेहरौली में जो तोड़ दिया, उतना तुर्क सत्ता आठ सौ वर्षों में कुल निर्माण नहीं कर सकी।
करती भी कैसे, तोड़ने वाले हाथ और होते हैं और बनाने वाले और...
सल्तनत काल में भारत की आत्मा पर बहुत प्रहार हुआ है, और हर प्रहार का चिन्ह भारत की छाती पर अब भी दिखता है। जाने कब ये चिन्ह मिटेंगे।
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