मंगलवार, सितंबर 08, 2020

काश हमने डटकर सामना किया होता तो नालंदा का ज्ञान बच जाता।

 नालंदा विश्वविद्यालय की चौथी से 11वीं सदी तक अंतररराष्ट्रीय ख्याति रही थी, लेकिन इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी नामक एक मुस्लिम तुर्क लुटेरे ने 1199 ईस्वी में इसे जलाकर नष्ट कर दिया। इस अग्निकांड में हजारों दुर्लभ पुस्तकें जलकर राख हो गईं। महत्वपूर्ण दस्तावेज नष्ट हो गए। कहा जाता है कि वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग लगने के बाद भी 3 माह तक पुस्तकें धू-धू करके जलती रहीं।

आश्चर्य की बात यह है कि वह लुटेरा सिर्फ 200 घुड़सवारों के साथ आया था और नालंदा विश्वविद्यालय में उस समय कम से कम 20,000 छात्र पढ़ रहे थे। निहत्थे और अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं ने कभी यह कल्पना भी नहीं कि थी कि इस विश्‍वविद्यालय को सुरक्षा की जरूरत भी होगी।

कहा जाता है कि कई अध्यापकों और बौद्ध भिक्षुओं ने अपने कपड़ों में छुपाकर कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया तथा उन्हें तिब्बत की ओर ले गए। कालांतर में इन्हीं ज्ञान-निधियों ने तिब्बत क्षेत्र को बौद्ध धर्म और ज्ञान के बड़े केंद्र में परिवर्तित कर दिया।

इस क्रूर तुर्क ने विश्वविद्यालय के पासपास रह रहे बौद्धों, अनेक धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया और उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। हजारों बौद्ध भिक्षुओं का कत्ल कर दिया गया और हजारों भिक्षु श्रीलंका या नेपाल भाग गए।

खिलजी ने बिहार में चुन-चुनकर सभी बौद्ध मठों को नष्‍ट कर दिया था और लोगों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था।

इस्‍लामी चरमपंथियों ने गया के बोधिस्‍थल को अपने हमले के लिए चुना। ये कहें कि बौद्ध धर्म को मिटाकर ही इस्‍लाम का अभ्‍युदय हुआ, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इतिहास गवाह है, तथ्य गवाह है। नालंदा की हजारों जलाई गईं पुस्तकों के कारण बहुत-सा ऐसा ज्ञान विलुप्त हो गया, जो आज दुनिया के काम आता।

बख्तियार खिलजी ने सेना के अभाव में अरक्षित नालंदा विश्वविद्यालय पर कहर बरपा दिया। हजारों की संख्या में बौद्ध भिक्षुओं का संहार किया गया। शिक्षक और विद्यार्थियों के लहू से पूरी धरती को पाटकर भी जब अहसानफरामोश खिलजी को चैन नहीं मिला, तो उसने एक भव्य शिक्षण संस्था में आग लगा दी।

बख्तियार खिलजी धर्मांध और मूर्ख था। उसने ताकत के मद में बंगाल पर अधिकार के बाद तिब्बत और चीन पर अधिकार की कोशिश की किंतु इस प्रयास में उसकी सेना नष्ट हो गई और उसे अधमरी हालत में देवकोट लाया गया था। देवकोट में ही उसके सहायक अलीमर्दान ने ही खिलजी की हत्या कर दी थी।


बख्तियारपुर, जहां खिलजी को दफन किया गया था, वह जगह अब पीर बाबा का मजार बन गया है। दुर्भाग्य से कुछ मूर्ख हिन्दू भी उस लुटेरे और नालंदा के विध्वंसक के मजार पर मन्नत मांगने जाते हैं। दुर्भाग्य तो यह भी है कि इस लुटेरे के मजार का तो संरक्षण किया जा रहा है, लेकिन नालंदा विश्‍वविद्यालय का नहीं।
#नालंदाविश्वविद्यालय #बिहार

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