संसार का सबसे बुद्धिमान,परिवर्तन शील प्राणी है हिन्दू
मुसलमान को देखिए, ये आज भी कुरान पर ही ईमान लाता है, जैसे कुरान लिखे जाने के समय लाता था। कुरान के विरुद्ध न सुनना चाहता है न कुछ करना।
ईसाई को देखिए, बाइबिल के विरुद्ध न सुनना चाहता है और न करना
ये ईसाई और मुल्ले कितने भी रईस हो जाये , कितने भी पढ़ लिख जाए किन्तु प्रचार अपनी उन्ही घिसीपिटी शिक्षाओं का करते है।
संसार के किसी मुल्ले और ईसाई ने अपने त्योहार मनाने का तरीका नही बदला
अब अपने हिन्दू को देख लो
इसके धर्म की मूल पुस्तक है "वेद", ये यह भी नही जानता, वेद का पालन तो क्या खाक करेगा।
और अगर गलती से वेद पढ़ लिया तो यह जानकर की वेद जड़पूजा अर्थात प्रतिमा पूजा, अवतारवाद, भाग्यवाद, आडम्बर के विरुद्ध है, कर्म, संघर्ष और पराक्रम की शिक्षा देता है तो ये उसे भी फाड़ कर फेंक देंगे क्योकि इसे न संघर्ष करना है न कर्म, इसे तो भगवान भरोसे बैठना है भगवान के नाम पर व्रत, तीर्थ यात्रा, पूजन का आडम्बर करना है।
आज 300 से अधिक रामायण है मिलावटी, ये मूल प्रति को छोड़ कर सब को मानता है, क्योकि मूल प्रति में महृषि वाल्मीकि जादू टोनो की बात न करके विज्ञान व वेद की शिक्षा देते है और श्री राम को मनुष्य कहते हुए उन्हें वेदो का विद्वान कहते है, मूल प्रति में न तो राम को विष्णु का अवतार कहा गया, न राम को भगवान बताया गया, न सीता की अग्नि परीक्षा हुई , न हनुमान जी के पूँछ थी, न जटायु पक्षी था, न रामसेतु तैरते पत्थरो से बना, न श्री हनुमान बन्दर की शक्ल थे, न श्री हनुमान ने उड़कर समुद्र पार किया, न राम ने सबुरी के झूठे बेर खाये, न लक्षण ने कोई लक्षण रेखा खींची, न जामवंत रीछ जानवर थे, न श्री राम ने शिवलिंग की स्थापना की।
इसलिये हिन्दू इस मूल प्रति को पढ़ना ही नही चाहता क्योकि इसे तो सुख संघर्ष में नही चाहिए, राम भरोसे बैठने में चाहिए। काल्पनिक गपोड राम कथा को ये ईश्वर की लीला बताकर पूजा भक्ति में लीन रहना धर्म समझते हैं।
1000 साल तक इस हिन्दू ने गुलामो की तरह अपने धर्म मे अनेको परिवर्तन स्वीकार किये,
70 श्लोकों की गीता 700 की बना दी, कृष्ण को भी रसिया छलिया, चोर, चरित्रहीन, विष्णु अवतार बना कर ही दम लिया।
यह हिन्दू आज भी यह जानना ही नही चाहता कि रक्षाबंधन राखी बांधने का नही अपितु यज़योपवित धारण करने का त्योहार है, स्त्री पुरुष सभी अपने पुराने यजयोपवीत उतार कर नए धारण करते है, यह यग्योपवीत ही हमारी रक्षा का सूत्र है।
जन्मदिन पर केक नही काटा जाता बल्कि यज्ञ-संध्या-उपासना करके आत्मवलोकन किया जाता है। लेकिन ईसाई कुसंस्कृति को इसने अपना लिया।
दिवाली पटाखे फोड़ने का नही बल्कि दिए (दीपक) जलाकर, नई फसल के अन्न से यज्ञ करके पर्यावरण को सुगन्धित करने का त्योहार है।
होली नई फसल के आने के उपलक्ष्य में मनाए जाना प्राकृतिक पर्व है। अग्नि में 7 प्रकार के अन्न की आहुति देकर यज्ञ कर फागुन के रंग से खुशी मनाई जाती है।
हिन्दू ने अपने मूल सिद्धांतों व संस्कृति की बलि दे दी आधुनिक बनने की होड़ में
याद रखना, वेद कहते है जो धर्म के सिद्धांतो से समझौता करके धर्म की रक्षा करने का प्रयास करता है वह समूल नष्ट हो जाता है। यही कारण है हिन्दू हर तरह से समूल नष्ट होता जा रहा है। पहले तो अरबी गाली 'हिन्दू' नाम स्वीकार कर नाम भ्रष्ट हो गया, फिर धार्मिक गलत मान्यताओं को जन्म देकर तीर्थ, पूजन, कर्मकांड, ब्राह्मण दान, दुर्गा पूजा, गणेश चतुर्थी पूजन जैसे कुचक्रों को जन्म देकर पतित हो गया।
हिन्दुओ लौट आओ वापस अपनी महान संस्कृति की ओर, वेदो के महान विज्ञान व पराक्रम की ओर, वेदों की शिक्षाओं को अपना कर उत्कृष्ट बनो, आर्य नाम धारण करो।
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