गुरुवार, मई 10, 2018

जय महाराणा जय मेवाड़ जय राजपुताना

नाम - कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी) जन्म - 9 मई, 1540 ई. जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई. पिता - श्री महाराणा उदयसिंह जी माता - राणी जीवत कँवर जी राज्य - मेवाड़ शासन काल - 1568–1597ई. शासन अवधि - 29 वर्ष वंश - सुर्यवंश राजवंश - सिसोदिया राजघराना - राजपूताना धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध राजधानी - उदयपुर पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह अन्य जानकारी - महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम 'चेतक' था। राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणि राणा प्रताप का जन्म हुआ। महाराणा का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:- 1... महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे। 2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए| तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं | 3.... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था| कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था। 4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं | 5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी| लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया | 6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए | 7.... महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है | 8.... महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं| इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है| मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को | 9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था | 10..... महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे | 11.... महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था | 12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे| आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील | 13..... महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है | 14..... राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे| 15..... मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे | 16.... महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में। महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी: मित्रो आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ। रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है। वो लिखता है की जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद। आगे अल बदायुनी लिखता है की वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था वो आगे लिखता है कि उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उन पर 14 महावतो को बिठाया तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये। अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति। उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही पानी पिया और वो शहीद हो गया। तब अकबर ने कहा था कि जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा। ऐसे ऐसे देशभक्त चेतक व रामप्रसाद जैसे तो यहाँ जानवर थे। इसलिए मित्रो हमेशा अपने भारतीय होने पे गर्व करो। पढ़कर सीना चौड़ा हुआ हो तो शेयर कर देना। जय महाराणा जय मेवाड़ जय राजपुताना
महाराणा प्रताप का जन्म 9 May 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। इनके पिता राणा उदय सिंह माता का नाम जयवंताबाई था महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे. सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे. महाराणा प्रताप बचपन से बड़े प्रतापी वीर योद्धा थे तथा वे स्वाभिमानी और किसी के अधीन रहना स्वीकार नही करते थे वे स्वतंत्राप्रेमी थे जिसके कारण वे अपने जीवन में कभी भी मुगलों के आगे नही झुके उन्होंने कई वर्षो तक कई बार मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किये उनकी इसी दृढ वीरता के कारण बादशाह अकबर भी सपने में महाराणा प्रताप के नाम से कापता था महाराणा प्रताप इतने बड़े वीर थे की वे कई बार अकबर को युद्ध में पराजित भी किये थे उनकी यही वीरता के किस्से इतिहास के पन्नो में भरे पड़े है जिसके फलस्वरूप अकबर ने शांति प्रस्ताव के लिए 4 बार शांतिदूतो को महाराणा प्रताप के पास भेजा इन शांतिदूतो में जलाल खान, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल थे जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता. हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था. अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था. महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था. उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था. महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था. युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया था.आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है. महाराणा प्रताप जन्मभूमि की स्वतंत्रता के संघर्ष के प्रतिक है. वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, आदर्श संगठनकर्ता और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महान सेनानी थे. अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने वन वन भटकना तो स्वीकार किया मगर मुग़ल सम्राट अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की. महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे महानायक है, जिनकी अनन्य विशेषताओ पर भारतीय इतिहासकारों ही नहीं, पाश्चात्य लेखकों और कवियों को भी अपनी लेखनी चालायी है. प्रताप स्वदेश पर अभिमान करने वाले, स्वतंत्रता के पुजारी, दृढ़ प्रतिज्ञ और एक वीर क्षत्रिये थे. सम्राट अकबर ने अपना समस्त बुद्धिबल, धनबल और बाहुबल लगा दिया था, मगर प्रताप को झुका नहीं पाया था. प्रताप का प्रण था की बाप्पा रावल का वंशज, अपने गुरु, भगवान, और अपने माता-पिता को छोड़ कर किसी के आगे शीश नहीं झुकाएगा. प्रताप अपनी सारी जिंदगी अपने दृढ़ संकल्प पर अटल रहे, “हमारा देश भारतवर्ष जैसा है वैसा रहेगा, हमारा हिन्दू धर्म जैसा है वैसा रहेगा पर जल्द ही एक ऐसा समय आएगा जब इन मुगलों का नामों निशान इस भारत की पवित्र मिटटी से मिट जाएगी- महाराणा प्रताप“

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