शुक्रवार, जून 21, 2013

महिलाओं का खतना यानि पागलपन की हद: मुस्लिम धर्म की एक खामी

WHAT IS Circumcision
आखिर क्यू है जरूरी खतना?

कल मेरा दोस्त कबीर मिला. मेरा दोस्त चाचा बन गया है. लेकिन इस खुशी के बाद भी उसके चेहरे पर एक दुख का भाव था. काफी पूछने पर उसने जो बताया उसने मेरे दिमाग को इस्लाम धर्म के रुढ़िवादी चेहरे का सामना करवाया.


उसने बताया कि उससे पिताजी और घर के अन्य बुजुर्ग लोगों ने उस नौ दिन के मासूम बच्चे का खतना किया जिसकी वजह से वह मासूम-सी जान पिछले दो दिन से लगातार रोए जा रहा है. इस प्रकिया के दौरान बच्चें के लिंग से काफी खून भी गिरा और आंसुओं की तो जैसे झड़ी लग गई है.

महिलाओं की यौन इच्छा घटाने के लिए खतना


ऐसा खतना किया कि गुप्तांग काटना पड़ा



कहने को तो खतना एक धार्मिक प्रकिया है लेकिन धर्म की आड़ में अक्सर मासूम बच्चों पर बहुत जुल्म ढ़ाए जाते हैं. खतना मुसलमानों और यहूदियों में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है. यह लगभग हर देश में मुसलमानो द्वारा की जाने वाली एक प्रकिया है.


क्या है खतना :‘Circumcision is torture, an abuse of human rights’
खतना या सुन्नत यहूदियों और मुसलमानों में एक धार्मिक संस्कार होता है. इसमें लड़का पैदा होने के कुछ समय बाद उनके लिंग के आगे की चमड़ी निकाल दी जाती है.


वैसे तो इसका संबंध किसी खास धर्म, जातीय समूह या जनजाति से हो सकता है, लेकिन कई बार माता-पिता अपने बच्चों का खतना, साफ-सफाई या स्वास्थ्य कारणों से भी कराते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि इससे लिंग संक्रमण होने के आसार बेहद कम होते हैं लेकिन यह एक बेहद हिंसक कृत्य है.


लड़कियों का खतना
कबीर से बात करने पर पता चला कि खतना सिर्फ लड़को का ही नहीं लड़कियों का भी होता है. लड़को के खतने में दर्द सिर्फ शुरूआत में होता है लेकिन लड़कियों के लिए खतना मौत की तरह है.


महिलाओं के ख़तने में महिला जननांगों के क्लिटोरिस का हिस्सा काट दिया जाता है या यदि बर्बर रूप से बयां किया जाए तो महिला जननांग का बाहर रहनेवाला सारा हिस्सा काट दिया जाता है और मात्र मूत्रत्याग और रजोस्राव के लिए छोटा द्वार छोड़ दिया जाता है.


ऐसे में लड़कियों का खतना करते समय कई बार जटिलता की वजह से मौते भी हो जाती है. लेकिन दर्द और भय का डर यहीं खत्म नही होता. लड़कियों का खतना होने के बाद उसे जीवन भर संभोग करते समय और बच्चे पैसा करते समय भयानक पीडा से गुजरना पड़ता है जिसकी कल्पना मात्र से ही आपकी रुह कांप उठेगी.


लड़कियों का खतना करने के पीछे की मानसिकता यह है कि इससे महिलाओं में विवाह पूर्व संबंध बनाने की इच्छा खत्म होगी. अब जब मात्र पति से संभोग करने में बच्चा पैदा करने से भी ज्यादा दर्द हो तो कौन भला पराए मर्द पर नजरे जडाए. पुरुषवादी समाज का यह स्त्रियों पर सबसे बड़ा अत्याचार माना जा सकता है.


खतने के दौरान जो दर्द मासूम बच्चों को होता है उसे धार्मिक अनुष्ठान या धार्मिक क्रिया-कर्म का नाम देना गलत है. लोगों को समझना होगा कि अब हम एक नए युग में जी रहे हैं. जहां तक बात रही साफ-सफाई की तो खतना से कोई खास फर्क नहीं पड़ता और महिलाओं का तो खतना होना ही नहीं चाहिए.


मुस्लिम समाज को कई लोग कट्टर कहते हैं यूं तो मैं अब तक उनकी बात से सहमत नहीं था लेकिन “खतना” के बारें में सुनने के बाद मेरे विचार बदल गए हैं. जो समुदाय अपने पर्व पर गायों और अन्य पशुओं को मारकर खाए, जो महिलाओं को पर्दे में रहने का आदेश जारी करें, जो खतना जैसी अमानवीय कृत्य का समर्थक हो वह कभी इंसानियत का दोस्त नहीं हो सकता.
और अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात खतना का जिक्र कुरान में है ही नहीं फिर किस आधार पर इस्माल ने इस क्रुर प्रकिया को अपना रखा है.
नोट: इस लेख के माध्यम से अगर इस्लाम धर्म या किसी मुस्लिमान भाई को ठेस पहुंची हो तो माफ करें लेकिन क्या करें यह ब्लॉग है और ब्लॉग का मतलब ही विचारों की अभिव्यक्ति है.  “
More : http://manojkumarsah.jagranjunction.com/2012/07/25/circumcision-khatna-%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88/

महिलाओं का खतना या उनके जननांगों को काटने की इस कुप्रथा को कई बार ब्रिटेन में भी अंजाम दिया जाता है.
ब्रिटेन अपने यहाँ रह रही पूर्वी अफ़्रीकी देशों के मूल की महिलाओं के खतने की प्रथा से बेहद परेशान है. एक अनुमान है की ब्रिटेन में करीब 66000 महिलाएं इस कुप्रथा से प्रभावित हैं.
कई बार पूर्वी अफ़्रीकी मूल की ब्रितानी लड़कियों को अपने पूर्वजों के देश में ले जा कर उनका खतना कर दिया जाता है.

आप बीती

"मुझे ज़मीन पर सोना पड़ता था, चलना तो दूर, मैं खड़ी तक नहीं हो सकती थी. मेरे पावं रस्सी से बांध दिए गए जिससे मैं अपने पावों को फैला ना सकूं. वो सब बेहद दर्दभरा था"
फ़िल्सन, एक पीड़ित
पैतीस साल की उम्र की महिला फ़िल्सन उन्ही महिलाओं में से एक हैं जिनके जननांग सामाजिक मान्यताओं के कारण सिल दिए गए थे.
फ़िल्सन के तीन बच्चे हैं और वो ब्रिटेन में रहती हैं. उस दिन को याद करते हुए वो बताती हैं कि सात साल की उम्र में सोमालिया में उनके खतने के पहले उन्हें नए कपड़े दिए गए. पर उसके बाद जो हुआ उसमे कुछ भी अच्छा नहीं था.
फ़िल्सन बताती हैं, "वो बेहद दर्दनाक था. हालांकि मुझे दर्द निवारक इंजेक्शन दिया गया था, लेकिन जब उसका असर खत्म हुआ तो मैं टॉयलेट भी नहीं जा पाती थी."
ब्रिटेन में इस बात पर अभी तक कोई सज़ाएँ नहीं हुई हैं
ब्रिटेन में इस बात पर अभी तक कोई सज़ाएँ नहीं हुई हैं
फ़िल्सन याद करती हैं, "मुझे ज़मीन पर सोना पड़ता था, चलना तो दूर, मैं खड़ी तक नहीं हो सकती थी. मेरे पाँव रस्सी से बांध दिए गए जिससे मैं अपने पावों को फैला ना सकूं. वो सब बेहद दर्दभरा था."
फ़िल्सन बताती हैं "जब मेरे पहले बच्चे के जन्म का वक़्त आया तो मैं बस यही सोच रही थी कि यह बच्चा मेरे शरीर के इतने क्षतिग्रस्त हिस्से से कैसे निकलेगा. लेकिन मेरे पास एक अच्छा डॉक्टर था जो मेरी परेशानी को समझता था."
फ़िल्सन की वो यादें अभी तक उनके अंदर सिहरन पैदा कर देती हैं.

प्रयास

आज फ़िल्सन अपने जैसी महिलाओं की मदद के लिए काम करती हैं. सोमाली मूल के लोगों के बीच उनका काम धीरे-धीरे रंग ला रहा है.
"पूर्व में इस तरह के मसले सांस्कृतिक कारणों से नहीं छुए जाते थे लेकिन अब और नहीं. महिलाओं के खिलाफ हिंसा हिंसा है चाहे वो बंद दरवाजों के पीछे हो और किसी भी कारण से हो"
लिन फ़ेदरमोर, ब्रितानी अंतर्राष्ट्रीय विकास मंत्री
फ़िल्सन कहती हैं "ब्रिटेन में लोग धीरे-धीरे समझ रहे हैं कि यह कोई अच्छी प्रथा नहीं है और इससे दूर जाने की ज़रुरत है. अफ़्रीका में इसके खिलाफ़ लोगों को जागरूक करने की ज़रुरत है."
ब्रिटेन में सोमाली भाषा के टीवी चैनलों पर इसके खिलाफ़ विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं और प्रभावित महिलाओं की सर्जरी भी की जा रही है.
क्वीन शार्लेट अस्पताल में काम करने वाली एक विशेषज्ञ जूलिएट एल्बर्ट बताती हैं कि क्यों ब्रिटेन में कई परिवार आज भी इस बर्बर प्रथा का पालन करते हैं.
एल्बर्ट के अनुसार "यूं तो महिलाएं इससे दूर रहना चाहती हैं, लेकिन वो घबराती है कि आगे चल कर उनकी बेटियों की शादी में इसकी वजह से कहीं दिक्कत ना उठ खड़ी हो."
एल्बर्ट कहती हैं कि इस खतने की वजह से महिलाओं को यूरिन इन्फेक्शन होता है, सेक्स तथा अपने मासिक के दौरान उन्हें बेहद दर्द का सामना भी करना पड़ता है.
इस नुकसान को पलटना बहुत मुश्किल नहीं है और यह एक छोटे से ऑपरेशन के साथ किया जा सकता है.
कैसे होता है महिलाओं में खतना.....

महिलाओं के खतने में महिला जननांगों के क्लिटोरिस का हिस्सा काट दिया जाता है। इसको इस तरह से भी कह सकते हैं कि खतने में महिला जननांग का बाहर रहने वाला सारा हिस्सा काट दिया जाता है और मात्र मूत्रत्याग और रजोस्त्राव के लिए छोटा द्वार छोड दिया जाता है।

ऎसी भी मान्यता है कि इससे महिलाओं की यौन-इच्छा घटती है और उसके विवाहेतर संबंध बनाने की संभावना कम रहती है। खतने के दौरान जटिलताएं होने से मौत हो सकती है और संभोग तथा बच्चे पैदा करना बेहद पीडादायक हो सकता है। हांलांकि ब्रिटेन और फ्रांस में 80 के दशक से ही खतना अवैध घोषित है।

अंतरराष्ट्रीय अभियान

ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में साढ़े तीन करोड़ पाउंड या करीब 292 करोड़ रुपयों के बराबर के कार्यक्रम की घोषणा की है
ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में साढ़े तीन करोड़ पाउंड या करीब 292 करोड़ रुपयों के बराबर के कार्यक्रम की घोषणा की है
ब्रिटेन की सामाजिक स्वास्थ्य मंत्री ऐना सर्बी का कहती हैं "ब्रिटेन अपने हर बच्चे को अत्याचार से बचाएगा चाहे उसके दादा या दादी किसी भी देश से ताल्लुक रखते हों."
ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में साढ़े तीन करोड़ पाउंड या करीब 292 करोड़ रुपयों के बराबर के कार्यक्रम की घोषणा की है जिसके तहत महिलाओं के खतने की प्रथा के खिलाफ ना केवल ब्रिटेन में बल्कि उन देशों में भी अभियान चलाया जाएगा जहाँ इस कुप्रथा का पालन होता है.
ब्रिटेन की अंतर्राष्ट्रीय विकास मंत्री लिन फ़ेदरमोर का कहना है "पूर्व में इस तरह के मसले सांस्कृतिक कारणों से नहीं छुए जाते थे लेकिन अब और नहीं.  महिलाओं के खिलाफ हिंसा हिंसा है चाहे वो बंद दरवाजों के पीछे हो और किसी भी कारण से हो."
उनके अनुसार सरकार और गृह मंत्रालय इसके बारे में जो कर सकेंगे वो करेंगे. फ़ेदरमोर कहती हैं कि इस प्रथा से निपटने के लिए के नए क़दमों की ज़रुरत है पर बल देती है. वो कहती हैं " फ़्रांस में छह साल तक की बच्चियों के जननांगों का परीक्षण किया जाता है. लेकिन इस देश में इसकी ज़रुरत नहीं है क्योंकि यहाँ ज़्यादातर आबादी के बीच इस तरह की समस्या नहीं है."
तरीका चाहे जो हो लेकिन सरकार का मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए और काम की ज़रुरत है ब्रिटेन में मौजूद सामाजिक समूहों के बीच भी और स्कूलों के बच्चों के बीच भी.

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