महात्मा गांधी और मनुबेन: एक अनकही कहानी
महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि
ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल
डाला.
वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में
‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों
के लिए एक पहेली है. 1946 में सिर्फ 17 वर्ष की आयु में यह महिला महात्मा
की पर्सनल असिस्टेंट बनीं और उनकी हत्या होने तक लगातार उनके साथ रही. फिर
भी मनुबेन के नाम से मशहूर मृदुला गांधी ने 40 वर्ष की उम्र में अविवाहित
रहते हुए दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा.
1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में मनुबेन किरदार को सुप्रिया पाठक ने निभाया था. मनुबेन के निधन के चार दशक के बाद उनकी दस डायरियां इंडिया टुडे को देखने को मिलीं. गुजराती में लिखी गई और 2,000 पन्नों में फैली इन डायरियों की शुरुआत 11 अप्रैल, 1943 से होती है. गुजराती विद्वान रिजवान कादरी ने इन डायरियों का विस्तार से अध्ययन किया. इनसे पता चलता है कि अपनी सेक्सुअलिटी के साथ गांधी के प्रयोगों का मनुबेन के मन पर क्या असर पड़ा. इनसे गांधी के संपर्क में रहने वाले लोगों के मन में पनपती ईर्ष्या और क्रोध की भावना भी उजागर होती है. इनमें अधिकतर युवा महिलाएं थीं. डायरियों का लेखन उस समय शुरू हुआ जब गांधी के भाई की पोती मनुबेन पुणे में आगा खां पैलेस में नजरबंद गांधी की पत्नी कस्तूरबा की सेवा करने आई थीं. गांधी और कस्तूरबा को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस पैलेस में नजरबंद रखा गया था. बीमारी के अंतिम दिनों में मनुबेन ने कस्तूरबा की सेवा की. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने मनुबेन को एक तरफ धकेल कर अपनी 9 एमएम बरेटा पिस्तौल से गांधी पर तीन गोलियां दागी थीं. उसके 22 दिन बाद मनुबेन ने डायरी लिखना बंद कर दिया.
डायरियों में जगह-जगह हाशिये पर गांधी के हस्ताक्षर हैं. इनसे उनके प्रति समर्पित एक लड़की की छवि उभरती है. 28 दिसंबर,1946 को बिहार के श्रीरामपुर में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने लिखा है, ‘‘बापू मेरी माता हैं. वे ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के माध्यम से मुझे ऊंचे मानवीय फलक पर ले जा रहे हैं. ये प्रयोग चरित्र निर्माण के उनके महायज्ञ के अंग हैं. इनके बारे में कोई भी उलटी-सीधी बात सबसे निंदनीय है.’’ इससे नौ दिन पहले ही मनुबेन गांधी के साथ आईं थीं. उस समय 77 वर्षीय गांधी तत्कालीन पूर्वी बंगाल में नोआखली में हुई हत्याओं के बाद अशांत गांवों में घूम रहे थे. गांधी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक महात्मा गांधी: द लास्ट फेज में इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है, ‘‘उन्होंने उसके लिए वह सब कुछ किया जो एक मां अपनी बेटी के लिए करती है. उसकी पढ़ाई, उसके भोजन, पोशाक, आराम और नींद हर बात का वे ख्याल रखते थे. करीब से देख-रेख और मार्गदर्शन के लिए गांधी उसे अपने ही बिस्तर पर सुलाते थे. मन से मासूम किसी लड़की को अपनी मां के साथ सोने में कभी शर्म नहीं आती.’’ मनुबेन गांधी की प्रमुख निजी सेविका थीं. वे मालिश और नहलाने से लेकर उनका खाना पकाने तक सारे काम करती थीं.
इन डायरियों में डॉ. सुशीला नय्यर जैसी महात्मा गांधी की महिला सहयोगियों के जीवन का भी विस्तार से वर्णन है. प्यारेलाल की बहन सुशीला गांधी की निजी चिकित्सक थीं जो बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनीं. उनके अलावा पंजाबी मुस्लिम महिला बीबी अम्तुस्सलाम भी इन महिलाओं में शामिल थीं. ब्रह्मचर्य के महात्मा के प्रयोगों में शामिल रहीं महिलाओं के बीच जबरदस्त जलन की झलक भी इन डायरियों में मौजूद है. मनुबेन ने 24 फरवरी, 1947 को बिहार के हेमचर में अपनी डायरी में दर्ज किया, ‘‘आज बापू ने अम्तुस्सलाम बेन को एक कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि ब्रह्मचर्य के प्रयोग उनके साथ शुरू न होने से वे कुछ नाराज हैं.’’
2010 में दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिलीं इन डायरियों में यह भी लिखा है कि 47 वर्ष की आयु में भी प्यारेलाल मनुबेन से शादी करने को लालायित थे और सुशीला इसके लिए दबाव डाल रही थीं. 2 फरवरी, 1947 को बिहार के दशधरिया में आखिरकार मनुबेन को लिखना ही पड़ा, ‘‘मैं प्यारेलालजी को अपने बड़े भाई की तरह मानती हूं, इसके अलावा कुछ भी नहीं. जिस दिन मैं अपने गुरु, अपने बड़े भाई या अपने दादा से शादी करने का फैसला कर लूंगी, उस दिन उनसे विवाह कर लूंगी. इस बारे में मुझ पर और दबाव मत डालना.’’
मनुबेन की टिप्पणियों से ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर गांधी के अनुयायियों में बढ़ते असंतोष की झलक भी मिलती है. 31 जनवरी, 1947 को बिहार के नवग्राम में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने घनिष्ठ अनुयायी किशोरलाल मशरूवाला के गांधी को लिखे पत्र का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने मनु को ‘‘माया’’ बताते हुए महात्मा से उसके चंगुल से मुक्त होने का आग्रह किया था. इस पर गांधी का जवाब था: ‘‘तुम जो चाहे करो लेकिन इस प्रयोग के बारे में मेरी आस्था अटल है.’’ मनुबेन और गांधी जब बंगाल में नोआखली की यात्रा कर रहे थे तब उनके दो सचिव आर.पी. परशुराम और निर्मल कुमार बोस गांधी के आचरण से नाराज होकर उनका साथ छोड़ गए थे. यही निर्मल कुमार बोस बाद में भारत की ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी के डायरेक्टर बने. सरदार वल्लभभाई पटेल ने 25 जनवरी, 1947 को लिखे एक पत्र में गांधी से कहा था कि वे यह प्रयोग रोक दें. पटेल ने इसे गांधी की ‘भयंकर भूल’ बताया था जिससे उनके अनुयायियों को ‘गहरी पीड़ा’ होती थी. यह पत्र राष्ट्रीय अभिलेखागार में सरदार पटेल के दस्तावेजों में शामिल है. महात्मा ने मनुबेन के मन पर कितनी गहरी छाप छोड़ी थी, इसकी जबरदस्त झलक 19 अगस्त,1955 को जवाहर लाल नेहरू के नाम लिखे गए मोरारजी देसाई के पत्र से मिलती है. मनुबेन एक ‘‘अज्ञात रोग’’ के इलाज के लिए बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थीं. वहां अगस्त में उनसे मिलने के बाद मोरारजी देसाई ने लिखा: ‘‘मनु की समस्या शरीर से अधिक मन की है. लगता है, वे जीवन से हार गई हैं और सभी प्रकार की दवाओं से उन्हें एलर्जी हो गई है.’’
30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 बजे जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा को गोली मारी, उस समय मनुबेन के अलावा आभाबेन गांधी भी महात्मा की बगल में थीं. आभा उनके भतीजे कनु गांधी की पत्नी थीं. अगले दिन मनुबेन ने लिखा, ‘‘जब चिता की लपटें बापू की देह को निगल रही थीं, मैं अंतिम संस्कार के बाद बहुत देर तक वहां बैठी रहना चाहती थी. सरदार पटेल ने मुझे ढाढस बंधाया और अपने घर ले गए. मेरे लिए वह सब अकल्पनीय था. दो दिन पहले तक बापू हमारे साथ थे. कल तक कम-से-कम उनका शरीर तो था और आज मैं एकदम अकेली हूं. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है.’’
उसके बाद डायरी में अगली और अंतिम प्रविष्टि 21 फरवरी, 1948 की है, जब मनुबेन दिल्ली से ट्रेन में बैठकर भावनगर के निकट महुवा के लिए रवाना हुईं. इसमें उन्होंने लिखा, ‘‘आज मैंने दिल्ली छोड़ दी.’’ मनुबेन ने गांधी के निधन के बाद पांच पुस्तकें लिखीं. इनमें से एक लास्ट ग्लिम्प्सिज ऑफ बापू में उन्होंने लिखा, ‘‘काका (गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास) ने मुझे चेताया कि अपनी डायरी में लिखी गई बातें किसी को न बताऊं और महत्वपूर्ण पत्रों में लिखी गई बातों की जानकारी भी न दूं. उन्होंने कहा था, तुम अभी बहुत छोटी हो पर तुम्हारे पास बहुत कीमती साहित्य है और तुम अभी परिपक्व भी नहीं हो.’’
बापू: माय मदर नाम से अपने 68 पन्नों के संस्मरण में भी मनुबेन ने गांधी के साथ उनकी सेक्सुअलिटी के प्रयोगों में शामिल रहने के बावजूद उनके बारे में अपनी भावनाओं का कहीं उल्लेख नहीं किया. पुस्तक के 15 अध्यायों में से एक में मनुबेन ने लिखा है कि उनके पुणे जाने के 10 महीने के भीतर कस्तूरबा की मृत्यु हो गई. उसके बाद बापू ने मौन व्रत धारण कर लिया और वे सिर्फ लिखकर ही अपनी बात कहते थे. कुछ ही दिन बाद उन्हें बापू से एक बहुत ही मार्मिक नोट मिला, जिसमें उन्होंने उन्हें राजकोट जाकर अपनी पढ़ाई फिर शुरू करने की सलाह दी थी. इस अध्याय में मनुबेन ने लिखा, ‘‘उस दिन से बापू मेरी माता बन गए.’’
किशोरी मनुबेन ने कराची में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी जहां उनके पिता, गांधी के भतीजे जयसुखलाल सिंधिया स्टीम नैविगेशन कंपनी में काम करते थे. पुणे आने से कुछ दिन पहले ही मनु ने अपनी मां को खोया था इसलिए उन्हें भी मां रूपी सहारे की जरूरत थी.
मनुबेन ने अपने जीवन के अंतिम साल एकदम अकेले काटे. गांधी की हत्या के बाद करीब 21 वर्ष तक वे गुजरात में भावनगर के निकट महुवा में रहीं. वे बच्चों का एक स्कूल चलाती थीं और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने भगिनी समाज की स्थापना भी की थी. जीवन के अंतिम चरण में मनुबेन की एक सहयोगी भानुबेन लाहिड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की थीं. समाज की 22 महिला सदस्यों में से एक लाहिड़ी को याद है कि गांधी ने मनु के जीवन पर कितना गहरा असर डाला था. उनका कहना है कि एक बार जब मनुबेन ने अपने एक गरीब अनुयायी के विवाह के लिए उनसे चुनरी ली तो बोल पड़ीं, ‘‘मैं तो खुद को मीरा बाई मानती हूं जो सिर्फ अपने ‘यामलो (कृष्ण) के लिए जीती रही.’’
मनोविश्लेषक और स्कॉलर सुधीर कक्कड़ इन डायरियों के बारे में कहते हैं, ‘‘इन प्रयोगों के दौरान महात्मा गांधी अपनी भावनाओं पर इतने अधिक केंद्रित हो गए थे कि मुझे लगता है कि उन्होंने इन प्रयोगों में शामिल महिलाओं पर उनके प्रभाव को अनदेखा करने का फैसला लिया होगा.
विभिन्न महिलाओं के बीच जलन की लपटें उठने के अलावा हमें नहीं मालूम कि इन प्रयोगों ने उनमें से हर महिला के मन पर कोई प्रभाव डाला था या नहीं.’’
अब मनुबेन की डायरियां मिलने से हम कम से कम यह अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि महात्मा ने अपनी इन सहयोगियों के मन पर किस तरह की छाप छोड़ी थी या इन प्रयोगों का उन पर क्या असर हुआ था.
मधुबेन की डायरियां कैसे जगजाहिर हुईं
1. 1969 मनुबेन के निधन तक उनकी डायरियां में महुवा में उनके पास थीं. उन्होंने अपने पिता जयसुखलाल से कहा था कि डायरियां उनकी बहन संयुक्ताबेन की बेटी मीना जैन को सौंप दी जाएं.
2. मुंबई निवासी मीना जैन ने उन्हें मध्य प्रदेश में रीवा में अपने पारिवारिक बंगले में रखने का फैसला किया.
3. 2010 में मीना की बचपन की सहेली वर्षा दास जो उस समय दिल्ली में राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की निदेशक थीं, मीना के अनुरोध पर रीवा गईं और डायरियां दिल्ली लाकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जमा करवा दीं.
(1899-1982)बाद के वर्षों में गांधी के निजी सचिव रहे.
सुशीला नय्यर
(1914-2000)प्यारेलाल की छोटी बहन जो गांधी की निजी चिकित्सक थीं और बाद में दो बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहीं.
मृदुला गांधी उर्फ मनुबेन
(1929-1969)गांधी के भाई की पोती और अंतिम दो साल में उनके साथ रहीं.
कनु गांधी
(1917-1986)गांधी के भतीजे जो उनके निजी फोटोग्राफर रहे.
देवदास गांधी
(1900-1957)गांधी के सबसे छोटे बेटे. 1950 के दशक के प्रख्यात पत्रकार.
आभा गांधी
(1927-1995)मनुबेन के अलावा गांधी की दूसरी निकटतम सहयोगी और उनके भतीजे कनु की पत्नी.
बीबी अम्तुस्सलाम
(1958 में निधन)गांधी की पंजाबी मुस्लिम अनुयायी.
किशोरलाल मशरूवाला
(1890-1952)गांधी के निकट सहयोगी थे.
अमृतलाल ठक्कर
(1869-1951)ठक्कर बापा के नाम से मशहूर समाजसेवी जो गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले के सहयोगी रहे.
1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में मनुबेन किरदार को सुप्रिया पाठक ने निभाया था. मनुबेन के निधन के चार दशक के बाद उनकी दस डायरियां इंडिया टुडे को देखने को मिलीं. गुजराती में लिखी गई और 2,000 पन्नों में फैली इन डायरियों की शुरुआत 11 अप्रैल, 1943 से होती है. गुजराती विद्वान रिजवान कादरी ने इन डायरियों का विस्तार से अध्ययन किया. इनसे पता चलता है कि अपनी सेक्सुअलिटी के साथ गांधी के प्रयोगों का मनुबेन के मन पर क्या असर पड़ा. इनसे गांधी के संपर्क में रहने वाले लोगों के मन में पनपती ईर्ष्या और क्रोध की भावना भी उजागर होती है. इनमें अधिकतर युवा महिलाएं थीं. डायरियों का लेखन उस समय शुरू हुआ जब गांधी के भाई की पोती मनुबेन पुणे में आगा खां पैलेस में नजरबंद गांधी की पत्नी कस्तूरबा की सेवा करने आई थीं. गांधी और कस्तूरबा को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस पैलेस में नजरबंद रखा गया था. बीमारी के अंतिम दिनों में मनुबेन ने कस्तूरबा की सेवा की. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने मनुबेन को एक तरफ धकेल कर अपनी 9 एमएम बरेटा पिस्तौल से गांधी पर तीन गोलियां दागी थीं. उसके 22 दिन बाद मनुबेन ने डायरी लिखना बंद कर दिया.
डायरियों में जगह-जगह हाशिये पर गांधी के हस्ताक्षर हैं. इनसे उनके प्रति समर्पित एक लड़की की छवि उभरती है. 28 दिसंबर,1946 को बिहार के श्रीरामपुर में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने लिखा है, ‘‘बापू मेरी माता हैं. वे ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के माध्यम से मुझे ऊंचे मानवीय फलक पर ले जा रहे हैं. ये प्रयोग चरित्र निर्माण के उनके महायज्ञ के अंग हैं. इनके बारे में कोई भी उलटी-सीधी बात सबसे निंदनीय है.’’ इससे नौ दिन पहले ही मनुबेन गांधी के साथ आईं थीं. उस समय 77 वर्षीय गांधी तत्कालीन पूर्वी बंगाल में नोआखली में हुई हत्याओं के बाद अशांत गांवों में घूम रहे थे. गांधी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक महात्मा गांधी: द लास्ट फेज में इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है, ‘‘उन्होंने उसके लिए वह सब कुछ किया जो एक मां अपनी बेटी के लिए करती है. उसकी पढ़ाई, उसके भोजन, पोशाक, आराम और नींद हर बात का वे ख्याल रखते थे. करीब से देख-रेख और मार्गदर्शन के लिए गांधी उसे अपने ही बिस्तर पर सुलाते थे. मन से मासूम किसी लड़की को अपनी मां के साथ सोने में कभी शर्म नहीं आती.’’ मनुबेन गांधी की प्रमुख निजी सेविका थीं. वे मालिश और नहलाने से लेकर उनका खाना पकाने तक सारे काम करती थीं.
इन डायरियों में डॉ. सुशीला नय्यर जैसी महात्मा गांधी की महिला सहयोगियों के जीवन का भी विस्तार से वर्णन है. प्यारेलाल की बहन सुशीला गांधी की निजी चिकित्सक थीं जो बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनीं. उनके अलावा पंजाबी मुस्लिम महिला बीबी अम्तुस्सलाम भी इन महिलाओं में शामिल थीं. ब्रह्मचर्य के महात्मा के प्रयोगों में शामिल रहीं महिलाओं के बीच जबरदस्त जलन की झलक भी इन डायरियों में मौजूद है. मनुबेन ने 24 फरवरी, 1947 को बिहार के हेमचर में अपनी डायरी में दर्ज किया, ‘‘आज बापू ने अम्तुस्सलाम बेन को एक कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि ब्रह्मचर्य के प्रयोग उनके साथ शुरू न होने से वे कुछ नाराज हैं.’’
2010 में दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिलीं इन डायरियों में यह भी लिखा है कि 47 वर्ष की आयु में भी प्यारेलाल मनुबेन से शादी करने को लालायित थे और सुशीला इसके लिए दबाव डाल रही थीं. 2 फरवरी, 1947 को बिहार के दशधरिया में आखिरकार मनुबेन को लिखना ही पड़ा, ‘‘मैं प्यारेलालजी को अपने बड़े भाई की तरह मानती हूं, इसके अलावा कुछ भी नहीं. जिस दिन मैं अपने गुरु, अपने बड़े भाई या अपने दादा से शादी करने का फैसला कर लूंगी, उस दिन उनसे विवाह कर लूंगी. इस बारे में मुझ पर और दबाव मत डालना.’’
मनुबेन की टिप्पणियों से ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर गांधी के अनुयायियों में बढ़ते असंतोष की झलक भी मिलती है. 31 जनवरी, 1947 को बिहार के नवग्राम में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने घनिष्ठ अनुयायी किशोरलाल मशरूवाला के गांधी को लिखे पत्र का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने मनु को ‘‘माया’’ बताते हुए महात्मा से उसके चंगुल से मुक्त होने का आग्रह किया था. इस पर गांधी का जवाब था: ‘‘तुम जो चाहे करो लेकिन इस प्रयोग के बारे में मेरी आस्था अटल है.’’ मनुबेन और गांधी जब बंगाल में नोआखली की यात्रा कर रहे थे तब उनके दो सचिव आर.पी. परशुराम और निर्मल कुमार बोस गांधी के आचरण से नाराज होकर उनका साथ छोड़ गए थे. यही निर्मल कुमार बोस बाद में भारत की ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी के डायरेक्टर बने. सरदार वल्लभभाई पटेल ने 25 जनवरी, 1947 को लिखे एक पत्र में गांधी से कहा था कि वे यह प्रयोग रोक दें. पटेल ने इसे गांधी की ‘भयंकर भूल’ बताया था जिससे उनके अनुयायियों को ‘गहरी पीड़ा’ होती थी. यह पत्र राष्ट्रीय अभिलेखागार में सरदार पटेल के दस्तावेजों में शामिल है. महात्मा ने मनुबेन के मन पर कितनी गहरी छाप छोड़ी थी, इसकी जबरदस्त झलक 19 अगस्त,1955 को जवाहर लाल नेहरू के नाम लिखे गए मोरारजी देसाई के पत्र से मिलती है. मनुबेन एक ‘‘अज्ञात रोग’’ के इलाज के लिए बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थीं. वहां अगस्त में उनसे मिलने के बाद मोरारजी देसाई ने लिखा: ‘‘मनु की समस्या शरीर से अधिक मन की है. लगता है, वे जीवन से हार गई हैं और सभी प्रकार की दवाओं से उन्हें एलर्जी हो गई है.’’
30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 बजे जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा को गोली मारी, उस समय मनुबेन के अलावा आभाबेन गांधी भी महात्मा की बगल में थीं. आभा उनके भतीजे कनु गांधी की पत्नी थीं. अगले दिन मनुबेन ने लिखा, ‘‘जब चिता की लपटें बापू की देह को निगल रही थीं, मैं अंतिम संस्कार के बाद बहुत देर तक वहां बैठी रहना चाहती थी. सरदार पटेल ने मुझे ढाढस बंधाया और अपने घर ले गए. मेरे लिए वह सब अकल्पनीय था. दो दिन पहले तक बापू हमारे साथ थे. कल तक कम-से-कम उनका शरीर तो था और आज मैं एकदम अकेली हूं. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है.’’
उसके बाद डायरी में अगली और अंतिम प्रविष्टि 21 फरवरी, 1948 की है, जब मनुबेन दिल्ली से ट्रेन में बैठकर भावनगर के निकट महुवा के लिए रवाना हुईं. इसमें उन्होंने लिखा, ‘‘आज मैंने दिल्ली छोड़ दी.’’ मनुबेन ने गांधी के निधन के बाद पांच पुस्तकें लिखीं. इनमें से एक लास्ट ग्लिम्प्सिज ऑफ बापू में उन्होंने लिखा, ‘‘काका (गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास) ने मुझे चेताया कि अपनी डायरी में लिखी गई बातें किसी को न बताऊं और महत्वपूर्ण पत्रों में लिखी गई बातों की जानकारी भी न दूं. उन्होंने कहा था, तुम अभी बहुत छोटी हो पर तुम्हारे पास बहुत कीमती साहित्य है और तुम अभी परिपक्व भी नहीं हो.’’
बापू: माय मदर नाम से अपने 68 पन्नों के संस्मरण में भी मनुबेन ने गांधी के साथ उनकी सेक्सुअलिटी के प्रयोगों में शामिल रहने के बावजूद उनके बारे में अपनी भावनाओं का कहीं उल्लेख नहीं किया. पुस्तक के 15 अध्यायों में से एक में मनुबेन ने लिखा है कि उनके पुणे जाने के 10 महीने के भीतर कस्तूरबा की मृत्यु हो गई. उसके बाद बापू ने मौन व्रत धारण कर लिया और वे सिर्फ लिखकर ही अपनी बात कहते थे. कुछ ही दिन बाद उन्हें बापू से एक बहुत ही मार्मिक नोट मिला, जिसमें उन्होंने उन्हें राजकोट जाकर अपनी पढ़ाई फिर शुरू करने की सलाह दी थी. इस अध्याय में मनुबेन ने लिखा, ‘‘उस दिन से बापू मेरी माता बन गए.’’
किशोरी मनुबेन ने कराची में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी जहां उनके पिता, गांधी के भतीजे जयसुखलाल सिंधिया स्टीम नैविगेशन कंपनी में काम करते थे. पुणे आने से कुछ दिन पहले ही मनु ने अपनी मां को खोया था इसलिए उन्हें भी मां रूपी सहारे की जरूरत थी.
मनुबेन ने अपने जीवन के अंतिम साल एकदम अकेले काटे. गांधी की हत्या के बाद करीब 21 वर्ष तक वे गुजरात में भावनगर के निकट महुवा में रहीं. वे बच्चों का एक स्कूल चलाती थीं और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने भगिनी समाज की स्थापना भी की थी. जीवन के अंतिम चरण में मनुबेन की एक सहयोगी भानुबेन लाहिड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की थीं. समाज की 22 महिला सदस्यों में से एक लाहिड़ी को याद है कि गांधी ने मनु के जीवन पर कितना गहरा असर डाला था. उनका कहना है कि एक बार जब मनुबेन ने अपने एक गरीब अनुयायी के विवाह के लिए उनसे चुनरी ली तो बोल पड़ीं, ‘‘मैं तो खुद को मीरा बाई मानती हूं जो सिर्फ अपने ‘यामलो (कृष्ण) के लिए जीती रही.’’
मनोविश्लेषक और स्कॉलर सुधीर कक्कड़ इन डायरियों के बारे में कहते हैं, ‘‘इन प्रयोगों के दौरान महात्मा गांधी अपनी भावनाओं पर इतने अधिक केंद्रित हो गए थे कि मुझे लगता है कि उन्होंने इन प्रयोगों में शामिल महिलाओं पर उनके प्रभाव को अनदेखा करने का फैसला लिया होगा.
विभिन्न महिलाओं के बीच जलन की लपटें उठने के अलावा हमें नहीं मालूम कि इन प्रयोगों ने उनमें से हर महिला के मन पर कोई प्रभाव डाला था या नहीं.’’
अब मनुबेन की डायरियां मिलने से हम कम से कम यह अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि महात्मा ने अपनी इन सहयोगियों के मन पर किस तरह की छाप छोड़ी थी या इन प्रयोगों का उन पर क्या असर हुआ था.
मधुबेन की डायरियां कैसे जगजाहिर हुईं
1. 1969 मनुबेन के निधन तक उनकी डायरियां में महुवा में उनके पास थीं. उन्होंने अपने पिता जयसुखलाल से कहा था कि डायरियां उनकी बहन संयुक्ताबेन की बेटी मीना जैन को सौंप दी जाएं.
2. मुंबई निवासी मीना जैन ने उन्हें मध्य प्रदेश में रीवा में अपने पारिवारिक बंगले में रखने का फैसला किया.
3. 2010 में मीना की बचपन की सहेली वर्षा दास जो उस समय दिल्ली में राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की निदेशक थीं, मीना के अनुरोध पर रीवा गईं और डायरियां दिल्ली लाकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जमा करवा दीं.
बड़े-बड़े खिलाड़ी
मनुबेन की डायरी में दर्ज नाटकीय शख्स
प्यारेलाल(1899-1982)बाद के वर्षों में गांधी के निजी सचिव रहे.
सुशीला नय्यर
(1914-2000)प्यारेलाल की छोटी बहन जो गांधी की निजी चिकित्सक थीं और बाद में दो बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहीं.
मृदुला गांधी उर्फ मनुबेन
(1929-1969)गांधी के भाई की पोती और अंतिम दो साल में उनके साथ रहीं.
कनु गांधी
(1917-1986)गांधी के भतीजे जो उनके निजी फोटोग्राफर रहे.
देवदास गांधी
(1900-1957)गांधी के सबसे छोटे बेटे. 1950 के दशक के प्रख्यात पत्रकार.
आभा गांधी
(1927-1995)मनुबेन के अलावा गांधी की दूसरी निकटतम सहयोगी और उनके भतीजे कनु की पत्नी.
बीबी अम्तुस्सलाम
(1958 में निधन)गांधी की पंजाबी मुस्लिम अनुयायी.
किशोरलाल मशरूवाला
(1890-1952)गांधी के निकट सहयोगी थे.
अमृतलाल ठक्कर
(1869-1951)ठक्कर बापा के नाम से मशहूर समाजसेवी जो गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले के सहयोगी रहे.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/mahatma-gandhi-and-mnuben-the-untold-story-1-734362.html
10 नवंबर, 1943
आगा खां पैलेस, पुणेएनिमिया के शिकार बापू आज सुशीलाबेन के साथ नहाते समय बेहोश हो गए. फिर सुशीलाबेन ने एक हाथ से बापू को पकड़ा और दूसरे हाथ से कपड़े पहने और फिर उन्हें बाहर लेकर आईं.
21 दिसंबर, 1946
श्रीरामपुर, बिहार आज रात जब बापू, सुशीलाबेन और मैं एक ही पलंग पर सो रहे थे तो उन्होंने मुझे गले से लगाया और प्यार से थपथपाया. उन्होंने बड़े ही प्यार से मुझे सुला दिया. उन्होंने लंबे समय बाद मेरा आलिंगन किया था. फिर बापू ने अपने साथ सोने के बावजूद (यौन इच्छाओं के मामले में) मासूम बनी रहने के लिए मेरी प्रशंसा की. लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ. वीना, कंचन और लीलावती (गांधी की अन्य महिला सहयोगी) ने मुझसे कहा था कि वे उनके (गांधी के) साथ नहीं सो पाएंगी.
1 जनवरी, 1947
कथुरी, बिहारसुशीलाबेन मुझे अपने भाई प्यारेलाल से शादी करने के लिए कह रही हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उनके भाई से शादी कर लूं तो ही वे नर्स बनने में मेरी मदद करेंगी. लेकिन मैंने उन्हें साफ मना कर दिया और सारी बात बापू को बता दी. बापू ने मुझसे कहा कि सुशीला अपने होश में नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तक वह उनके सामने निर्वस्त्र नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी. लेकिन अब उन्हें (गांधी को) मेरा सहारा लेना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मैं हर स्थिति में निष्कलंक हूं और धीरज बनाए रखूं (ब्रह्मचर्य के मामले में).
2 फरवरी, 1947
दशधरिया, बिहारबापू ने सुबह की प्रार्थना के दौरान अपने अनुयायियों को बताया कि वे मेरे साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहे हैं. फिर उन्होंने मुझे समझाया कि सबके सामने यह बात क्यों कही. मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि अब लोगों की जुबान पर ताले लग जाएंगे. मैंने अपने आप से कहा कि अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है. दुनिया को जो कहना है वह कहती रहे.
‘‘प्यारेलालजी मेरे प्यार में दीवाने हैं’’
28 दिसंबर, 1946
श्रीरामपुर, बिहारसुशीलाबेन ने आज मुझसे पूछा कि मैं बापू के साथ क्यों सो रही थी और कहा कि मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. उन्होंने मुझसे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा और मैंने कह दिया कि मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस बारे में वे आइंदा फिर कभी बात न करें. मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे बापूजी पर पूरा भरोसा है और मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानती हूं.
1 जनवरी, 1947
श्रीरामपुर, बिहार प्यारेलाल जी मेरे प्रेम में दीवाने हैं और मुझ पर शादी करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन मैं कतई तैयार नहीं हूं क्योंकि उम्र, ज्ञान, शिक्षा और नैन-नक्श में भी वे मेरे लायक नहीं हैं. जब मैंने यह बात बापू को बताई तो उन्होंने कहा कि प्यारेलाल सबसे ज्यादा मेरे गुणों के प्रशंसक हैं. बापू ने कहा कि प्यारेलाल ने उनसे भी कहा था कि मैं बहुत गुणी हूं.
31 जनवरी, 1947
नवग्राम, बिहारब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है. मुझे संदेह है कि इसके पीछे (अफवाहें फैलाने के) अम्तुस्सलामबेन, सुशीलाबेन और कनुभाई (गांधी के भतीजे) का हाथ था. मैंने जब बापू से यह बात कही तो वे मुझसे सहमत होते हुए कहने लगे कि पता नहीं, सुशीला को इतनी जलन क्यों हो रही है? असल में कल जब सुशीलाबेन मुझसे इस बारे में बात कर रही थीं तो मुझे लगा कि वे पूरा जोर लगाकर चिल्ला रही थीं. बापू ने मुझसे कहा कि अगर मैं इस प्रयोग में बेदाग निकल आई तो मेरा चरित्र आसमान चूमने लगेगा, मुझे जीवन में एक बड़ा सबक मिलेगा और मेरे सिर पर मंडराते विवादों के सारे बादल छंट जाएंगे. बापू का कहना था कि यह उनके ब्रह्मचर्य का यज्ञ है और मैं उसका पवित्र हिस्सा हूं. उन्होंने कहा कि ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें शुद्ध रखे, उन्हें सत्य का साथ देने की शक्ति दे और निर्भय बनाए. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर सब हमारा साथ छोड़ जाएं, तब भी ईश्वर के आशीर्वाद से हम यह प्रयोग सफलतापूर्वक करेंगे और फिर इस महापरीक्षा के बारे में सारी दुनिया को बताएंगे.
2 फरवरी, 1947
अमीषापाड़ा, बिहारआज बापू ने मेरी डायरी देखी और मुझसे कहा कि मैं इसका ध्यान रखूं ताकि यह अनजान लोगों के हाथों में न पड़ जाए क्योंकि वे इसमें लिखी बातों का गलत उपयोग कर सकते हैं, हालांकि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में हमें कुछ छिपाना नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर अचानक उनकी मृत्यु हो जाए तो भी यह डायरी समाज को सच बताने में बहुत सहायक होगी. उन्होंने कहा कि यह डायरी मेरे लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी.
और फिर बापू ने मुझसे कहा कि अगर मुझे कोई आपत्ति न हो तो डायरी की कुछ ताजा प्रविष्टियां प्यारेलालजी को दिखा दूं ताकि वे उसकी भाषा सुधार दें और तथ्यों को क्रमवार ढंग से लगा दें. हालांकि मैंने साफ मना कर दिया क्योंकि मुझे लगा कि अगर प्यारेलाल ने इस डायरी को देख लिया तो इसकी सारी बातें उनकी बहन सुशीलाबेन तक जरूर पहुंच जाएंगी और उससे आपसी वैमनस्य में और इजाफा ही होगा.
7 फरवरी, 1947
प्रसादपुर, बिहारब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर माहौल लगातार गर्माता ही जा रहा है. अमृतलाल ठक्कर (गांधी और गोपालकृष्ण गोखले के साथ जुड़े रहे समाजसेवी) आज आए और अपने साथ बहुत सारी डाक लाए जो इस मुद्दे पर बहुत ‘‘गर्म’’ थी. और इन पत्रों को पढ़कर मैं हिल गई.
24 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहारआज मैं बहुत दुखी थी. लेकिन बापू ने कहा कि वे मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ते देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जगह अगर कोई और होता तो इस मुद्दे पर किशोरलाल मशरूवाला, सरदार पटेल और देवदास गांधी के तीखे पत्र पढ़कर लगभग पागल जैसा हो जाता. लेकिन उन्हें इस सबसे बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ा. एक और बात. आज बापू ने अम्तुस्सलामबेन को एक बहुत कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि वे इस बात से नाराज हैं कि ब्रह्मचर्य के उनके प्रयोग उनके साथ शुरू नहीं हुए. उन्होंने लिखा कि इस बारे में उनके लिए खेद करना वाकई शर्म की बात है. उन्होंने अम्तुस्सलामबेन से कहा कि अगर वे समझ सकें तो वे समझना चाहते हैं कि आखिर वे कहना क्या चाहती हैं? बापू ने उन्हें लिखा कि यह शुद्धि का यज्ञ है.
26 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहारआज जब अम्तुस्सलाम बेन ने मुझसे प्यारेलाल से शादी करने को कहा तो मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने कह दिया कि अगर उन्हें उनकी इतनी चिंता है तो वे स्वयं उनसे शादी क्यों नहीं कर लेतीं? मैंने उनसे कह दिया कि ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग उनके साथ शुरू हुए थे और अब अखबारों में मेरे फोटो छपते देखकर उन्हें मुझसे जलन होती है और मेरी लोकप्रियता उन्हें अच्छी नहीं लगती.
18 मार्च, 1947
मसौढ़ी, बिहारआज बापू ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात का खुलासा किया. मैंने उनसे पूछा कि क्या सुशीलाबेन भी उनके साथ निर्वस्त्र सो चुकी है क्योंकि मैंने जब उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे प्रयोगों का कभी भी हिस्सा नहीं बनी और उनके साथ कभी निर्वस्त्र नहीं सोई. बापू ने कहा कि सुशीला सच नहीं कह रही क्योंकि वह बारडोली (1939 में जब पहली बार वे बतौर फिजीशियन उनके साथ जुड़ी थीं) के अलावा आगा खां पैलेस (पुणे) में उनके साथ सो चुकी थी. बापू ने बताया कि वह उनकी मौजूदगी में स्नान भी कर चुकी है. फिर बापू ने कहा कि जब सारी बातें मुझे पता ही हैं तो मैं यह सब क्यों पूछ रही हूं? बापू ने कहा कि सुशीला बहुत दुखी थी और उसका दिमाग अस्थिर था और इसलिए वे नहीं चाहते थे कि वह इस सब पर कोई सफाई दे.
‘‘मैंने बापू से आग्रह किया कि मुझे अलग सोने दें’’
25 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहारबापू ने बापा (अमृतलाल ठक्कर को सभी ठक्कर बापा कहते थे) से कहा कि ब्रह्मचर्य धर्म के पांच नियमों में से एक है और वे उसकी परीक्षा को पास करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह उनकी आत्मशुद्धि का यज्ञ है और वे इसे सिर्फ इसलिए नहीं रोक सकते क्योंकि जनभावनाएं पूरी तरह इसके खिलाफ हैं. इस पर बापा ने कहा कि ब्रह्मचर्य की उनकी परिभाषा आम आदमी की परिभाषा से एकदम अलग है और पूछा कि अगर मुस्लिम लीग को इसकी भनक भी लग गई और उसने इस बारे में लांछन लगाए तो क्या होगा? बापू ने जवाब दिया कि किसी के डर से वे अपने धर्म को कतई नहीं छोड़ेंगे और उन्होंने बिरला (उद्योगपति और जाने-माने गांधीवादी जी.डी. बिरला) को भी यह बता दिया था कि अगर प्रयोग के दौरान उनका मन अशुद्ध रहा तो वे पाखंडी कहलाएंगे और वे तकलीफदेह मौत को प्राप्त होंगे. बापू ने बापा से कहा कि अगर वल्लभभाई (पटेल) या किशोर भाई (मशरूवाला) भी उनका साथ छोड़ देंगे तो भी वे अपने प्रयोग जारी रखेंगे.
2 मार्च, 1947
हेमचर, बिहारआज बापू को बापा का एक गुप्त पत्र मिला. उन्होंने इसे मुझे पढऩे को दिया. यह पत्र दिल को इतना छू लेने वाला था कि मैंने बापू से आग्रह किया कि बापा को संतुष्ट करने के लिए आज से मुझे अलग सोने की अनुमति दें. जब मैंने बापा को अपने इस फैसले के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि बापू और मुझसे बात करने के बाद उन्हें प्रयोग के उद्देश्य के बारे में एकदम संतोष हो गया था लेकिन अलग सोने और प्रयोग समाप्त करने का मेरा फैसला पूरी तरह सही था. उसके बाद बापा ने किशोरलाल मशरूवाला और देवदास गांधी को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह अध्याय अब खत्म हो गया है.
‘‘बापू सिर्फ मेरे लिए मां समान थे’’
18 जनवरी, 1947
बिरला हाउस, दिल्लीबापू ने कहा कि उन्होंने लंबे समय बाद मेरी डायरी को पढ़ा और बहुत ही अच्छा महसूस किया. वे बोले कि मेरी परीक्षा खत्म हुई और उनके जीवन में मेरी जैसी जहीन लड़की कभी नहीं आई और यही वजह थी कि वे खुद को सिर्फ मेरी मां कहते थे. बापू ने कहा: ‘‘आभा या सुशीला, प्यारेलाल या कनु, मैं किसी की परवाह क्यों करूं? वह लड़की (आभा) मुझे बेवकूफ बना रही है बल्कि सच यह है कि वह खुद को ठग रही है. इस महान यज्ञ में मैं तुम्हारे अभूतपूर्व योगदान का हृदय से आदर करता हूं.’’ बापू ने फिर मुझसे कहा, ‘‘तुम्हारी सिर्फ यही भूल है कि तुमने अपना शरीर नष्ट कर लिया है. शारीरिक थकान से ज्यादा तुम्हारी शंकालु प्रवृत्ति तुम्हें खा रही है. मैं खुद को तभी विजेता मानूंगा जब तुम अभी जैसी 70 वर्ष की दिखती हो, उसकी बजाए 17 बरस की दिखो.’’
2 अक्टूबर, 1947
बिरला हाउस, दिल्लीआज बापू का जन्मदिन था. मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि या तो उन्हें इस दावानल (विभाजन के दंगों की आग जिसे गांधीजी बुझाना चाहते थे) में विजयी बना दे या उन्हें अपने पास बुला ले. बापू ने बहुत जोर लगाया, लेकिन मैं उनकी पीड़ा और नहीं देख सकती. हे ईश्वर! आखिर तू कब तक बापू की परीक्षा लेता रहेगा? मैं रात को सोते या जागते हुए यही प्रार्थना करती हूं कि यह अंतिम सद्कार्य (सांप्रदायिक दंगे समाप्त कराने का) बापू के हाथों संपन्न हो जाए.
14 नवंबर, 1947
बिरला हाउस, दिल्लीमैं कई दिनों से बुरी तरह अशांत हूं. बापू ने जब यह देखा तो कहा कि अपने मन की बात कह दो. उन्होंने कहा कि मैं कइयों का पितामह और पिता हूं और सिर्फ तुम्हारी माता हूं. मैंने बापू को बताया कि इन दिनों आभा मुझसे बहुत बेरुखी से पेश आ रही है. यही वजह है. बापू ने कहा कि उन्हें खुशी हुई कि मैंने मन की बात उन्हें बता दी लेकिन अगर न बताती तो भी वे मेरे मन की अवस्था समझ सकते थे. उन्होंने कहा कि मैं अंतिम क्षण तक उनके साथ रहूंगी पर आभा संग ऐसा नहीं होगा. इसलिए वह जो चाहे उसे करने दो. उन्होंने मुझे बधाई दी कि मैंने न सिर्फ उनकी बल्कि औरों की भी पूरी निष्ठा से सेवा की है.
18 नवंबर, 1947,
बिरला हाउस, दिल्लीआज जब मैं बापू को स्नान करवा रही थी तो वे मुझ पर बहुत नाराज हुए क्योंकि मैंने उनके साथ शाम को घूमना बंद कर दिया था. उन्होंने बहुत कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, ‘‘जब तुम जीते जी मेरी बात नहीं मानतीं तो मेरे मरने के बाद क्या करोगी? क्या तुम मेरे मरने का इंतजार कर रही हो?’’ यह शब्द सुनकर मैं सन्न रह गई और जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.
http://aajtak.intoday.in/story/bapu-was-a-mother-to-me-and-me-only-1-734364.html
गांधी का मानना था कि युवा औरतों के साथ उनकी अंतरंगता आत्मा को मजबूती प्रदान करने वाली एक अभ्यास प्रक्रिया थी.
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ में अपनी खुराक, अपनी सेहत की देखभाल और महिलाओं के साथ संबंधों के मामले में अपने विभिन्न प्रयोगों का जिक्र किया है जिन्हें उनके निकटतम अनुयायी और प्रशंसक भी सनक मानते थे. गांधी एक बार जो ठान लेते थे, उस आदत को शायद ही कभी छोड़ते थे. वे हर ‘‘प्रयोग’’ को तब तक जारी रखते थे जब तक उनकी ‘‘अंतरात्मा’’ उसे छोडऩे को न कहे. एक ‘महान आत्मा’ और महायोगी सरीखे गांधी अपने मस्तिष्क की शक्तियों को लेजर की तरह अचूक ढंग से हर उस बात पर केंद्रित कर देते थे जिससे वे जूझ रहे होते थे. वे अपनी पूरी मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति से हर लक्ष्य को साधने की कोशिश करते थे. उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अत्याचारी ब्रिटिश शासन और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त उसके अक्खड़ एजेंटों से अहिंसक संघर्ष करना था. उन्होंने इस काम में सत्य और अहिंसा नाम के दो सिद्धांतों को हमेशा अपनाए रखा.
उन्होंने कुछ और यौगिक शक्तियों का भी प्रयोग किया जिनमें अपरिग्रह यानी गरीबी में जीवन बिताने की कसम और ब्रह्मचर्य शामिल हैं. गांधी ने 37 वर्ष की आयु में 1906 में दक्षिण अफ्रीका में अपने चौथे बेटे के जन्म के बाद ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और उसके बाद से अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ कभी नहीं सोए. उन्होंने संकल्प लिया, ‘‘अब संतानोत्पति और धन-संपत्ति की लालसा त्यागकर वानप्रस्थ जीवन जिऊंगा. मैं उस सांप से भागने की प्रतिज्ञा ले रहा हूं जिसके बारे में मुझे पता है कि वह मुझे अवश्य डसेगा.’’ शुरू में गांधी के लिए सेक्स और संतानोत्पति की लालसा से दूर रहना बहुत आसान रहा. उन्होंने लिखा, ‘‘जब इच्छा खत्म हो जाए तो त्याग की शपथ सहज...फल देती है.’’ लेकिन पंद्रह साल बाद पहला राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह छेडऩे के बाद गांधी ने स्वीकार किया कि विजय जब सबसे निकट दिखाई दे तब खतरा सबसे अधिक होता है. ईश्वर की अंतिम परीक्षा सबसे कठिन होती है. शैतान की अंतिम लालसा सबसे अधिक सम्मोहक होती है.
रोम्या रोलां उन्हें ‘‘दूसरा ईसा मसीह’’ कहते थे. मैडलिन स्लेड को गांधी के बारे में उन्होंने ही बताया उसके तुरंत बाद मैडलिन भारत में गांधी के आश्रम में रहने चली आईं और गांधी ने उनका नामकरण मीराबेन कर दिया. गांधी की एक और उत्कृष्ट अनुयायी बनने वाली वे एकमात्र समर्पित पश्चिमी महिला नहीं थीं. इससे पहले दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में गांधी के लॉ ऑफिस में 17 वर्षीया मिस ‘‘लेसिन उनकी ‘सबसे निष्ठावान और निडर’ सचिव बन गई थीं.
गांधी किसी भी बुरे विचार, बुरे काम या किसी भी प्रकार के रोग को दूर रखने के लिए सबसे पहले राम नाम का सहारा लेते थे. लेकिन साथ ही वे खान-पान के सख्त नियमों का भी सख्ती से पालन किया करते थे. उन्होंने घनश्याम दास बिरला से कहा था: ‘‘अगर तुम नमक और घी खाना छोड़ दो...तो तुम्हारे अंदर पैदा होने वाली जुनूनी भावनाएं अवश्य ही शांत होंगी. मसालों और पान तथा ऐसी अन्य वस्तुओं का त्याग भी जरूरी है. सिर्फ खान-पान पर कुछ सीमाएं लगा देने से सेक्स और उससे जुड़ी लालसाओं को शांत नहीं किया जा सकता.’’
मीराबेन गांधी पर इस कदर निर्भर हो गईं कि जब भी उन्हें आश्रम से कहीं बाहर जाना होता तो वे अवसाद में चली जाती थीं और जो भी महसूस करतीं, रोजाना उन्हें लिखकर भेजतीं. उनका जवाब आता, ‘‘अगर विछोह असहनीय हो जाए तो तुम अवश्य चली आना.’’ गांधी के पत्रों में चेतावनी भी होती थी, ‘‘टूटना मत...तुम्हें खुद को फौलादी इरादों से लैस करना होगा. यह हमारे काम के लिए जरूरी है.’’
महात्मा के प्रशंसक जब सेक्स को त्यागने के लिए उनका अनुसरण करने की कोशिश करते थे तो उन्हें पत्र लिखकर सलाह मांगा करते थे. ‘‘जब दिमाग में बुरे ख्याल हिलोरें मारने लगें...तो किसी भी इनसान को किसी और काम में खुद को व्यस्त कर लेना चाहिए. अपनी निगाहों को अपनी इच्छाओं का गुलाम मत बनने दो. अगर निगाहें किसी औरत पर पड़ें तो तुरंत उसे फेर लो. यौन सुख की कामना चाहे पत्नी के साथ हो या किसी अन्य औरत के साथ, समान रूप से अपवित्र है.’’
गांधी 69 वर्ष के थे जब कपूरथला रियासत की राजकुमारी अमृत कौर ने उनके आश्रम में मीरा की जगह ली. उन्होंने बतौर उनकी ‘‘बहन’’ आश्रम में जगह पाई. उनके सामने गांधी ने माना: ‘‘मुझे यौन सुख की कामना पर जीत हासिल करने में सबसे अधिक कठिनाई पेश आई...यह निरंतर जारी रहने वाला संघर्ष था.’’ अपने ब्रह्मचर्य को ‘‘परखने’’ तथा और अधिक ‘मजबूत’ करने के लिए गांधी आश्रम की कई युवा सदस्यों के साथ नग्न अवस्था में सोने लगे.
उन्हें यकीन था कि अपने ‘‘ब्रह्मचर्य’’ के तप के दम पर वे पूर्वी बंगाल और बिहार के जलते गांवों और अंतत: समूचे भारत वर्ष में हिंदू-मुस्लिम एकता और अहिंसा भरी शांति स्थापित कर सकेंगे. लेकिन अपनी अंतरात्मा का मंथन करने के बाद गांधी को विश्वास हो गया कि युवतियों के साथ निकटता में उन्हें जिस मातृ प्रेम की अनुभूति होती है उसने रहस्यमय ढंग से उनके भीतर अहिंसा और ब्रह्मचर्य को और अधिक मजबूती प्रदान की है. उन्होंने लिखा है, ‘‘मैं न भगवान और न ही शैतान को फुसला सकता हूं.’’ अपने सचिव प्यारेलाल की बहन डॉ. सुशीला नय्यर को भी वे अपनी पत्नी कस्तूरबा के समान ही मानते थे और उन्हें भी अपनी ‘‘बहन’’ ही कहते थे.
बीमार पत्नी के साथ अपने जीवन के अंतिम दो साल गांधी ने पुणे में आगा खां के पुराने महल में ब्रिटिश हुकूमत की कैद में एक साथ गुजारे. 22 फरवरी, 1944 को कस्तूरबा के निधन के बाद गांधी को उनकी दत्तक ‘‘पोती’’ मनु ने संभाला. वे खुद को उसकी माता मानते थे.
अपने जीवन के अंतिम साल में गांधी ने पूर्वी बंगाल में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति स्थापना की कोशिश में अंतिम पद यात्रा की. शुरू में वे गांव-गांव अकेले घूमते रहे लेकिन फिर मनु उनके साथ आ गईं और अंत तक ‘‘सहारा’’ बनकर उनके साथ रहीं. गांधी के बंगाली सचिव निर्मल बोस ने बताया था कि उन्होंने गांधी को अपने आपको ‘‘थप्पड़’’ मारते और यह कहते सुना, ‘‘मैं महात्मा नहीं हूं...मैं तुम सब की तरह सामान्य व्यक्ति हूं और मैं बड़ी मुश्किल से अहिंसा को अपनाने की कोशिश कर रहा हूं.’’ सुशीला नय्यर भी उनके और मनु के साथ आ जुड़ीं, लेकिन जल्द ही चली भी गईं. उनके टाइपिस्ट और शॉर्टहैंड सचिव भी उन्हें उस समय छोड़कर चले गए जब उन्होंने उन्हें नंगा सोते देखा. और प्यारेलाल ने गांधी को यह बुदबुदाते सुना था: ‘‘मेरे अंदर ही कहीं कोई गहरी कमी रह गई होगी, जिसे मैं ढूंढ़ नहीं सका...क्या मैं अपने रास्ते से भटक गया हूं?’’
मीरा ने जब सुना कि मनु अकेली गांधी के साथ सो रही हैं तो उन्होंने अपनी गंभीर चिंता जाहिर की. गांधी ने जवाब दिया, ‘‘इस बात की चिंता मत करो कि मैं जो कुछ कर रहा हूं उसमें कितना सफल हो रहा हूं. यदि मैं अपने अंदर के विकार दूर करने में सफल रहा तो ईश्वर मुझे अपना लेगा. मैं जानता हूं कि उसके बाद सब कुछ सच हो जाएगा.’’ फिर भी अपने भीतर की ‘बड़ी कमी’ की चिंता उन्हें सालती रही. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ‘‘सिर्फ ईश्वर की कृपा ही मुझे सहारा दे रही है, मुझे दिखाई दे रहा है कि मेरे भीतर कोई बड़ी कमी है...मेरे चारों ओर गहन अंधकार है.’’
स्टेनले वोलपर्ट, लॉस एंजिलिस की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंडियन हिस्ट्री के प्रोफेसर एमेरिटस हैं.
सभी उद्धरण वोलपर्ट की पुस्तक गांधीज़ पैशन: द लाइफ ऐंड लेगेसी ऑफ महात्मा गांधी (ऑक्सफोर्ड यूपी, 2001) से हैं.
खोपड़ी ना हिल जाये तो कहना :, गाँधी जी महात्मा जीवन के अंतिम क्षणों तक
१५ साल की उम्र में गाँधी जी वेश्या की चोखट से हिम्मत न जुटा पाने के कारण वापस लौट आये .
१६ साल की उम्र में पत्नी से सम्भोग की इच्छा से मुक्त नहीं हो पाए जब उनके पिता मृत्यु शैया पर थे .
२१ साल की उम्र में फिर उनका मन पराई स्त्री को देखकर विकारग्रस्त होता है .
२८ साल की उम्र में हब्सी स्त्री के पास जाते है लेकिन शर्मसार होकर वापिस आ जाते है .
३१ साल की उम्र में १ बच्चे के पिता बन जाते है .
४० साल की उम्र में अपने दोस्त हेनरी पोलक की पत्नी के साथ आत्मीयता महसूस करते है ,
४१ साल की उम्र में मोड नाम की लड़की से प्रभवित होते है .
४८ की उम्र में २२ साल की एस्थर फेरिंग के मोहजाल में फंस जाते है .
५१ की उम्र में ४८ साल की सरला देवी चोधरानी के प्रेम में पड़तेहै .
५६ की उम्र में ३३ साल की मेडलिन स्लेड के प्रेम में फंसते है .
६० की उम्र में १८ साल की महाराष्ट्रियन प्रेमा के माया जाल में फंस जाते है .
६४ की उम्र में २४ साल की अमेरिकाकी नीला नागिनी के संपर्क में आते है .
६५ की उम्र में ३५ साल की जर्मन महिला मार्गरेट स्पीगल को कपडे पहनना सिखाते है .
६९ की उम्र में १८ साल की डॉक्टर शुशीला नैयर से नग्न होकर मालिश करते है.
७२ की उम्र में बाल विधवा लीलावती आसर,पटियाला के बड़े जमींदार की बेटी अम्तुस्स्लाम ,कपूरथला खानदान की राजकुमारी अमृत कौर तथा मशहूर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती जैसी महिलाओ के साथ सोते है .
७६ की उम्र में १६ साल की आभा .वीणा और कंचन नाम की युवतिओं को नग्न होने को कहते है . जिस पर ये लडकिया कहती है की उन्हें ब्रह्मचर्य के बजाय सम्भोग की जरूरत है .
७७ की उम्र मे महात्मा गाँधी अपनी पोती मनु की साथ नोआखाली की सर्द रातें शरीर को गर्म रखने के लिए नग्न सोकर गुजारते है . और
७९ के गाँधी जी महात्मा जीवन के अंतिम क्षणों तक आभा और मनु के साथ एक साथ बिस्तर पर सोते है………………….
आपको इनके बारे मे क्या कहना है??
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड पराई जाणे रे।।
हरी ॐ
#hindurashtra
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