रविवार, जून 02, 2013

अल्लाह की कौनसी बात मानें ?

अल्लाह की कौनसी बात मानें ?
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अपने द्वारा  कही गयी  बात  से मुकर जाना , किसी विषय पर एक जगह एक बात कहना  और दूसरी जगह उसी विषय  पर दूसरी या पहली बात के विपरीत  बात कहना एक प्रकार का दुर्गुण  माना जाता  है .और ऐसी  बातें कहने  वालों  को लोग दोगला  कहते  हैं , और ऐसे व्यक्तियों  की किसी भी बात पर न  तो  विश्वास  करते है ,और न उसकी बात को मानते  है .मुसलमानों  का दावा  है कि   कुरान  अल्लाह   की वाणी है , और उसमे दिए गए आदेश और निर्देश  अल्लाह  के द्वारा ही  कहे  गए हैं और उनमे किसी प्रकार  का विरोधाभास   नहीं  है लेकिन वास्तविकता  यह  है कि  कुरान  में अल्लाह  ने अनेकों  बार  परस्पर विरोधी बयान  दिए  हैं फिर भी अल्लाह ने .दावा   किया है , कि  उसकी  बातों में किसी प्रकार  का अंतरविरोध  नहीं है ,इस लेख  को पढ़ने वाले प्रबुद्ध  पाठक  निष्पक्ष  हो कर  खुद निर्णय  करें  कि  अल्लाह के दावों  में  कितनी सच्चाई  है ,और ऐसे अल्लाह  की बातों पर विश्वास  करने वालों  का अंजाम  होगा ?    

1-अल्लाह   का कानून   अटल  है 
"यही रीति  है  हमारे रसूलों की ,जिन्हें हमने तुम से पहले भेजा  था .और तुम हमारी रीति और नियमों  में कोई परिवर्तन नहीं पाओगे "
सूरा -बनी इस्रायेल17:77
2-अल्लाह  का  कानून बदल नहीं सकता 
"और अल्लाह की बातों  को  कोई  बदलने  वाला नहीं  है  "सूरा -अल अनआम 6:34

"तुम अपने  रब  की किताब ( कुरान )जो तुम्हें वही  की गयी है ,सबको सुना दो और कह दो  कोई उसकी बातों  को बदलने  वाला   नहीं   है "सूरा -अल कहफ़ 18:27
" यह सांसारिक  जीवन और आखिरत  के लिए भी   सूचना  है कि अल्लाह की बातें बदल नहीं सकती "
सूरा -युनुस 10:64

3-अल्लाह  का  कानून स्पष्ट  है 
"और अल्लाह  ने यह ऐसी  किताब उतार दी है ,जिसमे सारी  बातें खोल खोल कर समाझा  दी गयी हैं "सूरा -अल अनआम 6:115
4-अल्लाह  ने सब  कुछ  बता दिया  है
"हमने किताब में कोई चीज नहीं छोड़ी है " सूरा -अल अनआम 6:38
"कोई  भी गीली और सूखी चीज ऐसी नहीं  है ,जिसके बारे में   स्पष्ट रूप में किताब में नहीं लिखा गया  हो "सूरा -अल अनआम 6:59
"कण भर  भी कोई चीज या उस से छोटी या उस से भी छोटी   या बड़ी ,या धरती आकाशों में कोई चीज नहीं  है ,जो तेरे रब से छुपी     हुई हो , सब  के बारे में साफ साफ इस किताब  में   मौजूद  है "सूरा -यूनुस 10:61

अभी  तक   आपने  अल्लाह के द्वारा कुरान  में किये गए दावे    देखे , और अब इन आयातों  में कुछ  विषयों  पर अल्लाह के परस्पर  विरोधी  बयान दखिये ,
1-गुमराह कौन करता है ?
"शैतान  ने कहा ,मैं लोगों  को बहकाऊंगा  ,और उनको कामनाओंके  मायाजाल में फंसाऊँगा "सूरा -अन निसा 4:119
"शैतान  लोगों  से  जो वादे   करता है ,वह धोखे  के सिवा  कुछ  नहीं  है "सूरा -अन निसा 4:120
इस आयत  में अल्लाह  लोगों को गुमराह करने  का अपराध  शैतान  पर लगा रहा  है , फिर दूसरी जगह यह कहता  है ,

"अल्लाह  जिसको चाहे गुमराही  में  डाल  देता  है , और जिसे चाहता है  सीधा  मार्ग  दिखा  देता  है "सूरा -अन नह्ल16:93
" कह  दो  सब  कुछ  अल्लाह  की ओर   से  होता  है ,तो इन लोगों  को क्या  हो गया कि इस समझबूझ  के निकट भी   नहीं होते "
सूरा -अन निसा 4:78.

2-माता पिता  की बात मानें ?
"यदि  वह तुझ  पर दवाब  डालें   कि  तू किसी ऐसी चीज को  मेरा  (अल्लाह )   सहभागी  बना  ,जिसका तुझे ज्ञान  नहीं हो तो , तू  उनका   कहना  नहीं  मानना  "सूरा -लुकमान 31:15
इस बात  के बारे  में भी अल्लाह उलटी बात कहता  है ,
"हे ईमान वालो तुम अपने  बापों और भाइयों  को अपना मित्र नहीं बनाओ ,यदि वह  इस्लाम  की जगह कुफ्र  को पसंद   करें  .और जो कोई इन से मित्रता  का नाता  जोड़ेगा  तो ऐसे ही लोग जालिम  होंगे "
सूरा -अत तौबा 9:23
3-क्या  शिर्क  माफ़  होगा ?
" निस्संदेह  अल्लाह इस बात को क्षमा  नहीं करेगा कि उसका सहभागी  ठहराया   जाये .और इसके आलावा अल्लाह  जिसके चाहे  क्षमा   कर देगा "सूरा -अन निसा 4:48
लेकिन कुरान  के अनुसार अल्लाह  ने लोगों  का शिर्क माफ़ कर दिया था . यानि अपना   कानून  बदल  दिया था  देखिये ,
"और फिर उन्होंने एक बछड़े  को अपना  देवता बना  लिया , जबकि उनके पास खुली  निशानियाँ  भी  आ चुकी थीं . फिर भी हमने उनके इस  अपराध  को माफ़  कर दिया "सूरा -4:153
4--ईसाई स्त्री   से शादी  करें  या नहीं  ?
"तुम  मुशरिक  स्त्रिओं से तब तक विवाह  नहीं करो  जब तक वह ईमान  नहीं  लातीं , मुशरिक औरत से ईमान  वाली  लौंडी  अच्छी  होती  है "सूरा -बकरा 2:221
फिर  भी अल्लाह  मुशरिक  स्त्रियों  से शादी  को  वैध   ठहराता   है .
"तुम्हारे  लिए ईमान  वाली  स्त्रियां और वह स्त्रियां  भी वैध  हैं ,जिन्हें तुम  से पहले  किताब  दी  गयी थी "सूरा -अल माइदा 5:5
5-ईसाई  स्वर्ग  में जायेंगे या नर्क  में ?
निस्संदेह  जो ईमान  लाये ,और यहूदी हुए ,और नसारा  ,और साबई  हों ,जो भी अल्लाह पर ईमान  लाये और उसके मुताबिक  काम  किये ,तो ऐसे लोगों  के लिए अल्लाह के पास अच्छा  प्रतिदान  है .और उनके लिए कोई भय  नहीं होगा  ,और वह कभी दुखी नहीं  होंगे "सूरा -अल बकरा2:62
और यही बात कुरान  की सूरा  माइदा  5:69 में भी कही गयी है
अल्लाह  की दोगली बातों  का एक और नमूना  देखिये ,
"निश्चय  ही उन लोगों ने कुफ्र किया ,जिन्होंने कहा कि मरियम पुत्र  ईसा ही  अल्लाह  है ,और जो कोई अल्लाह  के साथ किसी को शरीक करेगा  तो उस पर अल्लाह जन्नत हराम  कर देगा .और उसका ठिकाना  आग  ( जहन्नम  ) है "सूरा -अल माइदा 5:72
"और जो कोई इस्लाम  के सिवा  कोई दूसरा  धर्म   पसंद  करेगा तो ,वह  आखिरत के दिन घाटा  होने वालों  में से होगा " सूरा -आले इमरान
6-इस्लाम  कैसे फैलाएं ?
"तुम  किताब  वालों  और उम्मियों ( जिनके पास किताब  नहीं है )   के पास जाओ और  उन से कहो कि क्या तुम भी इस्लाम स्वीकार  करने को राजी हो , और यदि वह ख़ुशी से इस्लाम स्वीकार कर लें तो  उन्होंने सही मार्ग  पा  लिया . और यदि वह इस से मुंह मोड़ें  तो ,तुम पर सिर्फ यह सन्देश  देने की जिम्मेदारी है "सूरा -आले  इमरान 3:20
"धर्म  के  बारे में कोई जबरदस्ती  नहीं  है " सूरा -बकरा 2:256
 बताइये  इन दौनों  बातों  में  कौन सी बात सही है ?

"यदि  वह इस्लाम  स्वीकार नहीं करें  तो उन से इतना लड़ो  कि सिर्फ पूरे  का पूरा   अल्लाह  का धर्म   इस्लाम  ही  बाकी  रह  जाये "
सूरा -अल अनफाल 8:39
7-अल्लाह  की धमकी 
"ईमान लाने वालो अल्लाह का आदेश मानो ,और साथ में रसूल का  आदेश  भी मानो "सूरा -अन निसा 4:59
"ईमान लाने वालो अल्लाह का आदेश मानो ,और साथ में रसूल का  आदेश  भी मानो ,और उनके कोप से बचते  रहो " सूरा -अल माइदा 9:92
"जो लोग उसके अनुसार फैसला  नहीं करें ,जो अल्लाह की किताब में   है ,तो वही  काफ़िर हैं " सूरा -अल माइदा 5:44
कुरान  से लिए गये  इन कुछ प्रमाणों  से हमें स्वीकार  करना पड़ेगा कि  जब खुद अल्लाह  ही  इतनी दोगली बातें  कहता  है , तो  उसके ऊपर  ईमान  रखने वाले मुसलमान कितने  झूठे होंगे , और अपनी  कही बातों   पर कायम  कैसे रह सकते हैं , यही बात इतिहास   से भी सिद्ध  हो चूका  है , कि  जिसने भी मुसलमानों पर विश्वास किया है उसे सदा  पछताना    पड़ा  है .


http://www.answering-islam.org/Quran/Contra/ashraf.html

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने सत्य को दर्शाया है मैं आपका समर्थन करता हूं

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  2. इस्लाम को आंतकवादी बोलते हो। जापान मे तो अमेरिका ने परमाणु बम गिराया लाखो बेगुनाह मारे गये तो क्या अमेरिका आंतकवादी नही है। प्रथम विश्व युध्द मे करोडो लोग मारे गये इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या अब भी मुस्लिम आंतकवादी है। दूसरे विश्व युध्द मे भी लाखो करोडो निर्दोषो की जान गयी इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या मुस्लिम अब भी आंतकवादी हुए अगर नही तो फिर तुम इस्लाम को आंतकवादी बोलते कैसे हो। बेशक इस्लाम शान्ति का मज़हब है।और हाॅ कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी।

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