हिंदुस्तान के गौरवशाली ऋषि-मुनियों का वैज्ञानिक इतिहास !
जिनमे से कुछ का विवरण यहाँ हम दे रहें है, हिंदू वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में
विज्ञान बताया गया है । केवल सौ वर्षोंमें
पृथ्वीको नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लाने
वाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत
प्रगतिशील एवं एक भी समाजविघातक
शोध न करनेवाला प्राचीन ‘हिंदू विज्ञान’
था ।
पूर्वकालके शोधकर्ता हिंदु ऋषियों की बुद्धि
की विशालता देखकर आजके वैज्ञानिकोंको
अत्यंत आश्चर्य होता है । पाश्चात्त्य
वैज्ञानिकोंकी न्यूनता सिद्ध करनेवाला शोध
सहस्रों वर्ष पूर्व ही करनेवाले हिंदु ऋषि
मुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं ।
*गुरुत्वाकर्षणका गूढ उजागर करनेवाले भास्कराचार्य !
भास्कराचार्य जी ने अपने 'सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में गुरुत्वाकर्षण के
विषयमें लिखा है कि, ‘पृथ्वी अपने आकाश
का पदार्थ स्व-शक्तिसे अपनी ओर खींच
लेती हैं । इस कारण आकाश का पदार्थ
पृथ्वीपर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है
कि, उन्होंने गुरुत्वाकर्षणका शोध न्यूटनसे
५०० वर्ष पूर्व लगाया ।
* परमाणुशास्त्रके जनक आचार्य कणाद !
अणुशास्त्रज्ञ जॉन डाल्टनके २५०० वर्ष
पूर्व आचार्य कणादजीने बताया कि, ‘द्रव्यके
परमाणु होते हैं ।
’विख्यात इतिहासज्ञ टी.एन्. कोलेबुरक
जी ने कहा है कि, ‘अणुशास्त्रमें आचार्य
कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ
युरोपीय शास्त्रज्ञोंकी तुलनामें विश्वविख्यात थे ।’
* कर्करोग प्रतिबंधित करनेवाला पतंजली
ऋषि का योगशास्त्र !
‘पतंजलीऋषि द्वारा २१५० वर्ष पूर्व
बताया ‘योगशास्त्र’, कर्करोग जैसी दुर्धर
व्याधिपर सुपरिणाम कारक उपचार है ।
योगसाधनासे कर्करोग प्रतिबंधित होता है।’
- भारत शासनके ‘अखिल भारतीय
आयुर्विज्ञान संस्था’के (‘एम्स’के) ५ वर्षोंके
शोधका निष्कर्ष !
* औषधि-निर्मितिके पितामह : आचार्य
चरक !
इ.स. १०० से २०० वर्ष पूर्व कालके
आयुर्वेद विशेषज्ञ चरकाचार्यजी ।
‘चरकसंहिता’ प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथ के
निर्माणकर्ता चरकजीको ‘त्वचा चिकित्सक’
भी कहते हैं ।
आचार्य चरकने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र,
रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र
इत्यादिके विषयमें अगाध शोध किया था ।
मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि
दुर्धररोगोंके निदान एवं औषधोपचार
विषयक अमूल्य ज्ञानके किवाड उन्होंने
अखिल जगतके लिए खोल दिए ।
चरकाचार्यजी एवं सुश्रुताचार्यजी ने इ.स.
पूर्व ५००० में लिखे गए अर्थववेदसे ज्ञान
प्राप्त करके ३ खंडमें आयुर्वेदपर प्रबंध लिखे ।
* शल्यकर्ममें निपुण महर्षि सुश्रुत !
६०० वर्ष ईसापूर्व विश्वके पहले
शल्यचिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत
शल्यचिकित्साके पूर्व अपने उपकरण
उबाल लेते थे । आधुनिक विज्ञानने इसका
शोध केवल ४०० वर्ष पूर्व किया ! महर्षि
सुश्रुत सहित अन्य आयुर्वेदाचार्य
त्वचारोपण शल्यचिकित्साके साथ ही
मोतियाबिंद, पथरी, अस्थिभंग इत्यादिके
संदर्भ में क्लिष्ट शल्यकर्म करनेमें निपुण
थे । इस प्रकारके शल्यकर्मोंका ज्ञान
पश्चिमी देशोंने अभीके कुछ वर्षोंमें
विकसित किया है !
महर्षि सुश्रुतद्वारा लिखित ‘सुश्रुतसंहिता'
ग्रंथमें शल्य चिकित्साके विषयमें विभिन्न
पहलू विस्तृतरूपसे विशद किए हैं । उसमें
चाकू, सुईयां, चिमटे आदि १२५ से भी
अधिक शल्यचिकित्सा हेतु आवश्यक
उपकरणोंके नाम तथा ३०० प्रकार के
शल्यकर्मोंका ज्ञान बताया है ।
* नागार्जुन
नागार्जुन, ७वीं शताब्दीके आरंभके रसायन
शास्त्रके जनक हैं । इनका पारंगत वैज्ञानिक
कार्य अविस्मरणीय है ।
विशेष रूपसे सोने धातुपर शोध किया एवं
पारे पर उनका संशोधन कार्य अतुलनीय
था । उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर
सतत १२ वर्ष तक संशोधन किया ।
पश्चिमी देशोंमें नागार्जुनके पश्चात जो भी
प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन
के सिद्धांतके अनुसार ही रखा गया |
* बौद्धयन
२५०० वर्ष पूर्व (५०० इ.स.पूर्व) ‘पायथागोरस सिद्धांत’की खोज करनेवाले
भारतीय त्रिकोणमितितज्ञ । अनुमानतः
२५०० वर्षपूर्व भारतीय त्रिकोणमितिज्ञोंने
त्रिकोणमितिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण शोध
किया । विविध आकार- प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय
रचना- पद्धति बौद्धयनने खोज निकाली ।
दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों
का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने
क्षेत्रफलका ‘समकोण’ समभुज चौकोन
बनाना और उस आकृतिका उसके
क्षेत्रफलके समानके वृत्तमें परिवर्तन करना,
इस प्रकारके अनेक कठिन प्रश्नों को
बौद्धयनने सुलझाया ।
* ऋषि भारद्वाज
राइट बंधुओंसे २५०० वर्ष पूर्व वायुयान
की खोज करनेवाले भारद्वाज ऋषि !
आचार्य भारद्वाजजीने ६०० वर्ष इ.स.पूर्व
विमानशास्त्रके संदर्भमें महत्त्वपूर्ण
संशोधन किया । एक ग्रहसे दूसरे ग्रहपर
उडान भरनेवाले, एक विश्वसे दूसरे विश्व
उडान भरनेवाले वायुयानकी खोज, साथ
ही वायुयानको अदृश्य कर देना इस प्रकार
का विचार पश्चिमी शोधकर्ता भी नहीं कर
सकते । यह खोज आचार्य भारद्वाज जी ने
कर दिखाया ।
पश्चिमी वैज्ञानिकोंको महत्वहीन सिद्ध
करनेवाले खोज, हमारे ऋषि-मुनियोंने
सहस्त्रों वर्ष पूर्व ही कर दिखाया था । वे
ही सच्चे शोधकर्ता हैं ।
* गर्गमुनि
कौरव-पांडव कालमें तारों के जगत के
विशेषज्ञ गर्ग मुनिजीने नक्षत्रोंकी खोज की
। गर्गमुनिजीने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के
जीवन के संदर्भमें जो कुछ भी बताया वह
शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हुआ । कौरव-
पांडवोंका भारतीय युद्ध मानव संहारक
रहा, क्योंकि युद्धके प्रथम पक्षमें तिथि क्षय
होने के तेरहवें दिन अमावस थी । इसके
द्वितीय पक्षमें भी तिथि क्षय थी । पूर्णिमा
चौदहवें दिन पड गई एवं उसी दिन
चंद्र ग्रहण था, यही घोषणा गर्ग मुनि जीने
भी की थी ।
तो मित्रो यही है हमारे मूर्धन्य वैज्ञानिक
ऋषि-मुनि.....
वंदे वैदिक भारत
जय अखंड भारत
जिनमे से कुछ का विवरण यहाँ हम दे रहें है, हिंदू वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में
विज्ञान बताया गया है । केवल सौ वर्षोंमें
पृथ्वीको नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लाने
वाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत
प्रगतिशील एवं एक भी समाजविघातक
शोध न करनेवाला प्राचीन ‘हिंदू विज्ञान’
था ।
पूर्वकालके शोधकर्ता हिंदु ऋषियों की बुद्धि
की विशालता देखकर आजके वैज्ञानिकोंको
अत्यंत आश्चर्य होता है । पाश्चात्त्य
वैज्ञानिकोंकी न्यूनता सिद्ध करनेवाला शोध
सहस्रों वर्ष पूर्व ही करनेवाले हिंदु ऋषि
मुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं ।
*गुरुत्वाकर्षणका गूढ उजागर करनेवाले भास्कराचार्य !
भास्कराचार्य जी ने अपने 'सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में गुरुत्वाकर्षण के
विषयमें लिखा है कि, ‘पृथ्वी अपने आकाश
का पदार्थ स्व-शक्तिसे अपनी ओर खींच
लेती हैं । इस कारण आकाश का पदार्थ
पृथ्वीपर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है
कि, उन्होंने गुरुत्वाकर्षणका शोध न्यूटनसे
५०० वर्ष पूर्व लगाया ।
* परमाणुशास्त्रके जनक आचार्य कणाद !
अणुशास्त्रज्ञ जॉन डाल्टनके २५०० वर्ष
पूर्व आचार्य कणादजीने बताया कि, ‘द्रव्यके
परमाणु होते हैं ।
’विख्यात इतिहासज्ञ टी.एन्. कोलेबुरक
जी ने कहा है कि, ‘अणुशास्त्रमें आचार्य
कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ
युरोपीय शास्त्रज्ञोंकी तुलनामें विश्वविख्यात थे ।’
* कर्करोग प्रतिबंधित करनेवाला पतंजली
ऋषि का योगशास्त्र !
‘पतंजलीऋषि द्वारा २१५० वर्ष पूर्व
बताया ‘योगशास्त्र’, कर्करोग जैसी दुर्धर
व्याधिपर सुपरिणाम कारक उपचार है ।
योगसाधनासे कर्करोग प्रतिबंधित होता है।’
- भारत शासनके ‘अखिल भारतीय
आयुर्विज्ञान संस्था’के (‘एम्स’के) ५ वर्षोंके
शोधका निष्कर्ष !
* औषधि-निर्मितिके पितामह : आचार्य
चरक !
इ.स. १०० से २०० वर्ष पूर्व कालके
आयुर्वेद विशेषज्ञ चरकाचार्यजी ।
‘चरकसंहिता’ प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथ के
निर्माणकर्ता चरकजीको ‘त्वचा चिकित्सक’
भी कहते हैं ।
आचार्य चरकने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र,
रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र
इत्यादिके विषयमें अगाध शोध किया था ।
मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि
दुर्धररोगोंके निदान एवं औषधोपचार
विषयक अमूल्य ज्ञानके किवाड उन्होंने
अखिल जगतके लिए खोल दिए ।
चरकाचार्यजी एवं सुश्रुताचार्यजी ने इ.स.
पूर्व ५००० में लिखे गए अर्थववेदसे ज्ञान
प्राप्त करके ३ खंडमें आयुर्वेदपर प्रबंध लिखे ।
* शल्यकर्ममें निपुण महर्षि सुश्रुत !
६०० वर्ष ईसापूर्व विश्वके पहले
शल्यचिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत
शल्यचिकित्साके पूर्व अपने उपकरण
उबाल लेते थे । आधुनिक विज्ञानने इसका
शोध केवल ४०० वर्ष पूर्व किया ! महर्षि
सुश्रुत सहित अन्य आयुर्वेदाचार्य
त्वचारोपण शल्यचिकित्साके साथ ही
मोतियाबिंद, पथरी, अस्थिभंग इत्यादिके
संदर्भ में क्लिष्ट शल्यकर्म करनेमें निपुण
थे । इस प्रकारके शल्यकर्मोंका ज्ञान
पश्चिमी देशोंने अभीके कुछ वर्षोंमें
विकसित किया है !
महर्षि सुश्रुतद्वारा लिखित ‘सुश्रुतसंहिता'
ग्रंथमें शल्य चिकित्साके विषयमें विभिन्न
पहलू विस्तृतरूपसे विशद किए हैं । उसमें
चाकू, सुईयां, चिमटे आदि १२५ से भी
अधिक शल्यचिकित्सा हेतु आवश्यक
उपकरणोंके नाम तथा ३०० प्रकार के
शल्यकर्मोंका ज्ञान बताया है ।
* नागार्जुन
नागार्जुन, ७वीं शताब्दीके आरंभके रसायन
शास्त्रके जनक हैं । इनका पारंगत वैज्ञानिक
कार्य अविस्मरणीय है ।
विशेष रूपसे सोने धातुपर शोध किया एवं
पारे पर उनका संशोधन कार्य अतुलनीय
था । उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर
सतत १२ वर्ष तक संशोधन किया ।
पश्चिमी देशोंमें नागार्जुनके पश्चात जो भी
प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन
के सिद्धांतके अनुसार ही रखा गया |
* बौद्धयन
२५०० वर्ष पूर्व (५०० इ.स.पूर्व) ‘पायथागोरस सिद्धांत’की खोज करनेवाले
भारतीय त्रिकोणमितितज्ञ । अनुमानतः
२५०० वर्षपूर्व भारतीय त्रिकोणमितिज्ञोंने
त्रिकोणमितिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण शोध
किया । विविध आकार- प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय
रचना- पद्धति बौद्धयनने खोज निकाली ।
दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों
का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने
क्षेत्रफलका ‘समकोण’ समभुज चौकोन
बनाना और उस आकृतिका उसके
क्षेत्रफलके समानके वृत्तमें परिवर्तन करना,
इस प्रकारके अनेक कठिन प्रश्नों को
बौद्धयनने सुलझाया ।
* ऋषि भारद्वाज
राइट बंधुओंसे २५०० वर्ष पूर्व वायुयान
की खोज करनेवाले भारद्वाज ऋषि !
आचार्य भारद्वाजजीने ६०० वर्ष इ.स.पूर्व
विमानशास्त्रके संदर्भमें महत्त्वपूर्ण
संशोधन किया । एक ग्रहसे दूसरे ग्रहपर
उडान भरनेवाले, एक विश्वसे दूसरे विश्व
उडान भरनेवाले वायुयानकी खोज, साथ
ही वायुयानको अदृश्य कर देना इस प्रकार
का विचार पश्चिमी शोधकर्ता भी नहीं कर
सकते । यह खोज आचार्य भारद्वाज जी ने
कर दिखाया ।
पश्चिमी वैज्ञानिकोंको महत्वहीन सिद्ध
करनेवाले खोज, हमारे ऋषि-मुनियोंने
सहस्त्रों वर्ष पूर्व ही कर दिखाया था । वे
ही सच्चे शोधकर्ता हैं ।
* गर्गमुनि
कौरव-पांडव कालमें तारों के जगत के
विशेषज्ञ गर्ग मुनिजीने नक्षत्रोंकी खोज की
। गर्गमुनिजीने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के
जीवन के संदर्भमें जो कुछ भी बताया वह
शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हुआ । कौरव-
पांडवोंका भारतीय युद्ध मानव संहारक
रहा, क्योंकि युद्धके प्रथम पक्षमें तिथि क्षय
होने के तेरहवें दिन अमावस थी । इसके
द्वितीय पक्षमें भी तिथि क्षय थी । पूर्णिमा
चौदहवें दिन पड गई एवं उसी दिन
चंद्र ग्रहण था, यही घोषणा गर्ग मुनि जीने
भी की थी ।
तो मित्रो यही है हमारे मूर्धन्य वैज्ञानिक
ऋषि-मुनि.....
वंदे वैदिक भारत
जय अखंड भारत
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