गुरुवार, नवंबर 03, 2011

साम्प्रदायिकता निरोधक विधेयक अर्थात भारत के पुनः विभाजन का षड्यंत्र

साम्प्रदायिकता निरोधक विधेयक अर्थात भारत के पुनः विभाजन का षड्यंत्र


सोनिया कांग्रेस धीरे-धीरे अपने गुप्त एजेंडे को लागू करने की दिशा में सक्रिय हो रही है। अरसा पहले यह षडयंत्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंतर्गत यूरोप की गोरी शक्तियों ने भारत में किया था। इस प्रयोग के लिए उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना का प्रयोग किया था। गोरी शक्तियों के षडयंत्र के तहत जिन्ना ने भारत के मजहब के आधार पर दो समूहों में बंटा होने की दुहाई देनी शुरु कर दी और उसे ‘ द्विराष्ट्र सिध्दांत ‘ के नाम से प्रचलित करना शुरु किया। जिन्ना के अनुसार भारत में स्पष्ट ही दो वर्ग थे-एक हिन्दू वर्ग और दूसरा मुस्लिम वर्ग। उसका कहना था कि ये दोनो वर्ग एक साथ नहीं रह सकते। इसलिए मजहब को आधार बनाकर भारत को दोनो वर्गो में विभाजित कर दिया जाना चाहिए। जिन्ना की इस परिकल्पना को गोरे ब्रिटिश शासकों की शह थी, अतः उन्होंने 1947 में भारत का विभाजन कर दिया और पाकिस्तान का जन्म हुआ। यह अलग बात है कि जिन्ना की यह परिकल्पना मूल रुप में ही गलत थी और गोरी साम्राज्यवादी शक्तियों के इस देश में आने से पहले मजहब के आधार पर भारतीयों में वह वैमनस्य नहीं था जिसकी दुहाई जिन्ना और अंग्रेज दे रहे थे। उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस परिकल्पना को स्वीकारने में जिन्ना और गोरी यूरोपीय शक्तियों का साथ नहीं दिया, बल्कि इसका जी जान से विरोध किया। लेकिन दुर्भाग्य से निर्णायक घड़ी आने पर उसने अनेक ज्ञात-अज्ञात कारणों से द्विराष्ट्र के सिध्दांत वालों के आगे घुटने टेक दिए और इस प्रकार भारत का विभाजन हो गया।

लगता है इतिहास अपने आपको फिर दुहराने की स्थिति में पहुंच गया है। इस बार रंगमंच पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नहीं है, क्योंकि उसकी तो 1998 में एक षडयंत्र के तहत हत्या कर दी गयी थी, लेकिन उस तांत्रिक हत्या से उपजी सोनिया कांग्रेस रंगमंच पर आरुढ हो गयी है। भारत के दुर्भाग्य से सोनिया कांग्रेस मजहब के आधार पर भारत के दो वर्गों में बंटे होने के जिन्ना के झूठ को हवा ही नहीं दे रही, बल्कि बहुत ही चालाकी से साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक एवम् लक्षित हिंसा न्याय एवं क्षतिपूर्ति विधेयक-2011 के माध्यम से सचमुच ही भारत को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के आधार पर दो वर्गो में विभाजित करने का कुत्सित प्रयास कर रही है।

इस बिल का प्रारुप किसी संविधान सम्मत अभिकरण अथवा भारत के विधि मंत्रालय ने तैयार नहीं किया है, बल्कि इसका मसौदा राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् नाम की एक ऐसी संस्था ने तैयार किया है, जिसका संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है। इस परिषद् की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी है। एक अन्य सदस्य बेल्जियम के श्री ज्यां द्रेज हैं, जिन्होंने कुछ साल पहले ही भारत की नागरिकता ग्रहण की है। परिषद् की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने जिन विश्वस्त साथियों से इस बिल का मसौदा तैयार करवाया है उनमें फराह नकवी, अनु आगा, माजा दारुवाला, नजमी बजीरी, पी.आई. होजे, पी.सिरीवेला और तीस्ता सीतलवाड आदि के नाम प्रमुख हैं।

इस बिल को बनाने वाले यह मानकर चलते हैं कि भारत का मजहबी विभाजन बहुत ही स्पष्ट है। एक भारत बहुसंख्यकों का है और दूसरा भारत अल्पसंख्यकों का है। इस गु्रप की दूसरी अवधारणा यह है कि बहुसंख्यक समाज मजहबी अल्पसंख्यक समाज पर अत्याचार करता है, उन्हें प्रताड़ित करता है, हर स्तर पर उनसे भेदभाव करता है। बिल बनाने वालों की सोच में मजहबी अल्पसंख्यकों की बहुसंख्यक भारतीयों से तभी रक्षा हो सकती है, यदि उनके लिए अलग से फौजदारी कानून बना दिए जाएं। भारत में मजहबी अल्पसंख्यक समुदाय अपने लिए अलग सिविल कोड की व्यवस्था तो किए हुए ही है। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय यह सिफारिश कर चुका है कि सिविल विधि का आधार मजहब नहीं हो सकता। इसके लिए पूरे देश में सभी के लिए समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए।

लेकिन सोनिया कांग्रेस की सोच आम भारतीयों की सोच से अलग है। उसका मानना है कि सिविल लॉ के बाद मजहबी अल्पसंख्यकों, जिसका अर्थ आमतौर पर मुसलमानों एवं इसाईयों से ही लिया जाता है, के लिए क्रिमिनल लॉ यानी आपराधिक विधि भी अलग होनी चाहिए। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपरोक्त बिल लाया गया है।

इस बिल में एक और परिकल्पना की गयी है। वह परिकल्पना है कि मजहबी अल्पसंख्यकों के परिप्रेक्ष्य में बहुसंख्यक भारतीय समाज दोषी माना जाएगा। वह दोषी नहीं है-इसे सिध्द करने की जिम्मेदारी भारत में बहुसंख्यक समाज की है। गोरे ब्रिटिश शासनकाल में कुछ समूहों को जरायम पेशा समूह घोषित कर दिया जाता था। किसी भी आपराधिक घटना में पुलिस उस समूह के लोगों को बिना प्रमाण, बिना शिकायत पकड लेती थी। अपने निर्दोष होने की बात इस समूह के लोगों को ही सिध्द करनी होती थी। लेकिन इस प्रस्तावित विधेयक में सोनिया कांग्रेस ने समस्त बहुसंख्यक भारतीय समाज को ही अपने देश में एक प्रकार से जरायम पेशा करार दे दिया है।

राज्य का कर्तव्य बिना जाति, मजहब और रंगरुप के सभी भारतीय नागरिकों से समान भाव से व्यवहार करना होना चाहिए। लेकिन उपरोक्त बिल मजहब के आधार पर भारतीय समाज की समरसता को, सायास एक बड़े षडयंत्र के तहत खंडित करने का प्रयास कर रहा है। यह भारत में मजहबी अल्पसंख्यक समुदाय को एक अलग टापू पर खड़ा करना चाहता है जो भारत की मुख्यधारा से अलग हो, ताकि कालांतर में उसे किसी हल्के से अभियान से भी भारत से अलग किया जा सके। दरअसल, यह प्रस्तावित विधेयक जिन्ना और गोरी यूरोपीय जातियों के मजहब के आधार पर भारत विभाजन के प्रयोग को, इक्कीसवीं शताब्दी में एक बार फिर दुहराना चाहता है। यह प्रस्तावित बिल भविष्य के इस प्रकार के भारतघाती प्रयोग की आधारभूमि है। इस बिल से पहले सोनिया कांग्रेस की सरकार द्वारा बनाए गए राजेंद्र सच्चर आयोग और रंगनाथ मिश्रा आयोगों की भूमिका को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। इन दोनों आयोगों को यह काम सौंपा गया था कि वे सरकार का करोड़ों रुपये हलाल करके यह सिध्द करें कि भारत में मुसलमान एवं ईसाईयों के अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बहुत ही ज्यादा भेदभाव किया जाता है और उन्हें समान अवसर नहीं मिल रहे। इन दोनों आयोगों ने मालिक की इच्छा को ध्यान में रखते हुए यह काम पूरी निष्ठा से निपटा दिया। दो बड़े पोथों में इन्होंने यह सिध्द किया कि भारत में मुसलमान एवं ईसाई सबसे ज्यादा प्रताड़ित हैं। अब जब आधारभूमि तैयार हो गयी तो सोनिया कांग्रेस इसी षडयंत्र की तीसरी कड़ी में उपरोक्त विधेयक को लेकर हाजिर हो गयी है। स्पष्ट है कि सरकार मजहबी अल्पसंख्यक समुदाय और बहुसंख्यक भारतीय समुदाय में प्रयासपूर्वक गहरी खाईयां निर्माण करने का प्रयास कर रही है।

आखिर सोनिया कांग्रेस की भारत को इस प्रकार दो विरोधी खेमों में बांटने के पीछे मंशा क्या है? सोनिया कांग्रेस क्यों उस रास्ते को तैयार करने में जुटी है जो अंततः विभाजन की ओर जाता है? सोनिया कांग्रेस जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद के सिध्दांत को कब्र से निकालकर क्यों भारत को मजहबी आग की तपती भट्टी में झोंकना चाहती है? बैर विरोध की जो आग आम भारतीयों में नहीं हैं, उस आग को सच्चर आयोग, रंगनाथ मिश्र आयोग और अब तथाकथित साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक बिल के माध्यम से प्रज्जवलित करके भारतीयों को आपस में क्यों लड़ाना चाहती है। सोनिया कांग्रेस आखिर क्यों मुसलमान और हिन्दू को आमनेॠ-सामने अखाड़े में उतारने के लिए अमादा है? ये ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर देने की जिम्मेदारी सोनिया कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी पर है। बेल्जियम के ज्यां द्रेज से इन प्रश्नों के उत्तर कोई नहीं मांगेगा, क्योंकि वे सोनिया गांधी के इस मशीन का एक पूर्जा हो सकता है लेकिन सोनिया गांधाी को तो इन प्रश्नों का उत्तर देना ही होगा, क्योंकि इन्हीं प्रश्नों के उत्तर पर भारत का भविष्य निर्भर करता है। यदि सोनिया गांधी इन तीखे भारतीय प्रश्नों के उत्तर देने से बचती हैं तो निश्चय ही भारतीयों को स्वयं परदे के पीछे हो रहे इन षडयंत्रों में भागीदार देशी-विदेशी शक्तियों को बेनकाब करना होगा। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में बना यह बिल इस बात की तरफ तो निश्चय ही संकेत करता है कि अब भारत सोया नहीं रह सकता, अब सोने का अर्थ होगा एक और विभाजन की सुप्त स्वीकृति। लेकिन सोनिया कांग्रेस को भी जान लेना चाहिए कि इक्कीसवीं शताब्दी 1947 नहीं है।

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