शुक्रवार, नवंबर 11, 2011

श्रीराम जन्मभूमि को प्राप्त करने के लिए सतत संघर्ष........

श्रीराम जन्मभूमि को प्राप्त करने के लिए सतत संघर्ष........

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बना हुआ मन्दिर 1528 ई0 में आक्रमणकारी बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीरबांकी द्वारा तोड़ा गया। इस मन्दिर को प्राप्त करने के लिए हिन्दू समाज सदैव संघर्ष करता रहा और जीवन देता रहा। मीरबांकी द्वारा मंदिर तोड़े जाते समय भाटी नरेश महताब सिंह, हंसवर नरेश रणविजय सिंह, हंसवर के राजगुरू पं0 देवीदीन पाण्डेय ने 15 दिनों तक संघर्ष किया। घमासान युद्ध हुआ। बाबर के काल में ही इस स्थान को वापस प्राप्त करने के लिए 4 बार युद्ध हुए।

हुमायुँ के शासनकाल में रानी जयराज कुँवारी एवं स्वामी महेश्वरानन्द जी के नेतृत्व में युद्ध हुए। 10 युद्धों का वर्णन मिलता है। अकबर के काल में 20 बार युद्ध हुये। अकबर ने श्रीराम जन्मभूमि परिसर के अन्दर तीन गुम्बदों वाले तथाकथित मस्जिद के ढांचे के सामने एक चबूतरा बनाकर तथा उस पर प्रभु राम का मन्दिर बनवाकर बेरोकटोक पूजा करने की अनुमति दे दी।

यही स्थान राम चबूतरे के नाम से विख्यात था। इस स्थान पर भगवान की पूजा सदैव चलती रही। 06 दिसम्बर, 1992 के बाद ही इस स्थान का अस्तित्व समाप्त हुआ। औरंगजेब के काल में भी 30 युद्ध हुये। बाबा वैष्णवदास, गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह आदि ने डटकर लोहा लिया।

अवध के नवाब सआदत अली के काल में हिन्दुओं ने 5 बार आक्रमण किये। नवाब ने परेशान होकर हिन्दुओं को पूजा की अनुमति दे दी। नवाब वाजिद अली शाह के काल में हिन्दुओं ने 4 बार लड़ाई लड़ी। बाबा उद्धवदास और भाटी नरेश ने ये युद्ध लड़े। 76 लड़ाइयों का वर्णन अयोध्या की गलियों में सुनने को मिलता है। निश्चित ही इन लड़ाइयों में लाखों हिन्दू वीरों ने अपनी जान दी होगी और लाखों विधर्मियों की जान ली भी होगी। हिन्दू समाज इस स्थान को प्राप्त तो नहीं कर सका परन्तु मुस्लिमों को भी चैन से नहीं बैठने दिया।

अवध पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने के पश्चात अंग्रेजों ने तीन गुम्बदों वाले ढांचे और राम चबूतरा के बीच एक दीवार खड़ी करा दी। इस कारण हिन्दुओं का पूजा अर्चना के लिए केवल बाहर तक रहना लाचारी हो गई। परन्तु पूजा अर्चना बन्द नही हुई। हिन्दू मुस्लिम के बीच कटुता बढ़ गई। दंगे होने लगे।

बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों के विरुद्ध जब प्रजा ने नेतृत्व सौंप दिया उस समय मुस्लिम नेता अमीर अली ने यह स्थल हिन्दुओं को वापस सौंप देने का निर्णय कर लिया। संयोगवश 1857 ई0 में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष असफल हो गया। समय का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने अमीर अली और बाबा रामचरण दास को एक इमली के पेड़ से लटका कर सार्वजनिक फांसी दे दी और यह स्थान हिन्दुओं को प्राप्त न हो सका।

सन् 1885 ई0 में महंत रघुवरदास ने फैजाबाद की अदालत में एक दीवानी मुकदमा दायर किया जिसमें राम चबूतरे के ऊपर बने कच्चे झोपड़े को पक्का बनाने की अनुमति मांगी, मुकदमा खारिज हो गया। ब्रिटिश न्यायाधीश कर्नल चैमियर की अदालत में अपील की गई। कर्नल चैमियर ने स्थान का स्वयं निरीक्षण किया और 1886 ई0 में अपने निर्णय में लिखा कि ''यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मस्जिद का निर्माण हिन्दुओं के एक पवित्र स्थल पर बने भवन को तोड़कर किया गया है। चूंकि यह घटना 356 वर्ष पुरानी है इसलिए इसमें कुछ करना उचित नही होगा।''

वर्ष 1934 में अयोध्या में मुस्लिमों द्वारा एक गऊ काट दिए जाने के कारण हिन्दू समाज आक्रोशित हो गया, अनेक गऊ हत्यारे मार दिए गए। इतना ही नहीं अपितु उत्तेजित हिन्दू समाज तथाकथित बाबरी मस्जिद पर भी चढ़ बैठा, उसके तीनों गुम्बदों को अपार क्षति पहुंचाई। इस स्थान पर हिन्दू पूरी तरह कब्जा तो नहीं कर पाए परन्तु इतना अवश्य हुआ कि इस घटना के बाद श्रीराम जन्मभूमि परिसर में प्रवेश करने की हिम्मत मुस्लिम समाज कभी जुटा नहीं सका।

तोड़े गए तीनों गुम्बदों की मरम्मत अंग्रेज सरकार ने कराई और इसमें हुआ खर्च अयोध्या के हिन्दू समाज से टैक्स के रूप में वसूला गया। 1934 से यह स्थान पूरी तरह से हिन्दू समाज के कब्जे में है। बाहर राम चबूतरे पर हिन्दू समाज मूर्तियों की पूजा करता था और गुम्बदों के भीतर उस पवित्र भूमि पर पुष्प चढ़ाता था और मस्तक नवाता था

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें