बुधवार, नवंबर 02, 2011

राम (देव) लीला की लहर

राम (देव) लीला की लहर

उपेंद्र राय
एडिटर एवं न्यूज डायरेक्टर, सहारा इंडिया मीडिया
राम (देव) लीला की लहर
अनशन के दौरान बाबा रामदेव

बाबा रामदेव ने जब जून में अनशन पर जाने की बात कही थी तो मैंने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया था.

मुझे इस बात पर संदेह नहीं था कि बाबा की मुहिम को खूब जनसमर्थन मिलेगा. बाबा की अपार लोकप्रियता पर किसी को संदेह हो ही नहीं सकता. इसी लोकप्रियता की वजह से कुछ ही घंटों में उन्हें समर्थन के एक करोड़ से ज्यादा फोन आए. हजारों लोग दिल्ली की गरमी की परवाह किए बगैर उनके समर्थन में देश की राजधानी पहुंचे. साथ ही देश के कई हिस्सों में बाबा के समर्थन में सत्याग्रह हो रहा है.

अब लगता है कि जैसे बाबा के नाम की लहर चल पड़ी है. और यही सबसे बड़ा सवाल भी है. आखिर बाबा रामदेव की मुहिम को इतना समर्थन क्यों मिल रहा है? मेरे हिसाब से इसका जवाब पाने के लिए हमें देश में पिछले 15 सालों में हुए बदलाव को जानना होगा. पिछले पंद्रह साल में देश में कई लहरें चली हैं. सबने हमारी जिंदगी पर दूरगामी असर डाले हैं. उन लहरों में से दो लहरों की मैं यहां बात करना चाहूंगा. एक लहर एन आर नारायणमूर्ति के नेतृत्व में चली. नारायणमूर्ति ने देश को बताया कि सरकार के बगैर, जी हां, सरकार के बगैर भी भारत में वर्ल्ड क्लास कंपनी खोली जा सकती है.

नारायणमूर्ति की इंफोसिस ने भारतीय कंपनियों को विश्वविजयी बनाया, करोड़पति कर्मचारी का कं सेप्ट दिया, दुनिया को यह बताया कि भारत में क्वालिटी वाला काम हो सकता है. लेकिन इतना कुछ करने के बावजूद भी नारायणमूर्ति के मन में बेचैनी बनी रही. यही बेचैनी बाबा रामदेव के अंदर भी मैंने देखी है. बाबा रामदेव का बड़ा योगदान यह रहा है कि उन्होंने हेल्थ और फिटनेस को भारतीयों के दिल में बसा दिया है. यह बाबा रामदेव की ही देन है कि उन्होंने संस्कृत की किताबों में बंद योगाभ्यास को जनता तक पहुंचाया, दुनिया को योग के फायदे बताए. इसकी वजह से देश में एक ऐसी बड़ी जमात तैयार हुई जो तन-मन से तंदुरुस्त है और जिसे अपनी काबिलियत पर भरोसा है.

बाबा का दूसरा बड़ा योगदान यह रहा है कि उन्होंने देश की योग परंपरा में लोगों का भरोसा बढ़ाकर देश की पारंपरिक नींव को मजबूत किया. साधारण आदमी अपने इसी योगदान से खुश हो जाता. लेकिन बाबा के अंदर देश के लिए कुछ और करने की बेचैनी है. और बाबा की इस बेचैनी को देश का हर वो शख्स समझ सकता है जिसने पिछले पंद्रह साल में सरकारी मदद के बगैर कुछ नया करने की कोशिश की है. बाबा सफल हैं और वह चाहते हैं कि देश के दूसरे लोग भी सफल हों. लेकिन इस रास्ते में कई अड़ंगे हैं. सबसे बड़ा अडंगा तो भ्रष्टाचार लगा रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि पहले देश में भ्रष्टाचार नहीं था. देश में पहले भी भ्रष्ट लोग थे लेकिन वे इतने ताकतवर थे कि उनके खिलाफ आवाज ही नहीं उठती थी. लेकिन पिछले पंद्रह साल से जारी धन के लोकतांत्रिकरण के बाद देश में एक तबका ऐसा भी बन गया है जो ताकतवर तो है लेकिन भ्रष्ट नहीं है और उसे सिस्टम की गंदगी ज्यादा चुभती है. उन्हीं लोगों की आवाज बाबा उठा रहे हैं.

यहां एक और सवाल यह है कि बाबा की इस मुहिम को इतना समर्थन क्यों मिल रहा है. मेरे खयाल से इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मौजूदा राजनीतिक पार्टियों पर से लोगों का भरोसा कम हुआ है. लोगों को यह साफ दिखने लगा है कि हमारे नेता देशहित की बात ही करते हैं, काम सिर्फ अपने हितों के लिए करते हैं. पब्लिक अब वाकई यह सब जान गई है और उसे बाबा रामदेव जैसे लोगों पर भरोसा करने का मन हो रहा है.

बाबा रामदेव की लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है. इस मुहिम में उनके निशाने पर है ब्लैक मनी. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों का करीब 462 अरब डॉलर विदेशी बैंकों में जमा है. दूसरे अनुमानों के मुताबिक यह रकम एक ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. मतलब यह कि अलग-अलग अनुमानों के मुताबिक ब्लैक मनी देश की जीडीपी के एक तिहाई से लेकर उसके बराबर तक है. एक खास बात और, देश के कुल काले धन का 72 परसेंट हिस्सा विदेशी बैंकों में जमा है. मतलब यह कि बाकी 28 परसेंट हिस्सा कैश या बेनामी प्रॉपर्टी के रूप में देश में ही है.

चौंकाने वाली बात यह है कि सिस्टम में ब्लैक मनी का बोलबाला आर्थिक उदारीकरण के बाद बढ़ा है. अनुमान है कि 61 साल में इकट्ठा हुए काले धन का करीब 70 परसेंट पिछले 20 साल की ही देन है. मतलब यह कि 1991 के बाद लाइसेंस-परमिट राज तो खत्म हो गया लेकिन इसी के साथ भ्रष्ट लोगों की काली कमाई भी बढ़ गई. गौरतलब है कि 1991 के बाद टैक्स दरों में भारी कमी आई है. इनकम टैक्स की पीक दर कभी 98 परसेंट हुआ करती थी जो अब घटकर महज 30 परसेंट रह गई है. इसीलिए यह कहना कि टैक्स की ऊंची दर की वजह से सिस्टम में काला धन इकट्ठा हुआ, सही नहीं है.

उदारीकरण से ब्लैक मनी का क्या लेना-देना है? लेना-देना है. 1991 के बाद आयात-निर्यात के नियमों में ढील दी गई. इसी के साथ शुरू हुआ एक्सपोर्ट-इंपोर्ट की कीमतों को घटा-बढ़ाकर बताने का खेल. और आज ब्लैक मनी का यह सबसे बड़ा जरिया बन गया है.

काली कमाई कैसे रोकी जाए इस पर बाबा रामदेव की अपनी थ्योरी है. मेरा मानना है कि सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि ब्लैक मनी पैदा करने वाली फैक्ट्री की पहचान हो और उसे खत्म किया जाए. हमें सालों से पता है कि आयात-निर्यात में घपला होता है. पहले कस्टम की दर ज्यादा थी तो टैक्स की चोरी ज्यादा होती थी. और कस्टम अधिकारियों के पास करोड़ों की काली कमाई होती थी. कस्टम की दरें कम हुर्इं तो आयात-निर्यात की वैल्यू बताने में घपला शुरू हो गया. अब इस पर लगाम लगाने की जरूरत है.

इसी तरह हमें पता है कि किस सरकारी, गैर सरकारी महकमें में किन-किन आधारों पर काली कमाई होती है. उन पर शिकंजा कसने से काली कमाई रोकी जा सकती है. लेकिन इस सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि कानून का सरलीकरण कर लूपहोल्स को खत्म किया जाए.

हमें यह याद रखना होगा कि काली कमाई, सही कमाई करने वालों के सामने स्पीड ब्रेकर खड़ी करती है. तेजी से तरक्की करने के लिए स्पीड ब्रोकर को खत्म करना ही होगा. और बाबा रामदेव जब काली कमाई को खत्म करने की बात कह रहे हैं तो उनके मन में भी इसी स्पीड ब्रेकर को खत्म करने की चाहत है.

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