गुरुवार, नवंबर 03, 2011

क्या यही हकीकत है ‘सच्चे मुसलमानों’ की?

क्या यही हकीकत है ‘सच्चे मुसलमानों’ की?


-तनवीर जाफरी

समानता, सहयोग, भाईचारा, समर्पण, त्याग, संतोष तथा क्षमा और बलिदान जैसी विशेषताओं का पाठ पढाने वाले इस्लाम धर्म का लगता है कुछ धुर इस्लाम विरोधी विचारधारा रखने वालों ने संभवत: किसी बड़ी इस्लाम विरोधी साजिश के तहत अपहरण कर लिया है। अन्यथा गत् तीन दशकों में इस्लाम के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जाने वाले कत्लो ग़ारत तथा इसी के नाम पर फैलाई जाने वाली नफरत व विद्वेष की ऐसी आंधी चलते पहले कभी नहीं देखी गई। जेहाद के नाम पर आत्मघाती हमलावरों में लगातार होता आ रहा इजाफा पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया। मरो और मारो जैसा रक्तरंजित मिशन कई मुस्लिम या मुंगल शासकों द्वारा तो भले ही सत्ता को छीनने, कब्‍जा जमाने या उसे सुरक्षित रखने के नाम पर तो भले ही मध्ययुगीन काल में क्यों न चलाया गया हो। परंतु वर्तमान दौर में इस्लाम के नाम पर इस्लाम को बदनाम व शर्मिंदा करने वाले घृणित अपराध तो उन लोगों द्वारा अंजाम दिए जा रहे हैं जो दुर्भाग्यवश स्वयं को ही सच्चा व वास्तविक मुसलमान बता रहे हैं, ऐसा अंधेर कम से कम इस्लाम के इतिहास में तो कभी देखने को नहीं मिला।

इन तथाकथित स्वयंभू इस्लामी ठेकेदारों की नारों में ईसाई, हिंदू, बौद्ध,सिख तथा यहूदी व पारसी आदि धर्मों के अनुयायी तो अविवादित रूप से कांफिर की हैसियत रखते ही हैं। लिहाजा इन सिरफिरों का इस्लाम इन समुदायों के लोगों को इन्हें गोया हर वक्त ज़हां भी चाहे मौत के घाट उतार देने का ‘अधिकार पत्र’ प्रदान करता है। इन ‘सच्चे मुसलमानों’ की सीख व शिक्षा इन्हें यह बताती है कि तुम इन्हें मार कर भी विजेता कहलाओगे और तुम्हारी जन्नत पक्की होगी और यदि इन्हें मारने के दौरान तुम खुद मारे गए तो भी तुम शहीद समझे जाओगे। और ऐसे में भी जन्नत तुम्हारी ही है। इनके जुल्‍मो-सितम की सूची में केवल उपरोक्त समुदायों के लोग ही शामिल नहीं हैं। दुनिया में मुसलमानों का एक कांफी बड़ा वर्ग जिन्हें हम सूफीवादी मुसलमानों के नाम से जानते हैं वे भी इनके निशाने पर हैं। इनको भी मारना या इनको मारते समय ख़ुद मर जाना भी इन ‘सच्चे मुसलमानों के लिए जन्नत का सबब बनता है। बरेलवी मुसलमान, शिया मुसलमान, कादियानी(अहमदिया) इन सभी इस्लामी वर्ग से जुड़े लोगों के यह ‘सच्चे व वास्तविक मुसलमानों’ के स्वयंभू ठेकेदार वैसे ही दुश्मन हैं जैसे कि गैर मुस्लिमों के।

सवाल यह है कि इन मौत के सौदागरों को इस बात का अधिकार किसने दिया कि वे यह प्रमाणित करते फिरें कि सच्चा मुसलमान कौन है, जन्नत में कौन और कैसे जाएगा तथा किस व्यक्ति को कौन सी पूजा पद्धति अथवा विश्वास पर अमल करना चाहिए। जिन बरेलवी व सूंफी इस्लामपरस्तों को यह ‘सच्चे मुसलमान’ अपना दुश्मन तथा गैर मुस्लिम मानते हैं, यह वर्ग इस्लाम के सूफीवाद के पहलू की पैरवी करता है। पीरी-फकीरी तथा सूंफीवाद इस्लाम के उस पक्ष की रहनुमाई करते हैं जिसमें कि सभी को समान समझना, सभी के प्रति सहिष्णुता से पेश आना तथा अल्लाह के प्रति अपनी सच्ची आस्था रखते हुए किसी दूसरे धर्म व विश्वास के अनुयाईयों का दिल न दुखाना भी शामिल है। एक ओर जहां यह समुदाय अपनी इसी फकीरी व सूंफीवाद की राह पर चलते हुए अपने पीरो मुर्शिद के माध्यम से स्वयं को अल्लाह तक पहुंचता हुआ देखता है वहीं मौत के सौदागर बने बैठे यह ‘वास्तविक मुसलमान’ उन्हें इस्लाम का दुश्मन होने का प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। इसी प्रकार शिया समुदाय के भी यह ‘वास्तविक मुसलमान’ वैसे ही दुश्मन हैं। पाकिस्तान में शिया समुदाय की दर्जनों मस्जिदों पर इसी इस्लाम विरोधी विचारधारा रखने वाले तथाकथित ‘सच्चे मुसलमानों’ ने कई बार कभी आत्मघाती हमला किया तो कभी उनपर गोलियां बरसा कर हमले किए। केवल पाकिस्तान में शिया समुदाय के सैकड़ों लोग इनके हाथों मारे जा चुके हैं।

अब जरा उस शिया समुदाय का संक्षिप्त परिचय भी सुन लीजिए जिन्हें यह ‘सच्चे मुसलमान’कभी इस्लाम विरोधी, तो कभी गैर मुस्लिम या प्राय: कांफिर तक बता देते हैं। शिया समुदाय, हजरत मोहम्मद को इन्हीं ‘सच्चे मुसलमानों’ की ही तरह आंखिरी नबी तो अवश्य मानता है। परंतु उनके बाद यह समुदाय इमामत की उस परंपरा को स्वीकार करता है जिसके पहले इमाम हजरत अली थे। उनके पश्चात उनके बेटे हसन और हुसैन से होता हुआ यह सिलसिला 12 इमामों तक पहुंच कर समाप्त हुआ। और बारहवें इमाम हजरत इमाम मेंहदी पर जाकर ख़त्म हुआ। इस्लामी तारींख में हजरत मोहम्मद की एकमात्र बेटी हजरत फातिमा के विषय में तमाम ऐसी अविवादित बातों का उल्लेख है जिन्हें सभी मुस्लिम वर्गों के लोग निर्विवादित रूप से मानते हैं। गोया हजरत फातिमा के रुतबे से कोई भी मुस्लिम वर्ग इंकार नहीं कर सकता। उस हजरत फातिमा तथा उनके पति हजरत अली जोकि मोहम्मद साहब के भतीजे भी थे,का गुणगान करने वालों तथा उनके प्रति अपनी अटूट आस्था व विश्वास रखने वाले शिया समुदाय को इन मौत के सौदागरों द्वारा कांफिर या गैर मुस्लिम होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है। यानि इन्हें भी चाहे मस्जिद में मारो या इमामबाड़ों में, या फिर इनके द्वारा करबला के शहीदों की याद में निकाले जाने वाले जुलूसों के दौरान। गत् वर्ष पाकिस्तान में मोहर्रम के जुलूस में आत्मघाती हमलावरों द्वारा शिया समुदाय के सैकड़ों लोगों का मारा भी गया। इन ‘सच्चे मुसलमानों’ की ऐसी कारगाुारियों से भी इनकी जन्नत पक्की हो जाती है।

जाहिर है जब यह शिया व बरेलवी मुसलमानों को मुसलमान नहीं मानते तो उन कादियानी अथवा अहमदियों को यह मुसलमान कैसे मानेंगे जिनका वजूद ही भारत के पंजाब स्थित कादियान कस्बे में हुआ। अहमदी समुदाय के संस्थापक गुलाम अहमद कादियानी ने 1889 में इस पंथ की बुनियाद डाली। वैसे तो निश्चित रूप से अहमदिया पंथ, शांति, प्रेम, सद्भाव व भाईचारा जैसी उन सभी शिक्षाओं को प्रचारित व प्रसारित करता है जोकि इस्लाम धर्म की बुनियादी शिक्षाएं हैं। परंतु उनके प्रमुख द्वारा स्वयं को हजरत ईसा अथवा हजरत इमाम मेंहदी का रूप घोषित करना ‘सच्चे मुसलमानों’ को रास नहीं आता। और इसी की साा इस समुदाय को समय-समय पर भुगतनी पड़ती है।

अहमदिया समुदाय के प्रति इनकी नंफरत कोई पाकिस्तान तक ही सीमित नहीं है। बल्कि यह विश्वव्यापी है। इंडोनेशिया में इन्हीं ‘सच्चे इस्लाम’ समर्थकों के कठमुल्लाओं की भीड़ ने अहमदिया समुदाय की एक मस्जिद को तोड़कर खंडहर बना दिया था। बंगलादेश में भी इनके विरुद्ध यही ताकतें प्राय:अपने विरोध स्वर बुलंद करती रहती हैं। इसी नफरत ने 1974 में पाकिस्तान में संसद द्वारा इन्हे ग़ैर मुस्लिम घोषित किए जाने की नौबत तक पहुंचा दिया था। उसके पश्चात जिया-उल- हंक के शासन में तो गोया अहमदिया समेत सभी मुस्लिम वर्गों के विरुद्ध ‘सच्चे मुसलमानों’ ने स्वयं को कांफी माबूत व संगठित कर लिया। और नंफरत की यही आग फैलते-फैलते पिछले दिनों अर्थात् 28मई 2010 शुक्रवार को यहां तक पहुंची कि उस दिन पाकिस्तान के लाहौर शहर में अहमदी समुदाय की दो मस्जिदों पर जुम्मे की नमाज के दौरान ‘सच्चे मुसलमानों’ के आतंकी तथा आत्मघाती दस्तों ने धावा बोल दिया। मौत और जन्नत के इस ख़ूनी खेल में आत्मघाती हमलावर तो ‘जन्नत की राह’ सिधारे ही साथ-साथ लगभग 80 अहमदी समुदाय के नमााियों को भी न चाहते हुए भी अपने साथ ही समय से पूर्व जन्नत में ले गए।

असहिष्णुता तथा कट्टरवादी इस्लाम के प्रदर्शन की ऐसी पराकाष्ठा क्या इस्लाम धर्म को मान-सम्मान और इात बख्श रही है? जो ताकतें आज स्वयं को सच्चा मुसलमान अथवा इस्लाम का सच्चा रहबर अथवा अनुयायी बता रही हैं उन्हें इतिहास के उन पन्नों को भी पलटकर सबक लेना चाहिए जो हमें यह बताते हैं कि चंद मुंगल व मुसलमान शासकों के बलपूर्वक सत्ता संघर्ष के परिणामस्वरूप इस्लाम धर्म को अब तक कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। पेशेवर इस्लाम विरोधियों को जहां इतिहास की वह घटनाएं उर्जा प्रदान करती हैं वहीं इन स्वयंभू सच्चे मुसलमानों के काले कारनामे भी उसी इस्लाम को बदनाम करने में अपना कम किरदार अदा नहीं करते। लिहाजा इन तथाकथित वास्तविक मुसलमानों द्वारा हर जगह मौत बांटे जाने तथा ख़ून की होलियां खेले जाने के सिलसिले से तो अब इनकी हकीकत कुछ ऐसी ही प्रतीत हो रही है गोया यह शक्तियां स्वयं इस्लाम कीसबसे बड़ी दुश्मन हैं तथा यह किसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली इस्लाम विरोधी साजिश का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं और यही इन सच्चे मुसलमानों की हकीकत है।

-तनवीर जाफरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें