गुरुवार, नवंबर 10, 2011

मुसलमान ईंधन की तरह

मुसलमान ईंधन की तरह

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अपनी कुर्सी बचाने के लिए अगर देश को डुबाना पड़े तो भी हमारे नेताओं को कोई झिझक नहीं होती। पहले जातियों के आधार पर आरक्षण दिया गया और अब मजहब के आधार पर आरक्षण देने की तैयारी है। ताज़ा खबर यह है कि अल्पसंख्यक आयोग ने मुसलमानों को आरक्षण दिलवाने के लिए कमर कस ली है। यह हिमाकत वह अकेले दम नहीं कर सकता। उसे क्या पड़ी है कि वह भारत के मुसलमानों के लिए कब्र खोदे? इतना घिनौना काम उसे किसी दूसरे के इशारे पर करना पड़ रहा है!

कौन है, यह इशारा करनेवाला? यह वही है, जिसकी भट्ठी अब बुझ रही है और उसे धधकाने के लिए वह मुसलमानों को ईंधन की तरह इस्तेमाल करना चाहता है। उसके लिए मुसलमान नागरिक नहीं हैं, सिर्फ वोट बैंक हैं। वे इंसान नहीं, सिर्फ भेड़-बकरी हैं। वोटरों के रेवड़ हैं। उसे थोक में वोट चाहिए। वोट के लालच ने नेताओं को अंधा कर दिया है। वे संविधान की भी मिट्टी पलीद करने पर उतारू हैं। वे गांधी और नेहरू के आदर्शों को भी दफनाने के लिए तैयार हैं। संविधान मना करता है कि मज़हब के नाम पर आप कोई आरक्षण नहीं दे सकते लेकिन संविधान को भी चकमा देने की पूरी तैयारी हो गई है। अब मुसलमानों को मुसलमान नहीं, ‘पिछड़ा’ कहकर आरक्षण दिया जाएगा। संविधान में संशोंधन किया जाएगा।

इसमें शक नहीं कि ज्यादातर मुसलमानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है लेकिन उनसे भी बदतर स्थिति तो आदिवासियों और दलितों की है। वे तो मुसलमान नहीं हैं। क्या मुसलमानों की स्थिति सिर्फ इसलिए खराब है कि वे मुसलमान हैं? यदि ऐसा है तो कई हिंदू तबके उनसे भी ज्यादा दुर्दशाग्र स्त क्यों हैं? और ईसाइयों का हाल क्या है? उन्हें भी आरक्षण क्यों न दिया जाए? उन्होंने किसका क्या बिगाड़ा है? उनके लिए भी कोई चोर दरवाज़ा क्यों नहीं ढूंढ लिया जाता? उन्हें दलितों की श्रेणी में डाल दीजिए। यदि मुसलमानों को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण देंगे तो संसद और विधानसभाओं में क्यों नहीं देंगे? ऐसा करके क्या आप दूसरे पाकिस्तान की नींव नहीं धर रहे हैं? देषद्रोह और क्या होता है?

आरक्षण का ‘कोटा’ पहले से ही ऊपर तक भरा हुआ है। 50 प्रतिशत से ज्यादा दे नहीं सकते। जिन्हें पहले से मिल रहा है, उनके कोटे में से कटौती करेंगे तो वे मुसलमानों के दुश्मन बन जाएंगे। मुसलमानों के दुश्मन वे आम लोग भी बन जाएंगे, जिन्हें आरक्षण से कुछ लेना-देना नहीं है। वे पहले से ही मदरसों और हज-यात्रा पर हो रहे अतिरिक्त खर्च पर उंगलियॉं उठा रहे हैं। इसके अलावा मुस्लिम समाज में जबर्दस्त अपाधापी मच जाएगी। मुफ्त के सरकारी माल पर हाथ साफ करने में वे मुसलमान ही ज्यादा सफल होंगे, जो पहले से खाए-धाए हैं। जो सचमुच गरीब और जरूरतमंद मुसलमान होंगे, उनका तो बस अल्लाह ही बेली होगा। वे हाथ साफ़ करने में भी पिछड़ जाएंगे, क्योंकि आरक्षण का आधार गरीबी नहीं, मुसलमान होना होगा। आम मुसलमानों का इससे बड़ा नुकसान क्या होगा?

सच्चाई तो यह है कि जाति और मज़हब के आधार पर कोई आरक्षण होना ही नहीं चाहिए। न शिक्षा में, न नौकरी में, न चुनाव में। यह सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। आरक्षण का आधार जन्म से नहीं, जरूरत से तय होना चाहिए। जो भी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर है, उसके बच्चों को सिर्फ शिक्षा में आरक्षण मिलना चाहिए, सभी सुविधाओं के साथ! यह आरक्षण उन सब 70-75 प्रतिशत लोगों को दिया जा सकता है, जो 20 रू0 रोज़ाना पर गुजारा करते हैं। इनमें फर्क क्यों करना? क्या हिंदू और क्या मुसलमान? और क्या सवर्ण और क्या अवर्ण? शिक्षा का आरक्षण देश के हर बच्चे को अपने पांव पर खड़ा कर देगा। वह किसी की दया पर नहीं, अपने दम-खम पर जियेगा। हमें ऐसा ही स्वाभिमानी और शक्तिशाली भारत चाहिए।
(लेखक : वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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