Tufail Chaturvedi
22 अगस्त की सुब्ह बहुत अच्छी है। सुप्रीम कोर्ट जिसके 5 जजों की बैंच, विभिन्न धर्मों के जजों से बनाई गई थी, ने तीन तलाक़ को बहुमत से अवैध ठहवराया है। इसके परिणामस्वरूप भारत में लगभग 9 करोड़ मुस्लिम औरतों के सर से 24 घंटे झूल रही अस्थिरता की तलवार हट गई। जब तक चाहा रक्खा, भोगा और जब दिल से उतर गई, तीन तलाक़ कह कर चुटिया पकड़ कर घर से निकाल बाहर किया।
थीं अल्लाही खेतियाँ मियाँ रहे थे जोत
टाँग अड़ाई कोर्ट ने मुँह पर स्याही पोत
जनार्दन पांडे प्रचण्ड
ज़ाहिर है यह क्षण किसी भी सभ्य व्यक्ति से प्रसन्न होने का है। आख़िर हर मुसलमान पुरुष पति होने के साथ-साथ किसी मुस्लिम महिला का बेटा, किसी मुस्लिम महिला का भाई, किसी मुस्लिम महिला का पिता भी तो है। इस निर्णय से अगर उसकी पति के नाते असीमित दुष्टता पर रोक लगी है तो बेटे, भाई, पिता के नाते जीवन में सुखदता भी तो बढ़ी है।
उर्दू की निर्विवाद सबसे बड़ी लेखिका इस्मत चुग़ताई के शब्दों में कहूँ तो मुँहझौंसे दाढ़ीज़ार मुल्ला ऐसे बिलबिला रहे हैं जैसे ततैयों का छत्ता ही पीछे पड़ गया हो। इसका कारण समझने जैसा है।
मुहम्मद का क़ुरआन के संदर्भ में आख़िरी सम्बोधन है। यह सूरा मायदा आयत 3 में आता है। "ऐ मुसलमानों आज तुम पर तुम्हारा दीन मुकम्मल हुआ।" इस्लाम अपने दावे के अनुसार संसार के अंतिम क्षण तक मनुष्यों के लिये सम्पूर्ण, उपयुक्ततम जीवन शैली है। इस फ़ैसले ने उसके मुकम्मल होने के दावे की दीवार से ईंटें खिसका दीं। यह जिहालत के किले की दीवार गिर जाने के बराबर है।
अभी टी वी पर एक मुल्ला बहस में कह रहे थे। इस्लाम अल्लाह का दीन है। इस्लाम किसी के ताबे नहीं रहता। आपको मुसलमान रहना है तो इस्लाम के ताबे रहना होगा। यह क़दम किसी स्त्री-पुरुष के इस्लाम के ताबे रहने की जगह मनुष्यता के ताबे रहने की ओर छोटा सा क़दम है। मनुष्यता अर्थात जिस समाज में हर व्यक्ति के अधिकार क़ानूनी रूप से समान हैं। हर स्त्री पुरुष क़ानूनी रूप से बराबर हैं। जहाँ जीवन की तार्किक स्वतंत्रता होती है। ये उस बर्बर और असभ्य सोच को त्यागना है जहाँ ससुर बहू का रेप कर दे तो मुल्ला पार्टी बहू को ससुर के हवाले करने का फ़तवा दे देती है। ( प्रसंग मुज़फ़्फ़रनगर का इमराना कांड स्मरण करें )
यह एक छोटा सा फ़ैसला सही मगर इससे न जाने कितनी गंदगी को नष्ट करने के रास्ते खुलेंगे। आइये चलते-चलते आपको मुकम्मल दीन होने के दावे के प्रामाणिक उल्लेख दिखाता चलूं।
जाफ़र अल सादिक़ शिया लोगों के 12 इमामों में से 6वें इमाम हैं और मुहम्मद के परपोते, सड़पोते कुछ हैं, ने तथा कई अन्य इस्लामी न्याय व्यवस्था देने वाले लोगों ने महरम यानी माँ, बहन, बेटी, फूफी, ख़ाला इत्यादि के साथ लिंग पर रेशम लपेट कर कुछ शर्तों के साथ निकाह/सैक्स की व्यवस्था दी है।
सन्दर्भ अल मुग़नी बानी इमाम इब्ने-क़दामा वॉल्यूम 7 पेज नम्बर 485
जवादे-मुग़निया बानी इमाम जाफ़र अल सादिक़ वॉल्यूम 5 पेज नम्बर 222
फ़िक़हे-इस्लामी बानी मुहम्मद तक़ी अल मुदर्रिसी वॉल्यूम 2 पेज नम्बर 383
जब तक आम मुसलमान के दिमाग़ में इस्लाम के अंतिम सत्य होने के दावे पर संदेह नहीं उपजेगा। उसके सृष्टि के अंतिम क्षण तक की उपयुक्ततम जीवन शैली होने के दावे की जगह कालबाह्य व्यवस्था होने का विश्वास नहीं उभरेगा, आतंकवाद की समस्या का समाधान नहीं होगा। यह फ़ैसला आतंकवाद के ख़ात्मे की ओर बड़ा क़दम भी है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
मंगलवार, अगस्त 22, 2017
भारत में लगभग 9 करोड़ मुस्लिम औरतों के सर से 24 घंटे झूल रही अस्थिरता की तलवार हट गई।
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