बुधवार, अगस्त 30, 2017

इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के तहत अखिलेश यादव के कार्यकाल में यश भारती पाने वाले 142 लोगों का ब्योरा मिला है.

Jitendra Pratap Singh
जब यूपी में अखिलेश सरकार थी तो करीब 200 लोगों को ‘यश भारती’ सम्मान दिए गए, जिसको ये सम्मान मिलता था उसे 11 लाख रुपए नकद और 50 हजार रुपए की हर महीने पेंशन दी गई. राइट टू इनफार्मेशन (आरटीआई) नाम तो सुना ही होगा. कमाल की चीज़ है. अब उसी ने ऐसी जानकारी सामने लाकर रख दी है जिससे आपको पता चल जाएगा कि ये सम्मान आपको क्यों नहीं मिला. आरटीआई के ज़रिए से ऐसे-ऐसे सीवी (curriculum vitae) के सैंपल सामने आ गए हैं कि उनकी काबिलियत देखकर आपको समझ नहीं आएगा कि आप उनके सीवी पर हंसे या फिर अपने सीवी पर.
इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के तहत अखिलेश यादव के कार्यकाल में यश भारती पाने वाले 142 लोगों का ब्योरा मिला है. जिसमें ये जानकारी सामने आई है कि कैसे किसी के भी नाम प्रपोज़ कर देने पर यश भारती सम्मान दे दिया गया. यानी सिर्फ भाई भतीजावाद में यश भारती पुरस्कार बांट दिए गए.
यूपी में यश भारती पुरस्कार की शुरुआत अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने 1994 में सीएम रहते हुए की थी. बाद में बसपा और बीजेपी सरकारों ने ये पुरस्कार बंद कर दिए थे, जिन्हें अब अखिलेश यादव सरकार ने दोबारा शुरू किया था. एक अनुमान के मुताबिक ये सम्मान 200 लोगों को मिल चुका है.
जिन लोगों का ब्योरा इंडियन एक्सप्रेस को मिला है उस लिस्ट को देखकर आप समझ जायेंगे कि ये सम्मान पाने के लिए आपको किसी क़ाबिलियत की ज़रूरत नहीं थी, बस किसी समाजवादी नेता से आपका जुड़ा होना काफी था. कई लोगों ने तो सपा सरकार के कसीदे पढ़ते हुए खुद ही सीएम ऑफिस अपने सीवी भेज दिए और मिल गया सम्मान. जबकि ये पुरस्कार आधिकारिक तौर पर स्टेट का संस्कृति मंत्रालय देता है. पहले कुछ लोगों के बारे में जान लो कि कैसे उन्हें ये सम्मान मिल गया.
ये कुछ सीवी के सैंपल हैं, देख लो
1. शिखा पांडे : दूरदर्शन की एक्सटर्नल कोऑर्डिनेटर. 2016 में यश भारती के लिए उनके नाम को लखनऊ के उस वक़्त के एडीएम जय शंकर दुबे ने भेज दिया था. शिखा के सीवी में लिखा था कि उन्होंने चार साल तक सीएम आवास पर हुए प्रोग्राम का आयोजन किया, जिसकी तारीफ खुद सीएम ने भी की.
(ये उपलब्धि सबको नहीं मिलती. तो क्या समझे आप. बिना कुछ किए शिखा को यश भारती मिल गया. चार साल तक सीएम आवास पर प्रोग्राम किया है.)
2. अशोक निगम : इन्हें साल 2013 में यश भारती मिला. अशोक के सीवी में लिखा था, ‘संप्रति समाजवादी पार्टी की पत्रिका समाजवादी बुलेटिन का कार्यकारी संपादक.’ अशोक ने खुद को समाजवादी विचारधारा का राइटर बताया था.
(मियां पता नहीं आप कैसे अपने आप को लेखक कहते हैं. समाजवादी विचारधारा पर लिखा होता तो हर महीने 50 हज़ार आ रहे होते.)
3. रतीश चंद्र अग्रवाल : मुख्यमंत्री के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) ने 3 सितंबर 2016 को अपना नाम खुद ही पेश कर दिया. और यश भारती मिल भी गया.
(क्या सम्मान के लिए इतना काफी नहीं था कि वो सीएम के ओएसडी थे)
4. नवाब जफर मीर अब्दुल्लाह : नवाब को खेल कैटेगरी में यश भारती दिया गया. वो अवध रियासत के वजीर रहे नवाब अहमद अली खान के वंशज हैं. नवाब के सीवी में लिखा है कि वो ‘कारोबारी’ हैं और उनका आवास ‘लखनऊ और पूरा भारत’ है.
5. काशीनाथ यादव : ये जनाब समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उन्होंने 27 अप्रैल 2016 को पार्टी के लेटरहेड पर अपनी सीवी भेजी. उनकी सीवी में लिखा है कि उन्होंने कई कल्चरल प्रोग्राम किए. गीत गाए और समाजवादी पार्टी की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया. इसके अलावा ये भी लिखा कि उन्होंने 1997 में सैफई महोत्सव में भोजपुरी लोकगीत गाया था.
6. ओमा उपाध्याय : इन्होने अपने सीवी में लिखा है कि उन्होंने 2010 में ज्योतिष और मनोविज्ञान आधारित विशेष वस्त्र बनाने की युगांतकारी तकनीकी डेवलप थी. 2016 में यश भारती मिल गया.
7. अर्चना सतीश : ये वो नाम है जिसको 27 अक्टूबर 2016 को यश भारती पुरस्कार समारोह में ही मंच पर अखिलेश यादव ने मंजूरी दे दी. उस वक़्त अर्चना सतीश कार्यक्रम का संचालन कर रही थीं. उनकी सीवी में लिखा है, ‘प्रतिष्ठित सैफई महोत्सव का पिछले तीन सालों से संचालन’, और ‘4-5 जनवरी 2016 को आगरा में यूपी सरकार के अतिप्रतिष्ठित एनआरआई दिवस कार्यक्रम का संचालन.’
8. सुरभि रंजन : उस समय यूपी के चीफ सेक्रेटरी आलोक रंजन की पत्नीउन्हें एक प्रतिष्ठित गायिका बताया गया है. इनका नाम लखनऊ डिवीज़न के कमिश्नर महेश कुमार गुप्ता ने पेश किया था.
9. शिवानी मतानहेलिया : दिवंगत कांग्रेसी नेता जगदीश मतानहेलिया की बेटी. साल 2016 में यश भारती मिला. शिवानी प्रतापगढ़ के एक कॉलेज में संगीत पढ़ाती हैं. सीवी में लिखा, अब तक 8 अवॉर्ड मिल चुके हैं, जिनमें सात प्रतापगढ़ के स्थानीय संगठनों से मिले हैं.
10. हेमंत शर्मा : सीनियर जर्नलिस्ट, जिन्होंने हाल ही में इंडिया टीवी से इस्तीफा दिया. सीवी में लिखा है, ‘पहले लेखन को गुजर बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का.’ सीवी में ये भी दावा किया गया है कि वो 1989, 2001 और 2013 का महाकुम्भ कवर करने वाले अकेले पत्रकार हैं.
11. मणिन्द्र कुमार मिश्रा : सपा नेता मुरलीधर मिश्रा के बेटे हैं. आईआईएमसी से जर्नलिज्म की पढ़ाई की. सीवी में लिखा है कि उन्होंने साल 2010 में मेघालय के खासी जनजाति के बीच रहकर दो महीने तक फील्डवर्क किया था. मणिन्द्र कुमार मिश्रा ने अखिलेश यादव पर ‘समाजवादी मॉडल के युवा ध्वजवाहक’ किताब भी लिखी है.
इन सीवी से ही आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि आपको क्यों यश भारती पुरस्कार नहीं मिला होगा. क्योंकि आपने ऐसा सीवी नहीं बनाया होगा. या फिर आपको कोई ऐसा गॉड फादर नहीं मिला होगा, जो आपके नाम को यश भारती के लिए पेश कर देता. कम से कम छह पुरस्कार विजेता ऐसे हैं जिनका नाम समाजवादी पार्टी नेताओं ने बढ़ाया था. दो नाम तो अखिलेश यादव के चाचा और उनकी सरकार में मंत्री रहे शिवपाल यादव ने भेजे. एक नाम सपा नेता आजम खान ने और सरकार में मंत्री रहे राजा भैया ने भी दो नामों की अनुशंसा की थी, जिन्हें यश भारती मिला.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि हिन्दुस्तान टाइम्स के लखनऊ एडिशन की रेज़ीडेंट एडिटर सुनीता एरोन ने भी सीएम ऑफिस को ईमेल किया और जिसका नाम अनुशंसित किया था, उसे भी यश भारती मिला था.
अब योगी आदित्यनाथ सरकार यश भारती पुरस्कारों की समीक्षा कर रही है, खासतौर पर साल 2015 में बनाए गए आजीवन 50 हज़ार रुपए हर महीने पेंशन देने वाले प्रावधान की. यूपी के संस्कृति विभाग की संयुक्त निदेशक अनुराधा गोयल ने बताया कि फाइनेंस ईयर 2017-18 में यश भारती के तहत आजीवन पेंशन मद में कुल 4.66 करोड़ रुपये आवंटित हैं, लेकिन अभी तक एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है. पुरस्कारों की समीक्षा का आदेश दिया गया है. यश भारती को बंद करने पर यूपी के संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा, ‘यश भारती पुरस्कार और पेंशन के बारे में सरकार अभी विचार कर रही है, अभी कोई आखिरी फैसला नहीं लिया गया है.’
वहीं सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है,
‘बीजेपी हमारी सरकार के हर अच्छे काम को बंद कर देना चाहती है. यश भारती अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को दिया जाता था. सभी नाम उच्च-स्तरीय कमेटी द्वारा तय प्रक्रिया के तहत चुने गए थे.’
हालांकि ये क्लियर नहीं है कि यश भारती पुरस्कार देने की वो ‘तय प्रक्रिया’ क्या थी? ऊपर दिए गए नामों से तो ऐसा लगता है जैसे कि वो कहावत है न- ‘अंधा बांटे रेवड़ी, और अपनों अपनों के दे.’
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