---"16 अगस्त 1946 एक न भूलने वाला दिन"-----
वैश्विक राजनीति का बहुत प्रसिद्द वाक्य है। "इतिहास भूलने वाले उसे दुहराने के लिये अभिशप्त होते हैं"। आइये 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग के नेतृत्व में मुसलमानों द्वारा किये गये प्रदर्शनों को स्मरण किया जाये। मुस्लिम बहुल नगरों में भयानक ख़ूनख़राबे से भरी यह इस्लामी रैलियां कांग्रेस और हिन्दुओं पर दबाव बनाने के लिये की गयी थीं। जिनमें हज़ारों हिन्दुओं की हत्या की गयी थी, भयानक बलात्कार हुए थे, विध्वंसात्मक लूट की गयीं थीं। यहाँ यह जानना उपयुक्त है कि हिन्दुओं ने गाँधी के कायर नेतृत्व के बाद भी पूज्य गोपाल चंद्र मुखर्जी जिन्हें गोपाल पाठा भी कहा जाता के नेतृत्व में देर से सही मगर भरपूर उत्तर दिया था।
मुस्लिम लीग के सर्वमान्य नेता मुहम्मद अली जिनाह का वक्तव्य इसकी प्रेरणा था। "हमने सर्वाधिक महत्व का ऐतिहासिक निर्णय ले लिया है....... आज हमने संवैधानिक उपायों को तिलांजलि दे दी है।....... हमारी जेब में भी पिस्तौल है " संदर्भ फ़ाउंडेशन ऑफ़ पाकिस्तान लेखक पीरज़ादा पृष्ठ संख्या 559-560। जैसे जैसे 16 अगस्त निकट आता गया। मुस्लिम लीग ने सभी महानगरों और छोटे नगरों में हिन्दुओं के विरुद्ध जिहाद छेड़ दिया।
सिंध और पंजाब पुलिस में 70% मुसलमान थे। संयुक्त प्रान्त { तत्कालीन उत्तर प्रदेश } तथा बंगाल में वे 50% थे। मुस्लिम लीग का साँप चारों ओर आग उगल रहा था। जघन्य कोलकाता हत्याकाँड के लिये मुख्यमंत्री सुहरावर्दी और उसके दायें हाथ मुजीबुर्रहमान ने जो बाद में बांग्ला देश का राष्ट्रपति बना, ने कमान संभाल रखी थी। यह जानना उपयुक्त होगा कि जिस मुजीबुर्रहमान को 1971 में हम ने बचाया उसका रोल 1946 में किस क़दर नीच था। कोलकाता और आस-पास के मुस्लिम गुंडों को इकट्ठा किया गया। उन्हें हथियार और पैट्रोल बम बनाने के लिए उस काल में सरकार द्वारा नियंत्रित और राशन के पैट्रोल के कूपन दिए गए। हावड़ा में गुंडों की टोलियों का नेतृत्व ख़ुद कोलकाता के मेयर शरीफ़ ख़ाँ ने किया। 24 पुलिस मुख्यालयों में 22 हिन्दू अधिकारी बदल कर मुसलमान रखे गए। शेष 2 एंग्लो-इंडियन थे।
16 अगस्त की सुबह मुस्लिम लीग ने विशाल जुलूस निकाले। जिनके मिलन बिंदु पर मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के नेतृत्व में विशाल सभा हुई। एक के बाद एक हर वक्त ने काफ़िर हिन्दुओं के विनाश के लिये भीड़ को उकसाया। सभा के बाद लौटती हुई भीड़ ने बड़े पैमाने पर हिन्दुओं की हत्या की। हिन्दुओं पर भयानक लूटपाट, आगज़नी, बलात्कार किये गये। इस्लामी काल के भीषण अत्याचारों को बड़े पैमाने पर फिर दुहराया गया। 2 दिन तक यह पिशाच लीला चलती रही। कोई रोकने टोकने वाला न था। किसी मुस्लिम दंगाई को गिरफ़्तार भी कर लिया जाता था तो तुरंत पुलिस मुख्यालय में बैठा मुख्यमंत्री सुहरावर्दी उसे छुड़वा देता था। अँग्रेज़ गवर्नर ऐफ़ बरोज़ गूंगा, बहरा, अँधा बना बैठा था।
कोलकाता की सड़कों पर कुछ ही घंटों में 10 हज़ार हिन्दुओं के शव पड़े हुए थे। बुरी तरह के कटे-पिटे हिन्दुओं की संख्या 15 हज़ार से अधिक थी। 1 लाख से अधिक लोग बेघरबार हो गए। उनका सर्वस्व नष्ट कर दिया गया था। चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ था। मुस्लिम लीग का नेतृत्व तो इस जिहाद का संचालन ही कर रहा था मगर कांग्रेस का नेतृत्व भी गूंगा, बहरा, अँधा बन गया था। मोहन दास गाँधी का मुंह ही नहीं सिला हुआ था बल्कि साथ ही सारे के सारे कोंग्रेसी नेता मौन थे। हिन्दू वर्षों से जिनको अपना नेता मानते थे उन्होंने भयानक संकट, दारुण पीड़ा की इस घडी में हिन्दुओं से मुंह फेर लिया था।
स्टेट्समैन के संवाददाता किम क्रिस्टेन ने लिखा है "युद्ध के अनुभव ने मुझे कठोर बना दिया है किन्तु युद्ध की विभीषिका भी ऐसी भयावनी नहीं होती। यह दंगा नहीं है। इसके लिए तो शब्द मध्य युग { अर्थात इस्लामी जिहाद } के इतिहास में खोजना होगा। " संदर्भ गाँधी हिज़ लाइफ़ एंड थॉट पृष्ठ संख्या 253 लेखक जे बी कृपलानी
अंततः हिन्दुओं ने समझ लिया कि अपना बचाव उन्हीं को करना होगा। वो प्रत्युत्तर देने में जुट गये और पाँसा पलट गया। हिन्दू पौरुष का सूर्य उदय होते ही मुस्लिम आतंक का अंधकार छँट गया। बंगाल, बिहार, संयुक्त प्रान्त में आततायी मुसलमानों को उसी दवा का भरपूर स्वाद मिलने लगा जिसकी खोज उन्होंने ही की थी।
आपमें से जिसने भी बेन किंग्सले वाली गाँधी पिक्चर देखी हो, वो कोलकाता के दंगों के समय गाँधी के आमरण अनशन के करुणापूर्ण दृश्य स्मरण कर पायेंगे। यह दृश्य कोलकाता की दो दिन तक रात-दिन चली इस्लामी हिंसा के हिन्दू प्रत्युत्तर के बाद का है। दो दिन से हिन्दुओं के नरसंहार पर मौन गाँधी हिन्दुओं के पराक्रम से विगलित हो उठे। गाँधी ने थरथर काँपते सुहरावर्दी को अपनी ओट में छिपा लिया। हिन्दुओं के प्रतिशोध से इस्लामी अत्याचारियों को बचाने के लिये गाँधी आमरण अनशन पर बैठ गये।
पूज्य गोपाल चंद्र मुखर्जी जिन्हें गोपाल पाठा भी कहा जाता के नेतृत्व में हिन्दू अपने चक्रवर्ती पूर्वजों को गौरवान्वित करने पर तुल गए। क्षत्रियत्व जाग उठा। बंगाल के साथ बिहार भी धूधू कर जल उठा। इस्लामी गुंडों पर पड़ती मार से उन्हें बचने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व ने उन पर हवाई जहाज़ और हैलीकॉप्टरों से गोलियां चलवायीं। यह वह समय था जब कांग्रेस को हिंदुओं के पौरुष को इस्लामी उद्दंडता के सामने डाटने का आह्वान करना चाहिए था मगर कांग्रेस हिंदु-पौरुष को शांत करने में जुट गयी और गाँधी ने हिन्दुओं के ख़िलाफ़ आमरण अनशन का तुरुप का पत्ता चल दिया। भोले-भाले शांतिप्रिय, धर्मभीरु हिन्दू गाँधी और कांग्रेस के दबाव में आ गये।
यह वह समय था जब हिन्दुओं को अपने पराक्रमी पूर्वजों के मार्ग पर चलना चाहिए था। यदि ऐसा होता तो पूज्य मातृभूमि का विभाजन न हुआ होता और इस्लामी समस्या का अंततोगत्वा उपयुक्त समाधान हो गया होता। राष्ट्रबन्धुओ ! पौरुष का कोई विकल्प नहीं होता। अपौरुष होना और स्त्रैण होने में कोई अंतर नहीं होता। आज के दिन को कभी मत भूलियेगा। यह दिन आँखों से आंसुओं के नहीं आग्नेय ज्वाला उठाने का है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
शुक्रवार, अगस्त 18, 2017
"16 अगस्त 1946 एक न भूलने वाला दिन"-
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