सोमवार, अगस्त 21, 2017

10 साल बाद हुआ कांग्रेस की खौफनाक साजिश का पर्दाफ़ाश, जिसे देख आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी

Ronnie Patel
10 साल बाद हुआ कांग्रेस की खौफनाक साजिश का पर्दाफ़ाश, जिसे देख आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी
राजनीति के लिए नेता अक्सर झूठे वादे करते नज़र आते हैं. सत्ता पाने के लिए चापलूसी से लेकर मुफ्त वस्तुओं तक का लालच जनता को दिया जाता है. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने सत्ता की खातिर ऐसे-ऐसे कुकर्म किये हैं, जिनके बारे में जानकार आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. ऐसे ही एक कुकर्म का इंडिया टीवी ने पर्दाफ़ाश किया है.
हिन्दुओं को बदनाम करने की कांग्रेस की नापाक साजिश
समझौता एक्सप्रेस ट्रैन में हुए ब्लास्ट केस में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है, जिसे देख देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया हैरान रह गयी है कि कोई राजनीतिक पार्टी सत्ता पाने के लिए इतना नीचे भी गिर सकती है? दरअसल समझौता ब्लास्ट केस को बहाना बनाकर कांग्रेस द्वारा हिन्दू आतंकवाद, सैफ्रॉन टेरर नाम के जुमले गढ़े गए थे.
पाकिस्तानियों को बचाने के लिए और शांतिप्रिय हिन्दुओं को दुनियाभर में बदनाम करने के लिए पाकिस्तानी आईएसआई ने कांग्रेस के साथ मिलकर एक खौफनाक साजिश रची, जिसमे 2007 में हुए समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट का इस्तेमाल किया गया. खुलासा हुआ है कि इस केस में प्रत्यक्षदर्शियों ने आतंकवादियों के स्केच बनवाये थे और इन स्केचों के आधार पर पुलिस ने पाकिस्तानी आतंकवादी को धर-दबोचा था.
खुलासा हुआ है कि पकडे गए पाकिस्तानी आतंकवादी ने अपना गुनाह भी कबूल किया था लेकिन उस वक़्त कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह नाकाम प्रधानमंत्री की तरह गद्दी पर बैठे थे. कोंग्रेसी नेताओं के दबाव में केवल 14 दिनों में इस पाकिस्तानी आतंकवाद को चुपचाप छोड़ दिया गया. उसके बाद बंद कमरे में हिन्दुओं को बदनाम करने की योजना बनायी गयी.
समझौता केस के जांच अधिकारी का खुलासा
योजना के तहत इस केस में स्वामी असीमानंद को फंसाया गया ताकि भगवा आतंकवाद या हिन्दू आतंकवाद को अमली जामा पहनाया जा सके. इस नापाक योजना को 10 साल पहले अंजाम दिया गया लेकिन ये खुलासा सिर्फ 12 दिन पहले हुआ, जब जांच अधिकारी ने अदालत में अपना सनसनीखेज बयान दर्ज करवाया. इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह इस केस के पहले जांच अधिकारी थे, जो कि अब रिटायर हो चुके हैं. ठीक 12 दिन पहले 9 जून को गुरदीप सिंह ने अदालत में अपना बयान रिकॉर्ड करवाया है.
अपने बयान में इंस्पेक्टर गुरदीप ने खुलासा किया कि पुलिस ने समझौता ब्लास्ट करने वाले पाकिस्तानी आतंकी अजमत अली को गिरफ्तार किया था. अजमत ने भारत में घुसपैठ की थी और वो बिना पासपोर्ट के, बिना किसी कानूनी दस्तावेज के दिल्ली, मुंबई समेत देश के कई शहरों में घूमा था.
ऊपर से आदेश आया, पाकिस्तानी संदिग्ध छोड़ा गया
इंस्पेक्टर गुरदीप ने बताया कि वो अजमत अली के साथ उन शहरों में भी गए थे, जहां वो गया था. उसने इलाहाबाद में जहां जाने की बात कही जो जांच में सही पायी गयी. जांच अपने अंजाम तक पहुंच ही रही थी कि तभी अचानक उनके सीनियर अधिकारियों, सुपिरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस भारती अरोड़ा और डीआईजी ने उन्हें पाकिस्तानी आतंकी को छोड़ने के निर्देश दे दिए. इन्ही के निर्देशों पर इंस्पेक्टर गुरदीप ने अजमत अली को कोर्ट से बरी करवाया. उनके इस बयान के बाद देश हक्का-बक्का रह गया.
18 फरवरी 2007 को समझौता एक्सप्रैस ट्रेन में बम धमाका हुआ था, जिसमे 68 लोग मारे गए थे. इस हादसे को 10 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अबतक आखिरी फैसला नहीं आया है. बताया जा रहा है कि कोंग्रेसी नेताओं के दबाव के कारण पुलिस ने कोर्ट में पाकिस्तानी आतंकी को केस से बरी करने की अपील की थी और कोर्ट ने पुलिस की बात पर यकीन करते हुए पाकिस्तानी आतंकी को छोड़ दिया. फिर वो कहां गया ये किसी को नहीं मालूम.
सुशील कुमार शिंदे ने कहा भगवा आतंकवाद
हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए इतनी बड़ी राजनीतिक साजिश रची गयी, वो भी देश की सबसे पुरानी पार्टी द्वारा? पाकिस्तानी आतंकी को रिहा करके निर्दोष स्वामी असीमानंद को फंसा कर भगवा आतंकवाद का नाम दिया गया. इसके बाद तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने AICC की मीटिंग में भगवा आतंकवाद शब्द का जिक्र करके सबको चौंका दिया और फिर पी चिदंबरम और दिग्विजय सिंह ने बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ झूठ फैलाने के लिए आये दिन भगवा आतंकवाद का जिक्र करना शुर कर दिया.
कांग्रेस के महामक्कार नेता दिग्विजय सिंह ने तो 26/11 को मुंबई में हुए आतंकी हमले को भी आरएसएस से जोड़ते हुए इसे भी भगवा आतंकवाद कहना शुरू कर दिया था और इस झूठ को फैलाने के लिए एक किताब भी लिख डाली थी. हालांकि कसाब के पकडे जाने से उसकी ये चाल सफल नहीं हुई.
सवाल ये है कि कांग्रेस की हिन्दुओं से ऐसी नफ़रत की क्या वजह है, जिसके लिए हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए सोची-समझी साजिश रची गयी? ये साफ है कि भगवा आतंकवाद का जुमला बनाने के लिए, हिन्दू आतंकवाद का हव्वा खड़ा करने के लिए इस केस में पाकिस्तानियों को बचाया गया और हिन्दुस्तानियों को फंसाया गया. इस साजिश के पीछे किसका शातिर दिमाग था? क्या पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह या सुशील कुमार शिन्दे में से कोई इस साजिश में शामिल था? इस सच को बाहर लाने के लिए इस केस में नए सिरे से जांच शुरू की गयी है.
बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने के मुताबिक़ ये देश के साथ विश्वासघात है. डॉक्टर स्वामी ने कहा कि सिर्फ हिंदू आतंकवाद का नाम देने के लिए ये पूरी साजिश रची गयी थी.
अजमत अली है कौन?
कोर्ट में जमा दस्तावेजों के अनुसार अजमत अली एक पाकिस्तानी नागरिक था. उसे भारत में अटारी बॉर्डर के पास से जीआरपी ने उस वक़्त गिरफ्तार किया था जब वो पाकिस्तान वापस लौटने की कोशिश कर रहा था. उसके पास न तो पासपोर्ट था, न ही वीजा था और ना ही कोई अन्य कानूनी दस्तावेज. इस आतंकी ने पूछताछ में कबूल किया था कि वो पाकिस्तानी है और उसके पिता का नाम मोहम्मद शरीफ है. उसने अपने घर का पता बताय़ा था – हाउस नंबर 24, गली नंबर 51, हमाम स्ट्रीट, जिला लाहौर, पाकिस्तान.
ट्रेन में हुए धमाके के बाद दो प्रत्यक्षदर्शिय
ों शौकत अली और रुखसाना ने बम रखने वाले का जो हुलिया पुलिस को बताया था, वो अजमत अली से काफी मिलता-जुलता था. प्रत्यक्षदर्शी द्वारा बताये गए हुलिए के आधार पर स्केच बनाये गए थे और उन्ही के आधार पर अजमत अली और मोहम्मद उस्मान को इस केस में आरोपी बनाया गया था.
जांच टीम ने 6 मार्च 2007 को कोर्ट से अजमत अली की 14 दिन की रिमांड मांगी और पूछताछ की गयी. लेकिन 14 दिन बाद, 20 मार्च को पुलिस ने कोर्ट ने अजमत अली की दोबारा रिमांड मांगने की जगह उसे छोड़ने की गुजारिश कर दी.
इंडिया टीवी ने गुरदीप सिंह को ढूंढ निकाला और उनसे बातचीत की. गुरदीप सिंह ने बताया कि शुरुआती जांच के बाद ही अजमत को छोड़ दिया गया था. उन्होंने उन बड़े अफसरों के बारे में भी बताया जिन्होंने आतंकी को छोड़ने के लिए दबाव बनाया. ऊपरी दबाव के चलते अजमत अली का ना तो नार्को टेस्ट किया गया, ना ही पोलीग्राफी टेस्ट किया गया.
अजमत अली को छोड़ देना तो एक बड़ा ट्विस्ट था ही लेकिन इससे भी बड़ा ट्विस्ट इस केस की शुरुआती जांच में आया था. शुरुआत में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने कहा था कि समझौता ब्लास्ट के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है लेकिन फिर कुछ ही दिन बाद उसे भगवा आतंकवाद से जोड़ दिया गया.
पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग की नोटिंग से खुलासा हुआ कि 21 जुलाई 2010 को बंद कमरे में कुछ अधिकारियों की मीटिंग हुई. इस मीटिंग तय किया गया कि हरियाणा पुलिस समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट की जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है इसलिए केस को नेशनल इनवेस्टिगेटिव एजेंसी को सौंप देना चाहिए और केस की जांच को भगवा आतंकवाद से जोड़ दिया जाए. कोंग्रेसी नेताओं के ऐसे सैकड़ों काले-किस्सों का अभी सामने आना बाकी है, जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी, वो सभी पुलिस अधिकारी व् नेता फंसेंगे जो इस साजिश का हिस्सा बने.

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