जब राजमहल बन रहा है और उसका चूना पकाने के लिए लकड़ियाँ चाहिए, तो राजा अपने राज्य में चाहे जहां से लकड़ी कटवाए! बिश्नोई कौन होते हैं रोकने वाले ?दीवान गिरधरदास ने राजा अभयसिंह को उसकी शक्तियाँ याद दिलाई।राजा असमंजस में खड़ा रहा!दीवान ने उसे अपनी युक्तियों पर विश्वास करने को कहा। बिश्नोईयों को डराने धमकाने के लिए सेना साथ ले जाने की अनुमति मांगी और फिर से खेजड़ली की ओर चला आया।दीवान दो दिन पहले भी आया था। तब उसने कहा था कि अगर गांव के लोग मिल कर उसे कुछ पैसे दे देते हैं तो वो लकड़ियों की व्यवस्था कहीं और से कर लेगा।दीवान को लगा कि अपने पेड़ बचाने के लिए गांव वाले उसे इतनी सी भेंट तो चढ़ा ही देंगे।लेकिन गांव वालों के लिए तो ये सिद्धांतों का संघर्ष था। सिद्धांतों के संघर्ष में साध्य और साधन दोनों की पवित्रता बने रहना अनिवार्य होता है। ऐसे में खेजड़ली गांवकी ही एक बिश्नोई नारी अमृता ने आगे बढ़ दीवान को दो टूक जवाब दे दिया-दाम दिया दाग लगे, टको नी देवां डाँण।रिश्वत क्यों दें ? रिश्वत के लिए एक टका भी नहीं मिलेगा!दीवान भड़क उठा। राजपुरुष होने की धौंस जमाई और सबक सिखाने की धमकी दे वापिस चला गया। कहा- दशमी को सेना सहित आऊंगा। देखता हूँ कैसे बचा लोगे वृक्ष!कहाँ जोधपुर रियासत का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति दीवान और कहाँ ढ़ाणियों में रहने वाले निर्बल और शक्तिहीन बिश्नोई!लेकिन धर्म का बल धनबल और बाहुबल से बहुत अधिक होता है। बिश्नोई लोग अपने आदर्शों के लिए लड़ रहे थे। इसलिए उन्हें डर लगा ही नहीं। चिंता जरूर हुई, पर वो भी अपनी नहीं, वृक्षों की।शमी वृक्ष मरुभूमि का कल्प वृक्ष कहा जाता है। आर्थिक दृष्टि से लाभदायक। धार्मिक महत्व भी अत्यधिक। "शमी शमयतेपापं" "रामस्य प्रियवादिनी" "अमंगलानां शमनीं"। बिश्नोईयों के लिए तो खेजड़ी माँ है, बहन है, बेटी है। खेजड़ापितृवत है, भ्रातृवत है, मित्रवत है, पुत्रवत है। उसे कोई चूना पकाने के लिए काट ले जाएगा ?84 गांव खेड़ों में सन्देश भेजा गया- दीवान दशमी को सेना सहित आने की धमकी दे गया है। पेड़ काटेगा। उसे येन केन प्रकरेण रोकना है।लोग नवमी की शाम को ही पहुंचने लगे थे। रात्रि जागरण हुआ। दशमी की सुबह हवन हुआ। सबदवाणी का पाठ हुआ। धर्म-नियम-संकल्प दोहराए गए। खेजड़ी तो बचानी ही है। हर हाल में। चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए।उधर दीवान नवमी की रात निश्चिन्त सोया और दशमी को सुबह होते ही सेना सहित चल पड़ा। आरे-कुल्हाड़े साथ लिए। बैल-घोड़े-गाड़ियाँ। पेड़ काट कर ले कर ही आना है। हर हाल में। चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए।खेजड़ली गांव में प्रवेश करते ही दीवान को सामने सहस्रों बिश्नोईयों का समूह दिखा। बिश्नोईजन हवनादि अनुष्ठान संपन्न कर दीवान की प्रतीक्षा में ही बैठे थे। शत्रु को सम्मुख देख उठ खड़े हुए। लेकिन साथ ही राजपुरुष आया जान अभिवादन भी किया। गुरु जाम्भोजी का कहा सबद है- " जे कोई आवे हो हो कर तो आप जे हुईए पाणी "। बिश्नोई जनों ने ऐसा ही किया। हाथ जोड़ खेजड़ी के वृक्षों के समीप मानव श्रृंखला बना दीवान के समक्ष खड़े हो गए।दीवान ने उपेक्षापूर्वक सरसरी तौर पर नजर डाली,घोड़ा आगे बढ़ाया और एक घने बड़े खेजड़े की छांव में रुक गया।अनगिनत बार भिड़ चुकने के बाद भी अधर्म फिर से धर्म के समक्ष संघर्ष को प्रस्तुत था। सदा की तरह- धर्म शांत, नम्र लेकिन उन्नत माथा लिए और अधर्म अट्टाहास करता हुआ।दीवान ने देखा- रिश्वत की मांग पर अपमानित करने वाली नारी अमृता सबसे आगे खड़ी है। दीवान प्रतिशोध के भाव ले कर तो आया ही था, इसे चुनौती समझ और अधिक चिढ़ गया।उसने सिपाहियों को कुल्हाड़ी ले आगे आने को कहा और सबसे पहले अमृता के समीप के खेजड़े को काट गिराने का हुक्म दे दिया।अमृता के मन में झंझावात चल उठे।उसने कातर दृष्टि से खेजड़े की ओर देखा और हाथ जोड़े हुए ही दो कदम आगे बढ़ आई।मद में चूर दीवान बोला- अगर उस दिन पैसे दे दिए होते तो आज ये दिन न देखना पड़ता। अब तो सारे पेड़ कटेंगे।देखता हूँ मुझे कौन कैसे रोकता है!सिपाही आगे बढ़ा और कुल्हाड़ा तान खड़ा हो गया।सुख दुःख के साथी खेजड़े पर तना कुल्हाड़ा देख अमृता का गला भर आया। आंखों से अश्रुधार बही। कुछ सम्भली, फिर बोली- दीवान जी, ये खेजड़ियाँ हमारे जीवन का आसरा है। इन्हीं की सूखी समिधाएँ बीन कर चूल्हा जलाया, इन की सांगरियों के सागसे हम दोपायों का और लूंग से चौपायों का पेट भरा, हर चौमासेकी दोपहरी में उस घने खेजड़े की छांव में भरतार के साथ भाता किया, मुश्किल से महीना बीता होगा - अब के सावन में ही इस बांकी खेजड़ी की झुकी डाल पर झूला झूली, ये सब मैं कैसे भूलूँ ?दीवान उपहास की दृष्टि से देखता रहा।अमृता का स्वर शनैः शनैः आरोहित हुआ-मैंने तो छोटी अंगुली के नख से भी कभी इनकी छाल तक न उतारी, तुम कहते हो काट ले जाऊंगा!ये वृक्ष मेरे भाई हैं। मैंने अपना पूरा जीवन इन के संग जिया है। मैं अपनी आँखों से इनका संहार नहीं देख सकती। तुमइन वृक्षों को अवश्य काट लेना, परन्तु- पहले कुल्हाड़ी मेरेऊपर चलेगी, पश्चात पेड़ों पर।इतना कह अमृता ने आंखें बंद की, अपने गुरु को स्मरण किया, आगे बढ़ी और उस बड़े 'भाई' को भुजाओं में भर कर खड़ी हो गई।भादो का महीना था, घेरा बनाए बादल हौले हौले रिसने लगे। मेह में भीग कर झूम जाने वाली खेजड़ियाँ आज भय से कांप उठी। पेड़ों ने साँय साँय कर अनिष्ट की आशंकाओं के संदेश इक दूजेतक पहुंचाए।दीवान अट्टाहास कर बोला- री मूर्ख! रूंख के लिए सर कटाएगी ?शांत स्वर में उत्तर मिला- सर साँटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण!सिर कट जाए और वृक्ष बच जाए तो भी सस्ता ही सौदा है!दीवान इस दिव्यता को सह नहीं पाया और मस्तिष्क पर तीव्र आघात से पागल हुए हाथी की तरह चीख उठा। बोला- काट डालो इसे!सिपाही ठिठक गया। दीवान फिर चीखा- रे खड़ा क्यों है, हुकुम बजा, काट दे इस मूर्खा को! ये मुझे रोकेगी ?चला कुल्हाड़ी और काट डाल !आदेश की पालना हो गई!वफादार सैनिक की कुल्हाड़ी ने सीधे गर्दन पर वार किया। अमृता का सिर कट कर धरती माँ की गोद में जा गिरा। उसके धन्यकबन्ध से लोहित की एक तीव्र धार फूटी और लोहितकण्टका शमी का अभिषेक करती हुई शांत हो गई।इस घटना से पूर्व भी बिश्नोई समाज में वृक्ष रक्षा हेतु तीन खड़ाणे हो चुके थे। 6 लोग अपने प्राण पर्यावरण को अर्पित कर चुके थे। उनकी कथाएं सुन सुन बड़ी हुई बिश्नोईयों की उस पीढ़ी ने बलिदान का अवसर समक्ष पा स्वयं को धन्य समझा। गुरु जम्भेश्वर, आराध्य देव विष्णु और अमृतादेवी की जय जयकार होने लगी। सर साँटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण के नारों से रोंए खड़े होते थे।अमृता की तीन बेटियाँ- आसी, रतनी और भागू आगे बढ़ी और वृक्ष रक्षा हित मां के पद चिह्नों पर चल पड़ी। निर्दयी कुल्हाड़े के प्रहार से बच्चियों के सुकोमल अंग छिन्न भिन्न हो भूशायी हुए। उनके पिता, अमृता के पति रामोजी की देह भी कुठाराघात से निष्प्राण हुई।फिर तो जैसे हरीतिमा शमी को लहू से सींचने की होड़ लग गई। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या स्त्री, क्या पुरुष! जय जय कार किये आते थे और वृक्षों को बांहों में जकड़ कर खड़े हो जाते थे। रक्त पिपासु दीवान हतप्रभ चीखता जाता था, सिपाही यंत्रवत आघात किये जाते थे और मुख पर सौम्य स्मिता धारण किये बिश्नोईजन कटते जाते थे।एक युवक पहली बार पत्नी को मायके से ले आ रहा था। वो भी सपत्नीक पर्यावरण रक्षा के यज्ञ में आहूत हुआ। आबालवृद्ध।नर नारी। कुल 294 पुरुष और 69 महिलाएं बलिदान हुए। 363 मनुष्य !!हा! कैसा विकट दृश्य। मरुधरा पर मनुज के गाढ़े लहू की सरिता बहती थी। लोथों से मैदान पटा पड़ा था। लेकिन "जांडी हिरण संहार देख सिर दीजिये" जैसी पंक्तियां गाने वाले इन भावों को जी बैठे तो क्या ही आश्चर्य!चतुर्दिक या तो कटे हुए बिश्नोई दृष्टिगोचर होते या कटने को तत्पर बिश्नोई।तब तक भूमि पर बहते रुधिर में अपना रक्तरंजित प्रतिबिम्ब देख सिपाही सिहर उठे। अंदर का राम जग गया। और अधिक हत्याएंकरने का साहस नहीं रहा। पश्चाताप की ज्वाला में झुलस रहे सैनिकों ने कुल्हाड़े-कुल्हाड़ी फेंक दिए। घुटने टेक बैठ कर रोने लगे।सिपाहियों के प्रतिरोध करते ही दीवान भी डर गया। घोड़े को ले जोधपुर की ओर भागा। लेकिन महाभारत काल में अर्जुन के बाणों को धारण करने वाली "धारिण्यर्जुन बाणानां" शमी अपने प्रियजनों के संहारक को भला बच कर कैसे जाने देती। दीवान का घोड़ा खेजड़ी से टकरा गया और दीवान विक्षिप्त हो यमलोक कोप्राप्त हुआ।अगले दिन अभयसिंह तक इस नरसंहार का संदेश पहुंचा। जाम्भोजी के अनन्य भक्त जोधे के जोधपुर में ऐसा अनर्थ ! दीवान के बहकावे में आ वृक्ष काटने का आदेश देने वाले राजाको अपनी भूल का अहसास हुआ। भागा भागा खेजड़ली आया। उपस्थित पंचों के पगों में पगड़ी रखी, हाथ जोड़े, माफी मांगी और सरकारकी ओर से लिखित में ताम्रपत्र दिया कि भविष्य में जोधपुर राज्य में हरे वृक्ष नहीं काटे जाएंगे।वर्तमान में भारत में केंद्र एवं राज्य सरकारें पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को अमृता देवी स्मृति पर्यावरण पुरस्कार भी प्रदान करती हैं।खेजड़ली में उस बलिदान स्थल पर उन पर्यावरण योद्धाओं की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को उनकी पुण्य स्मृति में मेला भरता है। जहां बिश्नोई समाज के लोग अपने पितृ पुरुषों को श्रद्धांजलि देते हुए अपने संकल्पों को दोहराते हैं।–------------------------आइए, खेजड़ली बलिदान दिवस पर हम सब पर्यावरण की बेहतरी के लिए वृक्षारोपण, वृक्ष संवर्द्धन और वृक्ष संरक्षण का संकल्प लें। यही हमारी ओर से उन विश्व नायक पर्यावरण ऋषियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
गुरुवार, अगस्त 31, 2017
बुधवार, अगस्त 30, 2017
इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के तहत अखिलेश यादव के कार्यकाल में यश भारती पाने वाले 142 लोगों का ब्योरा मिला है.
Jitendra Pratap Singh
जब यूपी में अखिलेश सरकार थी तो करीब 200 लोगों को ‘यश भारती’ सम्मान दिए गए, जिसको ये सम्मान मिलता था उसे 11 लाख रुपए नकद और 50 हजार रुपए की हर महीने पेंशन दी गई. राइट टू इनफार्मेशन (आरटीआई) नाम तो सुना ही होगा. कमाल की चीज़ है. अब उसी ने ऐसी जानकारी सामने लाकर रख दी है जिससे आपको पता चल जाएगा कि ये सम्मान आपको क्यों नहीं मिला. आरटीआई के ज़रिए से ऐसे-ऐसे सीवी (curriculum vitae) के सैंपल सामने आ गए हैं कि उनकी काबिलियत देखकर आपको समझ नहीं आएगा कि आप उनके सीवी पर हंसे या फिर अपने सीवी पर.
इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के तहत अखिलेश यादव के कार्यकाल में यश भारती पाने वाले 142 लोगों का ब्योरा मिला है. जिसमें ये जानकारी सामने आई है कि कैसे किसी के भी नाम प्रपोज़ कर देने पर यश भारती सम्मान दे दिया गया. यानी सिर्फ भाई भतीजावाद में यश भारती पुरस्कार बांट दिए गए.
यूपी में यश भारती पुरस्कार की शुरुआत अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने 1994 में सीएम रहते हुए की थी. बाद में बसपा और बीजेपी सरकारों ने ये पुरस्कार बंद कर दिए थे, जिन्हें अब अखिलेश यादव सरकार ने दोबारा शुरू किया था. एक अनुमान के मुताबिक ये सम्मान 200 लोगों को मिल चुका है.
जिन लोगों का ब्योरा इंडियन एक्सप्रेस को मिला है उस लिस्ट को देखकर आप समझ जायेंगे कि ये सम्मान पाने के लिए आपको किसी क़ाबिलियत की ज़रूरत नहीं थी, बस किसी समाजवादी नेता से आपका जुड़ा होना काफी था. कई लोगों ने तो सपा सरकार के कसीदे पढ़ते हुए खुद ही सीएम ऑफिस अपने सीवी भेज दिए और मिल गया सम्मान. जबकि ये पुरस्कार आधिकारिक तौर पर स्टेट का संस्कृति मंत्रालय देता है. पहले कुछ लोगों के बारे में जान लो कि कैसे उन्हें ये सम्मान मिल गया.
ये कुछ सीवी के सैंपल हैं, देख लो
1. शिखा पांडे : दूरदर्शन की एक्सटर्नल कोऑर्डिनेटर. 2016 में यश भारती के लिए उनके नाम को लखनऊ के उस वक़्त के एडीएम जय शंकर दुबे ने भेज दिया था. शिखा के सीवी में लिखा था कि उन्होंने चार साल तक सीएम आवास पर हुए प्रोग्राम का आयोजन किया, जिसकी तारीफ खुद सीएम ने भी की.
(ये उपलब्धि सबको नहीं मिलती. तो क्या समझे आप. बिना कुछ किए शिखा को यश भारती मिल गया. चार साल तक सीएम आवास पर प्रोग्राम किया है.)
2. अशोक निगम : इन्हें साल 2013 में यश भारती मिला. अशोक के सीवी में लिखा था, ‘संप्रति समाजवादी पार्टी की पत्रिका समाजवादी बुलेटिन का कार्यकारी संपादक.’ अशोक ने खुद को समाजवादी विचारधारा का राइटर बताया था.
(मियां पता नहीं आप कैसे अपने आप को लेखक कहते हैं. समाजवादी विचारधारा पर लिखा होता तो हर महीने 50 हज़ार आ रहे होते.)
3. रतीश चंद्र अग्रवाल : मुख्यमंत्री के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) ने 3 सितंबर 2016 को अपना नाम खुद ही पेश कर दिया. और यश भारती मिल भी गया.
(क्या सम्मान के लिए इतना काफी नहीं था कि वो सीएम के ओएसडी थे)
4. नवाब जफर मीर अब्दुल्लाह : नवाब को खेल कैटेगरी में यश भारती दिया गया. वो अवध रियासत के वजीर रहे नवाब अहमद अली खान के वंशज हैं. नवाब के सीवी में लिखा है कि वो ‘कारोबारी’ हैं और उनका आवास ‘लखनऊ और पूरा भारत’ है.
5. काशीनाथ यादव : ये जनाब समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उन्होंने 27 अप्रैल 2016 को पार्टी के लेटरहेड पर अपनी सीवी भेजी. उनकी सीवी में लिखा है कि उन्होंने कई कल्चरल प्रोग्राम किए. गीत गाए और समाजवादी पार्टी की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया. इसके अलावा ये भी लिखा कि उन्होंने 1997 में सैफई महोत्सव में भोजपुरी लोकगीत गाया था.
6. ओमा उपाध्याय : इन्होने अपने सीवी में लिखा है कि उन्होंने 2010 में ज्योतिष और मनोविज्ञान आधारित विशेष वस्त्र बनाने की युगांतकारी तकनीकी डेवलप थी. 2016 में यश भारती मिल गया.
7. अर्चना सतीश : ये वो नाम है जिसको 27 अक्टूबर 2016 को यश भारती पुरस्कार समारोह में ही मंच पर अखिलेश यादव ने मंजूरी दे दी. उस वक़्त अर्चना सतीश कार्यक्रम का संचालन कर रही थीं. उनकी सीवी में लिखा है, ‘प्रतिष्ठित सैफई महोत्सव का पिछले तीन सालों से संचालन’, और ‘4-5 जनवरी 2016 को आगरा में यूपी सरकार के अतिप्रतिष्ठित एनआरआई दिवस कार्यक्रम का संचालन.’
8. सुरभि रंजन : उस समय यूपी के चीफ सेक्रेटरी आलोक रंजन की पत्नीउन्हें एक प्रतिष्ठित गायिका बताया गया है. इनका नाम लखनऊ डिवीज़न के कमिश्नर महेश कुमार गुप्ता ने पेश किया था.
9. शिवानी मतानहेलिया : दिवंगत कांग्रेसी नेता जगदीश मतानहेलिया की बेटी. साल 2016 में यश भारती मिला. शिवानी प्रतापगढ़ के एक कॉलेज में संगीत पढ़ाती हैं. सीवी में लिखा, अब तक 8 अवॉर्ड मिल चुके हैं, जिनमें सात प्रतापगढ़ के स्थानीय संगठनों से मिले हैं.
10. हेमंत शर्मा : सीनियर जर्नलिस्ट, जिन्होंने हाल ही में इंडिया टीवी से इस्तीफा दिया. सीवी में लिखा है, ‘पहले लेखन को गुजर बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का.’ सीवी में ये भी दावा किया गया है कि वो 1989, 2001 और 2013 का महाकुम्भ कवर करने वाले अकेले पत्रकार हैं.
11. मणिन्द्र कुमार मिश्रा : सपा नेता मुरलीधर मिश्रा के बेटे हैं. आईआईएमसी से जर्नलिज्म की पढ़ाई की. सीवी में लिखा है कि उन्होंने साल 2010 में मेघालय के खासी जनजाति के बीच रहकर दो महीने तक फील्डवर्क किया था. मणिन्द्र कुमार मिश्रा ने अखिलेश यादव पर ‘समाजवादी मॉडल के युवा ध्वजवाहक’ किताब भी लिखी है.
इन सीवी से ही आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि आपको क्यों यश भारती पुरस्कार नहीं मिला होगा. क्योंकि आपने ऐसा सीवी नहीं बनाया होगा. या फिर आपको कोई ऐसा गॉड फादर नहीं मिला होगा, जो आपके नाम को यश भारती के लिए पेश कर देता. कम से कम छह पुरस्कार विजेता ऐसे हैं जिनका नाम समाजवादी पार्टी नेताओं ने बढ़ाया था. दो नाम तो अखिलेश यादव के चाचा और उनकी सरकार में मंत्री रहे शिवपाल यादव ने भेजे. एक नाम सपा नेता आजम खान ने और सरकार में मंत्री रहे राजा भैया ने भी दो नामों की अनुशंसा की थी, जिन्हें यश भारती मिला.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि हिन्दुस्तान टाइम्स के लखनऊ एडिशन की रेज़ीडेंट एडिटर सुनीता एरोन ने भी सीएम ऑफिस को ईमेल किया और जिसका नाम अनुशंसित किया था, उसे भी यश भारती मिला था.
अब योगी आदित्यनाथ सरकार यश भारती पुरस्कारों की समीक्षा कर रही है, खासतौर पर साल 2015 में बनाए गए आजीवन 50 हज़ार रुपए हर महीने पेंशन देने वाले प्रावधान की. यूपी के संस्कृति विभाग की संयुक्त निदेशक अनुराधा गोयल ने बताया कि फाइनेंस ईयर 2017-18 में यश भारती के तहत आजीवन पेंशन मद में कुल 4.66 करोड़ रुपये आवंटित हैं, लेकिन अभी तक एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है. पुरस्कारों की समीक्षा का आदेश दिया गया है. यश भारती को बंद करने पर यूपी के संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा, ‘यश भारती पुरस्कार और पेंशन के बारे में सरकार अभी विचार कर रही है, अभी कोई आखिरी फैसला नहीं लिया गया है.’
वहीं सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है,
‘बीजेपी हमारी सरकार के हर अच्छे काम को बंद कर देना चाहती है. यश भारती अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को दिया जाता था. सभी नाम उच्च-स्तरीय कमेटी द्वारा तय प्रक्रिया के तहत चुने गए थे.’
हालांकि ये क्लियर नहीं है कि यश भारती पुरस्कार देने की वो ‘तय प्रक्रिया’ क्या थी? ऊपर दिए गए नामों से तो ऐसा लगता है जैसे कि वो कहावत है न- ‘अंधा बांटे रेवड़ी, और अपनों अपनों के दे.’
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ब्रह्माकुमारी मत,हंसा मत आदि का प्रचार ईसाईयों के योजना-बद्ध षडयन्त्र का ही परिणाम है।
ब्रह्माकुमारी संस्था क्या है ? जानें सच्चाई। भाई दिपक कुमार योगी जी की वॉल से , अवश्य पढ़ें-- ************** 🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷 🌷ब्रह्माकुमारी मत 🌷 ब्रह्माकुमारी सम्प्रदाय के प्रवर्तक का नाम श्री लेखराज जी जिनको प्रायः दादा के नाम से ही पुकारते हैं।दादा एक सम्पन्न धनाढ्य परिवार के व्यक्ति थे,बम्बई में इनकी हीरज,जवाहरात कई दुकान रही।ये स्वभाव से ही रंगीले और विलासप्रिय थे।बम्बई में इनकी सर आगाखाँ के साथ मैत्री थी।सम्भवतः उन्हीं से दादा जी ने यह प्रेरणा प्राप्त की कि किस प्रकार अन्धविश्वास में फंसी भोली-भाली जनता को अपने वश में किया जाए और बिना किसी तप-त्याग और संयम के एक महान् धार्मिक नेत बना जाए।अतः दादाजी ने किसी हठयोगी गुरु के द्वारा शिक्षा ग्रहण करनी आरम्भ कर दी,और त्राटक की साधना का पूरा-२ अभ्यास किया,जिसके द्वारा सम्पर्क में आने वाले निर्बल-मस्तिष्क पुरुषों को तथा भावना प्रधान युवतियों को अपने वश में किया जा सके।इस प्रकार दादाजी सम्मोहन एवं उच्चाटन नामक हठयोग की सिद्धियों से युक्त होकर कार्यक्षेत्र में उतरे। बम्बई में अपना कारोबार बन्द कर इन्होंने करांची में डेरा जा जमाया और ओ३म् मण्डली की स्थापना की,साथ ही तथाकथित ब्रह्मज्ञान और योग की शिक्षा के बहाने चेला-चेली बनाना आरम्भ कर दिया।इनका विषेश प्रयत्न चेली बनाने की और ही रहा।अनेक अविवाहित कुमारियाँ दीक्षित होने के लिए आने लगीं।कुछ विवाहित देवियाँ भी अपने-२ पतियों को त्याग कर आश्रम में रहने लगीं,और दादाजी द्वारा हठयोग की क्रियाएँ सीखने लगीं।इस समय दादाजी की आयु ४० वर्ष के लगभग थी। ओ३म् मण्डली की स्थापना के कुछ काल उपरान्त जनता में उसके प्रति घृणा और रोष उत्पन्न हो गया।प्रतिष्ठित परिवारों की देवियाँ अपने पतियों और पुत्रों का त्याग कर तथा अविवाहित युवतियाँ अपने माता-पिता को त्यागकर जब दादा लेखराज की चेली बन उनके केलिसदन में रहने लगीं,तो रोष व घृणा का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था।आर्यसमाज करांची ने अन्य नागरिकों के सहयोग से ओ३म् मण्डली के विरुद्ध आन्दोलन खड़ा किया।स्थान-स्थान पर विरोध सभाएँ होने लगीं।करांची के अनेक मान्य नेताओं का सहयोग प्राप्त किया गया।आर्यसमाज के अनेक प्रमुख कार्यकर्त्ताओं का शिष्ट-मण्डल श्री साधु टी० एल० वास्वानी जी से भी मिला और इस आन्दोलन में उनका सहयोग उपलब्ध किया।साधु वास्वानी ने सहर्ष ओ३म् मंडली के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन में अपना सहयोग प्रदान किया।कानून का दरवाजा भी खटखटाया गया।परिणाम स्वरुप ओ३म्-मण्डली पर प्रतिबन्ध लगा और दादाजी को करांची छोड़नी पड़ी और अपना डेरा तम्बू उखाड़ना पड़ा। भारत विभाजन के उपरान्त श्रीमान जी ने अपनी लगभग १५० चेलियों के साथ भारत में पदार्पण किया।यहाँ आकर इस मंडली का नया नाम ब्रह्माकुमारी रखा और आबू में आकर दादाजी ने अपना डेरा जमाया।वहाँ की जनता ने भी अपना विरोध प्रदर्शित किया तो कुछ वर्षों के लिए दादाजी ने मौन साध लिया।तदुपरान्त आबू पर्वत पर एक अच्छी कोठी किराये पर लेकर जा बसे और कार्यक्रम पुनः चालू कर दिया। सिन्ध से साथ लाई अपनी चेलियों को भारत के कुछ प्रमुख नगरों में भेजा और क्षेत्र तैयार करना आरम्भ किया। 🌷नाम व्याख्या🌷 इस ब्रह्माकुमारी नाम के सम्बन्ध में ऐसा अनुमान होता है कि दादाजी जो अपने को ब्रह्मा कहते थे और हर ५००० वर्षों में एक बार अपनी तथाकथित चतुर्युग की समाप्ति बेला में ब्रह्मलोक को त्यागकर पृथिवी तल पर मानव शरीर में आने का दावा करते थे,उनके प्रति आत्म-समर्पण करने वाली देवियाँ ब्रह्माकुमारी एवं पुरुष ब्रह्माकुमार कहाते हैं।स्त्री विवाहित हो या अविवाहित,पति को त्यागकर आई हो वा परित्यक्ता हो सब इस पन्थ में दीक्षित होने पर ब्रह्माकुमारी ही कहाती हैं।इसी प्रकार युवा एवं वृद्ध पुरुष ब्रह्माकुमार नाम से पुकारे जाते हैं। 🌷भाई-बहन का नाता🌷 इस सम्प्रदाय में दीक्षित होने के उपरान्त पति-पत्नी परस्पर एक दूसरे को भी बहन-भाई कहने लगते हैं।प्रश्न है यह पति-पत्नि का आपस में भाई-बहन का नाता कैसा?क्या पति-पत्नि आपस में संयम एवं ब्रह्मचर्य का जीवन नहीं बिता सकते?आश्रम के अन्दर शाखा में भाई-बहन और आश्रम से बाहर जाकर ज्यों के त्यों पति-पत्नि बन जाते हैं।आश्रम में स्थाई रुप से निवास करने वाली देवियाँ भी छुट्टी लेकर घर जाती और अपने पति के साथ विलास करती हैं।और क्या इन आश्रमों में भी यह भाई-बहन संयम से ही सदा रहते हैं?देर रात्रि गये तक इन आश्रमों में भाई लोगों का कारों में बैठकर आना-जाना क्या रहस्य पूर्ण नहीं है? 🌷ब्रह्माकुमारियाँ और ईसाईयत🌷 ब्रह्माकुमारियों के अनेक विचार एवं व्यवहार ईसाइयों से मिलते जुलते हैं।जिससे यह भी आशंका होती है कि यह कहीं प्रच्छन्न ईसाई अथवा ईसाई मिशन से सहायता प्राप्त तो नहीं? आज भारत के कोने-कोने में ईसाइयों का यह प्रचार है कि कयामत शीघ्र आने वाली है और यह सारा संसार नष्ट हो जाने वाला है और जो लोग ईसा मसीह की शरण में आ जावेंगे केवल वही बच सकेंगे,शेष सब मिट जाने वाले हैं। इसी प्रकार यह ब्रह्माकुमारी प्रचारिकायें अपनी शाखाओं में यह प्रचार करती हैं कि चतुर्युगी का अन्त सन्निकट है।संसार के मानवों की रक्षा हेतु स्वयं ब्रह्मा जी ब्रह्मलोक त्यागकर वृद्ध मानव शरीर में अर्थात् दादा लेखराज के शरीर में अलतरित हुए हैं,तथा जो इनकी शरण में आवेगा उनको वह प्रलय उपस्थित होने पर सकुशल अपने धाम ब्रह्मलोक में पहुंचा देंगे और शेष सब नष्ट हो जावेंगे।(पर दादा बेचारे स्वयं ही चल बसे!) दादाजी को ब्रह्माकुमारियाँ परम पिता अर्थात् होली फादर कहती हैं,इसी प्रकार ईसाईयों की भांति परस्पर ब्रदर्स एवं सिस्टर्स शब्द का हिन्दी में प्रयोग करती हैं। दादाजी द्वारा आबू के पाण्डु-भवन में तथा सर्वत्र जहाँ-जहाँ वह पदार्पण करते थे,ब्रह्माकुमारियों का मुख चुम्बन किया जाना एव़ गोदी में उनका लिटाना ईसाईयों की विकृत सभ्यता का प्रचार करना नहीं तो क्या है?भारतीय मर्यादाओं की दृष्टि से यह सब व्यवहार पाप है और व्यभिचार रुप है। इसी प्रकार ब्रह्माकुमारियाँ भी योग साधना ढोंग रचकर पर-पुरुषों और विशेषकर नवयुवकों के साथ आँख से आँख मिलाकर बैठती हैं।हमारी संस्कृति की दृष्टि से यह सर्वथा पाप कर्म है,और काम चेष्टा को जागृत करने वाला निन्दित व्यापार है।हमारे यहाँ तो पर नारी के मुख की और ताकना तक भी अशिष्टता मानी जाती है। विश्वस्त सूत्र से यह पता चला है कि सन् १९५० में जब दादाजी सहारनपुर पधारे थे तो अपने उतारे की कोठी में उनके उदर को मेज बनाकर ब्रह्माकुमारियों ने ताश तक खेले और दादाजी लेटे-लेटे रस लेते रहे।दादाजी को भक्त बतलाने का कष्ट करें कि यह कौन-सी यौगिक साधना थी। 🌷भारतीय संस्कृति से द्रोह🌷 आर्य संस्कृति विश्वासी भारत के प्रायः सब ही सम्प्रदायों तक ने अर्थात् शैव,शाक्त,वैष्णव,बौद्ध,सिख आदि ने वेद को विश्व का प्राचीन ज्ञान ग्रन्थ माना है,किन्तु इस ब्रह्माकुमारी सम्प्रदाय ने सबको धता बताई है। भारत में आकर वह ब्रह्माकुमारियों को अपनी पुत्रियाँ कहने लगे किन्तु उनके साथ व्यवहार वह गोपियों के साथ जैसा ही करते रहे। 🌷ब्रह्माकुमारियों का ईश्वरीय ज्ञान🌷 दादाजी द्वारा पाण्डु भवन से जो समय समय पर विज्ञप्तियाँ प्रकाशित होती हैं और शाखाओं में दादाजी के गोप-गोपी भक्ति भाव से उन्हें पढ़कर सुनाते हैं वह मुरलियां कहाती है। समय-समय पर प्रसारित इन मुरलियों में से छांटकर ८८ मुरलियाँ पृथक एक सच्ची गीता पुस्तक के नाम से प्रकाशित की गई है।मुरलियों की मूल भाषा अत्यन्त अशुद्ध एवं निम्न कोटि की है।जिससे यह पता चलता है कि दादाजी का भाषा सम्बन्धी ज्ञान अत्यन्त ही अल्प था।सम्भवतः उनको केवल लिखना और पढ़ना मात्र आता था।दादाजी वेद शास्त्र के विषय में नितान्त शून्य थे।धर्म की दुनिया में यदि आये ही थे तो कुछ अध्ययन,मनन आदि कर लेते,किन्तु उनको तो धर्म और योग की आड़ में कुछ और ही प्रसार करना था तथा बुद्धिवाद एव़ मानवता के स्थान पर अन्धविश्वास एवं संकीर्ण मतवाद का प्रसार करना ही अभीष्ट था। इन मुरलियों की संहिता को सच्ची गीता के नाम से पुकारनि आपत्तिजनक है।उस नाम से यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि योगीराज कृष्ण की गीता झूठी है। अब इस सच्ची गीता की बानगी देखें मुरली सं० ५७ के अन्त में लिखा है कि- "श्रीकृष्ण जी राम से पूर्व सत्युग में हुए हैं।सूर्यवंशी श्री नारायण ही का स्वयंवर से पहले का नाम कृष्ण है।श्रीकृष्ण ने गीता ज्ञान दिया ही नहीं,बल्कि अपने पूर्व जन्म में ब्रह्मा के रुप में मुझ (लेखराज) से गीता ज्ञान लिया।" इनके इस लेख से यह स्पष्ट है कि महाभारत का सारा इतिहिस झूठा है।इनके मत में द्वापर की सन्धि बेला में योगीराज कृष्ण हुए ही नहीं।चन्द्रवंश में इस विभूति ने जन्म ही नहीं धारण किया।तात्पर्य यह है कि ब्रह्माकुमारियों के आचार्य के मत से महाभारत के रचयिता वेद व्यास झूठे हैं।केवल इनके दादाजी सच्चे हैं जिन्होंने युक्ति तर्क प्रमाण शून्य यह गपोड़ा घड़ा है कि सूर्यवंशी नारायण नाम का कृष्ण था।कृष्ण नाम का कोई ऐतिहासिक युगपुरुष धरती पर जन्मा ही नहीं है।भारत के इतिहास को इस निर्लज्जतापूर्ण ढंग से झुठलाना,कृष्ण के अस्तित्व से इंकार करना अक्षम्य राष्ट्रीय एवं जातीय महापाप है। 🌷माता सीता का अपमान🌷 मुरली सं० ६५ में लेखराज लिखते हैं कि राम का इतिहास केवल काल्पनिक है।नाटककार ने एक आध्यात्मिक पहेली को केवल मूर्तरुप प्रदान किया है।राम नाम शिव का ही है।रावण नाम माया का है।मन उसकी लंका है और विकार ग्रस्त्र मनुष्य की आत्मा का नाम सीता है।इस प्रकार की प्रलापपूर्ण दादाजी की मान्यताएँ हैं।इसी मुरली में लिखा है कि- "रावण (माया) ने सीता(आत्मा) से भीख मांगी और जब सीता ने राम(मुझ परमात्मा) द्वारा लगाई गयी लकीर (मर्यादा) को लांघा तो रावण(माया) ने सीता का हरण कर लिया और आत्मा रुपी सीता रावण के कारागार में जीवन-बद्ध अवस्था में कैदी हो गई।" दादाजी (लेखराज) ने यदि रामायण पढ़ी होती तो लकीर लगाने वाले को राम(मुझ परमात्मा) न लिखकर लक्ष्मण (मुझ परमात्मा के भैया) लिखते।इस मुरली में ब्रह्माकुमारियों के दादाजी ने अपने को ब्रह्मा से ऊपर साक्षात् परमात्मा माना है,और अपने को ही राम भी कहा है।बिल्मीकि के राम को केवल काल्पनिक प्रतिपादित किया है। "सीता को धर्म की मर्यादा उल्लंघन करने वाली विषय वासना रत जीव कल्पित किया है।इस कल्पना के पीछे,जिसका कोई आधार नहीं दादाजी की नीच कलुषित मनोवृत्ति कार्य कर रही है। दादाजी का इस प्रकार सीता माता के सतीत्व पर चोट करना हिन्दू जाति की भावनाओं को आघात पहुँचाना है।राम एवं सीता के पवित्र इतिहास को इस प्रकार झुठलाना महान् राष्ट्र-द्रोह है।राम भारत का महान् राष्ट्र पुरुष है और मातेश्वरी सीता तप,त्याग,संयम और सदाचार की देदीप्यमयी प्रतिमा।यूरोपीय ईसाई लेखकों ने राम कृष्ण आदि के पावन इतिहास को मिटाने के लिए और हिन्दू जनता को पथ-भ्रष्ट करने के लिए महान् कुचक्र रचा है।और ब्रह्माकुमारी मत जब इस प्रकार उस कुचक्र का समर्थन करते हैं,तो क्यों न हम इस ब्रह्माकुमारी पन्थ को ईसाईयों का एजेन्ट और एजेन्सी कह सकते हैं।(और यह एक सच्चाई है।ब्रह्माकुमारी मत,हंसा मत आदि का प्रचार ईसाईयों के योजना-बद्ध षडयन्त्र का ही परिणाम है।