बुधवार, दिसंबर 30, 2020

नवबौध्द भाषा विज्ञानविदों का झूठ !!!

 नवबौध्द भाषा विज्ञानविदों का झूठ !!!

अरुण लवनिया

इस्लाम और ईसाईवादी नवबौध्द भाषा विज्ञानविद् यह साबित करने में जुटे हुये हैं वेदादि ग्रंथ बुध्द के बाद अस्तित्व में आये और सर्वप्रथम पाली में लिखे गये। ब्राह्मणों ने इसके पश्चात् पाली से संस्कृत में इनका अनुवाद किया। यह साजिश डा. अंबेडकर के नाम पर ही रचकर दलितों को सफलतापूर्वक बरगलाया भी जा रहा है।

आइये देखें डा. अंबेडकर अपनी पुस्तक 'बुध्द और उसका धम्म' के प्रथम कांड , प्रथम विभाग, जन्म से प्रवज्या, में सिध्दार्थ गौतम के बचपन तथा शिक्षा के बारे में क्या लिखते हैं:

" जिन्हें शुध्दोधन ने महामाया के स्वप्न की व्याख्या करने के लिये बुलाया था और जिन्होंने सिध्दार्थ के बारे में भविष्यवाणी की थी , वे ही आठ ब्राह्मण उसके प्रथम आचार्य हुये।"

ध्यान देने की बात है कि डा. अंबेडकर ने भी अपनी बचपन की शिक्षा को लेकर अपने जीवन की प्रथम , द्वितीय और तृतीय मधुर स्मृतियां अपने ब्राह्मण आचार्यों के साथ ही जुड़ी हुयी मानी है।

सिध्दार्थ गौतम के जन्म की कथा बताते हुये डा. अंबेडकर लिखते हैं:
" उस रात शुध्दोधन और महामाया निकट हुये और महामाया ने गर्भ धारण किया।राजकीय शैय्या पर पड़े-पड़े उसे नींद आ गयी।निद्राग्रस्त महामाया ने एक स्वप्न देखा।उसे दिखाई दिया कि चतुर्दिक् महाराजिक देवता उसकी शैया को उठा ले गये हैं।और उन्होंने उसे हिमवंत प्रदेश में एक शाल-वृक्ष के नीचे रख दिया है।वे देवता पास खड़े हैं।दूसरे दिन महामाया ने शुध्दोधन से अपने स्वप्न की चर्चा की।इस स्वप्न की व्याख्या करने में असमर्थ राजा ने स्वप्न विद्या में प्रसिध्द आठ ब्राह्मणों को बुला भेजा। उनके नाम थे राम, ध्वज, लक्ष्मण, मंत्री, कोडत्र्ज, भोज, सुयाम और सुदत्त।राजा ने उनके स्वागत की तैयारी की।उसने जमीन पर पुष्प वर्षा करवाई और उनके लिये सम्मानित आसन बिछवाये।
उसने ब्राह्मणों के पात्र सोने-चांदी से भर दिये और उन्हें घी, मधु, शक्कर, बढ़िया चावल तथा दूध से पके पकवानों से संतर्पित किया।जब ब्राह्मण खा-पीकर प्रसन्न हो गये, शुध्दोधन ने उन्हें महामाया का स्वप्न सुनाया और पूछा- ' मुझे इसका अर्थ बताओ।' ब्राह्मणों का उत्तर था- महाराज, निश्चिंत रहिये।आपके यहां एक पुत्र होगा।यदि वह घर में रहेगा तो चक्रवर्ती राजा होगा; यदि गृह त्याग कर सन्यासी होगा तो वह बुध्द बनेगा- संसार के अंधकार का नाश करने वाला।"

यह घटना इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि डा. अंबेडकर ने इसे सच माना।यदि वो ब्राह्मणों , देवताओं , स्वप्न विज्ञान के विरूध्द होते तो निश्चित रूप से इस घटना को अमान्य कर देते।जो नवबौध्द हर बात पर ब्राह्मणों को दोष देते हैं उन्हें इसपर ध्यान देना चाहिये।

इतना ही नहीं , आगे डा. अंबेडकर यह भी मानते हैं कि सिध्दार्थ को बचपन में वेदादि ग्रंथों की संपूर्ण शिक्षा भी दी गयी। वो लिखते हैं:

" जो कुछ वे (आठ ब्राह्मण) जानते थे, जब वे सब सिखा चुके, तब शुध्दोधन ने उदिच्च देश के उच्च कुलोत्पन्न प्रथम कोटि के भाषाविद् तथा वैयाकरण, वेद, वेदांग तथा उपनिषदों के पूरे जानकार सब्बमित्त को बुला भेजा।उसके हाथ पर समर्पण का जल सिंचन कर शुध्दोधन ने सब्बमित्त को ही शिक्षण के निमित्त सिध्दार्थ को सौंप दिया। वह उसका दूसरा आचार्य था। उसकी अधीनता में सिध्दार्थ ने उस समय के सभी दर्शन शास्त्रों पर अधिकार कर लिया।"

डा. अंबेडकर के ही शब्दों में यह साबित हो जाता है कि बौध्द धर्म के पूर्व ही वेदादि ग्रंथ थे। सिद्धार्थ के पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात ही बौध्द धर्म अस्तित्व में आया। जो वेद ना होते इसके पूर्व तो सिध्दार्थ ने इन शास्त्रों की बचपन में शिक्षा ली ऐसा डा. अंबेडकर का लिखना झूठा हो जाता।
अब निर्णय इन नवबौध्द भाषा विज्ञानविदों का है कि वो क्या सच मानेंगे। डा. अंबेडकर के नाम अपनी झूठ की दुकान चलाना और अंबेडकर की लिखी बातों को नकारना साथ-साथ नहीं हो सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें