आजतक के ज्ञात इतिहास में सबसे भीषण युद्ध या यूँ कहें कि पहला विश्वयुद्ध महाभारत को माना जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था और 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे.

लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए थे जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे.

शोधानुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ, उस समय श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी.

महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्याग दी थी.

इसका मतलब हुआ कि 119 वर्ष की आयु में उन्होंने देहत्याग किया था.

भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभ के संधि काल में विद्यमान थे.

ज्योतोषीय गणना के अनुसार कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था.

वर्तमान में 1936 शक संवत है.

इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष हो गए हैं.

अतः... भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत पूर्व 3144 तक है.

भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है.

कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था.

तो, आज हम जानते हैं... महाभारत युद्ध के 18 दिनों के रोचक घटनाक्रम को.

महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समंत्र पंचक तीर्थ के पास हिरण्यवती नदी (सरस्वती नदी की सहायक नदी) के तट पर डाला.

कौरवों ने कुरुक्षेत्र के पूर्वी भाग में वहां से कुछ योजन की दूरी पर एक समतल मैदान में अपना पड़ाव डाला.

दोनों ओर के शिविरों में सैनिकों के भोजन और घायलों के इलाज की उत्तम व्यवस्था थी.

हाथी, घोड़े और रथों की अलग व्यवस्था थी.

हजारों शिविरों में से प्रत्येक शिविर में प्रचुर मात्रा में खाद्य सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, यंत्र और कई वैद्य और शिल्पी वेतन देकर रखे गए.

दोनों सेनाओं के बीच में युद्ध के लिए 5 योजन (1 योजन= 8 किमी की परिधि, विष्णु पुराण के अनुसार 4 कोस या कोश= 1 योजन= 13 किमी से 16 किमी)= 40 किमी का घेरा छोड़ दिया गया था.

कौरवों की ओर थे सहयोगी जनपद:- गांधार, मद्र, सिन्ध, काम्बोज, कलिंग, सिंहल, दरद, अभीषह, मागध, पिशाच, कोसल, प्रतीच्य, बाह्लिक, उदीच्य, अंश, पल्लव, सौराष्ट्र, अवन्ति, निषाद, शूरसेन, शिबि, वसति, पौरव, तुषार, चूचुपदेश, अशवक, पाण्डय, पुलिन्द, पारद, क्षुद्रक, प्राग्ज्योतिषपुर, मेकल, कुरुविन्द, त्रिपुरा, शल, अम्बष्ठ, कैतव, यवन, त्रिगर्त, सौविर और प्राच्य.

तथा, कौरवों की ओर से ये यौद्धा लड़े थे : भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज, सुदक्षिण, बृहद्वल, दुर्योधन व उसके 99 भाई सहित अन्य हजारों यौद्धा.

जबकि, पांडवों की ओर थे ये जनपद : पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय, सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक, किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि, शबर, उद्भस, वत्स, पौण्ड्र, पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तगंण और परतगंण।
पांडवों की ओर से लड़े थे ये यौद्धा : भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, युधिष्टर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज, घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील.

इसके अलावा कुछ तटस्थ जनपद भी थे : विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया.

पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए.

उनके बनाए हुए नियम निम्नलिखित थे-
1. प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा.
2. युद्ध समाप्ति के पश्चात छल-कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे.
3. रथी रथी से, हाथी वाला हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा.
4. एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा.
5. भय से भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा.
6. जो वीर निहत्था हो जाएगा उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा.
7. युद्ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अस्त्र नहीं उठाएगा.

 प्रथम दिन का युद्ध : प्रथम दिन एक ओर जहां कृष्ण-अर्जुन अपने रथ के साथ दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़े थे और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे इसी दौरान भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है.

इस समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी तरफ से भी चाहे युद्ध करे.

इस घोषणा के बाद धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़ पांडवों के खेमे में चले गया.

ऐसा युधिष्ठिर के क्रियाकलापों के कारण संभव हुआ था.
श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध की घोषणा की.

इस दिन 10 हजार सैनिकों की मृत्यु हुई. 
तथा, भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया.
अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया.

पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा.
विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मारे गए.

भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया.
👉कौन मजबूत रहा : पहला दिन पांडव पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा और कौरव पक्ष मजबूत रहा.

 दूसरे दिन का युद्ध : कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन तथा भीष्म, धृष्टद्युम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध हुआ.
सात्यकि ने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया.
द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया और उसके कई धनुष काट दिए.
भीष्म द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया.

इस दिन भीम का कलिंगों और निषादों से युद्ध हुआ तथा भीम द्वारा सहस्रों कलिंग और निषाद मार गिराए गए, अर्जुन ने भी भीष्म को भीषण संहार मचाने से रोके रखा.

कौरवों की ओर से लड़ने वाले कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर योद्धा मार गए.

👉कौन मजबूत रहा : दूसरे दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा.

 तीसरा दिन : कौरवों ने गरूड़ तथा पांडवों ने अर्धचंद्राकार जैसी सैन्य व्यूह रचना की.
कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की ओर से भीम व अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे.
इस दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया.
यह देखकर भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं.
श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं... 
लेकिन, अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना का भीषण संहार करते हैं.
वे एक दिन में ही समस्त प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को मार गिराते हैं.

भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया और तभी उसका सारथी रथ को भगा ले गया.
भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया.
इस दिन भी कौरवों को ही अधिक क्षति उठाना पड़ती है.
उनके प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर योद्धा मारे जाते हैं.
👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

 चौथा दिन : चौथे दिन भी कौरव पक्ष को भारी नुकसान हुआ.

इस दिन कौरवों ने अर्जुन को अपने बाणों से ढंक दिया, परंतु अर्जुन ने सभी को मार भगाया.

भीम ने तो इस दिन कौरव सेना में हाहाकार मचा दी और दुर्योधन ने अपनी गज सेना भीम को मारने के लिए भेजी... परंतु, घटोत्कच की सहायता से भीम ने उन सबका नाश कर दिया और 14 कौरवों को भी मार गिराया.
परंतु राजा भगदत्त द्वारा जल्द ही भीम पर नियंत्रण पा लिया गया.

बाद में भीष्म को भी अर्जुन और भीम ने भयंकर युद्ध कर कड़ी चुनौती दी.
👉कौन मजबूत रहा : इस दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा.

 पांचवें दिन का युद्ध : श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद युद्ध की शुरुआत हुई और फिर भयंकर मार-काट मची.

दोनों ही पक्षों के सैनिकों का भारी संख्या में वध हुआ.
इस दिन भीष्म ने पांडव सेना को अपने बाणों से ढंक दिया.
उन पर रोक लगाने के लिए क्रमशः अर्जुन और भीम ने उनसे भयंकर युद्ध किया.

सात्यकि ने द्रोणाचार्य को भीषण संहार करने से रोके रखा.

भीष्म द्वारा सात्यकि को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया गया.
इसमें, सात्यकि के 10 पुत्र मारे गए.

👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

छठे दिन का युद्ध : कौरवों ने क्रोंचव्यूह तथा पांडवों ने मकरव्यूह के आकार की सेना कुरुक्षेत्र में उतारी.
भयंकर युद्ध के बाद द्रोण का सारथी मारा गया.
युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित होता रहा, परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे.
अंत में भीष्म द्वारा पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया.

👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

सातवें दिन का युद्ध : सातवें दिन कौरवों द्वारा मंडलाकार व्यूह की रचना और पांडवों ने वज्र व्यूह की आकृति में सेना लगाई.
मंडलाकार में एक हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्वारोही, एक अश्वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस सैनिक लगाए गए थे 
सेना के मध्य दुर्योधन था.
वज्राकार में दसों मोर्चों पर घमासान युद्ध हुआ.
इस दिन अर्जुन अपनी युक्ति से कौरव सेना में भगदड़ मचा देता है.
धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है.
अर्जुन पुत्र इरावान द्वारा विन्द और अनुविन्द को हरा दिया जाता है और भगदत्त घटोत्कच को और नकुल सहदेव मिलकर शल्य को युद्ध क्षेत्र से भगा देते हैं.

यह देखकर भीष्म एक बार फिर से पांडव सेना का भयंकर संहार करते हैं.

विराट पुत्र शंख के मारे जाने से इस दिन कौरव पक्ष की क्षति होती है.

👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

 आठवें दिन का युद्ध : कौरवों ने कछुआ व्यूह तो पांडवों ने तीन शिखरों वाला व्यूह रचा.
पांडव पुत्र भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देते हैं.
अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी के पुत्र इरावान का बकासुर के पुत्र आष्ट्रयश्रंग (अम्बलुष) के द्वारा वध कर दिया जाता है.
घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग परंतु बंगनरेश ने दुर्योधन को हटाकर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश की मृत्यु हो जाती है.
इस घटना से दुर्योधन के मन में मायावी घटोत्कच के प्रति भय व्याप्त हो जाता है.
तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच को हराकर भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है.
दिन के अंत तक भीमसेन धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है.

पांडव पक्ष की क्षति : अर्जुन पुत्र इरावान का अम्बलुष द्वारा वध.
कौरव पक्ष की क्षति : धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का भीम द्वारा वध.
👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट किया और दोनों की पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा.
हालांकि कौरवों को ज्यादा क्षति पहुंची.

 नौवें दिन का युद्ध : कृष्ण के उपदेश के बाद भयंकर युद्ध हुआ जिसके चलते भीष्म ने बहादुरी दिखाते हुए अर्जुन को घायल कर उनके रथ को जर्जर कर दिया.
युद्ध में आखिरकार भीष्म के भीषण संहार को रोकने के लिए कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है.
उनके जर्जर रथ को देखकर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्म पर झपटते हैं..लेकिन, फिर वे शांत हो जाते हैं.
परंतु इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं.
👉कौन मजबूत रहा : कौरव

 दसवां दिन : भीष्म द्वारा बड़े पैमाने पर पांडवों की सेना को मार देने से घबराए पांडव पक्ष में भय फैल जाता है...तब, श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते हैं.
भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं.
इसके बाद भीष्म पांचाल तथा मत्स्य सेना का भयंकर संहार कर देते हैं. 
फिर पांडव पक्ष युद्ध क्षेत्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए लगा देते हैं.

युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिए.
इस दौरान बड़े ही बेमन से अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया.

भीष्म बाणों की शरशय्या पर लेट गए.
भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है.

पांडव पक्ष की क्षति : शतानीक
कौरव पक्ष की क्षति : भीष्म
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 ग्यारहवें दिन : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं.
ग्यारहवें दिन सुशर्मा तथा अर्जुन, शल्य तथा भीम, सात्यकि तथा कर्ण और सहदेव तथा शकुनि के मध्य युद्ध हुआ.
कर्ण भी इस दिन पांडव सेना का भारी संहार करता है.
दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि वे युधिष्ठिर को बंदी बना लें तो युद्ध अपने आप खत्म हो जाएगा, तो जब दिन के अंत में द्रोण युधिष्ठिर को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि अर्जुन आकर अपने बाणों की वर्षा से वर्षा से उन्हें रोक देता है.
नकुल, युधिष्ठिर के साथ थे व अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए.

इस प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके.
पांडव पक्ष की क्षति : विराट का वध
👉कौन मजबूत रहा : कौरव

 बारहवें दिन का युद्ध : कल के युद्ध में अर्जुन के कारण युधिष्ठिर को बंदी न बना पाने के कारण शकुनि व दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने के लिए त्रिगर्त देश के राजा को उससे युद्ध कर उसे वहीं युद्ध में व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं और वे ऐसा करते भी हैं, परंतु एक बार फिर अर्जुन समय पर पहुंच जाता है एवं द्रोण असफल हो जाते हैं.

असल में होता यह है कि जब त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं तब सात्यकि, युधिष्ठिर के रक्षक थे.

वापस लौटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर (पूर्वोत्तर का कोई राज्य) के राजा भगदत्त को अर्धचंद्र को बाण से मार डाला.
सात्यकि ने द्रोण के रथ का पहिया काटा और उसके घोड़े मार डाले.

द्रोण ने अर्धचंद्र बाण द्वारा सात्यकि का सिर काट लिया.

सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे.

युद्ध भूमि में सात्यकि को भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी. 
हर बार सात्यकि को कृष्ण और अर्जुन ने बचाया.

पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद
कौरव पक्ष की क्षति : त्रिगर्त नरेश
👉कौन मजबूत रहा : दोनों लगभग बराबर रहे.

 तेरहवें दिन : कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की. 
इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन को व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं.

भगदत्त युद्ध में एक बार फिर से पांडव वीरों को भगाकर भीम को एक बार फिर हरा देते हैं फिर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करते हैं.

श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर ले उससे अर्जुन की रक्षा करते हैं.
अंततः अर्जुन भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर देता है.

इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, परंतु निकलना नहीं जानता था.

अतः, अर्जुन युधिष्ठिर, भीम आदि को उसके साथ भेजता है.. परंतु, चक्रव्यूह के द्वार पर वे सबके सब जयद्रथ द्वारा शिव के वरदान के कारण रोक दिए जाते हैं और केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है.

ये लोग करते हैं अभिमन्यु का वध :

कर्ण के कहने पर सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि ने एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया.

लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी.
इससे दोनों की उसी समय मृत्यु हो गई.
अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार सुनकर जयद्रथ को कल सूर्यास्त से पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की अन्यथा अग्नि समाधि ले लेने का वचन दिया.

पांडव पक्ष की क्षति : अभिमन्यु
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 चौदहवें दिन : अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो जाता है और फिर वे यह योजना बनाते हैं कि आज युद्ध में जयद्रथ को बचाने के लिए सब कौरव योद्धा अपनी जान की बाजी लगा देंगे.
द्रोण जयद्रथ को बचाने का पूर्ण आश्वासन देते हैं और उसे सेना के पिछले भाग में छिपा देते हैं.
जब युद्ध शुरू होता है तो भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था तभी अर्जुन ने भूरिश्रवा के हाथ काट दिए, वह धरती पर गिर पड़ा तभी सात्यकि ने उसका सिर काट दिया.
द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं.
तब कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं और सूर्यास्त होते देख अर्जुन अग्नि समाधि की तैयारी करने लगे जाते हैं. 
छिपा हुआ जयद्रथ जिज्ञासावश अर्जुन को अग्नि समाधि लेते देखने के लिए बाहर आकर हंसने लगता है, उसी समय श्रीकृष्ण की कृपा से सूर्य पुन: निकल आता है और तुरंत ही अर्जुन सबको रौंदते हुए कृष्ण द्वारा किए गए क्षद्म सूर्यास्त के कारण बाहर आए जयद्रथ को मारकर उसका मस्तक उसके पिता के गोद में गिरा देते हैं.

पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद, विराट
कौरव पक्ष की क्षति : जयद्रथ, 
भगदत्त

 पंद्रहवें दिन : द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के खेमे में दहशत फैल गई.
पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी.
पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा.

इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’... लेकिन, युधिष्ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे.

तब अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया.
इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’.

जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।’

परंतु, श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द ‘हाथी’ नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया.

यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए.

यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला.
कौरव पक्ष की क्षति : द्रोण
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 सोलहवें दिन का युद्ध : द्रोण के छल से वध किए जाने के बाद कौरवों की ओर से कर्ण को सेनापति बनाया जाता है. 
कर्ण पांडव सेना का भयंकर संहार करता है और वह नकुल व सहदेव को युद्ध में हरा देता है, परंतु कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता.
फिर अर्जुन के साथ भी भयंकर संग्राम करता है.
दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अमोघ शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर दिया.
यह अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन के लिए बचाकर रखी थी लेकिन घटोत्कच से घबराए दुर्योधन ने कर्ण से इस शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए कहा.
यह ऐसी शक्ति थी जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था.

कर्ण ने इसे अर्जुन का वध करने के लिए बचाकर रखी थी.
इस बीच भीम का युद्ध दुःशासन के साथ होता है और वह दु:शासन का वध कर उसकी छाती का रक्त पीता है और अंत में सूर्यास्त हो जाता है.
कौरव पक्ष की क्षति : दुःशासन
👉कौन मजबूत रहा : दोनों लगभग बराबर रहे.

 सत्रहवें दिन : शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया. 
इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता.

बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है.
कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है.

कर्ण के रथ का पहिया धंसने पर श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर दिया जाता है.

इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं और, उनका मनोबल टूट जाता है.

फिर, शल्य प्रधान सेनापति बनाए गए. परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं.

कौरव पक्ष की क्षति : कर्ण, शल्य और दुर्योधन के 22 भाई मारे जाते हैं.
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 अठारहवें दिन का युद्ध : अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचे- अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा.

इसी दिन अश्वथामा द्वारा पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई.
सेनापति अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य के कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया गया.

अश्वत्थामा ने सभी पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि का वध किया.
पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्ध भूमि श्मशान भूमि में बदल गई.

यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला.

इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए भाइयों को मार देता है तथा सहदेव शकुनि को मार देता है और अपनी पराजय हुई जान दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तंभ में जा छुपता है.

इसी दौरान बलराम तीर्थयात्रा से वापस आ गए और दुर्योधन को निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया.

छिपे हुए दुर्योधन को पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है और छल से जंघा पर प्रहार किए जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है.

🚩इस तरह पांडव विजयी होते हैं।

⚔️पांडव पक्ष की क्षति : द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी
⚔️कौरव पक्ष की क्षति : दुर्योधन
कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में मारे गए.

पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत, सात्यकि के दस पुत्र, अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर।
कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र के दुर्योधन सहित सभी पुत्र, भीष्म, त्रिगर्त नरेश, जयद्रथ, भगदत्त, द्रौण, दुःशासन, कर्ण, शल्य आदि सभी युद्ध में मारे गए थे.

युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया था.

इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया.

कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ.

बच गए योद्धा : महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे जिनके नाम हैं- कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा....

जबकि, पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।
संदर्भ : महाभारत

जय श्री कृष्ण...!!