गुरुवार, दिसंबर 31, 2020

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ” दिनकर “

 

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ” दिनकर “
-:कविता:-
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं💐

बुधवार, दिसंबर 30, 2020

नवबौध्द भाषा विज्ञानविदों का झूठ !!!

 नवबौध्द भाषा विज्ञानविदों का झूठ !!!

अरुण लवनिया

इस्लाम और ईसाईवादी नवबौध्द भाषा विज्ञानविद् यह साबित करने में जुटे हुये हैं वेदादि ग्रंथ बुध्द के बाद अस्तित्व में आये और सर्वप्रथम पाली में लिखे गये। ब्राह्मणों ने इसके पश्चात् पाली से संस्कृत में इनका अनुवाद किया। यह साजिश डा. अंबेडकर के नाम पर ही रचकर दलितों को सफलतापूर्वक बरगलाया भी जा रहा है।

आइये देखें डा. अंबेडकर अपनी पुस्तक 'बुध्द और उसका धम्म' के प्रथम कांड , प्रथम विभाग, जन्म से प्रवज्या, में सिध्दार्थ गौतम के बचपन तथा शिक्षा के बारे में क्या लिखते हैं:

" जिन्हें शुध्दोधन ने महामाया के स्वप्न की व्याख्या करने के लिये बुलाया था और जिन्होंने सिध्दार्थ के बारे में भविष्यवाणी की थी , वे ही आठ ब्राह्मण उसके प्रथम आचार्य हुये।"

ध्यान देने की बात है कि डा. अंबेडकर ने भी अपनी बचपन की शिक्षा को लेकर अपने जीवन की प्रथम , द्वितीय और तृतीय मधुर स्मृतियां अपने ब्राह्मण आचार्यों के साथ ही जुड़ी हुयी मानी है।

सिध्दार्थ गौतम के जन्म की कथा बताते हुये डा. अंबेडकर लिखते हैं:
" उस रात शुध्दोधन और महामाया निकट हुये और महामाया ने गर्भ धारण किया।राजकीय शैय्या पर पड़े-पड़े उसे नींद आ गयी।निद्राग्रस्त महामाया ने एक स्वप्न देखा।उसे दिखाई दिया कि चतुर्दिक् महाराजिक देवता उसकी शैया को उठा ले गये हैं।और उन्होंने उसे हिमवंत प्रदेश में एक शाल-वृक्ष के नीचे रख दिया है।वे देवता पास खड़े हैं।दूसरे दिन महामाया ने शुध्दोधन से अपने स्वप्न की चर्चा की।इस स्वप्न की व्याख्या करने में असमर्थ राजा ने स्वप्न विद्या में प्रसिध्द आठ ब्राह्मणों को बुला भेजा। उनके नाम थे राम, ध्वज, लक्ष्मण, मंत्री, कोडत्र्ज, भोज, सुयाम और सुदत्त।राजा ने उनके स्वागत की तैयारी की।उसने जमीन पर पुष्प वर्षा करवाई और उनके लिये सम्मानित आसन बिछवाये।
उसने ब्राह्मणों के पात्र सोने-चांदी से भर दिये और उन्हें घी, मधु, शक्कर, बढ़िया चावल तथा दूध से पके पकवानों से संतर्पित किया।जब ब्राह्मण खा-पीकर प्रसन्न हो गये, शुध्दोधन ने उन्हें महामाया का स्वप्न सुनाया और पूछा- ' मुझे इसका अर्थ बताओ।' ब्राह्मणों का उत्तर था- महाराज, निश्चिंत रहिये।आपके यहां एक पुत्र होगा।यदि वह घर में रहेगा तो चक्रवर्ती राजा होगा; यदि गृह त्याग कर सन्यासी होगा तो वह बुध्द बनेगा- संसार के अंधकार का नाश करने वाला।"

यह घटना इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि डा. अंबेडकर ने इसे सच माना।यदि वो ब्राह्मणों , देवताओं , स्वप्न विज्ञान के विरूध्द होते तो निश्चित रूप से इस घटना को अमान्य कर देते।जो नवबौध्द हर बात पर ब्राह्मणों को दोष देते हैं उन्हें इसपर ध्यान देना चाहिये।

इतना ही नहीं , आगे डा. अंबेडकर यह भी मानते हैं कि सिध्दार्थ को बचपन में वेदादि ग्रंथों की संपूर्ण शिक्षा भी दी गयी। वो लिखते हैं:

" जो कुछ वे (आठ ब्राह्मण) जानते थे, जब वे सब सिखा चुके, तब शुध्दोधन ने उदिच्च देश के उच्च कुलोत्पन्न प्रथम कोटि के भाषाविद् तथा वैयाकरण, वेद, वेदांग तथा उपनिषदों के पूरे जानकार सब्बमित्त को बुला भेजा।उसके हाथ पर समर्पण का जल सिंचन कर शुध्दोधन ने सब्बमित्त को ही शिक्षण के निमित्त सिध्दार्थ को सौंप दिया। वह उसका दूसरा आचार्य था। उसकी अधीनता में सिध्दार्थ ने उस समय के सभी दर्शन शास्त्रों पर अधिकार कर लिया।"

डा. अंबेडकर के ही शब्दों में यह साबित हो जाता है कि बौध्द धर्म के पूर्व ही वेदादि ग्रंथ थे। सिद्धार्थ के पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात ही बौध्द धर्म अस्तित्व में आया। जो वेद ना होते इसके पूर्व तो सिध्दार्थ ने इन शास्त्रों की बचपन में शिक्षा ली ऐसा डा. अंबेडकर का लिखना झूठा हो जाता।
अब निर्णय इन नवबौध्द भाषा विज्ञानविदों का है कि वो क्या सच मानेंगे। डा. अंबेडकर के नाम अपनी झूठ की दुकान चलाना और अंबेडकर की लिखी बातों को नकारना साथ-साथ नहीं हो सकता है।

इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष हो गए हैं.

 

आजतक के ज्ञात इतिहास में सबसे भीषण युद्ध या यूँ कहें कि पहला विश्वयुद्ध महाभारत को माना जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था और 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे.

लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए थे जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे.

शोधानुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ, उस समय श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी.

महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्याग दी थी.

इसका मतलब हुआ कि 119 वर्ष की आयु में उन्होंने देहत्याग किया था.

भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभ के संधि काल में विद्यमान थे.

ज्योतोषीय गणना के अनुसार कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था.

वर्तमान में 1936 शक संवत है.

इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष हो गए हैं.

अतः... भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत पूर्व 3144 तक है.

भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है.

कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था.

तो, आज हम जानते हैं... महाभारत युद्ध के 18 दिनों के रोचक घटनाक्रम को.

महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समंत्र पंचक तीर्थ के पास हिरण्यवती नदी (सरस्वती नदी की सहायक नदी) के तट पर डाला.

कौरवों ने कुरुक्षेत्र के पूर्वी भाग में वहां से कुछ योजन की दूरी पर एक समतल मैदान में अपना पड़ाव डाला.

दोनों ओर के शिविरों में सैनिकों के भोजन और घायलों के इलाज की उत्तम व्यवस्था थी.

हाथी, घोड़े और रथों की अलग व्यवस्था थी.

हजारों शिविरों में से प्रत्येक शिविर में प्रचुर मात्रा में खाद्य सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, यंत्र और कई वैद्य और शिल्पी वेतन देकर रखे गए.

दोनों सेनाओं के बीच में युद्ध के लिए 5 योजन (1 योजन= 8 किमी की परिधि, विष्णु पुराण के अनुसार 4 कोस या कोश= 1 योजन= 13 किमी से 16 किमी)= 40 किमी का घेरा छोड़ दिया गया था.

कौरवों की ओर थे सहयोगी जनपद:- गांधार, मद्र, सिन्ध, काम्बोज, कलिंग, सिंहल, दरद, अभीषह, मागध, पिशाच, कोसल, प्रतीच्य, बाह्लिक, उदीच्य, अंश, पल्लव, सौराष्ट्र, अवन्ति, निषाद, शूरसेन, शिबि, वसति, पौरव, तुषार, चूचुपदेश, अशवक, पाण्डय, पुलिन्द, पारद, क्षुद्रक, प्राग्ज्योतिषपुर, मेकल, कुरुविन्द, त्रिपुरा, शल, अम्बष्ठ, कैतव, यवन, त्रिगर्त, सौविर और प्राच्य.

तथा, कौरवों की ओर से ये यौद्धा लड़े थे : भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज, सुदक्षिण, बृहद्वल, दुर्योधन व उसके 99 भाई सहित अन्य हजारों यौद्धा.

जबकि, पांडवों की ओर थे ये जनपद : पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय, सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक, किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि, शबर, उद्भस, वत्स, पौण्ड्र, पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तगंण और परतगंण।
पांडवों की ओर से लड़े थे ये यौद्धा : भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, युधिष्टर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज, घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील.

इसके अलावा कुछ तटस्थ जनपद भी थे : विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया.

पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए.

उनके बनाए हुए नियम निम्नलिखित थे-
1. प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा.
2. युद्ध समाप्ति के पश्चात छल-कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे.
3. रथी रथी से, हाथी वाला हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा.
4. एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा.
5. भय से भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा.
6. जो वीर निहत्था हो जाएगा उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा.
7. युद्ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अस्त्र नहीं उठाएगा.

 प्रथम दिन का युद्ध : प्रथम दिन एक ओर जहां कृष्ण-अर्जुन अपने रथ के साथ दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़े थे और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे इसी दौरान भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है.

इस समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी तरफ से भी चाहे युद्ध करे.

इस घोषणा के बाद धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़ पांडवों के खेमे में चले गया.

ऐसा युधिष्ठिर के क्रियाकलापों के कारण संभव हुआ था.
श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध की घोषणा की.

इस दिन 10 हजार सैनिकों की मृत्यु हुई. 
तथा, भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया.
अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया.

पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा.
विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मारे गए.

भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया.
👉कौन मजबूत रहा : पहला दिन पांडव पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा और कौरव पक्ष मजबूत रहा.

 दूसरे दिन का युद्ध : कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन तथा भीष्म, धृष्टद्युम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध हुआ.
सात्यकि ने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया.
द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया और उसके कई धनुष काट दिए.
भीष्म द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया.

इस दिन भीम का कलिंगों और निषादों से युद्ध हुआ तथा भीम द्वारा सहस्रों कलिंग और निषाद मार गिराए गए, अर्जुन ने भी भीष्म को भीषण संहार मचाने से रोके रखा.

कौरवों की ओर से लड़ने वाले कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर योद्धा मार गए.

👉कौन मजबूत रहा : दूसरे दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा.

 तीसरा दिन : कौरवों ने गरूड़ तथा पांडवों ने अर्धचंद्राकार जैसी सैन्य व्यूह रचना की.
कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की ओर से भीम व अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे.
इस दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया.
यह देखकर भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं.
श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं... 
लेकिन, अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना का भीषण संहार करते हैं.
वे एक दिन में ही समस्त प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को मार गिराते हैं.

भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया और तभी उसका सारथी रथ को भगा ले गया.
भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया.
इस दिन भी कौरवों को ही अधिक क्षति उठाना पड़ती है.
उनके प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर योद्धा मारे जाते हैं.
👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

 चौथा दिन : चौथे दिन भी कौरव पक्ष को भारी नुकसान हुआ.

इस दिन कौरवों ने अर्जुन को अपने बाणों से ढंक दिया, परंतु अर्जुन ने सभी को मार भगाया.

भीम ने तो इस दिन कौरव सेना में हाहाकार मचा दी और दुर्योधन ने अपनी गज सेना भीम को मारने के लिए भेजी... परंतु, घटोत्कच की सहायता से भीम ने उन सबका नाश कर दिया और 14 कौरवों को भी मार गिराया.
परंतु राजा भगदत्त द्वारा जल्द ही भीम पर नियंत्रण पा लिया गया.

बाद में भीष्म को भी अर्जुन और भीम ने भयंकर युद्ध कर कड़ी चुनौती दी.
👉कौन मजबूत रहा : इस दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा.

 पांचवें दिन का युद्ध : श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद युद्ध की शुरुआत हुई और फिर भयंकर मार-काट मची.

दोनों ही पक्षों के सैनिकों का भारी संख्या में वध हुआ.
इस दिन भीष्म ने पांडव सेना को अपने बाणों से ढंक दिया.
उन पर रोक लगाने के लिए क्रमशः अर्जुन और भीम ने उनसे भयंकर युद्ध किया.

सात्यकि ने द्रोणाचार्य को भीषण संहार करने से रोके रखा.

भीष्म द्वारा सात्यकि को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया गया.
इसमें, सात्यकि के 10 पुत्र मारे गए.

👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

छठे दिन का युद्ध : कौरवों ने क्रोंचव्यूह तथा पांडवों ने मकरव्यूह के आकार की सेना कुरुक्षेत्र में उतारी.
भयंकर युद्ध के बाद द्रोण का सारथी मारा गया.
युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित होता रहा, परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे.
अंत में भीष्म द्वारा पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया.

👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

सातवें दिन का युद्ध : सातवें दिन कौरवों द्वारा मंडलाकार व्यूह की रचना और पांडवों ने वज्र व्यूह की आकृति में सेना लगाई.
मंडलाकार में एक हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्वारोही, एक अश्वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस सैनिक लगाए गए थे 
सेना के मध्य दुर्योधन था.
वज्राकार में दसों मोर्चों पर घमासान युद्ध हुआ.
इस दिन अर्जुन अपनी युक्ति से कौरव सेना में भगदड़ मचा देता है.
धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है.
अर्जुन पुत्र इरावान द्वारा विन्द और अनुविन्द को हरा दिया जाता है और भगदत्त घटोत्कच को और नकुल सहदेव मिलकर शल्य को युद्ध क्षेत्र से भगा देते हैं.

यह देखकर भीष्म एक बार फिर से पांडव सेना का भयंकर संहार करते हैं.

विराट पुत्र शंख के मारे जाने से इस दिन कौरव पक्ष की क्षति होती है.

👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया.

 आठवें दिन का युद्ध : कौरवों ने कछुआ व्यूह तो पांडवों ने तीन शिखरों वाला व्यूह रचा.
पांडव पुत्र भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देते हैं.
अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी के पुत्र इरावान का बकासुर के पुत्र आष्ट्रयश्रंग (अम्बलुष) के द्वारा वध कर दिया जाता है.
घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग परंतु बंगनरेश ने दुर्योधन को हटाकर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश की मृत्यु हो जाती है.
इस घटना से दुर्योधन के मन में मायावी घटोत्कच के प्रति भय व्याप्त हो जाता है.
तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच को हराकर भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है.
दिन के अंत तक भीमसेन धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है.

पांडव पक्ष की क्षति : अर्जुन पुत्र इरावान का अम्बलुष द्वारा वध.
कौरव पक्ष की क्षति : धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का भीम द्वारा वध.
👉कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट किया और दोनों की पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा.
हालांकि कौरवों को ज्यादा क्षति पहुंची.

 नौवें दिन का युद्ध : कृष्ण के उपदेश के बाद भयंकर युद्ध हुआ जिसके चलते भीष्म ने बहादुरी दिखाते हुए अर्जुन को घायल कर उनके रथ को जर्जर कर दिया.
युद्ध में आखिरकार भीष्म के भीषण संहार को रोकने के लिए कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है.
उनके जर्जर रथ को देखकर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्म पर झपटते हैं..लेकिन, फिर वे शांत हो जाते हैं.
परंतु इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं.
👉कौन मजबूत रहा : कौरव

 दसवां दिन : भीष्म द्वारा बड़े पैमाने पर पांडवों की सेना को मार देने से घबराए पांडव पक्ष में भय फैल जाता है...तब, श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते हैं.
भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं.
इसके बाद भीष्म पांचाल तथा मत्स्य सेना का भयंकर संहार कर देते हैं. 
फिर पांडव पक्ष युद्ध क्षेत्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए लगा देते हैं.

युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिए.
इस दौरान बड़े ही बेमन से अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया.

भीष्म बाणों की शरशय्या पर लेट गए.
भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है.

पांडव पक्ष की क्षति : शतानीक
कौरव पक्ष की क्षति : भीष्म
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 ग्यारहवें दिन : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं.
ग्यारहवें दिन सुशर्मा तथा अर्जुन, शल्य तथा भीम, सात्यकि तथा कर्ण और सहदेव तथा शकुनि के मध्य युद्ध हुआ.
कर्ण भी इस दिन पांडव सेना का भारी संहार करता है.
दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि वे युधिष्ठिर को बंदी बना लें तो युद्ध अपने आप खत्म हो जाएगा, तो जब दिन के अंत में द्रोण युधिष्ठिर को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि अर्जुन आकर अपने बाणों की वर्षा से वर्षा से उन्हें रोक देता है.
नकुल, युधिष्ठिर के साथ थे व अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए.

इस प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके.
पांडव पक्ष की क्षति : विराट का वध
👉कौन मजबूत रहा : कौरव

 बारहवें दिन का युद्ध : कल के युद्ध में अर्जुन के कारण युधिष्ठिर को बंदी न बना पाने के कारण शकुनि व दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने के लिए त्रिगर्त देश के राजा को उससे युद्ध कर उसे वहीं युद्ध में व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं और वे ऐसा करते भी हैं, परंतु एक बार फिर अर्जुन समय पर पहुंच जाता है एवं द्रोण असफल हो जाते हैं.

असल में होता यह है कि जब त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं तब सात्यकि, युधिष्ठिर के रक्षक थे.

वापस लौटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर (पूर्वोत्तर का कोई राज्य) के राजा भगदत्त को अर्धचंद्र को बाण से मार डाला.
सात्यकि ने द्रोण के रथ का पहिया काटा और उसके घोड़े मार डाले.

द्रोण ने अर्धचंद्र बाण द्वारा सात्यकि का सिर काट लिया.

सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे.

युद्ध भूमि में सात्यकि को भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी. 
हर बार सात्यकि को कृष्ण और अर्जुन ने बचाया.

पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद
कौरव पक्ष की क्षति : त्रिगर्त नरेश
👉कौन मजबूत रहा : दोनों लगभग बराबर रहे.

 तेरहवें दिन : कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की. 
इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन को व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं.

भगदत्त युद्ध में एक बार फिर से पांडव वीरों को भगाकर भीम को एक बार फिर हरा देते हैं फिर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करते हैं.

श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर ले उससे अर्जुन की रक्षा करते हैं.
अंततः अर्जुन भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर देता है.

इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, परंतु निकलना नहीं जानता था.

अतः, अर्जुन युधिष्ठिर, भीम आदि को उसके साथ भेजता है.. परंतु, चक्रव्यूह के द्वार पर वे सबके सब जयद्रथ द्वारा शिव के वरदान के कारण रोक दिए जाते हैं और केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है.

ये लोग करते हैं अभिमन्यु का वध :

कर्ण के कहने पर सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि ने एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया.

लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी.
इससे दोनों की उसी समय मृत्यु हो गई.
अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार सुनकर जयद्रथ को कल सूर्यास्त से पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की अन्यथा अग्नि समाधि ले लेने का वचन दिया.

पांडव पक्ष की क्षति : अभिमन्यु
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 चौदहवें दिन : अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो जाता है और फिर वे यह योजना बनाते हैं कि आज युद्ध में जयद्रथ को बचाने के लिए सब कौरव योद्धा अपनी जान की बाजी लगा देंगे.
द्रोण जयद्रथ को बचाने का पूर्ण आश्वासन देते हैं और उसे सेना के पिछले भाग में छिपा देते हैं.
जब युद्ध शुरू होता है तो भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था तभी अर्जुन ने भूरिश्रवा के हाथ काट दिए, वह धरती पर गिर पड़ा तभी सात्यकि ने उसका सिर काट दिया.
द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं.
तब कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं और सूर्यास्त होते देख अर्जुन अग्नि समाधि की तैयारी करने लगे जाते हैं. 
छिपा हुआ जयद्रथ जिज्ञासावश अर्जुन को अग्नि समाधि लेते देखने के लिए बाहर आकर हंसने लगता है, उसी समय श्रीकृष्ण की कृपा से सूर्य पुन: निकल आता है और तुरंत ही अर्जुन सबको रौंदते हुए कृष्ण द्वारा किए गए क्षद्म सूर्यास्त के कारण बाहर आए जयद्रथ को मारकर उसका मस्तक उसके पिता के गोद में गिरा देते हैं.

पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद, विराट
कौरव पक्ष की क्षति : जयद्रथ, 
भगदत्त

 पंद्रहवें दिन : द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के खेमे में दहशत फैल गई.
पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी.
पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा.

इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’... लेकिन, युधिष्ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे.

तब अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया.
इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’.

जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।’

परंतु, श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द ‘हाथी’ नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया.

यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए.

यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला.
कौरव पक्ष की क्षति : द्रोण
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 सोलहवें दिन का युद्ध : द्रोण के छल से वध किए जाने के बाद कौरवों की ओर से कर्ण को सेनापति बनाया जाता है. 
कर्ण पांडव सेना का भयंकर संहार करता है और वह नकुल व सहदेव को युद्ध में हरा देता है, परंतु कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता.
फिर अर्जुन के साथ भी भयंकर संग्राम करता है.
दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अमोघ शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर दिया.
यह अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन के लिए बचाकर रखी थी लेकिन घटोत्कच से घबराए दुर्योधन ने कर्ण से इस शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए कहा.
यह ऐसी शक्ति थी जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था.

कर्ण ने इसे अर्जुन का वध करने के लिए बचाकर रखी थी.
इस बीच भीम का युद्ध दुःशासन के साथ होता है और वह दु:शासन का वध कर उसकी छाती का रक्त पीता है और अंत में सूर्यास्त हो जाता है.
कौरव पक्ष की क्षति : दुःशासन
👉कौन मजबूत रहा : दोनों लगभग बराबर रहे.

 सत्रहवें दिन : शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया. 
इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता.

बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है.
कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है.

कर्ण के रथ का पहिया धंसने पर श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर दिया जाता है.

इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं और, उनका मनोबल टूट जाता है.

फिर, शल्य प्रधान सेनापति बनाए गए. परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं.

कौरव पक्ष की क्षति : कर्ण, शल्य और दुर्योधन के 22 भाई मारे जाते हैं.
👉कौन मजबूत रहा : पांडव

 अठारहवें दिन का युद्ध : अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचे- अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा.

इसी दिन अश्वथामा द्वारा पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई.
सेनापति अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य के कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया गया.

अश्वत्थामा ने सभी पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि का वध किया.
पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्ध भूमि श्मशान भूमि में बदल गई.

यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला.

इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए भाइयों को मार देता है तथा सहदेव शकुनि को मार देता है और अपनी पराजय हुई जान दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तंभ में जा छुपता है.

इसी दौरान बलराम तीर्थयात्रा से वापस आ गए और दुर्योधन को निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया.

छिपे हुए दुर्योधन को पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है और छल से जंघा पर प्रहार किए जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है.

🚩इस तरह पांडव विजयी होते हैं।

⚔️पांडव पक्ष की क्षति : द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी
⚔️कौरव पक्ष की क्षति : दुर्योधन
कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में मारे गए.

पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत, सात्यकि के दस पुत्र, अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर।
कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र के दुर्योधन सहित सभी पुत्र, भीष्म, त्रिगर्त नरेश, जयद्रथ, भगदत्त, द्रौण, दुःशासन, कर्ण, शल्य आदि सभी युद्ध में मारे गए थे.

युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया था.

इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया.

कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ.

बच गए योद्धा : महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे जिनके नाम हैं- कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा....

जबकि, पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।
संदर्भ : महाभारत

जय श्री कृष्ण...!!

शुक्रवार, दिसंबर 25, 2020

भारतीय संविधान की दृष्टि में देशी रियासतें- क्या हैं प्रिवी पर्स-

 

क्या हैं प्रिवी पर्स- भारत के राजाओं को दिया जाने वाला रुपया !
क्यों बन्द कर दिया ? 
जिस कोंग्रेस ने वचन दिया उसी ने वचन तोड़ दिया क्या यही कोंग्रेस की नीति हैं ?

©️डाँ. महेन्द्रसिंह तँवर

भाग -1

प्रीवी पर्स क्या हैं इसको जानना बहुत ज़रूरी हैं । 15 अगस्त 1947 को जब अंग्रेज़ो ने भारत को स्वतंत्र किया तब भारत दो भागो में स्वतंत्र हुवा था।

एक भाग जो अंग्रेज़ी सरकार के अधीन था वह जो 53 प्रतिशत था ओर दुसरा भाग वह जो राजाओं के अधीन था जो भारत के सम्पूर्ण भाग का 47 प्रतिशत था तथा जिसका क्षेत्रफल 5,87,949 वर्ग मिल में फैला था।

जण संख्या के दृष्टि से भी इन रियासतों का योगदान कम महतवपूर्ण नहीं था । विभाजन के बाद भारत अधिराज्य की जनसंख्या 31 करोड़ 90 लाख थी ( 1941 की जणगणना के अनुसार ) जिसमें 8 करोड़ 90 लाख लोग इन रियासतों में रहते थे । एक प्रकार से उस समय 28 प्रतिशत जनसंख्या रियासतों में निवास करती थी ।

क्षेत्रफल के हिसाब से जम्मू - कश्मीर का राज्य सबसे बड़ा था 84, 471 वर्ग मील , हैदराबाद 82,313 वर्ग मील अौर तीसरे स्थान पर मारवाड़ रियासत थी जिसका क्षेत्रफल 36100 वर्गमील था। उस समय दस हज़ार वर्ग मील क्षेत्र से बड़ी 15 रियासतें थी, एक हज़ार से दस हज़ार वर्गमील क्षेत्र के मध्य वाली 67 रियासतें थीं तथा एक हज़ार वर्गमील से कम की 202 रियासतें थी ।

26 जनवरी 1950 तक अर्थात गणतंत्र भारत के जन्म तक 554 रियासतें भारत में मिल चुकी थी।

हमारे देश की स्वतंत्रता से पूर्व अन्तराष्ट्रीय क़ानून के तहत भारत के सभी देशी रजवाड़ों को 3 जून 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हो गयी । ब्रिटिश हुकूमत के साथ जो उनकी सन्धिया थी वे ख़त्म हो गयी अब वे पूरी तरह से स्वतंत्रत थे ।

ब्रिटिश सरकार के श्वेतपत्र के मुताबिक़ भारत का एक भाग जो उनके अधीन था वह कोंग्रेस के नेताओ को 15 अगस्त 1947 को सौंप दिया गया तथा रियासतों को पूर्व में ही उनकी सन्धियों से मुक्त करके स्वतंत्र कर दिया था। वे अब स्वतंत्र राष्ट्र थे ।

उस समय भारत वर्ष को अखण्ड बनाये रखने के लियें इन सभी रियासतों के साथ भारत सरकार ने एक सन्धि की जिसे संविलयन प्रालेखों ( इंस्ट्रुमेंटस ओफ एक्शेसन ) के तहत ये रियासतें भारत के साथ रहीं । इसके बाद संविलयन अनुबन्धों या प्रसंविदाओ ( मर्जर एगरिमेंट्स अौर कोवनेंट्स) पर हस्ताक्षर हुए । इन दोनो सन्धियों से 554 रियासतों को भारत से जोड़ा गया था ।

इन सन्धियों के तहत रियासतों ने तीन अधिकार भारत सरकार को सौंपे गये थे - प्रति रक्षा , परराष्ट्र सम्बंध , संचार - अधिराज्य सरकार को सौंपे इन अधिकारों के अलावा शेष विषयों में उनकी प्रभुता स्वतंत्र रही ।

संविलयन अनुबंधों अौर प्रसंविदाओ के अन्तर्गत भारतीय नरेशों को यह वचन दिया गया था की उनके व्यक्तिगत अधिकार एवं विशेषाधिकार यथावत रहेंगे तथा प्रीवी पर्स चालू रहेंगे ।

प्रीवी पर्स के तहत राजाओं को उनकी रियासतो के वार्षिक अौसत राजस्व के प्रतिशत के आधार पर देना तय किया गया था। सबसे अधिक मैसुर रियासत को 26 लाख अोर मारवाड़ को 17 लाख 50 हज़ार तथा सबसे कम 192 रुपए वार्षिक सौराष्ट्र स्थित कटौदिया के शासक मिलती थी । ये रक़म ना बढ़ाई ओर ना घटाई जा सकती थी । तत्कालीन राजाओं को जीवन पर्यन्त प्राप्त होती रहेगी तथा इसे आय कर से मुक्त रखा गया था । इसमें यह शर्त जोड़ दी गयी थी की तत्कालीन शासक के उतराधिकारी को जारी रखने का निर्णय भारत सरकार बाद में अवसर आने पर निर्णय करेगी।

1950 में प्रीवी पर्सो के रूप में दी जाने वाली धनराशि का योग लगभग 5.8 करोड़ था । उस समय भारत सरकार 279 शासकों को 4,81,59,714 रुपये देती थी । इसके विपरीत शासकों से प्राप्त धनराशि इतनी थी की उसके ब्याज से ही प्रीवी पर्स दिया जा सकता था ।

सविंधान सभा की बहस , खण्ड 10 , अंक 5, पृष्ठ 165-68 ; भारतीय रियासतों पर स्वेत पत्र में पन्मुद्रित पृष्ठ 120-25 के अनुसार -“ .....अब इन समझौतो के दूसरे भाग को पूरा करना हमारा कर्तव्य है अथार्त इस ओर से अास्वस्त होना की प्रीवी पर्स सम्बन्धी दी गई हमारी गारण्टी सच्ची उतरे। इस सम्बन्ध में असफल होना एक विश्वासघात होगा अौर नई व्यवस्था के सुस्थिरीकरण को काफ़ी आघात पहुँचाएगा ।”

आगे चलकर इसी कोंग्रेस ने अपने वचन को तोड़ के विश्वासघात करके संसद में क़ानून बना कर प्रीवी पर्स समाप्त कर दिए ।

क्रमश ...............

गतांक से आगे -

भाग - दो ..

अन्तराष्ट्रीय क़ानून की दृष्टि में - भारत के रजवाड़े :- 
©️डाँ. महेन्द्रसिंह तँवर

सार्वजनिक अन्तराष्ट्रीय क़ानून के अंतर्गत, जो कि भारत के साँविधानिक क़ानून या देश - विधि से भिन्न हैं , भारत सरकार अपनी गारण्टियों को पूरा करने , शासकों को प्रीवी पर्स देने तथा उनके व्यक्तिगत अधिकारो एवं विशेषाधिकारो को मान्यता देने के लिये बाध्य हैं ।

अन्तराष्ट्रीय क़ानून के लिए तो निर्णायक तथ्य यह हैं कि 15 अगस्त 1947 को जिस दिन ‘ भारतीय स्वाधीनता अधिनियम , 1947 लागु हुवा , भारतीय रियासतें अंग्रेज़ी प्रभुता से मुक्त हो कर स्वतंत्र एवं सम्पूर्ण - प्रभुत्व - सम्पन्न हो गई ।

इस तथ्य को कि 15 अगस्त 1947 के दिन भारतीय रियासतें पूर्णतः स्वतंत्र एवं सम्पूर्ण - प्रभुत्व सम्पन्न थी , सर्वोच्च अधिकारियों ने भी इसे स्वीकार किया था । कुछ महत्वपूर्ण उदबोधंन इस प्रकार हैं -

• ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में भेजे गए मंत्रिमंडलीय शिष्टमंडल का 12 मई 1946 को घोषित ज्ञापन -
“ इंग्लेंड के बादशाह से समझौता होने के फलस्वरूप भारतीय रियासतों को जो अधिकार मिले थे , अब वे समाप्त हो जायेंगे तथा भारतीय रियासतों ने जो अपने अधिकार सार्वभौम सत्ता को समर्पित कर दिए थे , अब वे उनको वापस मिल जायेंगे । इस प्रकार इंग्लेंड के बादशाह एवं ब्रिटिश भारत के साथ चल रहे भारतीय रियासतों के राजनीतिक सम्बंध समाप्त हो जाएँगे ।

इस शून्य को भरने के लिये भारतीय रियासतों को ब्रिटिश भारत की उतराधिकारी सरकार या सरकारों से संघीय सम्बंध स्थापित करने होंगे या उनके साथ विशिष्ट राजनीतिक सम्बंध स्थापित करने होंगे ।”

इसी शिष्टमंडल ने 16 मई 1946 को कहा था -
“ सार्वभौम सत्ता न तो इंग्लेंड के बादशाह के पास ही रह सकती हैं अौर न नयी सरकार को अंतरित की जा सकती हैं ।”

25 जुलाई 1947 को भारत के तत्कालीन वायसराय लोर्ड माउण्टबेटन ने शासक मंडल में यह कहा था - 
“ सार्वभौम सत्ता के हटने से रियासतें सम्पूर्ण - प्रभुत्व सम्पन्न हो जाएँगी…भारतीय स्वाधीनता अधिनियम के लागु होने से रियासतें इंग्लेंड के बादशाह के प्रभुत्व से मुक्त हो जाएँगी । रियासतों को पूरी स्वाधीनता हैं - तकनीकी एवं क़ानूनी दृष्टि से वे पूर्णतः स्वतंत्र हैं ।”

5 जुलाई 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था - “ इस मूल सिद्धांत को रियासतों ने पहले ही स्वीकार कर लिया हैं कि प्रतिरक्षा , परराष्ट्र सम्बंध तथा संचार की दृष्टि से वे भारतीय संघ में मिल जाएँगी । इन तीन विषयों के अतिरिक्त , जिनमे कि देश का सार्वहित निहित हैं , किसी अन्य विषय में हम उनसे समर्पण भी नहीं चाहते । दूसरे विषयों में हम उनके स्वतंत्र अस्तित्व का पूरी तरह सम्मान करेंगे ।”

सम्मान तो तब होगा जब सरदार वल्लभभाई पटेल के स्टैचू ओफ लिबर्टी में भारत के रजवाड़ों का संग्रहालय बनाया जाएँगा , जिसके संकेत देश के प्रधानमंत्रीजी श्री मोदीजी ने स्वयं अपने भाषण में दिए हैं।

15 अगस्त 1947 से पहले भारतीय संघ में मिलते समय भारतीय राजाओं ने सविलयन प्रालेख में हस्ताक्षर किए वहाँ यह लिखा था -“ इस प्रालेख में ऐसी कोई चीज़ नहीं हैं जिससे इस रियासत पर मेरी प्रभूता में किसी प्रकार का अन्तर पड़े । इस रियासत के शासक के रूप में जो सत्ता एवं अधिकार इस समय मुज़े प्राप्त हैं , वह इस प्रालेख पर हस्ताक्षर करने के बाद भी यथावत रहेगा ।”

ऊपर लिखे उल्लेखों से यह स्पष्ट हो जाता हैं की किस प्रकार भारतीय राजाओं ने भारत देश कि एकता व अखंडता में अपना योगदान दिया । उन्होंने अपना सब कुछ गौरवशाली इतिहास परम्पराएँ देश एक करने के लिए त्याग कर दी । जबकि वे एक स्वतंत्र इकाई बनकर भी रह सकते थे ।

भले ही इसके पीछे अनेक कारण रहे हो लेकिन आज जो नई पीढ़ी हैं उसको यही सिखाया जाता हैं की आज़ादी व देश के एकीकरण में उनका (रियासतों) कोई योगदान नहीं था । यह उन सब राजाओं के प्रति विश्वासघात नहीं तो क्या हैं ?

1964 में गुजरात प्रदेश विरूद्ध वोरा फिद्दली तथा अन्य “ एक मुक़दमा हुवा जिस पर सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायाधीशों ने रियासतों को अन्तराष्ट्रीय क़ानून के तहत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्म्पन रियासत माना था “

यह कैसे सम्भव है कि भारत सरकार संविलयन का लाभ तो उठाती रहे अौर अपनी जिम्मेदारी से मुकर जाए ? प्रीवी पर्स देने एवं विशेषधिकारो के सम्बंध में भारत सरकार की एकतरफ़ा अस्वीकृति अन्तराष्ट्रीय क़ानून की दृष्टि में अपनी प्रतिज्ञा का निंदित उल्लंघन हैं ।

भारत सरकार ने ऐसा करके अन्तराष्ट्रीय प्रतिज्ञाओं का मूल्य काग़ज़ के टुकड़ों से अधिक नहीं माना । अब इसे किया कहा जाये यह तो जनता को निर्णय करना हैं कल ये चुने हुए प्रतिनिधि चन्द लाभ के लिये कुछ ऐसा कर जाए जो सदियों तक हमारे माथे पर कलंक बन जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । क्योंकि ऐसा करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं हैं जो श्री नेहरुजी ओर श्री सरदार पटेल के वचन भंग कर सकते हैं वे ओर भी कुछ अनहोनी कर जाये इसमें कोई मीन मेख दिखाई नहीं देती ।

आगे ईश्वर की मर्ज़ी .......
क्रमस ..........


भारतीय संविधान की दृष्टि में देशी रियासतें-

©️डाँ. महेन्द्रसिंह तँवर

गतांक से आगे - भाग -3

भारतीय संघ में मिलते समय भारत के देशी रजवाड़ों के शासकों के साथ भारतीय संविधान में जिन धाराओं के माध्यम से वे जुड़े थे उन्हें आज जानना बहुत ज़रूरी हैं । वे क्या धाराएँ थी जिनके आधार पर शासकों प्रीवी पर्स , व्यक्तिगत अधिकार तथा विशेषधिकार प्राप्त थे ।

वे धाराएँ इस प्रकार हैं धारा 291, धारा 362, धारा 363 तथा धारा 366 ( खण्ड 15 एवं 22 ) । इनको विस्तार से समझने की आवश्यकता है ।

धारा 291 - शासकों के प्रीवी पर्स की राशि :- संविधान के लागु होने के पहले किसी भी भारतीय रियासत के शासक के साथ जो भी अनुबन्ध या प्रसंविदा हुआ हैं अौर उसके अंतर्गत भारतीय अधिराज्य की सरकार ने उस शासक को जो प्रीवी पर्स देने की गारण्टी दी हैं -
(अ ) उसकी राशि भारत की समेकित निधि से दी जायेगी , अौर 
( आ ) शासक को दी जाने वाली यह राशि सब प्रकार के आयकर से मुक्त होगी ।

धारा 362 भारतीय रियासतों के शासकों के अधिकार एवं विशेषाधिकार :- देश कि संसद या प्रदेश की विधान सभा द्वारा विधान बनाते समय तथा केंद्रीय या प्रादेशिक कार्यागं द्वारा उस विधान को लागु करते समय भारतीय रियासत के शासक के व्यक्तिगत अधिकारों, विशेषाधिकारों तथा उपाधि - सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाएगा जिसकी कि धारा 291 में उल्लिखित प्रसविंदा या अनुबन्ध में गारण्टी दी गयी हैं ।

धारा 363 विशिष्ट सन्धियों , अनुबंधों आदि से सम्बन्धित विवादों में न्यायालयो द्वारा हस्तक्षेप किए जाने पर प्रतिबन्ध - 
इस धारा के तहत किसी भी प्रकार के विवाद होने पर हस्तक्षेप करने का कोई प्रावधान नही हैं । धारा 143 कहती हैं कि संविधान के लागु होने के पहले जो भी सन्धि या अनुबन्ध हुए हैं उस पर किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता । 
इसमें दो बातें स्पष्ट हैं एक तो भारतीय रियासत उसे माना गया जो संविधान के लागु होने से पहले इंग्लेंड के बादशाह द्वारा या अधिराज्य सरकार द्वारा रियासत एवं उस रियासत के राजा - महाराजा या सरदार को शासक स्वीकार किया गया हो ।

धारा 366 परिभाषाएँ :- इस सविंधान में , जब तक कि संदरभ में दुसरा अर्थ न लगता हो , निम्नलिखित अभिव्यक्तियों को इस अर्थ में प्रस्तुत किया गया हैं -
( 15 ) भारतीय रियासत से अभिप्राय उस प्रदेश से हैं जिसे भारतीय अधिराज्य ki सरकार ने मान्यता प्रदान की हो ;
( 22 ) शासक का अभिप्राय रियासत के संदरभ में अर्थ हैं राजा - महाराजा , सरदार या वह व्यक्ति जिसने धारा 291 के खण्ड ( 1 ) में उल्लिखित किसी प्रसंविदा या अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए हो तथा जो समय विशेष के लिए राष्ट्रपति द्वारा रियासत का शासक स्वीकार किया गया हो । इसने वह व्यक्ति भी सम्मिलित है जिसे राष्ट्रपति ने शासक का उत्तराधिकारी स्वीकार किया हो ।

अब ये धाराए संविधान में है जो मूल अधिकारो की श्रेणी में आती हैं इस पर संसद में संशोधन करने का अधिकार है ऐसा कही पर उल्लेखित नहीं है । सर्वोच्च न्यायालय के अनेक निर्णय है जिनमे स्पष्ट कहा गया हैं की मूल अधिकारों में संशोधन करने अधिकार नहीं हैं क्योंकि मूल अधिकार तो संविधान के अनिवार्य अवयव हैं । अनेक प्रश्न उठते हैं जिनका जवाब शायद ही मिल सके ।

धारा 363 शासकों को न्यायालय से मुक्त रखती हैं इसी लाभ उठाकर संसद में प्रीवी पर्स तथा रियासतों के साथ हुई सन्धियों को भारत सरकार ने तोड़ते हुए समाप्त करने का निर्णय लिया । क्योंकि रियासतों शासक न्यायालय में तो जा नहीं सकते थे तो अब उनका न्याय कोन करेगा ।

जबकि इस धारा को को संविधान में 16 अक्तोंबर 1949 में जोड़ा गया था तथा उद्देश्य था की रियासतों के अधिकारो की रक्षा हो सके इसलिए ये धारा जोड़ी गयी थी ताकि कोई न्यायालय में जाकर नाहक ही विवाद खड़ा ना करे । जबकि प्रीवी पर्स को समाप्त करने वालों ने इसे अपना हथियार बनाने के लिए इसका दुरुपयोग किया । चूँकि यह अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया की वह मध्यस्था करेंगे । उसी को ढाल बनाकर वह सब कर दिया गया जिसने पूर्वजों के वचन को तोड़ कर कट्टरता व निरंकुशता का परिचय दिया ।

चूँकि सभी शासकों को अन्तराष्ट्रीय न्यायालय में इस मुद्दे को ले जाना चाहिये था । लेकिन उन्होंने ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया जिससे राष्ट्र कि एकता अौर अखण्डता को चोट पहुँचे क्योंकि सच्चे मायने से राष्ट्रभक्त हैं । निर्णय जनता जनार्दन को करना हैं कोन सही हैं कोन ग़लत हैं ।

ह्रदय के भीतर खाने तो सभी इस बात को भली भाँति जानते ही हैं ।

क्रमश ……

गुरुवार, दिसंबर 24, 2020

जिस गोंडल की सभी शत प्रतिशत महिलाएं 1900 में शिक्षित और अधिकांश graduate थीं उसी गोंडल राजकोट में 1970 में सभी औरतें निरक्षर थीं ।,फिर भी कांग्रेसी कहते हैं कि इन्ने आधुनिक भारत बनाया ???

 

दो तीन साल पहले की बात है ।
बड़ा नाम सुना था मूडी जी की चेक dam क्रांति का । ऐसा कहा जाता था कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते साढ़े छः लाख 6,50,000 Check Dams बनवा के एक सूखे बंजर प्रदेश में हरित क्रांति ला दी थी । इसके अलावा विकास के गुजरात model की भी बड़ी चर्चा थी । 
सो ये सोचा कि सब कुछ अपनी आंख से देखा जाए । तो भैया , गुजरात में सौराष्ट्र घूमने का पिलान बना । साथ चले भाई Awanish P. N. Sharma जी । 
तय पाया कि गांव देहात घूमना है और भरसक गांव में ही रुकना ठहरना है । 
सो एक स्थानीय फेसबुक मित्र भाई Jagdish V Parmar के घर हम लोग एक रात रुके । उनके साथ खेत मे टहल रहे थे । तभी उन्होंने पत्थर का एक काफी ऊंचा चबूतरा दिखाया , जो लगभग 4 या साढे चार फ़ीट ऊंचा था । उन्होंने वो चबूतरा दिखा के पूछा कि दद्दा , अंदाज़ा लगाइये कि ये क्या है ?????
हमको कुछ समझ न आया .......
तब उन्होंने जो कहानी सुनाई , उसे सुन के सिर श्रद्धा से झुक गया ।

पुरानी बात है ...... आज से कोई 120 साल पहले , एक व्यक्ति इसी तरह खेत की पगडंडी पे चलता कहीं जा रहा था । तभी उसे वहां एक महिला दिखी जो अपने खेत से फसल का एक बोझ लिये आ रही थी । भारी बोझ .....थक गई सो सुस्ताने के लिये बोझ जमीन पे धर दिया । अब उसे उस सुनसान बियाबान में कोई आदमी न मिले जो उसे उठवा के सिर पे रखवा दे । तभी ये सज्जन आ गए ....... उसने इनसे आग्रह किया और इन्होंने उसका बोझ उठवा के उसके सिर पे रखवा दिया और वो अपने रास्ते चली गयी ।
और कोई होता तो इस घटना को भूल जाता ।पर वह व्यक्ति न भूला । वो दरअसल तत्कालीन गोंडल रियासत के महाराज श्री भागवत सिंह जी महाराज थे । उन्होंने ध्यान दिया कि इस प्रकार किसानों को अपनी फसल सिर पे ढोने में कितनी दिक्कत होती है ।
सो उन्होंने अपने पूरे राज्य में खेतों में ऐसे चबूतरे बनवाये जहां किसान अपना बोझ उतार के विश्राम कर ले और फिर बिना किसी सहायता के स्वयं ही वापस सिर पे रख के आगे चल दे । इसीलिये उस चबूतरे की ऊंचाई लगभग 4 फ़ीट रखी गयी ।
ऐसे प्रजा वत्सल कल्याणकारी राजा थे महाराज श्री भागवत सिंह जी ।

आपको ये जान के आश्चर्य होगा कि जहां देश के सभी राजा सिर्फ ऐश अय्याशी में जीवन बिताते थे , महाराज भागवत सिंह जी उस ज़माने में , 1892 में University of Edinburgh से Medical की डिग्री ले के लौटे और फिर अपने राज्य में जगह जगह अस्पताल खोले और उनमें स्वयं मरीज देखते थे ।
उस ज़माने में Gondal देश की एकमात्र रियासत थी जो पूरी तरह Tax Free थी और राज्य का पूरा पैसा सिर्फ कल्याणकारी कामों में खर्च होता था । पूरे राज्य में स्कूल कालिज , अस्पताल , नहरें , रेल network , बनाया गया । उस ज़माने में गोंडल में सभी लड़कियों को कक्षा 4 तक कि primary शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त थी । आपके शासन काल मे पूरे राज्य में एक भी व्यक्ति खासकर महिला अनपढ़ नही थी .......बताया जाता है कि सन 1900 में गोंडल राज्य में हज़ारों महिलाएं Graduate थीं । 
महाराज साहब ने राज्य से पर्दा प्रथा समाप्त कर दी और अपने महल में Only Ladies wing यानी जनानाखाना नही बनवाया ....... न सिर्फ अपने बेटों बल्कि बेटियों को भी उच्च शिक्षा दिलाई । उनके दो बेटे विदेश से डॉक्टरी पढ़ के आये और दो इंजीनियरिंग .......एक बेटा राज्य का CMO बोले तो Chief medical Officer बना और सारी जिंदगी उन्ने डॉक्टरी की और बाकी दो बेटे रेलवे के चीफ इंजीनियर बने और पूरे राज्य में रेलवे का जाल बिछा दिया ......
गोंडल देश का पहला राज्य था जहां सबसे पहले Animal Husbandry विभाग बना , और जगह जगह पशुओं के अस्पताल बने , Engineering कॉलेज बने , पूरे राज्य में शहरों में sewer system , पेय जल की pipeline , और बिजली पहुंचाई गई ...... 
आज़ादी से पहले 1920 - 30 - 40 में ही इतना उन्नत राज्य था गोंडल ......

महाराज साहब की मृत्यु 1944 में हुई और 1947 में आज़ादी मिली और गोंडल चला गया नेहरू आ कांग्रेसियों के हाथ ....... जगदीश भाई बता रहे थे कि जिस गोंडल की सभी शत प्रतिशत महिलाएं 1900 में शिक्षित और अधिकांश graduate थीं उसी गोंडल राजकोट में 1970 में सभी औरतें निरक्षर थीं ।
अनपढ़ अंगूठा टेक ।

*फिर भी कांग्रेसी कहते हैं कि इन्ने आधुनिक भारत बनाया ???????*
देश का पहला प्रधान मंत्री भागवत सिंह जैसे व्यक्ति को होना चाहिए था ,

सोमवार, दिसंबर 14, 2020

सामवेद में दो तरह के श्लोक है .अरण्य के श्लोक और ग्राम के श्लोक

 सामवेद में दो तरह के श्लोक है ..... अरण्य के श्लोक और ग्राम के श्लोक। अरण्य जहां नियम नहीं होते, ग्राम जहाँ नियम होते हैं अरण्य जहां पशु रहते हैं, ग्राम जहाँ मानव रहते हैं।

राम यज्ञ से पैदा हुए थे, आकाश पुत्र थे .... उनकी पत्नी सीता भूमि से पैदा हुई थी, भूमिजा थी, वन्य कन्या थी। राम सारी उम्र अरण्य के पशुओं और ग्राम के मानवों को मैनेज करने में लगे रहे, पशुओं को इंसान बनाते रहे .... राम ग्राम वासी भी थे और वनवासी भी , वन में शिव रहते है जो दिगंबर हैं। शिव देह पर भभूत लगाए बैठे है, दिगम्बर हैं। देह पर भभूत लगाने का अर्थ है देह को ही त्याग देना। राम शिव भक्त भी है इसलिए राम के फैसलो में, भाव में दिगम्बर परम्परा दिखती है। माँ के कहने पर राज्य त्याग दिया, आभूषण त्याग दिए, मुकुट त्याग दिया .... धोबी के कहने पर रानी सीता त्याग दी। जीवन पर्यन्त नियमों का पालन करते रहे, नियम सही हो या गलत उन्हें पालन करना ही था।

इसके विपरीत कृष्ण कभी किसी बंधन में नहीं रहे ..... उनके ऊपर परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने का भार नहीं था। वो सबसे छोटे थे इसलिए स्वतंत्र थे और चंचल भी , मर्यादा का भार नहीं था उनपर। उन्होंने अरण्य और ग्राम में बैलेंस साधने की कोशिश कभी नहीं की ............ उन्होंने वन को ही मधुवन बना लिया। वो राजा नहीं थे , न ही राजा बन सकते थे इसलिए गलत नियम मानने को बाध्य नहीं थे कृष्ण .... उन्होंने नियमों को नहीं माना।
राम वचन के पक्के थे, उन्होने अयोध्या वासियों को वचन दिया था कि 14 वर्ष बाद लौट आऊँगा। समय से पहुँचने के लिए उन्होंने पुष्पक विमान का उपयोग किया। कृष्ण ने गोपियों को वचन दिया था , मथुरा से लौट कर जरुर आऊँगा , वो कभी नहीं लौटे। राम ने गलत सही हर नियम माना , कृष्ण ने गलत नियम तोड़े। राम के राज्य में एक मामूली व्यक्ति रानी पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के नियम के तहत गॉसिप कर सकता था , मगर कृष्ण को शिशुपाल भी 100 से ज्यादा गाली नहीं दे सकता था। राम मदद तभी करते है जब आप खुद लड़ो .... वो पीछे से मदद करेंगे। सुग्रीव को दो बार बाली से पिटना पड़ा तब राम ने बाण चलाया...... कृष्ण स्वयं सारथी बन के आगे बैठते हैं।

नरेंद्र मोदी को देखिए .... वो भी त्यागने की बात करते हैं। पुराने नोट त्याग दो, दो नम्बर का पैसा त्याग दो, गैस सब्सिडी त्याग दो .... उनके सारे फैसले राज-धर्म, संविधान के अनुरूप ही होते है, भले ही संविधान का वो नियम सही हो या गलत। मोदी हमेशा अरण्य और ग्राम में बैलेंस साधने की कोशिश करते हैं। सबका साथ सबका विकास ...... वो पशुओं को मानव बनाने का प्रयास करते हैं ..... अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम अपना पराया कोई भी उन्हें 24 घण्टे गाली दे सकता हैं। दिगम्बर भाव है, सब त्याग बैठे है, अपमान सम्मान सब ....... आपकी गालियों से उन्हें ताकत मिलती है। विरोध के अधिकार के नाम पर आप उनकी नाक के नीचे सड़क जाम कर महीनों बैठ सकते हैं। वो देश के बड़े बेटे है , नियम अनुरूप ही आचरण करेंगे.... भेदभाव करते हुए नहीं दिख सकते।

वहीं योगी आदित्यनाथ महाराज को देखिए .... उसी अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कोई उन्हें एक गाली दे दीजिए, 24 घण्टे के अंदर आप पर मुकदमा होगा औऱ 48 घण्टे में जेल में होंगे। कनिका कपूर मुंबई, दिल्ली, लखनऊ कानपुर गई .... कहीं मुकदमा दर्ज नहीं हुआ उस पर सिवाय यूपी के। आपिये दिन रात फ़र्ज़ी खबरें शेयर करते है मोदी के अगेंस्ट... मोदी रिस्पॉन्स नहीं देते। योगी आदित्यनाथ पर एक फ़र्ज़ी ट्वीट में ही राघव चड्ढा पर मुकदमा दर्ज हो जाता है। जिस विरोध के अधिकार के तहत दिल्ली में 100 दिन से ज्यादा प्रदर्शन होता रहा, उन्हीं नियमों के तहत यूपी में एक भी प्रदर्शन नहीं चल पाया। राजनीति का नियम है कि सरकार बदलने पर बदला नहीं लिया जाता.. योगी जी ने आज़म खान के पूरे परिवार को जेल में सड़ा दिया ..... मोदी का भाव दिगम्बर है योगी का आचरण दिगम्बर है मोदी तब मदद करेंगे जब आप खुद लड़ोगे ... योगी शंखनाद होते ही रथ की लगाम थाम लेते हैं।

तेलगू फ़िल्म गब्बर सिंह का एक डायलॉग है, "I don't follow a trend, I set new trends." मोदी ट्रेंड फॉलो करते है , योगी ट्रेंड सेट करते हैं, क्रिएट करते हैं... यू हैव राम इन त्रेता, यू हैव कृष्ण इन द्वापर ...... यू हैव बोथ इन कलयुग !!
साभार

रविवार, दिसंबर 13, 2020

यह महाभारत जीतेंगे तभी नये भारत का अभ्युदय होगा।

 

कृष्ण मृत्यु शय्या पर पड़े दुर्योधन को कहते हैं,,,,,,

तुमने सेनापति बनाया भीष्म पितामह को जिन्होंने भावुकता में अपनी मृत्यु का राज अर्जुन को बता दिया।फिर बनाया सेनापति द्रोण को.............. वह भी पुत्र प्रेम मे भावुक होकर हथियार छोड़ देते है और मृत्यु को प्राप्त होते है।

उसके बाद बनाया सेनापति कर्ण को जिन्होंने युद्ध के पलड़े को पलट दिया और आते ही चारो भाइयों को जीवन दान दे दिय,,,,,,, क्योकि माता को वचन दिया था आपका 1 पुत्र ही मारेगा और इस तरह बाकी भाईयों को जीवन दान देकर विजय को ठुकरा दिया।

तुमने सेनापति बनाए तो सही थे दुर्योधन ,,,,,,,,मगर यह सेनापति काल तथा समय के अनुसार उपयुक्त नही थे..….....क्योकि यह सभी किसी न किसी वचन या भावनात्मक तरीके से बंधे थे।

हां.......अगर कर्ण से पहले तुम अश्वत्थामा को सेनापति बना देते तब भी तुम विजय प्राप्त कर सकते थे....... क्योकि अश्वत्थामा सभी बंधनों से एवं शाप से मुक्त थे।

वह थे शिव का अवतार........उस नेतृत्व के फलस्वरूप वह रूद्र रूप मे और भी विनाशकारी बन जाते पांडव सेना के लिए।

इस कहानी का तात्पर्य यह है कि अगर सेनानायक बनना है,,,,,,,, राष्ट्र तथा समाज का प्रतिनिधित्व करना है,,,,विजय हासिल करनी है तो सामर्थ्य के साथ साथ भटकाने वाले हर बंधन,,, भावुकता और अभिशाप से दूर रहना होगा।

देश में आज मोदी उसी रुप में हैं,,, मुझे मोदी की कई नीतियों से घोर असहमति होती है ,,,, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता अथवा उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा को लेकर कोई संदेह नहीं रहा और ना ही रहेगा।

इस लड़ाई में हमारा सेनापति हर भावुकता ,, द्वंद्व और अभिशाप से दूर है। अतः: समय है उसके प्रति विश्वास रखते हुए उसके हाथ मजबूत करने का एवं विधर्मी और राष्ट्रविरोधी तत्वों को हराने का।

यह महाभारत जीतेंगे तभी नये भारत का अभ्युदय होगा।

#पाणिनि_तिवारी

ब्राह्मणों की सूचि है जिन्होंने *खालसा पंत सिक्ख आंदोलन में भाग लिया

 आज के खालीस्तानी सिख धर्म को,,, 

https://youtu.be/JQmBenlZKR8


https://youtu.be/Bxh6TO-VW7s


*सत्य सनातन ब्राह्मण परिवारों ने खालसा पंत के गुरुओं की रक्षा हेतु बलिदान देने वाले ब्रह्मणो की एक सूचि बनाई गई है जिसमें सिक्ख गुरुओं के लिये अपना बलिदान देने वाले ब्राह्मण वीरों का उल्लेख है*

1. *पंडित प्रागा दास जी* -
पिता का नाम एवं जन्मस्थान - इनके पिता जी का नाम पंडित माई दास जी था , इनका जन्म करीयाला झेलम में हुआ था जोकि वर्तमान पाकिस्तान में है ।

भूमिका - पंडित प्रागा जी एक छिबर ब्राह्मण थे । ये पाँचवे गुरु श्री अर्जुन देव जी के मुख्य सहयोगी रहे । इन्होंने छटे गुरु को युद्ध कला सीखाने का श्रेय प्राप्त है । 1621 में अब्दुलाखान के साथ हो रहे युद्ध में इनको वीरगति प्राप्त हुई ।

2. *पंडित पेड़ा जी* -
पिता का नाम एवं जन्मस्थान - इनके पिता जी का नाम पंडित माई दास जी था , इनका जन्म करीयाला झेलम में हुआ था जोकि वर्तमान पाकिस्तान में है । ये पंडित प्रागा दास जी के छोटे भाई थे ।

भूमिका - पंडित पेड़ा दास जी भी गुरु अर्जुन देव जी के मुख्य सहयोगी थे और ये गुरु हरगोविंद सिंह जी की सेना के मुख्यसेनापति थे । इन्होंने सभी लड़ाईयों में हिस्सा लिया और अंत में अमृतसर की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए ।

3. *पंडित मुकुंदा राम जी* -

जन्मस्थान - कराची , वर्तमान पाकिस्तान

भूमिका - पंडित मुकुंदा राम जी गुरु अर्जुन देव जी के मुख्य सेवक थे और बाद में उनकी सेना के मुख्य सेनापति के तौर पर भी नियुक्त हुए । पंडित मुकुंदा राम जी चार वेदों के ज्ञाता एवं युद्ध कला में निपुण थे । इनको भी युद्ध में बलिदान होने का श्रेय प्राप्त है ।

4. *पंडित जट्टू दास जी* -
जन्मस्थान - लाहौर, पाकिस्तान

भूमिका - पंडित जट्टू दास जी एक तिवारी ब्राह्मण थे पंडित जट्टू राम जी गुरु हरगोविंद सिंह जी की सेना में सेनानी थे और बाद में इन्होंने सेना का कार्य भार भी संभाला । 1630 में मुहम्मद खान के साथ इन्होंने बड़ी लड़ाई लड़ी और मुहम्मद खान का वध करने का श्रेय इन्हें ही प्राप्त है । मुहमद खान के साथ लड़ाई में इनको बहुत शारीरिक नुक़सान पहुँचा और युद्ध क्षेत्र में ही वीर गति को प्राप्त हो गये ।

5 . *पंडित सिंघा पुरोहित जी* -
भूमिका - पंडित सिंघा पुरोहित जी गुरु अर्जुन देव जी के मुख्य सेवक थे जो छटवें गुरु की सेना में सिपाही भी रहे । श्री सिंघा जी अमृतसर के नज़दीक लड़ाई में बलिदान हुए

6. *पण्डित मालिक जी पुरोहित*
पिता का नाम - पंडित सिंघा जी पुरोहित

भूमिका - पण्डित मलिक जी पंडित सिंघा जी के सुपुत्र थे ( पढ़े नम्बर 5 ) मुखलसखान के विरुद्ध इन्होंने धुआँधार लड़ाई लड़ी और अंत में विजयी भी हुई । पंडित मलिक जी गुरु हरगोविंद का दाहिना हाथ माना जाता है । इनको भंगाणी के युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई।

7. *पंडित लाल चंद जी* -
जन्मस्थान - कुरुक्षेत्र, हरियाणा

पंडित लाल जी एक महान विद्वान एवं योद्धा थे । श्री लाल चंद जी चमकौर की लड़ाई में बलिदान हुए थे ।

8. *पंडित किरपा राम जी*
पिता का नाम - पंडित अड़ू राम जी

भूमिका - पंडित कृपा राम जी गुरु तेग़ बहादूर जी के प्रमुख सहयोगी थे ,इन्होंने ही गोबिंद राय जी को सारी शस्त्र विद्या सिखाई थी । कहा जाता है कि इनके जैसा वीर योद्धा पंजाब के इतिहास में नहीं हुआ । इनको चमकौर की लड़ाई में वीरगति मिली । ये समकालीन सेना के सेनापति भी थे ।

9. *पंडित सनमुखी जी*
पिता का नाम - पंडित अड़ू राम जी

सनमुखी जी पंडित कृपा जी के भाई थे , और ये इनको दसवे गुरु द्वारा खालसा फ़ौज का सेनापति भी मनोनीत किया गया था , पंडित सनमुखी जी चमकौर की लड़ाई में बलिदान हुए थे ।

10. *पंडित चोपड़ राय जी* -
पिता का नाम एवं जन्मस्थान - श्री पेड़ा राम जी , जेहलम

भूमिका - श्री चोपड़ राय जी एक बहुभाषी विद्वान थे । इन्होंने रहतनामें एवं अन्य आध्यात्मिक कृतियों की रचना की । श्री चोपड राय जी ने खालसा फ़ौज का नेतृत्व किया और ये भंगाणी के युद्ध में बलिदान हुए ।

11. *पण्डित मथुरा जी*
पिता का नाम एवं जन्मस्थान - श्री भीखा राम जी , लाड़वा हरियाणा

श्री मथुरा राम जी एक महान विद्वान एवं योद्धा थे । श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में इनके चौदह अंक दर्ज है । इन्होंने मात्र अपने ४०० साथियों की सहायता से बैरम खान के साथ युद्ध किया एवं जीत भी हासिल की । इन्होंने बैरम खान को मौत की नींद सुला दिया था । श्री मथुरा जी 1634 में अमृतसर की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए ।

12. *पण्डित किरत जी*
जन्मस्थान एवं पिता का नाम - श्री भिखा राम जी , लाड़वा हरियाणा

पण्डित किरत जी एक महान विद्वान एवं योद्धा थे , इनके द्वारा रचित आठ अंक गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित है । श्री किरत जी गुरु अमरदास के सहयोगी थे और 1634 ईसवी में गोविंदगढ़ की जंग में बलिदान हुए ।

13. *पण्डित बालू जी*
पिता का नाम एवं जन्मस्थान - श्री मूलचंद जी , कश्मीर

पण्डित बालू जी भाई दयाल दास के पोते थे , पण्डित परागा दास के नेतृत्व में लड़ी गयी सिख इतिहास की पहली लड़ाई में बलिदान हुए

14. *पण्डित सती दास जी*

15. *पण्डित मति दास जी*
( 14 & 15 के विषय में कुछ भी लिखना मेरे लिए सूरज को दीपक दिखाने के समान होगा ।

16. *बाजीराव पेश्वा*
पिता का नाम - बालाजी विश्वनाथ
स्थान - कोंकण महाराष्ट्र

बाजीराव पेश्वा ने अपने नेतृत्व में मराठी सेना को एकत्रित करके उत्तरी भारत तक कूच किया और विशाल मराठा साम्राज्य की स्थापना की । इनकी सेना गोरिल्ला युद्ध करने मे अत्यन्त निपुण थी जिसके कारण इन्होंने मुगल शासकों की रीढ़ तोड़ डाली थी । इन्होंने ही सिक्खों को लाहौर का किला जीतकर उपहार में दिया और दिल्ली के बादशाह फर्रुखसियर से गोबिंद राय जी की पत्नियों ( साहिब कौर और सुंदरी ) को उस मुगल बादशाह की कैद से छुड़वाया था ।

ये मुख्य मुख्य उन ब्राह्मणों की सूचि है जिन्होंने *खालसा पंत सिक्ख आंदोलन में भाग लिया* और मुसलमान बादशाहों का जो सपना भारत को इस्लामी देश खुरासान बनाना था उसके विरुद्ध सिक्ख सेनाओं को मजबूत किया.....✍️https://youtu.be/JQmBenlZKR8

शुक्रवार, दिसंबर 11, 2020

आपको APMC एक्ट और मण्डी परिषद को इतनी आसान भाषा में समझाने वाला दूसरा लेख नहीं मिलेगा।*

 आपको APMC एक्ट और मण्डी परिषद को इतनी आसान भाषा में समझाने वाला दूसरा लेख नहीं मिलेगा।*


_"पैरों में जंजीर और गले में फन्दा" कभी सोचा है कि किसानों का "धन्धा" क्यों बांधा गया था..??_

*सही क्या और गलत क्या ?? -* 
🤔 _क्या किसानों का "तीन अध्यादेश" के विरुद्ध आंदोलन उचित - है भी या नहीं ?_

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*✍️ APMC Act* सन 1960-70 के आसपास देश में कांग्रेसी सरकार ने एक कानून पास किया जिसका नाम था - "apmc act" ...

*👉इस एक्ट में यह प्रावधान किया गया कि किसान अपनी उपज केवल सरकार द्वारा तय स्थान अर्थात सरकारी मंडी में ही बेच सकता है।*
इस मंडी के बाहर किसान अपनी उपज नहीं बेच सकता। और इस मंडी में कृषि उपज की खरीद भी वो ही व्यक्ति कर सकता था जो apmc act में registered हो, दूसरा नहीं।
*🤷‍♂️ इन registered person को देशी भाषा में कहते हैं - "आढ़तिया" यानि "commission agent"..*

*👉 इस सारी व्यवस्था के पीछे कुतर्क यह दिया गया कि व्यापारी किसानों को लूटता है इसलिये सारी कृषि उपज की खरीद बिक्री -" _सरकारी ईमानदार अफसरों"_ के सामने हो।*
जिससे "सरकारी ईमानदार अफसरों" को भी कुछ "हिस्सा पानी" मिलें।

*👉 इस एक्ट आने के बाद किसानों का शोषण कई गुना बढ़ गया। इस एक्ट के कारण हुआ क्या कृषि उपज की खरीदारी करनें वालों की गिनती बहुत सीमित हो गई।*
किसान की उपज के मात्र 10 - 20 या 50 लोग ही ग्राहक होते हैं। ये ही चन्द लोग मिलकर किसान की उपज के भाव तय करते हैं।

*🤷‍♂️ मजे कि बात ये है कि :--- फिर रोते भी किसान ही है कि :--- इस महगाई के दौर में - किसान को अपनी उपज की सही कीमत नही मिल रही है।*
जब खरीददार ही "संगठित और सिमित संख्या में होंगे तो - सही कीमत कैसे मिलेगी ??

*✍️ यह मार्किट का नियम है कि अगर अपने producer का शोषण रोकना है तो आपको ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी जिसमें - "खरीददार" buyer की गिनती unlimited हो।*
जब खरीददार ज्यादा होंगे तभी तो - किसी भी माल की कीमत बढ़ेगी। लेकिन वर्तमान में चल रही - मण्डी व्यवस्था में तो - किसान की उपज के मात्र 10 - 20 या 50 लोग ही ग्राहक होते हैं।

*🤷‍♂️ APMC act से हुआ क्या कि अगर किसी रिटेलर ने, किसी उपभोक्ता ने, किसी छोटे या बड़े manufacturer ने, या किसी बाहर के trader ने किसी मंडी से सामान खरीदना होता है तो वह किसान से सीधा नहीं खरीद सकता उसे आढ़तियों से ही समान खरीदना पड़ता है।*
_इसमें आढ़तियों की होगी चांदी ही चाँदी और किसान और उपभोक्ता दोनो रगड़ा गया।_

*👉 जब मंडी में किसान अपनी वर्ष भर की मेहनत को मंडी में लाता है तो buyer यानि आढ़तिये आपस में मिल जाते हैं और बहुत ही कम कीमत पर किसान की फसल खरीद लेते हैं।*

याद रहे :-- बाद में यही फसल ऊचें दाम पर उपभोक्ता को उबलब्ध होती थी। यह सारा गोरख धंधा ईमानदार अफसरों की नाक के नीचे होता है। _एक टुकड़ा मंडी बोर्ड के अफसरों को डाल दिया जाता है।_

*👉 मंडी बोर्ड का "चेयरमैन" को लोकल MLA मोटी रिश्वत देकर नियुक्त होता है। एक हड्डी राजनेताओं के हिस्से भी आती है। यह सारी लूट खसोट APMC एक्ट की आड़ में हो रही है।*

*✍️ दूसरा, सरकार ने APMC एक्ट की आड़ में कई तरह के टैक्स और commission किसान पर थोप दिए।*
जैसे कि :--- किसान को भी अपनी फसल "कृषी उपज मंडी" में बेचने पर 
▪️3%, मार्किट फीस ,
▪️3% rural development fund और 
▪️2.5 commission ठोक रखा है। 
*मजदुरी आदि मिलाकर यह फालतू खर्च 10% के आसपास हो जाता है। कई राज्यों में यह खर्च 20% तक पहुंच जाता है। यह सारा खर्च किसान पर पड़ता है।* बाकी मंडी में फसल की ट्रांसपोर्टेशन ,रखरखाव का खर्च अलग पड़ता है।

*🤦🏻‍♂️ मंडियो में फसल की चोरी, कम तौलना आम बात है। कई बार फसल कई दिनों तक नहीं बिकती किसान को खुद फसल की निगरानी करनी पड़ती है। एक बार फसल मंडी में आ गई तो किसान को वह "बिचोलियों" द्वारा तय की कीमत पर, यानि - औने पौने दाम पर बेचनी ही पड़ती है।*
क्यों कि कई राज्यों में किसान अपने राज्य की दूसरी मंडी में अपनी फसल नहीं लेकर जा सकता। *दूसरे राज्य की मंडी में फसल बेचना APMC Act के तहत गैर कानूनी है।*

Apmc act सारी कृषि उपज पर लागू होता है चाहे वह सब्ज़ी हो, फल हो या अनाज हो। तभी हिमाचल में 10 रुपये किलो बिकने वाला सेब उपभोक्ता तक पहुँचते पहुँचते 100 रुपए किलो हो जाता है।

*👉 आढ़तियों का आपस में मिलकर किसानो को लूटना सबने देखा है। जिस फसल का retail में दाम 500 रुपये क्विंटल होता था सारे आढ़तिये मिलकर उसका दाम 200 से बढ़ने नहीं देते हैं । ऐसे किसानों की लूट बहुतों ने आंखों के सामने देखी हुई है।*

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*👍मोदी सरकार द्वारा किसानों की हालत सुधारने के लिये तीन अध्यादेश लाएं गये हैं।*
*जिसमे निम्नलिखित सुधार किए गए हैं।👇*
▪️1. अब किसान मंडी के बाहर भी अपनी फसल बेच सकता है और मंडी के अंदर भी ।
▪️2. किसान का सामान कोई भी व्यक्ति संस्था खरीद सकती है जिसके पास पैन कार्ड हो।
▪️3. अगर फसल मंडी के बाहर बिकती है तो राज्य सरकार किसान से कोई भी टैक्स वसूल नहीं सकती।
▪️4. किसान अपनी फसल किसी राज्य में किसी भी व्यक्ति को बेच सकता है।
▪️5. किसान contract farming करने के लिये अब स्वतंत्र है।

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*👹कई लोग इन कानूनों के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहें है। जो कि निम्नलिखित हैं।*
*1. आरोप* :--- सरकार ने मंडीकरण खत्म कर दिया है ?
*उत्तर* :--- सरकार ने मंडीकरण खत्म नहीं किया। मण्डियां भी रहेंगी। लेकिन किसान को एक विकल्प दे दिया कि अगर उसको सही दाम मिलता है तो वह कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है। मंडी में भी और मंडी के बाहर भी।

*2. आरोप* :--- सरकार msp समाप्त कर रही है ?
*उत्तर* :- मंडीकरण अलग चीज़ है msp न्यूनतम समर्थन मूल्य अलग चीज़ है। सारी फसलें, सब्जियां, फल मंडीकरण में आते हैं, msp सब फसलों की नहीं है।

*3. आरोप* :- सारी फसल अम्बानी खरीद लेगा
*उत्तर* :--- वह तो अब भी खरीद सकता है - आढ़तियों को बीच में डालकर।

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*यह तीन कानून किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मुक्ति के कानून हैं।*

*👍 आज इस सरकार ने किसानों पर - काँग्रेस द्वारा लगाई हुई -"बन्दिश" को हटा कर, "हर किसी को" अपनी उपज बेचने के लिये आजाद करके, "पुरे देश का बाजार" किसानो के लिये खोल दिया है।*

👍किसानो को कोई भी टैक्स भी नही देना होगा।

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*🤨 जो भी लोग विरोध कर रहे है वो उन की अपनी समझ है, इस सरकार से बढ़ कर कोई "किसान हितेषी" सरकार कभी नही बनी और भविष्य में भी कोई नही बनेगी।*

*क्यो कि ये मोदिया - बहुत अच्छे से जानता है कि - "किसान और जवान" - ही देश का आधार है।*

*✍️ जय किसान !*
*✍️ जय जवान !*

*वन्देमातरम्*