Tabish Siddiqui
मैं इतिहास लिख रहा हूँ और ये इतने बेचैन हैं कि न पूछिये.. दिन रात मुझे इन लोगों के मेल मिल रहे हैं और हर मेल में सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही गुज़ारिश कि "लिखना बाद कर दो" बस.. क्यूं बंद कर दो? क्यूंकि ग़लत लिख रहे हो.. पूछो सही क्या है? तो कहेंगे कि क़ुरआन पढ़ो, किसी मदरसे के आलिम के पास जाओ उस से पूछो.. बस यही रटे रटाये जवाब और इनकी बेचैनी
अपने मज़हब को पागलपन की हद तक सही साबित करने का जुनून आपको सच मे मानसिक रोगी बना देता है.. एक पूरी जनरेशन दिमाग़ी दिवालिया हो चुकी है जिसे देख कर रूह काँप जाती है
एक बीहड़ रेगिस्तान में एक पानी का कुवाँ मिलता है.. इतिहास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखिए तो ये समझ आएगा कि कुछ लोग जो सफ़र पर निकले थे.. उन्होंने इस बीहड़ में पानी खोजा और कुवां खोदा अपनी ज़रूरत के हिसाब से.. जब जब सफ़र के दौरान वो लोग उधर से निकलते थे तब वो उन कुंवे का इस्तेमाल करते थे.. जाते समय उसे ढक देते थे.. ये हुवा समझदारी भरा दृष्टिकोण जो सच है और जिसे हमारा दिमाग मान लेगा.. ऐसे सैकड़ों कुवें दुनिया के अन्य रेगिस्तानों में भी हैं
मगर अंध धार्मिक गुस्सा हैं.. वो चाहते हैं कि मैं लिखूं कि एक छोटा बच्चा उस बीहड़ में लेटा हुवा जोर जोर से रो कर अपना पैर रगड़ रहा था और उसके पैर की रगड़ से ज़मीन से एक पानी की धार फूट पड़ी.. या.. एक फ़रिश्ता आसमान से उड़ता हुवा आया और उसने अपने पंखों से उस कुवें को खोदा.. ऐसे उस बीहड़ में एक कुंवा बन गया.. इन धार्मिकों के हिसाब से उस कुँवें की घटना का असल सच ये है.. देखिये मानसिक दिवालियापन इनका ज़रा.. कुवां सीधा सीधा इंसानों द्वारा खोदने में इन्हें परेशानी है.. वो परीकथा है इनके हिसाब से कि इंसान कुवां खोदे
उसी बीहड़ में इस कुवें के आसपास उन राहगीरों ने अपना मंदिर बनाया.. और पूजा शुरू कर दी.. और फिर धीरे धीरे वो मंदिर अन्य लोगों द्वारा भी पूजा जाने लगा और धीरे धीरे लोग उसके आस पास बस गए.. ये तो है वैज्ञानिक दृष्टिकोण.. मगर धार्मिक मुझे चाहेंगे कि मैं इतिहास में लिखूं कि कोई पंद्रह सौ किलोमीटर से ख़ुदा के हुक्म से अपने एक बेटे के साथ कोई चलकर आया और उसने ये मंदिर बनाया.. कुछ कहेंगे कि ये मंदिर सीधा सीधा आसमान से उतारा गया था आदम के समय में.. और उसमे जो पत्थर लगा है वो जन्नत से आया है.. आसमान से एक फ़रिश्ता ला कर दे गया वो पत्थर.. ये लोग इसे इतिहास बोलेंगे.. मगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कोरी कल्पना.. देखिये धार्मिकता का मानसिक दिवालियापन.. जो सीधा सीधा है वो नहीं समझ आएगा.. आसमान से परिश्ते, हूरें और मलाईका आएँगी.. पत्थर की डिलीवरी होगी आसमान से.. ये सब इतिहास प्रामाणिक है इनके लिए और इसे लिखा जाय
पहले फ़रिश्ते आते थे कुवें खोद के जाते थे.. मगर उन फरिश्तों ने कभी तेल के कुवें नहीं खोदे जिनकी वजह से आज सऊदी अरब जो है वो है.. और उन्ही तेल के कुवों की वजह से यहाँ भारत के भी मुस्लमान वहां नौकरी की लालच में जाते हैं.. ये कुवें किसी फ़रिश्ते ने नहीं बल्कि अंग्रेजों ने खोदे और उन्होंने तुम्हारी सारी नस्लों को रोटी दी.. वरना तुम वही मन्न और सलवा खा रहे होते.. जिस वजह से तुम्हारी सारी नस्लें आबाद हैं वो उन यहूद और नसारा (इसाईयों) की देन है.. यहूद और नसारा अगर गाडी न बनाते और पेट्रोल की कीमत न बताते, और फिर तुम्हारे इलाके में पेट्रोल खोज के उन्हें इस्तेमाल न करते तो तुम्हारे घरों में रोटी के लाले पड़े होते.. और तुम आज तक वही ज़मज़म के पानी को बेवकूफों को बेच बेच के पेट पाल रहे होते
उस पानी को पहले लोग बोतलों में भर कर लाते थे इस उम्मीद से कि उसकी एक बूँद किसी के मुह में डाल दोगे तो उसकी बिमारी ठीक हो जायेगी.. मगर कभी न ठीक हुई.. फिर जब मेडिकल साइंस आई तो लोग उन बोतलों को फ़ेंक कर भागे डॉक्टरों की तरफ.. जो पूरा कुवां अपने शहर में रखे बैठे हैं वो भी अपना इलाज कराने न्यूयॉर्क जाते हैं.. और वो भी इसीलिए जा पाते हैं क्यूंकि अंग्रेजों ने उनके यहाँ कुवें खोदे.. फरिश्तों ने नहीं
मैं अफीम खा कर इतिहास नहीं लिखूंगा.. ये आपकी परेशानी है कि परीकथाएँ आपको इतिहास नज़र आती हैं और सच्चाई आपको परीकथाएँ.. इसलिए आप जिस बात के लिए इतने बेचैन है वो सच्चाई नहीं बल्कि आप मुझ से बस ये उम्मीद कर रहे हैं कि आपके मानसिक रोग को मैं हरी झंडी दिखा दूँ.. जो अन्य लेखक आपके धार्मिक उन्माद से डरकर और ख़िलाफ़त की चापलूसी में करते आये हैं अभी तक.. और वो मैं नहीं करूँगा.. आप आज मुझे गाली देंगे.. मगर आपकी आने वाली नस्लें सीखेंगे मेरे आर्टिकल से और सच्चाई की दुनिया में क़दम रख सकेंगी
~ताबिश
मैं इतिहास लिख रहा हूँ और ये इतने बेचैन हैं कि न पूछिये.. दिन रात मुझे इन लोगों के मेल मिल रहे हैं और हर मेल में सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही गुज़ारिश कि "लिखना बाद कर दो" बस.. क्यूं बंद कर दो? क्यूंकि ग़लत लिख रहे हो.. पूछो सही क्या है? तो कहेंगे कि क़ुरआन पढ़ो, किसी मदरसे के आलिम के पास जाओ उस से पूछो.. बस यही रटे रटाये जवाब और इनकी बेचैनी
अपने मज़हब को पागलपन की हद तक सही साबित करने का जुनून आपको सच मे मानसिक रोगी बना देता है.. एक पूरी जनरेशन दिमाग़ी दिवालिया हो चुकी है जिसे देख कर रूह काँप जाती है
एक बीहड़ रेगिस्तान में एक पानी का कुवाँ मिलता है.. इतिहास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखिए तो ये समझ आएगा कि कुछ लोग जो सफ़र पर निकले थे.. उन्होंने इस बीहड़ में पानी खोजा और कुवां खोदा अपनी ज़रूरत के हिसाब से.. जब जब सफ़र के दौरान वो लोग उधर से निकलते थे तब वो उन कुंवे का इस्तेमाल करते थे.. जाते समय उसे ढक देते थे.. ये हुवा समझदारी भरा दृष्टिकोण जो सच है और जिसे हमारा दिमाग मान लेगा.. ऐसे सैकड़ों कुवें दुनिया के अन्य रेगिस्तानों में भी हैं
मगर अंध धार्मिक गुस्सा हैं.. वो चाहते हैं कि मैं लिखूं कि एक छोटा बच्चा उस बीहड़ में लेटा हुवा जोर जोर से रो कर अपना पैर रगड़ रहा था और उसके पैर की रगड़ से ज़मीन से एक पानी की धार फूट पड़ी.. या.. एक फ़रिश्ता आसमान से उड़ता हुवा आया और उसने अपने पंखों से उस कुवें को खोदा.. ऐसे उस बीहड़ में एक कुंवा बन गया.. इन धार्मिकों के हिसाब से उस कुँवें की घटना का असल सच ये है.. देखिये मानसिक दिवालियापन इनका ज़रा.. कुवां सीधा सीधा इंसानों द्वारा खोदने में इन्हें परेशानी है.. वो परीकथा है इनके हिसाब से कि इंसान कुवां खोदे
उसी बीहड़ में इस कुवें के आसपास उन राहगीरों ने अपना मंदिर बनाया.. और पूजा शुरू कर दी.. और फिर धीरे धीरे वो मंदिर अन्य लोगों द्वारा भी पूजा जाने लगा और धीरे धीरे लोग उसके आस पास बस गए.. ये तो है वैज्ञानिक दृष्टिकोण.. मगर धार्मिक मुझे चाहेंगे कि मैं इतिहास में लिखूं कि कोई पंद्रह सौ किलोमीटर से ख़ुदा के हुक्म से अपने एक बेटे के साथ कोई चलकर आया और उसने ये मंदिर बनाया.. कुछ कहेंगे कि ये मंदिर सीधा सीधा आसमान से उतारा गया था आदम के समय में.. और उसमे जो पत्थर लगा है वो जन्नत से आया है.. आसमान से एक फ़रिश्ता ला कर दे गया वो पत्थर.. ये लोग इसे इतिहास बोलेंगे.. मगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कोरी कल्पना.. देखिये धार्मिकता का मानसिक दिवालियापन.. जो सीधा सीधा है वो नहीं समझ आएगा.. आसमान से परिश्ते, हूरें और मलाईका आएँगी.. पत्थर की डिलीवरी होगी आसमान से.. ये सब इतिहास प्रामाणिक है इनके लिए और इसे लिखा जाय
पहले फ़रिश्ते आते थे कुवें खोद के जाते थे.. मगर उन फरिश्तों ने कभी तेल के कुवें नहीं खोदे जिनकी वजह से आज सऊदी अरब जो है वो है.. और उन्ही तेल के कुवों की वजह से यहाँ भारत के भी मुस्लमान वहां नौकरी की लालच में जाते हैं.. ये कुवें किसी फ़रिश्ते ने नहीं बल्कि अंग्रेजों ने खोदे और उन्होंने तुम्हारी सारी नस्लों को रोटी दी.. वरना तुम वही मन्न और सलवा खा रहे होते.. जिस वजह से तुम्हारी सारी नस्लें आबाद हैं वो उन यहूद और नसारा (इसाईयों) की देन है.. यहूद और नसारा अगर गाडी न बनाते और पेट्रोल की कीमत न बताते, और फिर तुम्हारे इलाके में पेट्रोल खोज के उन्हें इस्तेमाल न करते तो तुम्हारे घरों में रोटी के लाले पड़े होते.. और तुम आज तक वही ज़मज़म के पानी को बेवकूफों को बेच बेच के पेट पाल रहे होते
उस पानी को पहले लोग बोतलों में भर कर लाते थे इस उम्मीद से कि उसकी एक बूँद किसी के मुह में डाल दोगे तो उसकी बिमारी ठीक हो जायेगी.. मगर कभी न ठीक हुई.. फिर जब मेडिकल साइंस आई तो लोग उन बोतलों को फ़ेंक कर भागे डॉक्टरों की तरफ.. जो पूरा कुवां अपने शहर में रखे बैठे हैं वो भी अपना इलाज कराने न्यूयॉर्क जाते हैं.. और वो भी इसीलिए जा पाते हैं क्यूंकि अंग्रेजों ने उनके यहाँ कुवें खोदे.. फरिश्तों ने नहीं
मैं अफीम खा कर इतिहास नहीं लिखूंगा.. ये आपकी परेशानी है कि परीकथाएँ आपको इतिहास नज़र आती हैं और सच्चाई आपको परीकथाएँ.. इसलिए आप जिस बात के लिए इतने बेचैन है वो सच्चाई नहीं बल्कि आप मुझ से बस ये उम्मीद कर रहे हैं कि आपके मानसिक रोग को मैं हरी झंडी दिखा दूँ.. जो अन्य लेखक आपके धार्मिक उन्माद से डरकर और ख़िलाफ़त की चापलूसी में करते आये हैं अभी तक.. और वो मैं नहीं करूँगा.. आप आज मुझे गाली देंगे.. मगर आपकी आने वाली नस्लें सीखेंगे मेरे आर्टिकल से और सच्चाई की दुनिया में क़दम रख सकेंगी
~ताबिश
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