शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

अंग्रेजों के पूर्वज जब जंगलों में नंग-धडंग घूमा करते थे. भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है, वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है.... और, उस से पूर्व के इतिहास को "प्रमाण-रहित" कह कर नकार दिया जाता है।

क्या आप जानते हैं कि...... आज के पाश्च्यात्य और तथाकथित रूप से आधुनिक कहे जाने वाले अंग्रेजों के पूर्वज जब जंगलों में नंग-धडंग घूमा करते थे..... और.... कंदराओं में रहा करते थे (मुहम्मद-फुहम्मद का तो उस समय जन्म भी नहीं हुआ था)....... उस समय भी हम हिन्दुस्तानी (हिन्दू) ..... परमाणु बम और हीट सीकिंग मिसाईल जैसे .... आधुनिकतम हथियार का प्रयोग किया करते थे...!

दरअसल.... बात कुछ ऐसी है कि....... आधुनिक भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है, वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है.... और, उस से पूर्व के इतिहास को "प्रमाण-रहित" कह कर नकार दिया जाता है।

स्थित तो यह है कि....हमारे "देशी अंग्रेजों" को यदि "सर जान मार्शल" प्रमाणित नहीं करते... तो, हमारे तथाकथित रूप से "बुद्धिजीवियों" को विश्वास ही नहीं होना था कि.... हडप्पा और मोहनजोदड़ो स्थल ईसा से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं.... और, वहाँ पर ही ""विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया"" था।

मोहनजोदड़ो ...सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख नगर अवशेष है , जिसकी खोज 1922 ईस्वी मे "राखाल दास बनर्जी" ने की। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे "सक्खर जिले" में स्थित है....... और, सिन्धी भाषा में इसका अर्थ है - मृतको का टीला।

विश्व की प्राचीनतम् सिन्धु घाटी एवं मोहनजोदड़ो सभ्यता के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं।

जब पुरातत्वविदों ने पिछली शताब्दी में मोहनजोदडो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था ....तो, उन्हों ने देखा कि वहाँ की "गलियों में नर-कंकाल" पडे थे.... और, कई "अस्थि पिंजर चित अवस्था" में लेटे थे .......! साथ ही..... कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड रखा था .... मानो किसी भयानक विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था।

गौर करने लायक बात यह है कि.... उन नर कंकालों पर ठीक उसी प्रकार के ""रेडियो -ऐक्टीविटी के चिन्ह"" थे.... जिस तरह के चिन्ह ... जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर "एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये" थे।

मोहनजोदड़ो स्थल के अवशेषों पर ""नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह"" पाये गये थे उस का कोई स्पष्ट कारण नहीं था क्यों कि ऐसी अवस्था """केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही""" हो सकती है।

जब आप मोहनजोदड़ो की भूगोलिक स्थिति पर गौर करेंगे .... तो आप पाएंगे कि....
मोइन जोदडो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है... और , उसके चारों ओर दो किलोमीटर की परिधि में इस प्रकार की तबाही देखी जा सकती है.... जो ""मध्य केन्द्र से आरम्भ हो कर बाहर की तरफ गोलाकार फैल गयी"" थी..(जैसा कि परमाणु बम विस्फोट के बाद ही होता है )

पुरात्तव विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि ''''चूने मिटटी के बर्तनों के अवशेष किसी भीषण ऊष्मा के कारण पिघल कर एक दूसरे के साथ जुड गये"" थे।
हजारों की संख्या में वहां पर पाये गये इस तरह के ढेरों को पुरात्तव विशेषज्ञों ने काले पत्थरों ...... अर्थात ....‘""ब्लैक -स्टोन्स"" की संज्ञा दी।

वैसी दशा किसी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की राख के सूख जाने के कारण होती है... परन्तु मोहनजोदड़ो स्थल के आस पास कहीं भी कोई ज्वालामुखी की राख जमी हुयी नहीं पाई गयी।

वहां के हालत ... चीख -चीख कर ये कह कर रहे हैं कि.... किसी कारण वहां की अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री तक पहुँची.... जिस में चीनी मिट्टी के पके हुये बर्तन भी पिघल गये ।

ध्यान देने योग्य बात है कि..... अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री की ऊष्णता ज्वालामुखी या फिर... अणु बम के विस्फोट पश्चात ही घटती है।
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इस मोहनजोदड़ो की व्याख्या करने में .....इतिहास मौन है...!

परन्तु जब हम ... महाभारत .... और उसमे वर्णित घटनाओं पर नजर डालते हैं तो हर बात शीशे की तरह एक दम साफ हो जाती है....!

महाभारत युद्ध में............ महासंहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ एक ""परमाणु युद्ध का उल्लेख भी"" मिलता है।
महाभारत में साफ साफ उल्लेखित है कि.... मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था..... और, उस में चार पहिये लगे थे।

देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है.... जैसे कि, हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं।
इस युद्ध के वृतान्त से बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं........ अपितु, इन्द्र के वज्र अपने "चक्रदार रफलेक्टर" के माध्यम से "संहारक रूप में प्रगट" होता है।

उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो एक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह "उसने अपने लक्ष्य को निगल लिया" था।

वह विनाश कितना भयावह था..... इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-

“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्ति–युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिसकी चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…!

वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र "साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत" था..... जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…!
उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि ..... पहचानने योग्य नहीं थे..... उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे…

बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे ......और, पक्षी सफेद पड़ चुके थे…!

कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया…”

उपरोक्त दृश्य के वर्णन से स्पष्ट रूप से...ये.... हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है।

एक अन्य वृतान्त में....... श्री कृष्ण अपने प्रतिद्वंदी .... शल्व का आकाश में पीछा करते हैं.....उसी समय आकाश में शल्व का विमान "शुभः" अदृश्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण ने एक ऐसा अस्त्र छोडा...... जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्षित कर सकता था।

निश्चित तौर पर....... वो एक मिसाईल था..... और, आजकल ऐसे
मिसाईल को ""हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस"" कहते हैं .... जो आधुनितम सेनाओं द्वारा प्रयोग किये जाते हैं।

और.. तो और ....... आधुनिक राजस्थान में भी…
परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं।

राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है.... जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है..... जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।

अब ... बात जरा रामायण की भी कर लेते हैं......

"लक्ष्मण-रेखा" की तरह अदृश्य "इलेक्ट्रानिक फैंस" तो .... कोठियों में आज कल पालतु जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जाती है ... और, हीरे जवाहरात ... इत्यादि की प्रदर्शनी में.... उनकी सुरक्षा के लिए ""अदृश्य लेजर बीम"" का प्रयोग किया जाता है...!

और.... अपने आप खुलने और बन्द हो जाने वाले दरवाजे तो ..... किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं।

यह सभी चीजे पहले आश्चर्यजनक और काल्पनिक प्रतीत होती थी.. परन्तु आज यह आम बात बन चुकी हैं।

यहाँ तक कि...."मन की गति से चलने वाले" रावण के पुष्पक-विमान का "प्रोटोटाईप" भी उडान भरने के लिये चीन ने बना लिया है।

यहाँ सबसे उल्लेखनीय है कि.....
रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो पृथक-पृथक ऋषि थे ......और, आजकल की सेनाओं के साथ उन का कोई सम्बन्ध नहीं था।
वे दोनो महाऋषि थे.... और, किसी साईंटिफिक – फिक्शन के थ्रिल्लर – राईटर नहीं थे।

उन के उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि ......तथ्य क्या है और साहित्यक कल्पना क्या होती है.... क्योंकि कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की ही आवश्यकता होती है।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही....... परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे...!

परन्तु ... आज ये विडम्बना है कि....... आज मूर्ख तथा हमारे धर्मग्रंथों के प्रति पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य अंग्रेजों की दी गई ... अंग्रेजी शिक्षा के कारण......

अधिकतर हिन्दू... अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं ....और, उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना....!

इसीलिए मित्रो..... खुद को पहचानो.....

हम हिन्दू..... और.... हमारा हिंदुस्तान सर्वश्रेष्ठ है...!

जय महाकाल...!!!

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